दुमका : एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय में विश्व सिकल सेल एनीमिया जागरूकता दिवस का आयोजन, 490 छात्राओं की हुई जाँच
दुमका : जिला प्रशासन द्वारा बुधवार को काठीजोरिया एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय में विश्व सिकल सेल एनीमिया जागरूकता दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयोजित शिविर में विद्यालय की 490 छात्राओं की रक्त जाँच की गयी। कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासी छात्राओं की स्क्रीनिंग करना और सिकल सेल एनीमिया बीमारी से बचाव के लिए जागरूक करना था। इससे पूर्व मुख्य अतिथि जिला परिषद अध्यक्ष जॉयस बेसरा ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उदघाटन किया। मौके पर आईटीडीए के परियोजना के निदेशक रवि जैन और सिविल सर्जन डा0 बच्चा प्रसाद सिंह भी मौजूद थे। शिविर में सिविल सर्जन के नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने छात्राओं के रक्त का नमूना लिया और उसकी जांच की।
कार्यक्रम में छात्राओं और शिक्षकों को बताया गया कि पीलापन दिखाई देना, बार-बार संक्रमण, थकान, बुखार एवं सूजन तथा कमजोरी महसूस करना, रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाना, जोड़ों में दर्द या सूजन, छाती में दर्द, सांस फूलना, पीठ व पेट में दर्द आदि सिकल सेल एनीमिया के लक्षण है। इस रोग से ग्रसित बच्चों के लिए विशेष देखभाल जरूरी होता है। जिला परिषद अध्यक्ष जॉयस बेसरा ने कहा कि आदिवासी क्षेत्र में बहुत सारी बीमारियां है जिनका उपचार आदिवासी समाज में जड़ी-बुटी द्वारा किया जाता है।
ऐसे में सरकार और खासकर स्वास्थ्य विभाग रोगों की पहचान करने और उसके इलाज के लिए तेजी से काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि सिकल सेल जैसी बीमारी के बारे में लोगों को कम जानकारी है। आईटीडीए के परियोजना निदेशक रवि जैन ने कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकार के द्वारा सिकल सेल एनेमिया के मरीजों को चिन्हित करने और इसके बारे में जागरूकता के लिए मिशन मोड में काम किया जा रहा है। ऐसा देखा गया है कि आदिवासी बहुल क्षेत्र में यह बीमारी अपेक्षाकृत अधिक है। चूंकि यह वंशानुगत बीमारी है इसलिए अभी इसका इलाज नहीं है। इसलिए अभी छात्र-छात्राओं का स्क्रीनिंग कर सिकल सेल एनेमिया के कैरियर को चिन्हित किया जा रहा है क्योंकि यदि सिक्कल सेल एनेमिया के कैरियर पुरूष और स्त्री आपस में शादी करते हैं तो बहुत संभव है कि उनके बच्चे भी इस बीमारी से ग्रसित होंगे।
सिविल सर्जन डा बच्चा प्रसाद सिंह ने कहा कि आदिवासी बच्चे-बच्चियों में ज्यादातर सिक्कल सेल एनेमिया पाया जाता है। यदि सिक्कल सेल एनेमियां बच्े में गंभीर किस्म का होता है तो जन्म के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाती है या 7-8 वर्ष से अधिक उम्र तक वह जीवित नहीं रह पाते हैं क्योंकि खून की कमी के कारण बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। जो सिक्कसल सेल एनेमिया के रेसेसिव होते हैं वह इसी तरह से जीवन जीते हैं। कहा कि जो रिसेसिव हैं वह आनेवाले समय में सिक्कल रिसेसिव से शादी नहीं करें। इससे उनके बच्चे भी सिक्कल सेल एनेमिया का शिकार नहीं होंगे। यदि सिक्कल सेल एनेमिया की पहचान और उनके बीच विवाह नहीं हो तो आनेवाले पांच सालों में यह बीमारी केवल कहानी का हिस्सा बनकर रह जायेगी।
विद्यालय की प्रभारी प्राचार्य लेफ्टिनेंट सुमिता सिंह ने बताया कि एकलव्य विद्यालय में आदिवासी और पहाड़िया छात्राएं पढ़ती हैं। आदिवासियों में सिक्कल सेल बीमारी अपेक्षाकृत अधिक पायी जाती है। यह आनुवांशिक बीमारी है। इसलिए सिक्कल सेल बीमारी की जांच कर इससे ग्रसित छात्राओं को चिन्हित किया जा रहा है ताकि इस वंशानुगत बीमारी को अगले पीढ़ि तक जाने से रोका जा सके। कार्यक्रम के आयोजन एवं संचालन में विद्यालय की शिक्षिका सुखमती सोनार, सुजाता झा, पुष्पलता झा, पूजा साह, संजीता मराण्डी, शिक्षक अनादि गोराई, रजनीश सिंह, आकाश मंडल, जगबंधु, कल्याण गोराई, नीतिश कुमार आदि की भूमिका रही।
ज्ञात हो कि जुलाई 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन 2047 की शुरुआत की थी। सरकार इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने और समय रहते इसकी जांच करवाने जैसे विभिन्न पहलुओं पर काम कर रही है, साथ ही इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की ताकत का भी लाभ उठा रही है।
(दुमका से राहुल कुमार गुप्ता की रिपोर्ट)
Jul 02 2024, 08:41