हनुमान गढ़ी में तीज पर उमड़ा आस्था का महासागर, 10 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने किया हनुमान जी का प्रसाद ग्रहण

बेल्थरा रोड।
प्राचीन हनुमान गढ़ी रेलवे स्टेशन बिल्थरा रोड पर तीज पर्व एवं वार्षिक श्रृंगार महोत्सव के अवसर पर सोमवार को आस्था और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। विशाल भंडारे में दस हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने हनुमान जी का प्रसाद ग्रहण कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। पूरा वातावरण "जय श्री राम" और "जय बजरंगबली" के गगनभेदी नारों से गूंजता रहा।
यह भव्य आयोजन पिछले दस वर्षों से अधिक निरंतर समाजसेवियों और धर्मप्रेमियों के सहयोग से संपन्न हो रहा है और अब यह बेल्थरा रोड का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव बन चुका है। भक्तों की भारी भीड़ और उनके स्वागत-सत्कार की भव्य व्यवस्थाओं ने इसे ऐतिहासिक बना दिया।
भंडारे में श्रद्धालुओं की सेवा और व्यवस्था में पुजारी नागेंद्र उपाध्याय, प्रशांत कुमार मंटू, प्रवीण कुमार, जितेन्द्र सोनी, अनिल, सुनील टिंकू, अंचल वर्मा, सूबेदार भाई, यशवीर रिंकू सहित सैकड़ों सेवाभावी लोग तन-मन-धन से लगे रहे। भक्तों का स्वागत ऐसे किया जा रहा था मानो यह किसी भव्य मेला जैसा आयोजन हो। प्रसाद वितरण के दौरान भक्तों की भीड़ इनी उमड़ पड़ी कि पूरा रेलवे स्टेशन और आस-पास का इलाका श्रद्धा और भक्ति से सराबोर हो गया। महिलाएं के लिए इस बार अलग से व्यवस्था किया गया था ताकि किसी भी प्रकार से परेशानी न हो, पुरुष, बच्चे सभी श्रद्धालु भक्ति रस में डूबकर "हनुमान चालीसा" और भजनों का गायन करते रहे।
बलिया की धरती पर गूँजी आजादी की हुंकार: बिल्थरा रोड क्षेत्र चरौवा के चार शहीदों की गाथा

बलिया। देश के स्वतंत्रता संग्राम में बलिया के बिल्थरा रोड विधानसभा क्षेत्र स्थित चरौवा गांव का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। 25 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस गांव के वीर सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत से सीधा मोर्चा लिया और अपने प्राणों की आहुति दी। इस संघर्ष ने न केवल बलिया, बल्कि पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में क्रांति की एक नई लहर पैदा कर दी।
अंग्रेजों का दमन और चरौवा का आक्रोश

उस दौर में, अंग्रेज शासक नेदर सोल और मार्क्स स्मिथ के नेतृत्व में फौज बलिया पहुंची थी। 25 अगस्त को कैप्टन मूर का दस्ता चरौवा पहुंचा और गांव के सरपंच रामलखन सिंह से क्रांतिकारियों को सौंपने की मांग की। जब चौकीदार यह संदेश लेकर पहुंचा तो सरपंच ने उसे जोरदार तमाचा मारा, जिससे उसके कान से खून बहने लगा। यह घटना अंग्रेजों के लिए चुनौती बन गई और उन्होंने पूरे गांव को घेर लिया।
ग्रामीणों ने भी हार मानने के बजाय अंग्रेजों को ललकारा: "गोरों के पास दो हाथ की मशीन है तो हमारे पास छह फुट की लाठी है।" इसके बाद चरौवा की धरती पर लाठी-डंडों और अंग्रेजों की गोलियों के बीच भीषण संघर्ष शुरू हो गया।
वीरांगना मकतुलिया और तीन शहीदों का बलिदान
इस संघर्ष में गांव की वीरांगना मकतुलिया मालिन ने अद्भुत साहस का परिचय दिया। उन्होंने कैप्टन मूर पर हांडी से वार किया, जिससे बौखलाए मूर ने उन्हें गोलियों से छलनी करवा दिया। मकतुलिया का शव घाघरा नदी में फेंकवा दिया गया। इस जंग में तीन और वीर सपूत- खर बियार, मंगला सिंह, और शिवशंकर सिंह ने भी मातृभूमि के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इन क्रांतिकारियों ने रेलवे पटरी को उखाड़कर और व्यवस्था ठप करके अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी।
इस संघर्ष के बाद अंग्रेजी सेना ने गांव में भीषण दमनचक्र चलाया। लूटपाट और उत्पीड़न के बावजूद चरौवा के लोग पीछे नहीं हटे। कन्हैया सिंह, राधा किशुन सिंह, दशरथ सिंह, कपिलदेव सिंह, बृज बिहारी सिंह, मृगराज सिंह, शम्भू सिंह, श्रीराम तिवारी, कमला स्वर्णकार और हरिप्रसाद स्वर्णकार जैसे कई क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया और बाद में जेल भी गए। अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता का शिकार होने के बाद भी उनका हौसला नहीं टूटा।

