पुण्यतिथि पर विशेष:कमलेश्वर एक ऐसा लेखक जिसने हिन्दी साहित्य को नए आयाम दिए

नयी दिल्ली : कमलेश्वर ने हिंदी साहित्य में रचनात्मकता लाने के लिए 'नई कहानी' जैसा आंदोलन चलाया और 1972 में उसी हिंदी साहित्य के पतन को देखते हुए समांतर कहानी आंदोलन की शुरुआत भी की.

कुछ दिनों पहले मैं अवसाद और निराशा के दौर से गुजर रहा था. अपने आप को कमरे में बन्द कर लिया था. न किसी से बात करना अच्छा लगता था और न ही कुछ करने का मन करता था. बाहरी दुनिया काटने को दौड़ती थी. इसी बीच मेरी नजर एक किताब पर पड़ी. पिछले साल के पुस्तक मेले में खरीदा था. पहला पन्ना खोला तो लिखा था.

इन बंद कमरों में मेरी सांस घुट जाती है, खिड़किया खोलता हूं तो जहरीली हवा आती है.

ऐसा लगा जैसे लेखक ने मेरे मन की बात सुन ली हो. मैनें पढ़ना शुरू किया. जैसे-जैसे पढ़ता गया. मूड बदलने लगा. शुरू करने से पहले मेरा मन जो संज्ञाशून्य था, वह इस उपन्यास के साथ ही शून्य से शिखर तक पहुंच रहा था. किताब का नाम था. ‘कितने पाकिस्तान’. लिखने वाले थे कमलेश. लेखक से काफी प्रभावित हुआ. बीच में ही उठ कर लेखक के बारे में पढ़ डाला.

जीवन दर्शन

कमलेश्वर 6 जनवरी को 1932 में यूपी के मैनपुरी में पैदा हुए थे. वही मैनपुरी जो यूपी के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार (मुलायम सिंह यादव) का गढ़ माना जाता है. 1954 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमए कर लिए. कहानियां और कॉलम लिखे. टीवी के लिए कश्मीर के आतंकवाद और बाबरी मस्जिद विवाद पर कई फिल्में भी बनाईं. पत्रकारिता भी की. देश के सामाजिक हालात ने जब उनके मन को कचोटा तो वे शालिनी अग्निकांड पर ‘जलता सवाल’ और कानपुर की बहनों के आत्महत्याकांड पर ‘बंद फाइल’ जैसे धारावाहिक भी बनाने से खुद को रोक नहीं पाए. दूरदर्शन पर हर रविवार को आने वाला सुप्रसिद्ध कार्यक्रम ‘चंद्रकांता’ भी इन्हीं के कलम से निकली टीवी की सबसे लोकप्रिय रचना थी. ‘युग’, ‘विराट’ और ‘बेताल’ जैसे लंबे और 90 के दशक में लोगों को स्वस्थ मनोरंजन देने वाले धारावाहिकों का लेखन भी कमलेश्वर ने ही किया था.

‘नई कहानी’ आंदोलन के पैरोकार

हिंदी साहित्य के लगभग 150 साल के इतिहास में तीन लेखकों ने इसकी दिशा और दशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. चाहे कमलेश्वर की ‘राजा निंबरसिया’ रही हो, राजेंद्र यादव की ‘प्रेत बोलते’ हैं. या फिर मोहन राकेश का ‘अषाढ़ का एक दिन’. इन तीनों की लेखनी ने हिंदी साहित्य की अविरल धारा को समृद्ध बनाने में भरपूर कोशिश की. इसमें सबसे अहम योगदान कमलेश्वर का रहा. राजेंद्र यादव शुरू में उत्कृष्ट लेख देने के बाद अपना ध्यान उपन्यास और पुस्तक के व्यवसाय पर केंद्रित कर लिया. उनकी रचनाओं को लेकर कुछ विवाद भी हुए. 

