ई-रिक्शा से जुड़ी समस्याएं और उनके समाधान पर विशेषज्ञों एवं व्यापारीयों की राय क्या है ?
ई-रिक्शा ने पर्यावरण को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ छोटे स्तर के रोजगार का अवसर भी दिया है। हालांकि, बिल्थरा रोड यातायात व्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया है। यहां इस समस्या से जुड़ी प्रमुख पहलुओं और सुझावों को विस्तार से बताया गया है:

मुख्य समस्याएं:

1. अनियंत्रित संख्या:
ई-रिक्शा की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन इनके संचालन पर कोई ठोस नियम या सीमा निर्धारित नहीं है। सभी ई रिक्शा चालक बिना मर्जी के किसी भी रूट में घुस जाते हैं इनके नियंत्रित करने का कोई भी प्रशासन के तरफ से न कोई करवाई हुई। न ही ई रिक्शा को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम उठाया गया है। हालांकि इनके अनियंत्रित संख्या को लेकर काफी लोगों का सुझाव आया है कि सभी ई रिक्शा को रूट डायवर्जन कर इनके संख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है।
2. यातायात नियमों का उल्लंघन:
अधिकांश नगर में ई-रिक्शा चालक यातायात नियमों के बारे में जागरूक नहीं होते। वे ओवरलोडिंग, गलत दिशा में वाहन चलाने और अनधिकृत स्थानों पर पार्किंग करने जैसी गलतियां करते हैं। बिल्थरा रोड में ई रिक्शा पार्किंग का स्थान सिर्फ रेलवे स्टेशन ही है। जो अगर आपको चौकियां मोड़ पर जाना हो तो ये बाई पास रास्ता को न चुनते हुए मेन रोड से सवारी लेकर निकल लेते है जिससे जाम का सामना करना पड़ रहा है
3. प्रदूषण मुक्त, लेकिन अव्यवस्थित:
ई-रिक्शा पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन इनकी अव्यवस्थित चाल के कारण अन्य वाहनों और पैदल चलने वालों के लिए समस्या पैदा होती जा रही है मेन रोड के पटरी पर अवैध अतिक्रमण हटाने पर प्रशासन ने बुल्डोजर करवाई किया जिससे पटरी पर ई रिक्शा खड़े कर सवारी उठाने से आए दिन दुकानदार और ई रिक्शा चालक में तू तू मैं होती जा रही है।
4. सड़क सुरक्षा:
बिना किसी उचित प्रशिक्षण के, नए चालक  जिनकी उम्र अभी 18 साल के भी नहीं है। वो ई-रिक्शा चलाते हैं, जिससे सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है हाल ही में कई बार ई रिक्शा चालक के लापरवाही के वज़ह से कई लोग के जान भी गंवानी पड़ी।
5. पार्किंग की कमी:
व्यस्त बाजार, रेलवे स्टेशन और बस अड्डे जैसे स्थानों पर ई-रिक्शा के लिए अलग पार्किंग की व्यवस्था न होने से सड़कों पर अव्यवस्था फैलती जा रही है जिसको लेकर आए दिन पार्किंग को लेकर दुकानदार और ई रिक्शा चालक में कहा सुनी होती रहती हैं।

सम्भावित समाधान:

1. विशेष मार्ग और पार्किंग व्यवस्था:
ई-रिक्शा के लिए अलग लेन और पार्किंग स्पॉट बनाए जाएं। इससे यातायात सुगम होगा।
2. लाइसेंस और पंजीकरण अनिवार्य:
ई-रिक्शा चालकों के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया जाए और सभी वाहनों का उचित पंजीकरण किया जाए।
3. प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान:
चालकों को सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों का प्रशिक्षण दिया जाए। साथ ही, उन्हें नियमों के पालन के लिए जागरूक किया जाए।
4. डिजिटल मॉनिटरिंग:
ई-रिक्शा पर GPS और अन्य मॉनिटरिंग उपकरण लगाकर उनके संचालन को नियंत्रित किया जा सकता है।
5. संख्या पर नियंत्रण:
ई-रिक्शा की अधिकता को देखते हुए, प्रत्येक क्षेत्र में इनकी संख्या पर सीमा तय की जाए कई लोगों का कहना है रेलवे स्टेशन से तिनमुहानी जाने के लिए मेन रोड़ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। एवं रेलवे स्टेशन से चौकियां मोड़ जाने के लिए रेलवे स्टेशन से मालगोदाम होते हुए बाईपास जाना चाहिए एवं बस स्टेशन जाने के लिए रेलवे स्टेशन से डाकबंगला होते हुए बाईपास बस स्टेशन जाने से ई रिक्शा नियंत्रण और जाम से बचा जा सकता है।

