हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की आज पुण्यतिथि जानते है उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें


नयी दिल्ली : कथा सम्राट प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को काशी के लमही गांव में हुआ था। पिता ने नाम रखा धनपत राय। चाचा ने नवाब राय। लिखने की शुरुआत उर्दू से की बाद में हिन्दी में लिखने लगे।

शुरुआती सालों में वो नवाब राय नाम से लिखते हैं लेकिन अंग्रेज सरकार द्वारा “सोजे वतन” कहानी संग्रह जब्त किए जाने के बाद वो प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। आठ अक्टूबर 1936 को बनारस में ही उनका निधन हुआ। गोदान, गबन, कर्मभूमि, सेवा सदन जैसे अमर उपन्यास और ईदगाह, ठाकुर का कुआं, बड़े भाई, पूस की रात जैसी सैकड़ों कहानियां लिखने वाले प्रेमचंद अपने समय से आज तक हिन्दी-उर्दू उपन्यासकार माने जाते हैं। 

उनके बारे में सैकड़ों शोध प्रबंध और दर्जों संस्मरण लिखे गए होंगे लेकिन वो व्यक्ति के रूप में कैसे थे ये सबसे मार्मिक तरीके से उनकी पत्नी शिवरानी देवी के लिखे से सामने आता है। शिवरानी देवी प्रेमचंद की दूसरी पत्नी थीं। वो बाल विधवा थीं।

पहली पत्नी से प्रेमचंद के संबंध मधुर नहीं थे लेकिन शिवरानी देवी सही मायनों में जीवनसंगिनी थीं। 1944 में शिवरानी देवी ने प्रेमचंद से जुड़ी अपनी यादों को “प्रेमचंद घर में” नामक किताब में सहेजा। पेश है उसी किताब का एक हिस्सा जिससे पता चलता है कि प्रेमचंद कई बार शिवरानी देवी के मनचाहे भावों पर भी कहानी लिख दिया करते थे। नीचे पढ़िए स्वयं शिवरानी देवी ने क्या लिखा है।

शिवरानी देवी की पुस्तक “प्रेमचंद घर में” का अंश

उन दिनों मैं अकेली महोबे में रहती थी। वे जब दौरे पर रहते तो मेरे साथ ही सारा समय काटते और अपनी रचनाएँ सुनाते। अंग्रेजी अखबार पढ़ते तो उसका अनुवाद मुझे सुनाते।

 उनकी कहानियों को सुनते-सुनते मेरी भी रुचि साहित्य की ओर हुई। जब वे घर पर होते, तब मैं कुछ पढ़ने के लिए उनसे आग्रह करती। सुबह का समय लिखने के लिए वे नियत रखते। दौरे पर भी वे सुबह ही लिखते। बाद को मुआइना करने जाते। इसी तरह मुझे उनके साहित्यिक जीवन के साथ सहयोग करने का अवसर मिलता। जब वे दौरे पर होते, तब मैं दिन भर किताबें पढ़ती रहती। इस तरह साहित्य में मेरा प्रवेश हुआ।

उनके घर रहने पर मुझे पढ़ने की आवश्यकता न प्रतीत होती। मुझे भी इच्छा होती कि मैं कहानी लिखूँ।

हालाँकि मेरा ज्ञान नाममात्र को भी न था, पर मैं इसी कोशिश में रहती कि किसी तरह मैं कोई कहानी लिखूँ। उनकी तरह तो क्या लिखती। मैं लिख-लिखकर फाड़ देती। और उन्हें दिखाती भी नहीं थी। हाँ, जब उनपर कोई आलोचना निकलती तो मुझे उसे सुनाते। उनकी अच्छी आलोचना प्रिय लगती। काफी देर तक यह खुशी रहती। मुझे यह जानकार गर्व होता कि मेरे पति पर यह आलोचना निकली है। जब कभी उनकी कोई कड़ी आलोचना निकलती, तब भी वे उसे बड़े चाव से पढ़ते। मुझे तो बहुत बुरा लगता।

मैं इसी तरह कहानियाँ लिखती और फाड़कर फेंक देती। बाद में गृहस्थी में पड़कर कुछ दिनों के लिए मेरा लिखना छूट गया। हाँ, कभी कोई भाव मन में आता तो उनसे कहती, इस पर आप कोई कहानी लिख लें। वे जरूर उस पर कहानी लिखते। कई वर्षों के बाद, 1913 के लगभग, उन्होंने हिन्दी में कहानियाँ लिखना शुरू किया। किसी कहानी का अनुवाद हिन्दी में करते, किसी का उर्दू में। मेरी पहली ‘साहस’ नाम की कहानी चाँद में छपी। मैंने वह कहानी उन्हें नहीं दिखाई। चाँद में आपने देखा। ऊपर आकर मुझसे बोले – अच्छा, अब आप भी कहानी-लेखिका बन गईं ? बोले – यह कहानी आफिस में मैंने देखी। आफिसवाले पढ़-पढ़कर खूब हँसते रहे। कइयों ने मुझ पर संदेह किया। तब से जो कुछ मैं लिखती, उन्हें दिखा देती। हाँ, यह खयाल मुझे जरूर रहता कि कहीं मेरी कहानी उनके अनुकरण पर तो नहीं जा रही हो। क्योंकि मैं लोकापवाद को डरती थी। 

