देवघर-मेला क्षेत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से श्रद्धालुओं के थकान को भक्तिमय मनोरंजन से किया जा रहा है दूर।
देवघर: राजकीय श्रावणी मेला, 2025 के मद्देनजर बाबा नगरी आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के साथ-साथ भक्तिमय मनोरंजन का भी उचित प्रबंध किया गया है। इसी कड़ी में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के सफल आयोजन को लेकर बाबा बैद्यनाथ धाम में चार सांस्कृतिक मंच बनाए गए हैं, जो कि दुम्मा, कोठिया बस स्टैंड, बाघमारा बस स्टैंड, आध्यात्मिक भवन, सरासनी एवं बीएड कॉलेज शामिल हैं। इसके अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से श्रद्धालुओं के भक्तिमय मनोरंजन का खयाल रखा जा रहा है, जिससे भीड़ नियंत्रित करने में भी काफी मदद मिल रही है। इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए स्थानीय कलाकारों द्वारा श्रद्धालुओं को भक्तिमय संगीत के साथ साथ भगवान शिव की कथा, भजन व शिव तांडव की प्रस्तुति दी जा रही है। ताकि बाबा बैद्यनाथ के श्रद्धालु को हर्ष, आनंद, उल्लास और प्रसन्नता की अनुभूति प्राप्त हो सकें।
देवघर-श्रावणी मेला को लेकर बनाये गए टेंट सीटी में श्रद्धालुओं की सुख-सुविधा हेतु व्यापक इंतजाम-उपायुक्त
देवघर: राजकीय श्रावणी मेला, 2025 शुरू होते हीं देवघर में देवतुल्य श्रद्धालुओं का आगमन हो रहा है। ऐसे में कई बार यहां के होटलों, धर्मशालाओं इत्यादि के पूरी तरह से भर जाने से श्रद्धालुओं को आवासन हेतु इधर-उधर घुमते देखा गया है और उनकी इसी कष्ट को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार के द्वारा देवघर में निःशुल्क टेंट सिटी का निर्माण कराया गया है, ताकि यहाँ आए कांवरियों को आवासन संबंधी परेशानियों का सामना न करना पड़े। इसके अलावे इस परियोजना के अंतर्गत जिला प्रशासन ने इस वर्ष यहां आने वाले कांवरियों हेतु बाघमारा एवं कोठिया में दो चिन्हित स्थलों पर टेंट सिटी का निर्माण कराया है। इन टेंट सिटी में थके-हारे कांवरियों को राहत मिलेगी, जिन्हें भीड़ की वजह से होटलों व धर्मशालााओं में जगह नहीं मिल पाता है। ऐसे में वे यहाँ आकर निश्चित होकर आराम कर सकेंगे। साथ हीं स्वच्छ देवघर, स्वस्थ्य देवघर अभियान को ध्यान में रखते हुए टेंट सिटी में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा गया है। एवं सभी मुलभूत सुविधाएं यथा-शौचालय, बिजली, पानी, पंखा, बेड, मोबाईल चार्जिंग आदि उपलब्ध करायी गयी है। वहीं इन टेन्ट सिटी में आवासन हेतु कांवरियों को किसी प्रकार का शुल्क चुकाने की आवश्यकता नहीं है, ये बिल्कुल निःशुल्क हैं। इसके अतिरिक्त टेंट सिटी में रहने वाले कांवरियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए यहां सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने के साथ-साथ सी0सी0टी0भी0 कैमरा के माध्यम से सभी टेंट सिटी में हो रही गतिविधियों की निगरानी भी की जा रहीे है। वहीं टेंट सिटी के संदर्भ में टेंट सिटी में विश्राम करने वाले कटिहार (बिहार) के उपेन्द्र, निवेश, राजेश, मुकेश व आनंद बम से जब टीम पीआरडी के सदस्यों ने बात की तो उन्होंने कहा कि सरकार ने यह बहुत अच्छा कदम उठाया है। इसमें हमें होटल जैसा हीं आराम निःशुल्क उपलब्ध हो रहा है, जिससे हमारे व्यय में भी कमी आयी है। साथ हीं उन्होंने एक हीं स्थान पर निःशुल्क इतनी अच्छी सुविधाएं देने के लिए झारखण्ड सरकार व जिला प्रशासन के प्रति आभार प्रकट किया।
शिक्षक संकुल कोदई संगोष्ठी का किया गया आयोजन
संजीव सिंह बलिया!शासन के निर्देशानुसार प्रदेश के सभी परिषदीय विद्यालयों के शैक्षणिक स्टाफ की शिक्षक संकुल संगोष्ठी का आयोजन न्याय पंचायत स्तर पर माह के तृतीय मंगलवार को प्रतिमाह किया जाता है। इसके अन्तर्गत विकास खण्ड नगरा के न्याय पंचायत कोदई के प्राथमिक विद्यालय कोदई में जुलाई माह की शिक्षक संकुल संगोष्ठी का आयोजन नगरा ब्लाक के खण्ड शिक्षा अधिकारी रामप्रताप सिंह के दिशा निर्देश में नोडल शिक्षक संकुल दयाशंकर जी के दिशा-निर्देशन में किया गया। संगोष्ठी का श्रीगणेश नोडल शिक्षक संकुल ने मां सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण व उनके सम्मुख धूप-दीप प्रज्ज्वलित करके किया। शिक्षक संकुल आशीष श्रीवास्तव ने न्याय पंचायत कोदई के सभी शैक्षणिक स्टाफ की ओर से नोडल शिक्षक का माल्यार्पण करके स्वागत करने के साथ नवचयनित शिक्षक संकुल के कार्य व पदेन दायित्वों से अवगत कराया। तत्पश्चात शिक्षक संकुल दयाशंकर जी ने इस माह के एजेंडा के अनुसार विद्यालयों द्वारा किये जाने वाले प्रमुख कार्यों जैसे नवीन नामांकन वृद्धि, विद्यालय में पूरे समय तक बच्चों व शिक्षकों के ठहराव, गुणवत्तापूर्ण मिड डे मील, फल, दूध आदि के वितरण, समय-सारणी का प्रयोग करते हुए कक्षा शिक्षण, वृक्षारोपण कार्यक्रम, इको क्लब के गठन के साथ विभिन्न शैक्षणिक क्लबों के गठन व उसके प्रति किये जाने वाले कार्यों की समय से पूर्णता, समस्त विद्यालयी कार्यों के विवरण को प्रेरणा पोर्टल पर अपलोड करने, बच्चों के ड्रेस,जूता- मोज़ा, बैग, स्वेटर आदि की धनराशि को उनके अभिभावकों के खाते में समय से भिजवाने हेतु बच्चों के रजिस्ट्रेशन व डी.बी.टी. कार्य को पूरा करना, यू-डायस सम्बन्धी अन्य कार्यों की पूर्णता, छात्र प्रोफाइल व शिक्षक प्रोफाइल पर कार्य, दीक्षा, निपुण प्लस, मिशन कर्मयोगी पर योग प्रशिक्षण, संचारी रोगों व विषैले जीव-जंतुओं से बचाव व जागरुकता, विद्यालयों में जल भराव व जल निकास की समस्या से निजात, विद्यालय परिसर व शौचालय की साफ-सफाई, स्वच्छ पेयजल आपूर्ति आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई तथा इसके प्रति शिक्षक समुदाय को जागरूक व संवेदनशील बनने की प्रेरणा दी गई! क्रमवार शिक्षक संकुल संतोष कुमार गुप्ता,आशुतोष सिंह,आशीष श्रीवास्तव, पुष्पांजलि श्रीवास्तव,रामकृष्ण मौर्य, द्वारा शासन द्वारा प्रेषित जुलाई माह के एजेंडा पर विन्दुवार चर्चा-परिचर्चा करते हुए शिक्षकों से कक्षा शिक्षण में कराई जाने वाली गतिविधियों का डेमो भी प्रस्तुत कराया गया। इसके बाद नोडल शिक्षक द्वारा सभी शैक्षणिक स्टाफ की ओर से इसी न्याय पंचायत के प्राथमिक विद्यालय कोदई के प्रधानाध्यापक जनार्दन तिवारी रहे वर्तमान में समायोजन उच्च प्राथमिक विद्यालय नगरा में हो जाने पर माला पहनाकर सम्मानित किया गया।बैठक की अध्यक्षता न्याय पंचायत के उच्च प्राथमिक विद्यालय खरुआंव के प्रधानाध्यापिका व पूर्व नोडल शिक्षक कृष्णा देवी ने किया! जिन्होंने सभी शिक्षकों को अपने दायित्व व कर्तव्य के प्रति सजग व सहज रहने की बात कही। संगोष्ठी स्थल प्राथमिक विद्यालय कोदई की प्रप्रधानाध्यापक आशीष कुमार श्रीवास्तव द्वारा बैठक में उपस्थित सभी शैक्षणिक स्टाफ द्वारा पूर्ण मनोयोग के साथ सहयोग करने और संगोष्ठी को सफल बनाने हेतु आभार व्यक्त किया गया। राष्ट्रगान तथा जलपान वितरण के पश्चात अध्यक्ष महोदय की अनुमति से आज की शिक्षक संकुल संगोष्ठी का समापन किया गया। तत्पश्चात सभी शिक्षक संकुल सदस्यों द्वारा माह जुलाई का डीसीएफ भरकर सिंक किया गया। संगोष्ठी में समस्त परिषदीय विद्यालयों के प्रधानाध्यापकगण शिक्षक/ शिक्षामित्र/अनुदेशक ने पूरे समय तक संगोष्ठी संचालन में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रस्तुत किये।
