पीएम मोदी के हनुमान का केन्द्र में मंत्री बनते ही बदल गया है सुर, क्या अपने पिता की तरह राजनीति का मौसम वैज्ञानिक बनना चाह रहे चिराग पासवान !
डेस्क : लोजपा (आर) के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष व केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान के मन में क्या है, यह लोगों के लिए अबूझ पहेली बन गई है। चिराग की पार्टी एनडीए का हिस्सा है। वे खुद नरेंद्र मोदी सरकार में बहैसियत मंत्री शामिल हैं। इसके बवजूद तकरीबन तीन महीने के एनडीए सरकार के कार्यकाल में चिराग पासवान के बयान-आचरण से नहीं लग रहा कि वे पीएम मोदी के हनुमान रह गए हैं। जिन दिनों चिराग पासवान अपनी पार्टी लोजपा में टूट के बाद अकेले पड़ गए थे, वे अपने को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते थकते नहीं थे। मोदी भी उन्हें काफी लाड़-दुलार देते थे। अब मोदी सरकार के फैसलों या एनडीए के स्टैंड पर ही चिराग हमलावर हो गए हैं।
एनडीए में रहते हुए चिराग पासवान की भूमिका विपक्ष जैसी हो गई है। वे विपक्ष के कई मुद्दों पर सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे है। कांग्रेस के नेतृत्व में बना इंडिया ब्लाक जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है। उनके ही सुर में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी सुर मिलाने लगे हैं। जातिगत जनगणना का समर्थन और अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की उनकी घोषणा मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ उनके ताजा स्टैंड हैं। इससे पहले आरक्षण पर सरकार के स्टैंड के खिलाफ वे रहे। विपक्ष के भारत बंद का समर्थन किया। लैटरल एंट्री पर भी विपक्ष के सुर में सुर मिलाया। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर भी भाजपा के सहयोगी अन्य दलों से चिराग अलग अंदाज में दिखे।
इतना ही नहीं पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के बाद चिराग ने कहा कि कई प्रादेशिक इकाइयां अपने राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती हैं। वे चाहें तो लड़ सकती हैं। इसके लिए पहले गठबंधन (एनडीए) में बात होगी। जरूरत पड़ने पर अकेले भी पार्टी मैदान में उतर सकती है। झारखंड में इस साल विधानसभा का चुनाव होना है। इस बारे में उनका कहना है कि लोजपा (आर) झारखंड की कुल 81 में 40 सीटों पर मजबूत स्थिति में है। भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की पहली कोशिश होगी। गठबंधन न होने पर पार्टी अकेले भी चुनाव लड़ सकती है।
2019 में ऐसा हुआ भी है। जाहिर है कि पहले से ही जेडीयू ने 12 सीटों की दावेदारी कर रखी है। चिराग उससे भी अधिक 40 सीटों की दावेदारी कर रहे हैं। भाजपा और आजसू तो पहले से ही साथ चुनाव लड़ने का निर्णय ले चुके हैं। ऐसे में चिराग की मांग भाजपा के लिए मुसीबत ही खड़ी करेगी। हद तो यह है कि उनकी पार्टी ने बिहार में एनडीए की ओर से चिराग पासवान को सीएम चेहरा घोषित किये जाने तक की बात कर रही है।
लोजपा (आरवी) के राज्य युवा विंग के अध्यक्ष वेद प्रकाश पांडे ने कहा कि "चिराग एनडीए का सबसे अच्छा सीएम चेहरा है। वह सिद्धांतों के आदमी हैं, नीतीश के विपरीत जिन्होंने उन ताकतों से हाथ मिलाया जिनके खिलाफ उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा और लोगों का जनादेश हासिल किया।" पांडे ने कहा कि चिराग ने कुरहानी में भाजपा को सीट जीतने में मदद करके अपनी राजनीतिक ताकत साबित की। उन्होंने कहा, "भाजपा 2020 के विधानसभा चुनावों में जेडी(यू) के साथ गठबंधन में चुनाव हार गई थी। हालांकि, चिराग ने इस बार भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार किया। परिणाम सभी के सामने हैं।"
सवाल उठ रहा है कि आखिर चिराग चाहते क्या हैं ? क्या वोटों का समीकरण चिराग को एनडीए से अलग लाइन लेने पर मजबूर कर रहा है? चिराग के कोर वोटर पासवान हैं। बिहार में पासवान वोटर्स करीब पांच फीसद हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या चिराग को लग रहा है कि बिना किसी दूसरे वर्ग के समर्थन के राजनीति में कुछ बड़ा कर पाना संभव नहीं है? अलग रुख अपनाने के पीछे कुछ और कारण तो नहीं?
वैसे सवाल तो यह भी है कि लोकसभा चुनाव में 100% स्ट्राइक रेट रखने वाली पार्टी एलजेपी रामविलास के चीफ चिराग पासवान क्या भारी भरकम मंत्रालय चाहते हैं? क्या झारखंड विधानसभा चुनाव व अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें चाहिए इसलिए क्या प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं? या फिर वे अपने दिवंगत पिता रामविलास की तरह राजनीति का मौसम वैज्ञानिक बनना चाहते है।
आपको बता दे कि चिराग पासवान के पिता बिहार की राजनीति के दिग्गज नेता रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता था। ये उपाधि उन्हें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने दी थी। लेकिन पहले आपको बताते हैं कि आख़िर उन्हें राजनीति के मौसम वैज्ञानिक की उपाधि कैसे मिली?
दरअसल जब नीतीश कुमार ने लालू यादव के ख़िलाफ़ विद्रोह कर साल 1994 में समता पार्टी बनायी तो रामविलास पासवान लालू यादव के क़ब्ज़े में चली गयी जनता दल में ही रहे और अगले साल 1995 में विधान सभा चुनावों में जब भारी बहुमत से लालू यादव की जीत हुई तो लोगों को समझ आ गया कि पासवान अपने उस फैसले पर सही थे। उसके बाद जब लालू यादव ने चारा घोटाले में नाम आने पर 1997 में अपनी नई पार्टी (राजद) बना ली उसके बाद भी पासवान शरद यादव के साथ जनता दल में ही बने रहे और 1998 का लोक सभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
एक नहीं छह- वी पी सिंह, एचडी देवगौड़ा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी- प्रधान मंत्री की कैबिनेट में काम करने वाले रामविलास पासवान ने करीब बारह वर्षों तक बिहार और पूरे देश में गुजरात दंगों और उस समय गुजरात के मुख्य मंत्री और वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ जमकर प्रचार किया था। बाद में उन्हीं की सरकार में मंत्री भी बने। बिहार से लालू-राबड़ी को राज्य की सता से बाहर करने में भी उनकी अहम भूमिका रही थी।
चिराग पासवान के वर्तमान राजनीतिक पैतरे को देखकर ऐसा लग रहा है कि कही न कही वे अपने पिता की नीति पर चलने की कोशिश कर रहे है।








डेस्क : मोकामा के पूर्व बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर जोरदार हमला बोला है। उन्होने कहा है कि जिसका बाप खुद भ्रष्टाचार के मामले में कई बार जेल जा चुका है उसे भ्रष्टाचार पर बोलने का अधिकार नहीं है। वहीं उन्होने कहा कि नीतीश कुमार जबतक जिंदा रहेंगे बिहार के सीएम रहेंगे।
Aug 30 2024, 15:08
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