आज है गणेश चतुर्थी,जानिए उनके व्रत के विधि और गणेश चतुर्थी के पौराणिक महामात्य
आज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है आज गणेश चतुर्थी का पावन पर्व मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी व्रत का विशेष फल तभी प्राप्त होता है, लेकिन यदि किसी वजह से आपको यह व्रत छोड़ना पड़ा है तो इसके लिए उद्यापन करना जरूरी है.
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक किसी भी व्रत का विशेष फल तभी प्राप्त होता है, जब उसका विधि पूर्वक उद्यापन किया जाता है. यदि आप उद्यापन किए बिना गणेश चतुर्थी का व्रत छोड़ते हैं तो आपके सभी व्रत निष्फल हो जाते हैं.
गणेश चतुर्थी व्रत उद्यापन विधि,एवं पारण
गणेश चतुर्थी के दिन सुबह स्नान कर साफ कपड़ें पहनें. इसके बाद घर के ईशान कोण में गणेजी जी की एक चौकी स्थापित करें. इस पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा रखें और साथ में कलश भी रखें. इसके बाद सफेद तिल और गुड़ का तिलकुट चढ़ाएं और कलश पर स्वास्तिक बनाएं. उस कलश पर रोली से टीका लगाएं और विघ्नहर्ता भगवान गणेश के मंत्रो का जाप कर धूप दीप करें. भगवान गणेश की आरती करने के बाद उन्हें मोदक और लड्डू का भोग लगाएं.
गणेश चतुर्थी का शुभ मुहुर्त
इस बार गणेश चतुर्थी 19 सिंतबर को है. गणेश चतुर्थी का शुभ मुहुर्त 18 सिंतबर दोपहर 2 बजे से अगले दिन 3 बजे दोपहर तक है.
इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें और शाम के समय अपने व्रत का पारण करें. ध्यान रहे व्रत का पारण कलश पर चढ़े तिलकुट से करें और किसी पंडित को प्रसाद के साथ कुछ पैसे दान करें. ऐसा करने से आपको अपने सभी व्रतों का फल प्राप्त होता है.
गणेश जी को सर्व अग्रणी देवता क्यूँ कहा जाता हैं
गणेश चतुर्थी कथा के मुताबिक ''एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जाती हैं. तब वह एक पुतला बनाती हैं और उसमे जान डालकर एक बालक को जन्म देती हैं. स्नान के लिए जाने से पूर्व माता पार्वती बालक को कार्य सौंपती हैं कि वे कुंड के भीतर नहाने जा रही हैं अतः वे किसी को भी भीतर ना आने दे. उनके जाते ही बालक पहरेदारी के लिए खड़ा हो जाता हैं. कुछ देर बार भगवान शिव वहाँ आते हैं और अंदर जाने लगते हैं तब वह बालक उन्हें रोक देता हैं. जिससे भगवान शिव क्रोधित हो उठते हैं और अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट देते हैं.
जैसे ही माता पार्वती कुंड से बाहर निकलती हैं अपने पुत्र के कटे सिर को देख विलाप करने लगती हैं. क्रोधित होकर पुरे ब्रह्मांड को हिला देती हैं. सभी देवता एवम नारायण सहित ब्रह्मा जी वहाँ आकर माता पार्वती को समझाने का प्रयास करते हैं पर वे एक नहीं सुनती. तब ब्रह्मा जी शिव वाहक को आदेश देते हैं कि पृथ्वी लोक में जाकर एक सबसे पहले दिखने वाले किसी भी जीव बच्चे का मस्तक काट कर लाओं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई हो.
नंदी खोज में निकलते हैं तब उन्हें एक हाथी दिखाई देता हैं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई होती हैं. नंदी उसका सिर काटकर लाते हैं और वही सिर बालक पर जोड़कर उसे पुन: जीवित किया जाता हैं. इसके बाद भगवान शिव उन्हें अपने सभी गणों के स्वामी होने का आशीर्वाद देकर उनका नाम गणपति रखते हैं. अन्य सभी भगवान एवं देवता गणेश जी को अग्रणी देवता अर्थात देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद देते हैं. तब से ही किसी भी पूजा के पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं.''
Sep 19 2023, 18:23