बेल्थरारोड में भड़की क्रांति की ज्वाला

चरौवा का यह बलिदान एकाकी नहीं था। इससे पहले, 14 अगस्त, 1942 को इलाहाबाद से 'आज़ाद हिंद' ट्रेन बेल्थरारोड पहुंची थी। यहां छात्र-छात्राओं और क्रांतिकारियों की टोली ने जनमानस में जोश भर दिया था। आक्रोशित क्रांतिकारियों ने रेलवे स्टेशन और मालगोदाम को आग के हवाले कर दिया, बिजली-टेलीफोन के तार काट डाले और सरकारी व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। इसी दौरान, डीएवी इंटर कॉलेज के अध्यापक चंद्रदीप सिंह ने रेलवे लाइन उखाड़ते समय अपनी शहादत दी। आज भी स्कूल में उनके नाम का एक स्तंभ इस महान क्रांतिकारी के संघर्ष की कहानी कहता है और हर साल 25 अगस्त को उन्हें याद किया जाता है।

फिरोज गांधी ने दी श्रद्धांजलि

इस भीषण घटना का जायजा लेने जब कांग्रेस ने फिरोज गांधी को बलिया भेजा तो वे शहीदों की कुर्बानी देखकर भावुक हो उठे थे।
आज भी 25 अगस्त को चरौवा गांव में इन शहीदों की याद में बलिदान दिवस और मेला आयोजित किया जाता है। इस पावन भूमि की हर मिट्टी स्वतंत्रता संग्राम की गाथा कहती है और हमें याद दिलाती है कि हमारी आजादी कितने बलिदानों के बाद मिली है।
आजादी की लड़ाई से जुड़ा है बिल्थरा रोड का महावीरी झंडा जुलूस, 2 कमेटी निकालती हैं परम्परागत जलूस

बलिया शहर के अंदर निकलने वाला ऐतिहासिक महावीरी झंडा जुलूस आजादी से जुड़ा हुआ है। इस जुलूस का इतिहास 128 साल पुराना है। यह महावीरी झंडा जुलूस 1910 ई. में जार्ज पंचम की ताजपोशी के विरोध में जिले के क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर जगन्नाथ ¨सह के नेतृत्व में गठित विद्यार्थी परिषद ने निकाला था पहला महावीरी झंडा जुलूस। श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन बलिया नगर में निकलने वाले ऐतिहासिक महावीरी झंडा जुलूस के 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद 1887 ई. तीस वर्षों तक आजादी की आग ठंडी पड़ी थी किन्तु देश धीरे-धीरे जाग रहा था। बंगाल में महर्षि अर¨वद घोष और उनके छोटे भाई वीरेन्द्र घोष, बिहार के मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चन्द्र का उत्सर्ग युवाओं को उद्वेलित कर रहा था। ऐसे ही विप्लवी मानसिकता के गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ने वाले युवा ठाकुर जगन्नाथ ¨सह को मुंबई से निकलने वाले साप्ताहिक अखबार जमशेद के माध्यम से पता चला कि जार्ज पंचम की दिल्ली में होने वाली ताजपोशी की खुशी में लोकमान्य तिलक, जी मांडले जेल से छोड़ दिए जाएंगे। गवर्नमेंट स्कूल में सभी विद्यार्थियों को बताया गया कि सभी लोग आठ-आठ आना पैसा जमा कर देंगे। इसके एवज में उन्हें जार्ज पंचम की ताजपोशी का तगमा दिया जाएगा और मिठाई खाने को मिलेगी। ठाकुर साहब ने अठन्नी तो जमा कर दिया किन्तु उनके दिलों दिमाग में विद्रोह की आग जल रही थी
शहर के आदित्य राम मंदिर में विद्यार्थी परिषद की बैठक हुई। इसमें पं. हृदय नारायण तिवारी, मुनीश्वर मिश्र, केदारनाथ उपाध्याय, शिवदत्त तिवारी, नंदकिशोर चौबे और पं. परशुराम चतुर्वेदी ( जो बाद में ख्यातलब्ध साहित्यकार हुए) सहित कुल 35 छात्र शामिल हुए। यहीं जार्ज पंचम की ताजपोशी का विरोध करने और महावीरी झण्डा जुलूस निकालने की योजना बनाई गई। अगले दिन सभी स्कूलों के छात्र सीने पर जार्ज पंचम की तस्वीर लगे तगमे को लगाकर पहुंचे लेकिन ठाकुर जगन्नाथ ¨सह उस तगमे को अपने जूते के फीते में बांध कर स्कूल पहुंचे थे। इससे गवर्नमेंट स्कूल में हड़कंप मच गया।

