आंबेडकर का जिक्र कर अमित शाह ने ऐसा क्या कहा, भड़क गई कांग्रेस, गृह मंत्री से माफी की मांग

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संविधान पर संसद में चल रही बहस के दौरान मंगलवार को गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणियों पर कांग्रेस ने सख़्त एतराज़ जताया है। अमित शाह अपने भाषण के दौरान डॉ बीआर आंबेडकर की विरासत पर बोल रहे थे।कांग्रेस ने राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह की आंबेडकर के बारे में टिप्पणी के लिए उनसे माफी की मांग की। विपक्षी दल ने आरोप लगाया कि यह टिप्पणी दर्शाती है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेताओं में बी आर आंबेडकर के प्रति 'काफी नफरत' है।

अमित शाह के पूरे भाषण के एक छोटे हिस्से को लेकर काफ़ी विवाद हो रहा है। दरअसल, शाह ने कहा कि आजकल आंबेडकर का नाम लेना एक फ़ैशन बन गया है। उन्होंने कहा, अब ये एक फैशन हो गया है। आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।

मनुस्मृति मानने वाले आंबेडकर से असहमत- राहुल गांधी

अमित शाह के इस बयान पर कांग्रेस पार्टी और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आपत्ति जताई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर राहुल गांधी ने लिखा, "मनुस्मृति मानने वालों को आंबेडकर जी से तकलीफ़ बेशक होगी ही।"

भाजपा-आरएसएस तिरंगे के खिलाफ-खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी शाह पर निशाना साधते हुए कहा, गृहमंत्री ने जो आज भरे सदन में बाबासाहेब का अपमान किया है, उससे ये फिर एक बार सिद्ध हो गया है कि 'भाजपा-आरएसएस तिरंगे के खिलाफ थे। उनके पुरखों ने अशोक चक्र का विरोध किया। संघ परिवार के लोग पहले दिन से भारत के संविधान के बजाय मनुस्मृति लागू करना चाहते थे।कांग्रेस अध्यक्ष ने ‘एक्स’ पर कहा, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने ये नहीं होने दिया, इसलिए उनके प्रति इतनी घृणा है। खरगे ने कहा, मोदी सरकार के मंत्रीगण ये कान खोलकर समझ लें कि मेरे जैसे करोड़ों लोगों के लिए बाबा साहेब डॉ आंबेडकर जी भगवान से कम नहीं। वह दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक व ग़रीबों के मसीहा हैं और हमेशा रहेंगे।

अमित शाह ने 90 मिनट तक झूठ बोला-जयराम रमेश

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राज्यसभा भाषण पर कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में 90 मिनट तक भाषण दिया और अन्य भाजपा नेताओं ने भी भाषण दिया। लोकसभा में 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की बात हुई लेकिन राज्यसभा में 'एक भाषण अनेक वक्ता' की स्थिति रही। केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने 90 मिनट तक झूठ बोला, यह सिर्फ कांग्रेस पार्टी पर हमला था, यह भाषण नहीं था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता का अपमान किया।

अमित शाह ने क्या कहा?

अपने भाषण में अमित शाह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पहली कैबिनेट से आंबेडकर के इस्तीफ़ा का ज़िक्र कर रहे थे। कांग्रेस की ओर इशारा करते हुए अमित शाह ने कहा कि अब चाहे आंबेडकर का नाम सौ बार ज़्यादा लो लेकिन साथ में आंबेडकर जी के प्रति आपका भाव क्या है, ये वह बताएंगे। अमित शाह ने कहा, आंबेडकर ने देश की पहली कैबिनेट से इस्तीफ़ा क्यों दे दिया? उन्होंने कई बार कहा कि वह अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ होने वाले व्यवहार से असंतुष्ट हैं। उन्होंने सरकार की विदेश नीति से असहमति जताई थी अनुच्छेद 370 से भी सहमत नहीं थे। आंबेडकर को आश्वासन दिया गया था, जो पूरा नहीं हुआ, इसलिए कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया था। अमित शाह ने कहा, जिसका विरोध करते हो उसका वोट के लिए नाम लेना कितना उचित है?

एनएसए अजीत डोभाल का चीन दौरा, जानें 5 साल बाद हो रही ये बैठक कितनी अहम?

