मराठी-बंगाली सहित इन 5 भाषाओं को मोदी सरकार ने दिया 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा, सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को मिलेगी और मजबूती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दी। यह निर्णय पश्चिम बंगाल, बिहार और असम की राज्य सरकारों से प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद लिया गया। इस निर्णय से भारत की सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को और मजबूती मिलेगी। साहित्य अकादमी के तहत गठित भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति ने 25 जुलाई 2024 को एक बैठक में शास्त्रीय भाषाओं के चयन के लिए तय मानदंडों में संशोधन किया और पांच नई भाषाओं को इस सूची में शामिल करने का फैसला लिया। इसके साथ ही अब भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। पहले से जिन भाषाओं को यह दर्जा प्राप्त था, वे हैं तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया।
किसी भी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लिए कुछ विशेष मानदंड होते हैं। इनमें प्रमुख हैं उस भाषा की प्राचीनता, यानी उसकी उत्पत्ति और इतिहास लगभग 1500-2000 वर्षों पुराना होना चाहिए। इसके अलावा उस भाषा में प्राचीन साहित्य और ग्रंथों का एक समृद्ध संग्रह होना चाहिए, जिसे समाज की पीढ़ियों द्वारा धरोहर माना जाता हो। इस साहित्य में न केवल काव्य या ग्रंथ शामिल होते हैं, बल्कि पुरालेखीय और अभिलेखीय साक्ष्य भी होने चाहिए। इसके अलावा, शास्त्रीय भाषाएं अपने वर्तमान स्वरूप से भिन्न हो सकती हैं या इनकी बाद की शाखाओं से अलग हो सकती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महत्वपूर्ण फैसले की सराहना की और कहा कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करता है। उन्होंने ट्वीट किया, "हमारी सरकार भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को संजोती है और उसका जश्न मनाती है। हम क्षेत्रीय भाषाओं को लोकप्रिय बनाने की अपनी प्रतिबद्धता में भी अडिग रहे हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाएँ हमारी विविधता का जीवंत प्रतीक हैं, और इन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलना उन सभी लोगों के लिए गर्व का क्षण है जो इन भाषाओं से जुड़े हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने असमिया, बंगाली और मराठी के लिए विशेष रूप से बधाई संदेश जारी किए। असमिया भाषा के लिए उन्होंने कहा, "मुझे बेहद खुशी है कि असमिया को अब शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल जाएगा। असमिया संस्कृति सदियों से समृद्ध रही है और इसने हमें एक अनमोल साहित्यिक परंपरा दी है। मुझे विश्वास है कि यह भाषा आने वाले समय में और भी अधिक लोकप्रिय होगी।" बंगाली के लिए उन्होंने कहा, "बंगाली साहित्य ने वर्षों से अनगिनत लोगों को प्रेरित किया है। महान बंगाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने पर मैं दुनिया भर के सभी बंगाली भाषी लोगों को बधाई देता हूं।" मराठी के लिए उन्होंने कहा, "मराठी भारत का गौरव है। इस अभूतपूर्व भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर बधाई। मराठी हमेशा से भारतीय विरासत का आधार रही है। मुझे यकीन है कि इस मान्यता से इसे सीखने के लिए और भी लोग प्रेरित होंगे।"
पाली और प्राकृत के लिए उन्होंने कहा, "पाली और प्राकृत भारतीय संस्कृति की जड़ हैं। ये आध्यात्मिकता, ज्ञान और दर्शन की भाषाएँ हैं। उनकी शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता उनके कालातीत साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान का सम्मान है।" प्रधानमंत्री ने कहा कि शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इन भाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और अधिक लोग इनके बारे में जानने के लिए प्रेरित होंगे।
