बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी पर साधा निशाना, बोली- इनके पिता ने बनाया था कानून

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भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तगड़ा वार किया है। झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा नेता प्रतिक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि, 'राहुल गांधी को इस देश से कोई भी मतलब नहीं है। वे बिल्कुल भी सीरियस नेता नहीं है और नियम कानून को नहीं देखते हैं।

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कई सत्रों में राहुल की उपस्थिति जीरो- निशिकांत दुबे

भाजपा सांसद ने आरोप लगाया वह मुश्किल से दो मिनट के लिए मीडिया के सामने आते हैं। कई ऐसे सत्र हैं, जिसमें उनकी उपस्थिति जीरो है। उसके बाद उनकी अपेक्षा होती है कि वो जब खड़े हों तो उनकी बात सुनी जाए। संसद के कुछ नियम और आचार संहिता हैं। नियम 349 के अनुसार कोई सदस्य सदन में बोलने के तुरंत बाद सदन नहीं छोड़ सकता। अगर कोई सदस्य बोलना चाहता है, तो उसे सदन में बैठना चाहिए। मुझे लगता है कि उन्होंने नियम नहीं पढ़े हैं। उन्हें सीखने की जरूरत है कि सरकार कैसे काम करती है, उन्हें यह मल्लिकार्जुन खड़गे से ही सीखना चाहिए। अगर किसी और से नहीं सीखना चाहते।

अपने पिता द्वारा पारित कानून के बारे में भी नहीं पता है-निशिकांत दुबे

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि राहुल गांधी बिहार में चल रहे एसआईआर का विरोध कर रहे हैं. जबकि उन्हें ये पता होना चाहिए कि युवा वोटरों को आकर्षित करने के लिए राजीव गांधी खुद ही ये कानून लेकर आए थे. उन्होंने कहा कि एसआईआर पर राहुल गांधी का बयान दर्शाता है कि उन्हें अपने पिता द्वारा पारित कानून की भी जानकारी नहीं है. दुबे ने कहा कि इस एसआईआर का मतलब मतदाता सूची से उन वोटर्स को बाहर निकलना जो पात्र नहीं है, जिसमें बांग्लादेश के घुसपैठिए भी शामिल हैं और बांग्लादेशी घुसपैठिए से साथ मिलकर सरकार नहीं बनाई जा सकती है।

गांधी परिवार पर लगातार हमलावर हैं निशिकांत

निशिकांत दुबे लगातार गांधी परिवार पर हमलावर हैं। इससे पहले उन्होंने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर निशाना साधा था। उन्होंने दावा किया था कि इंदिरा गांधी ने इस ऑपरेशन के लिए ब्रिटिश सैनिकों का सहयोग लिया और इसके बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर को पत्र लिखकर अपनी आंतरिक समस्याएं साझा कीं।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने बुधवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पत्र शेयर किया। उन्होंने लिखा, “1984 में ब्रिटिश सैनिकों के सहयोग से ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर को यह पत्र भेजा। क्या कभी भी एक सार्वभौमिक राष्ट्र का प्रधानमंत्री दूसरे देश के साथ अपनी आंतरिक समस्या बताता है?”

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट-हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, सभी 12 आरोपियों की रिहाई का दिया था आदेश

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सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों के मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी करने के बांबे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। हालांकि उन 12 आरोपियों को अभी वापस जेल नहीं भेजा जाएगा।

बीते दिनों बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई लोकल ट्रेन में किए गए सात बम धमाकों के मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई की। 

महाराष्ट्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि हम फैसले के बाद रिहा हुए आरोपियों को सरेंडर करने का निर्देश देने का अनुरोध नहीं कर रहे। हम चाहते हैं कि फैसले पर रोक लगाई जाए। हाईकोर्ट के कुछ कमेंट MCOCA के अन्य मुकदमों को प्रभावित कर सकते हैं।

इस पर जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने कहा कि हमें सूचित किया गया है कि सभी आरोपियों को रिहा कर दिया गया है। एसजी की दलीलों को ध्यान में रखते हुए हम इस हद तक फैसले पर रोक लगाई जाती है कि फैसले को मिसाल नहीं माना जाएगा।

हाईकोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी किया था

हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को विशेष टाडा कोर्ट द्वारा दोषी साबित सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। निचली अदालत ने इनमें से पांच आरोपियों को मौत की सजा और सात को उम्रकैद की सजा दी थी। हाईकोर्ट ने सभी को बेकसूर करार देते हुए तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। अदालत ने कहा था, 'जो भी सबूत जांच एजेंसी की ओर से पेश किए गए थे, उनमें कोई ठोस तथ्य नहीं था। इसी आधार पर सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है।” 

11 मिनट में सात बम धमाके

मुंबई लोकल ट्रेन में 11 जुलाई 2006 में हुए 11 मिनट के भीतर सात बम धमाके हुए थे। मुंबई की लोकल ट्रेनों 11 जुलाई 2006 को हुए सिलसिलेवार बम धमाके में 19 साल बाद हाईकोर्ट का फैसला था। इन धमाकों में 187 लोगों की मौत हुई थी।

अनिल अंबानी से जुड़े ठिकानों पर ईडी की छापेमारी, एसबीआई के 'फ्रॉड' घोषित किए जाने के बाद कार्रवाई

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प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रिलायंस समूह के चेयरमैन अनिल अंबानी से जुड़े अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी की है। ये छापेमारी दिल्ली और मुंबई में की गई है। ईडी ने ये छापेमारी मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच को लेकर की है। सूत्रों के अनुसार ईडी 35 जगहों पर तलाशी अभियान चला रही है। यह छापेमारी भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा रिलायंस कम्युनिकेशंस और इसके प्रमोटर-निदेशक अनिल डी अंबानी को 'धोखाधड़ी' के रूप में वर्गीकृत किए जाने के कुछ ही दिनों बाद की गई है।

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सार्वजनिक धन की हेराफेरी के सबूत मिले

ईडी की कार्रवाई राष्ट्रीय आवास बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (एनएफआरए), बैंक ऑफ बड़ौदा और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से दर्ज दो एफआईआर सहित कई नियामक और वित्तीय निकायों से प्राप्त इनपुट पर आधारित है। रिपोर्ट्स के अनुसार अनिल अंबानी समूह से जुड़े वरिष्ठ व्यावसायिक अधिकारियों के यहां भी तलाशी ली जा रही है। ईडी का दावा है कि उसे सार्वजनिक धन की हेराफेरी की एक सुनियोजित योजना के सबूत मिले हैं। जांच से पता चलता है कि इस प्रक्रिया में बैंकों, शेयरधारकों, निवेशकों और सार्वजनिक संस्थानों सहित कई संस्थाओं को गुमराह किया गया या उनके साथ धोखाधड़ी की गई।

यस बैंक के साथ अवैध लेन-देन

बताया जा रहा है कि 2017 और 2019 के बीच, यस बैंक ने रिलायंस अनिल अंबानी समूह की RAAGA कंपनियों को लगभग 3,000 करोड़ रुपये का ऋण दिया। ईडी का दावा है कि उसने एक अवैध लेन-देन व्यवस्था का पता लगाया है जिसमें यस बैंक के प्रमोटरों ने कथित तौर पर लोन एक्सेप्ट करने से ठीक पहले अपनी निजी कंपनियों से पेमेंट लिया था।

एसबीआई ने हाल में घोषित किया था फ्रॉड

ये कार्रवाई तब हुई, जब कुछ ही दिन पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने अनिल अंबानी और उनकी कंपनी RCom को ‘फ्रॉड’ घोषित किया। एसबीआई ने 23 जून 2025 को RCom के लोन अकाउंट को फ्रॉड कैटेगरी में डाला और इसकी जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को 24 जून 2025 को दी।

एसबीआई का कहना है कि RCom ने बैंक से लिए गए 31,580 करोड़ रुपए के लोन का गलत इस्तेमाल किया। इसमें से करीब 13,667 करोड़ रुपए दूसरी कंपनियों के लोन चुकाने में खर्च किए। 12,692 करोड़ रुपए रिलायंस ग्रुप की दूसरी कंपनियों को ट्रांसफर किए। यह नियमों के खिलाफ था।

एसबीआई ने ये भी कहा कि वो इस मामले में सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) के पास शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया में है। इसके अलावा, अनिल अंबानी के खिलाफ पर्सनल इन्सॉल्वेंसी (दिवालियापन) की कार्रवाई भी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT), मुंबई में चल रही है।