मोहन राकेश ने अच्छी कहानियां जरूर गढ़ी, लेकिन जब वे अपने चरम पर थे तो असमय काल के कपाल ने उन्हें गले लगा लिया. हालांकि, बाद में मोहन राकेश कहानियों से इतर नाटक मंचन में अपने आप को खपाने लगे थे.

ऐसे में कमलेश्वर ही थे, जिन्होंने शुरू से अंत तक अपनी संयमित विविधता और सृजनशीलता को बनाए रखा. राजेंद्र यादव हंस पत्रिका में लिखते हैं, ‘नई कहानी’ आंदोलन के प्रारंभिक पैरोकारों में सबसे अधिक जुझारू व्यक्तित्व कमलेश्वर का था. हालांकि मुझे, मोहन राकेश और कमलेश्वर- तीनों को नई कहानी आंदोलन के नेतृत्व करने वालों के रूप में देखा-जाना जाता है, पर नई कहानी आंदोलन को हिंदी साहित्य में स्थापित करने में कमलेश्वर की भूमिका अहम थी. स्थापित साहित्यकारों की ओर से सबसे अधिक हमले उन पर ही हुए और आगे बढ़कर हमले का जवाब भी उन्होंने ही दिया.’

दिल का काम, मन की बात की  

भारतीय समाज और राजनीति पर अपने मन के द्वंद का इजहार कहानियां गढ़ने से इतर जाकर वे सार्वजनिक इजहार करते थे. ये कमलेश्वर ही थे, जिन्होने हिंदी साहित्य में रचनात्मकता लाने के लिए ‘नई कहानी’ जैसा आंदोलन चलाया फिर 1972 में उसी हिंदी साहित्य के पतन को देखते हुए समांतर कहानी आंदोलन की शुरुआत भी की.

 सारिका पत्रिका द्वारा चलाए इस आंदोलन से पहली बार दलित लेखन ने साहित्य में अपनी जगह बनाना शुरू की. कमलेश्वर ने नए लेखकों को प्रोत्साहन देने और उनके संघर्षों को जगह देने के लिए ‘गर्दिश के दिन’ नामक एक कॉलम भी शुरू किया था. अपने मन की करने वाले कमलेश्वर आपातकाल के उस भयानक दौर में भी इंदिरा गांधी से लोहा लेने से नहीं चूके. उस समय इंदिरा का फरमान था कि छपने से पहले वे अपनी पत्रिकाओं और लेखों को सरकार को दिखाएं. 

कमलेश्वर को दूरदर्शन का महानिदेशक बनाने की प्रकिया चल रही थी. उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया बाकी थी. उन्होंने उस दौर में भी काली कहानी जैसी कहानी लिखते हुए आपातकाल का जमकर विरोध किया. जब यह बात इंदिरा गांधी को पता चली तो ये उनका बड़प्पन कह लें या फिर कमलेश्वर की स्पष्टवादिता का प्रभाव, गांधी ने केवल इतना कहा कि वे कमलेश्वर को दूरदर्शन के खिलाफ भी ऐसा ही मुखर देखना चाहेंगी.

‘कितने पाकिस्तान’

अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी लिखने वाले कमलेश्वर की यह आखिरी उपन्यास था. लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया. इसकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 2000 में प्रकाशित यह अब तक उपन्यास 17 संस्करणों में प्रकाशित हुआ. अपने नौवें संस्करण की भूमिका में कमलेश्वर लिखते हैं, ‘मैं अपने पाठकों का बहुत आभारी हूं. यह नवम संस्करण मैं भारत के उन पाठकों को समर्पित करता हूं, जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है. ’2003 में अपनी इस सर्वश्रेष्ठ कृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले कमलेश्वर ने इस उपन्यास में मानव सभ्यता को कई वर्गों में बांटने वाली प्रवृत्तियों की परख की है. इस उद्देश्य से कि भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक के बाद एक दूसरे पाकिस्तान बनाने की लहू से लथपथ यह परंपरा अब समाप्त हो. कमलेश्वर कितने पाकिस्तान में लिखते हैं, ‘मेरी दो मजबूरियां भी इसके लेखन से जुड़ी हैं. एक तो यह कि कोई नायक या महानायक सामने नहीं था, इसलिए मुझे समय को ही नायक-महानायक और खलनायक बनाना पड़ा. और दूसरी मजबूरी यह है कि इसे लिखते समय लगातार यह एहसास बना रहा कि जैसे यह मेरी पहली रचना हो. लगभग उसी अनकही बेचैनी और अपनी असमर्थता के बोध से मैं गुजरता रहा. 