असमिया, बंगाली और मराठी भाषाओं को अलग-अलग ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी ने इन भाषाओं के गौरवशाली इतिहास और उनकी वर्तमान स्थिति की सराहना की। असमिया भाषा असम और उत्तर-पूर्वी भारत में प्रमुख रूप से बोली जाती है, जबकि बंगाली भाषा पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और दुनिया भर के कई हिस्सों में फैली है। मराठी भाषा महाराष्ट्र राज्य की प्रमुख भाषा है और भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में इसका विशेष स्थान है। पाली और प्राकृत अब सामान्यत: उपयोग में नहीं हैं, लेकिन ये भाषाएँ भारत के प्राचीन साहित्य, विशेष रूप से बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों का महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं।
इस फैसले पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी कैबिनेट ब्रीफिंग में कहा, "यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो हमारी संस्कृति को प्रोत्साहित करने और हमारी विरासत पर गर्व करने के दर्शन से जुड़ा हुआ है।" उन्होंने यह भी बताया कि इस निर्णय से भारत की भाषाई धरोहर को नई ऊँचाइयाँ मिलेंगी और इसका प्रभाव न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिखेगा।
शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और उनके अध्ययन को सुदृढ़ करने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। वर्ष 2020 में संसद के एक अधिनियम के तहत संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई थी। इसके अतिरिक्त, तमिल भाषा के प्राचीन ग्रंथों के अनुवाद, शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने और तमिल के छात्रों और विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई। इसी प्रकार, अन्य शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन के लिए भी विशेष केंद्रों की स्थापना की गई है, जिनमें कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया के लिए मैसूर में केंद्र स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों का उद्देश्य शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण और उनकी समृद्ध साहित्यिक परंपराओं का प्रचार करना है।
शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के साथ इन भाषाओं के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियों को सम्मानित करने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी स्थापित किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय शास्त्रीय भाषाओं को मिलने वाले लाभों में राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में इन भाषाओं के अध्ययन के लिए विशेष पीठ, और इन भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्रों की स्थापना शामिल है।
यह निर्णय न केवल सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे रोजगार के भी अनेक अवसर पैदा होंगे। शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण, उनके प्राचीन ग्रंथों का दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इसके साथ ही शैक्षणिक और शोध कार्यों के क्षेत्र में भी रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे। इस निर्णय का प्रभाव महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) के अलावा पूरे देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जाएगा।


