जब तक आखिरी यहूदी जिन्दा है, तब तक जिहाद करो..', जाकिर नाइक ने उगला जहर

भारत से भागकर मलेशिया में शरण लेने वाले कट्टरपंथी इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक ने हाल ही में पाकिस्तान पहुंचने पर नफरती बयानबाजी शुरू कर दी है। पाकिस्तान में धार्मिक मामलों के एक कार्यक्रम में शामिल होकर, नाइक ने यरुशलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद को इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल बताते हुए मुसलमानों को जिहाद के लिए प्रेरित किया। उसने इजरायल के खिलाफ जिहाद का आह्वान करते हुए कहा कि जब तक अंतिम यहूदी को मार हीं दिया जाता, तब तक यह जिहाद जारी रहना चाहिए।

अपने नफरती भाषण के दौरान, नाइक ने गाजा के मुसलमानों द्वारा किए जा रहे प्रयासों का समर्थन किया और कहा कि वे अल-अक्सा मस्जिद की रक्षा कर रहे हैं, जिसे वह मुसलमानों का एक धार्मिक कर्तव्य मानता है। नाइक ने जोर देकर कहा कि गाजा के मुसलमान जिहाद में संलग्न होकर इस्लाम के सम्मान की रक्षा कर रहे हैं, और यदि वे यह नहीं करेंगे, तो यह बाकी सभी मुसलमानों की जिम्मेदारी बन जाएगी। नाइक ने इस्लामिक विद्वान तकी उस्मानी द्वारा जारी एक फतवे का भी समर्थन किया, जिसमें इजरायल के खिलाफ जारी लड़ाई का समर्थन किया गया था। उसने इस बात पर बल दिया कि यह जिहाद तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक इजरायल से अंतिम यहूदी को मार नहीं दिया जाता। नाइक का यह बयान इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष के बीच आया है, और इससे उसने अपने समर्थकों को इस संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया। हालाँकि, गौर करने वाली बात ये है कि इजराइल-फिलिस्तीन के बीच हो रही जंग जमीनी विवाद से कहीं ज्यादा है। मुस्लिमों की पवित्र किताब अल बुखारी में साफ़ लिखा है कि क़यामत तब तक नहीं आएगी, जब तक आखिरी यहूदी को मुसलमान मार नहीं डालते। पैगंबर मोहम्मद के जन्म से पहले मक्का-मदीना में भी कई यहूदी रहते थे, लेकिन उन्हें मार-मारकर वहां से भगा दिया गया। अब मुस्लिम यहूदियों से इतनी नफरत क्यों करते हैं? ये कोई इस्लामी विद्वान ही बता सकता है। जाकिर नाइक भी यहूदियों के खिलाफ वही जहर उगल रहा है। अब उस किताब को लिखने के समय तो, इजराइल-फिलिस्तीन का कोई विवाद नहीं था, फिर भी मुसलमानों को यहूदियों की हत्या का हुक्म है। जिसे अब कट्टरपंथी जमीनी विवाद की आड़ में पूरा कर रहे हैं।

जाकिर नाइक सोमवार को एक महीने के दौरे पर पाकिस्तान पहुंचा, जहां उसका स्वागत धार्मिक मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सहयोगी राणा मशहूद ने किया। नाइक इस दौरान पाकिस्तान के प्रमुख शहरों इस्लामाबाद, कराची और लाहौर में लेक्चर देगा। पाकिस्तान में नाइक का यह दौरा लगभग तीन दशक बाद हुआ है। इससे पहले वह 1992 में पाकिस्तान गया था, जब उसने लाहौर में प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान डॉ. इसरार अहमद से मुलाकात की थी। यह यात्रा पाकिस्तान सरकार के निमंत्रण पर हो रही है, और इसे लेकर वहां के धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चाएं तेज हैं। नाइक वर्तमान में भारत में वांछित है, जहां उस पर भड़काऊ भाषण देने और नफरत फैलाने के आरोप हैं। भारत ने मलेशिया से उसे प्रत्यर्पित करने का अनुरोध भी किया है, लेकिन अभी तक वह मलेशिया में शरण लिए हुए है।

