शरिया कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची मुस्लिम महिला, बेटी को पूरी संपत्ति देना चाहती है महिला
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सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर कर मांग की है कि उसे शरीयत कानून में विश्वास नहीं है और वह चाहती है कि उस पर उत्तराधिकार कानून लागू हो। महिला ने खुद को 'गैर-आस्तिक' बताते हुए मांग की है कि उनके उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू किया जाए। महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और सरकार का इस मुद्दे पर पक्ष पूछा है।
केरल के अलप्पुझा की रहने वाली एक महिला साफिया पी एम ने यह याचिका दायर की है। वह अपनी पूरी संपत्ति अपनी बेटी को देना चाहती हैं, लेकिन शरिया कानून के तहत वह केवल 50 प्रतिशत संपत्ति ही दे सकती हैं। इसलिए वह 'सेक्युलर लॉ' यानी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत लाभ चाहती हैं।
सफिया पी एम ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह एक गैर-आस्तिक मुस्लिम महिला हैं। वह चाहती हैं कि उन्हें विरासत के मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत माना जाए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
सफिया पी एम का कहना है कि वह इस्लाम को नहीं मानती, लेकिन अभी भी उसने आधिकारिक रूप से इस्लाम को नहीं छोड़ा है। शरिया कानून के अनुसार, जो व्यक्ति इस्लाम छोड़ देता है, उसे समुदाय से बाहर कर दिया जाता है और उसे माता-पिता की संपत्ति में कोई विरासत का अधिकार नहीं मिलता। याचिका में यह भी कहा गया है कि शरिया कानून के तहत, एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का एक तिहाई से अधिक हिस्सा वसीयत के माध्यम से नहीं दे सकता है। सफिया पी एम की एक बेटी है। उनकी चिंता है कि उनकी मौत के बाद, पूरी संपत्ति उनकी बेटी को नहीं मिलेगी, क्योंकि उनके पिता के भाइयों का भी उस पर दावा होगा।
केंद्र सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'याचिका में रोचक सवाल उठाया गया है।' मेहता ने कहा कि 'याचिकाकर्ता महिला एक पैदाइशी मुस्लिम है। उनका कहना है कि वे शरीयत कानून में विश्वास नहीं रखती और यह एक पिछड़ा हुआ कानून है।' पीठ ने कहा कि 'यह आस्था के खिलाफ है और आपको (केंद्र सरकार) इसके जवाब में हलफनामा दाखिल करना होगा।' इस पर सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय मांगा। इस पर पीठ ने चार हफ्ते का समय देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 5 मई तय की। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 29 अप्रैल को भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब मांगा था।
Jan 29 2025, 18:49