मेला क्षेत्र में 31 सूचना सह सहायता केन्द्रों में प्रतिनियुक्त सूचना सह सहायता कर्मियों को अनुशासन के साथ अपने कर्तव्यों का कर रहे हैं निवर्हन।
देवघर: उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी नमन प्रियेश लकड़ा द्वारा जानकारी दी गयी कि राजकीय श्रावणी मेला के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में 31 सूचना सह सहायता केन्द्र, 03 बाइक दस्ता की टीम एवं 02 टोटो चौबिसों घंटे कार्यरत रहेंगे, ताकि किसी भी स्थिति में श्रद्धालुओं को त्वरित सविधा मुहैया करायी जा सके। इसके अलावा मेला के दौरान बाबा नगरी आने वाले महिला श्रद्धालुओं के साथ बच्चों के सुविधा एवं स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए 10 मातृत्व विश्राम गृह का निर्माण कराया गया है, जहां मातृत्व विश्राम गृह में सैनिटरी पैड, बच्चों के डायपर, बिस्कीट, दूध उपलब्ध कराया जाएगा एवं महिला कर्मियों की प्रतिनियुक्ति भी इन केन्द्रों पर की जायेगी। इसके अलावे सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में सूचना-सह-सहायता कर्मियों द्वारा पूरे तत्परता एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने अपने केंन्द्रों में कार्य किया जा रहा है। ताकि बिछुड़े हुए कांवरियों को उनके परिजनों से मिलाया जा सके। इसके अलावे कांवरिया पथ एवं रूटलाईन में सभी कांवरियों के बीच जलार्पण संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं के साथ आवश्यक जानकारी लगातार प्रेषित की जा रही हैं। वहीं लगभग 4315 श्रद्धालुओं को अब तक सूचना सह सहायता केंद्र के माध्यम से उनके परिजनों से मिलाया गया है। इस कड़ी में बाईक दस्ता के द्वारा चौबिसों घंटे सक्रिय होकर अपने परिजनों से बिछड़ने वाले श्रद्धालुओं को मिलाने में हर संभव सहयोग कर रहें हैं।
कोटा से उठी उड़ान, बलिया में रचा इतिहास: NEET 2025 में संस्कृति सिंह की बाजीगरी, गांव इनामीपुर में हुआ भव्य स्वागत
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)।बेटियां अब केवल घर की चौखट तक सीमित नहीं रहीं—बल्कि वो आज पूरे देश में अपनी प्रतिभा और परिश्रम से परचम लहरा रही हैं। इसी की जीती-जागती मिसाल बनी हैं नगरा क्षेत्र की संस्कृति सिंह, जिन्होंने NEET 2025 में शानदार प्रदर्शन करते हुए 720 में से 616 अंक प्राप्त किए और ऑल इंडिया में 1200वीं रैंक हासिल कर क्षेत्र का नाम रोशन किया। बलिया जिले के इनामीपुर गांव निवासी संस्कृति ने यह सफलता कोटा, राजस्थान में रहकर कठिन परिश्रम और अनुशासन के बल पर हासिल की है। उनके पिता अजीत सिंह व माता किरण सिंह की आँखों में बेटी की सफलता से गर्व और आंसू दोनों थे। संस्कृति की इस कामयाबी पर गांव, समाज और पूरे जिले में जश्न का माहौल है। संस्कृति के बलिया आगमन पर जैसे ही वह नरहीं चहटी (नगरा) पहुंचीं, वहां क्षेत्रवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। ढोल-नगाड़े, फूल-मालाएं और मिठाइयों के साथ संस्कृति का अभिनंदन किया गया। चारों तरफ सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा था—"संस्कृति सिंह ज़िंदाबाद!" इस अवसर पर उनकी बड़ी बहन रजनी सिंह ने उन्हें अपने हाथों से मिठाई खिलाकर आशीर्वाद दिया। ग्रामीणों ने गर्व से कहा कि आज इनामीपुर की बेटी नहीं, बल्कि पूरे बलिया की बेटी बन गई है संस्कृति। वर्तमान ग्राम प्रधान राजू सिंह, जो खुद शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय माने जाते हैं, ने भी इस सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि "संस्कृति जैसे बच्चों से ही गांव की तक़दीर बदलेगी।" संस्कृति, पूर्व प्रधान राजन सिंह की भतीजी हैं, जिन्होंने शुरू से ही उनकी पढ़ाई को लेकर विशेष रुचि ली। इस मौके पर सतीश सिंह, उमेश पांडे, राजीव सिंह, विजय प्रकाश प्रजापति, राजन सिंह सहित अनेक क्षेत्रीय गणमान्य लोगों ने उनकी इस कामयाबी को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। वर्तमान समय में जब गांवों की बेटियों को आगे बढ़ने के मौके कम मिलते हैं, ऐसे में संस्कृति की ये उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि अगर संकल्प मजबूत हो तो संसाधनों की कमी भी रास्ता नहीं रोक सकती। गांव के छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी ने उनके घर पहुंचकर उन्हें बधाइयाँ दीं। खास बात यह रही कि संस्कृति की सफलता को सिर्फ शैक्षणिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। संस्कृति सिंह का सपना है कि वह डॉक्टर बनकर ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवा में योगदान दें। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता, गुरुजनों और परिवार के सहयोग को दिया। बलिया के शिक्षा जगत में संस्कृति की यह कामयाबी एक नई उम्मीद की किरण बनकर उभरी है। निस्संदेह, इनामीपुर गांव की बेटी ने इस बार NEET की बाजी मार ली है—और पूरे जनपद को गर्व से भर दिया है।
नगरा किसान की आकाशीय बिजली से मौत
ओमप्रकाश वर्मा नगरा बलिया ! आकाशीय बिजली गिरने से एक किसान की मौत हो गई। मृतक की पहचान 50 वर्षीय वकील कुरैशी के रूप में हुई है। वकील कुरैशी तरिया पोखरे के पास अपने खेत की देखभाल कर रहे थे। इस दौरान अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। गरज-चमक के साथ आकाशीय बिजली गिरी और वे इसकी चपेट में आ गए। परिजन तत्काल उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नगरा ले गए। चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। घटना की जानकारी मिलते ही नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि उमाशंकर राम समेत कई लोग मृतक के घर पहुंचे। उन्होंने परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की। नायब तहसीलदार रसड़ा और हल्का लेखपाल ने भी मृतक के घर जाकर परिजनों से मुलाकात की। उन्होंने घटना से जुड़ी आवश्यक जानकारी एकत्र की।
आमस पुलिस ने अंग्रेजी शराब के साथ एक धंधेबाज को किया गिरफ्तार,भेजा जेल
आमस पुलिस ने अंग्रेजी शराब के साथ एक धंधेबाज को किया गिरफ्तार,भेजा जेल आमस:- आमस पुलिस ने शराब व मादक पदार्थ माफियों के विरुद्ध लगातार करवाई करते हुए गिरफ्तारी करने का काम कर रही है।जिसके जहत मंगलवार को साँव टॉल के पास से छः लीटर अंग्रेजी शराब के साथ एक धंधेबाज को गिरफ्तार किया है।थानाध्यक्ष पवन कुमार ने बताया की गुप्त सूचना मिली की एक डिस्कवर बाइक से शेरघाटी तरफ से टॉल की ओर अंग्रेजी शराब तस्करी के लिए ले जाया जा रहा है।सूचना मिलते ही टॉल के पास शेरघाटी की ओर से आने वाली सभी बाइक को जांच करना शुरू कर दिया गया उसी दौरान एक बाइक पुलिस जांच को देखते ही भागने का कोशिश करने लगा जिसे बाइक को तलाशी लिया गया तो उसके बाइक के डिक्की और सीट के नीचे से छः लीटर अंग्रेजी शराब बरामद किया गया।जिसके बाद शराब व बाइक को जब्त करते हुए धंधेबाज को भी गिरफ्तार कर लिया गया।जिसका पहचान आमस थाना क्षेत्र के बहेरा गांव निवासी विवेक कुमार सिंह के रूप में किया गया है।पुलिस के गिरफ्त में आए धंधेबाज को पूछ ताछ के बाद न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है।


