दुमका : NGT ने रेलवे को 10 करोड़ का पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति देने का दिया निर्देश, DRM ने कहा - अद्यतन स्थिति व तथ्यों को एनजीटी के समक्ष रखेंगे
दुमका : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रेलवे को दुमका के घनी आबादी क्षेत्र में मेजर मिनिरल्स कोयले के स्टाकयार्ड के संचालन में पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) को 10 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति देने का निर्देश दिया है।
एनजीटी ने उक्त आदेश दुमका के रवि शंकर मंडल की याचिका पर सुनवाई करने के बाद दी। रविशंकर मंडल ने यूनियन आफ इंडिया व अन्य के खिलाफ एनजीटी पूर्वी क्षेत्र पीठ में वर्ष 2021 में ही न्याय की गुहार लगाई थी। दरअसल रेलवे परिसर में स्टाकयार्ड स्थापित कर माइनर व मेजर मिनिरल्स की लोडिंग-अनलोडिंग की वजह से प्रदूषण के तेजी से बढ़ते खतरे व इस इलाके में बसने वाली घनी आबादी को हो रही परेशानियों को लेकर दुमका के रविशंकर मंडल ने एनजीटी से न्याय की गुहार लगाई थी।
इस मामले में सुनवाई करते हुए एनजीटी ने 27 फरवरी को अपने दिए गए फैसले में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली ग्रीन ट्रिब्यूनल बेंच, जस्टिस अमित स्टालेकर न्यायिक सदस्य और ए. सेंथिल वेल विशेषज्ञ सदस्य ने कहा है कि रेलवे साइडिंग मानदंडों की अनदेखी करके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया है। पर्यावरणीय मानदंडों का पालन नहीं करने और स्टाकयार्ड पश्चिम बंगाल पावर डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड के उपयोगकर्ता से वसूल करने की स्वतंत्रता के साथ दो महीने के भीतर रेलवे द्वारा पहली बार में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की राशि 10 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया है।
आदेश में यह भी कहा गया है कि यदि भुगतान नहीं किया जाता है तो स्थापना के लिए सहमति-सीटीई और संचालन-सीटीओ के लिए सहमति को रद्द किया जा सकता है और स्टाकयार्ड को संचालित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
जानकारी के मुताबिक एनजीटी के स्तर से दिए गए निर्देशों में यह स्पष्ट किया गया है कि रेलवे ने साइडिंग क्षेत्र में त्रिस्तरीय सघन पौधारोपण नहीं कराया है जो कि प्रदूषण मानकों के तय मापदंडों से परे है। कायदे से साइडिंग क्षेत्र में ग्रीन बेल्ट एरिया विकसित करना जरूरी है और ऐसा नहीं किए जाने की वजह से इस इलाके के लोगों को प्रदूषण संकट से गुजरना पड़ रहा है। त्रिस्तरीय सघन पौधारोपण के तहत वैसे पौधों को तीन अलग-अलग लेयर में लगाया जाना है जो कि प्रदूषण के खतरे को रोकने में कारगर होते हैं।
आदेश के मुताबिक केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड सीपीसीबी के मानदंडों की भी अनदेखी की गई है। सीपीसीबी के मानदंडों में कहा गया है कि ऐसे स्थल शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, पुरातात्विक स्मारकों, बाजार स्थल और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों से कम से कम एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित होने चाहिए। वहीं इस मामले में रविशंकर मंडल के पक्ष में मुकदमे की पैरवी करने वाले अधिवक्ता संजय उपाध्याय की दलील यह है कि दुमका कोयला स्टाकयार्ड के आस-पास कोयले की धूलकण से आसपास में बसी आबादी को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
इधर एनजीटी के उक्त फैसले पर आसनसोल डिविजन के डीआरएम परमानंद शर्मा ने कहा कि एनजीटी ने बीते वर्ष सितंबर माह में जमा कराए गए तथ्यों के आधार पर निर्देश दिया है। इस मामले में रेलवे अद्यतन स्थिति व तथ्यों को एनजीटी के समक्ष रखेगा और इसके बाद जो भी निर्देश दिया जाएगा उसका अनुपालन किया जाएगा। डीआरएम ने कहा कि एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण को लेकर निर्देश दिया है। उसके स्तर से काम पर रोक नहीं लगाया गया है। काम चलता रहेगा और भविष्य में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर जो भी कमियां हैं उसे अभियान मोड में दूर किया जाएगा। कहा कि जहां तक ग्रीन बेल्ट एरिया तैयार करने की बात है तो उस दिशा में भी आने वाले दिनों में गंभीरता से प्रयास किया जाएगा। इसको लेकर पौधे लगाए भी गए हैं लेकिन पानी की कमी और समुचित देखरेख की वजह से अधिकांश पौधे नष्ट हो गए हैं। भविष्य में सघन पौधारोपण अभियान चलाकर ग्रीन बेल्ट एरिया तैयार किया जाएगा। कहा कि फिलहाल साइडिंग क्षेत्र में प्रदूषण को रोकने के लिए 650 मीटर लंबा स्क्रीन वाल का निर्माण कराया गया है। जल छिड़काव के लिए दो टैंकर की व्यवस्था है। इसके अलावा 30 मीटर दूर तक पानी छिड़काव के लिए स्प्रींकलर, छह मिस्ड कैनन लगाकर उड़ने वाले धूलकणों को बहुत हद तक रोका जा रहा है। वहीं झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय पदाधिकारी केके पाठक ने कहा कि एनजीटी ने तय प्रदूषण मानकों पर खरा नहीं उतरने के कारण रेलवे के आसनसोल डिविजन को 10 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति राशि जमा कराने का निर्देश दो माह के अंदर दिया है।
वहीं एनजीटी के फैसले का दुमका सिविल सोसायटी ने स्वागत किया है। सिविल सोसायटी के अध्यक्ष राधेश्याम वर्मा ने कहा कि स्टाकयार्ड के संचालन की जांच की जानी चाहिए। घनी आबादी वाले क्षेत्र में कोयला डंपिंग यार्ड की मंजूरी देना ही सवालिया निशान लगाता है।
(दुमका से राहुल कुमार गुप्ता की रिपोर्ट)
Mar 12 2023, 19:03