इस देश में 99 फीसदी मुसलमान, फिर क्यों जनता से बकरीद पर कुर्बानी ना करने की अपील

#muslimcountrymoroccourgespeopletonotbuysheepforeid

उत्तर अफ्रीकी देश मोरक्को के राजा मोहम्मद VI ने आम जनता से ईद उल-अजहा यानी बकरीद के दौरान भेड़ों की कुर्बानी न देने की अपील की है। मोरक्को जहां मुसलमानों की आबादी करीब 99 फीसदी है, वहां ईद उल-अजहा के दौरान भेड़ों की कुर्बानी एक लंबी परंपरा है, लेकिन इस बार देश के राजा ने ही भेड़ों की कुर्बानी न देने की गुजारिश की है। दरअसल, मोरक्को भेड़ों की कमी से जूझ रहा है।

भेड़ों की कमी की वजह से मोरक्को के राजा मोहम्मद VI ने परंपरा से हटकर लोगों से ईद-उल-अजहा पर भेड़ नहीं खरीदने की अपील की है। मोरक्को के इस्लामी मामलों के मंत्री अहमद तौफीक ने कहा कि आर्थिक और जलवायु संबंधी चुनौतियों के कारण सालाना कुर्बानी और दावत देशवासियों की पहुंच से दूर हो गई है। सरकारी टेलीविजन ‘अल औला’ पर सुल्तान का पत्र पढ़ते हुए तौफीक ने कहा कि यह मोरक्को का कर्तव्य है कि वह यह स्वीकार करे कि पशुधन की कमी के कारण कीमतें आसमान छू रही हैं। सुल्तान की ओर से जारी पत्र में कहा गया है, कठिन परिस्थिति में कुर्बानी से खास तौर पर उन लोगों की भावनाओं को ठेस लगेगी जिनकी आय सीमित है।

भेड़ों की संख्या में 38% कमी

बता दें कि मोरक्को में भेड़ों की संख्या पिछले दशक में 38% कम हो गई है। इस साल बारिश औसत से 53% कम रही, जिससे चरागाहों की स्थिति खराब हो गई। इससे मवेशियों के चारे की समस्या गहरी हो गई है। इस कारण भेड़ और मवेशियों की संख्या में कमी आई है।

कुर्बानी का त्यौहार है ईद अल अजहा

ईद उल-अजहा, इस साल जून के पहले हफ्ते में मनाई जाएगी, मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला एक बड़ा “कुर्बानी का त्योहार” है। इस दिन मुसलमान जानवरों की कुर्बानी करते हैं। इस परंपरा में इतनी गहरी पैठ है कि कई परिवार भेड़ खरीदने के लिए कर्ज लेने तक को मजबूर हो जाते हैं।

दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर क्या है हाल? चौंकाने वाले हैं आंकड़े

#delhi_assembly_election_result_who_is_winning_muslim_majority_seats

दिल्ली के वोटर्स ने किसे सत्ता सौंपी है, यह कुछ घंटों में साफ हो जाएगा। सुबह 8 बजे वोटों की गिनती शुरू हुई। अब तक के रुझानों में आम आदमी पार्टी सत्ता से बेदखल होती नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी ने कई सीटों पर अच्छी-खासी बढ़त बना ली है। बीजेपी 27 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर है। रूझानों में 27 साल का वनवास खत्म होता दिख रहा है।

मतगणना के बीच सबकी नजरें दिल्ली के मुस्लिम बहुल सीटों पर लगी हुई हैं। दिल्ली में 11 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। दिल्ली के मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग जमकर हुई थी। ये मुस्तफाबाद, बल्लीमारान, सीलमपुर, मटिया महल, चांदनी चौक और ओखला सीट हैं। दिल्ली की सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला सीट पर बीजेपी को छोड़कर सभी दलों से मुस्लिम उम्मीदवार ही किस्मत आजमा रहे हैं। इन सभी सीटों पर 55 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। अधिकतर सीटों पर 60 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई।

दिल्ली की 70 सीटों में से जिन दो सीटों पर सबसे ज्यादा मतदान हुआ, वहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या 40 पर्सेंट से ज्यादा है। जिस मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र में 41 प्रतिशत मुस्लिम और 56 प्रतिशत हिन्दू रहते हैं, वहां पूरी दिल्ली में सबसे ज्यादा 67 प्रतिशत मतदान हुआ है। यहां हम बता रहे हैं कि शुरुआती रुझानों में इन सीटों पर कौन आगे चल रहा है।

विधानसभा सीट वोटिंग % पार्टी आगे

चांदनी चौक 55.96 आप

मटियामहल 65.10 आप

बल्लीमारन 63.87 आप

ओखला 54.90 आप

सीमापुरी 65.27 आप

सीलमपुर 68.70 आप

बाबरपुर 65.99 आप

मुस्तफाबाद 69.00 आप

करावल नगर 64.44 बीजेपी

जंगपुरा 57.42 बीजेपी

सदर बाजार 60.4% बीजेपी

अगर शुरुआती रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं तो कांग्रेस और एआईएमआईएम के लिए ये नतीजे निराशाजनक होंगे। ये दोनों पार्टियां सिर्फ वोट कटवा बनकर रह जाएंगी। वहीं, बीजेपी को इस लड़ाई का फायदा मिलता दिख रहा है, जो तीन सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। खास बात यह है कि इनमें से एक सीट दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की है।

शरिया कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची मुस्लिम महिला, बेटी को पूरी संपत्ति देना चाहती है महिला

#muslim_woman_in_sc_against_sharia_law 

सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर कर मांग की है कि उसे शरीयत कानून में विश्वास नहीं है और वह चाहती है कि उस पर उत्तराधिकार कानून लागू हो। महिला ने खुद को 'गैर-आस्तिक' बताते हुए मांग की है कि उनके उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू किया जाए। महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और सरकार का इस मुद्दे पर पक्ष पूछा है। 

केरल के अलप्पुझा की रहने वाली एक महिला साफिया पी एम ने यह याचिका दायर की है। वह अपनी पूरी संपत्ति अपनी बेटी को देना चाहती हैं, लेकिन शरिया कानून के तहत वह केवल 50 प्रतिशत संपत्ति ही दे सकती हैं। इसलिए वह 'सेक्युलर लॉ' यानी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत लाभ चाहती हैं।

सफिया पी एम ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह एक गैर-आस्तिक मुस्लिम महिला हैं। वह चाहती हैं कि उन्हें विरासत के मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत माना जाए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

सफिया पी एम का कहना है कि वह इस्लाम को नहीं मानती, लेकिन अभी भी उसने आधिकारिक रूप से इस्लाम को नहीं छोड़ा है। शरिया कानून के अनुसार, जो व्यक्ति इस्लाम छोड़ देता है, उसे समुदाय से बाहर कर दिया जाता है और उसे माता-पिता की संपत्ति में कोई विरासत का अधिकार नहीं मिलता। याचिका में यह भी कहा गया है कि शरिया कानून के तहत, एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का एक तिहाई से अधिक हिस्सा वसीयत के माध्यम से नहीं दे सकता है। सफिया पी एम की एक बेटी है। उनकी चिंता है कि उनकी मौत के बाद, पूरी संपत्ति उनकी बेटी को नहीं मिलेगी, क्योंकि उनके पिता के भाइयों का भी उस पर दावा होगा।