आखिर इस उपन्यास को कहीं तो रुकना था. रुक गया. पर मन की जिरह अभी भी जारी है.’

300 से अधिक कहानियां और 13 उपन्यास लिखने वाले इस मानवीय लेखक का इस दुनिया से चला जाना देश में कट्टरता और असहिष्णुता के खिलाफ संघर्षों के लिए एक झटका है. अब ये देखना होगा कि नई पीढ़ी के लेखकों में कौन उनके समकक्ष खड़ा होने की हिमाकत करता है।

रामगढ़ जिले के गोला थाना क्षेत्र के चक्रवाली गांव में एक महिला को उसका प्रेमी ने गला रेत कर कर दी हत्या


झा. डेस्क 

रामगढ़. रामगढ़ जिले के गोला थाना क्षेत्र अंतर्गत चक्रवाली गांव में मेले से घूम कर लौटी एक आदिवासी महिला की गला उसके प्रेमी ने ही रेत दी. प्रेम प्रसंग में हुए विवाद के कारण प्रेमी ने इस वारदात को अंजाम दिया. रविवार को रामगढ़ एसडीपीओ परमेश्वर प्रसाद ने इस मामले की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आराेपित राजा अंसारी उर्फ अफसर अंसारी को गिरफ्तार कर लिया है. वह बोकारो जिले के चिरा चास थाना क्षेत्र अंतर्गत चास न्यू तेलगड़िया का रहने वाला है . हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून लगा कपड़ा और जूता भी बरामद हुआ है.

चक्रवाली गांव में हत्या की यह वारदात शनिवार की रात हुई थी. मृतका 30 वर्षीया है अपने पति और बच्चों के साथ मेला घूम कर अपने घर लौटी थी. इसके बाद उसका पति कुछ काम से मगनपुर बाजार चल गया. वहां से लौटने के बाद देखा तो घर में उसकी पत्नी की गला रेता हुआ है और वह खून से सनी हुई है‌. पूरे घर में खून फैला हुआ था. मृतका का पति ने पुलिस को बताया कि दो दिन पूर्व उसे एक व्यक्ति ने फोन कर जान से मारने की धमकी दी थी.

जानकारी के अनुसार मृतका के पति और उसकी पत्नी को भूमि अधिग्रहण के बाद मोटी रकम मिली थी. उन लोगों की जमीन भारतमाला परियोजना में अधिग्रहित हुई थी. इसके बाद वह अपना घर छोड़कर दूसरे स्थान पर पक्का मकान बनाकर रह रहे थे.

झारखंड में मौसम ने एक बार फिर अपना यू-टर्न लिया,राज्यभर में बढ़ा ठंड का असर

झा. डेस्क 

रांची : झारखंड में मौसम ने एक बार फिर अपना यू-टर्न लिया है, जिससे राज्यभर में ठंड का असर बढ़ गया है. हाल ही में धूप और हल्की गर्मी का अनुभव करने के बाद अब रात में ठंड का कड़ा प्रकोप देखने को मिल रहा है. रांची समेत राज्य के कई हिस्सों में दिनभर की गर्मी के बाद शाम से लेकर अगले दिन सुबह तक सर्दी का अहसास होने लगा है. मौसम के इस अचानक बदलाव से स्थानीय निवासियों को हल्की ठंड का सामना करना पड़ रहा है.

