पुण्य श्लोक अर्थात मंत्र की भांति पवित्र देवी अहिल्याबाई होल्कर - डॉ विद्यासागर उपाध्याय त्रिशताब्दी ( 1725 से 2025 ) जन्मोत्सव पर विशेष लेख
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संजीव सिंह बलिया! पिछले दिनो होल्कर रजवाड़ा जाने का अवसर प्राप्त हुआ।माता अहिल्याबाई के कक्ष में उनकी प्रतिमा आसान पर विराजमान थी और उनके हाथों में शिवलिंग सुशोभित हो रहा था। मराठा इतिहास का गहन अध्ययन करने के कारण इस भूमि की महत्ता ने मुझे वहीं आसन के सम्मुख बैठ जाने को विवश कर दिया। माता अहिल्याबाई होल्कर को पुण्यश्लोक कहा गया, जिसका अर्थ है "पवित्र मंत्रों की तरह शुद्ध' । माता अहिल्याबाई होल्कर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करने से पूर्व थोड़ा उनकी पृष्ठभूमि पर चर्चा कर लें। आपमें से कुछ लोग हो सकता है पानीपत मूवी देखें हों।कुछ लोग खिचड़ी पर्व (मकर संक्रांति ) १४ जनवरी १७६१ के दिन हुए इतिहास के सर्वाधिक भीषण रक्तपात को पढ़े भी हों जिसमें प्रत्येक मराठा परिवार ने अपने किसी ना किसी संबंधी को खोया था।युद्ध आरम्भ होने से पूर्व मराठा सेना कई दिनों से भोजन नहीं कर पाई थी।उस दिन बस गुड बचा था, जिसे पीकर और कड़कती ठंड में केवल साधारण धोती पहनकर मराठों ने प्रातः ठीक नौ बजे युद्ध का बिगुल फूंक दिया।ठीक उसी समय सेना का नेतृत्व कर रहे श्रीमंत सदाशिव राव भाऊ पेशवा ने अपने सहयोगी मल्हार राव होल्कर को गुप्त रूप से निर्देशित किया कि यदि युद्ध में अनहोनी हो जाय तो आप महिलाओं को अवश्य बचा लीजिएगा। भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ।अहमद शाह अब्दाली की स्थिति खराब हो गई।इब्राहिम खान गार्दी की तोपों ने अब्दाली का दायां मोर्चा तोड़ दिया।बंदूक दल ने अफगान मोर्चा तहस - नहस कर दिया। महादजी सिंधिया,जानकोजी सिंधिया,पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट के सुपुत्र शमशेर बहादुर आदि की बहादुरी ने छः फ़ूटे अफगानों के दांत खट्टे कर दिए। अहमद शाह अब्दाली की सेना का प्रमुख सरदार नजाबत खान और फौजदार अब्दुस समद खान मारे गए।मराठा सेना शत्रु दल को गाजर मूली की तरह काटते हुए अपनी योजना के अनुरूप यमुना किनारे होकर दिल्ली की ओर बढ़ने लगी। लेकिन पानीपत में पिछले दो बार के युद्धों की तरह इतिहास ने स्वयं को दुहराया। हाथी पर सवार श्रीमंत विश्वासराव भट्ट पेशवा जो मराठा साम्राज्य के पुणे के पेशवा बालाजी बाजी राव के सबसे बड़े पुत्र और मराठा साम्राज्य की पेशवा की उपाधि के उत्तराधिकारी भी थे को गोली लगी और वो रणभूमि में अपना सर्वोच्च बलिदान दिए।विश्वास राव को आंखों के सामने मरते देख सदाशिव राव विछिप्त होकर अपने हाथी से नीचे उतर गए।हाथी को सेनापति विहीन देख मराठा सेना में भगदड़ मच गई।उसी दौरान मराठों की ओर से लड़ रहे आराधक सिंह अपनी पांच हजार की सेना लेकर अब्दाली से मिल गए। भारत की ओर से लड़ रहे गुलाम अफगानों ने महिलाओं को लूटना शुरू कर दिया।अवध के नवाब शुजाउद्दौला और रुहेला सरदार नजीब पहले से ही गद्दारी कर चुके थे।तीसरे प्रहर तक युद्ध का पासा पलट चुका था।इब्राहिम शहीद हो चुके थे,भारतीय तोपें खामोश थीं।अब्दाली की ऊंटों पर लदी छोटी जंबूरक तोपें आग उगल रही थीं। मराठों का चौकोर व्यूह दुर्रानी तुलगामा व्यूह में चारों ओर से बुरी तरह फंस चुका था।सारे सरदार मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो चुके थे। अब मल्हार राव होल्कर के परीक्षा की घड़ी थी।अपने शहीद सेनापति के निर्देशानुसार महिलाओं को सुरक्षित घेरे के अंदर लेकर आगे बढ़े।भीषण रक्तपात हुआ।लेकिन अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए वैरी दल को मात देकर सब स्त्री समूह सहित सुरक्षित भरतपुर तक पहुंच गए।आगे जाट राजा सूरजमल की सहायता से पार्वती बाई और अन्य महिलाओं को पूर्णतः सुरक्षा में पुणे तक पहुंचाया।बहुत से इतिहासकार मल्हार राव होल्कर पर पानीपत के युद्ध से भागने का भी आरोप लगाते हैं।