केंद्र सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'याचिका में रोचक सवाल उठाया गया है।' मेहता ने कहा कि 'याचिकाकर्ता महिला एक पैदाइशी मुस्लिम है। उनका कहना है कि वे शरीयत कानून में विश्वास नहीं रखती और यह एक पिछड़ा हुआ कानून है।' पीठ ने कहा कि 'यह आस्था के खिलाफ है और आपको (केंद्र सरकार) इसके जवाब में हलफनामा दाखिल करना होगा।' इस पर सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय मांगा। इस पर पीठ ने चार हफ्ते का समय देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 5 मई तय की। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 29 अप्रैल को भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब मांगा था।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची कांग्रेस, तो बीजेपी ने बाता डाला 'नई मुस्लिम लीग'

#bjp_alleges_congress_has_become_the_new_muslim_league

कांग्रेस ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लेकर एक याचिका दायर की है।कांग्रेस ने याचिका में एक्ट 1991 का बचाव करते हुए कहा कि ये कानून भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए जरूरी है। भाजपा ने कांग्रेस के ज़रिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट जाने को 'हिंदुओं के खिलाफ खुले युद्ध' का ऐलान करार दिया है। साथ ही यह भी कहा कि अब कांग्रेस "नई मुस्लिम लीग" बन चुकी है।

बीजेपी के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीया ने इसे हिंदुओं के खिलाफ "खुला युद्ध" और कांग्रेस को "नई मुस्लिम लीग" करार दिया। उनका कहना था कि कांग्रेस ने इस कानून का समर्थन करके हिंदुओं को उनके ऐतिहासिक अन्यायों के खिलाफ कानूनी उपायों का अधिकार छीनने की कोशिश की है।भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर कहा,'कांग्रेस ने ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए कानूनी उपायों के हिंदुओं के मौलिक संवैधानिक अधिकार को अस्वीकार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मालवीय ने आगे कहा कि कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से 'धर्मनिरपेक्षता की रक्षा' के बहाने पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने का आग्रह किया है।

अमित मालवीय ने कहा,'कांग्रेस ने धार्मिक बुनियाद पर भारत के विभाजन को मंजूरी दी। इसके बाद, इसने वक्फ कानून पेश किया, जिससे मुसलमानों को अपनी मर्जी से संपत्तियों पर दावा करने और देश भर में मिनी-पाकिस्तान स्थापित करने का हक मिल गया। बाद में इसने पूजा स्थल अधिनियम लागू किया, जिससे हिंदुओं को अपने ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को वापस लेने का अधिकार प्रभावी रूप से नकार दिया गया। अब, कांग्रेस ने हिंदुओं के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर दिया है।

बीजेपी ने इस कानून का विरोध पहले भी किया था जब नरसिंह राव सरकार ने राम मंदिर निर्माण के आंदोलन के दौरान इसे लागू किया था. ये कानून यह सुनिश्चित करता था कि 15 अगस्त 1947 के बाद से सभी पूजा स्थलों की स्थिति को जस का तस रखा जाए सिवाय अयोध्या के विवादित स्थल के इस कानून का उद्देश्य संघ परिवार की ओर से वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के शाहि ईदगाह पर कब्जा करने के प्रयासों को रोकना था।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की 3 मेंबर वाली बेंच ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (विशेष प्रावधानों) 1991 की कुछ धाराओं की वैधता पर दाखिल याचिकाओं पर 12 दिसंबर को सुनवाई की थी। बेंच ने कहा था, हम इस कानून के दायरे, उसकी शक्तियों और ढांचे को जांच रहे हैं। ऐसे में यही उचित होगा कि बाकी सभी अदालतें अपने हाथ रोक लें। सुनवाई के दौरान सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा- हमारे सामने 2 मामले हैं, मथुरा की शाही ईदगाह और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद। तभी अदालत को बताया गया कि देश में ऐसे 18 से ज्यादा मामले लंबित हैं। इनमें से 10 मस्जिदों से जुड़े हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से याचिकाओं पर 4 हफ्ते में अपना पक्ष रखने को कहा। सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा- जब तक केंद्र जवाब नहीं दाखिल करता है हम सुनवाई नहीं कर सकते। हमारे अगले आदेश तक ऐसा कोई नया केस दाखिल ना किया जाए।

मुसलमानों पर दिए अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस यादव, बोले-मैंने किसी न्यायिक सीमा का उल्लंघन नहीं किया

#justice_shekhar_yadav_respond_allahabad_high_court_his_remarks_muslims

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले दिनों प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धार्मिक कानूनों या मान्यताओं को लेकर बयान दिया था। इसके बाद वह विवादों के घेरे में आ गएय़ उनको सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने पेश भी होना पड़ा था। हालांकि, अपने बयान पर कायम हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से तलब किए जाने के एक महीने बाद, जस्टिस यादव ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, और उनके अनुसार यह न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भांसाली से लेटेस्ट अपडेट मांगी थी। इसके बाद जस्टिस भांसाली ने जस्टिस कुमार से कॉलेजियम के बाद उनके जवाब मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने लेटर लिख कर जवाब दिया। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, जो उनके अनुसार न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरुण भंसाली ने भी 17 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाले कॉलेजियम के साथ जस्टिस यादव की बैठक के बाद उनसे जवाब तलब किया था। इस महीने की शुरुआत में, अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की ओर से बताया गया कि सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भंसाली को पत्र लिखकर इस मसले पर नई रिपोर्ट मांगी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक जवाब मांगने वाले उक्त पत्र में लॉ के एक छात्र और एक आईपीएस अधिकारी की ओर से उनके भाषण के खिलाफ दायर की गई शिकायत का जिक्र किया गया था, जिसे सरकार ने अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार, जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया कि उनके भाषण को निहित स्वार्थ वाले लोगों की ओर से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, और न्यायपालिका से जुड़े लोग जो सार्वजनिक रूप से खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं, उन्हें न्यायिक बिरादरी के सीनियर लोगों द्वारा सुरक्षा दिए जाने की जरुरत है।

क्या बोले थे यादव

जस्टिस यादव ने कहा, आपको यह गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं। चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों (बुराइयों) को संबोधित किया है, कमियां थीं, दुरुस्त कर लिए हैं, छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या, हमने उन सभी मुद्दों को संबोधित किया है, फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं, कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना, यह स्वीकार्य नहीं है।

यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को मिली मृत्युदंड, मदद के लिए सामने आया यह मुस्लिम देश, जानें क्या है वजह

#yemenindiannimishapriyacasemuslimcountryiranwill_help

यमन में एक युवक की हत्या के मामले में भारतीय मूल की नर्स निमिषा प्रिया को मौत की सजा सुनाई गई है। उन्हें एक महीने में फांसी दी जानी है। निमिषा की सजा माफ कराने के लिए भारत सरकार ने कोशिशें तेज कर दी हैं। इस बीच भारत की मदद के लिए एक मुस्लिम देश आगे आया है। निमिषा प्रिया के केस में ईरान ने भारत की मदद करने की पेश की है।ईरान ने कहा है कि वह हरसंभव मदद करेगा।

ईरान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पत्रकारों से कहा, ‘हम इस मुद्दे को उठाएंगे। ऐसा लगता है कि उस पर गैर-इरादतन हत्या का आरोप लगाया गया है। मानवीय आधार पर हम इस मामले में जो भी कर सकते हैं, करेंगे। बता दें कि निमिषा प्रिया को जुलाई 2017 में दोषी ठहराया गया था। यमन के राष्ट्रपति ने गत माह निमिशा को मौत की सजा को बरकरार रखा है। भारत ने कहा है कि वह इस मामले में नर्स की मदद करने के लिए उसके परिवार और संबंधितों के संपर्क में है और सभी तरह के कानूनी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। प्रिया (37) अभी यमन की राजधानी सना की जेल में बंद है। यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की मौत कथित तौर पर बेहोशी की दवा की ‘ओवरडोज’ से हुई थी, जो प्रिया ने उससे अपना पासपोर्ट वापस पाने के लिए दी थी।

