जदयू में फिर एक पूर्व आईएएस अधिकारी की इंट्री होते ही मिली बड़ी जिम्मेवारी, जानिए आखिर ब्यूरोक्रेट पर नीतीश कुमार क्यों करते है इतना विश्वास और क्यों जल्द हो जाती है पार्टी से विदाई
डेस्क : जदयू में एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी मनीष वर्मा की इंट्री हुई है। पार्टी में शामिल होते है जैसा पहले से ही अंदेशा जताया जा रहा था कि उन्हें बड़ी जिम्मेवारी मिल सकती है। हुआ भी ऐसा ही। नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा की जनता दल यूनाइटेड में एंट्री के अगले दो दिनों के अंदर ही उन्हे पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया। ऐसा नहीं है कि मनीष वर्मा ऐसे पहले आईएएस अधिकारी है जिन्हे इतनी बड़ी जिम्मेवारी मिली है। इससे पहले भी नीतीश कुमार ने जदयू में कई पूर्व वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की इंट्री कराई और उन्हें बड़ी जिम्मेवारी दी। हालांकि अबतक उन सभी अधिकारी अंतिम परिणाम बहुत बेहतर नहीं रहा और उनकी पार्टी से विदाई हो गई।
आईए पहले एक नजर डालते है उन अधिकारियों पर जिनकी जदयू में इंट्री के बाद मिली बड़ी जिम्मेवारी और फिर हो गए हवा
नीतीश के खास रहे पूर्व आईएफएस पवन वर्मा
1976 बैच के आईएफएस पवन कुमार वर्मा साल 2014 में जदयू में शामिल हुए। पवन वर्मा का भी जदयू में शामिल होना सुर्किययां बना था। पार्टी में शामिल होने के बाद इन्हें नीतीश कुमार का दाहिना हाथ माना जाने लगा था। नीतीश ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। साल 2016 में जदयू संगठन की जिम्मेवारी उन्हें सौंपी गई तो 2020 आते आते उन्होंने नीतीश कुमार को विदा कह दिया। वे टीडीपी से भी जुड़े लेकिन वहां भी मन नहीं रमा अब वे पुस्तक लिखने में लगे हुए हैं।
केपी रमैया सृजन घोटाले के आरोपी
1986 बैच के बिहार काडर के आईएएस अधिकारी रमैया अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग के प्रधान सचिव थे। आईएएस अधिकारी केपी रमैया भी नीतीश कुमार की पार्टी के साथ जुड़े। साल 2014 में रमैया को सासाराम सीट से कांग्रेस के मीरा कुमार के खिलाफ चुनाव लड़ाया गया।तब भाजपा वहां से जीत गई और रमैया का राजनीतिक जीवन समाप्तप्राय सा हो गया। सृजन घोटाला में उन्हें आरोपी बनाया गया है। वारंट भी निकला लेकिन कोर्ट से उन्हें जमानत मिली हुई है।
रिटायर्ड आईएएस ललन जी का हुआ राजनीतिक पटाक्षेप
साल 2019 में रिटायर्ड आईएएस ललन जी जदयू में शामिल हुए। आईएएस अधिकरी ललन जी को भी नीतीश कुमार का खास माना जाता था। उनको भी बड़ा पद मिलने का कयास था। वे कटिहार में दो बार जिलाधिकारी रहे थे, माना जाते लगा कि उन्हें कटिहार से टिकट मिलेगा। टिकट तो नहीं मिला लेकिन साल 2020 के बाद शायद हीं उनकी कोई चर्चा राजनीतिक तौर पर हुई हो।
आरसीपी सिंह
इस कड़ी में सबसे बड़ा नाम आरसीपीसी का है। आरसीपी सिंह उत्तर प्रदेश कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी रहे हैं। नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में यानि साल 2005 से 2010 के बीच आरसीपी सिंह बिहार के मुख्य सचिव भी रहे थे। आरसीपी सिंह ने साल 2010 में जेडीयू का दामन थामा था। आरसीपी सिंह के साथ दो बड़ी बात थी। एक वे नीतीश कुमार के क्षेत्र नालंदा के थे और दूसरी उनके स्वजातिए भी थे। जेडीयू में शामिल होने के बाद नालंदा के रामचंद्र प्रसाद सिंह की गिनती नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के रूप में होने लगी थी। एक समय जदयू में आरसीपी सिंह का नाम गूंजता था। नीतीश कुमार के बाद सिंह को दूसरे नंबर का नेता माना जाने लगा था। नीतीश ने उन्हें जदयू का रार्ष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना दिया था। लेकिन परिणति ये हुई कि वे अबी गांव में रह रहे हैं।
