बिहार में आरक्षण के मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष में तकरार जारी, नेता प्रतिपक्ष के आरोप पर सत्ता पक्ष ने किया यह तीखा पलटवार
डेस्क : बिहार में आरक्षण का मुद्दा अभी कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए इसकी अगली सुनवाई की तारीख तय कर दी है। बावजूद इसके इस मुद्दे को लेकर पक्ष-विपक्ष में तकरार जारी है।
बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों को घेरा। उन्होंने आरोप लगाया कि डबल इंजन की सरकार ने आरक्षण की नई सीमा को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया।
तेजस्वी ने प्रेस वक्तव्य जारी कर कहा कि वंचित और उपेक्षित वर्गों के कल्याण के लिए जातिगत जनगणना करवाने के लिए राजद ने दशकों तक सड़क से सदन तक कठिन संघर्ष किया है। जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी, तब सिर्फ 17 महीनों में ही उनकी सरकार ने स्वतंत्र भारत में पहली बार किसी राज्य में जाति आधारित गणना करवा इसके आंकड़े प्रकाशित कराए। जातीय गणना के जो आंकड़े आए, उसके आधार पर बिहार में नवंबर में सभी वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 75 फीसदी कर दिया गया। पिछले वर्ष दिसंबर में आयोजित पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री के समक्ष भी इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने का आग्रह किया गया था, लेकिन आरक्षण विरोधी एनडीए सरकार ने इनकार कर दिया।
डबल इंजन सरकार बनने के आठ महीने बाद भी कोई प्रयास नहीं हुआ है। नई आरक्षण सीमा के अंतर्गत प्रदेश की नियुक्तियों में नौकरी पाने से पिछड़े एवं अतिपिछड़े और एससी-एसटी के लोग वंचित रह जाएंगे।
इधर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी के इस बयान पर जदयू नेता व बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। बयान जारी कर उन्होंने कहा कि जाति आधारित गणना को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हमेशा ईमानदार पहल की। नीतीश कुमार के नेतृत्व में दो-दो बार प्रधानमंत्री के यहां सर्वदलीय बैठक हुई। जाति आधारित गणना नीतीश कुमार की सोच है, इसे ज्ञानी जैल सिंह ने उनके मन में अंकुरित किया।
मंत्री अशोक चौधरी ने पूछा, बिहार में लगातार 15 वर्षों तक लालू यादव की सरकार थी। लेकिन क्या इन 15 वर्षों में जाति आधारित गणना करने के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाने का काम या फिर सर्वदलीय बैठक करने का काम लालू सरकार ने किया?
चौधरी ने कहा कि नीतीश कुमार की सोच है कि जाति आधारित गणना लोगों के कल्याण के लिए है। उन्होंने राजद पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि जो लोग कभी भी अनुसूचित जाति और जनजाति के हितैषी नहीं रहे, पंचायती राज व्यवस्था जो अनुसूचित जाति और जनजाति के संवैधानिक अधिकार थे, अपने 15 साल के शासन काल में जिन्होंने उन्हें वो संवैधानिक अधिकार नहीं दे सके, वो आज अनुसूचित जाति और जनजाति के हितों की रक्षा करने की बात कर रहे हैं। केन्द्र की सत्ता में मजबूत स्थिति में होने के बावजूद लालू प्रसाद बिहार को विशेष दर्जा तो दूर विशेष पैकेज तक नहीं दिला सके।
Aug 05 2024, 09:34