एक बार गोरखपुर में डा. एनी बेसेंट की लिखी हुई एक किताब आप लाए। मैंने वह किताब पढ़ने के लिए माँगी। आप बोले – तुम्हारी समझ में नहीं आएगी। मैं बोली – क्यों नहीं आएगी ? मुझे दीजिए तो सही। उसे मैं छः महीने तक पढ़ती रही। रामायण की तरह उसका पाठ करती रही। उसके एक-एक शब्द को मुझे ध्यान में चढ़ा लेना था। क्योंकि उन्होंने कहा था कि यह तुम्हारी समझ में नहीं आएगी। मैं उस किताब को खतम कर चुकी तो उनके हाथ में देते हुए बोली – अच्छा, आप इसके बारे में मुझसे पूछिए। मैं इसे पूरा पढ़ गई। आप हँसते हुए बोले – अच्छा !

मैं बोली – आपको बहुत काम रहते भी तो हैं। फिर बेकार आदमी जिस किसी चीज के पीछे पड़ेगा, वही पूरा कर देगा।

मेरी कहानियों का अनुवाद अगर किसी और भाषा में होता तो आपको बड़ी प्रसन्नता होती। हाँ, उस समय हम दोनों को बुरा लगता, जब दोनों से कहानियाँ माँगी जातीं। या जब कभी रात को प्लाट ढूँढ़ने के कारण मुझे नींद न आती, तब वे कहते – तुमने क्या अपने लिए एक बला मोल ले ली। आराम से रहती थीं, अब फिजूल की एक झंझट खरीद ली। मैं कहती – आपने नहीं बला मोल ले ली ! मैं तो कभी-कभी लिखती हूँ। आपने तो अपना पेशा बना रखा है। आप बोलते – तो उसकी नकल तुम क्यों करने लगीं? मैं कहती – हमारी इच्छा ! मैं भी मजबूर हूँ। आदमी अपने भावों को कहाँ रखे? किस्मत का खेल कभी नहीं जाना जा सकता। बात यह है कि वे होते तो आज और बात होती। लिखना-पढ़ना तो उनका काम ही था। मैं यह लिख नहीं रही हूँ, बल्कि शांति पाने का एक बहाना ढूंढ रखा है।

सच्चाई:कनाडा में नौकरी का 'खौफनाक' सच; वेटर और नौकर बनने के लिए कतार में खड़े हजारों भारतीय


नयी दिल्ली :- हर साल लाखों भारतीय विदेश में पढ़ाई करने का सपना लेकर कनाडा जाते हैं। इनमें से ज्यादा नौजवान वहां नौकरी करके पढ़ाई का खर्च उठाने का फैसला करके जाते हैं, लेकिन कनाडा में नौकरी तलाश करना आसान काम नहीं है।सपने देखने का हक सभी को है, लेकिन इस सपने की हकीकत कुछ और ही है।

जी हां, सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है, जिसे देखकर और मामले के बारे में जानकर आप कहेंगे कि वाकई सपनों से बाहर की दुनिया बेहद अलग है। 

वायरल वीडियो में हजारों भारतीय छात्रों को कनाडा में रेस्टोरेंट के बाहर वेटर की नौकरी के लिए कतार में खड़े दिखाया गया है। करीब 3000 भारतीय इस नौकरी के लिए आए।

वेटर और सर्विस स्टाफ की नौकरी चाहिए

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वायरल वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर नामक अकाउंट से शेयर किया गया है। वीडियो पोस्ट को कैप्शन दिया गया है कि सुंदर सपनों के साथ भारत छोड़कर कनाडा जाने वाले छात्रों को गंभीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है! कनाडा के तंदूरी फ्लेम रेस्टोरेंट के बाहर छात्रों की लंबी कतार लगी है।

इनमें ज्यादातर भारतीय हैं, जो बेसब्री से नौकरी के लिए इंटरव्यू का इंतजार कर रहे हैं। 

