7 राज्यों में हुए उपचुनाव में “कुम्हलाया” कमल, आने वाले चुनावों से पहले आत्ममंथन की जरूरत

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लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारत की राजनीति करवट लेने लगी है। एनडीए के 293 सांसदों के साथ तीसरी बार सरकार बनाने के बाद भी बीजेपी कॉन्फिडेंट नजर नहीं आ रही है, जबकि 234 सीटें जीतने वाले विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। हाल ही में संपन्न विधानसभा उपचुनाव के परिणाम सकी तस्दीक कर रहा है। देश के सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर 10 जुलाई को हुए उपचुनाव के नतीजे में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खाते में केवल दो सीटें आई हैं। वहीं, एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। इंडिया गठबंधन में जहां कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत का परचम फहराया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने चार, डीएमके और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है।

लोकसभा के बाद हुए पहले चुनाव पर देश की निगाहें लगी थी। राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर आम लोग भी इन चुनावों को बीजेपी की परीक्षा मान रहे थे। विधानसभा उपचुनाव में पंजाब की एक, हिमाचल प्रदेश की तीन, उत्तराखंड की दो, पश्चिम बंगाल की चार, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु की एक-एक सीट पर मतदान हुआ था। इन चुनाव में इंडिया’ गठबंधन में शामिल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजों में बीजेपी पर इंडिया गठबंधन भारी पड़ा। बीजेपी के लिए हिमाचल में बीजेपी हमीरपुर सीट जीतने में कामयाब रही। वहीं, तमिलनाडु में विक्रवांडी विधानसभा सीट पर डीएमके उम्मीदवार अन्नियूर शिवा ने जीत हासिल की।

सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की कर लेते हैं। जहां से बीजेपी के लिए एक शुभ समाचार आया है क्योंकि उसने कांग्रेस के गढ़ रहे छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में शामिल अमरवाड़ा सीट जीत ली है, जो कभी कांग्रेस के पास हुआ करती थी। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका पश्चिम बंगाल में लगा है। जहां 4 सीटों पर हुए उप चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी ने क्लीन स्वीप कर के बीजेपी को क्लीन बोल्ड कर दिया है। इनमें से तीन सीट ऐसी थी जो पहले बीजेपी के पास थीं। पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3 से 77 सीट का सफर तय किया था, लेकिन चार सीटों के इस उपचुनाव में उसके लिए संकेत अच्छे नहीं है। उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि बंगाल में टीएमसी की राजनीतिक दीवारों का जोड़ और मजबूत हो गया है। 

सबसे बड़ा खेल बिहार में हुआ हैं। जहां जेडीयू और आरजेडी देखते रह गए और बाजी निर्दलीय उम्मीदवार ने मार ली। 13 में ये इकलौती ऐसी सीट है जहां निर्दलीय की सत्ता आई है। पंजाब में 1 सीट पर हुए उपचुनाव में झाड़ू का जादू चला गया और जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली है। कांग्रेस ने पहाड़ों में कमाल कर लिया क्योंकि हिमाचल प्रदेश की 3 सीट में उसे दो सीट पर जीत मिली है जबकि बीजेपी को एक जीत से संतोष करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी को उपचुनाव में कांग्रेस ने खाली हाथ भेजा है और दोनों सीटों पर जीत हासिल की है। इसके अलावा तमिलनाडु की विक्रवंदी विधानसभा सीट इंडिया गठबंधन की DMK के पास गई है।

अब सबसे बड़ी बात ये है कि आखिर बीजेपी को हुए नुकसान की वजह क्या है? दरअसल, 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि को धक्का लगा है। नीट एग्जाम और यूजीसी जैसे एग्जाम में धांधली के आरोप और बारिश में टपकते एयरपोर्ट जैसे मसलों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि करप्शन के मामले बेदाग रही। हालांकि, पेरपर लीक जैसे मुद्दों ने सरकार को छवि का खासा नुकसान पहुंचाया है। 

2014 के दौर को याद कीजिए। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे, तब देश की जनता करप्शन और घोटालों की खबरों से परेशान थी। मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री के तौर प्रचारित हुए, जो कांग्रेस अध्यक्ष के मातहत के तौर पर काम करते हैं। विपक्ष ने बड़े घोटालों पर उनकी चुप्पी पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस भी आरोपों का सटीक जवाब देने में सक्षम नहीं दिख रही थी। गुजरात में ब्रांड बन चुके नरेंद्र मोदी ने इस माहौल को भुनाया। बदलाव की इंतजार कर रही जनता ने समर्थन दिया और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 