मराठी-बंगाली सहित इन 5 भाषाओं को मोदी सरकार ने दिया 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा, सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को मिलेगी और मजबूती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दी। यह निर्णय पश्चिम बंगाल, बिहार और असम की राज्य सरकारों से प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद लिया गया। इस निर्णय से भारत की सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को और मजबूती मिलेगी। साहित्य अकादमी के तहत गठित भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति ने 25 जुलाई 2024 को एक बैठक में शास्त्रीय भाषाओं के चयन के लिए तय मानदंडों में संशोधन किया और पांच नई भाषाओं को इस सूची में शामिल करने का फैसला लिया। इसके साथ ही अब भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। पहले से जिन भाषाओं को यह दर्जा प्राप्त था, वे हैं तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया।

किसी भी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लिए कुछ विशेष मानदंड होते हैं। इनमें प्रमुख हैं उस भाषा की प्राचीनता, यानी उसकी उत्पत्ति और इतिहास लगभग 1500-2000 वर्षों पुराना होना चाहिए। इसके अलावा उस भाषा में प्राचीन साहित्य और ग्रंथों का एक समृद्ध संग्रह होना चाहिए, जिसे समाज की पीढ़ियों द्वारा धरोहर माना जाता हो। इस साहित्य में न केवल काव्य या ग्रंथ शामिल होते हैं, बल्कि पुरालेखीय और अभिलेखीय साक्ष्य भी होने चाहिए। इसके अलावा, शास्त्रीय भाषाएं अपने वर्तमान स्वरूप से भिन्न हो सकती हैं या इनकी बाद की शाखाओं से अलग हो सकती हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महत्वपूर्ण फैसले की सराहना की और कहा कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करता है। उन्होंने ट्वीट किया, "हमारी सरकार भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को संजोती है और उसका जश्न मनाती है। हम क्षेत्रीय भाषाओं को लोकप्रिय बनाने की अपनी प्रतिबद्धता में भी अडिग रहे हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाएँ हमारी विविधता का जीवंत प्रतीक हैं, और इन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलना उन सभी लोगों के लिए गर्व का क्षण है जो इन भाषाओं से जुड़े हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने असमिया, बंगाली और मराठी के लिए विशेष रूप से बधाई संदेश जारी किए। असमिया भाषा के लिए उन्होंने कहा, "मुझे बेहद खुशी है कि असमिया को अब शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल जाएगा। असमिया संस्कृति सदियों से समृद्ध रही है और इसने हमें एक अनमोल साहित्यिक परंपरा दी है। मुझे विश्वास है कि यह भाषा आने वाले समय में और भी अधिक लोकप्रिय होगी।" बंगाली के लिए उन्होंने कहा, "बंगाली साहित्य ने वर्षों से अनगिनत लोगों को प्रेरित किया है। महान बंगाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने पर मैं दुनिया भर के सभी बंगाली भाषी लोगों को बधाई देता हूं।" मराठी के लिए उन्होंने कहा, "मराठी भारत का गौरव है। इस अभूतपूर्व भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर बधाई। मराठी हमेशा से भारतीय विरासत का आधार रही है। मुझे यकीन है कि इस मान्यता से इसे सीखने के लिए और भी लोग प्रेरित होंगे।"

पाली और प्राकृत के लिए उन्होंने कहा, "पाली और प्राकृत भारतीय संस्कृति की जड़ हैं। ये आध्यात्मिकता, ज्ञान और दर्शन की भाषाएँ हैं। उनकी शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता उनके कालातीत साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान का सम्मान है।" प्रधानमंत्री ने कहा कि शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इन भाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और अधिक लोग इनके बारे में जानने के लिए प्रेरित होंगे।

असमिया, बंगाली और मराठी भाषाओं को अलग-अलग ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी ने इन भाषाओं के गौरवशाली इतिहास और उनकी वर्तमान स्थिति की सराहना की। असमिया भाषा असम और उत्तर-पूर्वी भारत में प्रमुख रूप से बोली जाती है, जबकि बंगाली भाषा पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और दुनिया भर के कई हिस्सों में फैली है। मराठी भाषा महाराष्ट्र राज्य की प्रमुख भाषा है और भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में इसका विशेष स्थान है। पाली और प्राकृत अब सामान्यत: उपयोग में नहीं हैं, लेकिन ये भाषाएँ भारत के प्राचीन साहित्य, विशेष रूप से बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों का महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं।