रांची स्थित भारतीय मौसम विज्ञान कार्यालय के अनुसार, उत्तर भारत में चल रही सर्द हवाओं का असर झारखंड में भी महसूस किया जा रहा है. मौसम विभाग ने संभावना जताई है कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में न्यूनतम तापमान 4 डिग्री तक गिर सकता है. रांची में भी रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे जा सकता है, जबकि दिन में अधिकतम तापमान 26 डिग्री के आसपास रहने का अनुमान है. इसका मतलब है कि दिन में हल्की गर्मी और रात में ठंडी हवाओं के कारण लोगों को लगातार तापमान में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा.

पिछले 24 घंटे में राज्य के विभिन्न हिस्सों में मौसम शुष्क रहा है. हालांकि, तापमान में गिरावट ने झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में ठंड बढ़ा दी है. डालटनगंज में सबसे कम न्यूनतम तापमान 7.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. रांची का न्यूनतम तापमान 8.8 डिग्री, जमशेदपुर का 12.2 डिग्री, बोकारो का 8.2 डिग्री और चाईबासा का 12.2 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया.

आने वाले दिनों में हल्के बादल छाने की संभावना

मौसम विभाग के अनुसार, 27 और 28 जनवरी को सुबह में कोहरा और धुंध देखने को मिल सकता है, लेकिन इसके बाद आसमान मुख्यतः साफ रहेगा. वहीं, 29 जनवरी से 1 फरवरी तक सुबह में फिर से कोहरा और धुंध की स्थिति बनी रहेगी और बादल आंशिक रूप से आकाश में छा सकते हैं. इस दौरान रांची और आसपास के इलाकों में न्यूनतम तापमान 9 से 14 डिग्री सेल्सियस के बीच रह सकता है.

मौसम विभाग ने यह भी बताया कि अगले कुछ दिनों तक तापमान में उतार-चढ़ाव जारी रहने की संभावना है. इस प्रकार के मौसम परिवर्तन से सर्दी का प्रकोप कुछ और दिनों तक बना रह सकता है, जिससे दिन के तापमान में हल्की गर्मी और रात में ठंडी का एहसास होता रहेगा. इससे लोगों को अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा, क्योंकि ठंड में सर्दी, खांसी और बुखार जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं.

सीआईएसएफ को परेड के लिए मिला प्रथम पुरस्कार


धनबाद :गणतंत्र दिवस के अवसर पर रणधीर वर्मा स्टेडियम में आयोजित मुख्य समारोह में सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, झारखंड सशस्त्र पुलिस - 3 गोविंदपुर, जिला सशस्त्र बल (पुरुष), जिला सशस्त्र बल (महिला), गृह रक्षक वाहिनी, एनसीसी (बॉयज), एनसीसी (गर्ल्स) तथा स्काउट एवं गाइड के प्लाटून ने परेड में हिस्सा लिया। 

परेड में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए सीआईएसफ को उप विकास आयुक्त श्री सादात अनवर ने प्रथम पुरस्कार, एनसीसी बॉयज को वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री विकास पालीवाल ने द्वितीय एवं स्काउट एंड गाइड को ग्रामीण एसपी श्री कपिल चौधरी ने तृतीय पुरस्कार प्रदान किया।

दुनिया फिर एक तूफानी चक्रवात इओविन से प्रभावित,इस तूफान के कारण झारखंड में भी बढेगा ठंड का असर


झा. डेस्क 

एक बार फिर से झारखंड सहित कई राज्यों में ठंड कंपकंपाने वाली है। तूफान इओविन की वजह से देश में भी असर देखने को मिलेगा। हालांकि इससे बहुत ज्यादा प्रभाव झारखंड के मौसम में नहीं पड़ेगा, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में इसका बड़ा प्रभाव देखने को मिल सकता है। 

ब्रिटिश द्वीपों और विशेष रूप से आयरलैंड और स्कॉटलैंड में तेज और भीषण हवाएं चली हैं।

