अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के खिलाफ ट्रंप का बड़ा फैसला, जानिए क्यों लगाया बैन?

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अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद से ही लगातार वो अपने एक्‍शन मोड में हैं। ट्रंप एक के बाद एक फैसलों से दुनिया का ध्‍यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। अब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका और उसके करीबी इजरायल को निशाना बनाने वाले अंतरराष्‍ट्रीय अपराध न्यायालय पर प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल, आईसीसी ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इसी के आधार पर अमेरिका ने ये कार्रवाई की है।

डोनाल्ड ट्रंप ने आईसीसी पर बैन लगाने की वजह बताते हुए कहा, अमेरिका और हमारे करीबी सहयोगी इजराइल को निशाना बनाने वाली नाजायज और निराधार कार्रवाइयों में शामिल होने और नेतन्याहू और उनके पूर्व रक्षा मंत्री, योव गैलेंट के खिलाफ “आधारहीन गिरफ्तारी वारंट” जारी करके अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की वजह से बैन लगाया गया है। साथ ही आदेश में कहा गया है कि अमेरिका और इजराइल पर आईसीसी का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। इसी के साथ आदेश में कोर्ट को लेकर कहा गया है कि अदालत ने दोनों देशों के खिलाफ अपने एक्शन से एक “खतरनाक मिसाल” सामने रखी है।

आदेश में कहा गया है कि अमेरिका आईसीसी के “उल्लंघनों” के लिए जिम्मेदार लोगों पर ठोस एक्शन लेगा। उल्लंघन करने पर एक्शन में लोगों की प्रोपर्टी को ब्लॉक किया जा सकता है। इसी के साथ आईसीसी अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों को अमेरिका में एंट्री भी नहीं दी जाएगी।

नेतन्याहू के वाशिंगटन दौरे के बाद कार्रवाई

ट्रंप की यह कार्रवाई कोर्ट पर तब हुई है जब इजराइल के पीएम नेतन्याहू वाशिंगटन के दौरे पर पहुंचे थे। उन्होंने और ट्रंप ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में बातचीत की और नेतन्याहू ने गुरुवार का कुछ समय कैपिटल हिल में सांसदों के साथ बैठक में बिताया। इसी के बाद अब ट्रंप ने उस कोर्ट पर बैन लगा दिया है जिसने नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था।

आईसीसी को मान्यता नहीं देते अमेरिका-इजराइल

बता दे कि अमेरिका और न ही इजराइल इस अदालत के सदस्य है और वो इसको मान्यता भी नहीं देते हैं। इजराइल की ही तरह अमेरिका भी कोर्ट के सदस्य देशों में शामिल नहीं है। कोर्ट के सदस्यों में 124 देश शामिल है। इससे पहले भी कोर्ट पर ट्रंप का चाबुक चला है। साल 2020 में, अफगानिस्तान पर अमेरिका सहित कई जगह से हुए युद्ध के चलते जांच शुरू की गई थी, लेकिन इस जांच के चलते ट्रंप ने वकील फतौ बेनसौदा पर बैन लगा दिया था. हालांकि, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन प्रतिबंधों को हटा दिया था।

दुनिया भर में आर्थिक मदद पहुँचाने वाली अमेरिकी एजेंसी यूएसएड बंद, जानें भारत के लिए क्यों अहम

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजेंसी यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले विश्व भर में यूएसएड एजेंसी के प्रत्यक्ष कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया उसके बाद उसपर “ताला जड़” दिया।

मंगलवार कोऑआनलाइन पोस्ट किए गए एक नोटिस में कर्मचारियों को घर लौटने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है। वाशिंगटन में भी यूएसएड के सैकड़ों कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और उनसे कहा गया है कि शहर में एजेंसी के कार्यालय सप्ताह के शेष दिनों के लिए बंद रहेंगे।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को पदभार संभालने के बाद अरबपति एलन मस्क को तकरीबन सभी अमेरिकी विदेशी सहायता की समीक्षा करने का निर्देश दिया था। ट्रंप की ओर से विदेशी सहायता पर रोक लगाए जाने के बाद हजारों यूएसएड कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया और दुनियाभर में इसके कार्यक्रम बंद कर दिए गए।

ट्रंप ने कहा- एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे

राष्ट्रपति ट्रंप और उनके सबसे शीर्ष के सलाहकार, अरबपति एलन मस्क यूएसएड के कड़े आलोचक रहे हैं। बीते सोमवार को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया कि इस एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और नाम और अन्य जानकारियां साझा नहीं कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन में सरकारी खर्च कटौती के लिए बने विभाग के अनौपचारिक प्रमुख एलन मस्क ने भी यूएसएड को बंद करने की बात कही थी। बीते एक सप्ताह में यूएसएड के दो शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और एजेंसी की वेबसाइट डाउन हो गई। यूएसएड पर भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता के आरोपों के अलावा मस्क ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