वे लोग रेस्टोरेंट में वेटर और सर्विस स्टाफ की जॉब के लिए इंटरव्यू देने आए हैं। लाइन में लगे अगमवीर सिंह ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि दोपहर 12 बजे के आसपास आया था और लाइन बहुत लंबी थी। इंटरनेट पर अप्लाई किया था। लोग यहां यूं ही आ रहे हैं। लगता नहीं कि यहां नौकरियों की कोई गुंजाइश है।

वीडियो पर कमेंट भी निराश करने वाले आए

एक अन्य युवक ने कहा कि यह बहुत बुरा है। हर कोई नौकरी की तलाश में है और किसी को भी ठीक से नौकरी नहीं मिल रही है। कई दोस्तों के पास अभी नौकरी नहीं है और वे 2-3 साल से यहां हैं। 

वहीं इस फुटेज के वायरल होने के बाद इस पर लोगों की टिप्पणियां भी आ रही हैं। एक X यूजर ने कमेंट किया कि यह उन लोगों के लिए कठोर वास्तविकता है, जो सोचते हैं कि कनाडा दूध और शहद की भूमि है।

एक अन्य यूजर ने लिखा कि इतने सारे छात्रों को ऐसी विकट परिस्थिति में देखना निराशाजनक है। एक यूजर ने टिप्पणी की कि शायद यही समय है कि भावी छात्र अपने फैसले पर पुनर्विचार करें और ऐसा कदम उठाने से पहले 2 बार सोचें। एक यूजर ने सहानुभूति व्यक्त की और कहा कि इतने सारे युवाओं को नौकरी खोजने के लिए संघर्ष करते देखना दिल दहला देने वाला है।

कम उम्र में सफेद हो रहे हैं बालों से परेशान हैं तो इस तरह लगाएं कलौंजी, कुछ ही दिनों में दिखेगा असर

बालों का सफेद होना एक ऐसी दिक्कत है जिससे अनेक लोगों को दो चार होना पड़ता है।आधुनिक समय में लोगों के बाल कम उम्र में ही सफेद हो रहे हैं, इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं। मुख्य रूप से कम उम्र में सफेद बाल होना, जेनेटिक होता है। लेकिन आज के समय में बढ़ते प्रदूषण और गलत लाइफस्टाइल की वजह से भी लोगों के बाल कम उम्र में सफेद हो रहे हैं। इसके अलावा थायराइड डिजीजस शरीर में पोषक तत्वों की कमी जैसे- विटामिन बी12, विटामिन सी इत्यादि और धूमपान का सेवन करने वालों के बाल भी कम उम्र में सफेद हो रहे हैं। 

अगर आपके बाल सामान्य कारणों से सफेद हो रहे हैं, तो इस परेशानी को कुछ नैचुरल उपायों द्वारा कम किया जा सकता है। इन नैचुरल उपायों में कलौंजी शामिल है। जी हां, कलौंजी के प्रयोग से आप अपने बालों को काफी हद तक काला कर सकते हैं। आइए जानते हैं सफेद बालों को काला करने में कलौंजी किस तरह फायदेमंद है और किस तरह से करें इसका प्रयोग?

कलौंजी बालों को काला करने में कैसे है फायदेमंद?

कलौंजी में कई तरह के महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट्स और पोषक तत्व होते हैं, जो आपके सफेद बालों को काला करने में प्रभावी साबित हो सकते हैं। इससे बालों की परेशानियों को काफी हद तक कम की जा सकती है।

दरअसल, कलौंजी में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो आपके फ्री रेडिकल्स और ऑक्सीडेटिव तनाव से लड़ने में मदद कर सकते हैं। इससे समय से पहले बुढ़ापा और सफेद होते बालों की परेशानी कम की जा सकती है।

इसके अलावा कलौंजी विटामिन बी, मिनरल्स और अमीनो एसिड जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिससे बालों को हेल्दी बनाए रखने में मदद मिल सकती है। स्वस्थ बालों को बनाए रखने और सफ़ेद बालों को रोकने में मदद कर सकते हैं। इसमें मौजूद थाइमोक्विनोन बालों के विकास को उत्तेजित कर सकता है और बालों के विकास में शामिल कोशिकाओं के प्रसार को बढ़ावा दे सकता है।

इतना ही नहीं, कलौंजी के प्रयोग से स्कैल्प में होने वाली सूजन और जलन को कम किया जा सकता है। इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करके आपके बालों के विकास को बढ़ा सकते हैं और इससे सफेद होते बालों को भी कम किया जा सकता है।

सफेद बालों को काला करने के लिए किस तरह इस्तेमाल करें कलौंजी?