इस फैसले पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी कैबिनेट ब्रीफिंग में कहा, "यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो हमारी संस्कृति को प्रोत्साहित करने और हमारी विरासत पर गर्व करने के दर्शन से जुड़ा हुआ है।" उन्होंने यह भी बताया कि इस निर्णय से भारत की भाषाई धरोहर को नई ऊँचाइयाँ मिलेंगी और इसका प्रभाव न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिखेगा।

शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और उनके अध्ययन को सुदृढ़ करने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। वर्ष 2020 में संसद के एक अधिनियम के तहत संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई थी। इसके अतिरिक्त, तमिल भाषा के प्राचीन ग्रंथों के अनुवाद, शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने और तमिल के छात्रों और विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई। इसी प्रकार, अन्य शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन के लिए भी विशेष केंद्रों की स्थापना की गई है, जिनमें कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया के लिए मैसूर में केंद्र स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों का उद्देश्य शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण और उनकी समृद्ध साहित्यिक परंपराओं का प्रचार करना है।

शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के साथ इन भाषाओं के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियों को सम्मानित करने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी स्थापित किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय शास्त्रीय भाषाओं को मिलने वाले लाभों में राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में इन भाषाओं के अध्ययन के लिए विशेष पीठ, और इन भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्रों की स्थापना शामिल है।

यह निर्णय न केवल सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे रोजगार के भी अनेक अवसर पैदा होंगे। शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण, उनके प्राचीन ग्रंथों का दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इसके साथ ही शैक्षणिक और शोध कार्यों के क्षेत्र में भी रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे। इस निर्णय का प्रभाव महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) के अलावा पूरे देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जाएगा।

मध्यप्रदेश में पहली बार गाय के गोबर से बनाई जाएगी बायो CNG, वाहन चलाने के साथ आम लोगों के घरेलू जरूरतों में भी होगा उपयोग

मध्यप्रदेश में गाय के गोबर से बायो सीएनजी बनाई जाएगी। इससे तैयार गैस से ग्वालियर नगर निगम के वाहन तो चलेंगे ही साथ ही इसे आम लोगों को उपयोग के लिए भी देने की भी योजना है। ग्वालियर में स्थित प्रदेश की सबसे बड़ी लाल टिपारा गोशाला में इसका प्लांट तैयार किया गया है।

इस बायोसीएनजी प्लांट का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने वर्चुअल तरीके से किया। इस दौरान कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर सहित अन्य मंत्री और अधिकारी मौजूद रहे। बता दें कि ग्वालियर में नगर निगम द्वारा संचालित प्रदेश की सबसे बड़ी गोशाला लाल टिपारा में है। इसका संचालन कुछ वर्ष पहले संतों को सौंपा गया तो यह देश की सबसे आदर्श गौशाला बन गई, जहां लोग अपना जन्मदिन से लेकर मेरिज एनिवर्सरी तक मनाने आते हैं।

इस गौशाला में अभी 9850 गौवंश का बसेरा है। यहां हर रोज 100 टन गोबर निकलता है, इससे यहां स्थापित हो रहे संयंत्र से अभी 2 टन बायो सीएनजी तैयार होगी। गोशाला के प्रबंधन से जुड़े संत स्वामी ऋषभ देवानंद का कहना है कि यह मध्यप्रदेश में किसी गौशाला में अनूठी पहल है। गोबर सच में धन के रूप में बदलेगा। गैस बनने के बाद निकलने वाले वेस्ट को खेती में उपयोग के लिए बेचा जाएगा।

ईसाई बनने पर सरकार ने रद्द किया परिवार का SC प्रमाणपत्र, अब नहीं मिलेगा आरक्षण, आंध्र प्रदेश के नेल्लोर का मामला