मस्क ने बताया आपराधिक संगठन

अपने मालिकाना हक वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर मस्क ने यूएसएड को 'बुराई', 'एक आपराधिक संगठन' और 'कट्टर वामपंथी राजनीतिक मनोवैज्ञानिक अभियान' (आम तौर पर षड्यंत्रकारी या बुरे कारनामों को ढंकने के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) कहा। सोमवार को एक्स पर एक लाइव स्ट्रीम के दौरान उन्होंने कहा, इस पूरे मामले से निजात पाने की जरूरत है। यह लाइलाज है... हम इसे बंद करने जा रहे हैं।

भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को भी मिली मदद

बता दें कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) अमेरिकी सरकार की एक वैधानिक निकाय है। यूएसएड पूरी दुनिया में गैर सरकारी संगठनों, सहायता ग्रुपों और ग़ैर लाभकारी संस्थाओं को अरबों डॉलर की मदद देती है। हालांकि, ये बात कम ही लोगों को पता है कि इस एजेंसी से मिलने वाला पैसा भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को जाता था। फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (FIF), जो कि हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (LET) का मुखौटा संगठन है। इस समूह को यूएसएड के माध्यम से फंडिंग मिलती थी। यह फाउंडेशन पाकिस्तान से संचालित होता है और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया गया है।

भारत को कितनी मदद मिलती है?

यूएसएड के जरिए भारत को भी मदद मिलती है। भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, स्वच्छ ऊर्जा, पानी और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में सहायता मिली है। खुद यूएसएड की वेबसाइट पर भारत को दी गई मदद के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, इसने पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता, पर्यावरण, क्लीन एनर्जी, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई।

यूएसएड की मदद से भारत में 8 कृषि विश्वविद्यालय, 14 इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, देश का पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी यूएसएड की मदद से स्थापित किया गया था।

पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली

लेकिन साल 2004 में सूनामी के दौरान भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सशर्त विदेशी मदद लेने की नीति में बदलाव किया, जिसके बाद यूएसएड से भारत को मिलने वाली मदद में अपेक्षाकृत कमी आई। हालांकि कोविड महामारी के बाद से भारत को मिलने वाली यूएसएड मदद में बढ़ोतरी देखी गई। अमेरिकी सरकार के फॉरेन असिस्टेंस पोर्टल के मुताबिक़, पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली। जबकि 2001 से लेकर अबतक भारत को 2.86 अरब डॉलर की मदद मिल चुकी है। पोर्टल के अनुसार, यूएसएड की ओर से भारत को 2022 में सबसे अधिक 22.82 करोड़ डॉलर की मदद मिली, 2023 में 17.57 करोड़ डॉलर और 2024 में 15.19 करोड़ डॉलर की मदद मिली। यूएसएड से मदद पाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर रहा है।

गाजा पर कब्जा करेगा अमेरिका, नेतन्याहू से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप का ऐलान, जानें क्या है प्लान?

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर बड़ा बयान देकर खलबली मचा दी है।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा पट्टी को लेकर चौंकाने वाला बयान दिया है। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका गाजा पट्टी पर अपना नियंत्रण करेगा। मंगलवार को नेतन्याहू के साथ बातचीत के बाद वॉइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने ये बड़ा बयान दिया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि हम गाजा का मालिकाना लेना चाहते हैं, इसके बाद गाजा में मौजूद खतरनाक बमों और अन्य हथियारों को नष्ट करने की जिम्मेदारी हमारी होगी। अमेरिका ध्वस्त या जर्जर हो चुकी इमारतों का पुनर्निर्माण कराएगा और गाजा का आर्थिक विकास करेगा। इससे गाजा में रोजगार और लोगों को घर मिलेंगे।

गाजा को अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र बनाने का प्लान

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि गाजा एक 'अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र' होगा। ट्रंप ने आगे बताया कि अमेरिका द्वारा पुनर्निर्माण पूरा करने के बाद दुनिया भर के लोग गाजा में रहेंगे। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी उनमें से हो सकते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह गाजा में सुरक्षा शून्य को भरने के लिए अमेरिकी सैनिकों को भेजने के लिए तैयार हैं, ट्रंप ने इससे इनकार नहीं किया।

सेना उतारने को तैयार ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि गाजा के पुनर्निर्माण में अगर अमेरिकी सेना की जरूरत पड़ी तो वे सेना को भी गाजा में तैनात करने पर विचार कर सकते हैं। ट्रंप ने कहा कि अगर यह जरूरी हुआ तो हम ऐसा करेंगे।

फिलिस्तीनियों को निकालने की बात

ट्रंप ने एक बार फिर दोहराया कि फिलिस्तीनियों को गाजा के 'नरक के गड्ढे' से निकाल दिया जाना चाहिए। ट्रंप ने कहा कि गाजा को एक ही लोगों के पुनर्निर्माण और कब्जे की प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहिए। उन्होंने कहा कि गाजा की आबादी को इंसानी दिल रखने वाले देशों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए और दावा किया कि कई लोग हैं जो ऐसा करना चाहते हैं।