सफेद होते बालों को काला करने के लिए आप कलौंजी का प्रयोग कर सकते हैं। इसका प्रयोग आप तेल के रूप में कर सकते हैं, जिसे घर पर तैयार करना बहुत ही आसान है। 

आइए जानते हैं कलौंजी तेल की रेसिपी-

आवश्यक सामग्री

सरसों या नारियल का तेल - 1 कटोरी

करी पत्ता- 10 से 15

कलौंजी - 2 से 3 चम्मच

विधि

कलौंजी का तेल तैयार करने के लिए सबसे पहले एक पैन लें, इसमें कलौंजी और करी पत्ता डाल डालकर रंग बदलने तक पकाएं। इसके बाद जब तेल गर्म हो जाए, तो इसे ठंडा करके स्टोर कर लें। तैयार तेल को अपने बालों पर एप्लाई करें। 

कुछ सप्ताह तक इस तेल को बालों में लगाने से आपके सफेद बाल काले हो सकते हैं।

अगर आप झारखंड आए तो इन 5 लजीज डिशों का मज़ा न लिया, तो यात्रा रह जाएगी अधूरी।


झारखंड एक ऐसा राज्य है जो सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी अनोखी और स्वादिष्ट पारंपरिक व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के खाने में स्थानीय मसालों और पारंपरिक विधियों का समावेश होता है, जो हर किसी का दिल जीत लेता है। अगर आप झारखंड घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो इन 5 व्यंजनों को ज़रूर चखें। ये व्यंजन आपके स्वाद को एक नए स्तर पर ले जाएंगे और आपकी झारखंड यात्रा को यादगार बना देंगे।

1. लिट्टी-चोखा

लिट्टी-चोखा न केवल बिहार बल्कि झारखंड का भी एक प्रसिद्ध व्यंजन है। यह गेंहू के आटे से बनी लिट्टी होती है, जिसमें सत्तू (भुने हुए चने का आटा) भरा जाता है। इसे चूल्हे या ओवन में सेंका जाता है और चोखा (आलू, बैंगन और टमाटर से बनी चटनी) के साथ परोसा जाता है। सरसों के तेल की खुशबू और मसालों का अनोखा स्वाद इसे खास बनाता है।

2. धुस्का

धुस्का एक पारंपरिक झारखंडी स्नैक है, जो चावल और उड़द की दाल के घोल से तैयार किया जाता है। इसे तेल में तलकर कुरकुरा बनाया जाता है और आलू की चटपटी सब्जी के साथ खाया जाता है। इसका स्वाद और बनावट दोनों ही इसे एक लोकप्रिय नाश्ता बनाते हैं, जिसे स्थानीय लोग सुबह या शाम की चाय के साथ लेना पसंद करते हैं।

3. चिरौंजी की चटनी

यह झारखंड की एक खास चटनी है, जिसे चिरौंजी (चारोली) के बीज से बनाया जाता है। इसमें नींबू, हरी मिर्च, धनिया और नमक का प्रयोग होता है, जो इसे चटपटा और तीखा बनाता है। यह चटनी चावल, पराठा या अन्य झारखंडी व्यंजनों के साथ खाई जाती है, जो खाने में अलग ही स्वाद जोड़ती है।

4. अरसा

अरसा एक पारंपरिक मीठा व्यंजन है, जो झारखंड की खास पहचान है। इसे चावल के आटे और गुड़ से बनाया जाता है। इसकी बनावट सख्त और कुरकुरी होती है, और इसका स्वाद मीठा और हल्का होता है। अरसा ज्यादातर त्योहारों, शादियों और अन्य विशेष अवसरों पर परोसा जाता है।

5. पीठा

पीठा झारखंड और पूर्वी भारत में बहुत लोकप्रिय है। यह चावल के आटे और दाल के मिश्रण से तैयार किया जाता है। पीठा कई प्रकार के होते हैं, जैसे - मीठे पीठा, नमकीन पीठा और भरे हुए पीठा। इसे ज्यादातर स्टीम करके तैयार किया जाता है, जिससे यह हेल्दी भी होता है। इसका अनोखा स्वाद और बनाने की विधि इसे एक खास व्यंजन बनाते हैं, जो हर किसी को पसंद आता है।

निष्कर्ष

झारखंड की इन पारंपरिक डिशों का स्वाद न सिर्फ आपके स्वाद को तृप्त करेगा, बल्कि आपको राज्य की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं से भी परिचित कराएगा। ये व्यंजन न सिर्फ स्वादिष्ट हैं बल्कि इनमें झारखंड की आत्मा भी बसी हुई है। तो जब भी आप झारखंड की यात्रा पर जाएं, इन डिशों को अपने खाने की लिस्ट में ज़रूर शामिल करें। एक बार इन्हें चखने के बाद, आप बार-बार इन्हें ऑर्डर किए बिना नहीं रह पाएंगे!