उस दिन बलिया नगर में अजीब नजारा देखने को मिल रहा था। अगस्त का ही महीना था, एक ओर जार्ज पंचम की ताजपोशी की खुशी में सरकारी स्कूलों के बच्चे छोटी- छोटी झंडियां लेकर सड़क पर निकले। इस जुलूस में जार्ज पंचम के जयकारे लग रहे थे। दूसरी ओर एक लम्बे बांस में लाल रंग के कपड़े पर बड़े-बड़े अक्षरों में वंदे मातरम तिलक महाराज की जय लिखे झण्डे के साथ वंदेमातरम, भारत माता की जय और तिलक महाराज की जय के नारे लगाते हुए। आजादी के दीवानों का जुलूस शहर में घूम रहा था। आदित्य राम मंदिर से निकला यह जुलूस चौक लोहापट्टी, गुदरीबाजार, बालेश्वरघाट गंगा पूजन कर बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर, भृग जी मंदिर से होकर जब यह जुलूस जापलिनगंज पुलिस चौकी के पास पहुंचा तो एक सिपाही ने जुलूस को रोकने का प्रयास किया। किन्तु ठाकुर साहब ने जब उसे बलिया की भाषा में समझा दिया तो वह चुपचाप चला गया। यही बलिया जिले के सिकन्दरपुर, रसड़ा, सुखपुरा, गड़वार, बिल्थरारोड, रेवती , बैरिया,आदि कस्बों गांवों में निकलने वाले महावीरी झण्डा जुलूस का पहला महावीरी झण्डा जुलूस था। इसकी परम्परा आज भी कायम है। सिकंदरपुर में सबसे पहले और बिल्थरा रोड में सबसे आखिरी में निकला जाता है यह जलूस बलिया में तीन बार माहौल बिगाड़ने का हुआ प्रयास

सन् 1968 में षडयंत्र के तहत कुछ अराजक तत्वों ने विष्णु धर्मशाला चौराहे पर पथराव शुरु कर दिया। जुलूस में शामिल भीड़ के जवाबी पथराव के बाद पुलिस ने फाय¨रग की जिसमें सिनेमा रोड निवासी केदार नोनिया मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। सन् 1990 में तब एक अवरोध पैदा हो गया था जब तत्कालीन एसडीएम राजीव कपूर ने जगदीशपुर अखाड़े का जुलूस को रोक दिया था। तब सात दिनों तक यह जुलूस सड़कों पर ही खड़ा रहा, वहीं पूजा चलती रही। सन् 2005 में फिर एक बार अराजकतत्वों ने चमन¨सह बाग चौराहे पर टाऊन हाल अखाड़े के जुलूस पर हमला करके अवरोध उत्पन्न किया था। इसके कारण तीन दिनों तक यह जुलूस सड़कों पर ही रुका रहा। --


महावीरी झंडा जुलूस में झांकियों की परम्परा 1927 ई. में शुरु हुई थीं। पहली बार मिट्टी की बनी महावीर जी की मूर्ति को बांस की बनी पालकी पर निकाला गया था। जिसे आठ लोग कंधे पर लेकर चल रहे थे। समय के साथ जुलूस में अनेकों झांकियों को शामिल किया जाने लगा। बताया कि सन् 1930 ई. में ब्रिटिश सरकार ने जंग ए आजादी की कोख से निकले इस जुलूस को बंद कराने की साजिश रची। तत्कालीन एसपी मि. हिक ने तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर मु. निजामुद्दीन के माध्यम से हिन्दू- मुसलमान को लड़ाई करने के लिए उकसाने का षडयंत्र किए किन्तु देशभक्त डिप्टी कलेक्टर मु. निजामुद्दीन ने ठाकुर जगन्नाथ ¨सह को बलिया से बाहर भेज दिया। समुदाय विशेष के कुछ लोगों ने ब्रितानी मूल के मि. हिक की साजिश में महावीरी झण्डा जुलूस के मार्ग को लेकर अदालत में मुकदमा कर दिया। इसे बलिया के ख्यातिनाम अधिवक्ता बाबू मुरली मनोहर ने नि:शुल्क लड़कर जीत दिलाई थी। यह जलूस निकलने की परंपरा को आज भी जीवित रखा गया है और हर बलिया के लोग इस जलूस में बढ़ चढ़ के हिस्सा लेते है और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करते हैं
किशन जायसवाल

 
 
  बिल्थरा रोड — 15अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर नगर में ऐसा नज़ारा देखने को मिला मानो पूरा शहर आज़ादी के जश्न में एक साथ खड़ा हो गया हो। यूनाइटेड क्लब में आयोजित यह ऐतिहासिक समारोह न केवल भव्य था, बल्कि इसमें उमड़ा जनसैलाब देशप्रेम की मिसाल बन गया। सुबह से ही क्लब प्रांगण तिरंगे झंडों, फूलों और रंग-बिरंगी  तिरंगे गुब्बारे से सजा था। जैसे ही कार्यक्रम की शुरुआत हुई, भारत माता की जय और वंदे मातरम् के नारे आसमान को चीरते हुए गूंजने लगे।
  