ईरान क्यों करना चाहता है मदद

ईरान ने यह पेशकश ऐसे वक्त में की है, जब अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस पर कच्चे तेल के निर्यात पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिकी प्रतिबंधों से प्रताड़ित ईरान ने भारत से मदद की गुहार लगाई है। ईरान ने भारत से फिर से तेल खरीदने की अपील की है। इसके अलावा उसने ईरानी नागरिकों को भारतीय वीजा पाने में ढील देने को भी कहा है। ईरान का कहना है कि इससे भारत और भारतीय नागरिकों के साथ उसकी दोस्ती गहरी होगी। हालांकि, भारत की तरफ से ईरान के इन दो प्रस्तावों पर अभी तक स्पष्ट रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। भारत के लिए मध्य पूर्व में ईरान का महत्व काफी ज्यादा है।

भारत ने क्यों बंद किया ईरान से तेल खरीदना

ईरान 2018 से कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। पिछले डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के तहत, अमेरिका ने ईरान पर 1500 से ज्यादा प्रतिबंध लगाए हैं। नतीजतन, 2019 में, अमेरिका के दबाव में, भारत ने ईरान से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया था, जिसका दोतरफा व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार, एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "2018 में प्रतिबंध लगाए जाने से पहले हमारे भारत के साथ अच्छे आर्थिक संबंध थे। हम समझते हैं कि भारत को प्रतिबंधों का पालन क्यों करना पड़ रहा है, लेकिन व्यापार में साल-दर-साल गिरावट आ रही है, जो अच्छी बात नहीं है।"

मुसलमानों नया साल नहीं मनाने की हिदायत, मौलाना ने जारी किया फतवा, बताया शरियत के खिलाफ

#muslimsdonotcelebratenewyear2025maulanaissued_fatwa

साल 2024 बस खत्म होने ही वाला है। हर तरफ नए साल के स्वागत की तैयारियां हो रही हैं। इस बीच एक मौलाना ने मुसलमानों को लिए फतवा जारी कर दिया है। उन्होंने कहा कि ये नया साल हमारा नहीं, बल्कि, ईसाइयों का है। इसलिए नए साल का जश्न मुसलमानों को नहीं मनाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश के बरेली के मौलाना चश्म-ए-दारुल इफ्ता ने नए साल का जश्न मनाने और मुबारकबाद देने को गैर इस्लामी करार दिया है।उन्होंने कहा कि मुसलमानों के लिए नया साल मनाना हराम है और गुनाह है। ये इसाइयों का धार्मिक त्योहार है, जिसे मुसलमानों को नहीं मनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गैर-मजहबी प्रथाओं को मानना मुसलमानों के लिए सख्त नाजायज है। ऐसे में मुसलमानों खासतौर पर नए लड़के-लड़कियों को नए साल का जश्न मनाने से बचना चाहिए। मौलाना ने कहा कि मुसलमान के लिए नए साल का जश्न मनाना फख्र की बात नहीं है।

नया साल ईसाईयों का ?

मौलाना शहाबुद्दीन ने फतवा जारी करते हुए कहा- नए साल का जश्न मनाना, मुबारकबाद देना और प्रोग्राम आयोजित करना इस्लामी शरियत की रोशनी में नाजायज है। फतवे में कहा गया है कि नया साल जनवरी से शुरू होता है जो अंग्रेज, ईसाईयों का नया साल है। ईसाईयों का मजहबी और धार्मिक कार्यक्रम है कि वो हर साल के पहले दिन ज़श्न मनाते हैं. इसमें विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन करते हैं. ये ईसाईयों का खालीस ‘मजहबी शिआर’ (धार्मिक कार्यक्रम) है. इसलिए मुसलमानों को नए साल का जश्न मनाना जायज नहीं है. इस्लाम इस तरह के कार्यक्रमों को सख्ती के साथ रोकता है.

फतवे में इन्हें बताया गया नाजायज

शाहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने फतवे में आगे कहा- नए साल का जश्न मनाना, एक दूसरे को मुबारकबाद देना, पटाखे दागना, तालियां बजाना, शोर मचाना, सीटियां बजाना, लाइट बंद करके हुड़दंग करना फिर लाइट को दोबारा जलाना, नाच-गाना करना, शराब पीना, जुआ खेलना, अपने मोबाइल वाट्सअप से एक -दूसरे को मैसेज भेजकर मुबारकबाद देना, ये सारे काम इस्लामी शरियत की रोशनी में नाजायज हैं।

क्या होता है फतवा?

मालूम हो कि इस्लामिक फतवा एक धार्मिक राय या निर्णय है, जो इस्लामी कानून के अनुसार दिया जाता है। यह एक इस्लामी विद्वान या मुफ्ती द्वारा दिया जाता है, जो इस्लामी कानून के जानकार होते हैं। फतवा किसी धार्मिक मसले पर पूछे गये सवाल पर मुफ्ती द्वारा जारी जवाब का दस्तावेज होता है। हालांकि, फतवे को मानना वांछनीय होता है लेकिन बाध्यकारी नहीं है।

क्या है सरकारी ठेकों में मुसलमानों को आरक्षण पर विवाद? सिद्धारमैया ने दी सफाई

#over_4_percent_muslim_quota_in_karnataka_govt_tenders_sparks_row

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार अब एक बार फिर मुस्लिम आरक्षण पर फंसती नजर आ रही है। दरअसल, कर्नाटक में सरकारी ठेकों में मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण के मसले पर विवाद बढ़ गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कर्नाटक सरकार मुसलमानों को सरकारी निर्माण (सिविल) ठेकों में आरक्षण देने पर विचार कर रही है। इसके बाद से विपक्षी दल खासकर भाजपा ने कड़ा रूख अख्तिय़ार कर लिया है। हालांकि, इसे लेकर अब कर्नाटक के मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से सफाई आई है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने की मांग पर अपना पक्ष स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि इस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। सिद्धारमैया ने कहा कि कर्नाटक के नगर प्रशासन और हज मंत्री रहीम खान, कांग्रेस विधायक और विधान परिषद सदस्यों ने 24 अगस्त को पत्र लिखकर आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े मुसलमानों को सरकारी ठेकों में चार प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की थी। सिद्धारमैया ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण की मांग उठ रही है, लेकिन फिलहाल इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

इसस पहले मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कर्नाटक सरकार मुसलमानों को सरकारी ठेकों में चार फीसदी आरक्षण देने पर विचार कर रही है। यह आरक्षण उन ठेकों के लिए होगा जिनकी लागत एक करोड़ रुपये तक हो। सरकारी ठेकों में आरक्षण पहले से ही अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) के लिए निर्धारित है। मुसलमानों को यह आरक्षण कैटगरी 2बी के तहत मिल सकता है, जो कि ओबीसी का एक वर्ग है।

अगर यह प्रस्ताव मंजूर होता है तो कर्नाटक में सरकारी ठेकों में आरक्षण की सीमा बढ़कर 47 फीसदी तक हो जाएगी। फिलहाल राज्य में सरकारी ठेकों में कुल 43 फीसदी आरक्षण है। इसमें एससी/एसटी को 24 फीसदी आरक्षण मिलता है और बाकी आरक्षण ओबीसी के लिए है। ठेके की सीमा एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ करने का भी विचार किया जा रहा है।

