घर परिवार को नहीं, असली वैराग्य दुर्गुणों को छोड़ना है- प्रदीप मिश्र
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खजनी गोरखपुर।संसार में लोग घर परिवार को छोड़कर सन्यासी बन कर वन में जा कर रहने को वैराग्य समझते हैं, जबकि ऐसा नहीं है वास्तविक वैराग्य तो ईर्ष्या, क्रोध, लोभ, मोह, कामनाएं, अहंकार, चोरी, चुगली आदि दुर्गुणों को छोड़ कर भगवान का नित्य स्मरण करने में है। संसार में रह कर अपने सभी सांसारिक दायित्वों का पूरी निष्ठा ईमानदारी और समर्पित भाव से निभाते हुए प्रभु के चरणों में प्रिती रखना ही इस मानव जीवन का असली वैराग्य है।
उक्त विचार श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के पहले दिन व्यास पीठ से अयोध्या से पधारे कथाव्यास आचार्य प्रदीप मिश्र ने व्यक्त किए। मंगलाचरण की कथा सुनाते हुए उन्होंने बताया कि चार वेदों में सिर्फ एक वेद का अध्ययन करने में 12 वर्ष तक नियमित ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए नित्य ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर कौपीन धारी बन कर भूमि पर शयन करते हुए साधक की भांति कठिन जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस प्रकार चारों वेदों का का अध्ययन करने में जीवन का उत्तरार्द्ध आ जाता है।इसी प्रकार महाभारत ग्रंथ में ही एक लाख 10 हजार श्लोक हैं। इसीलिए पंचम वेद के रूप में कृष्ण द्वैपायन व्यास ने द्वापर युग में श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के रूप में संसार से विरक्ति के लिए हमें सुलभ कराया है। कहा कि संसार में कोई भी मनुष्य अपने ज्ञान के दंभ से ईश्वर की कृपा करूणा नहीं प्राप्त कर सकता, संसार की कोई व्यक्ति या वस्तु जीवन भर साथ नहीं देता किन्तु सिर्फ सहज निश्छल प्रेम भक्ति से ही जीव संसार में सब कुछ प्राप्त कर सकता है। उन्होंने "भगवान" तथा "सच्चिदानंद" और त्रै तापों का विस्तार सहित वर्णन करते हुए जीवन में भक्ति और आध्यात्म का महत्व बताया।
सारगर्भित संगीतमय कथा में मंत्रमुग्ध श्रोताओं ने देर रात तक भागवत कथा का रसास्वादन किया तथा भक्ति भजनों की धुनों पर झूमते रहे। मुख्य यजमान रमापति राम त्रिपाठी, शोभावती त्रिपाठी सहित प्रसिद्ध तिवारी, अखिलेश त्रिपाठी, विजय नारायण त्रिपाठी, अमित, मनोज पटवा, मीरा शुक्ला, श्रीवृंदा त्रिपाठी, दिलीप तिवारी सहित बड़ी संख्या में महिलाएं पुरुष और श्रोता मौजूद रहे।




Apr 16 2025, 19:07
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