24 घंटों में तूफान के केंद्र में हवा का दबाव 50 मिलीबार कम हो गया, जिससे यह और भी खतरनाक हो गया। जब चक्रवाती तूफान घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूमता है तो और भी खतनाक हो गया है। मौसम विभाग का अनुमान है कि भीषण चक्रवाती तूफान की वजह से खुले स्थानों पर 80-90 मील प्रति घंटे और अधिकतम 100 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से हवाएं चल सकती हैं।

चक्रवाती तूफान इओविन को भारी बारिश ने और भी खतरनाक बना दिया है. बारिश के कारण तूफान विस्फोटक रूप से विकसित हो रहा है। तूफान एओविन को इसकी तबाही वाले स्वरूप के कारण ‘बॉम्ब साइक्लोन’ कहा जा रहा है। इस तूफान ने ब्रिटेन और उसके आसपास के हिस्सों को भारी नुकसान पहुंचाया है।

जानिये क्यों है खतरनाक ये साइक्लोन

तूफान एओविन की वजह से ब्रिटिश द्वीपों और विशेष रूप से आयरलैंड और स्कॉटलैंड में तेज और भीषण हवाएं चली हैं. चौबीस जनवरी की आधी रात तक 24 घंटों में तूफान के केंद्र में हवा का दबाव 50 मिलीबार कम हो गया. यह “विस्फोटक चक्रवात” की परिभाषा में आवश्यक से दोगुना से भी अधिक है, दूसरे शब्दों में, चक्रवाती तूफान (घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूमना) का विकास जो तेज और गंभीर दोनों है, बम फटने की तरह है. नतीजतन, इओविन को “बम चक्रवात” कहा जा सकता है।

भीषण तबाही मचा सकता है चक्रवात

दुनिया के इस हिस्से में सर्दियों के तूफानों का बम चक्रवात की स्थिति तक पहुंचना कोई असामान्य बात नहीं है. हालांकि, हाल के वर्षों में बहुत कम तूफानों ने ही तूफान इओविन के मुकाबले दबाव को गहरा किया है. इससे लोगों को यह पता चलता है कि सबसे ज्यादा खुले स्थानों पर 80-90 मील प्रति घंटे और अधिकतम 100 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से हवाएं चल सकती हैं. आयरलैंड के पश्चिमी तट पर मेस हेड में आज सुबह 114 मील प्रति घंटे की रिकॉर्ड-तोड़ हवाएं चलने की सूचना मिली है.

इसी तरह के भीषण तूफानों ने व्यापक क्षति पहुंचाई है और लोगों की जान ली है. जैसे कि 1987 का भीषण ‘ग्रेट स्टॉर्म’.

लोहरदगा के बलदेव साहु कालेज स्टेडियम में मंत्री नेहा शिल्पी तिर्की ने किया झंडोत्तोलन


 लोहरदगा के बलदेव साहु कालेज स्टेडियम में झारखंड सरकार की मंत्री नेहा शिल्पी तिर्की ने झंडोत्तोलन किया। इस मौके मंत्री ने झांकी का भी अवलोकन किया। मंत्री ने खेल शिक्षा और विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर कार्य करने वालों को सम्मानित किया।

मंत्री ने कहा की हमें गर्व है कि हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। हम स्वतंत्रता सेनानियों के आभारी हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे कर हमें आजादी दिलाई है।

उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार राज्य का विकास कर रही हैं। मंईयां सम्मान योजना के तहत राज्य की महिलाओं को सशक्त बनाने का काम सरकार कर रही है। राज्य में कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने का काम किया जा रहा है। खेती में पारम्परिक चीजों से लोग अलग होते जा रहे हैं। उच्च उत्पादकों के क्षेत्र में ध्यान दिया जाए। कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में हमें खुश को सशक्त करना है।

इस अवसर पर डीसी, एसपी सहित जिले के तमाम पदाधिकारी मौजूद थे।

जमशेदपुर के परसुडीह के तीन पंचायत क्षेत्र को खाली करने का रेलवे का नोटिस, क्षेत्र में मचा हड़कंप