ब्रिटेन पहुंचे पीएम मोदी, भारतीय समुदाय के लोगों ने किया भव्य स्वागत, लगे मोदी–मोदी के नारे

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को दो दिवसीय यात्रा पर यूनाइटेड किंगडम (यूके) पहुंचे। पीएम मोदी के लंदन पहुंचने पर भारतीय समुदाय ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इस पर पीएम मोदी ने ब्रिटेन में रह रहे भारतीय समुदाय के लोगों का आभार व्यक्त किया। पीएम ने भारत की प्रगति के प्रति उनके स्नेह और प्रतिबद्धता को उत्साहजनक बताया। इस यात्रा के दौरान भारत-ब्रिटेन फ्री ट्रेड डील यानी मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को औपचारिक रूप दिया जाना है।

प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा–यूके में भारतीय समुदाय द्वारा किए गए गर्मजोशी भरे स्वागत से अभिभूत हूं। भारत की प्रगति के प्रति उनका स्नेह और समर्पण वास्तव में भावुक कर देने वाला है। मोदी ने कहा कि यह यात्रा भारत और ब्रिटेन के बीच आर्थिक साझेदारी को आगे बढ़ाने में सहायक होगी। इसका मुख्य उद्देश्य समृद्धि, विकास और हमारे नागरिकों के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना है। भारत और ब्रिटेन की मजबूत दोस्ती वैश्विक प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है।

किंग चार्ल्स तृतीय से भी होगी मुलाकात

बता दें कि पीएम मोदी बुधवार को ब्रिटेन और मालदीव की 4 दिवसीय यात्रा पर रवाना हुए थे। पीएम मोदी 23 से 24 जुलाई तक यूके यानी यूनाइटेड किंगडम के दौरे पर रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी अपने ब्रिटिश समकक्ष कीर स्टार्मर के साथ व्यापार, रक्षा, जलवायु, इनोवेशंस और शिक्षा जैसे विषयों पर विस्‍तार से चर्चा करेंगे। इस दौरान वह किंग चार्ल्स तृतीय से भी मुलाकात करेंगे।

ब्रिटेन के बाद मालदीव जाएंगे मोदी

ब्रिटेन का दौरा खत्म कर पीएम मोदी मालदीव रवाना होंगे। वे 25 से 26 जुलाई तक मालदीव की राजकीय यात्रा पर रहेंगे। मोदी मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के निमंत्रण पर द्वीप देश की यात्रा करेंगे। इसे मुइज्जू के शासनकाल में दोनों देशों के बीच संबंधों में ठहराव आने के बाद एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। वह मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ के समारोह में शामिल होंगे।

5 साल बाद चीन के नागरिकों को वीजा देने जा रही मोदी सरकार, गलवान संघर्ष के बाद से बंद थी सर्विस

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भारत और चीन के रिश्ते के बीच जमी बर्फ पिघलने लगी है। दोनों देशों में कम होते तनाव के बीच भारत सरकार अब चीनी नागरिकों को फिर से वीजा देने जा रही है। भारत सरकार ने पांच साल के लंबे अंतराल के बाद चीनी नागरिकों को पर्यटक वीजा जारी करने की घोषणा की है। यह प्रक्रिया 24 जुलाई 2025 से फिर से शुरू की जाएगी। बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने बुधवार को इस फैसले की जानकारी दी।

चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने चीन स्थित भारतीय दूतावास की तरफ से वीबो प्लेटफॉर्म पर शेयर की गई पोस्ट को शेयर किया है। भारतीय दूतावास की तरफ से जारी पोस्ट में कहा गया है कि 24 जुलाई 2025 से, चीनी नागरिक भारत आने के लिए पर्यटक वीजा के लिए आवेदन कर सकते हैं। उन्हें पहले वेब लिंक पर ऑनलाइन वीजा आवेदन पत्र भरना होगा और उसका प्रिंट आउट लेना होगा, और फिर वेब लिंक पर अपॉइंटमेंट लेना होगा। इसके बाद, उन्हें भारतीय वीजा आवेदन केंद्र में आवेदन जमा करने के लिए पासपोर्ट, वीजा आवेदन पत्र और अन्य संबंधित दस्तावेज साथ ले जाने होंगे।