लेकिन मैं डॉ विद्यासागर अनेक मंचों से तर्क और तथ्य से इसे गलत सिद्ध कर चुका हूँ। इस संक्षिप्त पृष्ठभूमि के उपरान्त एक दृष्टि डालते हैं माता अहिल्याबाई होल्कर के जीवन वृत्त पर।अहिल्याबाई होल्कर का जन्म ३१ मई १७२५ को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गांव के पाटिल थे। उस दौर में महिलाओं को स्कूल नहीं भेजा जाता था, लेकिन अहिल्याबाई के पिता ने उन्हें लिखने-पढ़ने लायक पढ़ाया।यह वो दौर था जब औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य पतन की ओर था और मराठा अपने साम्राज्य का विस्तार करने में जुटे हुए थे। पेशवा बाजीराव ने मल्हार राव होल्कर को मालवा की जागीर सौंपी, जिन्होंने अपने बाहुबल से इंदौर राज्य बसाया। उपरोक्त वर्णित इंदौर राज्य व होल्कर साम्राज्य के संस्थापक परम वीर श्रीमंत महाराज मल्हार राव होल्कर और रानी गौतमाबाई के पुत्र थे खंडेराव होल्कर जिन्होंने दिल्ली के भरे दरबार में मुग़ल बादशाह को झुकने पर विवश कर दिया था। वह बचपन से ही राज काज में काफी रुचि लेते थे, जिसके कारण उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर छोटी सी आयु में स्वतंत्र होकर लड़ाई लड़ी थी। उनका स्वभाव भले ही क्रोध भरा रहा था, लेकिन वो वीर और साहसी व्यक्ति थे।खंडेराव होल्कर ने अपने पिता से युद्ध कला की शिक्षा ली। जिसमें वो काफी निपुण हो गए थे।उनका विवाह देवी अहिल्याबाई के साथ हुआ।उनके एक पुत्र मालेराव और पुत्री थीं मुक्ता।निजाम और मराठों के बीच युद्ध की शुरूआत हुई तो खंडेराव ने उस युद्ध में बेहतरीन प्रदर्शन दिखाते हुए युद्ध जीता और निजाम पर विजय हासिल की। इसके बाद मालवा में मुगलों की ओर से शाजापुर के कमाविसदार को लूटा गया, बस्तियों को जलाया गया, और कई लोगों को जान से मार दिया गया। इसकी खबर जैसे ही होल्कर सैनिकों को लगी तो खंडेराव होलकर ने मीरमानी खान पर हमला कर उसे मार गिराया। मराठो का पुर्तगालियों के साथ युद्ध चल रहा था, तभी खंडेराव ने संताजी वाघ के साथ मिलकर तारापुर के किले के नीचे बारूदी सुरंगे बिछाकर धमाका कराया,जिसके कारण किले की दीवारें ध्वस्त हो गईं और मराठों ने घमासान युद्ध कर किले को हासिल कर लिया। आगे चल कर खण्डेराव ने चार हजार मराठा सेना के साथ मिलकर जाटों पर धावा बोला।मराठा सैनिकों ने पहाड़ और जंगलों में छिपकर जाटों पर आक्रमण किया और अपना अधिकार हासिल किया। जिस समय मराठा सैनिकों ने हमला किया उस समय महाराजा सूरजमल जाट के पुत्र जवाहर सिंह बरसाना में मौजूद थे। डर इतना ज्यादा बढ़ गया कि उन्होंने बरसाना छोड़ने का फैसला लिया और डींग पहुंच गए। वहीं उन्होंने पनाह ली। जिसके बाद खंडेराव ने जाटों के शहरों पर अपना हक जमाना शुरू कर दिया। साथ ही अपने राज्य को वहां स्थापित भी किया।खंडेराव होल्कर का खौफ इतना ज्यादा हो गया था कि उनसे मुगल बादशाह भी डरने लगे थे। एक बार जब खंडेराव होलकर दिल्ली पहुंचे तो दिल्ली में भगदड़ मच गई। कुछ लोग उस समय अपने घर छोड़कर ही भाग खड़े हुए। मुगल बादशाह भी उनके आने से खौफ में थे। लेकिन खंडेराव सिर्फ बातों को सुलझाने दिल्ली पहुंचे थे, युद्ध के लिए नहीं। दिल्ली के बादशाह ने खंडेराव को खुश करने की काफी कोशिश की।उन्होंने अशर्फियां, छ: वस्त्रों की खिलअत, जड़ाऊ सरपेच, तलवार और हाथी उनको भेंट स्वरूप दिया,लेकिन खंडेराव ने उन सभी उपहारो को लेने से मना कर दिया। वो उस समय सिर्फ मीरबख्शी के पास आए थे, उनसे विशेष विषय पर चर्चा करने ना कि कोई सरोकार या उपहार लेने। खंडेराव ने ऐसा ही किया उन्होंने मीरबख्शी के साथ युद्ध से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की और उसके बाद दिल्ली से रवाना हो गए और अपने शहर आ गए। १७ मार्च १७५४ ई० को खण्डेराव होल्कर युद्ध का संचालन कर रहे थे उसी समय घात लगाये बैठे जाट सैनिकों ने किले में घुसकर उनपर गोलियों से हमला कर दिया। हमले में एक गोली खण्डेराव होलकर को भी लगी,जिसके बाद उनकी मृत्यृ हो गई। उस समय खंडेराव होल्कर की उम्र ३१ साल थी।