आत्मज्ञान के लिए तर्क नहीं, श्रद्धा और गुरु कृपा आवश्यक: डॉ. विद्यासागर उपाध्याय
संजीव सिंह बलिया!कठोपनिषद् के आधार पर सत्य के मार्ग को किया स्पष्टउज्जैन/बैंगलोर, [तारीख/दिन]। मूर्तीनाथ पीठ महाकालेश्वर, उज्जैन के समरसता प्रमुख एवं शंकराचार्य परिषद, बैंगलोर के राष्ट्रीय पार्षद डॉ. विद्यासागर उपाध्याय ने हाल ही में अपने एक महत्त्वपूर्ण वक्तव्य में आत्मज्ञान की साधना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आत्मा के साक्षात्कार का मार्ग केवल बुद्धि और तर्क से होकर नहीं जाता। इसके लिए गुरु की कृपा, सच्ची श्रद्धा और अनुशासित धैर्य सबसे अधिक आवश्यक तत्व हैं।डॉ. उपाध्याय ने प्राचीन भारतीय दर्शन और उपनिषद् पर विशेष बल देते हुए 'कठोपनिषद्' का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आत्मज्ञान ऐसा शाश्वत सत्य है जिसे केवल वाद-विवाद या तर्कशास्त्र के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता। कठोपनिषद् के मंत्र 'नैषा तर्केण...' का उल्लेख करते हुए उन्होंने समझाया कि तर्क और बुद्धि कई बार साधक को विभिन्न दिशाओं में भटका सकते हैं। सत्य का प्रत्यक्ष दर्शन केवल उस गुरु की शरण में जाकर और उसके उपदेशों को श्रद्धा भाव से स्वीकार करके ही किया जा सकता है, जिसने स्वयं आत्मसत्य का अनुभव किया है।डॉ. उपाध्याय ने कठोपनिषद् के नचिकेता प्रसंग को आदर्श उदाहरण बताते हुए कहा कि नचिकेता ने मृत्यु देव यमराज से संवाद करते समय भी आत्मज्ञान की प्राप्ति के प्रति अटल जिज्ञासा और अटूट विश्वास रखा। "नचिकेता की तरह सत्य के प्रति कठोर निष्ठा और गुरु की वाणी में अडिग श्रद्धा ही साधक को आत्मज्ञान का अधिकारी बनाती है," उन्होंने कहा। उनके अनुसार, आत्मज्ञान केवल एक बौद्धिक विमर्श या दार्शनिक बहस का विषय नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक गहन साधना है, जिसमें श्रद्धा, धैर्य और गुरु कृपा मूल स्तंभ हैं।उन्होंने यह भी कहा कि आज के समय में जब समाज में तर्क और बौद्धिकता को उच्च स्थान दिया जा रहा है, ऐसे में आत्मज्ञान पर इस प्रकार का दृष्टिकोण अत्यधिक प्रासंगिक है। आधुनिक जीवनशैली में तर्क-वितर्क और तर्कप्रधान बहसें तो बढ़ रही हैं, लेकिन आत्मिक शांति और आत्मा के साक्षात्कार की दिशा में लोग धीरे-धीरे दूर जाते दिख रहे हैं। डॉ. उपाध्याय के अनुसार, केवल विचारों का आदान-प्रदान आत्मा के रहस्य को खोल पाने में असमर्थ है; इसके लिए साधना, संयम, श्रद्धा और गुरु की छाया में किया गया प्रयास ही सफल हो सकता है।उन्होंने युवाओं और साधकों का आह्वान करते हुए कहा कि आत्मज्ञान की वास्तविक साधना केवल पुस्तकों और तर्कों से नहीं, बल्कि अनुशासन, गुरु मार्गदर्शन और आंतरिक समर्पण से होती है। "गुरु वह दीपक हैं जो अज्ञान के अंधकार को दूर करके सत्य का प्रकाश देते हैं," उन्होंने कहा।यह वक्तव्य उस समय आया है जब आध्यात्मिक विमर्श में नए-नए विचार लगातार उभर रहे हैं और लोग धार्मिक ग्रंथों को आधुनिक संदर्भों में परखने की कोशिश कर रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में डॉ. उपाध्याय का संदेश आत्मिक साधना का मूल तत्व स्पष्ट करता है कि आत्मा की पहचान और आत्मोन्नति तर्क से नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा और आस्था से ही संभव है।जारीकर्ता: [मूर्तीनाथ पीठ महाकालेश्वर कार्यालय] [संपर्क सूत्र]
Sep 30 2025, 09:57