6 निर्धारित शुल्क:
बिल्थरा रोड में अभी तक ई रिक्शा चालक को प्रशासन के तरफ से कोई रेट सूची जारी नहीं किया गया है। मनमाने तरीके से शुल्क लेने के कारण राहगीरों और चालकों में कहासुनी आम बात हो गई है कई बार तो रेलवे स्टेशन से तिनमुहानी के बीच में उतरने से 5 रुपए देने के कारण सवारी और चालकों में मारपीट की नौबत आ जाती है। चालकों का कहना है रेलवे स्टेशन से आप चौकियां मोड़ के बीच में उतरेंगे तो 10 रुपया आपको देने होंगे। हालांकि 5 रुपए ई रिक्शा चालक लेने से कतराते रहते हैं। जिसको लेकर भी कई बार ई रिक्शा चालक और सवारी में कहासुनी देखने को मिलता है ।

प्रशासन और जनता की भूमिका:
यातायात पुलिस और नगर पंचायत सहित दुकानदारों को मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए ठोस नीति बनानी चाहिए।
नागरिकों को भी जागरूक होकर ई-रिक्शा के अनुशासित संचालन में सहयोग करना चाहिए।
ई-रिक्शा शहर के लिए वरदान साबित हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए एक सुव्यवस्थित नीति और नियमों का पालन जरूरी है। प्रशासन को जनता और चालकों के बीच संतुलन बनाकर यातायात व्यवस्था को बेहतर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