इस मामले पर अब कर्नाटक बीजेपी ने कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया। बीजेपी नेता आर. अशोक ने कहा कि कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीतिक सभी हद को पार कर रही है।वक्फ की जमीन हड़पने की तरकीबों को समर्थन देने के बाद कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की अगुवाई में अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को चार फीसदी आरक्षण देने की योजना बना रही है। इस तरह तो कर्नाटक जल्द ही इस्लामिक राज्य में तब्दील हो जाएगा और यहां हिंदू दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह जाएंगे।

अल-कायदा भारत में आतंकी हमले की रच रहा साजिश, जानें पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से क्या है कनेक्शन?*
#how_al_qaeda_instigate_muslim_youth_in_india_connection_with_bangladesh
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने सोमवार को देश भर में कई जगहों पर छापेमारी की। ये छापेमारी अल-कायदा से जुड़े कुछ बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ की गई। यह छापेमारी बांग्लादेशी नागरिकों द्वारा भारत में प्रतिबंधित आतंकी संगठन अल-कायदा की गतिविधियों को बढ़ावा देने से जुड़ी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक एनआईए ने ऐसी 9 जगहों पर रेड की जो अल-कायदा की गतिविधियों का समर्थन और उन्हें कथित तौर पर फंड मुहैया कराने वाले संदिग्ध लोगों से जुड़े थे। एनआईए के मुताबिक, छापेमारी में बैंक लेनदेन से जुड़े कई कागजात, मोबाइल फोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मिले हैं। ये सभी चीजें आतंकवाद को फंडिंग करने के मामले में अहम सबूत हो सकते हैं। एनआईए ने बताया, 'जिन लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की गई, वो बांग्लादेशी अल-कायदा नेटवर्क के समर्थक हैं। एनआईए ने कहा कि ये तलाशी 2023 के एक मामले में चल रही जांच का हिस्सा है, जिसमें बांग्लादेश स्थित अल-कायदा के गुर्गों द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के साथ मिलकर रची गई साजिश शामिल है। *भारत में भोले-भाले युवाओं को गुमराह करना मकसद* एनआईए के मुताबिक अल-कायदा का बांग्लादेश बेस्ड एक नेटवर्क है, जो भारत के खिलाफ हमले की साजिश रच रहा है और युवाओं को चरमपंथी गतिविधियों के लिए उकसा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी कई महीनों से इसकी पड़ताल कर रही है। एजेंसी ने एक बयान में कहा कि 11 नवंबर की रेड एनआईए की 2023 से चल रही जांच का हिस्सा थी। जिसमें कई गिरफ्तारियां भी हुई थीं। इन पर आरोप था कि इनका उद्देश्य अल-कायदा की आतंकवादी गतिविधियों को फैलाना और भारत में भोले-भाले युवाओं को कट्टरपंथी बनाना था। *चार बांग्लादेशी समेत पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट* पिछले साल नवंबर में एनआईए ने पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी, जिनमें चार मोहम्मद सोजीब मियां, मुन्ना खालिद अंसान उर्फ मुन्ना खान, अजरुल इस्लाम उर्फ जहांगिर या आकाश खान और अब्दुल लतीफ उर्फ मोमिनुल अंसारी बांग्लादेशी नागरिक शामिल थे। पांचवां आरोपी फरीद भारतीय नागरिक था। एनआईए की जांच में पता चला कि आरोपियों ने अपनी गतिविधियों को गुप्त रूप से अंजाम देने के लिए जाली दस्तावेज तैयार किए थे। एनआईए के अनुसार वे भारत में मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और प्रेरित करने, अल-कायदा की हिंसक विचारधारा फैलाने, धन जुटाने और इस धन को संगठन को पहुंचाने में सक्रिय रूप से शामिल थे।
वक्फ बिल की राह में रोड़ा बनेगी टीडीपी? जानें संसद सत्र से पहले कैसे बढ़ी भाजपा की टेंशन

#waqfamendmentbillmuslimtdptensionto_bjp

केन्द्र सरकार वक्फ़ संशोधन बिल योजना लाने की तैयारी में है। संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार मुख्य रूप से वक्फ विधेयक को पारित करने का पूरा प्रयास करेगी।संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हो सकता है। हालांकि, इससे पहले केन्द्र की बीजेपी की अगुवाई वाली नरेन्द्र मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। दरअसल, संसद के शीतकाली सत्र से पहले एनडीए के घटक दल तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है। टीडीपी के नेता और आंध्र पदेश इकाई के उपाध्यक्ष नवाब जान का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है कि सबको मिलकर वक्फ संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकना चाहिए।

चंद्रबाबू नायडू के कहने पर जेपीसी का गठन?

टीडीपी के उपाध्यक्ष नवाब जान उर्फ अमीर बाबू ने वक्फ संशोधन बिल को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यह बिल मुसलमानों के दिलों में दर्द पैदा कर रहा है। उनका कहना है कि चंद्रबाबू नायडू के कहने पर ही वक्फ संशोधन बिल को लेकर ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) का गठन किया गया है। नवाब जान ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू के अनुसार इस बिल को लेकर सभी का राय मशवि‍रा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूरे देश में इस मुद्दे पर राय मशविरा चल रहा है और चंद्रबाबू नायडू ने सभी से सर्वे करने का आग्रह किया है। उनका मानना है कि यह आवश्यक है कि इस विषय पर सभी पक्षों की बात सुनी जाए।

“नायडू के शासन में मुसलमानों को बहुत लाभ मिले”

नवाब जान ने कहा कि, चंद्रबाबू हमेशा कहते रहे हैं कि उनकी दो आंखें हैं- एक हिंदू और एक मुस्लिम। एक आंख को नुकसान पहुंचाने से पूरे शरीर पर असर पड़ता है और हमें विकास के पथ पर आगे बढ़ते समय इसे ध्यान में रखना चाहिए। नवाब जान ने ये भी कहा कि देश की आजादी के बाद से नायडू के शासन में मुसलमानों को जो लाभ मिले वे अभूतपूर्व हैं।

बता दें कि रविवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में संविधान बचाओ सम्मेलन किया था। इसमें नवाब ने लोगों से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को संसद में पारित होने से रोकने के लिए एकजुट होने की अपील की।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने क्या कहा?