रिपोर्टर:- धनंजय कुमार यादव
संपादकीय: प्राकृतिक खेती – झारखंड की हरियाली और भविष्य का संकल्प

विनोद आनंद


आज जब पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों और लगातार बढ़ते पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है, ऐसे विकट समय में प्राकृतिक खेती एक आशा की किरण बनकर उभरी है। यह न केवल हमारे ग्रह के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है, बल्कि विशेषकर झारखंड जैसे कृषि-प्रधान राज्य के लिए, यह एक दूरगामी आर्थिक और सामाजिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त करती है। झारखंड, जिसकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर अत्यधिक निर्भर है, के लिए प्राकृतिक खेती केवल पर्यावरण संरक्षण का एक साधन मात्र नहीं, बल्कि किसानों की आजीविका को सुदृढ़ करने और राज्य की समग्र आर्थिक मजबूती को बढ़ावा देने का भी एक सशक्त माध्यम है।

प्राकृतिक खेती के असीमित लाभ: ऊर्जा दक्षता और पर्यावरणीय संतुलन


प्राकृतिक खेती की मूल अवधारणा रासायनिक उर्वरकों और सिंथेटिक कीटनाशकों से मुक्ति पाकर प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना है। इसमें उन पारंपरिक और जैविक पद्धतियों का उपयोग होता है जो सदियों से हमारी कृषि विरासत का हिस्सा रही हैं। इस दृष्टिकोण से ऊर्जा की खपत में भारी कमी आती है, क्योंकि रासायनिक इनपुट के उत्पादन और परिवहन में लगने वाली ऊर्जा की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। 

परिणामस्वरूप, कार्बन उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की जाती है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण योगदान है।

प्राकृतिक खेती मिट्टी की उर्वरता और उसकी जैव विविधता को बनाए रखने पर विशेष जोर देती है। कंपोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट और फसल चक्र जैसी पद्धतियाँ न केवल मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती हैं, बल्कि उसके सूक्ष्मजीवों और जैविक संरचना को भी समृद्ध करती हैं। खेत का जैविक कचरा, जिसे अक्सर अनुपयोगी मानकर जला दिया जाता है, प्राकृतिक खेती में एक मूल्यवान संसाधन बन जाता है, जिसका उपयोग खाद बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) और बायोगैस उत्पादन जैसी स्मार्ट और टिकाऊ तकनीकों को भी अपनाया जाता है, जो ऊर्जा और जल के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करती हैं।

एक और महत्वपूर्ण लाभ कम पानी की मांग वाली सूखा-सहिष्णु फसलों, जैसे बाजरा, तिलहन और दालों को अपनाने से प्राप्त होता है। ये फसलें न केवल कम सिंचाई में बेहतर उपज देती हैं, बल्कि प्राकृतिक रूप से मिट्टी की नमी को बनाए रखने में भी सहायक होती हैं, जिससे जल और ऊर्जा दोनों की बचत होती है। इस प्रकार, प्राकृतिक खेती केवल एक कृषि पद्धति नहीं, बल्कि एक समग्र पारिस्थितिक दृष्टिकोण है जो संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन को बढ़ावा देता है।

संभावनाएँ और चुनौतियाँ: झारखंड के संदर्भ में


झारखंड की भौगोलिक स्थिति, उसकी परंपरागत कृषि संस्कृति और यहाँ के छोटे जोतदार किसान प्राकृतिक खेती के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। राज्य की जलवायु विविध प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त है, और यहाँ की ग्रामीण आबादी में कृषि के प्रति गहरा लगाव है। हालांकि, इस परिवर्तनकारी मार्ग पर कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संबोधित करना आवश्यक है।

सबसे बड़ी चुनौती जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी है। अधिकांश किसानों को प्राकृतिक खेती की तकनीकों, इसके लाभों और संक्रमण काल में आने वाली चुनौतियों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। 

परंपरागत रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर बदलाव के लिए गहन प्रशिक्षण और प्रदर्शन की आवश्यकता है। इसके अलावा, मानकीकृत डेटा और अनुसंधान का अभाव एक और बड़ी बाधा है। प्राकृतिक खेती के दीर्घकालिक प्रभावों, सर्वोत्तम पद्धतियों और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल तकनीकों पर व्यापक अनुसंधान की कमी है, जिससे नीति निर्माताओं और किसानों के लिए निर्णय लेना कठिन हो जाता है।

संक्रमण के दौरान शुरुआती लागत और संभावित उपज में कमी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। रासायनिक इनपुट से जैविक इनपुट की ओर स्विच करते समय, प्रारंभिक वर्षों में उपज में थोड़ी कमी आ सकती है, और जैविक सामग्री के उत्पादन या खरीद में अतिरिक्त लागत लग सकती है। यह आर्थिक दबाव छोटे किसानों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बाजार और मूल्य श्रृंखला का सीमित होना भी एक गंभीर समस्या है। प्राकृतिक रूप से उत्पादित उत्पादों के लिए एक संगठित और प्रीमियम बाजार का अभाव है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। अंत में, आधारभूत सुविधाओं और पूंजी की आवश्यकता भी इस राह में रोड़ा अटकाती है। 

जैविक इनपुट के उत्पादन के लिए बुनियादी ढाँचा, भंडारण सुविधाएँ और किसानों को शुरुआती निवेश के लिए पूंजी तक पहुँच का अभाव है।

राज्य सरकार की जिम्मेदारी: नीतिगत और व्यवहारिक पहलें


झारखंड में प्राकृतिक खेती को एक सफल और व्यापक आंदोलन बनाने के लिए राज्य सरकार को एक बहुआयामी और दूरगामी रणनीति अपनानी होगी।

सबसे पहले, प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन केंद्रों की स्थापना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक जिले में 'मॉडल फार्म' स्थापित किए जाने चाहिए जो किसानों को प्राकृतिक खेती की व्यावहारिक तकनीकों का सीधा अनुभव प्रदान करें। इन केंद्रों पर विशेषज्ञ किसानों को कंपोस्टिंग, जैविक कीट नियंत्रण, फसल चक्र और अन्य नवीन तकनीकों के बारे में शिक्षित कर सकते हैं। दूसरा, अनुसंधान और मानकीकरण को गति देना आवश्यक है। कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों को प्राकृतिक खेती पर गहन अनुसंधान में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए। इससे स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल सर्वोत्तम पद्धतियों की पहचान होगी और प्राकृतिक खेती के पर्यावरणीय लाभों की माप के लिए एक मजबूत ढाँचा विकसित किया जा सकेगा।

वित्तीय समर्थन किसानों को प्रारंभिक जोखिमों से निपटने में मदद करेगा। सरकार को प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को अनुदान और सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, 'कार्बन प्रग्रहण' जैसी पर्यावरणीय सेवाओं के लिए भुगतान योजनाएँ विकसित की जा सकती हैं, जहाँ किसानों को उनकी भूमि द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को sequester करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। सहकारी समितियों को बढ़ावा देना भी एक प्रभावी रणनीति है। ये समितियाँ किसानों को संसाधन साझा करने, जैविक खाद या प्राकृतिक कीटनाशकों का सामूहिक रूप से उत्पादन करने और अपने उत्पादों के विपणन में सामूहिक पहल करने में मदद कर सकती हैं।