संवादाता
किशन जायसवाल
वर्तमान समय में आवश्यक है कि कुलपतियों के चयन के मापदंड बदलें कल्याण सिंह शोध छात्र
“उच्च शैक्षणिक संस्थानों में कुलपति चयन के मापदंड अतीत और वर्तमान समय” समाज तब असली संकट में पड़ जाता हैं जब समाज का मार्गदर्शन एंव उसका नेतृत्व करने वाले लोगों के अंदर सामाजिकता, नैतिकता तथा चरित्र का ह्रास होने लगता है फिर वही समाज अपने मूल उद्देश्यों एंव कर्तव्यों से विमुख होकर गलत रास्ते की तरफ गतिमान हो चलता हैं यह हो भी क्यों नहीं क्योंकि समाज में अंतर्गत ही सभ्यता और साहित्य दोनों अंतर्निहित होता है । समाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तथा राजनीतिक जीवन में चरित्र की पवित्रता तथा नैतिक मूल्यों से युक्त आचरण, कार्यशैली तथा जीवन पद्धति इंसान की मापक कसौटिया होती है, जिससे समाज आपका मूल्यांकन करता है । सामान्यतः चरित्र गढ़ने, नैतिक मूल्यों का निर्माण करने तथा सदाचार का पाठ पढ़ाने की मुख्यरूप से दो पाठशालाऍ होती है । पहला परिवार तथा दूसरा शिक्षा जगत का कर्णधार शिक्षक । वर्तमान दौर के बदलते परिदृश्य में आज दोनों जगह कैसा माहौल है ? इसकी सच्चाई अपने आप खुद बयां हो रही है ? परिवार आज संस्कारविहीन मोबाईल, टीवी, सोशल मीडिया में आत्मलिप्त है ? पर अपवाद भी जरूर है ? पर मुख्यधारा में अधिकांश परिवेश वैसा ही प्रतीत हो रहा है ? शिक्षा का बाजारीकरण तथा राजनीतिकरण आज के परिवेश में आम बात हो चली है ? पर भी अपवाद है ? आमतौर पर जब आजादी के बाद देश के अंदर गरीबी का आलम था अनपढ़ लोगों की भारी तादाद भी, शिक्षा के उच्च संस्थान गिने – चुने थे, सूचना एंव प्रौद्योगिक का दौर नहीं था परंतु फिर भी परिवार तथा शिक्षा जगत में उस दौर में पढे – लिखे लोगों का सम्मान आज के दौर के लोगों से ज्यादा थी कारण ? नैतिक मूल्य तथा उच्च आदर्श एंव पवित्रता थी ? आज भी है परंतु अपवाद स्वरूप ? शिक्षा जगत का अध्यापक तथा शिक्षा प्रणाली ही समाज और उसके नागरिकों का मार्गदर्शन करती थी तथा आमतौर पर उस दौर में शिक्षाविद ही कुलपति बनते थे ? परिवार के बाद शिक्षक ही समाज तथा राष्ट्र के नागरिकों के चरित्र को गढ़ने का कार्य करते है ? वैसे ही जैसे मिट्टी का बर्तन बनाने वाला कुम्हार मिट्टी के स्वरूप को ढालकर एक सुंदर आकार का रूप देता है । आज जिस तरीके से उच्च शिक्षा में भ्रस्टाचार उजागर हो रहे है उस से यह बात स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही है तथा यह कहना कोई अतिश्योक्ति नही होगी कि संस्थानों के अंदर राजनीतिक हस्तक्षेप आज कही ज्यादा बढ़ गया है जिसके आगे विद्वता तथा योग्यता की कसौटिया बौनी प्रतीत हो रही है । यह अत्यंत ही चिंताजनक स्थिति है ? हा अपवाद स्वरूप भी हैं परंतु बहुतायत यही स्थिति है । पुरातन कालखंड में कुलपति चयन के लिए समय – समय पर विभिन्न सर्च कमेटियों तथा आयोगों का गठन करके उनकी चयन प्रक्रिया को मूर्त रूप दिया जाता रहा है । देश के अंदर राधाकृषणन आयोग (1948), कोठारी आयोग (1964-66, ज्ञानम समिति (1990 ) तथा रामलाल पारिख समिति (1993) का गठन किया गया तथा उसकी सिफ़ारिसे सरकार को प्रस्तुत की गई । दशकों पहले देश के अंदर कुलपति चयन के लिए राष्ट्रीय ज्ञान आयोग तथा यशपाल कमेटी का गठन किया गया था जिसकी अंतरिम रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आए थे कि देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में वही शिक्षाविद कुलपति बनने की अहर्ता रखते हैं नाम राष्ट्रीय रजिस्ट्री में अंकित हो ! यह राष्ट्रीय रजिस्ट्री उच्चतर शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग के पास होगी । कुलपति चयन के लिए हर खाली पदों के लिए पाँच नामों की सिफारिश होगी । सन 1964 में कोठारी आयोग का जब गठन किया गया था तब इस आयोग कि यह सिफारिस थी कि देश के अंदर जाने- माने विद्वान एंव उत्कृष्ठ शिक्षाविद ही कुलपति होंगे । आजादी के बाद देश के अंदर सामाज के प्रति गहरी समझ रखने वाले शिक्षाविद कुलपति बने ? परंतु