रतन टाटा की कहानी सुनाकर रो पड़े केंद्रीय मंत्री, बोले- जब वो हमारे घर आए और अपनी सरलता से सबका दिल जीता


उद्योगपति रतन टाटा के निधन के बाद भारत रत्न देने की मांग उठ रही है। उनके निधन पर विभिन्न क्षेत्रों से लोग, जैसे उद्योगपति, राजनेता और खिलाड़ी, शोक जता रहे हैं। इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने मीडिया के साथ एक पुरानी याद साझा की, जिसमें उन्होंने रतन टाटा के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त कीं और भावुक भी हो गए। गोयल ने याद दिलाया कि जब रतन टाटा एक बार उनके घर नाश्ते के लिए आए थे, तब उन्होंने साधारण इडली, सांभर और डोसा का आनंद लिया। गोयल ने कहा कि, उन्होंने इस नाश्ते की अत्यधिक प्रशंसा की, उनके पास दुनिया के बेहतरीन शेफ होने के बावजूद, वे सरलता की कद्र करते थे। टाटा ने नाश्ते परोसने वाले के प्रति भी दयालुता दिखाई। गोयल ने बताया कि जब टाटा उनके घर से जा रहे थे, तो उन्होंने बहुत प्रेम से उनकी पत्नी से पूछा कि क्या वह उनके साथ एक तस्वीर लेना चाहेंगी। यह उनकी विचारशीलता का एक उदाहरण था, जिसने उन्हें रतन टाटा जैसा महान व्यक्ति बना दिया, जिसे 140 करोड़ भारतीयों और पूरी दुनिया ने प्यार किया। कहा कि रतन टाटा बहुत संवेदनशील थे और उन्होंने टाटा समूह को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। उनका व्यक्तित्व परोपकारी था, और कोविड महामारी के दौरान उन्होंने बिना किसी शर्त 1500 करोड़ रुपये दान करने का निर्णय लिया, जिससे देश को महामारी से लड़ने में मदद मिली। गोयल ने यह भी कहा कि रतन टाटा ने व्यापार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और टाटा समूह को एक ऐसा उदाहरण बनाया, जिससे पता चलता है कि एक उद्योग कैसे ईमानदार व्यवस्थाओं के साथ विकसित हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर जा सकता है। रतन टाटा का अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली श्मशान घाट पर किया जाएगा। एक बयान में कहा गया कि उनका पार्थिव शरीर शाम 4 बजे अंतिम यात्रा के लिए निकलेगा।
चीन-म्यामांर से घिरा लाओस भारत के लिए कितना अहम? जहां के दौरे पर हैं पीएम मोदी*
#pm_modi_on_visit_to_laos_why_this-country_important_for_india * प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय लाओस दौरे पर पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री यहां 21वें आसियान-भारत समिट और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। लाओस की राजधानी वियनतियाने में समिट का आयोजन किया जाएगा। इस साल लाओस आसियान सम्मेलन का मेजबान और वर्तमान अध्यक्ष है। लाओस एक छोटा सा देश है, जिसकी कुल आबादी महज 75 लाख के करीब है। भारत में बिहार की राजधानी पटना की कुल आबादी भी मौजूदा वक्‍त में करीब 75 लाख ही है। पीएम मोदी की लाओस यात्रा के बीच ये जानना जरूरी है कि आखिर भारत के लिए ये छोटा सा देश रणनीतिक रूप से कितना जरूरी है। भारत-लाओस के संबंध कैसे हैं और भारत के लिए इसे प्राथमिकता देना क्यों जरूरी है। रणनीतिक रूप से यह इसलिए अहम है क्योंकि लाओस की सीमा उत्तर-पश्चिम में म्यांमार और चीन, पूर्व में वियतनाम, दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया और पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में थाईलैंड से लगती है। चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण भारत के लिए इस देश की रणनीतिक महत्ता बढ़ जाती है। दरअसल, दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, लाओस हमेशा से व्यापारिक नजरिए से भी अहम रहा है। यही कारण है कि इसपर कभी फ्रांस ने तो कभी जापान ने कब्जा जमाया। 1953 में जब लाओस को आजादी मिली तो चीन ने भी लाओस में अपने प्रभाव को आजमाना शुरू किया।दक्षिण चीन सागर में ड्रैगन की दादागिरी से हर कोई वाफिफ है। चीन इस क्षेत्र में अपने सभी पड़ोसियों पर धोंस जमाने की कोशिश से बाज नहीं आता। इन देशों में लाओस भी शामिल है। *भारत के लिए क्यों अहम है लाओस?* लाओस वैसे तो एक छोटा सा देश है लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति के चलते यह भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर काफी अहम माना जाता है। इसकी सीमा चीन और म्यांमार से लगती है, लिहाजा चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण यह देश रणनीतिक तौर पर भारत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह भारत के इंडो-पैसिफिक विजन का महत्वपूर्ण स्तंभ है, साथ ही साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। व्यापारिक नजरिए की बात करें तो दक्षिण पूर्व एशिया में लाओस की भौगोलिक स्थिति के कारण भी यह हमेशा से अहम रहा है। भारत के लिए लाओस कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में और पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने 1959 में ही लाओस का दौरा किया था। लाओस को फ्रांस के कब्जे से मुक्ति दिलाने में भी भारत ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर सुपरविजन एंड कंट्रोल (ICSC) के चेयरमैन के तौर पर अहम भूमिका निभाई थी। जुलाई 1954 में जेनेवा संधि के आधार पर ICSC की स्थापना की गई थी, इसका उद्देश्य भारत-चीन के बीच दुश्मनी को खत्म करने और लाओस से फ्रांसिसी उपनिवेशवादी शक्तियों की वापसी कराना था। *भारत और लाओस के बीच संबंध* भारत और लाओस के बीच दशकों पुराने मजबूत संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच 1956 में डिप्लोमैटिक संबंध स्थापित हुए। तब से अब तक दोनों देशों की ओर से द्विपक्षीय यात्राएं होती रहीं हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में ही लाओस का दौरा किया था। इसके बाद 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लाओस की आधिकारिक यात्रा की थी। 2004 में मनमोहन सिंह और 2016 में प्रधानमंत्री मोदी आसियान-भारत समिट में हिस्सा लेने के लिए लाओस का दौरा कर चुके हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारत की ओर से 50 हजार कोवैक्सीन की डोज और दवाइयां लाओस भेजी गईं थीं। हाल ही में आए तूफान यागी के दौरान भी भारत ने करीब एक लाख डॉलर की आपदा राहत सामग्री लाओस भेजी थी। इसके अलावा लाओस के साथ भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सिविलाइजेशनल संबंध रहें हैं। बौद्ध धर्म और रामायण दोनों देशों की साझा विरासत का हिस्सा हैं। इसी साल 15 से 31 जनवरी के बीच लाओस के रॉयल बैलेट थियेटर के 14 आर्टिस्ट ने भारत में 7वें इंटरनेशनल रामायण मेला में भी हिस्सा लिया था।
हम शांतिप्रिय देश हैं, यहां सभी का सम्मान..', लाओस में पीएम मोदी को दिखाई गई 'रामायण

' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए लाओस की राजधानी विएंतियाने में हैं। 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में उन्होंने कहा कि भारत और आसियान देशों की मित्रता और सहयोग वर्तमान समय में बेहद महत्वपूर्ण है, जब दुनिया के कई हिस्सों में तनाव और संघर्ष की स्थिति है। उन्होंने कहा, "हम शांति प्रिय देश हैं और एक-दूसरे की राष्ट्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करते हैं। हम अपने युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं। मेरा मानना है कि 21वीं सदी भारत और आसियान देशों की सदी है।" लाओस पहुंचने पर प्रधानमंत्री मोदी ने लुआंग प्रबांग के प्रसिद्ध रॉयल थिएटर द्वारा प्रस्तुत लाओ रामायण 'फलक-फलम' या 'फ्रा लक फ्रा राम' का मंचन देखा। यह प्रदर्शन भारत और लाओस के बीच की सांझा सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत को दर्शाता है, जो सदियों पुरानी है। phralakphralam.com के अनुसार, लाओ रामायण भारतीय रामायण से भिन्न है और इसे लगभग 16वीं शताब्दी में बौद्ध मिशनों द्वारा लाओस लाया गया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा कि दोनों देशों की साझा विरासत और परंपरा उन्हें और करीब ला रही हैं, और यह भारत-लाओस के समृद्ध संबंधों का एक उत्कृष्ट प्रदर्शन है। मंत्रालय के अनुसार, लाओस में रामायण का मंचन जारी है और यह आयोजन दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों का प्रतीक है। लाओस में भारतीय संस्कृति और परंपरा के कई पहलुओं का संरक्षण और पालन सदियों से किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने विएंतियाने में साकेत मंदिर के प्रमुख महावेथ मसेनाई के नेतृत्व में लाओ PDR के केंद्रीय बौद्ध फैलोशिप संगठन के वरिष्ठ बौद्ध भिक्षुओं द्वारा आयोजित आशीर्वाद समारोह में भी भाग लिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया कि उन्होंने लाओ PDR में भिक्षुओं और आध्यात्मिक नेताओं से मुलाकात की और यह देखकर प्रसन्नता व्यक्त की कि भारतीय पाली भाषा को वहां सम्मान मिल रहा है। उन्होंने भिक्षुओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आभार प्रकट किया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत और लाओस के बीच साझा बौद्ध विरासत दोनों देशों के गहरे सभ्यतागत संबंधों को और प्रकट करती है। प्रधानमंत्री मोदी ने लाओस में 'वट फो' मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार और संरक्षण पर आधारित एक प्रदर्शनी भी देखी। रणधीर जायसवाल ने बताया कि 'वट फो' मंदिर भारत-लाओस के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों और सांझा विरासत का प्रतीक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट वट फो के संरक्षण और जीर्णोद्धार में असाधारण कार्य कर रहा है।
लोकसभा चुनाव में लगाया 'वाल्मीकि कल्याण' का पैसा! कांग्रेस विधायक नागेंद्र निकले मास्टरमाइंड, चार्जशीट दाखिल