नेतन्याहू ने किया ट्रंप की योजना का समर्थन

ट्रंप के साथ उस वक्त बेंजामिन नेतन्याहू भी बैठे थे और खुश हो रहे थे। जब ट्रंप यह सब बोल रहे थे, तब नेतन्याहू मुस्कुरा रहे थे। बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ट्रंप की इस योजना का समर्थन किया और इसे पर खुशी जाहिर की। नेतन्याहू ने कहा कि हम चाहते हैं कि गाजा भविष्य में अब कभी भी इस्राइल के लिए खतरा न बने, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप इसे एक नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं। ट्रंप का विचार अलग है और इससे गाजा का भविष्य बदल जाएगा। इस विचार पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। नेतन्याहू ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो इससे इतिहास बदल सकता है।

बैकफुट पर डोनाल्ड ट्रंप! कनाडा और मैक्सिको पर टैरिफ का फैसला टाला, इतने दिनों की दी राहत

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लगता है ग्लोबल टैरिफ वॉर टल गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा और मेक्सिको पर टैरिफ लगाने के फैसले को 30 दिन के लिए टाल दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मेक्सिको के बाद अब कनाडा को भी टैरिफ से 30 दिनों के लिए राहत दे दी है। सोमवार को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्रंप से फोन पर बातचीत के बाद बताया कि अमेरिका ने शनिवार को लगाए गए टैरिफ को 30 दिनों के लिए रोकने का फैसला किया है। इसके पहले अमेरिका ने मेक्सिको के खिलाफ भी टैरिफ पर 30 दिन की रोक लगाई थी। ट्रंप ने टैरिफ को रोकने का फैसला तब लिया है, जब दोनों देशों ने सीमा सुरक्षा और ड्रग्स की तस्करी को रोकने के लिए कदम उठाए हैं।

ट्रंप ने बताया कि ट्रूडो और शिनबाम के साथ उनकी बातचीत अच्छी रही। दोनों देशों ने अमेरिका के साथ बॉर्डर को सिक्योर करने पर सहमति जताई है। इसके बाद ट्रम्प ने दोनों देशों पर टैरिफ रोकने से जुड़े कार्यकारी आदेश पर साइन किए। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा कि ‘बहुत ही दोस्ताना बातचीत’ के बाद उन्होंने ‘एक महीने की अवधि के लिए टैरिफ को तुरंत रोकने पर सहमति जताई। ट्रंप ने कहा कि इस एक महीने के दौरान दोनों देशों के बीच और बातचीत होगी, ताकि एक ‘डील’ हासिल की जा सके।

फेंटेनाइल तस्करी पर रोक लगाने की दिशा में कदम

ट्रंप के फैसले के बाद ट्रूडो ने एक्स पर पोस्ट कर बताया कि टैरिफ पर रोक के बदले में कनाडा बॉर्डर सिक्योरिटी में भारी निवेश करेगा। साथ ही संगठित अपराध, फेंटेनाइल की तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए दोनों देश मिलकर कनाडा-यूएस ज्वाइंट स्ट्राइक फोर्स बनाएंगे। इसके अलावा कनाडा फेंटेनाइल जार (फेंटेनाइल की तस्करी रोकने वाला अधिकारी) की नियुक्ति भी करेगा। तस्करी में शामिल कार्टेल (समूह) को आतंकवादी समूहों की सूची में शामिल किया जाएगा। ट्रूडो ने इस आदेश पर साइन भी कर दिए हैं। कनाडा इस पर 200 मिलियन डॉलर खर्च करेगा।

टैरिफ से बचने के लिए मेक्सिको करेगा ये काम

मेक्सिको ने भी ट्रंप की चिंताओं को दूर करने के लिए बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिका में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए सीमा पर 10000 नेशनल गार्ड्स की तैनाती का आदेश दिया है।

इससे पहले शनिवार को ट्रंप ने घोषणा की थी कि वे कनाडा और मैक्सिको से इम्पोर्टेड सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर 10 फीसदी टैरिफ का प्रस्ताव भी किया। उन्होंने कनाडा से आयातित ऊर्जा संसाधनों पर भी 10 फीसदी टैरिफ लगाने की योजना बनाई थी।

शपथ के बाद से ही एक्शन में ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ के बाद कनाडा, मेक्सिको और चीन पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। उन्होंने 1 फरवरी को इससे जुड़े आदेशों पर साइन भी कर दिया था। ट्रंप के इस फैसले के बाद कनाडा ने भी 2 फरवरी को अमेरिका पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। इसमें अमेरिका से होने वाले 106 अरब डॉलर के निर्यात को शामिल किया गया था। दूसरी तरफ मेक्सिको ने भी जवाबी कार्रवाई की बात कही थी।