2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक ने पीएम मोदी की साख बढ़ाई। जनता ने उन्हें दूसरी बार सरकार बनाने का मौका दिया। मोदी 2.0 में धारा-370 हटाने और सीएए लागू करने जैसे बुलंद फैसले भी लिए। कोरोना के दौर में भी जनता नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी रही। उन्होंने जैसा कहा, लोगों ने वैसा ही किया। यह उनकी लोकप्रियता का चरम था, जिसे देखकर विपक्ष समेत पूरी दुनिया दंग रह गई। किसान आंदोलन और कोरोना से हुई मौतों के बाद भी यूपी में बीजेपी की वापसी हुई। पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भारतीय जनता पार्टी की बनी।

2024 के लोकसभा चुनाव में हालात बदल गए। बेहतर चुनाव प्रबंधन और अग्रेसिव कैंपेन के बाद भी बीजेपी पूर्ण बहुमत के 273 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। अब महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक जैसे मुद्दों की छाया में हुए उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा को कड़े संदेश दिए हैं। नतीजों ने कई संदेश दिए हैं। आने वाले चुनावों में भाजपा को संगठनात्मक खामियों को समय रहते दूर करना होगा। कार्यकर्ताओं में पुराना जोश भरना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर त्वरित एक्शन लेकर साधना होगा।

लोकसभा के लिए राहुल गांधी की नई टीम तैयार, मोदी सरकार पर और तीखे होंगे हमले
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संसद के बजट सत्र के पहले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह से तैयारी के मूड में है।बजट सत्र से पहले कांग्रेस ने लोकसभा में राहुल गांधी की संसदीय कोर टीम का गठन कर दिया है। पार्टी ने तीसरी बार असम से चुनाव जीते तेज-तर्रार युवा सांसद गौरव गोगोई को लोकसभा में पार्टी का उपनेता बनाया तो केरल से आठ बार के सांसद के सुरेश को लोकसभा में मुख्य सचेतक बनाकर अहम जिम्मेदारी सौंपी है। वहीं, तमिलनाडु से आने वाले सांसद मणिक्कम टैगोर और बिहार के किशनगंज से सांसद मो. जावेद को लोकसभा में सचेतक नियुक्त किया गया है।

कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा में उपनेता नियुक्त करने के साथ मुख्य सचेतक और दो सचेतकों की नियुक्ति का पत्र लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला को भेज दिया है।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के संगठन महासचिव के. सी. वेणुगोपाल ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में बताया कि कांग्रेस के संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष बिरला को पत्र लिखकर उन्हें संसद के निचले सदन में कांग्रेस के उप नेता, मुख्य सचेतक और दो सचेतक नियुक्त किये जाने के बारे में जानकारी दी है।

वेणुगोपाल ने कहा, विपक्ष के नेता राहुल गांधी के मार्गदर्शन में कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन के दल लोकसभा में जनता के मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाएंगे।

लोकसभा में कांग्रेस को 10 साल के बाद आधिकारिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष का पद मिला है। कांग्रेस इस बार 99 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही है, जिसके चलते कांग्रेस और विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। नेता विपक्ष की जिम्मेदारी संभालने के बाद नई लोकसभा के पहले सत्र के दौरान ही राहुल गांधी ने मोदी सरकार को आगाह कर दिया था कि अब सदन की कार्यवाही एकतरफा चलाने की कोई कोशिश आईएनडीआईए गठबंधन बर्दास्त नहीं करेगा। मजबूत विपक्ष की एकजुटता का हवाला देते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि नई लोकसभा में संख्या बल का स्वरूप बदल चुका है और विपक्ष जनता के मुद्दों को सदन में बहस-चर्चा के लिए उठाएगा। इतना ही नहीं राहुल ने लोकसभा में ही एलान किया था कि सदन में वे आईएनडीआईए की सभी पार्टियों का नेतृत्व कर रहे हैं और सबको साथ लेकर चलना उनकी जिम्मेदारी है।