कर्नाटक में वाल्मीकि कल्याण निगम घोटाले ने हलचल मचा दी है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी जांच रिपोर्ट विशेष अदालत में प्रस्तुत की है। यह मामला सरकारी धन के दुरुपयोग से जुड़ा है, जिसमें पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक बी. नागेंद्र को धोखाधड़ी का मुख्य आरोपी माना गया है। घोटाला तब उजागर हुआ जब वाल्मीकि विकास निगम में फंड ट्रांसफर और उपयोग में अनियमितताएं पाई गईं। यह निगम कर्नाटक के वाल्मीकि समुदाय की सहायता के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन इसमें वित्तीय विसंगतियों की जांच के दौरान कई सरकारी अधिकारियों और नागेंद्र के सहयोगियों की संलिप्तता सामने आई। ED ने दावा किया है कि इस घोटाले में निगम से 187 करोड़ रुपये का अवैध हस्तांतरण हुआ, जिसमें 97.32 करोड़ रुपये का गबन किया गया और 12 करोड़ रुपये का धन 2024 के लोकसभा चुनावों के प्रचार में डायवर्ट किया गया। ED की रिपोर्ट में नागेंद्र को मुख्य आरोपी के रूप में पहचाना गया है और उनकी वित्तीय हेरफेर के तरीकों का विवरण दिया गया है। रिपोर्ट में 24 अन्य व्यक्तियों की संलिप्तता का भी उल्लेख है, जिनमें नागेंद्र के करीबी सहयोगी शामिल हैं। ED ने कोर्ट को यह भी बताया कि गबन की गई धनराशि को बिना अनुमति के बैंकों में स्थानांतरित किया गया और कई बैंक अधिकारियों पर भी संदेह है कि वे इन अवैध लेनदेन में शामिल थे। नागेंद्र के एक सहयोगी का मोबाइल फोन जब्त किया गया, जिससे अवैध वित्तीय लेनदेन के महत्वपूर्ण सबूत प्राप्त हुए। जबकि SIT ने मुख्य रूप से प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता पर ध्यान केंद्रित किया था, ED की रिपोर्ट ने नागेंद्र के राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों को भी उजागर किया। नागेंद्र, जिन्हें जुलाई 2024 में गिरफ्तार किया गया था, अभी न्यायिक हिरासत में हैं। उन्होंने घोटाले में शामिल होने से इनकार किया है और आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया है। इस घोटाले ने जनता और राजनीतिक स्तर पर व्यापक आक्रोश पैदा किया है, और विपक्षी दलों ने इसे कर्नाटक के राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक उदाहरण बताया है। आने वाले महीनों में विशेष न्यायालय में सुनवाई जारी रहेगी, और इस मामले के परिणाम न केवल नागेंद्र और उनके सहयोगियों के लिए, बल्कि कर्नाटक में भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे। इस घोटाले की जांच से मिलने वाले निष्कर्ष सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के खिलाफ जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस घोटाले का खुलासा तब हुआ था, जब वाल्मीकि कल्याण निगम में काम करने वाले एक दलित अधिकारी ने ख़ुदकुशी कर ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि ''उन पर दबाव डालकर भ्रष्टाचार करवाया गया है, इसमें उच्च अधिकारी और मंत्री भी शामिल हैं।'' अब वाल्मीकि विभाग तत्कालीन कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र के अंतर्गत ही आता था। इस घोटाले के बाद कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की जमकर किरकिरी हुई और बी नागेंद्र को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालाँकि, इसके बाद जांच हुई तो और परतें खुलने लगीं, अब कांग्रेस विधायक नागेंद्र ही इस पूरे घोटाले के मास्टरमाइंड के रूप में सामने आए हैं। वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी MUDA घोटाले में बुरी तरह घिरे हुए