यह आस्था का सवाल… तिरुपति मंदिर प्रसाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, दिया ये आदेश, केंद्र की मांग खारिज
तिरुपति लड्डू विवाद मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र की मांग को खारिज कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने स्वतंत्र एसआईटी जांच के आदेश दिए। जस्टिस गवई ने कहा कि हम स्वतंत्र एसआईटी का सुझाव देते हैं। जिसमें 2 CBI के अधिकारी, 2 राज्य सरकार के अधिकारी और एक अधिकारी FSSAI से हो।
इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए साॅलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें मामले की जांच कर रही SIT के सदस्यों पर पूरा भरोसा है। साॅलिसिटर जनरल ने कहा कि उनकी सलाह है कि एसआईटी जांच की निगरानी केंद्र सरकार के किसी वरिष्ठ अधिकारी से करवाई जाए। वहीं जस्टिस गवई ने कहा कि प्रसाद बनाने वाले घी में मिलावट का आरोप अगर सही है, तो यह गंभीर मामला है।
कोर्ट ने कहा कि तिरुपति बालाजी प्रसाद बनाने में प्रयोग होने वाले घी में मिलावट के आरोपों की जांच राज्य सरकार की SIT नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इंडिपेंडेंट SIT का गठन किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT में 2 CBI के अधिकारी, 2 आंध्र प्रदेश पुलिस के अधिकारी और एक अधिकारी FSSAI से होगा। जांच की निगरानी CBI डायरेक्टर करेंगे। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि यह एक पॉलिटिकल ड्रामा बने। यह दुनिया भर के करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा मामला है। सौभाग्य या दुर्भाग्य से, इसमें दोनों पक्ष शामिल हैं।
इससे पहले 30 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआई गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि जब प्रसाद में चर्बी होने की जांच सीएम नायडू ने एसआईटी को सौंपी थी तो उन्हें मीडिया में जाने की क्या जरूरत थी। कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। इससे पहले 1 अक्टूबर को आंध्रप्रदेश पुलिस ने एसआईटी जांच रोक दी थी। राज्य के डीजीपी द्वारका प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने तक जांच को रोक दिया गया है।


 
						
 
 