आंध्र प्रदेश के एसपीएस नेल्लोर जिले के गुडूर मंडल में अनुसूचित जाति (SC) माला समुदाय के लिए महत्वपूर्ण जीत मिली है। राज्य की चंद्रबाबू नायडू सरकार ने टी. लक्ष्मण राव और उनके परिवार के एससी प्रमाणपत्रों को रद्द कर दिया है, क्योंकि उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था। इस फैसले का आधार ग्रामीणों की एक लंबी शिकायत प्रक्रिया रही, जिन्होंने धर्म परिवर्तन के बाद भी एससी विशेषाधिकारों का लाभ उठाने को लेकर सवाल उठाए थे।

ग्रामीण इस मुद्दे पर चिंतित थे, खासकर जब लक्ष्मण राव के परिवार ने अपने घर को एक अवैध चर्च में बदल दिया था। ग्रामीणों ने इस बात पर जोर दिया कि धार्मिक गतिविधियों से सामाजिक अशांति बढ़ रही थी, क्योंकि वहां से धर्मान्तरण की कोशिशें भी हो रहीं थीं। प्रारंभिक शिकायतें 2021 में दत्तम श्रीनिवासुलु और मोचेरला महेश द्वारा दर्ज कराई गईं, जिनका ध्यान अवैध चर्च और धर्मांतरण से जुड़ी गतिविधियों पर था। हालांकि, तहसीलदार और जिला कलेक्टर को कई बार शिकायतें देने के बावजूद, ग्रामीणों की अपील को पहले नज़रअंदाज़ कर दिया गया था। लेकिन उनकी लगातार कोशिशों से अंततः जिला कलेक्टर ने मामले की जांच के आदेश दिए। तहसीलदार द्वारा की गई जांच में ग्रामीणों के आरोपों की पुष्टि हुई, और दिसंबर 2023 में जिला स्तर की जांच समिति ने लक्ष्मण राव और उनके परिवार के एससी प्रमाणपत्रों को रद्द करने की सिफारिश की। समिति की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि ये लाभ केवल उन व्यक्तियों के लिए हैं जो वास्तव में एससी समुदाय से संबंधित हैं, और धर्म परिवर्तन के बाद उनका अधिकार समाप्त हो जाता है।

इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि सरकार ने सही कदम उठाया है। धर्म परिवर्तन करने के बाद भी एससी प्रमाणपत्र बनाए रखने का प्रयास उन वास्तविक लोगों के अधिकारों को कमजोर करता है, जो इस समुदाय से आते हैं और वंचित रह जाते हैं। इस मामले में ग्रामीणों की सामूहिक कार्रवाई और कानूनी वकालत करने वाले समूहों की भूमिका महत्वपूर्ण रही, जिसने सामाजिक न्याय को बनाए रखने की लड़ाई में मदद की।

एससी/एसटी राइट्स फोरम के अध्यक्ष एमके नागराजू ने यह भी चेतावनी दी कि गलत तरीके से प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी परिपत्र का हवाला दिया, जिसमें ऐसे अधिकारियों के लिए दंड और कारावास का प्रावधान है, जो अयोग्य व्यक्तियों को एससी प्रमाणपत्र जारी करते हैं।

यह फैसला इसको भी उजागर करता है कि धर्म परिवर्तन के बावजूद जाति आधारित लाभ लेने की प्रवृत्ति से निपटने के लिए सख्त जांच और कार्रवाई जरूरी है। धर्मांतरण रैकेट और गलत लाभ उठाने की घटनाएँ बताती हैं कि ऐसे मामलों में और अधिक सतर्कता और कानूनी कदम उठाने की जरूरत है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने सही कदम उठाया है, जिससे वास्तविक हकदारों को उनका अधिकार मिल सकेगा और गलत तरीके से लाभ उठाने वालों पर लगाम लगाई जा सकेगी।

मिडिल ईस्ट में बढ़ा तनाव, भारत भी अलर्ट मोड में, पीएम मोदी ने बुलाई CCS की बैठक

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पश्चिम एशिया में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। ईरान के इजराइल पर हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। जिसका असर पूरे विश्व में देखने को मिल रहा है। इसी बीच PM मोदी ने पश्चिम एशिया में नए सिरे से पैदा हुए तनाव के बीच बृहस्पतिवार (3 अक्टूबर) को सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति की बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में भारत ने पश्चिम एशिया में सुरक्षा स्थिति बिगड़ने पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि संघर्ष को व्यापक रूप नहीं लेना चाहिए। भारत ने सभी मुद्दों को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से सुलझाने का भी आह्वान किया है।