हैं। गवर्नर ने उनके खिलाफ जांच का आदेश दे दिया है, जिसे रुकवाने के लिए कांग्रेसी मुक्यमंत्री हाई कोर्ट भी गए थे, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। हाई कोर्ट ने तमाम तथ्य देखने के बाद कहा था कि, सबूतों को देखते हुए ये लगता है कि गड़बड़ी हुई है और इस मामले में जांच की सख्त आवश्यकता है। इसके बाद सिद्धारमैया की पत्नी ने मुआवज़े के रूप में मिले 14 प्लॉट वापस करने की पेशकश कर दी थी। हालाँकि, जांच शुरू हो चुकी है। ये पूरा मामला जमीन से जुड़ा है। आरोप है कि, मुख्यमंत्री ने अपनी गाँव की कम कीमत की जमीन को सरकार को देकर, बदले में मुआवज़े के तौर पर प्राइम लोकेशन में 14 प्लॉट हासिल कर लिए थे, जिनकी कीमत गाँव की जमीन से कई गुना जयादा है।
राफेल नडाल ने किया संन्यास का ऐलान, टेनिस को कहा अलविदा*
#rafael_nadal_22_time_grand_slam_champion_announces_retirement *
22 बार के ग्रैंड स्लैम चैंपियन राफेल नडाल ने प्रोफेशनल टेनिस से संन्यास की घोषणा कर दी है। मौजूदा सीजन उनका आखिरी सीजन होगा।नवंबर में होने वाला टेनिस टूर्नामेंट डेविस कप उनका आखिरी टूर्नामेंट होगा। नडाल ने अपने रिटायरमेंट की जानकारी सोशल मीडिया के जरिए दी है।उन्होंने एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए अपने चाहने वालों को रिटायरमेंट की खबर दी। अपने रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए एक वीडियो में नडाल ने कहा, मैं प्रोफेशनल टेनिस से रिटायर हो रहा हूं। पिछले कुछ साल काफी मुश्किल भरे रहे हैं। खासतौर से पिछले 2 साल में चुनौतीपूर्ण रहा। यह एक बहुत ही मुश्किल फैसला है। लेकिन इस जीवन में, हर चीज की शुरुआत और अंत होता है और मुझे लगता है कि यह उस करियर को समाप्त करने का सही समय है जो मेरी कल्पना से कहीं अधिक लंबा और सफल रहा है। उन्होंने आगे कहा, मैं बहुत उत्साहित हूं कि मेरा आखिरी टूर्नामेंट डेविस कप का फाइनल होगा, जिसमें मैं अपने देश का प्रतिनिधित्व करूंगा। नडाल ने कहा कि डेविस कप के जरिए विदा लेने को लेकर वह काफी रोमांचित है। डेविस कप फाइनल्स स्पेन के मालागा में 19 नवंबर से खेला जाएगा। राफेल नडाल ने अब तक के सबसे पसंदीदा खिलाड़ियों में से एक के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। उन्हें मौजूदा दौर में स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर और सर्बिया के नोवाक जोकोविच के साथ महान खिलाड़ियों में शामिल किया जाता है। इस स्टार प्लेयर के नाम महान रोजर फेडरर से भी ज्यादा ग्रैंड स्लैम दर्ज हैं।फेडरर ने 20 ग्रैंड स्लैम जीते थे, जबकि नडाल ने 22 ग्रैंड स्लैम जीतकर खुद को दुनिया के सबसे महान टेनिस दिग्गजों की लिस्ट में शुमार किया। इस साल की शुरुआत में नडाल ने अपना चौथे ओलंपिक सीजन से नाम वापस ले लिया था। पिछले महीने नडाल ने लेवर कप 2024 से अपना नाम वापस ले लिया था। यह प्रोफेशनल टेनिस में उनका आखिरी अंतिम इवेंट था। पेरिस 2024 ओलंपिक के बाद नडाल ने पुष्टि की थी कि 2024 में लेवर कप उनका अगला इवेंट होगा। नडाल ने लेवर कप में 2017 में प्राग, 2019 में जिनेवा और फिर 2022 में लंदन में हिस्सा लिया था, जो उनके दोस्त और महान रोजर फेडरर के करियर के आखिरी मैच भी था। उन्होंने उसमें रोजर फेडरर के साथ जोड़ी बनाकर डबल्स में हिस्सा लिया था। इससे पहले उन्होंने 2008 बीजिंग ओलंपिक में सिंगल्स में गोल्ड और रियो 2016 में डबल्स में गोल्ड जीतने में कामयाब रहे।
नेतन्याहू की बढ़ेगी टेंशन! ईरानी विदेश मंत्री ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस से की मुलाकात