शुरू हुआ ट्रे़ड वॉरः ट्रंप ने कनाडा-चीन-मैक्सिको को दिया आयात शुल्क का झटका, मिला करारा जवाब

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मेक्सिको और चीन पर नए टैरिफ लगा दिए हैं। ट्रंप ने कनाडा, मेक्सिको और चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है, जो शनिवार शाम से लागू हो गया। शनिवार को उन्होंने कनाडा और मैक्सिको से आयात होने वाले सामानों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने के आदेश पर साइन किया। ट्रंप ने चीन से आने वाले सामानों पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगाया है। अमेरिका के इस फैसले से एक ट्रे़ड वॉर (व्यापार युद्ध) छिड़ गया है। ट्रेड के क्षेत्र में ये तनातनी आने वाले दिनों में और ज्यादा बढ़ने जा रही है। ऐसा होता है तो सालाना 2.1 ट्रिलियन डॉलर ( करीब 181.72 लाख करोड़ रुपए) से अधिक का कारोबार प्रभावित होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से आने वाले समान पर टैरिफ और चीनी प्रोडक्ट्स पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का फैसला किया है। ट्रंप के इस ऐलान का कई देशों में विरोध किया जा रहा है और कनाडा, मेक्सिको से लेकर चीन तक ने अमेरिका को करारा जवाब दिया है।

कनाडा- मेक्सिके ने दिखाए कड़े तेवर

कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि कनाडा भी अमेरिकी सामानों पर 25% शुल्क लगाएगा। ट्रूडो ने ऐलान किया कि ओटावा भी इसी तरह जवाब देगा और 155 बिलियन डॉलर तक के अमेरिकी आयातों पर 25 फीसद टैरिफ लगाएगा। ट्रूडो ने कहा कि इन टैरिफ में अमेरिकी बीयर, वाइन और बॉर्बन के साथ-साथ फल और फलों के जूस भी शामिल होंगे, जिसमें ट्रम्प के गृह राज्य फ्लोरिडा का संतरे का जूस भी शामिल है। कनाडा कपड़ों, खेल के प्रोडक्ट और घरेलू उपकरणों सहित अन्य समान को भी लक्षित करेगा।

अमेरिकी सरकार के मुताबिक 2022 में कनाडा देश के सामानों का सबसे बड़ा खरीदार था, जिसकी खरीद 356.5 बिलियन डॉलर है। अनुमान है कि 2023 में हर दिन 2.7 बिलियन डॉलर का सामान और सर्विस अमेरिका-कनाडा के बीच हुआ है।

इसी तरह मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने भी घोषणा की कि उन्होंने अपने अर्थव्यवस्था मंत्री को मैक्सिकन निर्यात पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए व्यापक शुल्कों के विरुद्ध नई टैरिफ और गैर-टैरिफ नीतियां लागू करने का आदेश दिया है।

चीन ने जताया विरोध

चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाने के अमेरिकी आदेश को लेकर चीन ने तीखा विरोध दर्ज कराया है। रविवार को वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि चीन विश्व व्यापार संगठन में मुकदमा दायर करेगा और अपने हितों की रक्षा के लिए उचित जवाबी कदम उठाएगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने कहा, अमेरिका की ओर से एकतरफा टैरिफ वृद्धि विश्व व्यापार संगठन के नियमों का गंभीर उल्लंघन है। यह कदम न केवल अमेरिका के अपने मुद्दों को हल करने में नाकाम है बल्कि चीन-अमेरिका के सामान्य आर्थिक और व्यापार सहयोग को भी बाधित करता है। चीन अमेरिकी फैसले का कड़ा विरोध करता है और इससे बेहद असंतुष्ट है।

भारत के बजट से अमेरिका को क्या होगा फायदा? ट्रंप के 'टैरिफ वॉर' के बीच सीतारमण का जवाब

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को लोकसभा में बजट पेश किया। इस बजट में मध्य वर्ग को बड़ी राहत दी गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती और विकास दर पर उठ रहे सवालों के बीच इस बजट में अलग अलग वर्ग को राहत देने की कोशिश दिखाई दे रही है। इन सबके बीच देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक ऐसा भी ऐलान किया है, जो डोनाल्ड ट्रंप को काफी खुश कर सकता है। जी हां, सरकार ने कुछ कस्टम ड्यूटी कम की है। जिसका असर अमेरिका से होने वाले निर्यात पर पड़ता हुआ दिखाई दे सकता है।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने रविवार को कहा कि मोटरसाइकिल और स्वाद बढ़ाने वाले कृत्रिम तत्व जैसे प्रोडक्ट्स पर बजट में कस्टम ड्यूटी घटाई गई है। इससे अमेरिकी निर्यात को लाभ होगा। जीटीआरआई ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत की‘टैरिफ किंग’के रूप में आलोचना करने के बाद देश के बजट ने कई उत्पादों पर महत्वपूर्ण शुल्क कटौती की गई है। इनमें से कई प्रोडक्ट्स अमेरिकी एक्सपोर्ट को फायदा पहुंचाने वाले हैं। जीटीआरआई ने बयान में कहा,‘‘टेक्नोलॉजी, व्हीकल, इंडस्ट्रीयल रॉ मटेरियल और स्क्रैप के आयात पर शुल्क कटौती के साथ भारत व्यापार को सुविधाजनक बनाने की दिशा में कदम उठाता दिख रहा है।

बदलेगा ट्रंप का नजरिया?