मुख्य अतिथि धनंजय कनौजिया, पूर्व विधायक, ने जोशीले अंदाज में कहा— “ये आज़ादी हमें यूं ही नहीं मिली, इसे पाने के लिए लाखों वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए हैं। हमें उनके सपनों का भारत बनाना है।”
अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष प्रशांत कुमार मंटू ने युवाओं से स्वदेशी अपनाने और देश के विकास में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाने का आह्वान किया।
पूर्व चेयरमैन अशोक कुमार मधुर ने शहीद जवानों की वीरता का वर्णन करते हुए ऑपरेशन सिंदूर की अद्भुत कहानियां सुनाईं, जिससे मंच पर मौजूद हर व्यक्ति की आंखें गर्व और आंसुओं से भर आईं।
विनोद कुमार पप्पू ने बलिया जिले के युवाओं की फौज में सर्वाधिक भर्ती होने पर गर्व व्यक्त किया और इसे “बलिया की वीरभूमि” का प्रमाण बताया।

समारोह की शोभा बढ़ाने में  क्लब के अध्यक्ष सन्नी जायसवाल, कोषाध्यक्ष अशफाक अहमद उर्फ़ काजू भाई,  संरक्षक दुर्गा प्रसाद मधुलाला,मोहन लाल निराला, और समाजसेवी धमेंद्र सोनी, सूबेदार भाई, अंचल वर्मा,जितेन्द्र , किशन, अमित, सोनू, बंटी, संदीप जयसवाल, मंटू मल्ल समेत कई समाजसेवियों का अहम योगदान रहा।
कार्यक्रम का संचालन सुनील कुमार टिंकू, पूर्व सभासद, ने अपने जोशीले अंदाज में किया, जिससे माहौल लगातार गूंजता रहा।

स्थानीय कलाकारों के देशभक्ति गीतों और कविताओं ने कार्यक्रम को भावनाओं के चरम पर पहुंचा दिया। बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं सभी तिरंगा लहराते हुए देशप्रेम के गीत गा रहे थे। मंच से जब “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले” की पंक्तियां गूंजीं तो पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया।

अंत में सभी अतिथियों को शॉल और प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का शुरू हुआ, लेकिन देशभक्ति की गूंज देर तक पूरे नगर में सुनाई देती रही।

हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ के आयोजन करने वाली संस्था United club बिल्थरा रोड के लिए गौरव की निशानी  रहा है
बिल्थरा रोड में धूमधाम से मनाई गई श्री बलभद्र जयंती, स्वजातीय सम्मेलन में गूंजी एकता की आवाज़
बिल्थरा रोड। शुक्रवार की शाम नगर के जायसवाल समाज ने अपने कुल देवता भगवान श्री बलभद्र की जयंती व पूजन समारोह का आयोजन हर्षोल्लास के साथ किया। शहर स्थित जायसवाल धर्मशाला में हुए इस भव्य कार्यक्रम की शुरुआत विधि-विधानपूर्वक हवन-पूजन से की गई। पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं ने आरती में भाग लिया और समाज की एकजुटता के संकल्प के साथ आयोजन को आगे बढ़ाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ समाज के अध्यक्ष रतन लाल जायसवाल और सुनील कुमार टिंकू द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इसके बाद मंच पर स्वजातीय सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें समाज के विभिन्न मुद्दों और चुनौतियों पर चर्चा की गई। इस अवसर पर कुछ ही दिनों पूर्व दिवंगत हुए समाज के सम्मानित सदस्य स्वर्गीय केदार लाला जायसवाल, काशीराम जायसवाल और दिलीप जायसवाल को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।


सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रशांत कुमार मंटू ने कहा कि “कुल गुरु का पूजन हमारी वर्षों पुरानी परंपरा है, जिसमें समाज के लोग हमेशा बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। यह आयोजन सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि हमारी एकता और पहचान का प्रतीक है।”

इस दौरान हाल ही में रसड़ा नगर पंचायत के चेयरमैन विनय जायसवाल के साथ हुई अभद्रता और हमले की घटना पर भी समाज ने कड़ा आक्रोश व्यक्त किया। जायसवाल समाज बिल्थरा रोड के लोगों ने उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का आश्वासन दिया। समाज के वरिष्ठ सदस्य विनोद कुमार पप्पू ने मंच से चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि “जायसवाल समाज पर हो रहे किसी भी प्रकार के अत्याचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हम सबकी एकजुटता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।” उन्होंने समाज के हर सदस्य से सुरक्षा और संगठन को प्राथमिकता देने की अपील की।

पूरे कार्यक्रम में उत्साह और भाईचारे का अद्भुत माहौल देखने को मिला। आयोजन में दुर्गा प्रसाद मधुलाला, राजेश जायसवाल, संदीप जायसवाल, विशाल जायसवाल, सन्नी जायसवाल, गुलाब चंद भोलू, राकेश जायसवाल, सोनू आशीष, किशन, शौर्य समेत बड़ी संख्या में जायसवाल समाज के सदस्य मौजूद रहे। अंत में सभी ने सामूहिक प्रीतिभोज का आनंद लिया और अगले वर्ष फिर से इसी जोश और उमंग के साथ आयोजन करने का संकल्प लिया।