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इजराइल 1 अक्टूबर को हुए ईरानी हमले के पलटवार की तैयारी कर रहा है। ईरान पर किस तरह का हमला हो, ये तय करने के लिए नेतन्याहू की कैबिनेट में वोटिंग होगी। इससे पहले इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बुधवार शाम अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से फोन पर बातचीत की। ईरान पर इजराइली हमले की आशंका के बीच ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की। ये मुलाकात बुधवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुई।

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची इजराइल के खिलाफ नया मोर्चा बनाने में जुटे हैं।इसके लिए वह इन दिनों क्षेत्र के खाड़ी अरब देशों के दौरे पर हैं। सऊदी अरब को इजराइल का दोस्त माना जाता है। लेकिन हाल ही में सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने गाजा के मसले पर इजराइल को दो टूक कह दिया था कि आजाद फिलिस्तीन के बिना वो इजराइल को मान्यता नहीं देंगे। सऊदी अरब के इस रुख से ईरान की उम्मीदें बढ़ गईं हैं। लिहाजा वह अब इजराइल के खिलाफ सऊदी अरब को साधने की कोशिश में जुटा है।

इसी क्रम में ईरानी विदेश मंत्री अराघची सऊदी अरब पहुंचे और प्रिंस से मुलाकात की। सऊदी अरब के स्टेट मीडिया के मुताबिक इस बैठक के दौरान दोनों ने मिडिल-ईस्ट में बने हालातों पर चर्चा की है। ईरानी विदेश मंत्री ने सऊदी अरब में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के अलावा अपने समकक्ष प्रिंस फैजल बिन फरहान से भी मुलाकात की है। बुधवार को हुई इस मुलाकात में द्विपक्षीय संबंधों और कई क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा हुई है।

सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच क्षेत्र के ताजा हालात पर भी चर्चा हुई है। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बाघेई ने बुधवार को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर पोस्ट कर लिखा है कि, ‘विदेश मंत्री के दौरे का मकसद क्षेत्र में यहूदी प्रशासन के नरसंहार और आक्रामकता को रोकना, साथ ही गाजा और लेबनान में हमाई भाइयों और बहनों के दर्द और पीड़ा को खत्म करना है।

बता दें कि एक अक्टूबर को ईरान ने इजराइल पर करीब 200 बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया था, ईरान का कहना है कि उसने इस्माइल हानिया, हसन नसरल्लाह और आईआरजीसी के कमांडर निलफोरूशन की मौत का बदला लेने के लिए ये हमला किया था। वहीं अब इजराइल भी ईरान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। इस हालात में ईरान-इजराइल के बीच युद्ध होता है तो क्षेत्र में मौजूद तमाम मुस्लिम देशों की भूमिका बेहद अहम होगी। हालांकि सऊदी अरब, जॉर्डन और इजिप्ट जैसे देश अब तक इस तनाव में तटस्थ नजर आए हैं।

हरियाणा में एमपी-राजस्थान की तरह होंगे 2 डिप्टी सीएम! सैनी कैबिनेट में ये चेहरे हो सकते हैं शामिल

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हरियाणा चुनाव के परिणाम आने के बाद सरकार गठन की कवायद शुरू हो गई हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद बाद प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। कहा जा रहा है कि विजयदशमी के दिन नई सरकार का शपथग्रहण हो सकता है।चर्चाएं हैं कि हरियाणा में भाजपा दो डिप्टी सीएम बना सकती है। इसमें एक दलित तो दूसरा यादव समाज से हो सकता है।

चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी ने कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन पार्टी के बड़े नेता पहले ही नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री का चेहरा बता चुके हैं। हरियाणा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान तो साफ-साफ कह चुके हैं कि सरकार आने पर सैनी ही मुख्यमंत्री बनेंगे। ऐसे में कहा जा रहा है कि सैनी ही हरियाणा के नए मुख्यमंत्री हो सकते हैं। जल्द ही पार्टी की तरफ से इसकी आधिकारिक घोषणा को लेकर प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।