खंडेराव होल्कर की मृत्यु के बाद उनके पिता मल्हार राव होल्कर ने सती प्रथा को खत्म करते हुए देवी अहिल्याबाई को सती होने से रोका । वो अपने पति की मृत्यृ के बाद भी अपने हक की लड़ाई लड़ती रही। खंडेराव की मृत्यु के बाद, मल्हार राव की भी मृत्यु हो गई। जिसके बाद खंडेराव होल्कर के इकलौते बेटे ने अपनी मां अहिल्याबाई होल्कर के संरक्षण में कम उम्र में ही इंदौर की गद्दी संभाली और अपना शासन शुरू कर दिया। मानसिक बीमारी से माता अहिल्याबाई होल्कर के अपने पुत्र की मृत्यु के उपरान्त उन्होंने मल्हार राव के दत्तक पुत्र तुकोजी राव होल्कर को सेना का सेनापति नियुक्त किया।उन्होंने १७९२ ईस्वी में चार बटालियन बनाकर अपनी सेना को आधुनिक बनाने में मदद करने के लिए फ्रांसीसी शेवेलियर डुड्रेनेक को नियुक्त किया। उस समय के एक और नियम को तोड़ते हुए देवी अहिल्याबाई ने पर्दा प्रथा (महिलाओं का एकांतवास) का पालन नहीं किया। वह सभी प्रजा के लिए सुलभ होने के लिए जानी जाती थीं और रोज़ाना सभाएँ आयोजित करती थीं जहाँ लोग उनसे संपर्क कर सकते थे। उन्होंने नागरिकों के विवादों में न्याय और मध्यस्थता के लिए अदालतें स्थापित कीं। उस समय के लिए असामान्य रूप से अहिल्याबाई ने अपनी बेटी की शादी एक आम आदमी से कर दी जिसने युद्ध के मैदान में अद्भुत वीरता दिखाई।अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में लोगों के रहने के लिए बहुत सी धर्मशालाएं भी बनवाईं।ये सभी धर्मशालाएं उन्होंने मुख्य तीर्थस्थान जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास ही बनवाईं।मुगल आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़े हुए मंदिरों को देखकर ही उन्होंने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाया,जो आज भी हिन्दुओं द्वारा पूजा जाता है। महारानी अहिल्याबाई ने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में काफी मंदिरों का निर्माण भी किया था। इसके अलावा उन्होंने लोगों के लिए घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्न क्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की।अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने से पूर्व और वर्तमान में भी मै हमेशा बलिया से बनारस बाबा विश्वनाथ के दर्शन हेतु जाता रहता हूं।उम्मीद है आप भी गए होंगे। गंगा मईया में स्नान के उपरान्त हम जब सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर मंदिर परिसर में प्रवेश करते है तो सर्वप्रथम आदि शंकराचार्य और भारत माता के साथ ही माता अहिल्याबाई के भी दर्शन होते हैं।मूल विश्वनाथ मन्दिर को मुस्लिम आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया। ज्ञान की वापी पर ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी कर दी गई जिसकी दीवारें आज भी चीख - चीख कर उसे हिन्दू मंदिर प्रमाणित करती हैं। नंदी भगवान का मुंह आज भी अपने विश्वनाथ जी की ओर उद्धार हेतु प्रतीक्षारत है।उस समय जन भावना का सम्मान और अपनी उदारता का परिचय देते हुए माता अहिल्याबाई होल्कर ने मूल विश्वनाथ मन्दिर के बगल में भूमि खरीदकर भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया, जहां आज हम पूजन अर्चन और अभिषेक कर रहे हैं।राज्य की अतिशय चिन्ता और प्यारे लोगों के मृत्यु के शोक-भार को देवी अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका और १३ अगस्त सन् १७९५ ईस्वी को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। भारतवर्ष ने एक महान समाज सुधारक, कुशल प्रजापालक और दूरदर्शी देवी को सदैव के लिए खो दिया। आगामी ३१ मई २०२५ ईस्वी को माता अहिल्याबाई होल्कर का त्रिशताब्दी जन्मोत्सव है जिसे मनाने हेतु हम सब उत्सुक और आह्लादित है। हे देवी यह भारतवर्ष आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का सदैव ऋणी रहेगा। ©डॉ विद्यासागर उपाध्याय
May 28 2025, 08:24