 
  अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर भारत पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें भारत की सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। वरिष्ठ नीति विश्लेषक सेमा हसन ने लिखा है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों पर हिंसक हमले होते हैं। धार्मिक अशांति फैलाने के लिए गलत जानकारी दी जाती है। इसके अलावा सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि रिपोर्ट में मुस्लिम, वक्फ संशोधन बिल गोहत्या विरोधी कानून की बात की गई है। इन सब के चलते आयोग ने देश को धार्मिक भेद-भाव वाले देशों के लिस्ट में नामित करने का आग्रह किया है। अमेरिकी सरकार के आयोग USCIRF (US Commission on International Religious Freedom) की ओर से 2 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), समान नागरिक संहिता (UCC), राज्यों में धर्मांतरण का विरोध और गोहत्या विरोधी कानून का जिक्र किया गया है। साथ ही कहा गया है कि इन कानूनों का मकसद भारत में अल्पसंख्यकों को टारगेट करना और उन्हें मताधिकार से वंचित रखना है। रिपोर्ट में आगे लिखा है, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति 2024 में लगातार बदतर होती जा रही है। खासकर देश में राष्ट्रीय चुनाव होने से पहले और तुरंत बाद के महीनों में। लोगों को मारा गया, पीटा गया और लिंचिंग की गई। धार्मिक नेताओं को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया। घरों और पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया। ये घटनाएं धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन हैं। भारत सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून, गोहत्या कानून और आतंकवाद विरोधी जैसे कानून लागू करके धार्मिक समुदायों का दमन कर रही है। अपनी सलाना रिपोर्ट में USCIRF ने अमेरिकी विदेश विभाग से ये आग्रह किया है कि वो भारत में धार्मिक स्तर पर हो रहे उल्लंघनों को ध्यान में रखते हुए उसे विशेष चिंता वाले देश के रूप में शामिल करें। भारत ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। भारत ने इसे एक राजनीतिक एजेंडा वाला 'पक्षपाती संगठन' करार दिया। भारत ने इस रिपोर्ट को 'दुर्भावनापूर्ण' बताया। विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यूएससीआईआरएफ को अपने समय का ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका में मानवाधिकारों के मुद्दे से निपटने में करना चाहिए। बता दें कि, ये पहली बार नहीं है जब अमेरिकी आयोग ने भारत के खिलाफ धर्म संबंधित ऐसा रिपोर्ट जारा किया है। इससे पहले भी उन्होंने ऐसा किया था। लेकिन भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध होने की वजह से जो बाइडेन प्रशासन USCIRF द्वारा किए गए आग्रह को मानने से बचता रहा है।
 अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर भारत पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें भारत की सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। वरिष्ठ नीति विश्लेषक सेमा हसन ने लिखा है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों पर हिंसक हमले होते हैं। धार्मिक अशांति फैलाने के लिए गलत जानकारी दी जाती है। इसके अलावा सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि रिपोर्ट में मुस्लिम, वक्फ संशोधन बिल गोहत्या विरोधी कानून की बात की गई है। इन सब के चलते आयोग ने देश को धार्मिक भेद-भाव वाले देशों के लिस्ट में नामित करने का आग्रह किया है। अमेरिकी सरकार के आयोग USCIRF (US Commission on International Religious Freedom) की ओर से 2 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), समान नागरिक संहिता (UCC), राज्यों में धर्मांतरण का विरोध और गोहत्या विरोधी कानून का जिक्र किया गया है। साथ ही कहा गया है कि इन कानूनों का मकसद भारत में अल्पसंख्यकों को टारगेट करना और उन्हें मताधिकार से वंचित रखना है। रिपोर्ट में आगे लिखा है, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति 2024 में लगातार बदतर होती जा रही है। खासकर देश में राष्ट्रीय चुनाव होने से पहले और तुरंत बाद के महीनों में। लोगों को मारा गया, पीटा गया और लिंचिंग की गई। धार्मिक नेताओं को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया। घरों और पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया। ये घटनाएं धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन हैं। भारत सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून, गोहत्या कानून और आतंकवाद विरोधी जैसे कानून लागू करके धार्मिक समुदायों का दमन कर रही है। अपनी सलाना रिपोर्ट में USCIRF ने अमेरिकी विदेश विभाग से ये आग्रह किया है कि वो भारत में धार्मिक स्तर पर हो रहे उल्लंघनों को ध्यान में रखते हुए उसे विशेष चिंता वाले देश के रूप में शामिल करें। भारत ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। भारत ने इसे एक राजनीतिक एजेंडा वाला 'पक्षपाती संगठन' करार दिया। भारत ने इस रिपोर्ट को 'दुर्भावनापूर्ण' बताया। विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यूएससीआईआरएफ को अपने समय का ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका में मानवाधिकारों के मुद्दे से निपटने में करना चाहिए। बता दें कि, ये पहली बार नहीं है जब अमेरिकी आयोग ने भारत के खिलाफ धर्म संबंधित ऐसा रिपोर्ट जारा किया है। इससे पहले भी उन्होंने ऐसा किया था। लेकिन भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध होने की वजह से जो बाइडेन प्रशासन USCIRF द्वारा किए गए आग्रह को मानने से बचता रहा है।
 
