झारखंड सरकार के प्रशासनिक क्षेत्र में अव्यवस्था और लापरवाही चरम पर..... बाबूलाल मरांडी
झारखंड की प्रशासनिक व्यवस्था में किस स्तर की लापरवाही और अव्यवस्था व्याप्त है, इसका अंदाजा दो सरकारी पत्रों से लगाया जा सकता है।
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पहला पत्र 9 सितंबर 2025 का है, जिसमें उप निदेशक (ड्रग कंट्रोलर) रितु सहाय को संयुक्त निदेशक पद पर पदोन्नत किया गया था। इस आदेश में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि उन्हें निदेशक का प्रभार सौंपा गया है। वहीं दूसरा पत्र 30 अक्टूबर 2025 का है, जिसमें राज्य सरकार की ओर से झारखंड हाईकोर्ट में प्रस्तुत पत्र में रितु सहाय को निदेशक बताया गया है।
इन दोनों पत्रों से यह स्पष्ट होता है कि सरकार के कामकाज में गंभीर लापरवाही और प्रशासनिक भ्रम की स्थिति बनी हुई है। जब अधिकारियों की भूमिका और जिम्मेदारी तक स्पष्ट नहीं है, तो शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली का स्तर समझना कठिन नहीं है।
रितु सहाय पर सरकार की मेहरबानी कोई नई बात नहीं है। उन्हें लंबे समय से मुख्यमंत्री का सीधा संरक्षण प्राप्त रहा है। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने नशे के कारोबार को संरक्षण देने के आरोप में ड्रग कंट्रोलर रितु सहाय के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभागीय सचिव को पीत पत्र लिखा था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उनके कार्यकाल में झारखंड नकली और घटिया दवाओं की बिक्री के मामलों में शीर्ष पर रहा। गत वर्ष धनबाद में प्रतिबंधित कफ सिरप बरामद होने के बावजूद उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया। इसके उलट, स्वास्थ्य विभाग ने उनसे जुड़े तथ्यों को छुपाया और कार्रवाई करने के बजाय उन्हें पदोन्नति दे दी।
इसी प्रशासनिक अव्यवस्था और संरक्षण का परिणाम है कि चाईबासा में बच्चों को HIV संक्रमित रक्त चढ़ा दिया गया, जिससे उनके जीवन पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। इस भयावह घटना पर कठोर कार्रवाई करने के बजाय राज्य सरकार मामले को दबाने और लीपापोती में जुटी हुई है। अदालत में भी अधूरी और भ्रामक जानकारी दी जा रही है।
ऐसे में राज्य सरकार से निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना व्यर्थ है। इस पूरे मामले की जांच सीबीआई या हाईकोर्ट के सिटिंग जज से कराई जाए, ताकि दोषियों पर सख्त और निष्पक्ष कार्रवाई हो सके।








Nov 04 2025, 13:41
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