नीतीश की वजह से आरसीपी सिंह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में साल 2021 में जेडीयू के कोटे से मंत्री भी बनाए गए थे। माना जाता है कि नीतीश की आरसीपी से नाराज़गी यहीं से दिखने लगी थी। उस समय आरसीपी सिंह पार्टी अध्यक्ष थे और इसे आरसीपी सिंह की महत्वाकांक्षा के तौर पर देखा गया था। 2020 विधानसभा चुनाव के बाद वे केंद्र में मंत्री बने, लेकिन इसके बाद ही उनकी उलटी गिनती शुरू हो गई। 2022 में जेडीयू ने उनसे किनारा कर लिया। आरसीपी सिंह पर नीतीश से गद्दारी का आरोप लगा। जेडीयू से निकाले जाने बाद आरसीपी भाजपा में शामिल हुए, लेकिन नीतीश के एनडीए में शामिल होते हीं उनके राजनीतिक कैरियर पर ब्रेक सा लग गया। अभी वे अपने गांव मुस्तफापुर में रहते हैं।
मनीष वर्मा
अब जदयू में 2000 बैच के उड़ीसा कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा की जदयू में इंट्री हुई है। मनीष वर्मा पटना और पूर्णिया के डीएम भी रह चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि मनीष वर्मा भी आरसीपी सिंह की तरह नालंदा के मूल निवासी और नीतीश कुमार के स्वजातिए है। मनीष वर्मा नालंदा जिले के कुर्मी जाति से बिलांग करते है। पार्टी मे शामिल होने के बाद मनीष कुमार वर्मा को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है। जदयू की सदस्यता ग्रहण करने के बाद मनीष कुमार वर्मा ने कहा कि पहले जदयू उनके दिल में था और अब वह इस दल में आ गये हैं।
अब आइए यह जानने की कोशिश करते है कि आखिर आईएएस अधिकारियों पर नीतीश कुमार क्यों करते है इतना विश्वास
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि जिनका जनाधार जमीन पर है वह नीतीश कुमार के दल में मंत्री हो सकते हैं, पर विश्वसनीय नहीं। राजीव रंजन, विजय चौधरी या फिर अशोक चौधरी एक हद तक राजनीतिक जमीन वाले लोग हैं। वहीं नीतीश कुमार यह भी जानते है कि शासन-प्रशासन को कायम रखने में जितनी बड़ी भूमिका एक ब्यूरोक्रेट निभा सकता है वह शायद एक राजनेता नही। वहीं ब्यूरोक्रेट का जमीनी जनाधार नहीं होने की वजह से पार्टी में टूट-फूट की संभावना भी कम रहती है।
अब सवाल यह है कि आरसीपी सिंह का हाल देखने के बाद भी मनीष वर्मा क्यों ?
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो आरसीपी सिंह जिस विश्वसनीयता के शिखर पर पहुंचे उसकी वजह थी कि वह पॉलिटिकल व्यक्ति नहीं थे। ब्यूरोक्रेट थे। यह खूबी मनीष वर्मा में भी है। मनीष वर्मा पटना में डीएम के साथ ये नीतीश कुमार के पीएस भी रहे हैं। मतलब एक अच्छा अंतराल नीतीश कुमार और मनीष वर्मा क्रमशः राजनेता और ब्यूरोक्रेट के रूप में काम भी कर चुके हैं।
वहीं मनीष वर्मा को लाने के पीछे जो दूसरी कथा है वह जातीय जकड़न से भरा पड़ा है। सूत्रों के अनुसार ललन सिंह को मंत्री बनाने और संजय झा को कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के भीतर यह संग्राम छिड़ा हुआ है कि वोट किसी का ताज किसी को। पार्टी के भीतर उठते स्वर की भरपाई भी हैं मनीष वर्मा।
बहरहाल मनीष वर्मा की जदयू में इंट्री हो गई है। उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव जैसी बड़ी जिम्मेवारी भी मिल गई है। देखने वाली बात यह होगी की मनीष वर्मा पार्टी को किस उंचाई तक ले जाते है और कबतक इनका नीतीश कुमार के साथ विश्वास का रिश्ता बना रहता है।
Jul 19 2024, 15:06
- Whatsapp
- Facebook
- Linkedin
- Google Plus
1- Whatsapp
- Facebook
- Linkedin
- Google Plus
179.0k