भीलवाड़ा में 'असली बेटे' का फर्ज: मुस्लिम युवक ने हिंदू 'मां' की चिता को दी मुखाग्नि
भीलवाड़ा, राजस्थान: आस्था और इंसानियत की एक ऐसी मिसाल सामने आई है, जिसने हर किसी की आंखें नम कर दी हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा में 67 साल की एक हिंदू महिला की मौत पर उनके 42 वर्षीय मुस्लिम 'बेटे' ने हिंदू रीति-रिवाजों से चिता को मुखाग्नि दी. यह घटना दिखाती है कि रिश्ते धर्म या मजहब से परे होते हैं, और इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है.
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यह कहानी है 67 वर्षीय शांति देवी और 42 वर्षीय असगर अली की. जंगी मोहल्ले में छोटी सी दुकान चलाने वाले असगर अली ने शांति देवी के लिए वह सब किया, जो शायद एक सगा बेटा भी नहीं कर पाता. दोनों परिवारों का रिश्ता 30 साल पुराना था, जो समय के साथ गहराता गया. असगर अली ने बताया कि उनके माता-पिता और शांति देवी के माता-पिता मेलों में छोटी-मोटी दुकानें लगाते थे, जिससे वे एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे.
एक परिवार की तरह रहे असगर और शांति देवी
2010 में पति के देहांत के बाद शांति देवी अपने बेटे के साथ असगर अली के पड़ोस में आकर रहने लगीं. दोनों परिवार एक ही मकान में किराए पर रहते थे. 2017 में असगर के पिता की मौत के बाद शांति देवी ने उनकी मां का एक बहन की तरह साथ दिया. लेकिन, 2018 में एक दर्दनाक हादसे ने शांति देवी से उनके बेटे को छीन लिया. एक जंगली जानवर के हमले में उनके बेटे की मौत हो गई. इस दुख की घड़ी में असगर का परिवार उनका सहारा बना.
असगर अली ने बताया, "2018 के बाद से शांति मां हमारे ही साथ रहने लगीं. वो मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करती थीं." असगर भी उन्हें 'मासी मां' कहकर बुलाते थे. दो साल पहले जब असगर की अपनी मां का निधन हुआ, तो शांति देवी ने उन्हें अकेला महसूस नहीं होने दिया. वह हर वक्त असगर की चिंता करतीं, उनके खाने-पीने और कपड़े धोने तक का ध्यान रखती थीं. असगर कहते हैं कि शायद उनकी अपनी मां ने भी उनका इतना ख्याल नहीं रखा, जितना शांति मां ने रखा.
"हर जन्म में मुझे ऐसी ही मां मिले"
असगर बताते हैं कि शांति मां के सम्मान में उन्होंने अपने घर में मांसाहार खाना और बनाना बंद कर दिया था. ईद और दिवाली भी दोनों परिवार साथ-साथ मनाते थे. कुछ समय से शांति देवी बीमार चल रही थीं, और हाल ही में उनका निधन हो गया. असगर ने बिना किसी हिचकिचाहट के हिंदू रीति-रिवाजों से उनकी चिता को मुखाग्नि दी. अब वह उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अस्थियां प्रयागराज के त्रिवेणी संगम या चित्तौड़गढ़ के मातृकुंडिया में विसर्जित करेंगे.
आंखों में आंसू लिए असगर अली ने कहा, "मां के बिना अब मैं लावारिस और बिल्कुल अकेला हो गया हूं." उन्होंने भावुक होकर कहा, "दुआ है मुझे हर जन्म में ऐसी ही मां मिले."
यह कहानी भीलवाड़ा के लोगों और सोशल मीडिया पर खूब सराहना बटोर रही है, जो दिखाती है कि धर्म से बढ़कर इंसानियत और रिश्तों की भावना है.
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