जानिए ऐसे अद्भुत जानवर के बारे में जो बिना सोए पूरी जिंदगी निकाल देते है


कुछ जानवर ऐसे होते हैं जो या तो बहुत कम सोते हैं या बिना सोए भी अपनी जिंदगी गुजार सकते हैं। यह उनकी शारीरिक संरचना और व्यवहार पर निर्भर करता है। नीचे 8 ऐसे जानवरों की सूची दी गई है, जो या तो बिना सोए रहते हैं या बहुत कम सोने की क्षमता रखते हैं:

1. डॉल्फिन (Dolphin)

डॉल्फिन्स के पास असामान्य रूप से नींद लेने का तरीका होता है। वे आधे दिमाग (ब्रेन) के साथ सोती हैं जबकि उनका दूसरा आधा जागृत रहता है, ताकि वे श्वास (breathing) के लिए सतह पर आ सकें और किसी भी खतरे से बच सकें। यह प्रक्रिया उनके लिए जीवनभर चलती है।

2. शार्क (Sharks)

कई शार्क प्रजातियां कभी भी पूरी तरह नहीं सोतीं, क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए निरंतर तैरना पड़ता है। वे अपनी मांसपेशियों की क्रियाओं के द्वारा गिल्स (gills) में पानी का प्रवाह बनाए रखती हैं, जिससे वे सांस ले पाती हैं।

3. चींटियां (Ants)

चींटियां बहुत कम समय के लिए सोती हैं, औसतन एक दिन में केवल 4-5 घंटे की छोटी-छोटी झपकियों के रूप में। उनकी नींद इतनी कम होती है कि यह लगभग न के बराबर समझी जाती है। वे बिना सोए भी अपना काम पूरा करने में सक्षम होती हैं।

4. हाथी (Elephants)

हाथी प्रतिदिन केवल 2-3 घंटे सोते हैं, और कुछ हाथी कई दिनों तक बिना सोए रह सकते हैं। यह क्षमता उन्हें जंगल में किसी भी खतरे से बचने और समूह का नेतृत्व करने में मदद करती है।

5. जिराफ (Giraffe)

जिराफ भी बहुत कम सोते हैं, प्रतिदिन केवल 1-2 घंटे। वे ज्यादातर खड़े-खड़े सोते हैं और बहुत ही छोटी-छोटी झपकियां लेते हैं ताकि शिकारियों से बच सकें।

6. गाय (Cows)

गाय भी बहुत कम सोती हैं। वे सामान्यतः केवल 4 घंटे की झपकियां लेती हैं। उन्हें ज्यादातर समय चरने और जुगाली करने में लगता है, जिससे वे बिना अधिक सोए भी सक्रिय रहती हैं।

7. बैल (Bull)

बैल भी कम सोने की क्षमता रखते हैं। वे दिन में कुछ ही घंटों के लिए विश्राम करते हैं और बिना सोए भी अपने सभी कार्य कर सकते हैं।

8. नीली व्हेल (Blue Whale)

नीली व्हेल, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा स्तनधारी है, बहुत ही कम सोती है। यह सतह के पास या थोड़ा गहरे पानी में बहुत ही कम समय के लिए सोती है। इसके जाग्रत रहने का मुख्य कारण यह है कि उसे भी श्वास लेने के लिए सतह पर आना पड़ता है।

इन जानवरों की नींद की आदतें और सोने के तरीके उनके प्राकृतिक आवास और जीवनशैली से प्रभावित होती हैं, जो उन्हें अपने-अपने वातावरण में जीवित रहने के लिए अनुकूल बनाते हैं।

आईए जानते है, वैसे अद्भुत जानवर के बारे में जो अपने अंगों को पुनः उगा सकते हैं...


कुछ जानवरों में अद्भुत पुनर्जीवन की क्षमता होती है, जो उन्हें अपने खोए हुए अंगों को पुनः उत्पन्न करने की अनुमति देती है। इस लेख में हम ऐसे ही कुछ जीवों के बारे में जानेंगे जो इस असाधारण गुण के धनी हैं:

1. स्टारफिश (Starfish)

स्टारफिश, जिसे समुद्री सितारा भी कहा जाता है, के पास अपने हाथों (arms) को पुनः उगाने की क्षमता होती है। यदि किसी कारणवश इसका हाथ कट जाए, तो वह कुछ ही महीनों में अपने खोए हुए अंग को फिर से उत्पन्न कर लेती है। इतना ही नहीं, कुछ प्रजातियों में तो एक कटा हुआ हाथ भी नया स्टारफिश बना सकता है।

2. सैलामैंडर (Salamander)