आज कुलपति का पद एंव उसकी चयन प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप इस कदर हावी हो गया है कि चयन के बाद उसके परिणाम वित्तीय अनियमिता, नियुक्तियों में भ्रस्टाचार करने की संलिप्तता तक में नाम उजागर हो रहे है यह अत्यंत ही चिंताजनक स्थिति है । पर अपवाद जरूर है ? देश के अंदर महान शिक्षाविद सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ हरि सिंह, सर सुंदरलाल, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, महान समाजवादी संत आचार्य नरेंद्र देव जैसे तपे – तपाये संत ऋषि कुलपति हुए जिन्होंने छात्रहित एंव राष्ट्रहित को प्रथम एंव सर्वोपरि रखकर आजीवन सेवा की भांति कार्य किया जिनके योगदानों को समाज हमेशा उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करता है । आचार्य नरेंद्र देव जब सन 1952 में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति थे तब उन्होंने छात्रों के लिए रहने की समस्या पर अपना सरकारी आवास छात्रावास में तब्दील कराकर खुद किराये के मकान में रहने लगे थे तथा 150 रुपये मासिक वेतन लेते थे जिससे किसी भी तरह खुद का जीवन निर्वाह हो सके ऐसे थी हमारे देश में कुलपति परंपरा । शायद यही वजह है कि आज ऐसे विभूतियों के नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा स्वर्ण अक्षरों की तरह दैय दीप्तिमान है जिसकी आभामण्डल से पूरा शिक्षा जगत आज भी आलोकित है । परंतु आज उच्च शिक्षा जगत में जब समाचार पत्रों के माध्यम से यह खबरे सामने आती है कि उच्च शिक्षा के विभिन्न राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अमुक कुलपति तथा विश्वविद्यालय प्रशासन भर्ती प्रक्रिया में जांच एंव आरोपों के घेरे में हैं तथा आरोप सिद्ध हुए तब यह स्थिति भयावह हो जाती है तथा शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रस्टाचार की कलई खुल कर सामने उभर आती है । आज भारत के विभिन्न राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालयों के अंदर अराजकता का माहौल स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है कारण विश्वविद्यालय प्रशासन की संवाद शैली का घोर आभाव ? सर्वविद्या की राजधानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, पूरब का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला केन्द्रीय विश्वविद्यालय प्रयागराज, गोरखपुर विश्वविद्यालय, सहित अन्य विश्वविद्यालयों के अंदर जिस तरीके से घटनाए उभर कर आई है उससे यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है कि समस्याओ के उन्मूलन हेतु संवाद शैली की घोर उदासीनता है । वर्तमान दौर में सादगी एंव ईमानदारी की साक्षात प्रतिमूर्ति देश के मूर्धन्य दलहन वैज्ञानिक प्रोफेसर नरेंद्र प्रताप सिंह का नाम भी अत्यंत प्रासंगिक है जिन्होंने बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में कुलपति रहते हुए बड़े पैमाने की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से अंजाम दिया था । भारतीय ज्ञान परंपरा में गुरुकुल के प्रधान आचार्य को कुलपति कि संज्ञा से विभूषित किया गया जिसके क्रम में कालिदास ने अपने गुरु वशिष्ठ तथा कण्व ऋषि को कुलपति कि संज्ञा दी थी । विश्वविद्यालय एक कार्यशाला होती जहाँ नए विचार अंकुरित होते हैं, जड़ें जमाते हैं और ऊँचे और मज़बूत होते हैं । यह एक अनूठी जगह है, जो ज्ञान के पूरे ब्रह्मांड को समेटे हुए है । जहाँ रचनात्मक दिमाग एक साथ आते हैं, एक-दूसरे से बातचीत करते हैं और नई वास्तविकताओं के दर्शन का निर्माण करते हैं । ज्ञान की खोज में सत्य की स्थापित धारणाओं को चुनौती दी जाती है । इमर्सन ने कहा है, चरित्रवान लोग समाज की अंतरात्मा हैं। चरित्र खत्म तो मुल्क-सभ्यताएं खत्म। चरित्र ही मुल्कों का इतिहास लिखा करते हैं। जब विश्वविद्यालयों में सरस्वती के उपासक आपराधिक कामों में लीन होंगे, तो उस मुल्क का भविष्य क्या होगा? आवश्यक है कि कुलपतियों के चयन के मापदंड बदलें अब सख्त तथा बदलने चाहिए ?

