बाबा पातालेश्वर नाथ से मांगी गई मन्नत खाली नहीं जाती
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मान्यता है कि पातालेश्वर नाथ मंदिर में स्वयं प्रकट हुई है शिवलिग
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हाजीपुर
पातालेश्वर नाथ मंदिर का शिवलिंग प्राचीन काल का है यहां मांगी गई मनौती खाली नहीं जाती
नगर महादेव के नाम से चर्चित हाजीपुर के पतालेश्वर नाथ महादेव मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। मान्यता है कि यहां प्रकट शिवलिंग प्राचीन काल का है। कहा जाता है कि बाबा पातालेश्वर नाथ से मांगी गई मनौती खाली नहीं जाती। यह मनौती निश्चित रूप से पूरी होती है। यहां शिवलिंग पर जलाभिषेक कर पूजन करने वाले कभी निराश नहीं होते हैं। वैसे तो सालोंभर पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की प्रत्येक दिन उपस्थिति होती है, लेकिन सावन और महाशिवरात्रि के मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। यहां पूजा अर्चना के लिए स्थानीय श्रद्धालुओं के अलावा देश-प्रदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं।
यहां 150 वर्ष से शिवरात्रि पर झांकी निकाली जाती हैं
मंदिर में जन्माष्टमी, सावन उत्सव के साथ शादी विवाह, शिवरात्रि एवं अन्य अनुष्ठान का आयोजन होता है। लगभग 150 वर्ष पहले से शिवरात्रि पर शिवविवाह की भव्य झांकी निकलती आ रही है। पहले झांकी का 'स्वरूप छोटा हुआ करता था। वर्तमान में भव्य शिवबारात की झांकी निकलती है। जिसमें लाखों श्रद्धालु बारात में शामिल होते हैं। शिवबारात में मुख्य गाड़ीवान की भूमिका में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय भगवान भोले शंकर के गाड़ीवान होते हैं। इस वर्ष भी शिवबारात की भव्य तैयारी की जा रही है।
कैसे हुई मंदिर की स्थापना कैसे नाम पड़ा पातालेश्वर नाथ मंदिर
पहले मंदिर के आसपास घना जंगल हुआ करता था। इसी जंगल में करीब 600 साल पहले पीपल वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग को लोगों ने देखा था। इसके बाद खुदाई कर शिवलिंग निकालने का प्रयास किया गया। काफी अंदर तक खुदाई करने के बाद भी शिवलिंग के अंत का पता नहीं चल सका। यह शिवलिंग अलौकिक और अद्भुत है। काफी खुदाई के बाद भी शिवलिंग का अंत नहीं दिखा। कहा जाता है कि शिवलिंग का अंत पता करने में एक कुआं जैसा गड्डा हो गया और नीचे से पानी भरना शुरू हो गया था। जिसे बाद में भर दिया गया। यही कारण है बाबा भोले का नाम पातालेश्वर नाथ कहने लगे।
शिवलिंग को पानी से भरने का किया गया था प्रयास
मंदिर के अर्चक नीरज तिवारी ने बताया कि 1980-90 के दशक में नारायणी नदी के सीढी घाट से मंदिर तक महिला श्रद्धालुओं की लाइन लगी और शिवलिंग को जल से डुबोने का प्रयास किया गया, लेकिन सारा जल कहां जा रहा था पता नहीं चल सका। शिवलिंग जैसा दिख रहा था वैसा ही रह गया। तब मंदिर के मुख्य अर्चक विश्वनाथ चौबे और रामेश्वर चौबे हुआ करते थे। वर्तमान में प्रशांत तिवारी मुख्य अर्चक हैं।
Feb 23 2025, 21:17