ऐसे में नेता विपक्ष के तौर पर पहली बार संवैधानिक भूमिका में आए राहुल गांधी को सदन में जुझारू-मुखर होने के साथ प्रभावशाली सहयोगियों की जरूरत है। यही वजह है कि लोकसभा में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रहे नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को सदन में सहयोग देने के लिए जुझारू और मुखर चेहरों को महत्वपूर्ण संसदीय जिम्मेदारी सौंपी गई है।
अग्निवीरों के मुद्दे पर केन्द्र के एक तीर से दो निशाने, सहयोगियों को “मनाने” से लेकर विपक्ष को “चुप” करने की तैयारी पूरी
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केन्द्र की मोदी सरकार ने 2022 में सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा की गई थी। इसके तहत सेना में आए 75 फ़ीसदी अग्निवीरों को चार साल बाद रिटायर होना था। योजना की घोषणा के साथ ही विपक्ष ने इसे सियासी मुद्दा बना दिया।विपक्षी कांग्रेस का आरोप था कि सरकार अग्निवीरों को यूज़ एंड थ्रो मज़दूर मान रही है।राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक विपक्ष के कई नेता केंद्र सरकार की इस पहल को लेकर लगातार हमलावर थे। वहीं, लोकसभा चुनाव में बीजेपी को झटके के बाद जेडीयू और एलजेपी जैसे उसके सहयोगी भी अग्निपथ स्कीम की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। इसी बीच केंद्र ने बड़ा फैसला लिया था। पूर्व अग्निवीरों को अर्धसैनिक बलों में 10 फीसद आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था।CISF से लेकर CRPF तक में पूर्व अग्निवीरों को 10 फीसद रिजर्वेशन का लाभ दिया जाएगा। केन्द्र की मोदी सरकार ने ऐसे ही ये फैसला नहीं लिया है। जानते हैं क्या है इसके पीछे की वजह?

वैसे तो सीएपीएफ भर्तियों में अग्निवीरों को तरजीह दिए जाने का ऐलान तो पिछले साल ही हो चुका था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तब ऐलान किया था कि सेंट्रल सिक्यॉरिटी फोर्सेज में पूर्व अग्निवीरों को आरक्षण दिया जाएगा। लेकिन अब बीएसएफ, सीआईएसएफ के चीफ आगे बढ़कर इसका ऐलान कर रहे हैं। दरअसल, मोदी सरकार अग्निपथ के मुद्दे पर अब और जोखिम नहीं ले सकती। अगले 2-3 महीनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के विधानसभा चुनाव जो होने हैं। ऐसे में अग्निवीर मसले पर विपक्ष के हमलों और उसके नैरेटिव को कुंद करने के लिए मोदी सरकार ने पूर्व अग्निवीरों के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों में आरक्षण का दांव खेला है।

लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष खासकर कांग्रेस ने मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और वादा किया कि सत्ता में आए तो इस स्कीम को खत्म कर देंगे। कांग्रेस सत्ता में तो नहीं आई जो वादे के तहत अग्निपथ स्कीम को खत्म कर सके, लेकिन चुनाव बाद भी वह इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ आक्रामक है। राहुल गांधी ने अभी ड्यूटी के दौरान अग्निवीरों की मौत के बाद मिलने वाले मुआवजे का मुद्दा उठाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि ड्यूटी के दौरान देश की रक्षा करते हुए जो अग्निवीर अपनी जान न्यौछावर करते हैं, उन्हें सरकार की तरफ से मुआवजा नहीं दिया जा रहा। हालांकि, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यहां तक कि सेना ने भी राहुल गांधी के आरोपों को पुरजोर तरीके से खारिज किया।

लोकसभा चुनाव में पिछली बार के मुकाबले बीजेपी की सीटें घटने के पीछे एक बड़ी वजह अग्निवीर के मुद्दे को भी माना गया। चुनावी झटके के बाद माना जा रहा था कि मोदी सरकार अग्निपथ स्कीम में बदलाव करेगी लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं दिख रहा। हालांकि, मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में 10 प्रमुख मंत्रालयों के सचिवों को अग्निपथ योजना की समीक्षा करने और इस स्‍कीम को अधिक आकर्षक व कारगर तरीके सुझाने का काम सौंपा है। इसलिए अभी अग्निवीरों को और फायदे मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही है। केंद्र सरकार जल्‍द से जल्‍द इसकी हर कमी को दूर करना चाहती है। भारतीय सेना ने भी एक इंटरनल सर्वे किया है जिसमें अग्निपथ योजना में कुछ बदलाव करने की सिफारिश की है।