लेखक: कल्याण सिंह
शोध छात्र बांदा कृषि एंव प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा / स्वतंत्र स्तंभकार
पूर्वी यूपी में शुरू हुई प्री-मानसून बारिश, तापमान में आई गिरावट, 5 दिन के भीतर और गिरेगा तापमान

15 से 20 जून के बीच प्रदेश में मानसून के सक्रिय होने की संभावना जताई जा रही है। कुछ रिपोर्ट्स 18 से 22 जून के बीच मानसून की रफ्तार तेज होने की ओर भी इशारा कर रही हैं।

प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया ,बलिया, मऊ, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती, बहराइच और लखीमपुर खीरी जैसे जिलों में गरज-चमक और तेज हवाओं के साथ प्री-मानसून बौछारें शुरू हो चुकी हैं। मौसम विभाग ने इन क्षेत्रों में 30-50 किमी/घंटा की रफ्तार से तेज हवाओं और भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है, जिससे गर्मी से थोड़ी राहत महसूस की जा रही है। हालांकि मौसम विभाग का अनुमान है कि 15 से 20 जून के बीच में बारिश होने की संभावना बनी हुई है।अभी मौसम वैज्ञानिको ने अनुमान लगाया कि इस बार बारिश ज्यादा दिन तक होगी।

बिल्थरा रोड के यूनाइटेड क्लब में हुआ बड़े मंगलवार पर भव्व भंडारा, हजारों लोग ने किया प्रसाद ग्रहण
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बिल्थरा रोड में भयंकर गर्मी से लोगों का हाल बेहाल, कब मिलेगी राहत? IMD ने बताया अगले 4 दिन कैसा रहेगा मौसम
देश भर में इन दिनों भयंकर गर्मी का प्रकोप जारी है। उत्तर भारत तो मानो बहुत जल रहा है, दिल्ली के तापमान की अगर बात करें तो राष्ट्रीय राजधानी में कल तापमान 40 डिग्री के भी पार चला गया।राष्ट्रीय राजधानी के अधिकतर हिस्सों में पारा 43 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया। जबकि मंगलवार को दिन के 12 बजे बलिया जिले के बिल्थरा रोड में 42 डिग्री तक पारा चढ़ गया जिससे रोड पर सन्नाटा नज़र आ गए। लोग और दुकानदार भी सूर्य के तपती ज्वाला से छुपे हुए नजर आ रहे है वहीं अन्य जिलों की बात करें तो वाराणसी, देवरिया, बलिया, गाज़ीपुर और मऊ में मंगलवार को भी गर्मी का कहर जारी रहा। तेज धूप और उमस ने जनजीवन को बेहाल कर दिया है। तापमान लगातार 42 से 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है, जिससे लू जैसे हालात बन गए हैं।

मौसम विभाग के अनुसार:

वाराणसी में अधिकतम तापमान 43 डिग्री और न्यूनतम 30 डिग्री रिकॉर्ड किया गया।

मऊ में सबसे अधिक गर्मी रही, जहां पारा 44 डिग्री के पार पहुंचा।

देवरिया और गाज़ीपुर में भी तापमान 42-43 डिग्री के बीच रहा।

बलिया में अधिकतम तापमान 42 डिग्री दर्ज किया गया।

वायु गुणवत्ता भी बेहद खराब स्तर पर है, जिससे बुजुर्गों और बच्चों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

सावधानी जरूरी:
स्वास्थ्य विभाग ने लू से बचने की सलाह दी है। जरूरी न हो तो दोपहर में घर से बाहर न निकलें। पानी ज्यादा पिएं और सिर ढक कर ही बाहर जाएं।

बारिश की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं है, जिससे राहत जल्द मिलती नहीं दिख रही। किसान भी मानसून का इंतजार कर रहे हैं

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, दिल्ली के सफदरजंग वेधशाला में तापमान 43.3°C, पालम में 44.3°C, लोदी रोड में 43.3°C, रिज में 44.9°C और आयानगर में 45.3°C दर्ज किया गया।
भागलपुर पुल से युवक ने लगाई नदी में छलांग मरने से पहले बनाया वीडियो बोला मैं निर्देश हूं मुझे झूठे केस में फसाया जा रहा है
बेल्थरारोड में युवक ने सरयू नदी में लगाई छलांग, मौत
मौत से पहले बनाया वीडियो, बोला- "मैं निर्दोष हूं, मुझे झूठे केस में फंसाया जा रहा है"

बलिया जनपद के बेल्थरारोड इलाके में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक युवक ने बलिया देवरिया को जोड़ने वाले भागलपुर पुल से सरयू नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। हैरानी की बात यह है कि युवक ने नदी में कूदने से पहले एक वीडियो रिकॉर्ड किया, जिसमें उसने खुद को बेगुनाह बताते हुए कहा कि उसे झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है। बताया