समाजवादी पार्टी ने फैसल अलतमस को प्रदेश सचिव मनोनीत किया, ज़िले में खुशी का माहौल
बलिया, 29 जुलाई 2025
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय श्री अखिलेश यादव जी की अनुमति एवं प्रदेश अध्यक्ष माननीय श्री श्याम लाल पाल जी की संस्तुति पर बलिया जनपद के निवासी श्री फैसल अलतमस को समाजवादी युवजन सभा की राज्य कार्यकारिणी में प्रदेश सचिव के पद पर मनोनीत किया गया है।

यह जानकारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद गिरि ने एक पत्र जारी कर दी। पत्र में उल्लेख किया गया है कि फैसल अलतमस पार्टी की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाते हुए संगठन को और अधिक बल एवं गति प्रदान करेंगे।

उनके मनोनयन पर समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं में हर्ष का माहौल है और उन्हें बधाइयों का तांता लगा हुआ है।
सावन माह में बीचला पोखरा शिवाला पर रामायण पाठ के समापन पर भव्य भंडारा, शिवभक्ति में लीन रहा नगर
बिल्थरा रोड (बलिया) सावन माह की पावनता और शिवभक्ति का अद्भुत संगम शनिवार को बीचला पोखरा स्थित प्राचीन शिवाला मंदिर में देखने को मिला। यहां रामायण पाठ के समापन अवसर पर भव्य भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने सहभागिता की। धार्मिक माहौल में श्रद्धा और भक्ति की एक सुंदर झलक देखने को मिली।सुबह से ही मंदिर परिसर में भक्तों का आना शुरू हो गया था। महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर पूरे मनोयोग से रामायण पाठ में भाग लिया। पाठ के बाद शिवलिंग का विशेष श्रृंगार किया गया, जिसमें बेलपत्र, पुष्प, दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया गया। मंदिर के पुजारियों ने विधिवत मंत्रोच्चार के साथ पूजन संपन्न कराया। और शाम महादेव का भव्व सिंगार किया गया।भक्ति गीतों और हर-हर महादेव के जयघोष से मंदिर परिसर गुंजायमान हो उठा। श्रद्धा में डूबी महिलाओं ने शिव भजनों पर झूमते हुए “भोले बाबा पार करेंगे”, “बोल बम” जैसे गीत गाकर भक्तिरस की धारा बहा दी। युवा वर्ग भी सेवा और आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग लेता दिखा।
रामायण पाठ के समापन के उपरांत भंडारे में हज़ारों श्रद्धालुओं को प्रसाद रूपी भोजन कराया गया। भंडारे में सब्जी, पूड़ी, बुनिया परोसे गए। सभी ने प्रसाद ग्रहण कर आयोजन की सराहना की।
आयोजकों ने बताया कि सावन में शिवभक्तों को एक साथ पूजा, पाठ और प्रसाद का लाभ हर साल प्राप्त होगा। आयोजन को सफल बनाने में स्थानीय समाजसेवियों, युवाओं और भक्तों का विशेष सहयोग रहा।
मंदिर का वातावरण देर शाम से लेकर रात तक “बम-बम भोले” और “जय शिव शंकर” जैसे जयकारों से गूंजता रहा। श्रद्धालुओं ने इस धार्मिक आयोजन को जीवन के लिए पुण्य और आत्मिक शांति देने वाला बताया।किशन जायसवाल
स्ट्रीटबज समाचार
ई-रिक्शा से जुड़ी समस्याएं और उनके समाधान पर विशेषज्ञों एवं व्यापारीयों की राय क्या है ?
ई-रिक्शा ने पर्यावरण को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ छोटे स्तर के रोजगार का अवसर भी दिया है। हालांकि, बिल्थरा रोड यातायात व्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया है। यहां इस समस्या से जुड़ी प्रमुख पहलुओं और सुझावों को विस्तार से बताया गया है:

मुख्य समस्याएं:

1. अनियंत्रित संख्या:
ई-रिक्शा की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन इनके संचालन पर कोई ठोस नियम या सीमा निर्धारित नहीं है। सभी ई रिक्शा चालक बिना मर्जी के किसी भी रूट में घुस जाते हैं इनके नियंत्रित करने का कोई भी प्रशासन के तरफ से न कोई करवाई हुई। न ही ई रिक्शा को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम उठाया गया है। हालांकि इनके अनियंत्रित संख्या को लेकर काफी लोगों का सुझाव आया है कि सभी ई रिक्शा को रूट डायवर्जन कर इनके संख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है।
2. यातायात नियमों का उल्लंघन:
अधिकांश नगर में ई-रिक्शा चालक यातायात नियमों के बारे में जागरूक नहीं होते। वे ओवरलोडिंग, गलत दिशा में वाहन चलाने और अनधिकृत स्थानों पर पार्किंग करने जैसी गलतियां करते हैं। बिल्थरा रोड में ई रिक्शा पार्किंग का स्थान सिर्फ रेलवे स्टेशन ही है। जो अगर आपको चौकियां मोड़ पर जाना हो तो ये बाई पास रास्ता को न चुनते हुए मेन रोड से सवारी लेकर निकल लेते है जिससे जाम का सामना करना पड़ रहा है
3. प्रदूषण मुक्त, लेकिन अव्यवस्थित:
ई-रिक्शा पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन इनकी अव्यवस्थित चाल के कारण अन्य वाहनों और पैदल चलने वालों के लिए समस्या पैदा होती जा रही है मेन रोड के पटरी पर अवैध अतिक्रमण हटाने पर प्रशासन ने बुल्डोजर करवाई किया जिससे पटरी पर ई रिक्शा खड़े कर सवारी उठाने से आए दिन दुकानदार और ई रिक्शा चालक में तू तू मैं होती जा रही है।
4. सड़क सुरक्षा:
बिना किसी उचित प्रशिक्षण के, नए चालक  जिनकी उम्र अभी 18 साल के भी नहीं है। वो ई-रिक्शा चलाते हैं, जिससे सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है हाल ही में कई बार ई रिक्शा चालक के लापरवाही के वज़ह से कई लोग के जान भी गंवानी पड़ी।
5. पार्किंग की कमी:
व्यस्त बाजार, रेलवे स्टेशन और बस अड्डे जैसे स्थानों पर ई-रिक्शा के लिए अलग पार्किंग की व्यवस्था न होने से सड़कों पर अव्यवस्था फैलती जा रही है जिसको लेकर आए दिन पार्किंग को लेकर दुकानदार और ई रिक्शा चालक में कहा सुनी होती रहती हैं।