14 जून 2022 को घोषित अग्निपथ योजना साढ़े 17 से 21 वर्ष की आयु के युवाओं को चार साल के लिए सशस्त्र बलों में भर्ती करने के लिए शुरू की गई थी। अभी अग्निवीर भर्ती परीक्षा में सिलेक्ट होने वाले कैंडिडेट्स को पहले साल हर महीने 30,000 रुपए सैलरी मिलती है। इसमें 9,000 रुपए कॉर्पस फंड के तौर पर कटने के बाद पहले साल इन हैंड सैलरी 21,000 रुपए आती है। दूसरे साल 10 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 33,000 रुपए सैलरी और इसमें 23100 रुपए इन हैंड मिलते हैं। इसी तरह हर साल 10 प्रतिशत सैलरी बढ़ती है। तीसरे वर्ष 36500 रुपए सैलरी में 25550 रुपए इन हैंड और चौथे साल सैलरी बढ़कर 40000 रुपए हो जाती है।
महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज, छगन भुजबल ने शरद पवार से की मुलाकात
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महाराष्ट्र की राजनीति आए दिन उफान पर देखी जा सकती है। अब आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भी राज्य की राजनीति में हलचल देखी जा रही है। इसी बीच अजित पवार गुट के नेता छगन भुजबल ने शरद पवार से मुलाकात की है।शरद पवार और छगन भुजबल की मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है।शरद पवार से भुजबल की अचानक इस मुलाकात के बाद उनके पालाबदल के कयास तेज हो गए हैं।

महाराष्ट्र सरकार के मंत्री छगन भुजबल की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) से नाराजगी के चर्चे कुछ दिनों से सुर्खियों में हैं।पहले भी ऐसी खबरें आ रही थीं कि महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार गुट के कुछ नेता नाराज हैं और वो शरद पवार के साथ जा सकते हैं। इसी बीच, सोमवार को अचानक ही अजित गुट के दिग्गज नेता भुजबल शरद पवार से मुलाकात करने के लिए पहुंच गए। भुजबल अचानक ही शरद पवार के निवास स्थान सिल्वर ओक पहुंच गए। बताया जाता है कि भुजबल ने इस मुलाकात के लिए पहले से समय नहीं लिया था।

ये मुलाकात ऐसे वक्त पर हुई है, जब एक दिन पहले ही छगन भुजबल ने शरद पवार पर जोरदार हमला किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र में जिस तरह मराठा आरक्षण पर लोगों को भड़काया जा रहा है, उसके पीछे शरद पवार ही हैं और अब आज वह उनसे मिलने उनके घर पहुंच गए।

हालांकि, भुजबल ने अभी तक मुलाकात की कोई वजह नहीं बताई है। खबरों की मानें तो शरद पवार और छगन भुजबल के बीच यह मुलाकात मराठा बनाम ओबीसी के बीच हो रही लड़ाई के चलते हुई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने नौ जुलाई को ओबीसी के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, लेकिन इसमें विपक्ष का कोई नेता शामिल नहीं हुआ था।

भुजबल की शरद पवार से मुलाकात के बारे में पूछे जाने पर राज्य के मंत्री और भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि महाराष्ट्र में यह एक परम्परागत परंपरा है कि राजनीतिक नेता अपने वैचारिक मतभेदों के बावजूद एक दूसरे के साथ विचार विमर्श करते हैं। उन्होंने कहा, दो नेताओं के बीच हर बातचीत की छानबीन करना और समय से पहले निष्कर्ष निकालना अनुचित है। एनसीपी (सपा) नेता जितेंद्र आव्हाड ने कहा, यह शरद पवार की उदारता का परिचायक है कि वे सार्वजनिक क्षेत्र में भी विपरीत विचार रखने वाले व्यक्तियों को समय देते हैं। जितेंद्र आव्हाड ने कहा, मैं भुजबल की पार्टी के अंदरूनी मामलों को लेकर चिंतित नहीं हूं। यदि वह पवार से मिलना चाहते हैं और उन्होंने उनसे मुलाकात की अनुमति दे दी है तो बैठक होने दीजिए।
वाल्मीकि विभाग के बाद अब वक्फ बोर्ड में भी घोटाला ! कर्नाटक में विपक्ष नहीं, खुद विभाग के अधिकारी कर रहे शिकायत