वीडियो में युवक ने भावुक होते हुए कहा, "मैं निर्दोष हूं, लेकिन मुझे झूठा साबित किया जा रहा है। अब जीने की हिम्मत नहीं बची।" इसके बाद वह सरयू नदी में कूद गया।

घटना की जानकारी मिलते ही परिवार में कोहराम मच गया। पुलिस मामले की जांच में जुट गई है और युवक द्वारा बनाए गए वीडियो  वॉयरल होने के बाद लोग अपने अपने सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं।

मामला अब स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या सच में युवक को न्याय नहीं मिला या कोई उसे साजिश के तहत फंसा रहा था? पुलिस अब हर पहलू पर जांच कर रही है।
बलिया में भीषण गर्मी का कहर जारी, उमस और तपती धूप से जनजीवन बेहाल – बारिश की उम्मीद 15 जून के बाद
बलिया: उत्तर प्रदेश के बलिया जिले बिल्थरा रोड में में भीषण गर्मी ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। सूरज की तपिश और उमस भरी हवाओं ने आम जनजीवन को बेहाल कर दिया है। दिन में तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच रहा है, वहीं रात की गर्मी भी चैन नहीं लेने दे रही। ऐसे में लोग घरों में कैद रहने को मजबूर हैं।

गर्मी से राहत की कोई उम्मीद फिलहाल नजर नहीं आ रही है। मौसम विभाग के अनुसार, 15 जून से पहले बारिश के कोई आसार नहीं हैं। दिन-ब-दिन चढ़ता पारा और उमस लोगों के लिए आफत बन गई है। शहर से लेकर गांव तक, हर जगह लोग पानी, बिजली और गर्म हवाओं से परेशान हैं।

सबसे अधिक परेशानी बुजुर्गों, बच्चों और किसानों को हो रही है। खेतों में काम करना मुश्किल हो गया है। किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए बारिश का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि धान की नर्सरी और अन्य खरीफ फसलों की तैयारी अटकी हुई है।

गर्मी से निजात के लिए लोग छतों पर पानी डालने, कूलर-पंखे और नींबू पानी का सहारा ले रहे हैं, लेकिन बिजली आपूर्ति का सही से गावों में नहीं मिलना एक चुनौती साबित हो रहा है। वही सोनाडीह के गांवों के लोगों का कहना है कि सोनाधीह फीडर के बिजली आपूर्ति बहुत कम है और इस लू जैसे हालात में ये प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। जिससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है। सियर सरकारी अस्पताल की बात करें तो सबसे ज्यादा मरीज़ लू और बुखार के मिल रहे हैं।
अचानक खेत पर हुए बम विस्फोट... सहम गए ग्रामीण, छावनी में तब्दील गांव; 90 किलो से अधिक विस्फोटक बरामद
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थमने का नाम नहीं ले रहा कोरोना, एक्टिव केस की संख्या देश में बढ़कर 5700 के पार; 24 घंटे में चार की मौत
थमने का नाम नहीं ले रहा कोरोना, एक्टिव केस की संख्या देश में बढ़कर 5700 के पार; 24 घंटे में चार की मौत
केदार नाथ में यात्रियों से भरी हुई हेलीकॉप्टर का रोड पर इमरजेंसी लैंडिंग, एक कार हुआ क्षतिग्रस्त
केदारनाथ धाम में शनिवार को बड़ा हादसा टल गया। जब ऋषिकेश एम्स के एक हेलीकॉप्टर को तकनीकी खराबी के बाद हाईवे पर लैंड कराना पड़ा। गनीमत रही कि इस दौरान हाईवे पर कोई वाहन नहीं था नहीं तो कोई बड़ा हादसा हो सकता था। इंडिया टुडे के अनुसार एम्स से हेलीकॉप्टर एक मरीज को लेने के लिए केदारनाथ गया था। इस दौरान लैंडिंग से पहले हेलीकॉप्टर में तकनीकी खराबी आ गई। इसके बाद पायलट ने हेलीपैड से 10 मीटर पहले लैंडिंग करा दी। इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान हेलीकॉप्टर का पीछे का हिस्सा टूट गया है।