सम्भावित समाधान:

1. विशेष मार्ग और पार्किंग व्यवस्था:
ई-रिक्शा के लिए अलग लेन और पार्किंग स्पॉट बनाए जाएं। इससे यातायात सुगम होगा।
2. लाइसेंस और पंजीकरण अनिवार्य:
ई-रिक्शा चालकों के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया जाए और सभी वाहनों का उचित पंजीकरण किया जाए।
3. प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान:
चालकों को सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों का प्रशिक्षण दिया जाए। साथ ही, उन्हें नियमों के पालन के लिए जागरूक किया जाए।
4. डिजिटल मॉनिटरिंग:
ई-रिक्शा पर GPS और अन्य मॉनिटरिंग उपकरण लगाकर उनके संचालन को नियंत्रित किया जा सकता है।
5. संख्या पर नियंत्रण:
ई-रिक्शा की अधिकता को देखते हुए, प्रत्येक क्षेत्र में इनकी संख्या पर सीमा तय की जाए कई लोगों का कहना है रेलवे स्टेशन से तिनमुहानी जाने के लिए मेन रोड़ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। एवं रेलवे स्टेशन से चौकियां मोड़ जाने के लिए रेलवे स्टेशन से मालगोदाम होते हुए बाईपास जाना चाहिए एवं बस स्टेशन जाने के लिए रेलवे स्टेशन से डाकबंगला होते हुए बाईपास बस स्टेशन जाने से ई रिक्शा नियंत्रण और जाम से बचा जा सकता है।

6 निर्धारित शुल्क:
बिल्थरा रोड में अभी तक ई रिक्शा चालक को प्रशासन के तरफ से कोई रेट सूची जारी नहीं किया गया है। मनमाने तरीके से शुल्क लेने के कारण राहगीरों और चालकों में कहासुनी आम बात हो गई है कई बार तो रेलवे स्टेशन से तिनमुहानी के बीच में उतरने से 5 रुपए देने के कारण सवारी और चालकों में मारपीट की नौबत आ जाती है। चालकों का कहना है रेलवे स्टेशन से आप चौकियां मोड़ के बीच में उतरेंगे तो 10 रुपया आपको देने होंगे। हालांकि 5 रुपए ई रिक्शा चालक लेने से कतराते रहते हैं। जिसको लेकर भी कई बार ई रिक्शा चालक और सवारी में कहासुनी देखने को मिलता है ।

प्रशासन और जनता की भूमिका:
यातायात पुलिस और नगर पंचायत सहित दुकानदारों को मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए ठोस नीति बनानी चाहिए।
नागरिकों को भी जागरूक होकर ई-रिक्शा के अनुशासित संचालन में सहयोग करना चाहिए।
ई-रिक्शा शहर के लिए वरदान साबित हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए एक सुव्यवस्थित नीति और नियमों का पालन जरूरी है। प्रशासन को जनता और चालकों के बीच संतुलन बनाकर यातायात व्यवस्था को बेहतर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