पीएम मोदी की अगुवाई में हुई बैठक में पश्चिम एशिया में गहराते संकट और उसके भारत पर संभावित असर को लेकर चर्चा की गई। इस बैठक के दौरान पश्चिम एशिया में तनाव और पेट्रोलियम उत्पादों के व्यापार एवं आपूर्ति पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा की गई। दरअसल, पश्चिम एशिया के संकट के कारण भारत में कच्चे तेल की आपूर्ति पर असर पड़ने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। इससे भारत से होने वाले व्यापार पर भी असर पड़ सकता।

दरअसल, अगर पश्चिम एशिया में तनाव और ज्यादा बढ़ता है तो इसका असर सिर्फ उस क्षेत्र पर नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा। ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत के आयात-निर्यात पर इसका असर पड़ेगा। इस संघर्ष से कार्गो माल ढुलाई शुल्क में काफी वृद्धि हो सकती है क्योंकि लेबनान के ईरान समर्थित हिजबुल्लाह आतंकवादियों के यमन में हूती विद्रोहियों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो लाल सागर और अदन की खाड़ी के माध्यम से माल ले जाने वाले व्यापारी जहाजों पर लगातार हमलें कर रहे हैं।

हूती विद्रोहियों ने पिछले साल अक्टूबर में लाल सागर से होकर जाने वाले व्यापारी जहाजों पर हमला करना शुरू किया था, जिसका असर पूरी दुनिया के व्यापार पर पड़ा था। भारत के भी पेट्रोलियम निर्यात में कमी आई थी। यह आयात अगस्त में 37.56 प्रतिशत गिरकर 5.96 अरब डॉलर रह गया था, जो पिछले साल के इसी महीने में 9.54 अरब डॉलर था। ऐसे में भारत के लिए मुश्किलें और ज्यादा बढ़ सकती है।

बता दें कि ईरान के हमले के बाद इजराइल ने भी बदला लेने की बात कही है। इजराइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने भी जवाबी कार्रवाई करने का संकल्प लिया। फिलहाल इजराइल दो मोर्चों पर आतंकवादियों से जूझ रहा है। वह लेबनान में हिजबुल्लाह के खिलाफ जमीनी स्तर पर निपट रहा है तो गाजा पट्टी में भी लगातार हमले कर रहा है। गाजा में इजराइली हमले में अब तक हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। मरने वालों में बच्चे और औरतें भी शामिल हैं।

यह आस्था का सवाल… तिरुपति मंदिर प्रसाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, दिया ये आदेश, केंद्र की मांग खारिज

तिरुपति लड्डू विवाद मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र की मांग को खारिज कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने स्वतंत्र एसआईटी जांच के आदेश दिए। जस्टिस गवई ने कहा कि हम स्वतंत्र एसआईटी का सुझाव देते हैं। जिसमें 2 CBI के अधिकारी, 2 राज्य सरकार के अधिकारी और एक अधिकारी FSSAI से हो।

इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए साॅलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें मामले की जांच कर रही SIT के सदस्यों पर पूरा भरोसा है। साॅलिसिटर जनरल ने कहा कि उनकी सलाह है कि एसआईटी जांच की निगरानी केंद्र सरकार के किसी वरिष्ठ अधिकारी से करवाई जाए। वहीं जस्टिस गवई ने कहा कि प्रसाद बनाने वाले घी में मिलावट का आरोप अगर सही है, तो यह गंभीर मामला है।

कोर्ट ने कहा कि तिरुपति बालाजी प्रसाद बनाने में प्रयोग होने वाले घी में मिलावट के आरोपों की जांच राज्य सरकार की SIT नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इंडिपेंडेंट SIT का गठन किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT में 2 CBI के अधिकारी, 2 आंध्र प्रदेश पुलिस के अधिकारी और एक अधिकारी FSSAI से होगा। जांच की निगरानी CBI डायरेक्टर करेंगे। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि यह एक पॉलिटिकल ड्रामा बने। यह दुनिया भर के करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा मामला है। सौभाग्य या दुर्भाग्य से, इसमें दोनों पक्ष शामिल हैं।

