सबसे खास क्यों लोक आस्था का महापर्व, मखमली कालीन नगरी में भी बहती है भक्ति की बयान
नितेश श्रीवास्तव
भदोही। लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरूआत आम तौर पर दिवाली के छह दिन बाद होती है। लोग बेसब्री से इस महापर्व का इंतजार करते हैं। हिन्दू धर्म में इसका का बड़ा महत्व है। मुख्यतौर पर छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। लेकिन, अब बड़े पैमाने पर देशभर के कई राज्यों और विदेशों में भी मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान है। वैसे तो यह महापर्व वर्ष में दो बार होता है। एक चैत माह में और दूसरा कार्तिक माह में। इनमें कार्तिक मास के छठ का विशेष महत्व है।
महिलाएं यह व्रत अपने संतान की सुख शांति और लंबी उम्र के लिए करती हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में माता सीता ने सबसे पहले छठ किया था। भगवान श्रीराम ने भगवान सूर्य नारायण की आराधना की थी। द्वापर में दानवीर कर्ण और द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। इसके अलावा छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियंवद की भी है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। मान्यता है कि छठ महापर्व पर माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और भविष्य के लिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा-अर्चना करती है। इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं।
यही वजह है कि इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंकापति रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे। लेकिन भगवान राम पर रावण के वध का पाप था, जिससे मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ कराया गया। तब ऋषि मुग्दल ने श्रीराम और माता सीता को यज्ञ के लिए अपने आश्रम में बुलाया। मुग्दल ऋषि के कहे अनुसार, माता सीता ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना की और व्रत भी रखा। इस दौरान राम जी और सीता माता ने पूरे छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर पूजा-पाठ किया। इस तरह छठ पर्व का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है।पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा का आरंभ हो जाता है। यह महापर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। दीपावली खत्म होते ही छठ गीतों से इसका माहौल बनने लगता है।
छठ पूजा का मुख्य व्रत कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। पहले दिन नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरूआत होती है। दूसरे दिन खरना होता है। वहीं तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का पारण किया जाता है और इसी के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है। नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरूआत होती है। इस बार पांच नवंबर को यानी कल नहाय खाय है। नहाय खाय जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि इस दिन स्नान करके भोजन करने का विधान है। नहाय खाय के दिन व्रत करने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं। यहि नदी में नहाना संभव न हो ते घर पर भी नहा सकते हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं भात, चना दाल और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस बार खरना छह नवंबर यानी बुधवार को है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद बनया जाता है।छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के समय नदी या तालाब में खड़े होकर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार सात नवंबर यानी गुरुवार को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। इसमें बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है। छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार आठ नवंबर यानी शुक्रवार को दूसरा अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं। साथ ही अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं।
Nov 05 2024, 17:28