 
						
 
 





 
  
 
 
  
  अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर भारत पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें भारत की सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। वरिष्ठ नीति विश्लेषक सेमा हसन ने लिखा है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों पर हिंसक हमले होते हैं। धार्मिक अशांति फैलाने के लिए गलत जानकारी दी जाती है। इसके अलावा सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि रिपोर्ट में मुस्लिम, वक्फ संशोधन बिल गोहत्या विरोधी कानून की बात की गई है। इन सब के चलते आयोग ने देश को धार्मिक भेद-भाव वाले देशों के लिस्ट में नामित करने का आग्रह किया है। अमेरिकी सरकार के आयोग USCIRF (US Commission on International Religious Freedom) की ओर से 2 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), समान नागरिक संहिता (UCC), राज्यों में धर्मांतरण का विरोध और गोहत्या विरोधी कानून का जिक्र किया गया है। साथ ही कहा गया है कि इन कानूनों का मकसद भारत में अल्पसंख्यकों को टारगेट करना और उन्हें मताधिकार से वंचित रखना है। रिपोर्ट में आगे लिखा है, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति 2024 में लगातार बदतर होती जा रही है। खासकर देश में राष्ट्रीय चुनाव होने से पहले और तुरंत बाद के महीनों में। लोगों को मारा गया, पीटा गया और लिंचिंग की गई। धार्मिक नेताओं को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया। घरों और पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया। ये घटनाएं धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन हैं। भारत सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून, गोहत्या कानून और आतंकवाद विरोधी जैसे कानून लागू करके धार्मिक समुदायों का दमन कर रही है। अपनी सलाना रिपोर्ट में USCIRF ने अमेरिकी विदेश विभाग से ये आग्रह किया है कि वो भारत में धार्मिक स्तर पर हो रहे उल्लंघनों को ध्यान में रखते हुए उसे विशेष चिंता वाले देश के रूप में शामिल करें। भारत ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। भारत ने इसे एक राजनीतिक एजेंडा वाला 'पक्षपाती संगठन' करार दिया। भारत ने इस रिपोर्ट को 'दुर्भावनापूर्ण' बताया। विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यूएससीआईआरएफ को अपने समय का ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका में मानवाधिकारों के मुद्दे से निपटने में करना चाहिए। बता दें कि, ये पहली बार नहीं है जब अमेरिकी आयोग ने भारत के खिलाफ धर्म संबंधित ऐसा रिपोर्ट जारा किया है। इससे पहले भी उन्होंने ऐसा किया था। लेकिन भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध होने की वजह से जो बाइडेन प्रशासन USCIRF द्वारा किए गए आग्रह को मानने से बचता रहा है।
 अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर भारत पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें भारत की सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। वरिष्ठ नीति विश्लेषक सेमा हसन ने लिखा है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों पर हिंसक हमले होते हैं। धार्मिक अशांति फैलाने के लिए गलत जानकारी दी जाती है। इसके अलावा सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि रिपोर्ट में मुस्लिम, वक्फ संशोधन बिल गोहत्या विरोधी कानून की बात की गई है। इन सब के चलते आयोग ने देश को धार्मिक भेद-भाव वाले देशों के लिस्ट में नामित करने का आग्रह किया है। अमेरिकी सरकार के आयोग USCIRF (US Commission on International Religious Freedom) की ओर से 2 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), समान नागरिक संहिता (UCC), राज्यों में धर्मांतरण का विरोध और गोहत्या विरोधी कानून का जिक्र किया गया है। साथ ही कहा गया है कि इन कानूनों का मकसद भारत में अल्पसंख्यकों को टारगेट करना और उन्हें मताधिकार से वंचित रखना है। रिपोर्ट में आगे लिखा है, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति 2024 में लगातार बदतर होती जा रही है। खासकर देश में राष्ट्रीय चुनाव होने से पहले और तुरंत बाद के महीनों में। लोगों को मारा गया, पीटा गया और लिंचिंग की गई। धार्मिक नेताओं को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया। घरों और पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया। ये घटनाएं धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन हैं। भारत सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून, गोहत्या कानून और आतंकवाद विरोधी जैसे कानून लागू करके धार्मिक समुदायों का दमन कर रही है। अपनी सलाना रिपोर्ट में USCIRF ने अमेरिकी विदेश विभाग से ये आग्रह किया है कि वो भारत में धार्मिक स्तर पर हो रहे उल्लंघनों को ध्यान में रखते हुए उसे विशेष चिंता वाले देश के रूप में शामिल करें। भारत ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। भारत ने इसे एक राजनीतिक एजेंडा वाला 'पक्षपाती संगठन' करार दिया। भारत ने इस रिपोर्ट को 'दुर्भावनापूर्ण' बताया। विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यूएससीआईआरएफ को अपने समय का ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका में मानवाधिकारों के मुद्दे से निपटने में करना चाहिए। बता दें कि, ये पहली बार नहीं है जब अमेरिकी आयोग ने भारत के खिलाफ धर्म संबंधित ऐसा रिपोर्ट जारा किया है। इससे पहले भी उन्होंने ऐसा किया था। लेकिन भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध होने की वजह से जो बाइडेन प्रशासन USCIRF द्वारा किए गए आग्रह को मानने से बचता रहा है।
 