कोरोनाकाल में भारत ने वीजा देना बंद किया था

बता दें कि भारत ने 2020 में कोविड-19 महामारी के चलते सभी पर्यटक वीजा को निलंबित कर दिया था। इसके बाद भारत-चीन के बीच जून 2020 में गलवान विवाद हुआ था। इससे दोनों देशों के संबंध खराब हो गए थे।

अप्रैल 2022 में अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (IATA) ने कहा था कि चीनी नागरिकों के सभी पर्यटक वीजा अब वैलिड नहीं हैं। दरअसल, चीन ने तब 22,000 भारतीय छात्रों के फिर से चीन जाने की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद भारत ने 'जैसे को तैसा' की तरह जवाब देते हुए चीनी नागरिकों का टूरिस्ट वीजा अमान्य कर दिया था।

भारत-चीन के बीच रिश्तों में हो रहा सुधार

पिछले कुछ महीनों से भारत और चीन के बीच रिश्तों में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिला है। पूर्वी लद्दाख के डेपसांग और डेमचोक इलाकों से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटी हैं। पिछले चार सालों से ये तनाव लगातार बना हुआ था और कभी भी जंग छिड़ने का खतरा था। सैनिकों की वापसी, दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया था। इसके अलावा, जनवरी 2025 में भारत और चीन के बीच विमानों की उड़ाने भी शुरू हो गईं। यह फैसला भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री की चीन यात्रा के बाद सामने आया, जहां दोनों पक्षों ने कूटनीतिक स्तर पर कई सकारात्मक बातचीत की थी। इसी यात्रा के दौरान यह भी तय हुआ था कि भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा को भी इस साल से फिर से शुरू किया जाएगा। इसके अलावा हाल ही में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भी चीन का दौरा किया, जहां वे शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुए थे।

दाल में कुछ तो काला है...जानें राहुल गांधी ने ऐसा क्यों कहा?*

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ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के बार-बार दावे को लेकर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि ट्रंप ने 25वीं बार यह बयान दिया। पीएम मोदी इस पर मौन हैं। इससे लगता है दाल में कुछ काला है। 

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संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है। सदन में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा के सवाल पर नेता प्रतिपक्ष ने कहा, 'सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा का वादा किया है। पीएम के लौटने पर चर्चा होगी। लेकिन पीएम का जवाब चल रहा है। एक ओर कहा जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर चल रहा है, हमारी जीत हो गई। वहीं दूसरी ओर ट्रंप लगातार दावा कर रहे हैं कि हमने ऑपरेशन सिंदूर को बंद करवा दिया है। भैया दाल में कुछ तो काला है न। 

ट्रंप ने फिर किया सीजफायर कराने का दावा

राहुल गांधी का यह बयान मंगलवार सुबह ट्रंप के नए दावे के बाद आया है, जिसमें उन्होंने फिर से कहा कि मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोक दिया है। ट्रंप ने व्हाइट हाउस में मंगलवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा, हमने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाया। वे शायद परमाणु जंग में उलझने वाले थे। ट्रंप ने कहा, उस समय दोनों देशों के बीच संघर्ष गंभीर हो गया था, 5 फाइटर जेट्स गिराए जा चुके थे। किसी भी वक्त परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हो सकता था। मैंने उन्हें फोन किया और व्यापार रोकने की धमकी दी।

बार-बार सीजफायर कराने का दावा कर रहे ट्रंप

बता दें कि 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद भारत ने 7 मई को पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिंदूर लॉन्च किया था। भारत ने पाकिस्तान प्रशासित आजाद कश्मीर और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में नौ जगहों पर मिसाइल और हवाई हमले शुरू किए थे। दोनों देशों के बीच 3 दिनों तक संघर्ष चला। 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हुआ था। तब पहली बार ट्रंप ने सीजफायर कराने का दावा किया था। 

कांग्रेस ने सरकार को घेरा

इससे पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा कि एक ओर मोदी सरकार संसद में पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के मुद्दे पर बहस की निश्चित तारीखें देने से इनकार कर रही है और प्रधानमंत्री के जवाब देने को लेकर भी कोई आश्वासन नहीं दे रही है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति ट्रंप इस मुद्दे पर अपने दावों के साथ सिल्वर जुबली तक पहुंच चुके हैं। पिछले 73 दिनों में राष्ट्रपति ट्रंप इस विषय पर 25 बार ढिंढोरा पीट चुके हैं, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री अब तक पूरी तरह मौन हैं। उन्हें केवल विदेश यात्राओं और देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को अस्थिर करने के लिए ही समय मिल रहा है।

जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका सुनने को सुप्रीम कोर्ट बनाएगा स्पेशल बेंच, CJI गवई ने खुद को किया मामले से अलग

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कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े मामले पर सुनवाई से मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने खुद को अलग कर लिया। जस्टिस वर्मा ने 'कैश-एट-रेजिडेंस' (घर से बड़ी मात्रा में नोट बरामद होने) मामले में सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि इन-हाउस जांच कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती देने संबंधी याचिका की सुनवाई के लिए वह अलग से एक पीठ गठित कर देंगे। सीजेआई ने कहा कि नैतिक तौर पर यह सही नहीं है कि मामले की सुनवाई मेरे समक्ष हो।

दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि उनकी याचिका पर जल्द से जल्द सुनवाई हो। यह याचिका एक इन-हाउस जांच कमेटी की उस रिपोर्ट को रद करने के लिए दायर की गई है, जिसमें उन्हें नकदी कांड में गलत आचरण का दोषी ठहराया गया है। जस्टिस वर्मा ने इस मामले को गंभीर बताते हुए इसे तुरंत सुनने की अपील की है।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में यह मामला उठाया। उन्होंने चीफ जस्टिस बी आर गवई से अनुरोध किया कि इस याचिका को जल्द से जल्द सूचीबद्ध किया जाए, क्योंकि इसमें कुछ अहम संवैधानिक सवाल उठाए गए हैं।चीफ जस्टिस गवई ने कहा, "मुझे एक बेंच गठित करनी होगी।"

बता दें कि, कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी, सिद्धार्थ लूथरा और सिद्धार्थ अग्रवाल जैसे सीनियर वकील सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा की तरफ से पैरवी कर रहे थे। उन्होंने कोर्ट से कहा कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना पैनल ने प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल लिए। इसके साथ ही पैनल पर पूर्वाग्रह के साथ काम करने और बिना पर्याप्त सबूतों के उन पर आरोप लगाने का आरोप लगाया गया।

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान बने झारखंड हाइकोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल संतोष गंगवार ने दिलाई शपथ

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जस्टिस तरलोक सिंह चौहान झारखंड हाइकोर्ट के नये मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। झारखंड हाईकोर्ट के 17वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने राजभवन में शपथ ली। राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल हुए। इसके अलावा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और न्यायिक अधिकारीगण उपस्थित रहे।

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शपथ ग्रहण के बाद कार्यभार संभाला

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान झारखंड हाईकोर्ट के 17वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। राजभवन स्थित बिरसा मंडप में आयोजित शपथग्रहण कार्यक्रम के बाद वे सीधे हाईकोर्ट के लिए रवाना हुए और मुख्य न्यायाधीश के रुप में कार्यभार संभाला। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान को झारखंड के चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्रन के त्रिपुरा हाईकोर्ट में तबादले के बाद चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया है।

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान के बारे में

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने शिमला से स्कूली शिक्षा प्राप्त की है। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई की है। उन्होंने 1989 में हिमाचल प्रदेश बार काउंसिल में एडवोकेट के तौर पर दाखिला लिया था। वर्ष 2014 में उन्हें हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज के तौर पर पदोन्नत किया गया था। उसी साल उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। अब इन्हें झारखंड के नए चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त किया गया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने 14 जुलाई को उनकी नियुक्ति का आदेश जारी किया था।

आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को चुकानी होगी कीमत, UN में भारत ने फिर पाक को सबक सिखाया

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भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में पाकिस्तान को जमकर फटकार लगाई है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने पाकिस्तानी को आड़े हाथों लिया। उन्होंने एक डिबेट के दौरान पड़ोसी देश को आतंकवाद के मुद्दे पर आइना दिखाते हुए कहा कि कश्मीर राग अलापना और सिंधु जल संधि के मुद्दे को उठाना पाकिस्तान की आदतों में शुमार हो चुका है। पाकिस्तान के दुस्साहस का कड़ा विरोध करते हुए पी हरीश ने कहा, आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय शांति के मुद्दों पर पाकिस्तान का दोहरा चरित्र निंदनीय है।