सैलामैंडर के पास अपने शरीर के लगभग किसी भी हिस्से, जैसे पैर, पूंछ, और यहां तक कि रीढ़ की हड्डी के हिस्सों को पुनः उत्पन्न करने की अविश्वसनीय क्षमता होती है। ये जीव अपने तंत्रिका तंतु (nerve tissues) और हृदय की कोशिकाओं तक को पुनः बना सकते हैं।

3. एक्सोलोटल (Axolotl)

मैक्सिकन सैलामैंडर के नाम से भी जाना जाने वाला एक्सोलोटल विशेष रूप से अपने पुनरुत्पादन गुण के लिए प्रसिद्ध है। यह अपनी आंखें, अंग, रीढ़ की हड्डी और यहां तक कि हृदय और मस्तिष्क की कोशिकाओं को भी पुनः उत्पन्न कर सकता है। यह शोधकर्ताओं के लिए पुनर्जनन (regeneration) के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय है।

4. केकड़ा (Crab)

केकड़े के पास अपने पैर और पंजों को पुनः उगाने की क्षमता होती है। यदि इसके पैर या पंजे टूट जाएं या गिर जाएं, तो यह अगले कई मोल्टिंग (molting) चक्रों के दौरान इन्हें पुनः विकसित कर सकता है।

5. गिरगिट (Lizard)

गिरगिट की पूंछ को पुनः उगाने की क्षमता सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। जब गिरगिट खतरे का सामना करता है, तो यह अपनी पूंछ को छोड़ देता है, जिससे शिकारी उसका पीछा छोड़ देता है। फिर कुछ ही महीनों में यह एक नई पूंछ विकसित कर लेता है।

6. समुद्री खीरा (Sea Cucumber)

समुद्री खीरे अपने पूरे आंतरिक अंगों (internal organs) को पुनः उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। यदि ये किसी खतरे में होते हैं, तो अपने कुछ अंगों को छोड़कर दुश्मन को चकमा दे सकते हैं और बाद में इन्हें पुनः विकसित कर सकते हैं।

7. मेडुसा जेलीफ़िश (Turritopsis dohrnii)

मेडुसा जेलीफ़िश को "अमर जेलीफ़िश" भी कहा जाता है, क्योंकि यह अपने जीवनचक्र को पुनः प्रारंभ कर सकती है। यदि इसे चोट लगती है या इसके जीवित रहने की स्थिति बिगड़ जाती है, तो यह अपने आप को एक युवा अवस्था में बदलकर जीवनचक्र को पुनः शुरू कर सकती है।

इन जानवरों की पुनरुत्पादन क्षमता प्रकृति का अद्भुत उदाहरण है। वैज्ञानिक इन जीवों का अध्ययन करके यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि इनकी कोशिकाएं इस प्रकार से कैसे पुनः विकसित होती हैं, ताकि भविष्य में मनुष्यों में भी अंग पुनर्जनन की संभावना को खोजा जा सके।

गाजियाबाद में पुलिस और बदमाशों के बीच मुठभेड़ का मामला आया सामने


उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले से पुलिस और बदमाश के बीच मुठभेड़ होने का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि भोजपुर पुलिस द्वारा मुकीमपुर गांव व अमीपुर गांव नगोला के बीच पुलिया के पास चेंकिग के दौरान हुई मुठभेड़ में एक बदमाश घायल हो गया। जिसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

पुलिस को मारने की फिराक में था आरोपी

सहायक पुलिस आयुक्त मोदीनगर ज्ञानप्रकाश राय ने बताया कि गाजियाबाद पुलिस रात में चैकिंग कर रही थी तभी एक सिल्वर कलर की कार आते हुए दिखायी दी,जिसे रोकने का इशारा किया गया तो उसमें से 3 बदमाश उतरकर भागे। उनमें से एक बदमाश ने भागते हुए पुलिस टीम पर जान से मारने की नीयत से फायर किया। जबावी फायरिंग में उस बदमाश के पैर में गोली लगी। 

पूछने पर इसने अपना नाम आसिफ पुत्र इद्रीश निवासी मेरठ बताया था। मौके से दो बदमाश फरार हो गये। इस सम्बन्ध में कन्ट्रोल, स्वाट टीम ग्रामीण जोन को सूचना दी गई एवं इनकी गिरफ्तारी के लिए सघन चेंकिग अभियान चलाया गया। कुछ समय के बाद एक अन्य बदमाश नुरु पुत्र पृथ्वी को गिरफ्तार किया गया तथा स्वाट टीम द्वारा तीसरे बदमाश की घेराबन्दी की गई तो बदमाश द्वारा अपने आप को घिरता हुआ देख स्वाट टीम पर जान से मारने की नीयत से फायर किया। 

आत्मरक्षार्थ फायरिंग में बदमाश के पैर में गोली लगी।पूछने पर इसने अपना नाम वारिस पुत्र आबिद निवासी भोजपुर बताया।