 
  बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठा है।आँकड़ों की मानें तो शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद देश के 48 जिलों में हमले की 278 घटनाएँ हुई हैं।शेख़ हसीना सरकार के पतन और उनके देश से पलायन के बाद हिंदू समुदाय के लोग डर और आतंक के माहौल में दिन काट रहे हैं। इसको लेकर भारत भी कड़ी आपत्ति जता चुका है।वहीं, अब अमेरिका में रह रहे हिंदू समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार को लेकर आवाज उठाई है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में आज सुबह लोग आसमान में एक विशाल बैनर को देखा गया। इस बैनर में लिखा था कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा बंद होनी चाहिए। यह विशाल बैनर हडसन नदी के ऊपर और विश्व प्रसिद्ध स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के ऊपर हवा में लहराते देखा गया।यह विशाल बैनर एक हवाई जहाज के पीछे बांधा गया था, जैसे ही हवाई जहाज न्यूयॉर्क के ऊपर से उड़ा तो आसमान में हिंदुओं पर अत्याचार का विशाल बैनर हवा में लहराता दिखाई दिया। बांग्लादेश मूल के हिंदू समुदाय के सितांशु गुहा ये बैनर लहराने वाले लोगों में शामिल हैं। सितांशु ने कहा कि लोगों में बांग्लादेशी हिंदुओं की मुश्किलों के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया था। 1971 में बांग्लेदाश बनने के बाद से ही वहां हिंदुओं के साथ नरसंहार शुरु हो गया। एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में लाखों हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। बांग्लादेश की हिंदू आबादी 1971 में 20% से घटकर आज केवल 8.9% रह गई है। हिंसा, दरिद्रता, लिंचिंग, नाबालिग लड़कियों के अपहरण और जबरन नौकरी से इस्तीफा देने की घटनाएं सामने आई हैं। बांग्लादेश में 2 लाख से अधिक हिंदू प्रभावित हुए हैं। साथ ही संपत्ति जब्त की गई है, जो देश में रहने वाले 13 से 15 मिलियन हिंदुओं के लिए एक गंभीर अस्तित्वगत खतरा है।
 बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठा है।आँकड़ों की मानें तो शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद देश के 48 जिलों में हमले की 278 घटनाएँ हुई हैं।शेख़ हसीना सरकार के पतन और उनके देश से पलायन के बाद हिंदू समुदाय के लोग डर और आतंक के माहौल में दिन काट रहे हैं। इसको लेकर भारत भी कड़ी आपत्ति जता चुका है।वहीं, अब अमेरिका में रह रहे हिंदू समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार को लेकर आवाज उठाई है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में आज सुबह लोग आसमान में एक विशाल बैनर को देखा गया। इस बैनर में लिखा था कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा बंद होनी चाहिए। यह विशाल बैनर हडसन नदी के ऊपर और विश्व प्रसिद्ध स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के ऊपर हवा में लहराते देखा गया।यह विशाल बैनर एक हवाई जहाज के पीछे बांधा गया था, जैसे ही हवाई जहाज न्यूयॉर्क के ऊपर से उड़ा तो आसमान में हिंदुओं पर अत्याचार का विशाल बैनर हवा में लहराता दिखाई दिया। बांग्लादेश मूल के हिंदू समुदाय के सितांशु गुहा ये बैनर लहराने वाले लोगों में शामिल हैं। सितांशु ने कहा कि लोगों में बांग्लादेशी हिंदुओं की मुश्किलों के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया था। 1971 में बांग्लेदाश बनने के बाद से ही वहां हिंदुओं के साथ नरसंहार शुरु हो गया। एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में लाखों हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। बांग्लादेश की हिंदू आबादी 1971 में 20% से घटकर आज केवल 8.9% रह गई है। हिंसा, दरिद्रता, लिंचिंग, नाबालिग लड़कियों के अपहरण और जबरन नौकरी से इस्तीफा देने की घटनाएं सामने आई हैं। बांग्लादेश में 2 लाख से अधिक हिंदू प्रभावित हुए हैं। साथ ही संपत्ति जब्त की गई है, जो देश में रहने वाले 13 से 15 मिलियन हिंदुओं के लिए एक गंभीर अस्तित्वगत खतरा है।
 
Oct 04 2024, 13:42
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