झारखंड और महात्मा गांधी: वह यात्रा जिसने बापू को दी ताकत

रांची/जमशेदपुर। महात्मा गांधी की भारत में पहली बड़ी सफलता, चंपारण आंदोलन, में भले ही बिहार का नाम अग्रणी रहा हो, लेकिन इस आंदोलन को मिली मजबूती और गांधी जी के प्रभाव को देश भर में फैलाने में झारखंड (तत्कालीन बिहार का हिस्सा) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। झारखंड की यात्राओं ने न केवल गांधी जी को जनजातीय समुदायों से जोड़ा, बल्कि राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक मजबूत वैचारिक आधार भी प्रदान किया।
चंपारण के बाद रांची का निर्णायक दौरा (1917)
चंपारण आंदोलन की सफलता के ठीक बाद, गांधी जी को जून 1917 में तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गेट से वार्ता के लिए रांची बुलाया गया था। ब्रजकिशोर प्रसाद के साथ रांची पहुँचे गांधी जी को गिरफ्तारी की आशंका थी, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी और बेटे को भी बुला लिया था। हालांकि, सर गेट के साथ हुई सफल वार्ता के बाद गिरफ्तारी नहीं हुई और इसके बजाय एक जांच कमेटी का गठन हुआ। यहीं से गांधी जी का झारखंड से अटूट संबंध स्थापित हुआ।
जनजातीय समुदायों ने दी नई ऊर्जा
गांधी जी 1917 के बाद 1925, 1934 और 1940 में कई बार झारखंड (रांची, जमशेदपुर, चाईबासा, रामगढ़, हजारीबाग, गिरिडीह, देवघर आदि) आए। उनकी यात्राओं का सबसे गहरा असर यहां के जनजातीय समाज पर पड़ा:
टाना भगतों का समर्पण: रांची में टाना भगतों ने गांधी जी से मुलाकात की, जिसके बाद वे उनके कट्टर अनुयायी बन गए। उनकी भक्ति ऐसी थी कि वे गया, कोलकाता और रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए पैदल ही चले गए। 'गांधी जी की जय' उनका मुख्य नारा बन गया और 1942 के आंदोलन में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई।
हो और संतालों से संवाद: 1925 में चाईबासा में गांधी जी ने हो समुदाय के लोगों से उनकी वीरता की कहानियाँ सुनीं। उन्होंने बेरमो और देवघर में संतालों से मुलाकात कर उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में खुलकर भाग लेने के लिए प्रेरित किया, जिसका परिणाम 1942 के आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी के रूप में सामने आया।
सामाजिक सुधार और श्रमदान पर जोर
गांधी जी ने अपनी यात्रा के दौरान केवल राजनीतिक चेतना ही नहीं जगाई, बल्कि सामाजिक सुधार पर भी ध्यान केंद्रित किया:
उन्होंने खादी, शराब से दूरी, महिलाओं की आत्मनिर्भरता, और समाज सेवा पर विशेष जोर दिया।
शिक्षा और चरित्र निर्माण: रांची के योगदा सत्संग स्थित विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था से वे काफी प्रभावित हुए थे। हजारीबाग के संत कोलंबा कॉलेज में छात्रों को उन्होंने समाज सेवा और चरित्र निर्माण का महत्व समझाया और हो आदिवासियों के बारे में शोध करने को कहा।
कर्म में विश्वास: गिरिडीह में, सड़क मरम्मत के लिए पैसे की कमी की शिकायत पर, गांधी जी ने स्पष्ट कहा था कि लोग श्रमदान करें और सफाई करें, क्योंकि "सबसे बड़ी बीमारी निठल्लापन है।" उन्होंने खुद हरिजन स्कूल में बच्चों के नाखून और कान की सफाई की जाँच की और अध्यापकों को स्वच्छता को शिक्षा का आरंभ बिंदु बनाने को कहा।
जमशेदपुर: पूंजीपतियों का समर्थन और मजदूरों का नेतृत्व
गांधी जी 1925, 1934 और 1940 में जमशेदपुर भी गए, जहां उन्होंने मजदूरों और टाटा प्रबंधन के बीच बेहतर संबंध स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां यह उल्लेखनीय है कि गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका आंदोलन के दौरान सर रतनजी टाटा ने उन्हें 25 हजार रुपये की सहायता राशि भेजी थी, जिसका जिक्र गांधी जी ने स्वयं किया था।
झारखंड की इन यात्राओं ने महात्मा गांधी के नेतृत्व को जन-जन तक पहुँचाया और उन्हें राष्ट्रीय पटल पर एक शक्तिशाली नेता के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।
Oct 02 2025, 11:06