आतंक पर पाकिस्तान की नीति दुनिया से छुपी नहीं

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार की तरफ से की गई टिप्पणियों का जवाब दिया। डार ने भारत पर आक्रामक रवैया अपनाने और कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन जैसे आरोप लगाए। इसका जवाब देते हुए हरीश ने कहा कि पाकिस्तानको अपना ट्रैक रिकॉर्ड देखना चाहिए। आतंक को लेकर पाकिस्तान की जो नीति रही है, वह दुनिया में किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में पाकिस्तान की ओर से इस पर ज्यादा बात करना ही अजीब है।

पाकिस्तान की घोर बेइज्जती

वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को बेइज्जत करते हुए पर्वथानेनी हरीश ने कहा कि, मैं भी पाकिस्तान के प्रतिनिधि की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य हूं। एक ओर भारत है जो एक परिपक्व लोकतंत्र, एक उभरती अर्थव्यवस्था और एक बहुलवादी व समावेशी समाज है। दूसरी ओर पाकिस्तान है, जो कट्टरता और आतंकवाद में डूबा हुआ है और आईएमएफ से लगातार कर्ज ले रहा है। हम जब अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने पर चर्चा कर रहे हैं तो यह समझना जरूरी है कि कुछ बुनियादी सिद्धांतों को सार्वभौमिक रूप से सम्मान किया जाना चाहिए। इनमें एक बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता का है। परिषद के सदस्य (पाकिस्तान) के लिए यह उचित नहीं है कि वह ऐसे कार्यों में खुद लिप्त होकर उपदेश दे, जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अस्वीकार्य हैं।

गंभीर कीमत चुकाने की चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इस उच्च स्तरीय खुली बहस में पी हरीश ने लगभग पांच मिनट के अपने वक्तव्य में भारीय कूटनीति को स्पष्ट करते हुए पाकिस्तान को आइना दिखाया। हरीश ने कहा पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए कहा कि आतंक को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देकर अच्छे पड़ोसी और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की भावना का उल्लंघन करने वाले देशों को इसकी गंभीर कीमत चुकानी होगी।

राष्ट्रपति के 14 सवालों पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में सभी राज्यपालों को विधानसभा से पारित विधेयक को मंजूरी देने की समयसीमा तय कर दी थी। इस पर ही राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछे थे। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए संदर्भ पर केंद्र सरकार और देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब मांगा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी, जिसमें समय-सीमा तय करने पर विचार होगा। 

विधानसभा से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल कब तक फैसला लेंगे? क्या इस पर कोई समयसीमा तय की जा सकती है? मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में इस संवैधानिक सवाल पर सुनवाई हुई। अदालत ने साफ किया कि यह केवल एक राज्य का नहीं बल्कि पूरे देश के लिए मुद्दा है। इसलिए केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर 29 जुलाई तक विस्तृत जवाब मांगा गया है।

अगस्त के मध्य से शुरू होगी सुनवाई

इस मामले पर सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ गठित की गई है। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए. एस. चंदुरकर हैं। पीठ ने साफ किया कि अगस्त मध्य से इस मुद्दे पर नियमित सुनवाई शुरू हो सकती है।

राष्ट्रपति ने क्या कहा?

जिसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे। संविधान का अनुच्छेद 143(1) राष्ट्रपति के सुप्रीम कोर्ट से विचार-विमर्श करने से संबंधित है। इसमें कहा गया है, 'यदि किसी भी समय राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि किसी कानून या तथ्य का लेकर कोई सवाल उठ रहा है, या उठ सकता है, जो सार्वजनिक महत्व का हो तो उस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जा सकती है। राष्ट्रपति उस सवाल को सर्वोच्च न्यायालय के पास भेज सकता हैं और न्यायालय, सुनवाई के बाद राष्ट्रपति को उस सवाल पर अपनी राय से अवगत करा सकता है।'

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल

1. राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं?

2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?

3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है?

4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है?

5. क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है?

6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है?

7. क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?

8. अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए?

9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं। 

10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है?

11. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?

12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है? 

13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो?

14. क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?

क्या है मामला?

इस पूरे मामले की शुरुआत 8 अप्रैल को तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए एक फैसला दिया था। इस फैसले में राष्ट्रपति के लिए एक समय सीमा तय की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए रखे गए विधेयकों को राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी। जस्टिस जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था।