 कर्नाटक में कुछ दिन पहले महर्षि वाल्मीकि अनुसूचित जनजाति विकास निगम लिमिटेड के एक अधिकारी ने ख़ुदकुशी कर ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में बताया था कि, उन पर दबाव डालकर गलत काम करवाया गया और दलित फंड के 187 करोड़ रूपए दूसरी जगह ट्रांसफर कराए गए। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में कुछ अधिकारियों समेत मंत्री का भी जिक्र किया था। जिसके बाद बवाल मचने पर इस विभाग को संभालने वाले मंत्री बी नागेंद्र को इस्तीफा देना पड़ा था। वहीं, पूछताछ के बाद जाँच एजेंसी ने कांग्रेस विधायक बी नागेंद्र को अरेस्ट कर लिया है। वहीं, अब राज्य के वक्फ बोर्ड में भी बड़ी गड़बड़ी निकलकर सामने आई है। दोनों मामलों में आरोप किसी विपक्षी नेता ने नहीं बल्कि, विभाग के ही कर्मचारियों -अधिकारियों ने लगाया है। जिससे स्पष्ट होता है कि, कांग्रेस शासन के दौरान राज्य में भ्रष्टाचार किस कदर फैल रहा है।  

दरअसल, वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी ने पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी जुल्फिकारुल्लाह के खिलाफ 4 करोड़ रुपये के घोटाले को लेकर FIR दर्ज कराई है। कर्नाटक वक्फ बोर्ड के वर्तमान CEO मीर अहमद अब्बास ने पूर्व CEO जुल्फीकारुल्ला पर ये आरोप लगाए हैं। शिकायत में पूर्व CEO के खिलाफ बोर्ड को आठ करोड़ रुपये का नुकसान करने का आरोप लगा है। बंगलूरू के ग्राउंड पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत में कहा गया है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2016 में गुलबर्गा दरगाह से जुड़ी वक्फ बोर्ड की जमीन ली थी और इसके बदले में 2।29 करोड़ रुपये दिए थे। इसके अलावा, 2016 में सिद्धारमैया सरकार के धार्मिक न्यास विभाग से 1।79 करोड़ रुपए की राशि वक्फ विभाग को दिए गए थे। कुल मिलाकर बेंगलुरु में इंडियन बैंक, बेन्सन टाउन शाखा में वक्फ बोर्ड के बैंक खाते में 4 करोड़ रुपए का ट्रांसक्शन किया गया था।

शिकायत के मुताबिक, इससे वक्फ को ब्याज सहित कुल 8 करोड़ का नुकसान हुआ। यह मामला वक्फ बोर्ड के CEO के रूप में कार्यरत अहमद अब्बास द्वारा बैंगलोर हाई ग्राउंड पुलिस स्टेशन में दाखिल किया गया था। वक्फ बोर्ड का कहना है कि इस मामले में आरोपी पूर्व CEO से जवाब भी मांगा गया था, मगर वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।

क्या है वक्फ बोर्ड और कितनी संपत्ति है उसके पास ? 

बता दें कि, वक्फ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के लफ्ज वकुफा से हुई है। इस्लाम में वक्फ उस संपत्ति को कहा जाता है, जो अल्लाह के नाम पर दान कर दी जाती है। एक बार संपत्ति वक्फ हो गई, तो फिर उसे मालिक को कभी वापस नहीं मिलती। वक्फ बोर्ड के पास देश में इंडियन आर्मी और इंडियन रेलवे के बाद सबसे अधिक जमीन है। यानी, वक्फ बोर्ड भारत का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। कांग्रेस सरकार ने 1995 में मौजूदा कानून बनाकर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां प्रदान कर दी हैं। इसी का नतीजा है कि वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के अनुसार, 2022 तक देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल मिलाकर 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो लगभग 8 लाख एकड़ से अधिक जमीन पर फैली है। वैसे तो बंटवारे बाद ही नेहरू सरकार ने वक़्फ़ अधिनियम बना दिया था, और भारत छोड़कर गए मुस्लिमों की पूरी संपत्ति वक्फ बोर्ड के नाम कर दी थी। हालाँकि, बाद में इसमें और बदलाव हुआ और कांग्रेस सरकारों ने इसे और ताकत दे दी। इसके बाद भी वक्फ बोर्ड दूसरी जमीनों पर दावा ठोंकते हुए अपनी संपत्ति में इजाफा करता रहा। 

मौजूदा कानून में सबसे बड़ा प्रावधान ये है कि वक्फ यदि आपके घर पर दावा ठोंक दे, यानी उसे वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दे, तो आप किसी कोर्ट में भी नहीं जा सकते, उसके लिए आपको वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल के पास ही जाना होगा। फिर ट्रिब्यूनल की इच्छा की वो आपकी संपत्ति वापस दे या नहीं ? यहाँ तक कि इलाहबाद हाई कोर्ट को भी अपनी जमीन वक्फ से वापस पाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे, वो तो अदालत थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में उसकी सुनवाई हो गई और उसे जमीन वापस मिली, वरना इलाहबाद हाई कोर्ट की जमीन पर भी वक्फ का कब्ज़ा होता। कई भाजपा नेताओं ने इस कानून को ख़त्म करने की मांग उठाई है, बताया जा रहा है कि, इसके लिए कानूनी प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है।