संवादाता
किशन जायसवाल
वर्तमान समय में आवश्यक है कि कुलपतियों के चयन के मापदंड बदलें कल्याण सिंह शोध छात्र
“उच्च शैक्षणिक संस्थानों में कुलपति चयन के मापदंड अतीत और वर्तमान समय” समाज तब असली संकट में पड़ जाता हैं जब समाज का मार्गदर्शन एंव उसका नेतृत्व करने वाले लोगों के अंदर सामाजिकता, नैतिकता तथा चरित्र का ह्रास होने लगता है फिर वही समाज अपने मूल उद्देश्यों एंव कर्तव्यों से विमुख होकर गलत रास्ते की तरफ गतिमान हो चलता हैं यह हो भी क्यों नहीं क्योंकि समाज में अंतर्गत ही सभ्यता और साहित्य दोनों अंतर्निहित होता है । समाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तथा राजनीतिक जीवन में चरित्र की पवित्रता तथा नैतिक मूल्यों से युक्त आचरण, कार्यशैली तथा जीवन पद्धति इंसान की मापक कसौटिया होती है, जिससे समाज आपका मूल्यांकन करता है । सामान्यतः चरित्र गढ़ने, नैतिक मूल्यों का निर्माण करने तथा सदाचार का पाठ पढ़ाने की मुख्यरूप से दो पाठशालाऍ होती है । पहला परिवार तथा दूसरा शिक्षा जगत का कर्णधार शिक्षक । वर्तमान दौर के बदलते परिदृश्य में आज दोनों जगह कैसा माहौल है ? इसकी सच्चाई अपने आप खुद बयां हो रही है ? परिवार आज संस्कारविहीन मोबाईल, टीवी, सोशल मीडिया में आत्मलिप्त है ? पर अपवाद भी जरूर है ? पर मुख्यधारा में अधिकांश परिवेश वैसा ही प्रतीत हो रहा है ? शिक्षा का बाजारीकरण तथा राजनीतिकरण आज के परिवेश में आम बात हो चली है ? पर भी अपवाद है ? आमतौर पर जब आजादी के बाद देश के अंदर गरीबी का आलम था अनपढ़ लोगों की भारी तादाद भी, शिक्षा के उच्च संस्थान गिने – चुने थे, सूचना एंव प्रौद्योगिक का दौर नहीं था परंतु फिर भी परिवार तथा शिक्षा जगत में उस दौर में पढे – लिखे लोगों का सम्मान आज के दौर के लोगों से ज्यादा थी कारण ? नैतिक मूल्य तथा उच्च आदर्श एंव पवित्रता थी ? आज भी है परंतु अपवाद स्वरूप ? शिक्षा जगत का अध्यापक तथा शिक्षा प्रणाली ही समाज और उसके नागरिकों का मार्गदर्शन करती थी तथा आमतौर पर उस दौर में शिक्षाविद ही कुलपति बनते थे ? परिवार के बाद शिक्षक ही समाज तथा राष्ट्र के नागरिकों के चरित्र को गढ़ने का कार्य करते है ? वैसे ही जैसे मिट्टी का बर्तन बनाने वाला कुम्हार मिट्टी के स्वरूप को ढालकर एक सुंदर आकार का रूप देता है । आज जिस तरीके से उच्च शिक्षा में भ्रस्टाचार उजागर हो रहे है उस से यह बात स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही है तथा यह कहना कोई अतिश्योक्ति नही होगी कि संस्थानों के अंदर राजनीतिक हस्तक्षेप आज कही ज्यादा बढ़ गया है जिसके आगे विद्वता तथा योग्यता की कसौटिया बौनी प्रतीत हो रही है । यह अत्यंत ही चिंताजनक स्थिति है ? हा अपवाद स्वरूप भी हैं परंतु बहुतायत यही स्थिति है । पुरातन कालखंड में कुलपति चयन के लिए समय – समय पर विभिन्न सर्च कमेटियों तथा आयोगों का गठन करके उनकी चयन प्रक्रिया को मूर्त रूप दिया जाता रहा है । देश के अंदर राधाकृषणन आयोग (1948), कोठारी आयोग (1964-66, ज्ञानम समिति (1990 ) तथा रामलाल पारिख समिति (1993) का गठन किया गया तथा उसकी सिफ़ारिसे सरकार को प्रस्तुत की गई । दशकों पहले देश के अंदर कुलपति चयन के लिए राष्ट्रीय ज्ञान आयोग तथा यशपाल कमेटी का गठन किया गया था जिसकी अंतरिम रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आए थे कि देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में वही शिक्षाविद कुलपति बनने की अहर्ता रखते हैं नाम राष्ट्रीय रजिस्ट्री में अंकित हो ! यह राष्ट्रीय रजिस्ट्री उच्चतर शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग के पास होगी । कुलपति चयन के लिए हर खाली पदों के लिए पाँच नामों की सिफारिश होगी । सन 1964 में कोठारी आयोग का जब गठन किया गया था तब इस आयोग कि यह सिफारिस थी कि देश के अंदर जाने- माने विद्वान एंव उत्कृष्ठ शिक्षाविद ही कुलपति होंगे । आजादी के बाद देश के अंदर सामाज के प्रति गहरी समझ रखने वाले शिक्षाविद कुलपति बने ? परंतु आज कुलपति का पद एंव उसकी चयन प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप इस कदर हावी हो गया है कि चयन के बाद उसके परिणाम वित्तीय अनियमिता, नियुक्तियों में भ्रस्टाचार करने की संलिप्तता तक में नाम उजागर हो रहे है यह अत्यंत ही चिंताजनक स्थिति है । पर अपवाद जरूर है ? देश के अंदर महान शिक्षाविद सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ हरि सिंह, सर सुंदरलाल, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, महान समाजवादी संत आचार्य नरेंद्र देव जैसे तपे – तपाये संत ऋषि कुलपति हुए जिन्होंने छात्रहित एंव राष्ट्रहित को प्रथम एंव सर्वोपरि रखकर आजीवन सेवा की भांति कार्य किया जिनके योगदानों को समाज हमेशा उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करता है । आचार्य नरेंद्र देव जब सन 1952 में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति थे तब उन्होंने छात्रों के लिए रहने की समस्या पर अपना सरकारी आवास छात्रावास में तब्दील कराकर खुद किराये के मकान में रहने लगे थे तथा 150 रुपये मासिक वेतन लेते थे जिससे किसी भी तरह खुद का जीवन निर्वाह हो सके ऐसे थी हमारे देश में कुलपति परंपरा । शायद यही वजह है कि आज ऐसे विभूतियों के नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा स्वर्ण अक्षरों की तरह दैय दीप्तिमान है जिसकी आभामण्डल से पूरा शिक्षा जगत आज भी आलोकित है । परंतु आज उच्च शिक्षा जगत में जब समाचार पत्रों के माध्यम से यह खबरे सामने आती है कि उच्च शिक्षा के विभिन्न राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अमुक कुलपति तथा विश्वविद्यालय प्रशासन भर्ती प्रक्रिया में जांच एंव आरोपों के घेरे में हैं तथा आरोप सिद्ध हुए तब यह स्थिति भयावह हो जाती है तथा शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रस्टाचार की कलई खुल कर सामने उभर आती है । आज भारत के विभिन्न राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालयों के अंदर अराजकता का माहौल स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है कारण विश्वविद्यालय प्रशासन की संवाद शैली का घोर आभाव ? सर्वविद्या की राजधानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, पूरब का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला केन्द्रीय विश्वविद्यालय प्रयागराज, गोरखपुर विश्वविद्यालय, सहित अन्य विश्वविद्यालयों के अंदर जिस तरीके से घटनाए उभर कर आई है उससे यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है कि समस्याओ के उन्मूलन हेतु संवाद शैली की घोर उदासीनता है । वर्तमान दौर में सादगी एंव ईमानदारी की साक्षात प्रतिमूर्ति देश के मूर्धन्य दलहन वैज्ञानिक प्रोफेसर नरेंद्र प्रताप सिंह का नाम भी अत्यंत प्रासंगिक है जिन्होंने बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में कुलपति रहते हुए बड़े पैमाने की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से अंजाम दिया था । भारतीय ज्ञान परंपरा में गुरुकुल के प्रधान आचार्य को कुलपति कि संज्ञा से विभूषित किया गया जिसके क्रम में कालिदास ने अपने गुरु वशिष्ठ तथा कण्व ऋषि को कुलपति कि संज्ञा दी थी । विश्वविद्यालय एक कार्यशाला होती जहाँ नए विचार अंकुरित होते हैं, जड़ें जमाते हैं और ऊँचे और मज़बूत होते हैं । यह एक अनूठी जगह है, जो ज्ञान के पूरे ब्रह्मांड को समेटे हुए है । जहाँ रचनात्मक दिमाग एक साथ आते हैं, एक-दूसरे से बातचीत करते हैं और नई वास्तविकताओं के दर्शन का निर्माण करते हैं । ज्ञान की खोज में सत्य की स्थापित धारणाओं को चुनौती दी जाती है । इमर्सन ने कहा है, चरित्रवान लोग समाज की अंतरात्मा हैं। चरित्र खत्म तो मुल्क-सभ्यताएं खत्म। चरित्र ही मुल्कों का इतिहास लिखा करते हैं। जब विश्वविद्यालयों में सरस्वती के उपासक आपराधिक कामों में लीन होंगे, तो उस मुल्क का भविष्य क्या होगा? आवश्यक है कि कुलपतियों के चयन के मापदंड बदलें अब सख्त तथा बदलने चाहिए ?

