जनता दरबार में ताबड़तोड़ कार्रवाई: राँची के सभी अंचलों में सैकड़ों आवेदनों का हुआ मौके पर निष्पादन, Panji-2 और मुआवज़े के मामले निपटे
राँची।
उपायुक्त-सह-जिला दंडाधिकारी, राँची श्री मंजूनाथ भजन्त्री के निर्देशानुसार, मंगलवार (02 दिसंबर 2025) को जिले के सभी अंचलों में एक व्यापक जनता दरबार का आयोजन किया गया। इस दौरान शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से आए सैकड़ों लोगों की समस्याओं और आवेदनों का मौके पर ही त्वरित निष्पादन किया गया, जो प्रशासन की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की दिशा में एक प्रभावी कदम साबित हुआ।
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राजस्व से लेकर प्रमाण पत्रों तक की सेवाएं
जनता दरबार के माध्यम से जिलेवासियों को आवश्यक सरकारी सेवाएं त्वरित और सुगम रूप से उपलब्ध कराई गईं। इन सेवाओं में प्रमुख थे:
प्रमाण पत्र निर्गमन (आवासीय, आय, जाति, पारिवारिक सदस्यता)।
राजस्व से संबंधित कार्य और पंजी-2 सुधार।
सामाजिक सुरक्षा और पेंशन के मामले।
भू-अर्जन मुआवज़ा प्रक्रिया को आगे बढ़ाना।
केसीसी (KCC) सहित अन्य आवश्यक कार्य।
अंचल अधिकारियों ने आवेदकों की समस्याओं को गंभीरता से सुनते हुए तत्काल उनके समाधान की दिशा में कदम उठाए।
अंचलवार कार्यों का त्वरित निष्पादन
जनता दरबार में कई लंबित और महत्वपूर्ण मामलों का निपटारा हुआ:
अंचल प्रमुख निष्पादन कार्य आवेदनों की संख्या
बेड़ो राजस्व, प्रमाण पत्र और सामाजिक सुरक्षा/पेंशन से संबंधित 144 मामले। 144
राहे आय, जाति, स्थानीयता, पारिवारिक सदस्यता एवं राजस्व संबंधी 88 आवेदनों का निपटारा। 88
ईटकी आवासीय, जाति, आय प्रमाण पत्र, पंजी-2 सुधार और आपदा प्रबंधन सहित कुल 71 मामलों का समाधान। 71
अनगड़ा लंबित राजस्व मामलों का निपटारा किया गया। चमरु महतो का पंजी-2 में सुधार हुआ। भू-अर्जन से संबंधित मुआवजा राशि भुगतान की प्रक्रिया (जीतराम भोगता) आगे बढ़ाई गई। कई लंबित मामले निपटे।
सोनाहातू दिनेश कुमार महतो को आचरण प्रमाण पत्र और मुटुक देवी को पारिवारिक सदस्यता प्रमाण पत्र निर्गत किया गया। -
माण्डर कालीचरण महतो को शुद्धि पत्र और बहादुर सिंह को लगान रसीद प्रदान की गई। -
ये सभी कार्य नागरिकों के भूमि संबंधी अधिकारों को सुदृढ़ करने और सरकारी सेवाओं को सरल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुए।
DC ने बताया 'सेवा का अधिकार' को मजबूती देने वाला कदम
उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी श्री मंजूनाथ भजन्त्री ने जनता दरबार को पारदर्शी एवं उत्तरदायी प्रशासन की दिशा में एक प्रभावी कदम बताया। उन्होंने कहा कि जनता दरबार का मुख्य उद्देश्य लोगों को सुविधाओं के लिए भटकने से बचाना और सरकारी सेवाओं को जन-जन तक तत्परता के साथ पहुँचाना है।
उपायुक्त ने सभी अधिकारियों को प्रत्येक मंगलवार को जनता दरबार का नियमित आयोजन कर नागरिकों की समस्याओं का समाधान समयबद्ध तरीके से करने के निर्देश को दोहराया।




आज 2 दिसम्बर 2025 से दो पाली में परीक्षा सम्पन्न हो रही है जिसमें द्वितीय पाली 11:30 से 01:30 तक बी.ए./बी.एस.सी/बी.काम तृतीय सेमेस्टर तथा एम.ए/एम.एस-सी.तृतीय सेमेस्टर एवं तृतीय पाली 02:30 04:30 तक बी.ए/बी.एस-सी/बी.काम पंचम सेमेस्टर की परीक्षाएं बहुत ही सुचिता पूर्ण सुचारू रूप से नक़ल विहीन परीक्षा सम्पन्न कराने के लिए गनपत सहाय पी.जी.कालेज सुलतानपुर के प्राचार्य/केन्द्राध्यक्ष प्रो.अंग्रेज सिंह ने आन्तरिक उड़ाका दल का गठन किया है।