टीडीपी उपाध्यक्ष के बयान के बाद से इस विधेयक के पारित होने को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। वहीं, जमीयत ने टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार से इस मामले में मुसलमानों की भावनाओं पर ध्यान देने की गुजारिश की है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा- अगर वक्फ बिल पास होता है तो टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार जिम्मेदारी से नहीं बच पाएंगे, क्योंकि केंद्र सरकार इनकी बैसाखी पर ही चल रही है।

मदनी ने कहा कि सांप्रदायिक नीतियों के कारण ही भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला। मुस्लिम बाहर से नहीं आए हैं, बल्कि इस देश के मूल निवासी हैं। अगर हिंदू गुर्जर, जाट हैं तो मुस्लिम भी गुर्जर और जाट हैं तथा कश्मीर में तो मुस्लिम भी ब्राह्मण हैं। जमीयत ने कहा कि एनडीए में शामिल जो दल धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, उन्हें इस खतरनाक कानून का समर्थन करने से खुद को दूर रखना चाहिए।

इस देश में 99 फीसदी मुसलमान, फिर क्यों जनता से बकरीद पर कुर्बानी ना करने की अपील

#muslimcountrymoroccourgespeopletonotbuysheepforeid

उत्तर अफ्रीकी देश मोरक्को के राजा मोहम्मद VI ने आम जनता से ईद उल-अजहा यानी बकरीद के दौरान भेड़ों की कुर्बानी न देने की अपील की है। मोरक्को जहां मुसलमानों की आबादी करीब 99 फीसदी है, वहां ईद उल-अजहा के दौरान भेड़ों की कुर्बानी एक लंबी परंपरा है, लेकिन इस बार देश के राजा ने ही भेड़ों की कुर्बानी न देने की गुजारिश की है। दरअसल, मोरक्को भेड़ों की कमी से जूझ रहा है।

भेड़ों की कमी की वजह से मोरक्को के राजा मोहम्मद VI ने परंपरा से हटकर लोगों से ईद-उल-अजहा पर भेड़ नहीं खरीदने की अपील की है। मोरक्को के इस्लामी मामलों के मंत्री अहमद तौफीक ने कहा कि आर्थिक और जलवायु संबंधी चुनौतियों के कारण सालाना कुर्बानी और दावत देशवासियों की पहुंच से दूर हो गई है। सरकारी टेलीविजन ‘अल औला’ पर सुल्तान का पत्र पढ़ते हुए तौफीक ने कहा कि यह मोरक्को का कर्तव्य है कि वह यह स्वीकार करे कि पशुधन की कमी के कारण कीमतें आसमान छू रही हैं। सुल्तान की ओर से जारी पत्र में कहा गया है, कठिन परिस्थिति में कुर्बानी से खास तौर पर उन लोगों की भावनाओं को ठेस लगेगी जिनकी आय सीमित है।

भेड़ों की संख्या में 38% कमी

बता दें कि मोरक्को में भेड़ों की संख्या पिछले दशक में 38% कम हो गई है। इस साल बारिश औसत से 53% कम रही, जिससे चरागाहों की स्थिति खराब हो गई। इससे मवेशियों के चारे की समस्या गहरी हो गई है। इस कारण भेड़ और मवेशियों की संख्या में कमी आई है।

कुर्बानी का त्यौहार है ईद अल अजहा

ईद उल-अजहा, इस साल जून के पहले हफ्ते में मनाई जाएगी, मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला एक बड़ा “कुर्बानी का त्योहार” है। इस दिन मुसलमान जानवरों की कुर्बानी करते हैं। इस परंपरा में इतनी गहरी पैठ है कि कई परिवार भेड़ खरीदने के लिए कर्ज लेने तक को मजबूर हो जाते हैं।

दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर क्या है हाल? चौंकाने वाले हैं आंकड़े

#delhi_assembly_election_result_who_is_winning_muslim_majority_seats

दिल्ली के वोटर्स ने किसे सत्ता सौंपी है, यह कुछ घंटों में साफ हो जाएगा। सुबह 8 बजे वोटों की गिनती शुरू हुई। अब तक के रुझानों में आम आदमी पार्टी सत्ता से बेदखल होती नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी ने कई सीटों पर अच्छी-खासी बढ़त बना ली है। बीजेपी 27 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर है। रूझानों में 27 साल का वनवास खत्म होता दिख रहा है।

मतगणना के बीच सबकी नजरें दिल्ली के मुस्लिम बहुल सीटों पर लगी हुई हैं। दिल्ली में 11 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। दिल्ली के मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग जमकर हुई थी। ये मुस्तफाबाद, बल्लीमारान, सीलमपुर, मटिया महल, चांदनी चौक और ओखला सीट हैं। दिल्ली की सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला सीट पर बीजेपी को छोड़कर सभी दलों से मुस्लिम उम्मीदवार ही किस्मत आजमा रहे हैं। इन सभी सीटों पर 55 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। अधिकतर सीटों पर 60 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई।

दिल्ली की 70 सीटों में से जिन दो सीटों पर सबसे ज्यादा मतदान हुआ, वहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या 40 पर्सेंट से ज्यादा है। जिस मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र में 41 प्रतिशत मुस्लिम और 56 प्रतिशत हिन्दू रहते हैं, वहां पूरी दिल्ली में सबसे ज्यादा 67 प्रतिशत मतदान हुआ है। यहां हम बता रहे हैं कि शुरुआती रुझानों में इन सीटों पर कौन आगे चल रहा है।

विधानसभा सीट वोटिंग % पार्टी आगे

चांदनी चौक 55.96 आप

मटियामहल 65.10 आप

बल्लीमारन 63.87 आप

ओखला 54.90 आप

सीमापुरी 65.27 आप

सीलमपुर 68.70 आप

बाबरपुर 65.99 आप

मुस्तफाबाद 69.00 आप

करावल नगर 64.44 बीजेपी

जंगपुरा 57.42 बीजेपी

सदर बाजार 60.4% बीजेपी

अगर शुरुआती रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं तो कांग्रेस और एआईएमआईएम के लिए ये नतीजे निराशाजनक होंगे। ये दोनों पार्टियां सिर्फ वोट कटवा बनकर रह जाएंगी। वहीं, बीजेपी को इस लड़ाई का फायदा मिलता दिख रहा है, जो तीन सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। खास बात यह है कि इनमें से एक सीट दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की है।

शरिया कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची मुस्लिम महिला, बेटी को पूरी संपत्ति देना चाहती है महिला

#muslim_woman_in_sc_against_sharia_law 

सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर कर मांग की है कि उसे शरीयत कानून में विश्वास नहीं है और वह चाहती है कि उस पर उत्तराधिकार कानून लागू हो। महिला ने खुद को 'गैर-आस्तिक' बताते हुए मांग की है कि उनके उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू किया जाए। महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और सरकार का इस मुद्दे पर पक्ष पूछा है। 

केरल के अलप्पुझा की रहने वाली एक महिला साफिया पी एम ने यह याचिका दायर की है। वह अपनी पूरी संपत्ति अपनी बेटी को देना चाहती हैं, लेकिन शरिया कानून के तहत वह केवल 50 प्रतिशत संपत्ति ही दे सकती हैं। इसलिए वह 'सेक्युलर लॉ' यानी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत लाभ चाहती हैं।

सफिया पी एम ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह एक गैर-आस्तिक मुस्लिम महिला हैं। वह चाहती हैं कि उन्हें विरासत के मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत माना जाए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

सफिया पी एम का कहना है कि वह इस्लाम को नहीं मानती, लेकिन अभी भी उसने आधिकारिक रूप से इस्लाम को नहीं छोड़ा है। शरिया कानून के अनुसार, जो व्यक्ति इस्लाम छोड़ देता है, उसे समुदाय से बाहर कर दिया जाता है और उसे माता-पिता की संपत्ति में कोई विरासत का अधिकार नहीं मिलता। याचिका में यह भी कहा गया है कि शरिया कानून के तहत, एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का एक तिहाई से अधिक हिस्सा वसीयत के माध्यम से नहीं दे सकता है। सफिया पी एम की एक बेटी है। उनकी चिंता है कि उनकी मौत के बाद, पूरी संपत्ति उनकी बेटी को नहीं मिलेगी, क्योंकि उनके पिता के भाइयों का भी उस पर दावा होगा।