लेखक: कल्याण सिंह
शोध छात्र बांदा कृषि एंव प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा / स्वतंत्र स्तंभकार
पूर्वी यूपी में शुरू हुई प्री-मानसून बारिश, तापमान में आई गिरावट, 5 दिन के भीतर और गिरेगा तापमान

15 से 20 जून के बीच प्रदेश में मानसून के सक्रिय होने की संभावना जताई जा रही है। कुछ रिपोर्ट्स 18 से 22 जून के बीच मानसून की रफ्तार तेज होने की ओर भी इशारा कर रही हैं।

प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया ,बलिया, मऊ, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती, बहराइच और लखीमपुर खीरी जैसे जिलों में गरज-चमक और तेज हवाओं के साथ प्री-मानसून बौछारें शुरू हो चुकी हैं। मौसम विभाग ने इन क्षेत्रों में 30-50 किमी/घंटा की रफ्तार से तेज हवाओं और भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है, जिससे गर्मी से थोड़ी राहत महसूस की जा रही है। हालांकि मौसम विभाग का अनुमान है कि 15 से 20 जून के बीच में बारिश होने की संभावना बनी हुई है।अभी मौसम वैज्ञानिको ने अनुमान लगाया कि इस बार बारिश ज्यादा दिन तक होगी।