विशिष्ट बाजार और मूल्य संवर्धन प्राकृतिक उत्पादों के लिए एक मजबूत मांग पैदा करेगा। जैविक प्रमाणन प्रक्रियाओं को सरल बनाना और प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, ताकि प्राकृतिक उत्पादों को एक अलग बाजार मिल सके और उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्त हो। नीतिगत अनुकूलन भी महत्वपूर्ण है। सरकार को अपनी उर्वरक और ऊर्जा सब्सिडी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए और धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती को मुख्यधारा में लाना चाहिए। अंत में, कृषि वानिकी (एग्रोफॉरेस्ट्री) को प्राकृतिक खेती के साथ प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पेड़ों और फसलों का एकीकरण भूमि, जल और आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, जिससे एक समग्र और टिकाऊ कृषि प्रणाली विकसित होगी।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार पर प्राकृतिक खेती का प्रभाव


प्राकृतिक खेती का विस्तार झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन में बहुआयामी वृद्धि ला सकता है। यह केवल कृषि उत्पादन को बढ़ावा नहीं देगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर कई नए आर्थिक अवसर भी पैदा करेगा।

सबसे पहले, स्थानीय स्तर पर जैविक खाद, बीज और बायो-कीटनाशकों का निर्माण स्वयं में एक बड़ा रोजगार क्षेत्र बन सकता है। ग्रामीण उद्यमी और स्वयं सहायता समूह इन आवश्यक इनपुट का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और रसायनों पर निर्भरता कम होगी। दूसरा, प्राकृतिक रूप से उगाए गए दाल, अनाज, फल और सब्जियों पर आधारित छोटे प्रसंस्करण उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में विकसित हो सकते हैं। ये उद्योग न केवल किसानों को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य प्रदान करेंगे, बल्कि पैकेजिंग, ग्रेडिंग और मार्केटिंग से संबंधित नए रोजगार के अवसर भी पैदा करेंगे।

इसके अतिरिक्त, प्राकृतिक खेती ग्रामीण पर्यटन और इको-टूरिज्म के विकास को बढ़ावा दे सकती है। प्राकृतिक खेतों का दौरा, जैविक भोजन का अनुभव और ग्रामीण जीवन शैली का अन्वेषण पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए आय के नए स्रोत खुलेंगे। अंत में, प्राकृतिक खेती कृषि श्रमिकों, विशेष रूप से युवाओं के लिए कौशल वृद्धि के अवसर प्रदान करेगी। उन्हें जैविक खेती की तकनीकों, वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन, बीज संरक्षण और प्राकृतिक कीट नियंत्रण जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जा सकता है, जिससे उनकी रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी।

झारखंड के लिए प्राकृतिक खेती केवल कृषि की एक पद्धति मात्र नहीं है, बल्कि यह एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण है, जिससे राज्य में एक हरित भविष्य के द्वार खुल सकते हैं। यह न केवल हमारे पर्यावरण का संरक्षण करती है, बल्कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करती है, किसानों के हितों की रक्षा करती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करती है। प्राकृतिक खेती झारखंड के लिए आशा का एक नया सूरज साबित हो सकती है।

यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार, कृषि विशेषज्ञ, किसान समुदाय और समग्र समाज मिलकर इस आंदोलन को सशक्त बनाने के लिए नीतिगत समर्थन, गहन प्रशिक्षण और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करें। हमें सामूहिक प्रयासों से इस दिशा में आगे बढ़ना होगा ताकि झारखंड "हरित क्रांति" की एक मिसाल बनकर उभरे और देश तथा विश्व के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने। क्या हम सब मिलकर इस हरित भविष्य के संकल्प को साकार करने के लिए तैयार हैं?

गया जी में जमुई सांसद अरुण भारती ने केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी पर किया पलटवार, बोले- कौन अनुभवी नेता है, यह जनता करेगी तय

गया जी (मनीष कुमार): बिहार के गया जी शहर के एक निजी होटल में लोक जनशक्ति पार्टी के जमुई के सांसद सह बिहार प्रभारी अरुण भारती ने केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी पर पलटवार किया हैं. उन्होंने कहा कि कौन अनुभवी नेता है यह जनता तय करेगी. जीतन राम मांझी के उम्र के हिसाब से अनुभव चिराग पासवान के पास नहीं है. 

हमारे नेता चिराग पासवान के पास भले ही अनुभव की कमी है, लेकिन जनता के आशीर्वाद की कमी नहीं है. चिराग पासवान के प्रति जो लोगों का उम्मीद है और बिहार के लेकर जो आशाएं है उसकी कमी नहीं है. जमुई के सांसद अरुण भारती ने कहा कि मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है कि जितने अनुभवी नेता हैं उनके पार्टी को और उनके जनता को आने वाले समय में अवश्य लाभ मिलेगा. साथ ही उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव होगे, तो कौन अनुभवी नेता है और कौन अनुभहीन नेता है, यह जनता तय करेगी.

झारखंड में डेंगू और चिकनगुनिया का बढ़ता खतरा, दो जिलों में जापानी बुखार की दस्तक

झारखंड इस समय मानसून के मौसम से जूझ रहा है, और इसके साथ ही मच्छर जनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्य के 16 जिलों में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले सामने आए हैं, जो चिंता का विषय है। इसके अलावा, दो जिलों में जापानी बुखार (Japanese Encephalitis) के मामले भी दर्ज किए गए हैं, जिसने स्वास्थ्य अधिकारियों की चिंता को और बढ़ा दिया है।

डेंगू और चिकनगुनिया, दोनों ही एडीस मच्छर के काटने से फैलने वाली बीमारियाँ हैं, जो आमतौर पर दिन के समय सक्रिय होते हैं। इन बीमारियों के लक्षणों में तेज़ बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, त्वचा पर लाल चकत्ते और आँखों के पीछे दर्द शामिल हैं। गंभीर मामलों में, डेंगू हेमरेजिक बुखार (Dengue Hemorrhagic Fever) और डेंगू शॉक सिंड्रोम (Dengue Shock Syndrome) जैसी जटिलताएँ भी विकसित हो सकती हैं, जो जानलेवा साबित हो सकती हैं। चिकनगुनिया आमतौर पर जानलेवा नहीं होता, लेकिन इसके कारण होने वाला जोड़ों का दर्द लंबे समय तक बना रह सकता है, जिससे मरीजों को काफी परेशानी होती है।

जिन 16 जिलों में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले सामने आए हैं, उनमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र शामिल हैं। यह दर्शाता है कि इन बीमारियों का प्रसार व्यापक है और इन पर तत्काल नियंत्रण पाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य विभाग ने इन जिलों में सक्रिय निगरानी और जागरूकता अभियान तेज कर दिए हैं। स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर फॉगिंग और लार्वा नियंत्रण के उपाय किए जा रहे हैं।

विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि राज्य के दो जिलों में जापानी बुखार के मामले भी सामने आए हैं। यह बीमारी क्यूलेक्स मच्छर से फैलती है और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकती है, जिससे गंभीर तंत्रिका संबंधी समस्याएँ और मृत्यु भी हो सकती है। जापानी बुखार के लक्षण तीव्र बुखार, सिरदर्द, गर्दन में अकड़न, दौरे और कोमा तक हो सकते हैं। इन दो जिलों में स्वास्थ्य विभाग ने विशेष टीमों का गठन किया है ताकि बीमारी के प्रसार को रोका जा सके और प्रभावित व्यक्तियों को तुरंत चिकित्सा सहायता प्रदान की जा सके।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने जनता से अपील की है कि वे इन बीमारियों से बचाव के लिए आवश्यक सावधानी बरतें। इसमें अपने घरों और आसपास के इलाकों में पानी जमा न होने देना, कूलर, गमलों और अन्य बर्तनों से पानी को नियमित रूप से खाली करना, सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करना, पूरी बाजू के कपड़े पहनना और मच्छर भगाने वाले स्प्रे का उपयोग करना शामिल है। किसी भी तरह के बुखार या बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी गई है।

सरकार ने इन बीमारियों के प्रसार को रोकने और प्रभावितों को उचित उपचार प्रदान करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया है। सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता ही इन बीमारियों से प्रभावी ढंग से लड़ने की कुंजी है।