गुजरात में दुखद हादसा! सड़क ट्रक और लग्जरी बस की टक्कर में 6 लोगों की हुई दर्दनाक मौत

गुजरात के आणंद जिले में अहमदाबाद-वडोदरा एक्सप्रेस-वे पर एक गंभीर सड़क दुर्घटना हो गई है, जिसमें 6 लोगों की जान चली गई है तथा 8 अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। दुर्घटना के पश्चात् सभी घायलों को उपचार के लिए विभिन्न चिकित्सालयों में भर्ती कराया गया है। 

यह हादसा प्रथा लगभग साढ़े चार बजे तब हुआ जब एक लग्जरी बस, जो महाराष्ट्र से राजस्थान जा रही थी, पंचर होने की वजह से हाईवे के किनारे खड़ी थी। बस का ड्राइवर, क्लीनर और यात्री बस के नीचे खड़े थे तभी पीछे से आ रहे एक ट्रक ने बस को जोरदार टक्कर मार दी। इस भयानक दुर्घटना में तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि तीन अन्य लोगों ने चिकित्सालय में उपचार के चलते दम तोड़ दिया। 

 खबर मिलते ही आणंद फायर ब्रिगेड, एक्सप्रेस हाईवे पेट्रोलिंग टीम तथा आणंद रूरल पुलिस मौके पर पहुंची और यात्रियों को रेस्क्यू कर चिकित्सालय पहुंचाया। इस दुर्घटना ने एक बार फिर से सड़क सुरक्षा और हाईवे पर वाहनों के रखरखाव की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया है।

कड़ी सुरक्षा के बाद भी अनंत-राधिका की शादी में सेंध, 2 लोगों ने की जबरदस्ती घुसने की कोशिश

 मुंबई में कड़ी सुरक्षा के बीच मशहूर उद्योगपति मुकेश अंबानी एवं नीता अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी की शादी का जश्न चल रहा है। इसमें 2 व्यक्तियों ने बिना अनुमति शादी में प्रवेश करने का प्रयास किया। इनमें से एक यूट्यूबर है और दूसरा बिजनेसमैन। दोनों ही आंध्र प्रदेश से मुंबई आए थे, मगर समय रहते पकड़ लिए गए। पुलिस ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें हिरासत में लिया और बाद में रिहा कर दिया।

अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी का जश्न मुंबई में कई दिनों से चल रहा है। 12 जुलाई को दोनों ने सात फेरे लिए। इस हाई प्रोफाइल शादी की सुरक्षा बेहद कड़ी थी। इसके बड़ा भी दो व्यक्तियों ने शादी में बिना बुलाए प्रवेश करने का प्रयास किया। मुंबई पुलिस ने बताया कि अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी में बिना अनुमति प्रवेश करने वाले दो लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इनमें से एक वेंकटेश नरसैया अल्लूरी (26) हैं, जो यूट्यूबर हैं, और दूसरे लुकमान मोहम्मद शफी शेख (28) हैं, जो खुद को बिजनेसमैन बताते हैं। दोनों को मुंबई की बीकेसी पुलिस ने हिरासत में लिया। उन पर अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं। दोनों आंध्र प्रदेश से शादी में सम्मिलित होने आए थे। पुलिस ने कानूनी कार्रवाई के बाद उन्हें छोड़ दिया है।

अनंत और राधिका की शादी में इस तरह जबरदस्ती प्रवेश करने की कोशिश को बड़ा सिक्योरिटी फेल माना जा सकता है, क्योंकि इस शादी में दुनियाभर के बड़े-बड़े सितारे सम्मिलित हुए थे। 12 जुलाई को हुई इस शादी में किम कार्दशियां, क्लोई कार्दशियां, शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के सदस्य समेत क्रिकेट जगत के भी कई बड़े सितारे सम्मिलित हुए थे। देश के पीएम नरेंद्र मोदी भी इस शादी का हिस्सा बने थे।

अगस्त तक गिर सकती है मोदी सरकार, लालू यादव की भविष्यवाणी पर चिदंबरम बोले- चुनाव की तैयारी करे विपक्ष..