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भारत और चीन के रिश्ते पर जमी बर्फ अब पिघलती दिख रही है। दोनों देशों के बीच एलएसी पर सीमा विवाद के कारण बीते कुछ सालों में तनाव काफी बढ़ गया था। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बाद हालात पटरी पर आते दिख रहे हैं। इसी क्रम में मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल बीजिंग पहुंचे हैं। लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद उनकी चीन की आधिकारिक यात्रा है। इससे पहले एसआर संवाद दिसंबर 2019 में नई दिल्ली में हुआ था।

अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को कई मुद्दों पर चर्चा की। अजीत डोभाल अपने चीनी समकक्ष और विदेश मंत्री वांग यी के साथ विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 23वें दौर की वार्ता की। इस दौरान पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर दोनों देशों के बीच 21 अक्टूबर को हुए समझौते के बाद द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इस वार्ता का उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय तक प्रभावित रहे द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करना है। साथ ही दोनों देशों के बीच आई खटास को दूर करना है।

चीनी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

अजीत डोभाल और वांग यी की विशेष बैठक से पहले चीनी विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने और मतभेदों को दूर करने के लिए भारत संग काम करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण आम समझ को लागू करने, एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने, बातचीत और संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को मजबूत करने, ईमानदारी और सद्भाव के साथ मतभेदों को ठीक से सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को जल्द से जल्द स्थिर और स्वस्थ विकास की पटरी पर लाने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए तैयार है।

कम होते तनाव के बीच दौरा कितना अहम

एनएसए का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब दोनों देशों ने डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों से अपनी सेना को पीछे हटाने के समझौते पर सहमति बनाई है। खबरों के मुताबिक दोनों ओर से को-ऑर्डिनेट पेट्रोलिंग भी शुरू हो गई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए कॉर्प्स कमांडरों की 21 राउंड की बैठक हो चुकी है, इसके अलावा डिप्लोमेटिक लेवल पर भी कई दौर की बातचीत हुई है।

मई 2020 में शुरू हुआ था सैन्य गतिरोध

दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ था। उसी साल जून में गलवां घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच घातक झड़प हुई थी, जिससे दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव आ गया था। सैनिकों की वापसी के समझौते को 21 अक्तूबर को अंतिम रूप दिया गया था। समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिन बाद पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कजान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत की थी। बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता सहित कई वार्ता तंत्रों को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की थी।

चीन बनाएगा दुनिया का सबसे बड़ा कृत्रिम-द्वीप हवाई अड्डा, 43 मिलियन यात्रियों की क्षमता

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) की रिपोर्ट के अनुसार, चीन दुनिया का सबसे बड़ा कृत्रिम-द्वीप हवाई अड्डा बना रहा है, ताकि उत्तरपूर्वी बंदरगाह शहर डालियान की स्थिति को क्षेत्रीय परिवहन केंद्र के रूप में बढ़ाया जा सके। लियाओनिंग प्रांतीय सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में निर्माणाधीन डालियान जिनझोउवान अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 20 वर्ग किलोमीटर (7.72 वर्ग मील) में फैला होगा।

पूरा होने के बाद, नया हवाई अड्डा हांगकांग अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, जो 12.48 वर्ग किलोमीटर में फैला है, और जापान के कंसाई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, जो 10.5 वर्ग किलोमीटर में फैला है, को पीछे छोड़ देगा - दोनों ही कृत्रिम द्वीपों पर स्थित हैं। "डालियान के लोगों का कहना है कि यह सबसे बड़ा है, यह बिल्कुल वैसा ही है," विमानन परामर्शदात्री संस्था के संस्थापक ली हनमिंग ने SCMP को बताया।

अपतटीय जिनझोउवान हवाई अड्डा डालियान की सेवा करेगा, जो अपने रणनीतिक स्थान के कारण पड़ोसी जापान और दक्षिण कोरिया के साथ व्यापार का केंद्र है। बोहाई जलडमरूमध्य के उत्तरी छोर पर एक प्रायद्वीप पर स्थित, छह मिलियन से अधिक लोगों का यह शहर तेल रिफाइनरियों, शिपिंग, रसद और तटीय पर्यटन के लिए एक केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। जिनझोउवान मुख्य भूमि चीन का पहला हवाई अड्डा है जो पूरी तरह से एक कृत्रिम अपतटीय द्वीप पर बनाया गया है। प्रांतीय सरकार के अनुसार, इसमें अंततः चार रनवे और 900,000 वर्ग मीटर (9.69 मिलियन वर्ग फीट) में फैला एक विशाल टर्मिनल होगा। टर्मिनल शुरू में सालाना 43 मिलियन यात्रियों को संभालेगा - मौजूदा डालियान झोउशुइज़ी हवाई अड्डे की क्षमता से दोगुना से भी अधिक - और प्रति वर्ष 80 मिलियन यात्रियों को समायोजित करने के लिए विस्तारित किया जाएगा।