केंद्र सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'याचिका में रोचक सवाल उठाया गया है।' मेहता ने कहा कि 'याचिकाकर्ता महिला एक पैदाइशी मुस्लिम है। उनका कहना है कि वे शरीयत कानून में विश्वास नहीं रखती और यह एक पिछड़ा हुआ कानून है।' पीठ ने कहा कि 'यह आस्था के खिलाफ है और आपको (केंद्र सरकार) इसके जवाब में हलफनामा दाखिल करना होगा।' इस पर सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय मांगा। इस पर पीठ ने चार हफ्ते का समय देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 5 मई तय की। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 29 अप्रैल को भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब मांगा था।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची कांग्रेस, तो बीजेपी ने बाता डाला 'नई मुस्लिम लीग'

#bjp_alleges_congress_has_become_the_new_muslim_league

कांग्रेस ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लेकर एक याचिका दायर की है।कांग्रेस ने याचिका में एक्ट 1991 का बचाव करते हुए कहा कि ये कानून भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए जरूरी है। भाजपा ने कांग्रेस के ज़रिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट जाने को 'हिंदुओं के खिलाफ खुले युद्ध' का ऐलान करार दिया है। साथ ही यह भी कहा कि अब कांग्रेस "नई मुस्लिम लीग" बन चुकी है।

बीजेपी के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीया ने इसे हिंदुओं के खिलाफ "खुला युद्ध" और कांग्रेस को "नई मुस्लिम लीग" करार दिया। उनका कहना था कि कांग्रेस ने इस कानून का समर्थन करके हिंदुओं को उनके ऐतिहासिक अन्यायों के खिलाफ कानूनी उपायों का अधिकार छीनने की कोशिश की है।भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर कहा,'कांग्रेस ने ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए कानूनी उपायों के हिंदुओं के मौलिक संवैधानिक अधिकार को अस्वीकार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मालवीय ने आगे कहा कि कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से 'धर्मनिरपेक्षता की रक्षा' के बहाने पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने का आग्रह किया है।

अमित मालवीय ने कहा,'कांग्रेस ने धार्मिक बुनियाद पर भारत के विभाजन को मंजूरी दी। इसके बाद, इसने वक्फ कानून पेश किया, जिससे मुसलमानों को अपनी मर्जी से संपत्तियों पर दावा करने और देश भर में मिनी-पाकिस्तान स्थापित करने का हक मिल गया। बाद में इसने पूजा स्थल अधिनियम लागू किया, जिससे हिंदुओं को अपने ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को वापस लेने का अधिकार प्रभावी रूप से नकार दिया गया। अब, कांग्रेस ने हिंदुओं के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर दिया है।

बीजेपी ने इस कानून का विरोध पहले भी किया था जब नरसिंह राव सरकार ने राम मंदिर निर्माण के आंदोलन के दौरान इसे लागू किया था. ये कानून यह सुनिश्चित करता था कि 15 अगस्त 1947 के बाद से सभी पूजा स्थलों की स्थिति को जस का तस रखा जाए सिवाय अयोध्या के विवादित स्थल के इस कानून का उद्देश्य संघ परिवार की ओर से वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के शाहि ईदगाह पर कब्जा करने के प्रयासों को रोकना था।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की 3 मेंबर वाली बेंच ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (विशेष प्रावधानों) 1991 की कुछ धाराओं की वैधता पर दाखिल याचिकाओं पर 12 दिसंबर को सुनवाई की थी। बेंच ने कहा था, हम इस कानून के दायरे, उसकी शक्तियों और ढांचे को जांच रहे हैं। ऐसे में यही उचित होगा कि बाकी सभी अदालतें अपने हाथ रोक लें। सुनवाई के दौरान सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा- हमारे सामने 2 मामले हैं, मथुरा की शाही ईदगाह और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद। तभी अदालत को बताया गया कि देश में ऐसे 18 से ज्यादा मामले लंबित हैं। इनमें से 10 मस्जिदों से जुड़े हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से याचिकाओं पर 4 हफ्ते में अपना पक्ष रखने को कहा। सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा- जब तक केंद्र जवाब नहीं दाखिल करता है हम सुनवाई नहीं कर सकते। हमारे अगले आदेश तक ऐसा कोई नया केस दाखिल ना किया जाए।

मुसलमानों पर दिए अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस यादव, बोले-मैंने किसी न्यायिक सीमा का उल्लंघन नहीं किया

#justice_shekhar_yadav_respond_allahabad_high_court_his_remarks_muslims

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले दिनों प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धार्मिक कानूनों या मान्यताओं को लेकर बयान दिया था। इसके बाद वह विवादों के घेरे में आ गएय़ उनको सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने पेश भी होना पड़ा था। हालांकि, अपने बयान पर कायम हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से तलब किए जाने के एक महीने बाद, जस्टिस यादव ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, और उनके अनुसार यह न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भांसाली से लेटेस्ट अपडेट मांगी थी। इसके बाद जस्टिस भांसाली ने जस्टिस कुमार से कॉलेजियम के बाद उनके जवाब मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने लेटर लिख कर जवाब दिया। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, जो उनके अनुसार न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरुण भंसाली ने भी 17 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाले कॉलेजियम के साथ जस्टिस यादव की बैठक के बाद उनसे जवाब तलब किया था। इस महीने की शुरुआत में, अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की ओर से बताया गया कि सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भंसाली को पत्र लिखकर इस मसले पर नई रिपोर्ट मांगी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक जवाब मांगने वाले उक्त पत्र में लॉ के एक छात्र और एक आईपीएस अधिकारी की ओर से उनके भाषण के खिलाफ दायर की गई शिकायत का जिक्र किया गया था, जिसे सरकार ने अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार, जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया कि उनके भाषण को निहित स्वार्थ वाले लोगों की ओर से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, और न्यायपालिका से जुड़े लोग जो सार्वजनिक रूप से खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं, उन्हें न्यायिक बिरादरी के सीनियर लोगों द्वारा सुरक्षा दिए जाने की जरुरत है।

क्या बोले थे यादव

जस्टिस यादव ने कहा, आपको यह गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं। चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों (बुराइयों) को संबोधित किया है, कमियां थीं, दुरुस्त कर लिए हैं, छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या, हमने उन सभी मुद्दों को संबोधित किया है, फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं, कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना, यह स्वीकार्य नहीं है।

यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को मिली मृत्युदंड, मदद के लिए सामने आया यह मुस्लिम देश, जानें क्या है वजह

#yemenindiannimishapriyacasemuslimcountryiranwill_help

यमन में एक युवक की हत्या के मामले में भारतीय मूल की नर्स निमिषा प्रिया को मौत की सजा सुनाई गई है। उन्हें एक महीने में फांसी दी जानी है। निमिषा की सजा माफ कराने के लिए भारत सरकार ने कोशिशें तेज कर दी हैं। इस बीच भारत की मदद के लिए एक मुस्लिम देश आगे आया है। निमिषा प्रिया के केस में ईरान ने भारत की मदद करने की पेश की है।ईरान ने कहा है कि वह हरसंभव मदद करेगा।

ईरान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पत्रकारों से कहा, ‘हम इस मुद्दे को उठाएंगे। ऐसा लगता है कि उस पर गैर-इरादतन हत्या का आरोप लगाया गया है। मानवीय आधार पर हम इस मामले में जो भी कर सकते हैं, करेंगे। बता दें कि निमिषा प्रिया को जुलाई 2017 में दोषी ठहराया गया था। यमन के राष्ट्रपति ने गत माह निमिशा को मौत की सजा को बरकरार रखा है। भारत ने कहा है कि वह इस मामले में नर्स की मदद करने के लिए उसके परिवार और संबंधितों के संपर्क में है और सभी तरह के कानूनी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। प्रिया (37) अभी यमन की राजधानी सना की जेल में बंद है। यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की मौत कथित तौर पर बेहोशी की दवा की ‘ओवरडोज’ से हुई थी, जो प्रिया ने उससे अपना पासपोर्ट वापस पाने के लिए दी थी।