इससे पहले 30 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआई गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि जब प्रसाद में चर्बी होने की जांच सीएम नायडू ने एसआईटी को सौंपी थी तो उन्हें मीडिया में जाने की क्या जरूरत थी। कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। इससे पहले 1 अक्टूबर को आंध्रप्रदेश पुलिस ने एसआईटी जांच रोक दी थी। राज्य के डीजीपी द्वारका प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने तक जांच को रोक दिया गया है।

ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई आज देंगे दुर्लभ उपदेश, हिजबुल्लाह इंटेल मुख्यालय को बनाया गया निशाना

ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई आज एक दुर्लभ उपदेश देंगे और इस सप्ताह इजरायली हमले में मारे गए हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की स्मृति को याद करेंगे। सूत्रों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इजरायल ने शुक्रवार को तड़के बेरूत के दक्षिणी उपनगरों और बेरूत के हवाई अड्डे को निशाना बनाकर हमले किए। इजराइल की सेना ने गुरुवार को लेबनान की राजधानी बेरूत में हिजबुल्लाह के खुफिया मुख्यालय पर हमला किया, क्योंकि सैनिकों ने सीमा के पास आतंकवादियों से लड़ाई की और युद्धक विमानों ने देश भर में उनके गढ़ों पर बमबारी की।

यह हमला कथित तौर पर वरिष्ठ हिजबुल्लाह अधिकारी हाशेम सफीदीन को खत्म करने के उद्देश्य से किया गया था, जिन्हें व्यापक रूप से दिवंगत हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह का उत्तराधिकारी माना जाता है, जो इस सप्ताह की शुरुआत में एक हमले में मारे गए थे। गुरुवार देर रात किए गए लगातार दस हवाई हमलों में नौ लोग मारे गए और 2006 के बाद से मध्य बेरूत में यह दूसरा हमला भी था।

मुख्य बातें

- सीरिया और लेबनान की सीमा पर इजरायली हमले ने लेबनान से सीरिया जाने के लिए शरणार्थियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय सड़क को काट दिया है। लेबनानी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, इजरायली हवाई हमलों के बीच 3,00,000 लोग लेबनान से सीरिया भाग गए हैं।

- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बताया कि पिछले दिन लेबनान में 28 स्वास्थ्य कर्मियों की मौत हो गई। लेबनान में चिकित्सा सेवा एक संकट बन गई है क्योंकि इजरायली हमलों में कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नष्ट हो गए हैं और बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए हैं।

- इजरायली बलों ने दावा किया है कि गुरुवार को हिजबुल्लाह खुफिया मुख्यालय पर उनके हमलों में हिजबुल्लाह नेता अनीसी और 15 अन्य मारे गए।

- लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार पिछले 24 घंटों में इजरायल ने बम विस्फोटों की एक श्रृंखला में 37 लोगों की जान ले ली है और 151 घायल हो गए हैं।

- IDF ने बेरूत और लेबनान के दक्षिण में उन क्षेत्रों के लिए निकासी चेतावनी जारी की है, जिन्हें 2006 के समझौते में UN द्वारा बफर ज़ोन के रूप में सीमांकित किया गया था, जो बल में वृद्धि का संकेत है।

- इज़रायली सेना ने भी ज़मीनी घुसपैठ शुरू कर दी है, जिसके कारण हिज़्बुल्लाह के साथ सीमा पार लड़ाई हुई, जिसमें उनके अपने सैनिकों में से 9 की मौत हो गई।

- जैसे-जैसे UN और कई देश युद्ध विराम का आह्वान कर रहे हैं, इज़रायल ने लेबनान में हिज़्बुल्लाह के गढ़ों को खत्म करने की अपनी योजना को आगे बढ़ाया है। एक इज़रायली सैन्य अधिकारी ने खुलासा किया कि देश के पास सफ़ेद फ़ॉस्फ़ोरस के गोले हैं, जिनका इस्तेमाल वे अपने हमलों में करने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा, हिज़्बुल्लाह के साथ ज़मीनी लड़ाई से निपटने के लिए लेबनान सीमा पर अतिरिक्त बटालियन तैनात की गई हैं।