आरोपियों ने स्वीकार की गलती

बदमाशों के कब्जे से दो तमंचा, कारतूस एवं प्रयुक्त कार की तलाशी लेने पर उसमें से गौकशी करने के औजार बरामद हुए। पूछताछ में इन्होंने विगत दिनों ग्राम मुकीमपुर व अमीपुर नगोला के बीच पुलिया के पास गौकशी करना स्वीकार किया।

बदमाशों के आपराधिक इतिहास की जानकारी की जा रही है। घायल बदमाशों को उपचार के लिए सीएचसी मोदीनगर भेजा गया।

गांधीजी ने क्यों छोड़ा नमक का सेवन? जानें इसके पीछे की कहानी


महात्मा गांधी ने नमक खाना छोड़ने का फैसला 1939 में किया था, और इसका एक विशेष कारण था। दरअसल, उन्होंने यह कदम एक व्यक्तिगत प्रतिज्ञा के रूप में उठाया था, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी की बीमारी के दौरान लिया था।

1939 में, कस्तूरबा गांधी बहुत बीमार थीं और उनकी हालत गंभीर थी। उनकी बीमारी के दौरान, महात्मा गांधी ने प्रार्थना की और प्रतिज्ञा की कि अगर कस्तूरबा स्वस्थ हो जाएंगी, तो वे जीवन भर नमक का त्याग कर देंगे। यह प्रतिज्ञा गांधीजी के आत्मसंयम और व्यक्तिगत अनुशासन को दर्शाती है। कस्तूरबा की स्थिति में सुधार हुआ, और गांधीजी ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए नमक का सेवन पूरी तरह से बंद कर दिया।

इस प्रतिज्ञा के पीछे एक और कारण भी था। गांधीजी नमक को जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक मानते थे और उन्होंने नमक सत्याग्रह के जरिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया था। नमक पर कर लगाए जाने के खिलाफ 1930 में नमक सत्याग्रह शुरू करने के पीछे गांधीजी का उद्देश्य यही था कि यह कर गरीबों पर अतिरिक्त बोझ डालता है और यह एक अन्यायपूर्ण कर है। जब उन्होंने नमक का त्याग किया, तो यह त्याग उनके लिए केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि उनके अनुयायियों और पूरे देश के लिए एक प्रतीकात्मक संदेश भी था।

इस प्रकार, महात्मा गांधी का नमक छोड़ने का फैसला न केवल व्यक्तिगत प्रतिज्ञा थी, बल्कि यह उनके आत्मानुशासन और संकल्प का भी उदाहरण है।

ब्रह्म कमल: उत्तराखंड का अनमोल और पवित्र राज्य पुष्प


ब्रह्म कमल (Saussurea obvallata) उत्तराखंड राज्य का राजकीय पुष्प है। इसे हिमालय के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है और यह अपनी अद्वितीय सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण विशेष पहचान रखता है।

खिलने का समय और स्थान:

यह पुष्प जुलाई से सितंबर के बीच, मानसून के दौरान, 3,000 से 4,500 मीटर की ऊँचाई पर खिलता है। उत्तराखंड के अलावा, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम के ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में भी यह फूल देखा जा सकता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

ब्रह्म कमल को हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है। इसे भगवान शिव और विष्णु से जोड़ा जाता है, और इसका उपयोग मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों में होता है। यह फूल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व रखता है।

पारिस्थितिक महत्व:

यह फूल राज्य की समृद्ध जैव-विविधता और प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है। इसका संरक्षण बेहद जरूरी है, क्योंकि यह एक दुर्लभ और विलुप्तप्राय पौधों की श्रेणी में आता है।

उत्तराखंड की पहचान:

ब्रह्म कमल न केवल उत्तराखंड की पारिस्थितिकी को दर्शाता है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और प्रकृति प्रेम का भी प्रतीक है।

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और भी ऊंची होती जा रही है, जानें क्यों


माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में हर साल थोड़ा-थोड़ा बदलाव होता है, तिब्बती में ‘चोमोलुंगमा’ और नेपाली में ‘सागरमाथा’ के नाम से मशहूर माउंट एवरेस्ट करीब 5 करोड़ साल पहले तब बनना शुरू हुआ था, जब भारतीय उपमहाद्वीप यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट से टकराया था. विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस चोटी की ऊंचाई और बढ़ती जा रही है.

कितनी बढ़ गई एवरेस्ट की ऊंचाई

माउंट एवरेस्ट 8,849 मीटर (29,032 फीट) ऊंचा है. 30 सितंबर को नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक पिछले 89,000 वर्षों में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 15 से 50 मीटर तक बढ़ी है. 