कनाडा स्थित एक वैश्विक उद्योग समूह, एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल ने कहा कि हवाई अड्डा पूरी तरह से चालू होने के बाद सालाना एक मिलियन टन कार्गो का प्रबंधन भी करेगा। पूरी परियोजना पर $4.3 बिलियन की लागत आने की उम्मीद है और इसे 2035 तक पूरा करने की योजना है। लियाओनिंग प्रांतीय सरकार ने बताया कि, अगस्त तक, 77,000 वर्ग मीटर के पुनर्ग्रहण क्षेत्र पर "गहरी नींव उपचार" पूरा हो चुका था। भूमि सुधार और टर्मिनल भवन की नींव के लिए भी योजनाएँ चल रही हैं।

वर्तमान डालियान झोउशुइज़ी हवाई अड्डा, जो लगभग एक सदी पहले जापानी कब्जे में खोला गया था, कई विस्तारों से गुजरा है, लेकिन अब यह अपनी अधिकतम डिज़ाइन क्षमता तक पहुँच गया है। सिन्हुआ के अनुसार, पिछले साल हवाई अड्डे ने 658,000 अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को संभाला। ली हनमिंग ने बताया कि मौजूदा हवाई अड्डे का पहाड़ों से घिरी घाटी में स्थित होना, पायलटों के लिए नेविगेट करना मुश्किल बनाता है, खासकर प्रतिकूल मौसम में। उन्होंने कहा, "इसका स्थान प्रतिकूल मौसम के दौरान उड़ानों को काफी खतरनाक बना सकता है।"

हालांकि, ली ने यह भी चेतावनी दी कि द्वीप हवाई अड्डों के साथ अनूठी चुनौतियाँ आती हैं। उन्होंने कहा, "यदि द्वीप हवाई अड्डे एकल पुलों द्वारा प्राकृतिक भूमि से जुड़े हैं, तो उन्हें कट जाने का विशेष रूप से उच्च जोखिम होता है," उन्होंने भूकंप, आंधी या जहाज़ की टक्कर जैसी दुर्घटनाओं के लिए ऐसे बुनियादी ढाँचे की भेद्यता को देखते हुए कहा। चीन का आक्रामक बुनियादी ढांचा विस्तार जारी है, जुलाई तक 22 नए हवाई अड्डों का निर्माण चल रहा है, जिनकी कुल कीमत 19.6 बिलियन डॉलर है, यह जानकारी मार्केट इंटेलिजेंस फर्म CAPA सेंटर फॉर एविएशन ने दी है। एक बार पूरा हो जाने पर, डालियान जिनझोउवान अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से क्षेत्र की कनेक्टिविटी में बदलाव आने की उम्मीद है और हवाई परिवहन और व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में डालियान की भूमिका को मजबूत करने की उम्मीद है।

रूस में बड़ा बम धमाका, न्यूक्लियर डिफेंस चीफ की मौत

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रूस की राजधानी मॉस्को में मंगलवार को एक बड़ा विस्फोट हुआ। विस्फोट में रूसी सशस्त्र बल के एक वरिष्ठ जनरल की मौत हो गई है। रूस के परमाणु सुरक्षा के प्रभारी रूसी जनरल एक बम विस्फोट में मारे गए। लेफ्टिनेंट जनरल इगोर किरिलोव मंगलवार को एक आवासीय ब्लॉक छोड़ रहे थे, जब स्कूटर में छिपाकर रखे गए बम में विस्फोट हो गया।

रूसी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बम को दूर से ऑपरेट किया गया और इसमें लगभग 300 ग्राम विस्फोटक थे। बीते सोमवार (16 दिसंबर) को किरिलोव पर यूक्रेन में प्रतिबंधित रासायनिक हथियारों के उपयोग का आरोप लगाया गया था। हालांकि, किरिलोव को पहले से ही यूके ने रूस के रासायनिक हथियारों के उपयोग में उनकी भूमिका के लिए मंजूरी दे दी गई थी।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने रूस की जांच समिति के हवाले से बताया कि रियाज़ान्स्की प्रॉस्पेक्ट पर एक अपार्टमेंट इमारत के बाहर हुए विस्फोट में किरिलोव का सहायक भी मारा गया. यह इमारत क्रेमलिन से लगभग सात किमी (4 मील) दक्षिण-पूर्व में है। जांच समिति ने कहा, "रूसी संघ के सशस्त्र बलों के विकिरण, रासायनिक और जैविक सुरक्षा बलों के प्रमुख इगोर किरिलोव और उनके सहायक मारे गए।"