हरियाणा सरकार में मुख्यमंत्री सहित कुल 14 मंत्री हो सकते हैं। पिछली सरकार के 8 मंत्री चुनाव हार चुके हैं। 3 मंत्रियों के टिकट काटे गए थे। सिर्फ 2 मंत्री चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। इसका मतलब है कि भाजपा को 11 नए चेहरों की तलाश करनी होगी। अनिल विज वो सीनियर नेता हैं जिन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी है। अनिल विज को मंत्री पद मिल सकता है। बीजेपी जाटों, ब्राह्मणों, पंजाबी और दलितों सहित राज्य की विभिन्न जातियों को ध्यान में रखकर कैबिनेट का गठन करेगी।

बीजेपी के पक्ष में दलित, अहीर, गुर्जर और अन्य गैर-जाट ओबीसी के साथ ब्राह्मण और राजपूतों ने भी जमकर मतदान किया है। ऐसे में सरकार में इन जातियों का सियासी दबदबा दिख सकता है। बीजेपी के पास अब दलित समुदाय से नौ विधायक हैं, आठ पंजाबी मूल के, सात ब्राह्मण और जाटों और यादवों में से प्रत्येक के छह विधायक हैं। पार्टी के पास गुर्जर, राजपूत, वैश्य और एक ओबीसी नेता भी हैं।

 

नौ दलित विधायकों में एक हैं छह बार के विधायक कृष्ण लाल पंवार और दूसरे हैं दो बार के विधायक कृष्णा बेदी। पंजाबी मूल के आठ लोगों में सात बार के विधायक और पूर्व गृह मंत्री अनिल विज हैं, जो मार्च में मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के बाद नाराज हो गए थे। जींद के विधायक कृष्ण मिड्ढा भी इस रेस में हैं, जिन्होंने लगातार तीसरी बार अपनी सीट जीती है। एक और अब तीन बार के विधायक यमुनानगर से घनश्याम दास अरोड़ा हैं। लेकिन उनकी नियुक्ति को छोड़ दिया जा सकता है क्योंकि उनकी सीट अम्बाला क्षेत्र के भीतर है। अरोड़ा को हांसी से तीन बार के विधायक विनोद भयाना के लिए नजरअंदाज किया जा सकता है।

ब्राह्मण चेहरों में बल्लभगढ़ से तीन बार के विधायक मूल चंद शर्मा शामिल हैं, जिन्हें मंत्रिमंडल में बरकरार रखा जा सकता है। एक और संभावित दो बार के लोकसभा सांसद अरविंद शर्मा हैं जिन्होंने गोहाना जीता। राम कुमार गौतम, जिन्होंने सफीदों को जीत दिलाई, जिसे भाजपा ने कभी नहीं जीता था। भाजपा के लिए अहीरवाल बेल्ट के छह विधायक महत्वपूर्ण हैं जिन्होंने एक बार फिर पार्टी को भारी मतों से वोट दिया। इनमें बादशाहपुर से छह बार के विधायक राव नरबीर सिंह हैं। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव ने पहली बार अटेली सीट जीती है, लेकिन उनका नाम शॉर्टलिस्ट में है। साथ ही दो बार के विधायक लक्ष्मण यादव का नाम भी है।

जाट नेता महीपाल ढांडा अब पानीपत (ग्रामीण) से दो बार के विधायक हैं और उनके बरकरार रहने की संभावना है। राई से दूसरी बार चुने गए कृष्ण गहलोत भी इस दौड़ में शामिल हैं। एक संभावित बड़ा नया नाम पार्टी के राज्यसभा सांसद किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी का है। अन्य संभावित उम्मीदवारों में वैश्य समुदाय के पूर्व मंत्री विपुल गोयल शामिल हैं। हरियाणा में सबसे अमीर महिला और हिसार से निर्दलीय विधायक सावित्री जिंदल ने औपचारिक रूप से भाजपा को अपना समर्थन दे दिया है। इससे उनके नए मंत्रिमंडल में शामिल होने की संभावना बढ़ गई है।

हरियाणा में हार के बाद राहुल गांधी का बड़ा बयान, बोले- पार्टी की जगह अपना इंटरेस्ट ऊपर रखा

