*इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर उठ रहे सवाल, प्राइवेट पार्ट पकड़ना और नाड़ा तोड़ना रेप क्यों नहीं?*
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले में कहा गया था कि किसी महिला गलत तरीके से पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना रेप नहीं माना जाएगा, बल्कि यह निर्वस्त्र करने के इरादे से किया गया हमला माना जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने ये कहा कि ये मामला गंभीर यौन हमले के तहत आता है। अब कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह बात उत्तर प्रदेश के कासगंज इलाके में 2021 मामले पर की, जब कुछ लोगों ने नाबालिग लड़की के साथ जबरदस्ती की थी। कासगंज की विशेष जज की अदालत में इस नाबालिग लड़की की मां ने पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया था, लेकिन अभियुक्तों ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के बाद ये फ़ैसला सुनाया।
इलाहाबाद कोर्ट के इस फैसले की हर तरफ निंदा हो रही है। सरकार का पक्ष हो या विपक्षी पार्टियों की राय हो या फिर आम जनता की बात हो, सभी एक सुर में इस फैसले पर आपत्ति जता रहे हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल के एक फैसले की कड़े शब्दों निंदा की है। कोर्ट के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री ने इसे गलत फैसला भी बताया है। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर ध्यान देने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसले से समाज में गलत संदेश जाएगा।
कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, जो कानून एक औरत की सुरक्षा के लिए बना है, इस देश की आधी आबादी उससे क्या उम्मीद रखे। जानकारी के लिए बता दूं भारत महिलाओं के लिए असुरक्षित देश है।
कोर्ट के इस फैसले पर डीसीड्ब्यू की पूर्व प्रमुख और आप सांसद स्वाति मालीवाल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण। मैं फैसले में की गई टिप्पणियों से बहुत स्तब्ध हूं। यह बहुत शर्मनाक स्थिति है। उन पुरुषों द्वारा किया गया कृत्य बलात्कार के दायरे में क्यों नहीं आता? मुझे इस फैसले के पीछे का तर्क समझ में नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए। ये फैसला आईपीसी की धारा 376 के तहत दिया गया है और इसके प्रावधान अलग हैं। धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है जिसके मुताबिक जब तक मुंह, या प्राइवेट पार्ट्स मे लिंग या किसी वस्तु का प्रवेश ना हो, वो बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है। जस्टिस मिश्रा ने इस केस में साफ किया कि सेक्शन 376, 511 आईपीसी या 376 आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 18 का मामला नहीं बनता है।
*क्या कहता है कानून?*
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत बताते हैं कि इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा है कि अगर आरोपी पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के तहत रेप मामले में दोषी करार दिया जाता है तो जिन कानूनी प्रावधान में अधिकतम सजा होगी वही लागू होगी। दरअसल, अदालत यह मैसेज देना चाहती है कि रेप जैसे गंभीर अपराधों में सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए। इस मामले में भी अदालत ने साफ तौर पर कहा था कि कोई अपराध आईपीसी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) दोनों के तहत आता है, तो पॉक्सो एक्ट की धारा-42 के अनुसार उस कानून के तहत सजा दी जाएगी जिसमें अधिक कठोर सजा हो। इस मामले में आईपीसी की धारा के तहत रेप मामले में ज्यादा कठोर सजा का प्रावधान है और ऐसे में वही सजा दी जाएगी। आरोपी की ओर से दलील दी गई थी कि पॉक्सो एक्ट में प्रावधान है कि वह स्पेशल एक्ट है और वह दूसरे कानूनी प्रावधान पर वरीयता रखता। ऐसे में आईपीसी के तहत अधिकतम सजा नहीं होनी चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।
*ऐसे ही मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट को लग चुकी है फटकार*
वहीं, बीते साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने पॉस्को के एक मामले को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट को जमकर फटकार लगाई थी। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामलों में हाई कोर्ट क्यों 'समझौते' की ओर झुकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से यौन संबंध को अपराध से मुक्त करने का सुझाव देने पर कलकत्ता हाईकोर्ट को फटकार लगाई थी। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोअर् का कर्तव्य साक्ष्य के आधार पर यह पता लगाना था कि क्या पोक्सो अधिनियम की धारा 6 और आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध किए गए थे। आईपीसी की धारा 375 में अठारह वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ उसकी सहमति से या उसके बिना संबंध बनाना बलात्कार का अपराध बनता है।
*क्या है मामला?*
ये मामला 2021 का है। मामले में लड़की की मां ने आरोप लगाया था कि 10 नंवबर 2021 को शाम पांच बजे जब वो अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ देवरानी के गांव से लौट रही थी तो अभियुक्त पवन, आकाश और अशोक मोटरसाइकिल पर उन्हें रास्ते में मिले। पवन ने उनकी बेटी को घर छोड़ने का भरोसा दिलाया और इसी विश्वास के तहत उन्होंने अपनी बेटी को जाने दिया। लेकिन रास्ते में मोटरसाइकिल रोककर इन तीनों लोगों ने लड़की से बदतमीजी की और उसके प्राइवेट पार्ट्स को छुआ। उसे पुल के नीचे घसीटा और उसके पायजामी का नाड़ा तोड़ दिया। मां के मुताबिक तभी वहां से ट्रैक्टर से गुजर रहे दो व्यक्तियों सतीश और भूरे ने लड़की का रोना सुना। अभियुक्तों ने उन्हें तमंचा दिखाया और फिर वहां से भाग गए। जब नाबालिग की मां ने पवन के पिता अशोक से शिकायत की तो उन्हें जान की धमकी दी गई जिसके बाद वे थाने गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
ये मामला कासगंज की विशेष कोर्ट में पहुंचा जहां पवन और आकाश पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), पॉक्सो एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) और अशोक के खिलाफ धारा 504 और 506 लगाई गईं। इस मामले में सतीश और भूरे गवाह बने, लेकिन इस मामले को अभियुक्तों की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। जिसके बाद अब इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
May 07 2025, 05:31