रूसी टेलीग्राम चैनलों पर पोस्ट की गई तस्वीरों में मलबे से अटी पड़ी एक इमारत का टूटा हुआ प्रवेश द्वार और खून से सने बर्फ में दो शव पड़े हुए दिखाई दे रहे हैं।

कनाडा की वित्त मंत्री ने दिया इस्तीफा, क्या ट्रूडो भी छोड़ेंगे प्रधानमंत्री का पद?

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कनाडा में एक बड़ा राजनीतिक भूचाल आया है। वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जस्टिन ट्रूडो से टकराव के चलते ही देश की उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने सोमवार को पद से इस्तीफा दे दिया। दोनों के बीच ट्रंप के संभावित टैरिफ को लेकर मतभेद था। उन्होंने उसी दिन पद से इस्तीफा दिया, जब उन्हें संसद में बजट पेश करना था।

फ्रीलैंड ने जाते-जाते प्रधानमंत्री ट्रूडो के नाम एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने लिखा, ‘आप मुझे वित्त मंत्री के तौर पर देखना नहीं चाहते। बेहतर यही है कि मैं ईमानदारी से मंत्रीमंडल से बाहर हो जाऊं।’ इस पत्र में फ्रीलैंड ने बताया है कि पिछले हफ्ते ट्रूडो ने उन्हें वित्त मंत्री के पद से हटाने की कोशिश की थी और उन्हें मंत्रिमंडल में कोई अन्य भूमिका देने की पेशकश की थी। उन्होंने अपने इस्तीफे में कहा कि मंत्रिमंडल छोड़ना ही एकमात्र ईमानदार और व्यावहारिक रास्ता है।

अपने पत्र में फ्रीलैंड ने कहा कि कनाडा गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है और उन्होंने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस धमकी का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कनाडाई उत्पादों पर 25 फीसदी शुल्क लगाने की बात की थी। फ्रीलैंड ने लिखा, हमें अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत रखना होगा, ताकि हम किसी संभावित शुल्क युद्ध के लिए तैयार रह सकें।

फ्रीलैंड ने यह भी कहा, हमें प्रांतीय क्षेत्रीय प्रमुखों के साथ ईमानदारी और विनम्रता के साथ काम करना चाहिए, ताकि प्रतिक्रिया देने वाली कनाडा की सच्ची टीम का निर्माण हो सके। कनाडा के सभी 13 प्रांतों के प्रमुख अभी टोरंटों में 'काउंसिल ऑफ द फेडरेशन' की बैठक में हैं, जिसकी अध्यक्षता ओंटारियों के मुख्यमंत्री डग फोर्ड कर रहे हैं। उनके इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ फाइनेंशियल पॉलिसीज को लेकर उनके मतभेद खुलकर सामने आ गए।

इस इस्तीफ़े को ट्रूडो के लिए एक अप्रत्याशित झटका माना जा रहा है। ट्रूडो पहले ही कनाडा में अल्पमत सरकार चला रहे हैं।समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़ लिबरल पार्टी के नेता ट्रूडो पहले ही सर्वेक्षणों में कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पीएर पॉलिवेयर से 20 फ़ीसदी पीछे चल रहे हैं।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी के त्यागपत्र को साल 2015 में सत्ता संभालने के बाद ट्रूडो के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया जा रहा है। ये ट्रूडो कैबिनेट के किसी सदस्य का पहला खुला विरोध और इस क़दम के बाद सत्ता पर उनकी पकड़ ढीली पड़ने के आसार हैं।

क्रिस्टिया फ्रीलैंड के उपप्रधानमंत्री का पद छोड़ने के बाद ट्रूडो पर हमले बढ़ गए हैं। कई विपक्षी दलों ने ट्रूडो से इस्तीफ़े की मांग की है।ट्रूडो के सहयोगी रहे कनाडा की एनडीपी पार्टी के नेता जगमीत सिंह ने भी प्रधानमंत्री से इस्तीफ़ा मांगा है।एक्स पर पोस्ट किए अपने संदेश में जगमीत सिंह ने कहा, "आज मैं ट्रूडो से इस्तीफ़े की मांग करता हूँ। अब उन्हें जाना होगा। इस वक़्त कनाडा के लोग महंगाई से परेशान हैं। लोगों को अपनी बजट के हिसाब से घर तक नहीं मिल रहे हैं। ट्रंप ने 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की बात की है। इस सब के बीच लिबरल पार्टी कनाडा के लोगों के लिए लड़ने के बजाय आपस में लड़ रही है।"

लोकसभा में एक देश-एक चुनाव विधेयक स्वीकार, जानें पक्ष-विपक्ष में कितने वोट पड़े?