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हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीतते-जीतते हार गई। इसके साथ कांग्रेस को लगातार तीसरी बार हरियार में हार का मुंह देखना पड़ा है। कांग्रेस राज्य में केवल 37 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस के ने आज समीक्षा बैठक की। गुरुवार को पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर बैठक हुई, जिसमें राहुल गांधी भी शामिल हुए। सूत्रों के मुताबिक, इस दौरान राहुल ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा का नाम लिए बिना बड़ी बात कही। उन्होंने साफतौर पर कहा कि नेताओं ने पार्टी की जगह अपना हित देखा।

सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में राहुल गांधी हरियाणा में कांग्रेस को मिली हार की वजह प्रदेश कांग्रेस के नेताओं बताया। हालांकि उन्‍होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्‍होंने जो बयान दिया, उससे उनकी नाराजगी साफ जाहिर हुई। उन्‍होंने कहा कि हरियाणा में नेताओं का इंटरेस्ट ऊपर रहा, जबकि पार्टी का इंटरेस्ट नीचे चला गया।

सूत्रों के मुताबिक, पार्टी हार के कारणों का पता लगाने के लिए एक समिति बनाएगी। कमेटी ये पता करेगी कि उसे चुनाव में क्यों और कैसे हार मिली. समिति में कौन-कौन होगा, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है।

भारत की बढ़ेगी ताकतः यूएस से परमाणु पनडुब्बियों-31 प्रीडेटर ड्रोन के लिए 80000 करोड़ का सौदा

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हिंद माहासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए चिंता का विषय है। यही वजह है कि भारत लगातार अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ा रहा है। इसी क्रम में भारतीय नौसेना और रक्षा बलों की निगरानी क्षमताएं बढ़ाने के लिए सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने स्वदेशी रूप से दो परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण और अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के अहम सौदों को मंजूरी दे दी है।सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने इस संबंध में 80,000 करोड़ रुपये के प्रमुख सौदों को मंजूरी दे दी है। इससे समुद्र से लेकर सतह और आसमान तक में भारत की मारक और निगरानी क्षमता में प्रभावी वृद्धि होगी।

सूत्रों ने एएनआई को बताया कि योजना के अनुसार, भारतीय नौसेना को दो परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बियां मिलेंगी जो हिंद महासागर क्षेत्र में इसकी क्षमताओं को कई गुना बढ़ाने में मदद करेंगी। इससे भारत की मारक और निगरानी क्षमता में वृद्धि होगी। जानकारी के मुताबिक दो परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण के लिए विशाखापट्टनम स्थित शिप बिल्डिंग सेंटर के साथ 45,000 करोड़ रुपए की डील हुई है। खास बात ये है कि इसमें लॉर्सन एंड टूब्रो जैसी निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों की भी भागीदारी होगी। बताया जा रहा है कि ये डील काफी समय से अटकी थी जो अब फाइनल हो गई है।

काफी समय से अटकी थी डील

सूत्रों ने बताया कि यह सौदा लंबे समय से लटका हुआ था। भारतीय नौसेना इस पर जोर दे रही थी क्योंकि समुद्र के भीतर उसकी क्षमता की कमी को पूरा करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण आवश्यकता थी। भारत ने नौसेना में पनडुब्बियों को शामिल करने की दीर्घकालिक योजना बनाई है जिसके तहत इस तरह की छह पनडुब्बियां शामिल हैं। इन पनडुब्बियों का निर्माण महत्वाकांक्षी एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल प्रोजेक्ट के तहत किया जाएगा जो अरिहंत श्रेणी के तहत बनाई जा रही पांच परमाणु पनडुब्बियों से अलग हैं।

31 प्रीडेटर ड्रोन की डील

सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा मंजूर किया गया दूसरा बड़ा सौदा अमेरिकी जनरल एटॉमिक्स से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने का है। यह सौदा भारत-अमेरिका के बीच विदेशी सैन्य बिक्री अनुबंध के तहत है। इस सौदे को 31 अक्टूबर से पहले मंजूरी मिलनी थी क्योंकि अमेरिकी प्रस्ताव की वैधता तभी तक थी। अब इस पर अगले कुछ दिनों में ही हस्ताक्षर होंगे।उन्होंने बताया कि अनुबंध के अनुसार, रक्षा बलों को सौदे पर हस्ताक्षर करने के चार साल बाद ड्रोन मिलने शुरू हो जाएंगे। भारतीय नौसेना को 31 में से 15 ड्रोन मिलेंगे। थल सेना और वायु सेना को आठ-आठ ड्रोन मिलेंगे।

