*बारिश न होने से किसानों की चिंता बढ़ी*
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रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव
भदोही- भारत कृषि प्रधान देश हैं। आजादी के सात दशक बाद भी अन्नदाता प्रकृति पर निर्भर है। मानसून अच्छा रहा तो किसानों की बल्ले-बल्ले, नहीं तो भी भारी घाटा लगना तय है। अनुमान के मुताबिक इस वर्ष काले बादलों की रफ्तार तीव्र रही हालांकि अब ये सुस्त नजर आ रहे हैं। इन दिनों तो भीषण गर्मी का एहसास हो रहा है। मानसून की रुखसत के बीच बारिश न होने के कारण किसानों के माथे पर बल है। कारण खरीफ फसलें सिंचाई के अभाव में तोड़ रही है जबकि रबी की तैयारियों को बल नहीं मिल पाएगा।
इस साल शुरू से ही मानसूनी बादलों ने लोगों को मायूस किया। आषाढ़,दो माह सावन का तीखी धूप व उसम में ही बीता। कभी कभार ही बारिश हुई। मौसम वैज्ञानिकों ने प्रदेश में 15 जून तक मानसून के आगमन की भविष्यवाणी की थी, लेकिन आगमन जून के अंतिम दिनों में हुआ। अगस्त शुरू में काले बादलों ने बारिश कर दिया था, जिसके बाद बड़ी तादाद में ग्रामीण ने धान की रोपाई कर दी। इस बीच, मौसम का रूख बदलने के बाद उनके भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
किसानों का कहना है कि समय रहते झमाझम बारिश नहीं हुई तो धान,अरहर की फसलों के प्रभावित होने से इनकार नहीं किया जा सकता। नदियां, नहरों में भी पानी कम ही नजर आ रहा है। ऐसे में खेतों की सिंचाई संभव नहीं है। अन्नदाता सुबह होने के साथ ही आसमान की ओर बादलों के इंतजार की ओर बादलों के इंतजार में टकटकी लगाए रहता है।


Sep 02 2023, 14:40
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