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लोकसभा में एक देश एक चुनाव विधेयक स्वीकार कर लिया गया है। इसके लिए मतदान हुआ, जिसमें 269 वोट विधेयक के पक्ष में पड़े और 198 सांसदों ने विधेयक का विरोध किया। वन नेशन, वन नेशन को लेकर सदन में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक डिविज़न हुआ। इस बिल के पक्ष में 220 सांसदों ने वोटिंग की। वहीं 149 सांसदों ने इसका विरोध किया। हालांकि बाद में फिर से मत विभाजन हुआ। ईवीएम के जरिए कराई गई वोटिंग में बिल के पक्ष में 269 वोट पड़े, जबकि विरोध में 198 वोट डाले गए।

इससे पहले 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक को मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को सदन के पटल पर रखा। सदन में चर्चा के दौरान कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे बड़े विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया।

जेपीसी में जाएगा वन नेशन वन इलेक्शन बिल

वन नेशन,वन इलेक्शन बिल पर जारी विरोध के बीच विपक्ष ने मांग की कि बिल को जेपीसी में भेजा जाएगा। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बिल को जेपीसी को भेजा जाएगा। जेपीसी में सारी चर्चा होगी। जेपीसी के रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट फिर से चर्चा करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, जब कैबिनेट में एक राष्ट्र एक चुनाव बिल आया तो पीएम मोदी ने कहा कि इसे संसद की संयुक्त समिति को भेजा जाना चाहिए।

नई दिल्ली सीटःअरविंद केजरीवाल बनाम संदीप दीक्षित, कौन किसपर पड़ेगा भारी?

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नई दिल्ली विधानसभा सीट पिछले 6 विधानसभा चुनाव से दिल्ली को मुख्यमंत्री देती आ रही है। 1998 से लेकर 2020 तक के चुनाव में यहां से जीते विधायक ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। पहले तीन टर्म शीला दीक्षित ने यहां से जीत हासिल की थी। यह सीट उनकी विरासत बन गई थी। बाद में यह केजरीवाल की सीट बन गई। वह यहां से लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन, इस बार लड़ाई दिलचस्प होती दिख रही है। यहां के वर्तमान विधायक और पूर्व सीएम केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली के पूर्व सीएम के बेटे और दो पूर्व सांसदों ने ताल ठोक दी है।

अब तक दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं हुई है, हालांकि इसके फरवरी में आयोजित होने की संभावना है। जिसको लेकर राजनीतिक पार्टियां एक्शन मोड में आ चुकी हैं। आम आदमी पार्टी ने अब तक विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की दो सूची जारी की है। वहीं, बीजेपी ने अब तक उम्मीदवारों की कोई सूची जारी नहीं की है। बीजेपी अब तक कछुए वाली फॉर्म में दिखाई दे रही है। हालंकि ये चाल उसे जीत की दहलीज तक लेकर जाएगी या नहीं ये आने वाला वक्त तय करेगा। बहरहाल सबका फोकस सबसे ज्यादा हॉट बन चुकी नई दिल्ली विधानसभा सीट पर है।

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल यहां से चुनावी मैदान में हैं।कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उनके सामने खड़ा किया है। अरविंद केजरीवाल इस सीट से लगातार तीन बार से विधायक हैं। वहीं संदीप दीक्षित की मां और दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित भी इस सीट से लगातार तीन बार विधायक रही हैं। सवाल उठ रहे हैं कि कौन किसपर भारी पड़ेगा? जनता का आशिर्वाद किसे मिलेगा?