ईरान क्यों करना चाहता है मदद

ईरान ने यह पेशकश ऐसे वक्त में की है, जब अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस पर कच्चे तेल के निर्यात पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिकी प्रतिबंधों से प्रताड़ित ईरान ने भारत से मदद की गुहार लगाई है। ईरान ने भारत से फिर से तेल खरीदने की अपील की है। इसके अलावा उसने ईरानी नागरिकों को भारतीय वीजा पाने में ढील देने को भी कहा है। ईरान का कहना है कि इससे भारत और भारतीय नागरिकों के साथ उसकी दोस्ती गहरी होगी। हालांकि, भारत की तरफ से ईरान के इन दो प्रस्तावों पर अभी तक स्पष्ट रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। भारत के लिए मध्य पूर्व में ईरान का महत्व काफी ज्यादा है।

भारत ने क्यों बंद किया ईरान से तेल खरीदना

ईरान 2018 से कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। पिछले डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के तहत, अमेरिका ने ईरान पर 1500 से ज्यादा प्रतिबंध लगाए हैं। नतीजतन, 2019 में, अमेरिका के दबाव में, भारत ने ईरान से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया था, जिसका दोतरफा व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार, एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "2018 में प्रतिबंध लगाए जाने से पहले हमारे भारत के साथ अच्छे आर्थिक संबंध थे। हम समझते हैं कि भारत को प्रतिबंधों का पालन क्यों करना पड़ रहा है, लेकिन व्यापार में साल-दर-साल गिरावट आ रही है, जो अच्छी बात नहीं है।"

मुसलमानों नया साल नहीं मनाने की हिदायत, मौलाना ने जारी किया फतवा, बताया शरियत के खिलाफ

#muslimsdonotcelebratenewyear2025maulanaissued_fatwa

साल 2024 बस खत्म होने ही वाला है। हर तरफ नए साल के स्वागत की तैयारियां हो रही हैं। इस बीच एक मौलाना ने मुसलमानों को लिए फतवा जारी कर दिया है। उन्होंने कहा कि ये नया साल हमारा नहीं, बल्कि, ईसाइयों का है। इसलिए नए साल का जश्न मुसलमानों को नहीं मनाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश के बरेली के मौलाना चश्म-ए-दारुल इफ्ता ने नए साल का जश्न मनाने और मुबारकबाद देने को गैर इस्लामी करार दिया है।उन्होंने कहा कि मुसलमानों के लिए नया साल मनाना हराम है और गुनाह है। ये इसाइयों का धार्मिक त्योहार है, जिसे मुसलमानों को नहीं मनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गैर-मजहबी प्रथाओं को मानना मुसलमानों के लिए सख्त नाजायज है। ऐसे में मुसलमानों खासतौर पर नए लड़के-लड़कियों को नए साल का जश्न मनाने से बचना चाहिए। मौलाना ने कहा कि मुसलमान के लिए नए साल का जश्न मनाना फख्र की बात नहीं है।

नया साल ईसाईयों का ?

मौलाना शहाबुद्दीन ने फतवा जारी करते हुए कहा- नए साल का जश्न मनाना, मुबारकबाद देना और प्रोग्राम आयोजित करना इस्लामी शरियत की रोशनी में नाजायज है। फतवे में कहा गया है कि नया साल जनवरी से शुरू होता है जो अंग्रेज, ईसाईयों का नया साल है। ईसाईयों का मजहबी और धार्मिक कार्यक्रम है कि वो हर साल के पहले दिन ज़श्न मनाते हैं. इसमें विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन करते हैं. ये ईसाईयों का खालीस ‘मजहबी शिआर’ (धार्मिक कार्यक्रम) है. इसलिए मुसलमानों को नए साल का जश्न मनाना जायज नहीं है. इस्लाम इस तरह के कार्यक्रमों को सख्ती के साथ रोकता है.

फतवे में इन्हें बताया गया नाजायज

शाहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने फतवे में आगे कहा- नए साल का जश्न मनाना, एक दूसरे को मुबारकबाद देना, पटाखे दागना, तालियां बजाना, शोर मचाना, सीटियां बजाना, लाइट बंद करके हुड़दंग करना फिर लाइट को दोबारा जलाना, नाच-गाना करना, शराब पीना, जुआ खेलना, अपने मोबाइल वाट्सअप से एक -दूसरे को मैसेज भेजकर मुबारकबाद देना, ये सारे काम इस्लामी शरियत की रोशनी में नाजायज हैं।

क्या होता है फतवा?

मालूम हो कि इस्लामिक फतवा एक धार्मिक राय या निर्णय है, जो इस्लामी कानून के अनुसार दिया जाता है। यह एक इस्लामी विद्वान या मुफ्ती द्वारा दिया जाता है, जो इस्लामी कानून के जानकार होते हैं। फतवा किसी धार्मिक मसले पर पूछे गये सवाल पर मुफ्ती द्वारा जारी जवाब का दस्तावेज होता है। हालांकि, फतवे को मानना वांछनीय होता है लेकिन बाध्यकारी नहीं है।

क्या है सरकारी ठेकों में मुसलमानों को आरक्षण पर विवाद? सिद्धारमैया ने दी सफाई

#over_4_percent_muslim_quota_in_karnataka_govt_tenders_sparks_row

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार अब एक बार फिर मुस्लिम आरक्षण पर फंसती नजर आ रही है। दरअसल, कर्नाटक में सरकारी ठेकों में मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण के मसले पर विवाद बढ़ गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कर्नाटक सरकार मुसलमानों को सरकारी निर्माण (सिविल) ठेकों में आरक्षण देने पर विचार कर रही है। इसके बाद से विपक्षी दल खासकर भाजपा ने कड़ा रूख अख्तिय़ार कर लिया है। हालांकि, इसे लेकर अब कर्नाटक के मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से सफाई आई है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने की मांग पर अपना पक्ष स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि इस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। सिद्धारमैया ने कहा कि कर्नाटक के नगर प्रशासन और हज मंत्री रहीम खान, कांग्रेस विधायक और विधान परिषद सदस्यों ने 24 अगस्त को पत्र लिखकर आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े मुसलमानों को सरकारी ठेकों में चार प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की थी। सिद्धारमैया ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण की मांग उठ रही है, लेकिन फिलहाल इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

इसस पहले मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कर्नाटक सरकार मुसलमानों को सरकारी ठेकों में चार फीसदी आरक्षण देने पर विचार कर रही है। यह आरक्षण उन ठेकों के लिए होगा जिनकी लागत एक करोड़ रुपये तक हो। सरकारी ठेकों में आरक्षण पहले से ही अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) के लिए निर्धारित है। मुसलमानों को यह आरक्षण कैटगरी 2बी के तहत मिल सकता है, जो कि ओबीसी का एक वर्ग है।

अगर यह प्रस्ताव मंजूर होता है तो कर्नाटक में सरकारी ठेकों में आरक्षण की सीमा बढ़कर 47 फीसदी तक हो जाएगी। फिलहाल राज्य में सरकारी ठेकों में कुल 43 फीसदी आरक्षण है। इसमें एससी/एसटी को 24 फीसदी आरक्षण मिलता है और बाकी आरक्षण ओबीसी के लिए है। ठेके की सीमा एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ करने का भी विचार किया जा रहा है।