देवघर-मेला क्षेत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से श्रद्धालुओं के थकान को भक्तिमय मनोरंजन से किया जा रहा है दूर।
देवघर: राजकीय श्रावणी मेला, 2025 के मद्देनजर बाबा नगरी आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के साथ-साथ भक्तिमय मनोरंजन का भी उचित प्रबंध किया गया है। इसी कड़ी में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के सफल आयोजन को लेकर बाबा बैद्यनाथ धाम में चार सांस्कृतिक मंच बनाए गए हैं, जो कि दुम्मा, कोठिया बस स्टैंड, बाघमारा बस स्टैंड, आध्यात्मिक भवन, सरासनी एवं बीएड कॉलेज शामिल हैं। इसके अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से श्रद्धालुओं के भक्तिमय मनोरंजन का खयाल रखा जा रहा है, जिससे भीड़ नियंत्रित करने में भी काफी मदद मिल रही है। इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए स्थानीय कलाकारों द्वारा श्रद्धालुओं को भक्तिमय संगीत के साथ साथ भगवान शिव की कथा, भजन व शिव तांडव की प्रस्तुति दी जा रही है। ताकि बाबा बैद्यनाथ के श्रद्धालु को हर्ष, आनंद, उल्लास और प्रसन्नता की अनुभूति प्राप्त हो सकें।
देवघर-श्रावणी मेला को लेकर बनाये गए टेंट सीटी में श्रद्धालुओं की सुख-सुविधा हेतु व्यापक इंतजाम-उपायुक्त
देवघर: राजकीय श्रावणी मेला, 2025 शुरू होते हीं देवघर में देवतुल्य श्रद्धालुओं का आगमन हो रहा है। ऐसे में कई बार यहां के होटलों, धर्मशालाओं इत्यादि के पूरी तरह से भर जाने से श्रद्धालुओं को आवासन हेतु इधर-उधर घुमते देखा गया है और उनकी इसी कष्ट को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार के द्वारा देवघर में निःशुल्क टेंट सिटी का निर्माण कराया गया है, ताकि यहाँ आए कांवरियों को आवासन संबंधी परेशानियों का सामना न करना पड़े। इसके अलावे इस परियोजना के अंतर्गत जिला प्रशासन ने इस वर्ष यहां आने वाले कांवरियों हेतु बाघमारा एवं कोठिया में दो चिन्हित स्थलों पर टेंट सिटी का निर्माण कराया है। इन टेंट सिटी में थके-हारे कांवरियों को राहत मिलेगी, जिन्हें भीड़ की वजह से होटलों व धर्मशालााओं में जगह नहीं मिल पाता है। ऐसे में वे यहाँ आकर निश्चित होकर आराम कर सकेंगे। साथ हीं स्वच्छ देवघर, स्वस्थ्य देवघर अभियान को ध्यान में रखते हुए टेंट सिटी में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा गया है। एवं सभी मुलभूत सुविधाएं यथा-शौचालय, बिजली, पानी, पंखा, बेड, मोबाईल चार्जिंग आदि उपलब्ध करायी गयी है। वहीं इन टेन्ट सिटी में आवासन हेतु कांवरियों को किसी प्रकार का शुल्क चुकाने की आवश्यकता नहीं है, ये बिल्कुल निःशुल्क हैं। इसके अतिरिक्त टेंट सिटी में रहने वाले कांवरियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए यहां सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने के साथ-साथ सी0सी0टी0भी0 कैमरा के माध्यम से सभी टेंट सिटी में हो रही गतिविधियों की निगरानी भी की जा रहीे है। वहीं टेंट सिटी के संदर्भ में टेंट सिटी में विश्राम करने वाले कटिहार (बिहार) के उपेन्द्र, निवेश, राजेश, मुकेश व आनंद बम से जब टीम पीआरडी के सदस्यों ने बात की तो उन्होंने कहा कि सरकार ने यह बहुत अच्छा कदम उठाया है। इसमें हमें होटल जैसा हीं आराम निःशुल्क उपलब्ध हो रहा है, जिससे हमारे व्यय में भी कमी आयी है। साथ हीं उन्होंने एक हीं स्थान पर निःशुल्क इतनी अच्छी सुविधाएं देने के लिए झारखण्ड सरकार व जिला प्रशासन के प्रति आभार प्रकट किया।
शिक्षक संकुल कोदई संगोष्ठी का किया गया आयोजन
संजीव सिंह बलिया!शासन के निर्देशानुसार प्रदेश के सभी परिषदीय विद्यालयों के शैक्षणिक स्टाफ की शिक्षक संकुल संगोष्ठी का आयोजन न्याय पंचायत स्तर पर माह के तृतीय मंगलवार को प्रतिमाह किया जाता है। इसके अन्तर्गत विकास खण्ड नगरा के न्याय पंचायत कोदई के प्राथमिक विद्यालय कोदई में जुलाई माह की शिक्षक संकुल संगोष्ठी का आयोजन नगरा ब्लाक के खण्ड शिक्षा अधिकारी रामप्रताप सिंह के दिशा निर्देश में नोडल शिक्षक संकुल दयाशंकर जी के दिशा-निर्देशन में किया गया। संगोष्ठी का श्रीगणेश नोडल शिक्षक संकुल ने मां सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण व उनके सम्मुख धूप-दीप प्रज्ज्वलित करके किया। शिक्षक संकुल आशीष श्रीवास्तव ने न्याय पंचायत कोदई के सभी शैक्षणिक स्टाफ की ओर से नोडल शिक्षक का माल्यार्पण करके स्वागत करने के साथ नवचयनित शिक्षक संकुल के कार्य व पदेन दायित्वों से अवगत कराया। तत्पश्चात शिक्षक संकुल दयाशंकर जी ने इस माह के एजेंडा के अनुसार विद्यालयों द्वारा किये जाने वाले प्रमुख कार्यों जैसे नवीन नामांकन वृद्धि, विद्यालय में पूरे समय तक बच्चों व शिक्षकों के ठहराव, गुणवत्तापूर्ण मिड डे मील, फल, दूध आदि के वितरण, समय-सारणी का प्रयोग करते हुए कक्षा शिक्षण, वृक्षारोपण कार्यक्रम, इको क्लब के गठन के साथ विभिन्न शैक्षणिक क्लबों के गठन व उसके प्रति किये जाने वाले कार्यों की समय से पूर्णता, समस्त विद्यालयी कार्यों के विवरण को प्रेरणा पोर्टल पर अपलोड करने, बच्चों के ड्रेस,जूता- मोज़ा, बैग, स्वेटर आदि की धनराशि को उनके अभिभावकों के खाते में समय से भिजवाने हेतु बच्चों के रजिस्ट्रेशन व डी.बी.टी. कार्य को पूरा करना, यू-डायस सम्बन्धी अन्य कार्यों की पूर्णता, छात्र प्रोफाइल व शिक्षक प्रोफाइल पर कार्य, दीक्षा, निपुण प्लस, मिशन कर्मयोगी पर योग प्रशिक्षण, संचारी रोगों व विषैले जीव-जंतुओं से बचाव व जागरुकता, विद्यालयों में जल भराव व जल निकास की समस्या से निजात, विद्यालय परिसर व शौचालय की साफ-सफाई, स्वच्छ पेयजल आपूर्ति आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई तथा इसके प्रति शिक्षक समुदाय को जागरूक व संवेदनशील बनने की प्रेरणा दी गई! क्रमवार शिक्षक संकुल संतोष कुमार गुप्ता,आशुतोष सिंह,आशीष श्रीवास्तव, पुष्पांजलि श्रीवास्तव,रामकृष्ण मौर्य, द्वारा शासन द्वारा प्रेषित जुलाई माह के एजेंडा पर विन्दुवार चर्चा-परिचर्चा करते हुए शिक्षकों से कक्षा शिक्षण में कराई जाने वाली गतिविधियों का डेमो भी प्रस्तुत कराया गया। इसके बाद नोडल शिक्षक द्वारा सभी शैक्षणिक स्टाफ की ओर से इसी न्याय पंचायत के प्राथमिक विद्यालय कोदई के प्रधानाध्यापक जनार्दन तिवारी रहे वर्तमान में समायोजन उच्च प्राथमिक विद्यालय नगरा में हो जाने पर माला पहनाकर सम्मानित किया गया।बैठक की अध्यक्षता न्याय पंचायत के उच्च प्राथमिक विद्यालय खरुआंव के प्रधानाध्यापिका व पूर्व नोडल शिक्षक कृष्णा देवी ने किया! जिन्होंने सभी शिक्षकों को अपने दायित्व व कर्तव्य के प्रति सजग व सहज रहने की बात कही। संगोष्ठी स्थल प्राथमिक विद्यालय कोदई की प्रप्रधानाध्यापक आशीष कुमार श्रीवास्तव द्वारा बैठक में उपस्थित सभी शैक्षणिक स्टाफ द्वारा पूर्ण मनोयोग के साथ सहयोग करने और संगोष्ठी को सफल बनाने हेतु आभार व्यक्त किया गया। राष्ट्रगान तथा जलपान वितरण के पश्चात अध्यक्ष महोदय की अनुमति से आज की शिक्षक संकुल संगोष्ठी का समापन किया गया। तत्पश्चात सभी शिक्षक संकुल सदस्यों द्वारा माह जुलाई का डीसीएफ भरकर सिंक किया गया। संगोष्ठी में समस्त परिषदीय विद्यालयों के प्रधानाध्यापकगण शिक्षक/ शिक्षामित्र/अनुदेशक ने पूरे समय तक संगोष्ठी संचालन में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रस्तुत किये।