डोनाल्ड ट्रंप हमेशा भारत की टैरिफ किंग के तौर पर आलोचना करते हैं, लेकिन बजट ने कई उत्पादों पर महत्वपूर्ण शुल्क कटौती से अमेरिकी निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। उम्मीद की जा रही है कि बजट में इस ऐलान के बाद ट्रंप का नजरिया बदलेगा।

बता दें कि अप्रैल-नवंबर, 2024-25 के दौरान अमेरिका 82.52 अरब डॉलर व्यापार के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। इसके पहले 2021-24 के दौरान अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था।

इन चीजों से शुल्क घटी

फ्रोजेन मछली पेस्ट (सुरीमी) और जलीय चारे के लिए मछली हाइड्रोलाइजेट पर शुल्क घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है. इन पर अभी तक लागू शुल्क क्रमश: 30 प्रतिशत और 15 प्रतिशत था. रसायन क्षेत्र में, पिरिमिडीन और पिपरेजीन यौगिकों पर शुल्क को मौजूदा 10 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया गया है. इनका उपयोग खाद्य और पेय पदार्थों को एक निश्चित स्वाद देने के लिए किया जाता है. इसी तरह कम कैलोरी वाले यौगिक सोर्बिटोल पर शुल्क मौजूदा 30 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके अलावा, प्रमुख खनिजों (लिथियम, कोबाल्ट, सीसा, जस्ता, तांबा) और कोबाल्ट पाउडर के अपशिष्ट और स्क्रैप पर सीमा शुल्क खत्म कर दिया गया है. मंत्रालय ने कहा कि इन उपायों से आयात निर्भरता कम होगी, उत्पादन लागत कम होगी और प्रमुख उद्योगों में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी

ट्रंप भारत के दोस्त या दुश्मन? जानें विदेश मंत्री एस जयशंकर का जवाब

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बन चुके हैं। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप की वापसी के बाद से ही दुनियाभर में हड़कंप मचा हुआ है। ट्रंप ने भारत का नाम लेकर भी धमकी दी है। ऐसे में भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर खुलकर बात की है।

जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों का उल्लेख करते हुए डोनाल्ड ट्रंप को लेकर अहम बात कही। जयशंकर ने ट्रंप को एक 'अमेरिकी राष्ट्रवादी' बताया। विदेश मंत्री जयशंकर दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एक कार्यक्रम में मौजूद थे। इस दौरान ट्रंप भारत के मित्र हैं या शत्रु, इस बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए जयशंकर ने कहा कि मैंने हाल ही में उनके (ट्रंप के) शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था और हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया गया। मेरा मानना है कि वह एक अमेरिकी राष्ट्रवादी हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि ट्रंप की नीतियां वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की विदेश नीति राष्ट्रीय हित से निर्देशित होती रहेगी।

जयशंकर ने कहा, ट्रंप बहुत सी चीजें बदलेंगे। हो सकता है कि कुछ चीजें उम्मीद के अनुरूप नहीं हों, लेकिन हमें देश के हित में विदेश नीतियों के संदर्भ में खुला रहना होगा। कुछ मुद्दे हो सकते हैं जिन पर हम एकमत न हों, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे होंगे जहां चीजें हमारे दायरे में होंगी। जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंधों पर भी जोर देते हुए कहा क‍ि अमेरिका के साथ हमारे संबंध मजबूत हैं और मोदी के ट्रंप के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं।

भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव पर क्या बोले

इस दौरान, एस जयशंकर ने भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और देश के बारे में बदलती धारणाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा, यहां तक कि अब गैर-भारतीय भी खुद को भारतीय कहते हैं, उन्हें लगता है कि इससे उन्हें विमान में सीट मिलने में मदद मिलेगी।

खुद के राजनीति में आने पर क्या कहा?

