*दीनदयाल जी के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने के लिए विद्यार्थियों को सामाजिक कार्य से जोड़ने की आवश्यकता: कुलपति*
गोरखपुर: पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 107वीं जयंती दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय परिवार ने एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो पूनम टंडन ने प्रशासनिक भवन स्थित दीनदयाल जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
'एकात्म मानवदर्शन: एक सम्पूर्ण विचार' विषयक संगोष्ठी का आयोजनइसके बाद दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ द्वारा दीनदयाल जी की 107वीं जयंती के स्मृति में संवाद भवन में 'एकात्म मानवदर्शन: एक सम्पूर्ण विचार' विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा मॉ सरस्वती एवं पं दीनदयाल उपाध्याय जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में सुभाष , प्रान्त प्रचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, गोरक्षप्रांत ने अपने उद्बोधन में दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन एवं चरित्र को बताते हुए एकात्म मानववाद दर्शन पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि पं. दीनदयाल जी का विचार व्यक्तिगत नहीं है, भारत का विचार है और भारत का विचार सनातन संस्कृति का विचार है। दुनिया टुकड़ो-टुकड़ो में विचार करता है तो भारत समग्रता से विचार करता है। भारत का विचार लोक मंगल का विचार है। आज के परिप्रेक्ष्य में उसको जानना आवश्यक है। उन्होनें कहा कि दीनदयाल जी का विचार एकात्मक मानवदर्शन है। एकात्म मानववाद का अर्थ लोक कल्याण का काम है। राष्ट्रभाव का उदय और विश्व कल्याण की भावना ही एकात्म मानवदर्शन है। उन्होने यह भी कहा की दीनदयाल जी बन्द दिमाग के व्यक्ति नहीं थे। दुनिया के हर अच्छी बात को वे ग्रहण करते थे और उसका परिष्कार करते थे। दीनदयाल जी कहते थे कि विदेशो की बातों को अगर ग्रहण करना है तो उसे स्वदेशानुकुल बना कर ग्रहण करना होगा। श्री सुभाष जी पुरूषार्थ की चर्चा करते हुए कहा कि शरीर का आनन्द, मन का आनन्द, बुद्धि का आनन्द तथा आत्मिक आनन्द- ये सब पुरूषार्थो से पूरा होगा। अर्थ पुरूषार्थ के बारे में उन्होनें कहा कि अर्थ का अभाव नहीं चाहिए तथा अर्थ का प्रभाव भी नहीं चाहिए। काम और अर्थ दोनो धर्म पुरूषार्थ के अधीन होना चाहिए।
दीनदयाल जी के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने के लिए विद्यार्थियों को सामाजिक कार्य से जोड़ने की आवश्यकता
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन जी ने कहा कि दीनदयाल जी समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुँचने की बात करते थे। हमें कार्य करना है जिससे विद्यार्थियों को सामाजिक कार्य में जोड़ कर अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना चाहिए।
कुलपति ने कहा कि आज का दिन हमारे लिए विशेष है। दीनदयाल उपाध्याय जी का जीवन बहुत कठिन रहा है। उनसे प्रेरणा लेते हुए हमारा जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो उनके विचारों पर चलकर हम कुछ भी कर सकते हैं। उनके विचारों पर चलकर विश्वविद्यालय का दीनदयाल शोध पीठ कार्य करे। साथ ही इसी प्रकार सभी महापुरुषों को विश्वविद्यालय के पाठ्क्रम में सम्मिलित किया जाए तथा यह शोधपीठ भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दीनदयाल जी के विचारों को आगे लेकर जाए। आज दीनदयाल जी के जन्म दिवस पर हम उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हैं।
अतिथियों का परिचय एवं संगोष्ठी की प्रस्ताविकी दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के निदेशक डॉ0 कुशल नाथ मिश्रा जी द्वारा प्रस्तुत किया गया।
संगोष्ठी में शोधपीठ के सदस्य डॉ. मीतू सिंह एवं डॉ. रंजन लता आदि उपस्थित रहें। इस संगोष्ठी में उपस्थित सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के कुलसचिव महोदय के शब्दो को संचालक डॉ. शैलेष कुमार सिंह, उप-निदेशक, दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ ने किया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी अधिष्ठातागण, शिक्षकगण, सम्बद्ध महाविद्यालयों के शिक्षकगण, कर्मचारीगण एवं छात्र-छात्राएं भारी संख्या में उपस्थित रहे।
Sep 25 2023, 20:06