मेला क्षेत्र में 31 सूचना सह सहायता केन्द्रों में प्रतिनियुक्त सूचना सह सहायता कर्मियों को अनुशासन के साथ अपने कर्तव्यों का कर रहे हैं निवर्हन।
देवघर: उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी नमन प्रियेश लकड़ा द्वारा जानकारी दी गयी कि राजकीय श्रावणी मेला के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में 31 सूचना सह सहायता केन्द्र, 03 बाइक दस्ता की टीम एवं 02 टोटो चौबिसों घंटे कार्यरत रहेंगे, ताकि किसी भी स्थिति में श्रद्धालुओं को त्वरित सविधा मुहैया करायी जा सके। इसके अलावा मेला के दौरान बाबा नगरी आने वाले महिला श्रद्धालुओं के साथ बच्चों के सुविधा एवं स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए 10 मातृत्व विश्राम गृह का निर्माण कराया गया है, जहां मातृत्व विश्राम गृह में सैनिटरी पैड, बच्चों के डायपर, बिस्कीट, दूध उपलब्ध कराया जाएगा एवं महिला कर्मियों की प्रतिनियुक्ति भी इन केन्द्रों पर की जायेगी। इसके अलावे सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में सूचना-सह-सहायता कर्मियों द्वारा पूरे तत्परता एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने अपने केंन्द्रों में कार्य किया जा रहा है। ताकि बिछुड़े हुए कांवरियों को उनके परिजनों से मिलाया जा सके। इसके अलावे कांवरिया पथ एवं रूटलाईन में सभी कांवरियों के बीच जलार्पण संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं के साथ आवश्यक जानकारी लगातार प्रेषित की जा रही हैं। वहीं लगभग 4315 श्रद्धालुओं को अब तक सूचना सह सहायता केंद्र के माध्यम से उनके परिजनों से मिलाया गया है। इस कड़ी में बाईक दस्ता के द्वारा चौबिसों घंटे सक्रिय होकर अपने परिजनों से बिछड़ने वाले श्रद्धालुओं को मिलाने में हर संभव सहयोग कर रहें हैं।
कोटा से उठी उड़ान, बलिया में रचा इतिहास: NEET 2025 में संस्कृति सिंह की बाजीगरी, गांव इनामीपुर में हुआ भव्य स्वागत
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)।बेटियां अब केवल घर की चौखट तक सीमित नहीं रहीं—बल्कि वो आज पूरे देश में अपनी प्रतिभा और परिश्रम से परचम लहरा रही हैं। इसी की जीती-जागती मिसाल बनी हैं नगरा क्षेत्र की संस्कृति सिंह, जिन्होंने NEET 2025 में शानदार प्रदर्शन करते हुए 720 में से 616 अंक प्राप्त किए और ऑल इंडिया में 1200वीं रैंक हासिल कर क्षेत्र का नाम रोशन किया। बलिया जिले के इनामीपुर गांव निवासी संस्कृति ने यह सफलता कोटा, राजस्थान में रहकर कठिन परिश्रम और अनुशासन के बल पर हासिल की है। उनके पिता अजीत सिंह व माता किरण सिंह की आँखों में बेटी की सफलता से गर्व और आंसू दोनों थे। संस्कृति की इस कामयाबी पर गांव, समाज और पूरे जिले में जश्न का माहौल है। संस्कृति के बलिया आगमन पर जैसे ही वह नरहीं चहटी (नगरा) पहुंचीं, वहां क्षेत्रवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। ढोल-नगाड़े, फूल-मालाएं और मिठाइयों के साथ संस्कृति का अभिनंदन किया गया। चारों तरफ सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा था—"संस्कृति सिंह ज़िंदाबाद!" इस अवसर पर उनकी बड़ी बहन रजनी सिंह ने उन्हें अपने हाथों से मिठाई खिलाकर आशीर्वाद दिया। ग्रामीणों ने गर्व से कहा कि आज इनामीपुर की बेटी नहीं, बल्कि पूरे बलिया की बेटी बन गई है संस्कृति। वर्तमान ग्राम प्रधान राजू सिंह, जो खुद शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय माने जाते हैं, ने भी इस सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि "संस्कृति जैसे बच्चों से ही गांव की तक़दीर बदलेगी।" संस्कृति, पूर्व प्रधान राजन सिंह की भतीजी हैं, जिन्होंने शुरू से ही उनकी पढ़ाई को लेकर विशेष रुचि ली। इस मौके पर सतीश सिंह, उमेश पांडे, राजीव सिंह, विजय प्रकाश प्रजापति, राजन सिंह सहित अनेक क्षेत्रीय गणमान्य लोगों ने उनकी इस कामयाबी को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। वर्तमान समय में जब गांवों की बेटियों को आगे बढ़ने के मौके कम मिलते हैं, ऐसे में संस्कृति की ये उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि अगर संकल्प मजबूत हो तो संसाधनों की कमी भी रास्ता नहीं रोक सकती। गांव के छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी ने उनके घर पहुंचकर उन्हें बधाइयाँ दीं। खास बात यह रही कि संस्कृति की सफलता को सिर्फ शैक्षणिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। संस्कृति सिंह का सपना है कि वह डॉक्टर बनकर ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवा में योगदान दें। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता, गुरुजनों और परिवार के सहयोग को दिया। बलिया के शिक्षा जगत में संस्कृति की यह कामयाबी एक नई उम्मीद की किरण बनकर उभरी है। निस्संदेह, इनामीपुर गांव की बेटी ने इस बार NEET की बाजी मार ली है—और पूरे जनपद को गर्व से भर दिया है।
नगरा किसान की आकाशीय बिजली से मौत
ओमप्रकाश वर्मा नगरा बलिया ! आकाशीय बिजली गिरने से एक किसान की मौत हो गई। मृतक की पहचान 50 वर्षीय वकील कुरैशी के रूप में हुई है। वकील कुरैशी तरिया पोखरे के पास अपने खेत की देखभाल कर रहे थे। इस दौरान अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। गरज-चमक के साथ आकाशीय बिजली गिरी और वे इसकी चपेट में आ गए। परिजन तत्काल उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नगरा ले गए। चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। घटना की जानकारी मिलते ही नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि उमाशंकर राम समेत कई लोग मृतक के घर पहुंचे। उन्होंने परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की। नायब तहसीलदार रसड़ा और हल्का लेखपाल ने भी मृतक के घर जाकर परिजनों से मुलाकात की। उन्होंने घटना से जुड़ी आवश्यक जानकारी एकत्र की।
आमस पुलिस ने अंग्रेजी शराब के साथ एक धंधेबाज को किया गिरफ्तार,भेजा जेल
आमस पुलिस ने अंग्रेजी शराब के साथ एक धंधेबाज को किया गिरफ्तार,भेजा जेल आमस:- आमस पुलिस ने शराब व मादक पदार्थ माफियों के विरुद्ध लगातार करवाई करते हुए गिरफ्तारी करने का काम कर रही है।जिसके जहत मंगलवार को साँव टॉल के पास से छः लीटर अंग्रेजी शराब के साथ एक धंधेबाज को गिरफ्तार किया है।थानाध्यक्ष पवन कुमार ने बताया की गुप्त सूचना मिली की एक डिस्कवर बाइक से शेरघाटी तरफ से टॉल की ओर अंग्रेजी शराब तस्करी के लिए ले जाया जा रहा है।सूचना मिलते ही टॉल के पास शेरघाटी की ओर से आने वाली सभी बाइक को जांच करना शुरू कर दिया गया उसी दौरान एक बाइक पुलिस जांच को देखते ही भागने का कोशिश करने लगा जिसे बाइक को तलाशी लिया गया तो उसके बाइक के डिक्की और सीट के नीचे से छः लीटर अंग्रेजी शराब बरामद किया गया।जिसके बाद शराब व बाइक को जब्त करते हुए धंधेबाज को भी गिरफ्तार कर लिया गया।जिसका पहचान आमस थाना क्षेत्र के बहेरा गांव निवासी विवेक कुमार सिंह के रूप में किया गया है।पुलिस के गिरफ्त में आए धंधेबाज को पूछ ताछ के बाद न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है।