डॉ. एस. जयशंकर ने शिक्षा क्षेत्र और कूटनीति से राजनीति में आने का उल्लेख करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नौकरशाह बनूंगा। राजनीति में मैं अचानक आ गया, या तो इसे भाग्य कहें, या इसे मोदी कहें। उन्होंने (प्रधानमंत्री मोदी) मुझे इस तरह से आगे बढ़ाया कि कोई भी मना नहीं कर सका। उन्होंने रेखांकित किया कि विदेश में रहने वाले भारतीय अभी भी समर्थन के लिए अपनी मातृभूमि पर निर्भर हैं और कहा, जो भी देश के बाहर जाते हैं, वे हमारे पास ही आते हैं। बाहर हम ही रखवाले हैं।

अंतरिक्ष में फंसी सुनीता विलियम्स चलना-फिरना भूलीं, मस्क पर टिकी ट्रंप की उम्मीद

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भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विल्मोर पिछले 8 महीनों से अंतरिक्ष में फंसे हैं। उनके बोइंग स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट में तकनीकी समस्याएं आने के बाद दोनों स्पेस में ही अटक गए। हालांकि, उन्हें लाने की कई बार कोशिश की गई लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है। इस बीच सुनीता विलियम्स के एक बयान ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। अंतरिक्ष में 237 दिनों से फंसी भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने कहा कि वह याद करने की कोशिश कर रही हैं कि चलना कैसा होता है।

एक मैगजीन को दिए गये इंटरव्यू में सुनीता विलियम्स ने कहा है, कि वो काफी बेसब्री से धरती पर लौटने का इंतजार कर रही हैं। इस दौरान उन्होंने कहा, कि वो अब चलना तक भूल गईं हैं। उन्होंने कहा, कि वो याद कर रही हैं, कैसे चलती थीं। उन्होंने कहा, मैं स्पेस स्टेशन में काफी समय से हूं और मैं यह याद करने की कोशिश कर रही हूं, कि चलना कैसा होता है। मैं नहीं चली हूं। मैं नहीं बैठी हूं। मैं नहीं लेटी हूं। आपको ऐसा करने की जरूरत नहीं है। आप बस अपनी आंखें बंद कर सकते हैं और जहां आप हैं, वहीं तैर सकते हैं।

मस्क ने कहा वापसी का काम शुरू

इस हालात में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मशहूर कारोबारी और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क से दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाने में मदद मांगी है। एलन मस्क ने कहा है कि उन्होंने अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी के लिए काम शुरू कर दिया है। एलन मस्क ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, @ ने से पर फंसे 2 अंतरिक्ष यात्रियों को जल्द से जल्द घर लाने के लिए कहा है। हम ऐसा करेंगे।"

ट्रंप ने क्या कहा?

वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा, कि स्पेसएक्स "जल्द ही" दोनों अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाने के लिए एक मिशन शुरू करेगा, जो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर महीनों से फंसे हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ पर कहा कि "एलन जल्द ही कोशिश शुरू करेंगे और उम्मीद हैं, कि सभी सुरक्षित होंगे। शुभकामनाएं एलन!!!"

अंतरिक्ष में कैसे फंसी सुनीता विलियम्स?

बता दें, कि सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर पिछले साल 5 जून को बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन गये थे, लेकिन बोइंग स्पेसक्राफ्ट में टेक्निकल दिक्कतें आ गईं और दोनों अंतरिक्षयात्री वहीं फंस गये। सुनीता विलियम्स को सिर्फ 10 दिनों तक ही स्पेस स्टेशन में रहना था, लेकिन पिछले 8 महीनों से वो वहीं फंसी हुई हैं। नासा और बोइंग ने स्पेसक्राफ्ट को ठीक करने की काफी कोशिश की, लेकिन आखिरकार फैसला लिया गया, कि स्पेसक्राफ्ट को वैज्ञानिकों के साथ धरती पर लाना काफी जोखिम भरा कदम होगा।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी जिसे खत्म करने जा रही ट्रंप सरकार, क्या भारत पर भी होगा असर?

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डोनाल्‍ड ट्रंप ने सोमवार को अमेरिका के 47वें राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के बाद अपने संबोधन में कई बड़े ऐलान किये और इसके बाद कई एग्‍जीक्‍यूटिव आदेशों पर हस्‍ताक्षर किए। दुनिया के कई देशों के लिए यह आदेश मुसीबत लेकर आए हैं तो खुद उनके ही देश में ऐसे आदेशों ने बहुत से लोगों की परेशान बढ़ा दी है। नागरिकता को लेकर डोनाल्‍ड ट्रंप के एक एग्‍जीक्‍यूटिव आदेश ने अमेरिका में रहने वाले कई देशों के लोगों के साथ लाखों भारतीयों के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है। इस आदेश के मुताबिक, यदि किसी बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के नागरिक नहीं हैं और बच्‍चे का अमेरिका में जन्‍म होता है तो भी उसे नागरिकता नहीं दी जाएगी।

अमेरिका के कानून के मुताबिक अब तक वहां जन्म लेने वाला हर शख्स अमेरिकी नागरिक होता है। अमेरिका में यदि किसी बच्‍चे का जन्‍म होता है तो उसे स्‍वत: ही अमेरिका का नागरिक मान लिया जाता है। फिर चाहे बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के हों या नहीं। साथ ही यदि बच्‍चे के माता-पिता अवैध रूप से यहां पर आए हैं और बच्‍चे का जन्‍म अमेरिका में होता है तो भी उसे अमेरिकी नागरिक माना जाएगा। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी

यह जानने से पहले की ट्रंप ने बर्थराइट पॉलिसी में किन चीजों को बदलने की मांग की है यह जानना जरूरी है कि देश की बर्थराइट पॉलिसी क्या है? अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन जोकि 1868 में किया गया, उसके मुताबिक, देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता दी जाती है। इस संशोधन का मकसद पूर्व में देश में गुलाम बनाए गए व्यक्तियों को नागरिकता और समान अधिकार देना था।

संविधान के मुताबिक, अमेरिका में जिन सभी बच्चों का जन्म हुआ उनके अधिकार क्षेत्र के अधीन वो अमेरिका और जिस भी राज्य में पैदा हुए वहां के नागरिक बन जाते हैं।

इस बर्थराइट पॉलिसी में विदेशी राजनयिकों के बच्चों को छोड़ कर, अमेरिका में पैदा हुए लगभग सभी व्यक्तियों को शामिल किया गया है। हालांकि, जहां संविधान देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता देने की बात करता है, वहीं अब ट्रंप के प्रशासन का मकसद इस खंड को फिर से परिभाषित करना है। ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि जन्मजात नागरिकता में गैर-दस्तावेजी आप्रवासियों के बच्चों को बाहर रखा जाना चाहिए और उन्हें जन्मजात नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।

क्‍या है ट्रंप का आदेश?

अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने कहा है कि उनकी सरकार अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वाले लोगों के अमेरिका में बच्‍चों को नागरिक नहीं मानेगी। ट्रंप ने फेडरल एजेंसी को आदेश दिया है कि वह 30 दिनों के बाद ऐसे बच्‍चों को नागरिकता दस्‍तावेज जारी न करे। ट्रंप काफी वक्‍त से यह मुद्दा उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि वैध स्थिति के बिना आप्रवासियों के बच्चों को अमेरिका की नागरिकता प्रदान करना उन्हें स्‍वीकार्य नहीं है।

किन पर ज्यादा असर

अमेरिका के इमिग्रेशन नियमों में इस बड़े बदलाव का असर एच-1बी, एच-4 या एफ-1 वीजा पर रह रहे माता-पिता के बच्चों पर पड़ेगा। ये नियम उन बच्चों पर लागू होगा जिनके माता-पिता ग्रीन कार्ड होल्डर या अमेरिकी नागरिक नहीं हैं। इस फैसले से रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे दस लाख से अधिक भारतीयों पर सीधा असर पड़ेगा। इनमें से कई लोग तो पिछले कई दशकों से ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं।

भारत पर असर

अमेरिका के जनसंख्‍या ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की संख्‍या करीब 50 लाख है जो कि वहां की जनसंख्या का करीब 1.47 फीसदी है। इनमें से महज 34 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो कि अमेरिका में पैदा हुए हैं। शेष दो तिहाई आप्रवासी हैं। अमेरिका में काम कर रहे अधिकतर भारतीय वहां एच1-बी विजा के आधार पर काम कर रहे हैं। इस दौरान वहां पैदा होने वाले भारतीय मूल के बच्चों को अब स्वत: अमेरिका की नागरिकता नहीं मिल पाएगी। ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार कर रहे 10 लाख से ज्‍यादा भारतीय भी इस फैसले से प्रभावित होंगे।

डोनाल्ड ट्रंप का भारत के लिए महत्व: रणनीतिक सहयोग, व्यापारिक चुनौतियाँ और कूटनीतिक अवसर

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Donald Trump (President of USA)

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए पहलू सामने आए, जो दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों के संदर्भ में महत्वपूर्ण थे। ट्रंप की विदेश नीति और उनकी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस लेख में हम यह देखेंगे कि ट्रंप का भारत के लिए क्या मतलब था, उनके कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते कैसे विकसित हुए, और उनके निर्णयों के परिणामस्वरूप भारत को किन चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ा।

भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंध

1. चीन के खिलाफ साझा चिंता

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत साझेदारी ने चीन को दोनों देशों के लिए साझा चिंता का विषय बना दिया। भारत और अमेरिका की रणनीतिक सहयोगिता का मुख्य ड्राइवर चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय प्रभाव था।

  - क्वाड का गठन इस साझेदारी का प्रमुख हिस्सा था, जो चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देता है।

  - ट्रंप ने चीन के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया, जिससे भारत को इसके मुकाबले अपनी स्थिति को मजबूती से पेश करने का अवसर मिला।

2. सुरक्षा और रक्षा सहयोग

  - भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में भी वृद्धि हुई, विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग में। ट्रंप प्रशासन के दौरान, अमेरिकी हथियारों और रक्षा प्रणाली के साथ भारत के सहयोग को बढ़ावा मिला।