आम आदमी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता का कहना है कि संदीप दीक्षित केजरीवाल के सामने चुनौती नहीं हैं। उन्होंने कहा, संदीप दीक्षित केजरीवाल के सामने कोई चुनौती नहीं हैं। शीलाजी के बाद संदीप दीक्षित ने नई दिल्ली सीट से कोई लगाव नहीं रखा है, दिल्ली में कांग्रेस का कोई वजूद भी नहीं है।

भले ही आम आदमी पार्टी या दूसरे राजनीतिक दल ये माने की केजरीवाल के सामने संदीप दीक्षित का वजूद नहीं है। हालांकि, नई दिल्ली सीट पर संदीप दीक्षित के आ जाने पर कांग्रेस भी दौड़ में शामिल हो गई है, अन्यथा वो रेस से बाहर थी।

जहां तक नई दिल्ली विधानसभा सीट पर की बात है, वो इस बार कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है। दरअसल केजरीवाल के प्रति जनता में भरोसा थोड़ा कम हुआ है। उनपर लगे आरोपों से पार्टी की साख के साथ-साथ उनकी छवि को भी नुकसान पहुंचा है। वहीं डीटीसी और जल विभाग के घाटे में जाने का मसला भी उनके गले की फांस बनता दिख रहा है।

वहीं बात संदीप दीक्षित की करें तो उनकी छवि जनता के बीच साफ है, लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा ये कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा। शीला दीक्षित के निधन के बाद अगर कांग्रेस उन्हें चुनाव लड़ने के लिए यहां से उतारती तो शायद उन्हें थोड़े सिम्पेथी वोट मिल जाते। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया और किरण वालिया को टिकट देकर रिस्क उठाया।

बता दें कि आम आदमी पार्टी ने 2013 में दिल्ली में पहली बार चुनाव लड़ा और 28 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं बीजेपी ने सबसे ज्यादा 31 सीटें जीतीं लेकिन स्थानीय स्तर पर सहमति नहीं बनने के कारण सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। उधर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के समर्थन से सत्ता पर काबिज हो गई। हालांकि, 49 दिन सरकार में रहने के बाद अचानक कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया।

इसके बाद साल 2015 में हुए चुनाव में ‘झाड़ू’ ने सब साफ कर दिया। 31 सीटों से बीजेपी तीन सीटों पर सिमटकर रह गई। कांग्रेस के तो ‘हाथ’ खाली रह गए।

दरअसल, 2013 में बीजेपी के पीछे हटने का फायदा कहीं ना कहीं आपको मिला। ये बात इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया। मतलब कांग्रेस का वोट ट्रांसफर होकर आप के साथ जुड़ गया। दिल्ली में कांग्रेस के कमज़ोर होने की सबसे बड़ी वजह यही है कि उसके वोट बैंक पर पूरी तरह से आम आदमी पार्टी ने कब्ज़ा कर लिया। शीला दीक्षित ने अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में दिल्ली में कांग्रेस के पक्ष में एक मज़बूत वोट बैंक तैयार कर दिया था, उन्होंने दिल्ली में रहने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को कांग्रेस के साथ मज़बूती से जोड़ दिया। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के साथ-साथ मुसलमान भी कांग्रेस के साथ मज़बूती से जुड़ गए थे।

लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे द्वारा चलाए गए आंदोलन से बने माहौल में कांग्रेस के वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से जुड़ गया और फिर जुड़ता ही चला गया। कांग्रेस अपने उसी वोट बैंक को आम आदमी पार्टी से नहीं छीन पा रही है। अब देखना ये है कि शीला दीक्षित के बेटे के जरिए कांग्रेस के ‘हाथ’ कुछ लगता भी है या नहीं?

लोकसभा में पेश हुआ एक देश एक चुनाव बिल, विपक्ष ने किया विरोध, जेपीसी में भेजेगी सरकार

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वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक आज लोकसभा में पेश हो गया है।केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल मंगलवार को लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। इसके बाद, विधेयक पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए इसे संसद की संयुक्त समिति को भेजा जा सकता है।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कुछ सदस्यों ने बिल के इंट्रोडक्शन पर आपत्ति की है जो ज्यादातर लेजिस्लेटिव पर ही है। एक विषय आया कि आर्टिकल 368 का ये उल्लंघन करता है। ये आर्टिकल संविधान में संशोधन की प्रक्रिया बताता है और संसद को शक्ति देता है। एक विषय आया अनुच्छेद 327 सदन को विधानमंडलों के संबंध में चुनाव के प्रावधान का अधिकार देता है। इसमें कहा गया है कि संविधान के प्रावधान के तहत विधानमंडल के किसी भी चुनाव के संबंध में प्रावधान कर सकती है। ये संवैधानिक है। सभी आवश्यक मामले इसमें शामिल हैं। अनुच्छेद 83 सदनों की अवधि और राज्यों के विधानमंडल के चुनाव की अवधि को पुनर्निधारित किया जा सकता है। संविधा के सातवें अनुच्छेद के प्रावधान का उल्लेख करते हुए कानून मंत्री ने कहा कि ये केंद्र को शक्ति प्रदान करता है। ये संविधान सम्मत संशोधन है।