- जबकि यूएसए ने अपने सहयोगी के लिए समर्थन की पुष्टि की है, राष्ट्रपति जो बिडेन ने भी इज़रायल से "आनुपातिक" प्रतिक्रिया देने के लिए कहा है और ईरान की तेल या परमाणु सुविधाओं पर हमला करने पर एक रेखा खींची है।

- इस सप्ताह के प्रारंभ में इजरायल द्वारा शुरू किए गए हमलों के बाद से लेबनान में लगभग 1.2 मिलियन लोग विस्थापित हो गए हैं, तथा मरने वालों की कुल संख्या 1,000 से अधिक हो गई है।

अमेरिकी रिपोर्ट ने भारत में अल्पसंख्यकों को खतरे में बताया, विदेश मंत्रालय ने कहा-पक्षपाती एजेंडा
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अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर भारत पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें भारत की सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। वरिष्ठ नीति विश्लेषक सेमा हसन ने लिखा है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों पर हिंसक हमले होते हैं। धार्मिक अशांति फैलाने के लिए गलत जानकारी दी जाती है। इसके अलावा सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि रिपोर्ट में मुस्लिम, वक्फ संशोधन बिल गोहत्या विरोधी कानून की बात की गई है। इन सब के चलते आयोग ने देश को धार्मिक भेद-भाव वाले देशों के लिस्ट में नामित करने का आग्रह किया है। अमेरिकी सरकार के आयोग USCIRF (US Commission on International Religious Freedom) की ओर से 2 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), समान नागरिक संहिता (UCC), राज्यों में धर्मांतरण का विरोध और गोहत्या विरोधी कानून का जिक्र किया गया है। साथ ही कहा गया है कि इन कानूनों का मकसद भारत में अल्पसंख्यकों को टारगेट करना और उन्हें मताधिकार से वंचित रखना है। रिपोर्ट में आगे लिखा है, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति 2024 में लगातार बदतर होती जा रही है। खासकर देश में राष्ट्रीय चुनाव होने से पहले और तुरंत बाद के महीनों में। लोगों को मारा गया, पीटा गया और लिंचिंग की गई। धार्मिक नेताओं को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया। घरों और पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया। ये घटनाएं धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन हैं। भारत सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून, गोहत्या कानून और आतंकवाद विरोधी जैसे कानून लागू करके धार्मिक समुदायों का दमन कर रही है। अपनी सलाना रिपोर्ट में USCIRF ने अमेरिकी विदेश विभाग से ये आग्रह किया है कि वो भारत में धार्मिक स्तर पर हो रहे उल्लंघनों को ध्यान में रखते हुए उसे विशेष चिंता वाले देश के रूप में शामिल करें। भारत ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। भारत ने इसे एक राजनीतिक एजेंडा वाला 'पक्षपाती संगठन' करार दिया। भारत ने इस रिपोर्ट को 'दुर्भावनापूर्ण' बताया। विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यूएससीआईआरएफ को अपने समय का ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका में मानवाधिकारों के मुद्दे से निपटने में करना चाहिए। बता दें कि, ये पहली बार नहीं है जब अमेरिकी आयोग ने भारत के खिलाफ धर्म संबंधित ऐसा रिपोर्ट जारा किया है। इससे पहले भी उन्होंने ऐसा किया था। लेकिन भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध होने की वजह से जो बाइडेन प्रशासन USCIRF द्वारा किए गए आग्रह को मानने से बचता रहा है।
नसरल्लाह के दामाद के बाद अब इजरायल ने उसके भाई को बनाया निशाना, बनने वाला था हिजबुल्ला का नया चीफ

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इजराइल क के बाद एक अपने दुश्मनों को मौत की नींद सुला रहा है। इजराइल ने अब हिजबुल्ला को एक और बड़ा झटका दिया है। दरअसल इडराइली हमले में हिजबुल्ला के होने वाले नए चीफ हाशेम सैफेद्दीन को निशाना बनाने की खबर सामने आई है। इजराइली मीडिया ने यह दावा किया है।टाइम्स ऑफ इजराइल की रिपोर्ट के मुताबिक इजराइली सेना ने गुरुवार को बेरूत में सैफिद्दीन को निशाना बनाकर हमला किया।