इस मामले पर अब कर्नाटक बीजेपी ने कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया। बीजेपी नेता आर. अशोक ने कहा कि कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीतिक सभी हद को पार कर रही है।वक्फ की जमीन हड़पने की तरकीबों को समर्थन देने के बाद कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की अगुवाई में अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को चार फीसदी आरक्षण देने की योजना बना रही है। इस तरह तो कर्नाटक जल्द ही इस्लामिक राज्य में तब्दील हो जाएगा और यहां हिंदू दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह जाएंगे।

अल-कायदा भारत में आतंकी हमले की रच रहा साजिश, जानें पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से क्या है कनेक्शन?*
#how_al_qaeda_instigate_muslim_youth_in_india_connection_with_bangladesh
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने सोमवार को देश भर में कई जगहों पर छापेमारी की। ये छापेमारी अल-कायदा से जुड़े कुछ बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ की गई। यह छापेमारी बांग्लादेशी नागरिकों द्वारा भारत में प्रतिबंधित आतंकी संगठन अल-कायदा की गतिविधियों को बढ़ावा देने से जुड़ी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक एनआईए ने ऐसी 9 जगहों पर रेड की जो अल-कायदा की गतिविधियों का समर्थन और उन्हें कथित तौर पर फंड मुहैया कराने वाले संदिग्ध लोगों से जुड़े थे। एनआईए के मुताबिक, छापेमारी में बैंक लेनदेन से जुड़े कई कागजात, मोबाइल फोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मिले हैं। ये सभी चीजें आतंकवाद को फंडिंग करने के मामले में अहम सबूत हो सकते हैं। एनआईए ने बताया, 'जिन लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की गई, वो बांग्लादेशी अल-कायदा नेटवर्क के समर्थक हैं। एनआईए ने कहा कि ये तलाशी 2023 के एक मामले में चल रही जांच का हिस्सा है, जिसमें बांग्लादेश स्थित अल-कायदा के गुर्गों द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के साथ मिलकर रची गई साजिश शामिल है। *भारत में भोले-भाले युवाओं को गुमराह करना मकसद* एनआईए के मुताबिक अल-कायदा का बांग्लादेश बेस्ड एक नेटवर्क है, जो भारत के खिलाफ हमले की साजिश रच रहा है और युवाओं को चरमपंथी गतिविधियों के लिए उकसा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी कई महीनों से इसकी पड़ताल कर रही है। एजेंसी ने एक बयान में कहा कि 11 नवंबर की रेड एनआईए की 2023 से चल रही जांच का हिस्सा थी। जिसमें कई गिरफ्तारियां भी हुई थीं। इन पर आरोप था कि इनका उद्देश्य अल-कायदा की आतंकवादी गतिविधियों को फैलाना और भारत में भोले-भाले युवाओं को कट्टरपंथी बनाना था। *चार बांग्लादेशी समेत पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट* पिछले साल नवंबर में एनआईए ने पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी, जिनमें चार मोहम्मद सोजीब मियां, मुन्ना खालिद अंसान उर्फ मुन्ना खान, अजरुल इस्लाम उर्फ जहांगिर या आकाश खान और अब्दुल लतीफ उर्फ मोमिनुल अंसारी बांग्लादेशी नागरिक शामिल थे। पांचवां आरोपी फरीद भारतीय नागरिक था। एनआईए की जांच में पता चला कि आरोपियों ने अपनी गतिविधियों को गुप्त रूप से अंजाम देने के लिए जाली दस्तावेज तैयार किए थे। एनआईए के अनुसार वे भारत में मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और प्रेरित करने, अल-कायदा की हिंसक विचारधारा फैलाने, धन जुटाने और इस धन को संगठन को पहुंचाने में सक्रिय रूप से शामिल थे।
वक्फ बिल की राह में रोड़ा बनेगी टीडीपी? जानें संसद सत्र से पहले कैसे बढ़ी भाजपा की टेंशन

#waqfamendmentbillmuslimtdptensionto_bjp

केन्द्र सरकार वक्फ़ संशोधन बिल योजना लाने की तैयारी में है। संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार मुख्य रूप से वक्फ विधेयक को पारित करने का पूरा प्रयास करेगी।संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हो सकता है। हालांकि, इससे पहले केन्द्र की बीजेपी की अगुवाई वाली नरेन्द्र मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। दरअसल, संसद के शीतकाली सत्र से पहले एनडीए के घटक दल तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है। टीडीपी के नेता और आंध्र पदेश इकाई के उपाध्यक्ष नवाब जान का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है कि सबको मिलकर वक्फ संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकना चाहिए।

चंद्रबाबू नायडू के कहने पर जेपीसी का गठन?

टीडीपी के उपाध्यक्ष नवाब जान उर्फ अमीर बाबू ने वक्फ संशोधन बिल को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यह बिल मुसलमानों के दिलों में दर्द पैदा कर रहा है। उनका कहना है कि चंद्रबाबू नायडू के कहने पर ही वक्फ संशोधन बिल को लेकर ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) का गठन किया गया है। नवाब जान ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू के अनुसार इस बिल को लेकर सभी का राय मशवि‍रा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूरे देश में इस मुद्दे पर राय मशविरा चल रहा है और चंद्रबाबू नायडू ने सभी से सर्वे करने का आग्रह किया है। उनका मानना है कि यह आवश्यक है कि इस विषय पर सभी पक्षों की बात सुनी जाए।

“नायडू के शासन में मुसलमानों को बहुत लाभ मिले”

नवाब जान ने कहा कि, चंद्रबाबू हमेशा कहते रहे हैं कि उनकी दो आंखें हैं- एक हिंदू और एक मुस्लिम। एक आंख को नुकसान पहुंचाने से पूरे शरीर पर असर पड़ता है और हमें विकास के पथ पर आगे बढ़ते समय इसे ध्यान में रखना चाहिए। नवाब जान ने ये भी कहा कि देश की आजादी के बाद से नायडू के शासन में मुसलमानों को जो लाभ मिले वे अभूतपूर्व हैं।

बता दें कि रविवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में संविधान बचाओ सम्मेलन किया था। इसमें नवाब ने लोगों से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को संसद में पारित होने से रोकने के लिए एकजुट होने की अपील की।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने क्या कहा?

टीडीपी उपाध्यक्ष के बयान के बाद से इस विधेयक के पारित होने को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। वहीं, जमीयत ने टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार से इस मामले में मुसलमानों की भावनाओं पर ध्यान देने की गुजारिश की है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा- अगर वक्फ बिल पास होता है तो टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार जिम्मेदारी से नहीं बच पाएंगे, क्योंकि केंद्र सरकार इनकी बैसाखी पर ही चल रही है।

मदनी ने कहा कि सांप्रदायिक नीतियों के कारण ही भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला। मुस्लिम बाहर से नहीं आए हैं, बल्कि इस देश के मूल निवासी हैं। अगर हिंदू गुर्जर, जाट हैं तो मुस्लिम भी गुर्जर और जाट हैं तथा कश्मीर में तो मुस्लिम भी ब्राह्मण हैं। जमीयत ने कहा कि एनडीए में शामिल जो दल धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, उन्हें इस खतरनाक कानून का समर्थन करने से खुद को दूर रखना चाहिए।