जेपीसी में जाएगा वन नेशन वन इलेक्शन बिल

वन नेशन,वन इलेक्शन बिल पर जारी विरोध के बीच विपक्ष ने मांग की कि बिल को जेपीसी में भेजा जाएगा। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बिल को जेपीसी को भेजा जाएगा। जेपीसी में सारी चर्चा होगी। जेपीसी के रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट फिर से चर्चा करेगी। अगर मंत्री जी(अर्जुन राम मेघवाल) ये बताते हैं तो इसे जेपीसी के पास भेजा जा सकता है। तब मेघवाल ने कहा कि रूल 74 के तहत सरकार जेपीसी का प्रस्ताव लाएगी। सरकार की तरफ से ये मंशा भी है।

टीडीपी ने की 'अटूट' समर्थन देने की घोषणा

चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी ने लोकसभा में पेश किए गए एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को ‘अटूट’ समर्थन देने की घोषणा की है। वहीं शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट ने भी इस बिल का समर्थन किया। वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक का कांग्रेस और सपा ने विरोध किया है। इसके अलावा टीएमसी और डीएमके ने भी बिल का विरोध किया है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, शिवसेना यूबीटी, एआईएमआईएम, सीपीएम और एनसीपी शरद पवार ने बिल का विरोध किया है। टीडीपी ने बिल का समर्थन किया है।

सत्ता को केंद्रीकृत करने का प्रयास है- सुप्रिया सुले

एनसीपी (एसपी)सांसद सुप्रिया सुले ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने “वन नेशन, वन इलेक्शन” विधेयक का विरोध किया है और इसे संघवाद और संविधान की कीमत पर सत्ता को केंद्रीकृत करने का प्रयास बताया है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह इस विधेयक को तुरंत वापस ले या आगे के परामर्श के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेज दे।

असदुद्दीन ओवैसी ने जमकर किया वन नेशन वन इलेक्शन बिल का विरोध

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन बिल का मैं विरोध करता हूं। ये बिल लोकतांत्रिक स्वराज के अधिकारों का उल्लंघन करता है। राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का नहीं होगा। ये अपने आप में संविधान का उल्लंघन है। संघवाद के प्रिसिंपल के खिलाफ है ये बिल।

फिलिस्तीन के बाद बांग्लादेश के हिंदुओं को समर्थन, संसद में ऐसे पहुंची प्रियंका गांधी

#priyankagandhiwithabagofsupportforbangladeshi_hindus

कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी का बैन इन दिनों चर्चा में हैं। प्रियंका गांधी सोमवर को संसद में 'फिलिस्तीन' वाला बैग लेकर पहुंची थीं। अब मंगलवार को संसद में बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के समर्थन वाला बैग लेकर पहुंचीं। प्रियंका गांधी के बांग्लादेश वाले बैग पर 'बांग्लादेश के हिंदू और ईसाइयों के साथ खड़े हों' लिखा हुआ है।

आज प्रियंका गांधी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय पर हो रहे हिंसा के खिलाफ लिखे एक स्लोगन वाला हैंडबैंग लेकर आईं। इसके बाद एक बार फिर उनके हैंडबैग की चर्चा शुरू हो गई। कंधे पर ‘बांग्लादेश’ का बैग लिए प्रियंका गांधी मंगलवार को संसद परिसर में बांग्लादेश में हिंदुओं और ईसाइयों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ कांग्रेस सांसदों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करती नजर आईं।

प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस के अन्य सांसदों ने भी संसद के बाहर बांग्लादेश अल्पसंख्यकों के पक्ष में प्रदर्शिन किया। साथ ही 'भारत सरकार होश में आओ' और 'बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को न्याय दो' के नारे भी लगाए।

