*क्या रूस-यूक्रेन के लिए “शांतिदूत” बन सकेगा भारत? स्विट्जरलैंड में 15-16 जून को शांति शिखर सम्मेलन में मिल रहा मंच
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यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की और स्विस परिसंघ के राष्ट्रपति वियोला एमहर्ड के बीच जनवरी में हुए समझौते के बाद यूक्रेन के लिए पहला शांति शिखर सम्मेलन 15-16 जून को आयोजित किया जाएगा।शिखर सम्मेलन का आयोजन यूक्रेनी और स्विस पक्षों के समन्वित प्रयासों का परिणाम है। इसमें दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष और सरकार प्रमुख भाग लेंगे। शिखर सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के मानदंडों के अनुसार यूक्रेन के लिए एक व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति प्राप्त करने के तरीकों पर बातचीत के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा। हमेशा से शांति का पक्षधर रहे भारत के लिए ये शांति शिखर सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय मामलों में इसके महत्व और योगदान को साबित करने का एक बड़ा मौका हो सकता है।
4 जून को संसदीय चुनावों के नतीजे आने के बाद नरेंद्र मोदी को भारत के प्रधान मंत्री के रूप में एक और कार्यकाल मिलने की संभावना है। उस स्थिति में, उनके स्विस शिखर सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है। प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने हमेशा से रूस-यूक्रन संघर्ष के लिए कूटनीतिक समाधान का आह्वान किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था, "आज का युग युद्ध का युग नहीं है।"
रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करना भारत के लिए दुनियाभर के देशों के बीच खुद को स्थापित करने में एक बार फिर अहम भूमिका निभा सकता है। एक साक्षात्कार में पीएम मोदी ने कहा था कि भारत इन शिखर सम्मेलनों में वैश्विक संवाद को आकार देने, मानव केंद्रित विकास, समृद्धि और शांतिपूर्ण दुनिया की दृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए ग्लोबल साउथ की आवाज बनेगा।
जानकारों का कहना है कि रूस-यूक्रेन संकट को कम करना भारत के रणनीतिक हित में है। अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने यूक्रेन को जो समर्थन दिया है, उसने रूस को चीन (और उत्तरी कोरिया) के करीब ला दिया है। अब रूसी और चीनी सशस्त्र बल नियमित रूप से सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं, सैन्य-तकनीक साझा करते हैं और सुदूर पूर्व और यूरोप में संयुक्त अभ्यास करते हैं। नई दिल्ली को रूस और चीन, दोनों परमाणु शक्तियों के बीच बढ़ते तालमेल से सावधान रहना चाहिए। यह बीजिंग की सैन्य शक्ति को बढ़ाता है। चीन अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि का उपयोग भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा पैदा करने के लिए कर सकता है।
रूस-यूक्रेनी युद्ध पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी रहा है। माना जाता है कि चल रहे युद्ध में सैकड़ों हज़ार रूसी और यूक्रेनी लोगों की जान चली गई है। युद्ध ने यूक्रेन और रूस दोनों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है। युद्ध के कारण अधिकांश देशों को ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की उच्च कीमतों का सामना करना पड़ा है। यूक्रेनी संकट के मद्देनजर संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध लगभग सभी देशों के लिए बहुत महंगे साबित हुए हैं, जिनमें अमेरिका भी शामिल है। आज, अमेरिकी गैस के लिए अधिक भुगतान कर रहे हैं। तेल और गैसोलीन की कीमतें 2014 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं।
वहीं रूस-यूक्रन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से ही भारत ने तटस्थता की नीति अपनाई है। युद्ध शुरू होने के बाद से, नई दिल्ली ने कीव को लगभग 117 टन मानवीय सहायता भेजी है, जिसमें "दवाएँ, चिकित्सा उपकरण, कंबल, टेंट, तिरपाल, सौर लैंप, गरिमा किट, स्लीपिंग मैट और डीजल जनरेटर सेट" शामिल हैं। साथ ही, नई दिल्ली ने यह भी सुनिश्चित किया है कि वह ऐसा कुछ न करे जिससे मास्को को नुकसान हो। लेकिन नई दिल्ली ने रूस की आलोचना करने वाले अमेरिका के नेतृत्व वाले संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया है। भारत ने रूस से अपनी तेल खरीद भी बढ़ा दी है।