रिपोर्टर:- धनंजय कुमार यादव
संपादकीय: प्राकृतिक खेती – झारखंड की हरियाली और भविष्य का संकल्प

विनोद आनंद


आज जब पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों और लगातार बढ़ते पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है, ऐसे विकट समय में प्राकृतिक खेती एक आशा की किरण बनकर उभरी है। यह न केवल हमारे ग्रह के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है, बल्कि विशेषकर झारखंड जैसे कृषि-प्रधान राज्य के लिए, यह एक दूरगामी आर्थिक और सामाजिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त करती है। झारखंड, जिसकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर अत्यधिक निर्भर है, के लिए प्राकृतिक खेती केवल पर्यावरण संरक्षण का एक साधन मात्र नहीं, बल्कि किसानों की आजीविका को सुदृढ़ करने और राज्य की समग्र आर्थिक मजबूती को बढ़ावा देने का भी एक सशक्त माध्यम है।

प्राकृतिक खेती के असीमित लाभ: ऊर्जा दक्षता और पर्यावरणीय संतुलन


प्राकृतिक खेती की मूल अवधारणा रासायनिक उर्वरकों और सिंथेटिक कीटनाशकों से मुक्ति पाकर प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना है। इसमें उन पारंपरिक और जैविक पद्धतियों का उपयोग होता है जो सदियों से हमारी कृषि विरासत का हिस्सा रही हैं। इस दृष्टिकोण से ऊर्जा की खपत में भारी कमी आती है, क्योंकि रासायनिक इनपुट के उत्पादन और परिवहन में लगने वाली ऊर्जा की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। 

परिणामस्वरूप, कार्बन उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की जाती है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण योगदान है।

प्राकृतिक खेती मिट्टी की उर्वरता और उसकी जैव विविधता को बनाए रखने पर विशेष जोर देती है। कंपोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट और फसल चक्र जैसी पद्धतियाँ न केवल मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती हैं, बल्कि उसके सूक्ष्मजीवों और जैविक संरचना को भी समृद्ध करती हैं। खेत का जैविक कचरा, जिसे अक्सर अनुपयोगी मानकर जला दिया जाता है, प्राकृतिक खेती में एक मूल्यवान संसाधन बन जाता है, जिसका उपयोग खाद बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) और बायोगैस उत्पादन जैसी स्मार्ट और टिकाऊ तकनीकों को भी अपनाया जाता है, जो ऊर्जा और जल के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करती हैं।

एक और महत्वपूर्ण लाभ कम पानी की मांग वाली सूखा-सहिष्णु फसलों, जैसे बाजरा, तिलहन और दालों को अपनाने से प्राप्त होता है। ये फसलें न केवल कम सिंचाई में बेहतर उपज देती हैं, बल्कि प्राकृतिक रूप से मिट्टी की नमी को बनाए रखने में भी सहायक होती हैं, जिससे जल और ऊर्जा दोनों की बचत होती है। इस प्रकार, प्राकृतिक खेती केवल एक कृषि पद्धति नहीं, बल्कि एक समग्र पारिस्थितिक दृष्टिकोण है जो संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन को बढ़ावा देता है।

संभावनाएँ और चुनौतियाँ: झारखंड के संदर्भ में


झारखंड की भौगोलिक स्थिति, उसकी परंपरागत कृषि संस्कृति और यहाँ के छोटे जोतदार किसान प्राकृतिक खेती के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। राज्य की जलवायु विविध प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त है, और यहाँ की ग्रामीण आबादी में कृषि के प्रति गहरा लगाव है। हालांकि, इस परिवर्तनकारी मार्ग पर कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संबोधित करना आवश्यक है।

सबसे बड़ी चुनौती जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी है। अधिकांश किसानों को प्राकृतिक खेती की तकनीकों, इसके लाभों और संक्रमण काल में आने वाली चुनौतियों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। 

परंपरागत रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर बदलाव के लिए गहन प्रशिक्षण और प्रदर्शन की आवश्यकता है। इसके अलावा, मानकीकृत डेटा और अनुसंधान का अभाव एक और बड़ी बाधा है। प्राकृतिक खेती के दीर्घकालिक प्रभावों, सर्वोत्तम पद्धतियों और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल तकनीकों पर व्यापक अनुसंधान की कमी है, जिससे नीति निर्माताओं और किसानों के लिए निर्णय लेना कठिन हो जाता है।

संक्रमण के दौरान शुरुआती लागत और संभावित उपज में कमी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। रासायनिक इनपुट से जैविक इनपुट की ओर स्विच करते समय, प्रारंभिक वर्षों में उपज में थोड़ी कमी आ सकती है, और जैविक सामग्री के उत्पादन या खरीद में अतिरिक्त लागत लग सकती है। यह आर्थिक दबाव छोटे किसानों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बाजार और मूल्य श्रृंखला का सीमित होना भी एक गंभीर समस्या है। प्राकृतिक रूप से उत्पादित उत्पादों के लिए एक संगठित और प्रीमियम बाजार का अभाव है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। अंत में, आधारभूत सुविधाओं और पूंजी की आवश्यकता भी इस राह में रोड़ा अटकाती है। 

जैविक इनपुट के उत्पादन के लिए बुनियादी ढाँचा, भंडारण सुविधाएँ और किसानों को शुरुआती निवेश के लिए पूंजी तक पहुँच का अभाव है।

राज्य सरकार की जिम्मेदारी: नीतिगत और व्यवहारिक पहलें


झारखंड में प्राकृतिक खेती को एक सफल और व्यापक आंदोलन बनाने के लिए राज्य सरकार को एक बहुआयामी और दूरगामी रणनीति अपनानी होगी।

सबसे पहले, प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन केंद्रों की स्थापना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक जिले में 'मॉडल फार्म' स्थापित किए जाने चाहिए जो किसानों को प्राकृतिक खेती की व्यावहारिक तकनीकों का सीधा अनुभव प्रदान करें। इन केंद्रों पर विशेषज्ञ किसानों को कंपोस्टिंग, जैविक कीट नियंत्रण, फसल चक्र और अन्य नवीन तकनीकों के बारे में शिक्षित कर सकते हैं। दूसरा, अनुसंधान और मानकीकरण को गति देना आवश्यक है। कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों को प्राकृतिक खेती पर गहन अनुसंधान में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए। इससे स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल सर्वोत्तम पद्धतियों की पहचान होगी और प्राकृतिक खेती के पर्यावरणीय लाभों की माप के लिए एक मजबूत ढाँचा विकसित किया जा सकेगा।

वित्तीय समर्थन किसानों को प्रारंभिक जोखिमों से निपटने में मदद करेगा। सरकार को प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को अनुदान और सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, 'कार्बन प्रग्रहण' जैसी पर्यावरणीय सेवाओं के लिए भुगतान योजनाएँ विकसित की जा सकती हैं, जहाँ किसानों को उनकी भूमि द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को sequester करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। सहकारी समितियों को बढ़ावा देना भी एक प्रभावी रणनीति है। ये समितियाँ किसानों को संसाधन साझा करने, जैविक खाद या प्राकृतिक कीटनाशकों का सामूहिक रूप से उत्पादन करने और अपने उत्पादों के विपणन में सामूहिक पहल करने में मदद कर सकती हैं।