झा. डेस्क 

जमशेदपुर : स्कूल और आंगनबड़ी सहित अपार्टमेंट और कई घरों को 30 जनवरी तक खाली करने का फरमान जारी हुआ है। इस आदेश के बाद रह वासियों में हड़कंप है।

 जानकारी के अनुसार रेल प्रशासन ने परसुडीह के तीन पंचायत क्षेत्र को खाली करने का नोटिस दिया है। जिन्हें खाली करने को कहा गया है, उसमें उत्क्रमित मध्य विद्यालय मुर्गा पाड़ा व झारखंड नगर आंगनबाड़ी केंद्र भी शामिल हैं।

जानकारी मिली है कि करनडीह फाटक के समीप स्थित चार मंजिला फ्लैट मां दुर्गा अपार्टमेंट को भी रेल प्रशासन द्वारा शनिवार को नोटिस भेजा है जिसमें उन्हें भी रेलवे की जमीन को अतिक्रमण मुक्त करने को कहा गया है। सभी को 30 जनवरी तक की मियाद दी गयी है।

मालूम हो कि रेल प्रशासन ने तीनों पंचायत क्षेत्र के 540 परिवारों को नोटिस देकर 30 जनवरी तक जमीन खाली करने को कहा है, जिसके बाद से स्थानीय निवासी दहशत में हैं। इधर स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र के भविष्य को लेकर स्थानीय लोग काफी चिंतित हैं। उत्क्रमित विद्यालय परिसर में स्थानीय निवासियों की बैठक हुई।

स्थानीय लोग ये जानना चाहते हैं कि स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र की कितनी जमीन रेलवे की है और कितनी जमीन शासकीय भूमि है। कहा जा रहा है कि रेल प्रशासन जितनी बड़ी जमीन का दावा करते हुए सभी को नोटिस भेज रही है, उतनी जमीन रेलवे की नहीं है। इसलिए जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता है कि कितनी जमीन रेलवे की और कितनी सरकारी है। तब तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाएगी।यदि जबरन कार्रवाई की जाती है तो वे मजबूरन इसका विरोध करेंगे।

गणतंत्र दिवस पर बच्चों को सिखाएं तिरंगे का महत्व


गणतंत्र दिवस केवल एक राष्ट्रीय पर्व नहीं, बल्कि यह दिन हमें अपने संविधान और राष्ट्रीय प्रतीकों के महत्व की याद दिलाता है। इस खास मौके पर बच्चों को हमारे तिरंगे से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बताना बेहद जरूरी है। तिरंगे के रंग, अशोक चक्र और इसे फहराने के नियमों को जानकर बच्चे न केवल देश के प्रति सम्मान महसूस करेंगे, बल्कि उनमें देशभक्ति की भावना भी प्रबल होगी। आइए, इस गणतंत्र दिवस पर बच्चों को तिरंगे का महत्व सिखाकर उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में प्रेरित करें।

1. खादी के कपड़े से बनता था तिरंगा

बच्‍चों को बताएं कि भारतीय झंडे का नाम तिरंगा है। जिसे इंग्लिश में ट्राई कलर भी कहते हैं। आज भले ही तिरंगा प्‍लास्टिक या पॉलिस्‍टर के कपड़े पर बनता है, लेकिन पहले राष्‍ट्रीय ध्‍वज को बनाने में हाथ से कटे गए सूत और हाथ से बने खादी के कपड़ों का ही इस्‍तेमाल होता था।

2. 2002 में मिली घरों में झंडा फहराने की इजाजत

पहले के समय में लोग घरों में झंडा नहीं लहरा सकते थे। लेकिन 22 दिसंबर 2002 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोगों को घरों में झंडा फहराने की अनुमति दी गई थी।