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद पी. चिदंबरम ने संसदीय लोकतंत्र में विपक्षी दल की चुनाव के लिए तैयार रहने के लिए कहा है। उनकी यह टिप्पणी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू यादव के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार अगस्त तक गिर सकती है, जिसके कारण समय से पहले चुनाव हो सकते हैं।

रविवार को एक साक्षात्कार में चिदंबरम ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में, एक निश्चित राष्ट्रपति कार्यकाल के विपरीत, सरकार प्रतिदिन जवाबदेह होती है और उसे कभी भी हराया जा सकता है। जब उनसे मौजूदा सरकार के पांच साल का कार्यकाल पूरा करने की संभावना के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का उदाहरण दिया। दोनों नेता, जिनकी पार्टियाँ - तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) - आंध्र प्रदेश और बिहार में 'किंगमेकर' के रूप में उभरीं, एनडीए ब्लॉक के गठन में महत्वपूर्ण थीं।

चिदंबरम ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर कांग्रेस पार्टी के रुख को भी संबोधित किया, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और INDIA ब्लॉक सीएए के विरोध में है. हाल ही में राहुल गांधी के मणिपुर दौरे पर चिदंबरम ने प्रभावित व्यक्तियों से मिलकर और संसद में उनकी चिंताओं को उठाकर विपक्ष के नेता की भूमिका निभाने के लिए उनकी प्रशंसा की। इसके विपरीत, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए कहा कि वे अंतरराष्ट्रीय यात्राओं और कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। उन्होंने कहा कि मोदी के व्यस्त कार्यक्रम के कारण वे मणिपुर की स्थिति पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, जो पिछले साल 3 मई से जातीय हिंसा से जूझ रहा है।

जेल में 8.5 किलो घट गया केजरीवाल का वजन? दिल्ली सीएम की सेहत पर तिहाड़ प्रशासन की रिपोर्ट

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के स्वास्थ्य को लेकर तिहाड़ जेल प्रशासन और आम आदमी पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।आम आदमी पार्टी का आरोप है कि जेल में केजरीवाल का 8.5 किलोग्राम वजन कम हो गया है। पार्टी के सांसद संजय सिंह ने केजरीवाल की सेहत को लेकर चिंता जताई थी। हालांकि, तिहाड़ जेल केजरीवाल की सेहत को लेकर कुछ और ही दावे कर रहा है।

तिहाड़ जेल प्रशासन ने माना कम हुआ वजन

केजरीवाल की हेल्थ पर जानकारी देते हुए तिहाड़ जेल प्रशासन ने कहा कि अरविंद केजरीवाल का जेल में 8.5 किलोग्राम वजन कम नहीं हुआ है। जैसा कि आप के मंत्री, सांसद और अन्य लोग दावा कर रहे हैं। एक अप्रैल को जब केजरीवाल पहली बार तिहाड़ आए थे, तब उनका वजन 65 किलोग्राम था। इसके बाद आठ और 29 अप्रैल को उनका वजन 66 किलोग्राम था। वे चुनाव प्रचार के लिए नौ अप्रैल को जेल से बाहर आए और दो जून को वापस जेल आ गए। उस दिन यानी दो जून को उनका वजन 63.5 किलोग्राम था। इसके बाद 14 जुलाई को उनका वजन 61.5 किलोग्राम था। इस तरह उन्होंने दो किलो वजन कम हुआ। 

केजरीवाल ने जानबूझ कर वजन घटाया

तिहाड़ जेल प्रशासन ने आगे बताया कि यह वजन घटाना भी उन्होंने जानबूझ कर किया है। जिसके पीछे स्पष्ट कारण थे। वे तीन जून से नियमित रूप से अपने घर से भेजा गया खाना वापस कर रहे हैं। यानी चुनाव प्रचार के बाद जेल वापस आने के अगले ही दिन से। ऐसे में ध्यान देने वाली बात है कि जेल में अपने पिछले कार्यकाल में वे जानबूझकर ऐसा खाना खा रहे थे। जिससे उनका शुगर लेवल बढ़ जाता था। एम्स का एक मेडिकल बोर्ड लगातार केजरीवाल की निगरानी कर रहा है। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल मेडिकल बोर्ड से नियमित परामर्श ले रही हैं। 

