सनातन धर्म का विशेष पर्व: कार्तिक पूर्णिमा को क्यों मनाते हैं 'देव दीपावली'? जानिए शुभ मुहूर्त, कथाएं और पूजा विधि
धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सभी देवी-देवता धरती पर आते हैं और गंगा घाट पर दीपावली मनाते हैं। इस दिन को 'त्रिपुरारी पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था।
शुभ मुहूर्त (पंचांग):
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा का पर्व 05 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा।
तिथि आरंभ समापन
कार्तिक पूर्णिमा 04 नवंबर रात्रि 10:37 बजे 05 नवंबर संध्या 6:49 बजे
देव दीपावली से जुड़ी कथाएं:
त्रिपुरासुर वध की कथा: धार्मिक कथा के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा की तिथि को ही भगवान शिव ने तारकासुर और उसके तीनों पुत्रों (त्रिपुरासुर) का वध किया था। इस विजय की खुशी में देवताओं ने शिवलोक यानी काशी में आकर दीपावली मनाई थी, तभी से 'देव दीपावली' मनाने की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि इस दिन काशी में गंगा स्नान कर दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।
कार्तिकेय की कथा: एक अन्य कथा भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी है। जब कार्तिकेय ने क्रोध में श्राप दिया था कि जो स्त्री उनके दर्शन करेगी वह सात जन्मों तक विधवा रहेगी और पुरुष नरक में जाएगा, तब भगवान शिव और माता पार्वती ने उनका क्रोध शांत किया। कार्तिकेय ने तब कार्तिक पूर्णिमा को उनके दर्शन करना महा फलदायी बताया।
अन्य महत्वपूर्ण मान्यताएं:
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था।
इस दिन राधिका जी की शुभ प्रतिमा का दर्शन और वंदन करने से जन्म के बंधन से मुक्त होने में सहायता मिलती है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु नानक देव जी का भी जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन गुरु नानक जयंती का पर्व भी मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि:
कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होता है।
सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करें या घर पर ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
घर की साफ-सफाई कर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु को सुगंध, फूल, फल, पुष्प, वस्त्र और तुलसी पत्र अर्पित करें।
देसी गाय के घी का दीपक जलाएं, आरती करें और भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करें।
इस दिन कुलदेवता, इष्टदेवता सहित स्थानदेवता, वास्तुदेवता आदि की पूजा कर उनकी रुचि का पकवानों का भोग (महानैवेद्य) चढ़ाया जाता है।
2 hours and 12 min ago
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