3.झंडे पर लिखना गैरकानूनी

भारतीय झंडे तिरंगे पर कुछ भी लिखना या बनाना गैरकानूनी है। बच्‍चे से लेकर बूढों तक को इसका सम्‍मान करना जरूरी है। भारतीय तिरंगे का अनादर करने पर सजा भी हो सकती है। यहां तक की कोई व्‍यक्ति फ्लैग कोड ऑफ इंडिया में बताए गए नियमों का उल्‍लंघन करता है, तो उसे तीन साल की कैद और जुर्माना भी लग सकता है।

4. 24 घंटों को दर्शाती है चक्र में 24 तिलियां

राष्‍ट्रीय ध्‍वज में मौजूद अशोक चक्र को सम्राट अशोक की ओर से बनाए गए अशोक स्‍तंभ से लिया गया। ये स्‍तंभ इर्सा पूर्व 250 में बनवाए गए थे। इस चक्र में मौजूद 24 तिलियां दिन के 24 घंटों को दर्शाती हैं।

5.झंडे का सम्‍मान करना जरूरी

झंडा स्‍वतंत्र देश का प्रतीक होता है। तिरंगा पूरे देश के लिए राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। इसलिए इसका सम्मान करना बेहद जरूरी है। बच्‍चों को बताएं कि आप झंडे को आप जमीन या फर्श पर नहीं फहरा सकते। इसे पानी में भी नहीं बहाया जा सकता। इसे वाहन या गाड़ी पर लपेटा नहीं जा सकता। यहां तक की किसी भी चीज को झंडे पर रखने की अनुमति नहीं है।

किताबों का जादू या नींद का बुखार? पढ़ते ही क्यों घिर जाता है आलस!


पढ़ाई के समय नींद आना या आलस महसूस करना एक सामान्य अनुभव है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? क्या यह किताबों का जादू है या हमारे शरीर की प्रतिक्रिया? आइए इस विषय को गहराई से समझते हैं।

1. मस्तिष्क की थकान

जब हम पढ़ते हैं, तो हमारा मस्तिष्क नई जानकारी को प्रोसेस करता है। यह प्रक्रिया ऊर्जा की खपत करती है, जिससे थकान महसूस हो सकती है। खासकर जब विषय उबाऊ या कठिन हो, तो मस्तिष्क जल्दी थक जाता है और हमें नींद आने लगती है।

2. शरीर की मुद्रा का प्रभाव

पढ़ाई के दौरान यदि आप झुककर या लेटकर पढ़ते हैं, तो यह स्थिति शरीर को आराम का संकेत देती है। आरामदायक मुद्रा में पढ़ने से मस्तिष्क को लगता है कि यह आराम का समय है, और धीरे-धीरे नींद आने लगती है।

3. आंखों की थकावट

लंबे समय तक किताबों या स्क्रीन पर देखने से आंखें थक जाती हैं। आंखों की मांसपेशियों को आराम की जरूरत होती है, और यह थकावट पूरे शरीर में आलस का कारण बनती है।

4. रक्त प्रवाह में कमी

पढ़ाई के दौरान यदि आप लंबे समय तक एक ही स्थान पर बैठे रहते हैं, तो शरीर के अन्य हिस्सों में रक्त प्रवाह कम हो जाता है। इससे ऊर्जा की कमी महसूस होती है, और नींद का अहसास होता है।

5. सामान्य नींद की कमी

यदि आपकी नींद पूरी नहीं हो रही है, तो पढ़ाई के समय मस्तिष्क आराम की तलाश में होता है। इस वजह से किताब खोलते ही आपको नींद आने लगती है।

6. सामग्री का प्रभाव

यदि पढ़ाई की सामग्री रूचिकर नहीं है, तो मस्तिष्क उसे जल्दी समझने में रुचि नहीं लेता। इसके परिणामस्वरूप आलस और नींद हावी हो जाती है।

उपाय: पढ़ते समय नींद और आलस से बचने के तरीके

1मोटिवेशनल सामग्री से शुरुआत करें:  

रुचिकर विषय पढ़ने से मस्तिष्क सक्रिय रहता है।

2 ब्रेक लें:

हर 30-40 मिनट में 5-10 मिनट का ब्रेक लें।

3 अच्छी रोशनी का प्रयोग करें: मंद रोशनी से आंखें जल्दी थकती हैं।

4 शारीरिक मुद्रा बदलें:

 पढ़ाई के दौरान सीधा बैठें और हर थोड़ी देर में टहलें।

5 हाइड्रेटेड रहें: 

पानी पीने से शरीर ऊर्जावान रहता है।

6 गहरी सांस लें: 

ऑक्सीजन की कमी से आलस बढ़ता है, गहरी सांस लेने से मस्तिष्क सतर्क रहता है।

निष्कर्ष*

पढ़ाई के समय आलस या नींद आना कोई जादू नहीं, बल्कि हमारे शरीर और मस्तिष्क की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। सही आदतें अपनाकर आप इस समस्या से बच सकते हैं और पढ़ाई को प्रभावी बना सकते हैं। तो अगली बार जब किताबों के साथ बैठें, तो इन उपायों को अपनाएं और पढ़ाई का आनंद लें!

हाथियों के लिए सुरक्षित कोरिडोर नहीं होने से एक तरफ जानमाल की हानि हो रही है तो दूसरी तरफ हाथियों की भी जान जा रही है

झारखंड में हाथियों का उत्पात निर्वाध जारी है तो संकरे जगहों में फंसकर हाथियों की जान भी जा रही है. हाथी पूछ रहे हैं कि कहां है- उनका सुरक्षित कॉरिडोर. गुरुवार की रात टुंडी में झुंड से बिछड़े एक हाथी ने जमकर उत्पात मचाया. पहाड़ी से उतरकर झिंगली देवी के खलिहान में लगी आलू और गोभी की फसल को क्षति पहुंचाने लगा. जब वह पहुंची तो  हाथी ने झिंगली देवी पर हमला बोल उसे पटक दिया.  जमीन पर गिरने से महिला की कमर टूट गई. हाथी का रौद्र रूप देख उसका पति भागने लगा. इस दौरान वह गिरकर चोटिल हो गया. महिला का इलाज फिलहाल धनबाद के सरकारी अस्पताल में चल रहा है.  

इधर गुरुवार की रात को ही बोकारो थाना क्षेत्र के महुआटांड़ में जंगली हाथी 5 फीट चौड़े कुएं में गिरकर फंस गया. दम घुटने से उसकी मौत हो गई.

कुएं में गिरा हाथी फसल खाने पंहुचा था 

 

 ग्रामीणों के अनुसार हाथी अपने दल से बिछड़ कर आलू की फसल खाने पहुंचा था. अंधेरे की वजह से वह कुएं में गिर गया. कुएं की चौड़ाई कम होने की वजह से हाथी रात भर फंसा रह गया. दम घुटने से उसकी मौत हो गई. शुक्रवार सुबह ग्रामीणों ने हाथी को देखा. फिर मुखिया को सूचना दी. मुखिया ने वन विभाग को जानकारी दी. उसके बाद क्रेन मंगा कर हाथी को निकाला गया. पोस्टमार्टम करने के बाद उसे तेनुघाट जंगल में दफना दिया गया है. बता दे कि टुंडी के रहने वाले हाथियों से सुरक्षा की गुहार लगा रहे है. उनकी कोई सुनने वाला नहीं है. टुंडी से झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो लगातार दूसरी बार चुनाव जीते है. ऐसे में उन लोगों को उम्मीद थी कि उनकी परेशानियों पर झारखंड सरकार तुरंत एक्शन में दिखेगी.  

लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. यह बात भी सच है कि टुंडी में हाथियों का आतंक कोई एक दिन में नहीं हुआ है. वन विभाग ने हाथियों को दूर करने की जो भी योजनाएं बनाई, कोई कारगर साबित नहीं हुई. हाथियों का आतंक और उत्पात जारी है.पहाड़ से उतरकर हाथी गांव में पहुंच जाते है. फसल को नुकसान पहुंचाते है. घर तोड़ देते है. लोगो की जान तक ले लेते है.