तिहाड़ की रिपोर्ट का आप ने दिया जवाब

दूसरी ओर तिहाड़ की मेडिकल रिपोर्ट पर आप का जवाब भी आया है। संजय सिंह ने कहा है कि तिहाड़ जेल ने माना कि कई बार केजरीवाल का शुगर लेवल कम हुआ। शुगर लेवल कम होने पर वे नींद में कोमा में जा सकते हैं। शुगर लेवल कम होने पर ब्रेन स्ट्रोक का खतरा भी है। संजय सिंह ने कहा कि तिहाड़ जेल की रिपोर्ट के मुताबिक भी वजन कम हुआ है।

इससे पहले आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आरोप लगाया था कि केंद्र की भाजपा सरकार केजरीवाल को 'गंभीर बीमारी' से पीड़ित करने की साजिश रच रही है। उन्होंने दावा किया था कि तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री का वजन गिरफ्तारी के बाद से 8.5 किलो घट गया है और करीब पांच बार ऐसा हुआ है जब उनका शुगर लेवल 50 mg/dL से नीचे चला गया था। संजय सिंह ने इसे बेहद चिंताजनक बताते हुए कहा था कि ऐसी स्थिति में केजरीवाल के कोमा में जाने का खतरा है।उन्हें सलाखों के पीछे मारने की साजिश रची जा रही है।

खुशखबरी! रेलवे में नौकरी का इंतजार खत्म, असिस्टेंट लोको पायलट के 18799 पदों पर जल्द निकलेगी भर्ती

 नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर राहुल गांधी ने लोको पायलट से मुलाकात की थी. लोको पायलट ने भी ये समस्या पर मुक्त मंच से उठाई थी. वहीं, ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन ने भी इस समस्या को लेकर रेल मंत्री से मुलाकात की थी. फेडरेशन के मुताबिक 18799 असिस्टेंट लोको पायलट के पदों पर भर्ती निकलने की तैयारी की गई है. बता दें रेलवे में रनिंग स्टाफ की लंबे समय से वैकेंसी चल रही है. असिस्टेंट लोको पायलट और लोको पायलट की कमी के कारण स्टॉफ को पर्याप्त आराम नहीं मिल पा रहा है जो रेल हादसे का एक कारण बन रहा है.

बीती 5 जुलाई को संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर ट्रेन चालकों (लोको पायलट) से मुलाकात की थी. लोको पायलटो ने शिकायत की थी कि रेलवे में लोको पायलट के हजारों पद खाली है जिसकी वजह से स्टाफ की कमी है और उन्हें ज्यादा काम होने के चलते पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता है, जो रेल हादसे का एक प्रमुख कारण भी है. राहुल गांधी के नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचने के बाद से इसको लेकर राजनीतिक सियासत भी तेज हो गई थी.

18799 असिस्टेंट लोको पायलट के पदों पर भर्ती की है तैयारी

लोको पायलेट्स की इन समस्याओं को लेकर ईटीवी भारत ने ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी शिवगोपाल मिश्रा से बात की तो उन्होंने बताया कि हाल ही में इस समस्या को लेकर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात हुई थी. रेलवे में पहले 5600 असिस्टेंट लोको पायलट के पदों पर भर्ती निकलने की तैयारी की थी लेकिन अब 18799 असिस्टेंट लोको पायलट के पदों पर भर्ती करने की तैयारी की गई है. जल्द ही इन पदों पर असिस्टेंट लोको पायलट की भर्ती होने से राहत मिलेगी.

ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव एमपी देव का कहना है कि देश में 98000 रनिंग स्टाफ की जरूरत है. इसमें से करीब 78000 स्टाफ है. 18799 पदों पर भर्ती होने के बाद कुछ समय के लिए राहत मिलेगी, लेकिन 2024, 25 और 26 में बड़ी संख्या में लोको पायलट रिटायर हो रहे हैं. इससे फिर से लोको पायलट की कमी हो जाएगी. एमपी देव का कहना है कि लोको पायलट की कमी के कारण रेलवे प्रशासन द्वारा 14 घंटे ड्यूटी के लिए दबाव बनाया जाता है. ऐसे में लोको पायलेट्स को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता है.

असिस्टेंट लोको पायलट की भर्ती के लिए योग्यता

रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, रेलवे के असिस्टेंट लोको पायलेट्स की भर्ती के लिए आवेदन करने वालों की शैक्षिक योग्यता कम से कम दसवीं पास होनी चाहिए. इसके साथ ही आईटीआई डिप्लोमा पास होने चाहिए. आवेदन करने वाले की उम्र 18 से 42 वर्ष हो. लोग रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड की साइट पर जाकर असिस्टेंट लोको पायलट की भर्ती के लिए आवेदन कर सकेंगे.