  - डोकलाम, बालाकोट और गलवान जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं पर भारत और अमेरिका ने एक साथ काम किया, जो उनके सहयोग को और सुदृढ़ करता है।

3. पार्टी और वैचारिक संरेखण

  - नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे, और दोनों के बीच एक विचारधारात्मक समानता थी, जो उनके कार्यों और नीतियों में भी दिखाई दी।

  - ट्रंप ने मोदी के नेतृत्व में भारत को एक अहम साझेदार माना और दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए।

चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ

1. अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितता

  - ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में अस्थिरता और अनिश्चितता देखी गई। उनके अप्रत्याशित निर्णय और रणनीतियाँ, जैसे कि कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बाहर निकलना, भारत के लिए कुछ मुद्दों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते थे।

  - उदाहरण के तौर पर, इंडो-पैसिफिक नीति पर ट्रंप का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं था, और इसमें कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हुए।

2. व्यापारिक असंतुलन और टैरिफ़ नीति

  - ट्रंप के दृष्टिकोण में व्यापारिक असंतुलन को लेकर चिंता थी, और भारत से संबंधित व्यापार अधिशेष के कारण अमेरिका ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाए जाने की संभावना जताई।

  - ट्रंप का यह मानना था कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार में उचित स्थान नहीं दिया और इसका फायदा उठाया। यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि भारत को अपने निर्यात को संतुलित करने और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश और भारतीय कंपनियाँ

  - ट्रंप का मानना था कि भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश किए बिना अमेरिकी निवेश को आकर्षित कर रही हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और इस निवेश के परिणामस्वरूप हजारों नौकरियाँ पैदा हुई थीं।

  - भारत को अपने निवेश और व्यापारिक रणनीति को सही तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी ताकि अमेरिका में भारतीय योगदान को सही रूप से पहचाना जा सके।

भारत के लिए लाभकारी रणनीतियाँ

1. भारत के लिए उपयुक्त कूटनीतिक संबंध

  - भारत के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह राजनीतिक और रणनीतिक संरेखण बनाए रखे, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय कूटनीति को सही दिशा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता था।

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत को अपने कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए अपनी राजनीतिक समझ और कूटनीतिक योग्यता का इस्तेमाल करना पड़ा।

2. चीन के खिलाफ एकजुटता

  - चीन के बढ़ते प्रभाव और उसके खिलाफ साझा चिंता ने भारत और अमेरिका को एकजुट किया। यह साझा रणनीति दोनों देशों के लिए फायदेमंद रही, विशेषकर सुरक्षा, तकनीकी और आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्रों में।

3. व्यापार और निवेश संबंधों का संतुलन

  - भारत को यह स्पष्ट करना था कि मेक इन इंडिया और मेड इन अमेरिका के बीच कोई टकराव नहीं है। अगर भारत ने सही तरीके से अपने व्यापारिक मुद्दों को हल किया, तो वह ट्रंप प्रशासन को एक राजनीतिक जीत दे सकता था और अमेरिका के साथ व्यापारिक संतुलन बना सकता था।

4. अमेरिका में निवेश का विस्तार

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और यह स्थिति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर थी। भारत को यह सुनिश्चित करना था कि उसके निवेश के प्रभाव को उचित तरीके से अमेरिका में समझा जाए और उसे पहचान मिले।

भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध

1. व्यापारिक संघर्ष

  - भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा व्यापारिक टैरिफ़ था, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने की संभावना जताई थी। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती थी, क्योंकि इसे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करने से बचना था।

  

2. आवश्यक रणनीतिक सहयोग

  - भारत को अमेरिका के साथ अपनी व्यापार नीति को और मजबूत करने के लिए अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित करना था। इस संदर्भ में, दोनों देशों के व्यापार संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक राजनीतिक इच्छाशक्ति और लचीलेपन की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश का मौका

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश करके लाभ कमा रही थीं, लेकिन यह भारत के लिए एक अनकहा पक्ष था। भारतीय निवेश को अमेरिकी कूटनीति में ज्यादा प्रमुखता से उठाना था ताकि इसके महत्व को समझा जा सके।

भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य

भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में चुनौती और अवसर दोनों थे। ट्रंप प्रशासन के दौरान, भारत ने अपनी कूटनीति, व्यापारिक रणनीतियों और सुरक्षा सहयोग को मजबूती से पेश किया। हालांकि, कुछ मुद्दों पर अनिश्चितता और संघर्ष रहा, लेकिन साझा रणनीतिक हित और व्यक्तिगत कूटनीतिक संबंधों ने दोनों देशों के बीच सहयोग को बनाए रखा। भारत को ट्रंप प्रशासन के अंतर्गत अपनी रणनीति को और मजबूती से आकार देना होगा, खासकर व्यापारिक और निवेश संबंधों में।