 
  बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठा है।आँकड़ों की मानें तो शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद देश के 48 जिलों में हमले की 278 घटनाएँ हुई हैं।शेख़ हसीना सरकार के पतन और उनके देश से पलायन के बाद हिंदू समुदाय के लोग डर और आतंक के माहौल में दिन काट रहे हैं। इसको लेकर भारत भी कड़ी आपत्ति जता चुका है।वहीं, अब अमेरिका में रह रहे हिंदू समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार को लेकर आवाज उठाई है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में आज सुबह लोग आसमान में एक विशाल बैनर को देखा गया। इस बैनर में लिखा था कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा बंद होनी चाहिए। यह विशाल बैनर हडसन नदी के ऊपर और विश्व प्रसिद्ध स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के ऊपर हवा में लहराते देखा गया।यह विशाल बैनर एक हवाई जहाज के पीछे बांधा गया था, जैसे ही हवाई जहाज न्यूयॉर्क के ऊपर से उड़ा तो आसमान में हिंदुओं पर अत्याचार का विशाल बैनर हवा में लहराता दिखाई दिया। बांग्लादेश मूल के हिंदू समुदाय के सितांशु गुहा ये बैनर लहराने वाले लोगों में शामिल हैं। सितांशु ने कहा कि लोगों में बांग्लादेशी हिंदुओं की मुश्किलों के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया था। 1971 में बांग्लेदाश बनने के बाद से ही वहां हिंदुओं के साथ नरसंहार शुरु हो गया। एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में लाखों हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। बांग्लादेश की हिंदू आबादी 1971 में 20% से घटकर आज केवल 8.9% रह गई है। हिंसा, दरिद्रता, लिंचिंग, नाबालिग लड़कियों के अपहरण और जबरन नौकरी से इस्तीफा देने की घटनाएं सामने आई हैं। बांग्लादेश में 2 लाख से अधिक हिंदू प्रभावित हुए हैं। साथ ही संपत्ति जब्त की गई है, जो देश में रहने वाले 13 से 15 मिलियन हिंदुओं के लिए एक गंभीर अस्तित्वगत खतरा है।
 बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठा है।आँकड़ों की मानें तो शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद देश के 48 जिलों में हमले की 278 घटनाएँ हुई हैं।शेख़ हसीना सरकार के पतन और उनके देश से पलायन के बाद हिंदू समुदाय के लोग डर और आतंक के माहौल में दिन काट रहे हैं। इसको लेकर भारत भी कड़ी आपत्ति जता चुका है।वहीं, अब अमेरिका में रह रहे हिंदू समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार को लेकर आवाज उठाई है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में आज सुबह लोग आसमान में एक विशाल बैनर को देखा गया। इस बैनर में लिखा था कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा बंद होनी चाहिए। यह विशाल बैनर हडसन नदी के ऊपर और विश्व प्रसिद्ध स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के ऊपर हवा में लहराते देखा गया।यह विशाल बैनर एक हवाई जहाज के पीछे बांधा गया था, जैसे ही हवाई जहाज न्यूयॉर्क के ऊपर से उड़ा तो आसमान में हिंदुओं पर अत्याचार का विशाल बैनर हवा में लहराता दिखाई दिया। बांग्लादेश मूल के हिंदू समुदाय के सितांशु गुहा ये बैनर लहराने वाले लोगों में शामिल हैं। सितांशु ने कहा कि लोगों में बांग्लादेशी हिंदुओं की मुश्किलों के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया था। 1971 में बांग्लेदाश बनने के बाद से ही वहां हिंदुओं के साथ नरसंहार शुरु हो गया। एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में लाखों हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। बांग्लादेश की हिंदू आबादी 1971 में 20% से घटकर आज केवल 8.9% रह गई है। हिंसा, दरिद्रता, लिंचिंग, नाबालिग लड़कियों के अपहरण और जबरन नौकरी से इस्तीफा देने की घटनाएं सामने आई हैं। बांग्लादेश में 2 लाख से अधिक हिंदू प्रभावित हुए हैं। साथ ही संपत्ति जब्त की गई है, जो देश में रहने वाले 13 से 15 मिलियन हिंदुओं के लिए एक गंभीर अस्तित्वगत खतरा है।
 
 संवेदनशील हो उठा है।आँकड़ों की मानें तो शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद देश के 48 जिलों में हमले की 278 घटनाएँ हुई हैं।शेख़ हसीना सरकार के पतन और उनके देश से पलायन के बाद हिंदू समुदाय के लोग डर और आतंक के माहौल में दिन काट रहे हैं। इसको लेकर भारत भी कड़ी आपत्ति जता चुका है।वहीं, अब अमेरिका में रह रहे हिंदू समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार को लेकर आवाज उठाई है।
संवेदनशील हो उठा है।आँकड़ों की मानें तो शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद देश के 48 जिलों में हमले की 278 घटनाएँ हुई हैं।शेख़ हसीना सरकार के पतन और उनके देश से पलायन के बाद हिंदू समुदाय के लोग डर और आतंक के माहौल में दिन काट रहे हैं। इसको लेकर भारत भी कड़ी आपत्ति जता चुका है।वहीं, अब अमेरिका में रह रहे हिंदू समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार को लेकर आवाज उठाई है।
 
   
   
 
Oct 04 2024, 13:36
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