बंगाल में एंटी-रेप बिल पास, ऐसा करने वाला बंगाल बना पहला राज्य, बलात्कारियों को 10 दिन में सजा का प्रावधान
पश्चिम बंगाल विधानसभा ने आज मंगलवार (3 सितंबर) को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार द्वारा पेश किए गए बलात्कार विरोधी 'अपराजिता' विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया। इसके साथ ही, पश्चिम बंगाल बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित केंद्रीय कानूनों में संशोधन लाने वाला पहला राज्य बन गया है।
इस विधेयक को राज्यपाल सी वी आनंद बोस और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास मंजूरी के लिए भेजा नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे 'ऐतिहासिक' और 'आदर्श' बताते हुए कहा कि यह विधेयक 31 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर को श्रद्धांजलि है, जिसकी पिछले महीने सरकारी आरजी कर मेडिकल सेंटर में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। 'अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) 2024' में बलात्कार और यौन अपराधों के दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है, यदि उनके कृत्यों के परिणामस्वरूप पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है। इसके अलावा, इसमें बलात्कार के दोषियों के लिए बिना पैरोल के आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान भी किया गया है।
विधेयक पर चर्चा के दौरान, ममता बनर्जी ने विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी से आग्रह किया कि वे राज्यपाल से विधेयक पर सहमति देने की अपील करें। ममता ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से केंद्रीय कानून में मौजूद खामियों को दूर करने की कोशिश की गई है और बलात्कार जैसे अपराधों को रोकने के लिए सामाजिक सुधार की आवश्यकता है। ममता ने यह भी कहा कि विपक्ष को राज्यपाल से विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए कहना चाहिए, ताकि इसे लागू किया जा सके। ममता ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराध दर असामान्य रूप से अधिक है, जबकि पश्चिम बंगाल में महिलाओं को अदालतों में न्याय मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि BNS पारित करने से पहले पश्चिम बंगाल से परामर्श नहीं किया गया, और उन्होंने केंद्र में नई सरकार के गठन के बाद इस पर चर्चा की इच्छा व्यक्त की। भाजपा ने विधेयक का स्वागत किया, लेकिन भारतीय न्याय संहिता (BNS) में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से निपटने के लिए पहले से ही कड़े प्रावधान होने की बात कही। पार्टी के नेता और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने विधेयक में सात संशोधनों की मांग की और इसका तत्काल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने की बात की।
अधिकारी ने कहा कि इस कानून का तत्काल क्रियान्वयन सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और उन्होंने इस पर परिणाम की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि विपक्ष समर्थन देगा, लेकिन विधेयक को तुरंत लागू करने की गारंटी दी जानी चाहिए। यह विशेष सत्र कोलकाता में प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच बुलाया गया था।
बता दें कि, इस बिल में दोषियों के लिए दस दिन में फांसी का प्रावधान है। लेकिन इसपर सवाल उठना भी लाजमी है कि आखिर 10 दिन के अंदर किसी को दोषी कैसे साबित किया जाएगा ? संदेशखाली का TMC नेता शेख शाहजहां, जो कई महीनों से जेल के अंदर है, अब तक उस पर दोष साबित नहीं हो पाया है, जबकि उस पर कई महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। लेकिन, अब ममता सरकार दावा कर रही है कि वो 10 दिन में बलात्कारियों को फांसी देगी, जबकि शेख शाहजहां को पकड़ने में ही बंगाल पुलिस को 50 दिन से अधिक लग गए थे, वो भी कोलकाता हाई कोर्ट की फटकार के बाद पकड़ा गया था। मौजूदा कोलकाता के मामले में भी बंगाल पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे हैं, सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप लगे हैं, CBI ने कोर्ट में खुद कहा है कि अपराध के 5 दिन बाद जब जांच उनके हाथ में आई, तब तक सबकुछ बदल गया था, सैकड़ों लोगों की भीड़ क्राइम सीन तक घुस आई थी, हॉस्पिटल में निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था, यहाँ तक कि मृतका की डायरी के पन्ने भी फ़टे हुए मिले हैं, जिनमे अहम सुराग हो सकते थे। ऐसे में ये तो वक़्त ही बताएगा कि ममता सरकार बलात्कारियों को 10 दिन में फांसी दिलवा पाती है या नहीं ? या फिर ये कानून सिर्फ मौजूदा मामले में अपनी सरकार को डिफेंड करने का एक शिगूफा साबित होता है।