प्रियंका ने हिंसा को लेकर लगातार उठाई आवाज

प्रियंका गांधी लगातार बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रही हिंसा को लेकर आवाज उठाती रही हैं। हाल ही में इस्कॉन मंदिर के पुजारी की गिरफ्तारी को लेकर भी उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट किया था। उन्होंने कहा था, बांग्लादेश में इस्कॉन टेंपल के संत की गिरफ्तारी और अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ लगातार हो रही हिंसा की खबरें अत्यंत चिंताजनक हैं। साथ ही उन्होंने भारत सरकार से हस्तक्षेप करने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा, मेरी केंद्र सरकार से अपील है कि इस मामले में हस्तक्षेप किया जाए और बांग्लादेश सरकार के समक्ष अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का मुद्दा मजबूती से उठाया जाए।

पहले फिलिस्तीन को दिया समर्थन

इससे पहले सोमवार को लोकसभा सांसद प्रियंका गांधी संसद में 'फिलिस्तीन' वाला बैग लेकर पहुंची थीं। फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए Palestine लिखा हुआ बैग पहन कर संसद में पहुंचीं और उन्होंने बड़ा संदेश देने की कोशिश की। उनके बैग पर एक सफेद रंग का कबूतर भी बना था जोकि शांति का संकेत देता है।फिलिस्तीन वाले बैग के चलते प्रियंका गांधी को सत्ता पक्ष के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था।

हालंकि आज फिर वह संसद में नए बैग के साथ पहुंच गईं। माना जा रहा है कि आज के बैग से प्रियंका गांधी ने बीजेपी को जवाब दिया

भारत के खिलाफ नहीं होने देंगे श्रीलंकाई जमीन का इस्तेमाल', एक ही लाइन से दो देशों को अलग-अलग संदेश

#will_not_allow_our_land_to_be_used_against_india_dissanayake_promises

भारत दौरे पर आए श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने भरोसा दिलाया है कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत की सुरक्षा के खिलाफ करने की अनुमति नहीं देंगे। दिसानायके का आश्वासन ऐसे समय में आया है, जब भारत ने 2022 में कोलंबो के समक्ष चीनी शोध पोत को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की इजाजत देने पर आपत्ति जताई थी। बता दें कि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए हैं। इस दौरान उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और दोनों नेताओं ने एक दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की है।

भारत दौरे पर आए श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने दिल्ली में रक्षा सहयोग पर चर्चा के दौरान संयुक्त बयान में भरोसा दिलाया कि वह अपनी जमीन का किसी भी तरह से भारत की सुरक्षा के खिलाफ उपयोग करने की अनुमति नहीं देंगे।भारतीय प्रधानमंत्री के साथ जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिसानायके ने कहा, मैंने भारत के प्रधानमंत्री को यह आश्वासन भी दिया है कि हम अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी भी तरह से ऐसे काम के लिए नहीं होने देंगे जो भारत के हित के लिए हानिकारक हो। भारत के साथ श्रीलंका का सहयोग निश्चित रूप से फलेगा-फूलेगा और मैं आपको भारत के लिए हमारे निरंतर समर्थन के बारे में आश्वस्त करना चाहता हूं।

दरअसल श्रीलंका में चीन के बढ़ते दखल से भारत की चिंता बढ़ी हुई है। दो साल पहले जब श्रीलंका कर्ज चुकाने में विफल रहा था तो चीन ने उसके हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया था। चीन ने यहां पर अपने नौसैनिक निगरानी और जासूसी जहाज को खड़ा किया। अगस्त 2022 में चीनी नौसेना के जहाज युआन वांग 5 ने दक्षिणी श्रीलंका के हंबनटोटा में डॉक किया। इसके बाद दो चीनी जासूसी जहाजों को नवंबर 2023 तक 14 महीने के भीतर श्रीलंका के बंदरगाहों में डॉक करने की अनुमति दी गई थी। चीनी शोध जहाज 6 अक्टूबर 2023 में श्रीलंका पहुंचा और उसने कोलंबो बंदरगाह पर डॉक किया। इस जहाज के डॉक करने का उद्देश्य समुद्री पर्यावरण पर रिसर्च थी।

भारत और अमेरिका ने इसे लेकर चिंता जताई थी। नई दिल्ली ने आशंका जताई थी कि चीनी जहाज जासूसी जहाज हो सकते हैं और कोलंबो से ऐसे जहाजों को अपने बंदरगाहों पर डॉक करने की अनुमति न देने का आग्रह किया था। भारत द्वारा चिंता जताए जाने के बाद श्रीलंका ने जनवरी में अपने बंदरगाह पर विदेशी शोध जहाजों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब श्रीलंका और भारत के बीच हुए रक्षा समझौते के बाद श्रीलंका ने अपना रुख साफ किया है।