झारखंड स्थापना दिवस: विकास की अवधारणा को लेकर बिरसा मुंडा जयंती पर हुआ था अलग झारखंड राज्य की स्थापना
ममता कुमारी
आज झारखंड का स्थापना दिवस है,15नवम्बर 2000 को बिहार से काट कर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अलग झारखंड राज्य कि स्थापना की थी. इस सोच के साथ की छोटे छोटे राज्यों के प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त होगी और विकास पर फोकस किया जा सकेगा.लेकिन इस सोच को साकार रूप देने में आज तक राजनेता सफल नहीं हो पाए.
यूं तो झारखंड भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक ऐसा राज्य है, जहाँ प्रकृति ने खनिज,वन संसाधन से सम्पन्न बनाया है यहाँ का इतिहास आदिवासी संस्कृति और संघर्ष से भरा पड़ा है। बिरसा मुंडा की जयंती यहाँ के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत
झारखंड, जो भारत के सबसे खूबसूरत और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर राज्यों में से एक है, 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर एक नए राज्य के रूप में स्थापित हुआ। इस दिन को झारखंड स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। झारखंड का इतिहास सदियों पुराना है, जहां यह क्षेत्र मुंडा, संथाल, उरांव जैसी अनेक आदिवासी समुदायों की भूमि रही है। इन समुदायों ने न केवल इस क्षेत्र की भूमि, जंगल और पानी की सुरक्षा की बल्कि भारतीय संस्कृति में भी अपना विशिष्ट योगदान दिया।
झारखंड की संस्कृति आदिवासी समुदायों से गहराई से जुड़ी है, जिनकी कला, नृत्य, गीत और हस्तकला राज्य के पहचान का हिस्सा हैं। यहां का छऊ नृत्य, करम पर्व, सरहुल और मगही गीत झारखंड की अनूठी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। इसके अलावा, झारखंड का भूगोल और खनिज संसाधन भी इसे एक महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्र बनाते हैं।
बिरसा का त्याग और बलिदान बना प्रेरणा का श्रोत
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के एक छोटे से गाँव में हुआ था। वे मुंडा आदिवासी समुदाय से संबंध रखते थे और बचपन से ही अपने अधिकारों के प्रति जागरूक थे। ब्रिटिश शोषण और धार्मिक आक्रमण से त्रस्त होकर बिरसा ने अपने समुदाय को संगठित किया और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए 'उलगुलान' (विद्रोह) की शुरुआत की।
बिरसा मुंडा न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक समाज सुधारक और धार्मिक नेता भी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को ब्रिटिश राज के अत्याचारों के खिलाफ संगठित होने के लिए प्रेरित किया। उनके संघर्ष का प्रमुख उद्देश्य आदिवासियों की भूमि की रक्षा और उनके परंपरागत अधिकारों को बनाए रखना था। उन्होंने अपने अनुयायियों को यह भी सिखाया कि वे प्रकृति के प्रति आदर और सम्मान करें, जो उनकी धार्मिक मान्यता का हिस्सा था।
झारखंड स्थापना दिवस और बिरसा मुंडा जयंती का महत्व
झारखंड का स्थापना दिवस और बिरसा मुंडा की जयंती एक ही दिन मनाई जाती है, जो आदिवासी समुदायों के अधिकारों और उनके संघर्ष का प्रतीक है। यह दिन राज्य में एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है, जहां लोग बिरसा मुंडा के योगदान को याद करते हैं और उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लेते हैं।
बिरसा मुंडा का प्रभाव आज भी झारखंड और अन्य आदिवासी समुदायों में देखा जा सकता है। वे सभी आदिवासी समुदायों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उनकी मूर्ति राज्य के विभिन्न भागों में स्थापित की गई है। झारखंड सरकार इस दिन को विशेष उत्सव के रूप में मनाती है और बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करती है।
झारखंड स्थापना दिवस और बिरसा मुंडा जयंती का यह दिवस न केवल एक ऐतिहासिक अवसर है बल्कि आदिवासी समुदायों की संस्कृति, उनके संघर्ष और उनके अधिकारों की पहचान को भी दर्शाता है। बिरसा मुंडा का बलिदान और उनका संघर्ष झारखंड के हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और झारखंड का स्थापना दिवस उनके योगदान को नमन करने का सर्वोत्तम अवसर है।
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