स्टडी में कहा गया है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की प्रक्रिया अभी भी जारी है. हर साल एवरेस्ट की ऊंचाई लगभग 2 मिलीमीटर बढ़ रही है. इस स्टडी को को-ऑथर और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में अर्थ साइंसेज के पीएचडी छात्र एडम स्मिथ कहते हैं, “माउंट एवरेस्ट एक किंवदंती है, जो हर साल और ऊंचा होता जा रहा है..’

बीजिंग में चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेज (China University of Geosciences) के भू-वैज्ञानिक और स्टडी के लेखक जिन-जेन दाई कहते हैं कि माउंट एवरेस्ट, हिमालय की अन्य सबसे ऊंची चोटियों के मुकाबले लगभग 250 मीटर ऊपर फैला हुआ है. हमें लगता है कि पहाड़ जस के तस हैं, लेकिन वास्तव में उनकी ऊंचाई बढ़ती रहती है. माउंट एवरेस्ट इसका उदाहरण है.

क्यों बढ़ रही एवरेस्ट की ऊंचाई?

नेपाल और चीन के बॉर्डर पर स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की सबसे बड़ी वजह नदियों के प्रवाह में बदलाव (River Capture) है. लगभग 89,000 साल पहले, हिमालय में कोसी नदी ने अपनी सहायक नदी अरुण नदी के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जो आज एवरेस्ट के उत्तर में स्थित है. स्टडी के मुताबिक रिवर कैप्चर एक दुर्लभ घटना है. ऐसा तब होता है जब एक नदी अपना मार्ग बदलती है और दूसरी नदी से जा मिलती है या उसके रास्ते में आ जाती है.

कैसे नदी इसके लिए जिम्मेदार

शोधकर्ताओं का कहना है कि जब दोनों नदियां आपस में मिल गईं, तो एवरेस्ट के पास नदी का कटाव बढ़ गया, जिससे भारी मात्रा में चट्टानें और मिट्टी बह गई. इससे अरुण नदी घाटी का निर्माण हुआ. अध्ययन के लेखकों में से एक दाई कहते हैं, “एवरेस्ट क्षेत्र में नदियों की एक दिलचस्प प्रणाली है. ऊपर की ओर बहने वाली अरुण नदी समतल घाटी के साथ पूर्व की ओर बहती है. फिर यह अचानक दक्षिण की ओर मुड़कर कोसी नदी में मिल जाती है, जिससे इसकी ऊंचाई कम हो जाती है. नदियों की प्रणाली में यह बदलाव एवरेस्ट की अत्यधिक ऊंचाई के लिए जिम्मेदार है.

आसान उदाहरण से समझिये

जैसे ही अरुण नदी, कोसी नदी प्रणाली का हिस्सा बनी, दोनों और अधिक कटाव होने लगा. पिछली कई सदी में अरुण नदी ने अपने किनारों से अरबों टन मिट्टी को बहा दिया, जिससे एक बड़ी घाटी बन गई. मिट्टी के कटाव से आसपास की जमीन ऊपर उठ गई, जिसे आइसोस्टेटिक रिबाउंड कहते हैं. भू-वैज्ञानिक दाई कहते हैं कि “जब कोई भारी चीज जैसे कि बर्फ का बड़ा टुकड़ा या घिसी हुई चट्टान, पृथ्वी की पपड़ी से हटाई जाती है, तो उसके नीचे की जमीन धीरे-धीरे प्रतिक्रिया में ऊपर उठती है, ठीक वैसे ही जैसे माल उतारने पर नाव पानी में ऊपर उठती है. एवरेस्ट के साथ ही यही हुआ.

पर्वतारोहियों को क्या नुकसान

माउंट एवरेस्ट के आपसापस हो रहे ‘आइसोस्टेटिक रिबाउंड’ ने हिमालयी की दूसरी चोटियों को भी प्रभावित किया है. जैसे लोत्से और मकालू, जो क्रमशः दुनिया की चौथी और पांचवीं सबसे ऊंची चोटियां हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि माउंट मकालू, जो अरुण नदी के सबसे करीब है, उसके चलते यह चोटी और ऊंची हो सकती है. द गार्जियन के अनुसार, दाई ने कहा, “चोटियों की ऊंचाई अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ती रहेगी. जब नदी प्रणाली एक संतुलित स्थिति में पहुंच जाएगी तो चीजें ठीक हो जाएंगी.

शोधकर्ता कहते हैं कि सबसे बड़ा प्रभाव उन पर्वतारोहियों पर पड़ेगा जिन्हें एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के लिए 20 मीटर या उससे अधिक की चढ़ाई करनी होगी. यह खर्चीला, थकाऊ और पहले के मुकाबले ज्यादा जानलेवा होगा।