विशिष्ट बाजार और मूल्य संवर्धन प्राकृतिक उत्पादों के लिए एक मजबूत मांग पैदा करेगा। जैविक प्रमाणन प्रक्रियाओं को सरल बनाना और प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, ताकि प्राकृतिक उत्पादों को एक अलग बाजार मिल सके और उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्त हो। नीतिगत अनुकूलन भी महत्वपूर्ण है। सरकार को अपनी उर्वरक और ऊर्जा सब्सिडी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए और धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती को मुख्यधारा में लाना चाहिए। अंत में, कृषि वानिकी (एग्रोफॉरेस्ट्री) को प्राकृतिक खेती के साथ प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पेड़ों और फसलों का एकीकरण भूमि, जल और आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, जिससे एक समग्र और टिकाऊ कृषि प्रणाली विकसित होगी।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार पर प्राकृतिक खेती का प्रभाव


प्राकृतिक खेती का विस्तार झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन में बहुआयामी वृद्धि ला सकता है। यह केवल कृषि उत्पादन को बढ़ावा नहीं देगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर कई नए आर्थिक अवसर भी पैदा करेगा।

सबसे पहले, स्थानीय स्तर पर जैविक खाद, बीज और बायो-कीटनाशकों का निर्माण स्वयं में एक बड़ा रोजगार क्षेत्र बन सकता है। ग्रामीण उद्यमी और स्वयं सहायता समूह इन आवश्यक इनपुट का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और रसायनों पर निर्भरता कम होगी। दूसरा, प्राकृतिक रूप से उगाए गए दाल, अनाज, फल और सब्जियों पर आधारित छोटे प्रसंस्करण उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में विकसित हो सकते हैं। ये उद्योग न केवल किसानों को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य प्रदान करेंगे, बल्कि पैकेजिंग, ग्रेडिंग और मार्केटिंग से संबंधित नए रोजगार के अवसर भी पैदा करेंगे।

इसके अतिरिक्त, प्राकृतिक खेती ग्रामीण पर्यटन और इको-टूरिज्म के विकास को बढ़ावा दे सकती है। प्राकृतिक खेतों का दौरा, जैविक भोजन का अनुभव और ग्रामीण जीवन शैली का अन्वेषण पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए आय के नए स्रोत खुलेंगे। अंत में, प्राकृतिक खेती कृषि श्रमिकों, विशेष रूप से युवाओं के लिए कौशल वृद्धि के अवसर प्रदान करेगी। उन्हें जैविक खेती की तकनीकों, वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन, बीज संरक्षण और प्राकृतिक कीट नियंत्रण जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जा सकता है, जिससे उनकी रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी।

झारखंड के लिए प्राकृतिक खेती केवल कृषि की एक पद्धति मात्र नहीं है, बल्कि यह एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण है, जिससे राज्य में एक हरित भविष्य के द्वार खुल सकते हैं। यह न केवल हमारे पर्यावरण का संरक्षण करती है, बल्कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करती है, किसानों के हितों की रक्षा करती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करती है। प्राकृतिक खेती झारखंड के लिए आशा का एक नया सूरज साबित हो सकती है।

यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार, कृषि विशेषज्ञ, किसान समुदाय और समग्र समाज मिलकर इस आंदोलन को सशक्त बनाने के लिए नीतिगत समर्थन, गहन प्रशिक्षण और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करें। हमें सामूहिक प्रयासों से इस दिशा में आगे बढ़ना होगा ताकि झारखंड "हरित क्रांति" की एक मिसाल बनकर उभरे और देश तथा विश्व के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने। क्या हम सब मिलकर इस हरित भविष्य के संकल्प को साकार करने के लिए तैयार हैं?

गया जी में जमुई सांसद अरुण भारती ने केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी पर किया पलटवार, बोले- कौन अनुभवी नेता है, यह जनता करेगी तय

गया जी (मनीष कुमार): बिहार के गया जी शहर के एक निजी होटल में लोक जनशक्ति पार्टी के जमुई के सांसद सह बिहार प्रभारी अरुण भारती ने केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी पर पलटवार किया हैं. उन्होंने कहा कि कौन अनुभवी नेता है यह जनता तय करेगी. जीतन राम मांझी के उम्र के हिसाब से अनुभव चिराग पासवान के पास नहीं है. 

हमारे नेता चिराग पासवान के पास भले ही अनुभव की कमी है, लेकिन जनता के आशीर्वाद की कमी नहीं है. चिराग पासवान के प्रति जो लोगों का उम्मीद है और बिहार के लेकर जो आशाएं है उसकी कमी नहीं है. जमुई के सांसद अरुण भारती ने कहा कि मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है कि जितने अनुभवी नेता हैं उनके पार्टी को और उनके जनता को आने वाले समय में अवश्य लाभ मिलेगा. साथ ही उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव होगे, तो कौन अनुभवी नेता है और कौन अनुभहीन नेता है, यह जनता तय करेगी.

झारखंड में डेंगू और चिकनगुनिया का बढ़ता खतरा, दो जिलों में जापानी बुखार की दस्तक

झारखंड इस समय मानसून के मौसम से जूझ रहा है, और इसके साथ ही मच्छर जनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्य के 16 जिलों में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले सामने आए हैं, जो चिंता का विषय है। इसके अलावा, दो जिलों में जापानी बुखार (Japanese Encephalitis) के मामले भी दर्ज किए गए हैं, जिसने स्वास्थ्य अधिकारियों की चिंता को और बढ़ा दिया है।

डेंगू और चिकनगुनिया, दोनों ही एडीस मच्छर के काटने से फैलने वाली बीमारियाँ हैं, जो आमतौर पर दिन के समय सक्रिय होते हैं। इन बीमारियों के लक्षणों में तेज़ बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, त्वचा पर लाल चकत्ते और आँखों के पीछे दर्द शामिल हैं। गंभीर मामलों में, डेंगू हेमरेजिक बुखार (Dengue Hemorrhagic Fever) और डेंगू शॉक सिंड्रोम (Dengue Shock Syndrome) जैसी जटिलताएँ भी विकसित हो सकती हैं, जो जानलेवा साबित हो सकती हैं। चिकनगुनिया आमतौर पर जानलेवा नहीं होता, लेकिन इसके कारण होने वाला जोड़ों का दर्द लंबे समय तक बना रह सकता है, जिससे मरीजों को काफी परेशानी होती है।

जिन 16 जिलों में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले सामने आए हैं, उनमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र शामिल हैं। यह दर्शाता है कि इन बीमारियों का प्रसार व्यापक है और इन पर तत्काल नियंत्रण पाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य विभाग ने इन जिलों में सक्रिय निगरानी और जागरूकता अभियान तेज कर दिए हैं। स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर फॉगिंग और लार्वा नियंत्रण के उपाय किए जा रहे हैं।

विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि राज्य के दो जिलों में जापानी बुखार के मामले भी सामने आए हैं। यह बीमारी क्यूलेक्स मच्छर से फैलती है और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकती है, जिससे गंभीर तंत्रिका संबंधी समस्याएँ और मृत्यु भी हो सकती है। जापानी बुखार के लक्षण तीव्र बुखार, सिरदर्द, गर्दन में अकड़न, दौरे और कोमा तक हो सकते हैं। इन दो जिलों में स्वास्थ्य विभाग ने विशेष टीमों का गठन किया है ताकि बीमारी के प्रसार को रोका जा सके और प्रभावित व्यक्तियों को तुरंत चिकित्सा सहायता प्रदान की जा सके।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने जनता से अपील की है कि वे इन बीमारियों से बचाव के लिए आवश्यक सावधानी बरतें। इसमें अपने घरों और आसपास के इलाकों में पानी जमा न होने देना, कूलर, गमलों और अन्य बर्तनों से पानी को नियमित रूप से खाली करना, सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करना, पूरी बाजू के कपड़े पहनना और मच्छर भगाने वाले स्प्रे का उपयोग करना शामिल है। किसी भी तरह के बुखार या बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी गई है।

सरकार ने इन बीमारियों के प्रसार को रोकने और प्रभावितों को उचित उपचार प्रदान करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया है। सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता ही इन बीमारियों से प्रभावी ढंग से लड़ने की कुंजी है।