अमेरिका से खरीदे जाने वाले 31 ड्रोन में से कुछ को भारत में ही असेंबल किया जाएगा, जिनमें से 30% कंपोनेंट्स इंडियन सप्लायर्स के ही रहेंगे। इन ड्रोन में डीआरडीओ से बनी कोई मिसाइल नहीं लगाई जाएगी, क्योंकि ऐसा करने में ड्रोन की गारंटी खत्म हो जाएगी।

हरियाणा की हार के बाद, महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव में कांग्रेस पर क्या का होगा?
#after_haryana_congress_cut_down_to_size_by_allies_in_maharashtra_jharkhand हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए बड़ी असफलता साबित हुए हैं। पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान जो मोमेंटम हासिल किया था, उसे गंवा दिया है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली के अहम विधानसभा चुनाव होने हैं। जाहिर सी बात है इस हार का असर इन चुनावों में भी देखा जाएगा। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की हार का असर आने वाले विधानसभा चुनावों में भी दिखेगा। महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में कांग्रेस को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। सहयोगियों के साथ मोलभाव कठिन हो सकता है। बता दें कि इस साल के आखिर तक महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव हो सकते हैं। महाराष्ट्र की बात करें तो राहुल गांधी लगातार कांग्रेस की ओर से वहां चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं। वह कई सभाओं को संबोधित कर चुके हैं। वहीं, भाजपा भी उस राज्य को हर हाल में अपने साथ रखना चाहती है। इस कारण महाराष्ट्र में भाजपा भी अपनी ताकत लगा रही है। ऐसे में महाराष्ट्र में इस बार जो लड़ाई होगी, वह कांटे की होगी। बीजेपी को हरियाणा में मिल रही जीत से महाराष्ट्र और झारखंड में कई गुना तेजी से पार्टी अपनी ताकत झोंक सकती है। झारखंड चुनाव में भी बीजेपी को उम्मीद ज्यादा है। हेमंत सोरेन की सरकार में जिस तरीके से हिंदुओं पर हमले हुए, लव जिहाद के मामले आए, आदिवासी गांव में बांग्लादेशी घुसपैठियों का आना जाना बढ़ा, उससे झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार निशाने पर आ गई है। यही कारण है कि भाजपा इस चुनाव को लेकर अभी से ही इन्हें मुद्दा बनाते हुए अभी से वहां पूरी ताकत झोंक रही है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी बार-बार वहां जा रहे हैं। भाजपा को भी पता है कि वहां दोबारा सत्ता किसी की नहीं आती है। ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि झारखंड में एक बार फिर से उसकी सरकार बन सकती है। यहां कांग्रेस अभी काफी पिछड़ी स्थिति में दिख रही है। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में 99 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस इंडिया ब्लॉक में खुद को बड़े भाई के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगी थी। लेकिन हरियाणा और जम्मू कश्मीर की हार से उसका ये भ्रम टूटेगा। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस नेशनल कॉन्फ्रेंस की जूनियर पार्टनर बनकर चुनाव लड़ी। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 51 में से 42 सीटों पर जीत हासिल की है। कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ 6 सीटें जीत पाई है। हरियाणा में कांग्रेस को बीजेपी से सीधी लड़ाई में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के बाद करारी मात मिली है। पार्टी मध्य प्रदेश में 15 साल की सत्ता विरोधी लहर को नहीं भुना पाई तो हरियाणा में पार्टी 10 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद नहीं जीत पाई। हरियाणा में कांग्रेस की हार ने विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन को प्रभावित किया है, जिससे भविष्य के राज्य चुनावों के लिए उनके दृष्टिकोण में बदलाव होने की संभावना है। कांग्रेस को हार के बाद यह सुझाव दिया जा रहा है कि वो अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करे। हरियाणा की हार के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस को अपनी स्ट्रैटजी पर फिर से सोचने की जरूरत है। बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में पार्टी कमजोर पड़ जाती है। ऐसा क्यों होता है। पूरे गठबंधन पर फिर से काम करने की जरूरत है। बता दें कि महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस की सहयोगी पार्टनर है। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 8 अक्टूबर को चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस का सीधे तौर पर जिक्र किए बिना कहा कि किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। केजरीवाल ने एमसीडी पार्षदों को संबोधित करते हुए कहा कि हरियाणा का चुनावी परिणाम देखिए। वहां क्या हुआ है। इस परिणाम का सबसे बड़ा सबक ये है कि किसी को भी अति आत्म विश्वास का शिकार नहीं होना चाहिए।