चीन के इशारों पर काम करने वाले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने बड़ा फैसला लिया। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने देश में इजरायली नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगा दी है। गाजा में इजरायली हमले को लेकर मुस्लिम देश में बढ़ते विरोध के बीच इजरायली पासपोर्ट धारकों के प्रवेश को रोकने के लिए कानूनी संशोधन करने का फैसला लिया गया है। एशिया के छोटे से देश मालदीव ने ऐलान किया है कि वो अपनी सरहद में इजराइली नागरिकों के प्रवेश पर बैन लगाएगा। जिसके बाद इजराइल के विदेश मंत्रालय ने अपने नागरिकों को हिदायत दी है कि वे मालदीव की यात्रा करने से परहेज करें। राष्ट्रपति कार्यालय में एक आपातकाली प्रेस वार्ता में गृह मंत्री अल इहसुन ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैबिनेट ने इजरायली पासपोर्ट पर मालदीव में प्रवेश पर प्रतिबंध के लिए कानून में बदलाव का फैसला किया है। इसकी निगरानी के लिए मंत्रियों की एक विशेष समिति गठित की गई है। मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइज्जू ने कैबिनेट की सिफारिश के बाद इजरायली पासपोर्ट पर प्रतिबंध लगाने का संकल्प लिया है। प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, कैबिनेट के फैसले में इजरायली पासपोर्ट धारकों को मालदीव में प्रवेश करने से रोकने के लिए आवश्यक कानूनों में संशोधन करना और इन प्रयासों की निगरानी के लिए एक कैबिनेट सब-कमिटी की स्थापना करना शामिल है। इजराइल पर यात्रा प्रतिबंध लगाने को लेकर पिछले साल इजराइल और फिलीस्तीन में जंग छिड़ने के बाद नवंबर में मालदीव के एक एमपी नशीद अब्दुल्ला ने प्रस्ताव पेश किया था।इस प्रस्ताव में सरकार से इजराइली पासपोर्ट रखने वाले नागरिकों के देश में प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी। अब मालदीव की सरकार ने इजराइलियों के ट्रैवल पर पाबंदी लगी दी है। मालदीव ने ये फैसला जनता में इजराइल के खिलाफ बढ़ते गुस्से के बाद लिया है। बता दें कि इजराइल की बढ़ती आक्रामकता के बाद मालदीव में कई फिलिस्तीनी समर्थित प्रदर्शन देखने मिले हैं। बता दें कि मालदीव की आबादी 5 लाख से ज्यादा है और पूरी दुनिया से हर साल करीब 17 लाख टूरिस्ट मालदीव घूमने आते हैं। इसमें इजराइल से लगभग 15,000 पर्यटक शामिल हैं। पिछले साल करीब 11 हजार इजराइली नागरिकों ने मालदीव की यात्रा की थी। मुइज्जू के प्रतिबंध के फैसले पर सोशल मीडिया पर एक बार फिर मालदीव ट्रेंड करने लगा है। इजरायली मालदीव की जमकर आलोचना कर रहे हैं। इसके साथ ही इजरायली भारत की चर्चा करने लगे हैं। सोशल मीडिया पर भारत में मौजूद शानदार बीच डेस्टिनेशन की तस्वीरें शेयर की जाने लगी हैं। पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर पांच हजार रॉकेट दागे थे। इसके साथ ही हमास के लड़ाके दक्षिणी इजरायल में घुस आए थे और लगभग 250 लोगों को बंधक बना लिया था। हमास के इस हमले में करीब 1200 लोग मारे गए थे। इसके बाद इजरायल ने हमास के खिलाफ जंग शुरू कर दी। कुछ महीनों पहले इजरायल और हमास के बीच हुई सीजफायर डील में कई बंधकों को छोड़ दिया गया था, लेकिन अब भी दर्जनों बंधक हमास के कब्जे में हैं। इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू का कहना है कि जब तक हमास का खात्मा नहीं होता, तब तक जंग जारी रहेगी। वहीं, इजरायल गाजा युद्ध का दुनियाभर के देश विरोध कर रहे हैं। कोई इजरायल का साथ दे रहा है तो कोई गाजा का समर्थन कर रहा है। इस युद्ध की वजह से इजरायल को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से भी मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं।

Jun 03 2024, 20:04
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