2024 लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की समन्वय बैठक केरल में हुई। 31 जुलाई से 2 अगस्त के बीच ये बैठक लोकसभा चुनावों के बाद हुई और इस बैठक के बाद देश के तीन बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। इनमें महाराष्ट्र के साथ हरियाणा और झारखंड भी शामिल हैं। ऐसे में बैठक के काफी अहम माना जा रहा है। दरअशल, लोकसभा चुनाव में इस बार पहली बार केरल के त्रिशूर सीट पर बीजेपी को जीत मिली है। वहीं पार्टी तिरुवनंतपुर सीट पर दूसरे नंबर पर रही। यही नहीं बीजेपी को केरल में विधानसभा की 11 सीटों पर बढ़त मिली है। ये संघ द्वारा तैयार किए गए पिच पर ही लड़ने का परिणाम है। ऐसे में अब भाजपा को कर्नाटक के बाद केरल ही दक्षिण का गेटवे नजर आ रहा है और शायद इसी से उत्साहित होकर आरएसएस ने भी अपनी समन्वय बैठक यहीं बुलाने का लक्ष्य रखा। भाजपा का थिंक टैंक कहलाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वार्षिक समन्वय बैठक के आयोजन स्थल को लेकर हर किसी ने हैरानी जताई। केरल को वामपंथी दलों के वर्चस्व के कारण हिंदुत्व विरोधी धारा वाला राज्य माना जाता है। भाजपा लगातार वहां अपनी सियासी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है, जिसमें उसे धीरे-धीरे सफलता भी मिल रही है। ऐसे में वहां संघ की राष्ट्रीय बैठक के आयोजन को आम जनता के बीच नेटवर्क बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। केरल में भाजपा लगातार अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश कर रही है। हिंदुत्व विरोधी विचारधारा वाला राज्य कहलाने वाले केरल में भाजपा खुद को हिंदुओं की आवाज बनाने की जुगत में है। इसमें आरएसएस का पूरा साथ मिल रहा है। इसी तस्दीक कर रहे हैं संघ की ओर से जारी आंकड़े। इसी साल मार्च में आरएसएस ने शाखाओं का डेटा जारी किया था। इसके मुताबिक दक्षिण के राज्य केरल में आरएसएस की 5142 शाखाएं चल रही हैं। देशभर में संघ की करीब 60 हजार शाखाएं चल रही हैं। यानी शाखाओं की कुल हिस्सेदारी में केरल की हिस्सेदारी करीब 9 प्रतिशत है। कम आबादी होने के बावजूद शाखाओं की तेजी से बढ़ती संख्या ने संघ का ध्यान केरल की तरफ खिंचा है। हाल ही में संघ ने शाखाओं की संख्या बढ़ने की वजह से केरल को उत्तर और दक्षिण विभागों में विभाजित किया था। जानकारों के मुताबिक संघ विभाजन का काम तब करती है, जब उसे लगता है कि राज्य में उसने अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया है। केरल में संघ ने अगले साल तक 8000 शाखा लगाने का लक्ष्य रखा है। *केरल में पहली बार खिला “कमल”* संघ की बनाई हुई जमीन पर बीजेपी धीरे-धीरे फसलें भी उगाने में लगी हुई है। हालिया लोकसभा में केरल में बीजेपी का खाता खुला है। पार्टी को त्रिशूर सीट पर जीत मिली है। वहीं पार्टी तिरुवनंतपुर सीट पर दूसरे नंबर पर रही। लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो बीजेपी को केरल में विधानसभा की 11 सीटों पर बढ़त मिली है। जिन 11 सीटों पर पार्टी को बढ़त मिली है, उनमें त्रिशूर की 6, अतिंगल की दो और तिरुवनंतपुर की 3 सीटें शामिल हैं। इसके अलावा बीजेपी 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है। इनमें तिरुवनंतपुरम की 3,अतिंगल की 1, अलप्पुझा की 2, पालक्कड की 1 और कासरागोद की 2 सीटें शामिल हैं। *वेट प्रतिशत में बढ़ोतरी* चुनाव आयोग के मुताबिक केरल में बीजेपी को हालिया लोकसभा चुनाव में 19.24 प्रतशित वोट मिले हैं। 2019 के मुकाबले यह 3 प्रतिशत से ज्यादा है। 2019 में बीजेपी को केरल में 15.64 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 12.41 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी की इस बार वोट प्रतिशत ने पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। लेफ्ट और कांग्रेस के इस गढ़ में बीजेपी के इस प्रदर्शन से संघ भी उत्साहित है। *देश के दक्षिणी हिस्से में बीजेपी का सियासी दर्जा बढ़ाने की संभावना* भाजपा लगातार खुद को असली राष्ट्रीय पार्टी साबित करने की कवायद में जुटी है। इसके लिए दक्षिण भारतीय राज्यों में उसकी अहम मौजूदगी जरूरी है, जहां कर्नाटक को छोड़कर बाकी राज्यों में वह अब तक दोयम दर्जे की ही साबित हुई है। हालांकि लगातार कोशिश के चलते उसे तेलंगाना में दूसरे नंबर की पार्टी बनने में सफलता मिली है, जबकि तमिलनाडु में भी उसका वोट प्रतिशत पहले के मुकाबले बढ़ा है। इस बार लोकसभा चुनावों में भाजपा सीटें जीतने में भले ही सफल नहीं हुई, लेकिन वह तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्शाने में सफल रही है। यही हाल आंध्र प्रदेश का भी रहा है। ऐसे में संघ की दक्षिण भारतीय राज्य में वार्षिक बैठक से भाजपा को देश के उस हिस्से में सियासी दर्जा बढ़ाने में मदद मिलने की संभावना आंकी जा रही है।
Sep 03 2024, 19:36
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