बेगूसराय में किसानों ने कहा- गलत तरीके से रद्द की गई जमाबंदी, जान दे देंगे पर जमीन नहीं
बेगूसराय में प्रशासन ने सिमरिया गंगा घाट के आसपास औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए 700 एकड़ जमीन चिह्नित किया है। यह मामला तूल पकड़ने लगा है। अब बरौनी सीओ ने 2 दिसंबर तक आपत्ति जमा करने की सूचना निकाली है। इससे किसानों में काफी आक्रोश है। आज आक्रोशित किसानों ने मल्हीपुर काली स्थान परिसर में बैठक की है।
बैठक में चकिया, मल्हीपुर, विष्णुपुर, बीहट, कसहा और बरियाही सहित आसपास के गांव के सैकड़ों किसान शामिल हुए। इन लोगों का कहना है कि खेसरा नंबर- 890 और 891 में 1931 बीघा जमीन है। इस जमीन की जमाबंदी सरकार ने निरस्त कर दी है। हम लोगों को बंदोबस्ती से 1932 में यह जमीन हासिल हुई थी।
बैठक में शशि भूषण सिंह, रामाशीष सिंह, सुधीर सिंह, रजनीश पटेल, मुकेश राय, जापान राय, बिहट नगर परिषद के उपमुख्य पार्षद ऋषिकेश कुमार, शशि भूषण यादव, रंजीत यादव सहित सभी किसानों ने कहा कि हम लोगों ने धरना-प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है। जान दे देंगे, लेकिन अपनी जमीन नहीं देंगे।
जबरदस्ती होगी तो इसी जमीन पर मर जाएंगे। जब जमीन ही नहीं रहेगी तो जिंदा रहकर क्या करेंगे, क्या खाएंगे। सरकार का यह निर्णय पूरी तरह से गलत है। हमारी जमीन पर औद्योगिक क्षेत्र बनाने का निर्णय ले लिया गया। 3 दिन पहले डीएम साहब आएं और अधिकारी को चिह्नित करने का भी निर्देश दे दिया। यह कहीं से भी उचित नहीं है।
कहा कि हमारे पूर्वज इस पर खेती करते आ रहे हैं। जमीन का कागज हमारे पास है। इसका राजस्व लगान रसीद हम लोग कटवाते आ रहे हैं। अब राजस्व विभाग की वेबसाइट से इस जमीन का डिटेल हटा दिया गया है। 25 नवंबर से जमाबंदी रद्द कर दी गई है। पहले भी इस जमीन का मामला कोर्ट में गया था, तो कोर्ट ने किसानों के पक्ष में निर्णय दिया।
बरौनी थर्मल पावर के पुराने और नए प्रोजेक्ट में भी इसी खेसरा से जमीन ली गई। जिसका मुआवजा अभी किसानों को दिया गया। फिलहाल हाईकोर्ट के निर्देशानुसार बेगूसराय न्यायालय में टाइटल सूट चल रहा है। इसके बावजूद बिहार सरकार जमाबंदी रद्द कर रही है। बाध्य होकर हम सभी किसान अब आंदोलन पर उतारू हो गए हैं।
बीहट नगर परिषद के उप मुख्य पार्षद ऋषिकेश कुमार ने कहा कि सरकार का काम है जिसके पास जमीन नहीं है, उसको भी जमीन सरकार उपलब्ध करवाती है। प्रत्येक लोगों को जीने का अधिकार है, लेकिन यहां किसानों की जमीन सरकार जबरदस्ती लेना चाहती है, यह नहीं होगा।
हम लोग संवैधानिक तरीके से सरकार का विरोध करेंगे। जरूरत पड़ी तो जिला प्रशासन का घेराव करेंगे। हम सब सरकार से कानूनी प्रक्रिया से लड़ेंगे। हमारी जमीन सरकार नहीं ले सकती है। हम अपनी जमीन अपने हाथ में लेंगे और जीतेंगे।
यह जमीन 1932 से हम लोगों के पूर्वज ने बंदोबस्त से प्राप्त की। उस समय से लेकर आज तक हम लोग उस जमीन पर जोताई कर अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं। उस जमीन का राजस्व देते हैं, पेपर भी है। जमींदारी उन्मूलन हुआ था उस समय से पहले से हम लोगों का दखल कब्जा है। सरकार उस जमीन को सरकारी जमीन करना चाहती है। सभी किसान मर जाएंगे, लेकिन अपनी जमीन को छोड़ नहीं सकते हैं।
हम लोगों के बाबा, परबाबा सब इसी जमीन से जिए। 1932 से इसी जमीन से जीते आ रहे हैं। 3 दिन पहले नोटिस आई है कि 890 औप 891 खेसरा नंबर मल्हीपुर मौजे की जमीन आपकी नहीं है। यह जमीन सरकार की है, जबकि कोर्ट में केस चल रहा है, लेकिन शासन-प्रशासन ने तुगलकी फरमान जारी कर दिया है कि यह जमीन आपकी नहीं। सरकार ने इस जमीन पर काम करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
वहीं, राजकुमार महतो, गोरेलाल महतो, मेघु महतो, प्रमोद निषाद, सोहन महतो, गोविंद कुमार, पंकज कुमार और भागवत बिंद आदि ने कहा कि सीओ ने आपत्ति की तिथि 2 दिसंबर तय की गई है, लेकिन हम लोग जब अपना-अपना कागजात लेकर बरौनी सीओ के कार्यालय में गए तो वहां कागज लेने से इनकार कर दिया गया। जिसके कारण डाक से भेजा गया है, यहां बड़ी साजिश रची गई है।
बेगूसराय से नोमानुल हक की रिपोर्ट
Nov 29 2024, 19:08