बिहार विस उपचुनाव का परिणाम दे रहा बड़ा संकेत, अब बिहार की राजनीति में विशेष समीकरण और जातिवाद बड़ा फैक्टर नहीं रहा !
डेस्क : बिहार में 4 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में चारों सीटों पर NDA ने जीत हासिल की है। यह चुनाव अगले साल 2025 में होने वाले विधान सभा चुनाव से पहले सत्ताधारी एनडीए और महागठबंधन के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा था। जिसमें एनडीए को बड़ी सफलता मिली। वही इस उपचुनाव में जो सबसे बड़ी बात हुई है उससे ऐसा लग रहा है कि बिहार की राजनीति में कोई विशेष समीकरण या जातिवाद बहुत बड़ा फैक्टर नही रह गया है। इस चुनाव में कहीं भी लालू और तेजस्वी यादव का जादू नहीं चला। चाहे लालू के MY समीकरण की बात करें या फिर तेजस्वी का नया BAAP समीकरण दोनों बुरी तरह से फेल रहा। इतना ही नहीं जातिवाद का फैक्टर भी बहुत कामयाब नहीं रहा। आलम यह रहा कि बिहार के चार सीट में एक भी जगह पर लालू की पार्टी का खाता नहीं खुला है।
आईए जानते है कैसे...
बिहार के चार सीटों पर हुए उपचुनाव एनडीए ने चारो सीट पर कब्जा किया है। जिसमें सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें जहां एनडीए ने राजद के दो पुराने किले को ध्वस्त किया है। वहीं एक सीट जिसपर पिछले 9 साल से वाम दल का राज था उसे भी अपने पाले में कर लिया।
सबसे पहले हम बात करते है बेलागंज विधानसभा सीट की। यह सीट पिछले 35 सालों से राजद के कब्जे में था। बेलागंज विधान सभा क्षेत्र में यादव और मुस्लिम की आबादी ऐसी है कि वह जिस तऱफ जाए उस प्रत्याशी की जीत पक्की है। बेलागंज सीट पर राजद के सुरेन्द्र यादव का लंबे समय तक कब्जा रहा। इसबार लोकसभा चुनाव जीतने के कारण यह सीट खाली हुई थी। वैसे सुरेन्द्र यादव बाहुबली नेता है, लेकिन इस सीट पर लंबे समय तक कब्जा करने के पीछे उनका सिर्फ बाहुबल ही नही माना जा सकता है। राजद सुप्रीमो का माय समीकरण यानि मुसलमान और यादव का साथ रहना भी बड़ा फैक्टर रहा है। लेकिन इस चुनाव में यह फैक्टर काम नहीं किया। ऐसा इसलिए माना जा सकता है कि इस सीट पर सुरेन्द्र यादव के बेटे बिश्वनाथ सिंह राजद से प्रत्याशी थे। लेकिन वे अपने पिता की विरासत को नही बचा पाए।
सबसे बड़ी बात यह रही कि इस क्षेत्र में लंबे समय बाद खुद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद चुनाव प्रचार को गए थे। इतना ही नहीं मुस्लिम वोटरो को गोलबंद करने के लिए पिछले दिनों राजद में दोबारा शामिल हुए सीवान के दिवंगत पूर्व बाहुबली सांसद मो. शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा भी इस क्षेत्र में चुनाव प्रचार को गए थे। लेकिन लालू प्रसाद और ओसामा दोनो की मेहनत यहां बेकार गई। साफ है कि यहां राजद का माय समीकरण इसबार काम नहीं आया और जदयू की मनोरमा देवी इस सीट पर कब्जा करने में कामयाबी रही।
बिहार विधान सभा के रामगढ़ सीट पर बड़ा खेल हुआ। यहां स्थिति यह रहा कि लंबे समय से इस सीट पर अपना वर्चस्व रखने वाली राजद इस उपचुनाव में तीसरे नंबर पर चली गई। इस सीट पर एनडीए की तरफ से बीजेपी ने जीत हासिल की। वहीं दूसरे नंबर पर रहते हुए बसपा ने खेल कर दिया। रामगढ़ में राजद प्रत्याशी तीसरे नंबर रहे।
रामगढ़ विधान सभा क्षेत्र राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के प्रभुत्व वाला माना जाता है। जगदानंद सिंह खुद इस सीट से लंबे समय तक विधायक बनते रहे थे। बाद में उनके बेटे सुधाकर सिंह इस सीट से विधायक बने। इस लोकसभा चुनाव में सुधाकर सिंह बक्सल से चुनाव जीतकर सांसद बन गए। जिसके बाद जगदानंद सिंह के छोटे बेटे अजीत सिंह इसबार राजद के टिकट पर चुनाव मैदान में थे। लेकिन ये अपने परिवार की विरासत को बचाने में नाकामयाब रहे। जबकि इस चुनाव में खुद लालू यादव भी कई जगहों पर चुनावी जनसभा में गए थे और तेजस्वी भी चुनाव प्रचार किए। यहां राजद का MY समीकरण का कोई फायदा नहीं हो पाया। जबकि इस क्षेत्र में मुस्लिम की आबादी तकरीबन 8.5 प्रतिशत है जो चुनाव में किसी भी प्रत्याशी की जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाता है।
वहीं तरारी विधान सभा सीट की बात करे तो इस सीट पर पिछले दो टर्म से वाम का कब्जा था। लेकिन इसबार यहां से बीजेपी प्रत्याशी की जीत हुई है। इस विधान सभा क्षेत्र की बात करे तो यहां वैसे तो सवर्ण जाति की संख्या अधिक है, लेकिन बैकवार्ड क्लास के कुल मतदाताओं को जोड़ दिया जाए तो उसकी संख्या काफी अधिक है। इसके साथ ही इस क्षेत्र के अधिकांश इलाके नक्सल प्रभावित है। जिसका लाभ यहां से वाम को मिलता रहा है। लेकिन इसबार वह भी ध्वस्त हो गया।
जबकि इमामगंज सीट की बात करें तो यहां एनडीए समर्थित हम अपना सीट बचाने में कामयाब रही। इमामगंज क्षेत्र दलित बहुल क्षेत्र है। यहां दलित के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय भी चुनाव में जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते है। यहां दलित बनाम दलित की ही लड़ाई थी। ऐसा माना जा रहा था कि इसबार मुस्लिम मतदाता एनडीए के खिलाफ वोट कर सकते है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वैसे यह उपचुनाव था, लेकिन जिस तरह के परिणाम सामने आए है उससे एक बात साफ दिख रहा है कि बिहार में कोई विशेष समीकरण या जातिवाद चुनाव में बहुत प्रभावी नहीं है। मतदाता अपने विवेक और विकास को ज्यादा अहमियत दे रहे है।
Nov 29 2024, 12:00