अलजजीरा के मुताबिक इजराइली सेना ने जमीन के नीचे बने बंकर पर 11 मिसाइलें दागीं। यहां पर हिजबुल्लाह के टॉप अधिकारी बैठक कर रहे थे। इसमें सैफिद्दीन के भी शामिल होने वाला था।सैफिद्दीन 1982 से ही हिजबुल्लाह से जुड़ा हुआ था। पिछले सप्ताह नसरल्लाह के मारे जाने के बाद उसके हिजबुल्लाह चीफ बनाए जाने की चर्चा थी। वह रिश्ते में नसरल्लाह का ममेरा भाई है।

सैफुद्दीन अमेरिकी नीति का आलोचक रहा है। सैफुद्दीन को अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा साल 2017 में आतंकवादी घोषित किया गया था। हाशेम सैफुद्दीन भी अपने भाई नसरल्लाह की तरह ही एक मौलवी है, जो खुद को पैगंबर मोहम्मद के वंशज होने का दावा करता है और इसके लिए वो काली पगड़ी पहनता था। वो आमतौर पर अपनी सभा में हिजबुल्लाह का उग्रवादी रुख मजबूती से सामने रखता दिखाई देता था। सैफुद्दीन ने हाल ही में एक कार्यक्रम में मौजूद था, जहां उसने फिलिस्तीनी लड़ाकों को कहा कि हमारी बंदूकें और हमारे रॉकेट आपके साथ हैं।

इससे पहले सीरिया की राजधानी दमिश्क के माजेह वेस्टर्न विला इलाके में इजराइली सेना के हमले में बुधवार को हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह के दामाद हसन जाफर कासिर की मौत हो गई थी। इजरायल ने 27 सितंबर को हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह को टारगेट करते हुए बेरूत में स्थित हिजबुल्लाह के मुख्यालय पर बमों को बरसाया था। जिसमें की हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह और उसकी बेटी की मौत हो गई।

बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ बंद हो अत्याचार', अमेरिका में उठी आवाज, आसमान में लहराया विशाल बैनर*
#usa_airline_banner_stop_violence_on_bangladesh_hindus_seen_over_new_york_sky बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठा है।आँकड़ों की मानें तो शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद देश के 48 जिलों में हमले की 278 घटनाएँ हुई हैं।शेख़ हसीना सरकार के पतन और उनके देश से पलायन के बाद हिंदू समुदाय के लोग डर और आतंक के माहौल में दिन काट रहे हैं। इसको लेकर भारत भी कड़ी आपत्ति जता चुका है।वहीं, अब अमेरिका में रह रहे हिंदू समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार को लेकर आवाज उठाई है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में आज सुबह लोग आसमान में एक विशाल बैनर को देखा गया। इस बैनर में लिखा था कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा बंद होनी चाहिए। यह विशाल बैनर हडसन नदी के ऊपर और विश्व प्रसिद्ध स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के ऊपर हवा में लहराते देखा गया।यह विशाल बैनर एक हवाई जहाज के पीछे बांधा गया था, जैसे ही हवाई जहाज न्यूयॉर्क के ऊपर से उड़ा तो आसमान में हिंदुओं पर अत्याचार का विशाल बैनर हवा में लहराता दिखाई दिया। बांग्लादेश मूल के हिंदू समुदाय के सितांशु गुहा ये बैनर लहराने वाले लोगों में शामिल हैं। सितांशु ने कहा कि लोगों में बांग्लादेशी हिंदुओं की मुश्किलों के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया था। 1971 में बांग्लेदाश बनने के बाद से ही वहां हिंदुओं के साथ नरसंहार शुरु हो गया। एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में लाखों हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। बांग्लादेश की हिंदू आबादी 1971 में 20% से घटकर आज केवल 8.9% रह गई है। हिंसा, दरिद्रता, लिंचिंग, नाबालिग लड़कियों के अपहरण और जबरन नौकरी से इस्तीफा देने की घटनाएं सामने आई हैं। बांग्लादेश में 2 लाख से अधिक हिंदू प्रभावित हुए हैं। साथ ही संपत्ति जब्त की गई है, जो देश में रहने वाले 13 से 15 मिलियन हिंदुओं के लिए एक गंभीर अस्तित्वगत खतरा है।