*जप व दृढ संकल्प से ईश्वर शीघ्र प्रसन्ना होकर हमारा कल्याण करते हैं*
*भागवत के दौरान कथावाचक ने ध्रुव चरित्र का वर्णन कर समझाया भक्ति का प्रभाव*
*कृष्णपाल ( के डी सिंह )*
पिसावां (सीतापुर) बददापुर में स्थित यज्ञशाला के निकट चल रही श्रीमद भागवत कथा के दौरान कथा वाचक प्रवीण दीक्षित ने श्रीमद भागवत कथा के दौरान भक्तराज ध्रुव की कथा के माध्यम से श्रोताओं को भक्ति और दृढ़ संकल्प को विस्तार से समझाया।
उन्होंने कहा कि राजा उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो भार्याएं थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र हुए। यद्यपि सुनीति बड़ी रानी थी, किंतु राजा उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था।
एक बार राजा उत्तानपाद ध्रुव को गोद में लिए बैठे थे कि तभी छोटी रानी सुरुचि वहां आई। अपने सौत के पुत्र ध्रुव को राजा की गोद में बैठे देख कर वह ईर्ष्या से जल उठी। झपटकर उसने ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उनकी गोद में बिठाते हुए कहा, 'रे मूर्ख! राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है जो मेरी कोख से उत्पन्ना हुआ है।
तू मेरी कोख से उत्पन्ना नहीं हुआ है इस कारण से तुझे इनकी गोद में तथा राजसिंहासन पर बैठने का अधिकार नहीं है। यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करने की है तो भगवान नारायण का भजन कर। उनकी कृपा से जब तू मेरे गर्भ से उत्पन्ना होगा तभी राजपद को प्राप्त कर सकेगा।
पांच वर्ष के बालक ध्रुव को अपनी सौतेली माता के इस व्यवहार पर बहुत क्रोध आया, पर वह कर ही क्या सकता था? इसलिए वह अपनी मां सुनीति के पास जाकर रोने लगा। सारी बातें जानने के बाद सुनीति ने कहा, 'संपूर्ण लौकिक तथा अलौकिक सुखों को देने वाले भगवान नारायण के अतिरिक्त तुम्हारे दुःख को दूर करने वाला और कोई नहीं है।
तू केवल उनकी भक्ति कर। माता के इन वचनों को सुनकर वह भगवान की भक्ति करने के लिए निकल पड़ा। अल्पकाल में ही उसकी तपस्या से भगवान नारायण उनसे प्रसन्ना होकर उसे दर्शन देकर कहते हैं। तेरी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी। समस्त प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोग कर अंत समय में तू मेरे लोक को प्राप्त करेग।
इस दौरान बाराती सिंह, छत्रपाल सिंह, शिवपाल सिंह, विभक्ति सिंह, केहरी सिंह सच्चेद्र सिंह मुनुवा सिंह, रामकिशोर सिंह आदि भक्त मौजूद रहे।
Oct 22 2024, 19:23