परीक्षा के पूर्व मुख्य गेट पर ही तलाशी लेने के बाद ही छात्र/छात्राएं परीक्षा कक्ष में प्रवेश करते हैं। मुख्य रूप से प्रो.मो.शाहिद, प्रो. राजीव कुमार श्रीवास्तव,प्रो.शक्ति सिंह, प्रो.नीलम त्रिपाठी,प्रो.मनोज मिश्र, डॉ.सूर्य प्रकाश मिश्र,डॉ.अजय कुमार मिश्र,डॉ. आशीष द्विवेदी,डॉ.संध्या श्रीवास्तव,डॉ.विष्णु शंकर अग्रहरि परीक्षा के समय उपस्थित रहे।डॉ.कुंवर दिनकर प्रताप सिंह,दिनेश दूबे,अंशू श्रीवास्तव,यमुना प्रसाद,अजय प्रताप सिंह,अरुण मिश्र इत्यादि लोग परीक्षा में महत्वपूर्ण सहयोग कर रहे हैं।द्वितीय पाली में लगभग 500 छात्र/छात्राएं तथा तृतीय पाली में लगभग 300 छात्र/छात्राएँ परीक्षा में सम्मिलित हुए।




सुलतानपुर।पुलिस लाइन सुलतानपुर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे रिक्रूट्स के लिए आयोजित तीन दिवसीय खेल प्रतियोगिता एकता और शौर्य रविवार को उत्साह के साथ संपन्न हुई। पुलिस अधीक्षक कुँवर अनुपम सिंह के निर्देशन में हुए इस आयोजन में रिक्रूट्स ने एथलेटिक्स, कोर्ट गेम्स और टीम खेलों में दमखम दिखाया।एसपी ने फीता काटकर प्रतियोगिता का शुभारंभ किया और रिक्रूट्स को खेलों के माध्यम से टीम भावना, अनुशासन और निर्णय क्षमता को मजबूत करने का संदेश दिया। तीन दिनों तक चले इस आयोजन में 1600 मीटर दौड़, रिले, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल, रस्साकसी और चेस जैसे मुकाबलों में प्रतिभागियों ने शानदार प्रदर्शन किया।खेलों के दौरान अपर पुलिस अधीक्षक सहित क्षेत्राधिकारी लाइन, प्रतिसार निरीक्षक, प्रभारी आरटीसी और समस्त आरटीसी स्टाफ मौजूद रहा। अधिकारियों ने खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाया और उनके प्रदर्शन की सराहना की।बैडमिंटन में टोली नंबर 02 के मनोज सिंह चेस्ट 47 व अशोक धाकड़ चेस्ट 46 विजेता रहे, जबकि टोली 09 के रितिक चंदेल चेस्ट 255 व साहिल यादव चेस्ट 261 उपविजेता बने।टेबल टेनिस में टोली नंबर 01 से साहिल यादव चेस्ट 261 और रितिक चंदेल चेस्ट 255 विजेता रहे, वहीं टोली 02 के शशांक कुमार चेस्ट 157 व सतेन्द्र कुमार चेस्ट 175 उपविजेता रहे।
गृहस्थ आश्रम : भारतीय जीवन-दर्शन का केंद्रबिंदु भारतीय ज्ञान परम्परा का प्रवाह हजारों वर्षों से ऐसे चलता आया है, मानो हिमालय की शाश्वत शृंखलाओं से निकली कोई दिव्य नदी हो—कभी शांत, कभी प्रचण्ड, परन्तु सदैव जीवनदायिनी। इस परम्परा में गृहस्थ आश्रम कभी न तो उपेक्षा का विषय रहा है, न ही निन्दा का। भारतीय मानस समझता रहा है कि जीवन केवल संन्यास की पथरीली कंदराओं में ही नहीं, बल्कि गृहस्थी के दीप-स्तंभों में भी वैसे ही प्रकाशित होता है जैसे किसी मन्दिर की ज्योति में ईश्वर का तेज। भारत के ऋषि-कुल को देखें तो प्रतीत होगा कि हमारा समाज वास्तव में “ऋषियों की संतान” है। लगभग प्रत्येक ऋषि—अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, याज्ञवल्क्य—सभी गृहस्थ थे; उनकी ऋचाएँ, ब्रह्मज्ञान और अध्यात्म की ऊँचाइयाँ गृहस्थ जीवन की गोद में ही पलकर विराटता प्राप्त कर सकीं। सोलह संस्कारों में विवाह को प्रमुख इसलिए कहा गया कि यह न केवल एक वैयक्तिक संस्कार था, बल्कि सम्पूर्ण समाज के संतुलन का आधार-स्तंभ था—मानो मनुष्य-जीवन का वह द्वार जहाँ से कर्तव्य, प्रेम, त्याग और सृजन सब मिलकर प्रवेश करते हों। सनातन वैदिक धर्म ने मनुष्य-जीवन को सौ वर्ष का पूर्ण वृत्त मानकर उसे चार आश्रमों में विभाजित किया—ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। यह विभाजन मात्र आयु-क्रम नहीं था; यह जीवन का एक चतुर्ऋतु-चक्र था—ब्रह्मचर्य वसंत की तरह ज्ञान और उत्साह का; गृहस्थ ग्रीष्म की भाँति कर्म, तप और दायित्व का; वानप्रस्थ शरद की तरह मन्द, उज्ज्वल और अनुभवों का; और संन्यास हेमंत की तरह निर्मल, शांत और मोक्षमार्ग का। सबको इन चारों से होकर गुजरना था ताकि व्यक्ति जीवन को सम्पूर्ण रूप में जी सके और अन्ततः समाज को अपनी परिपक्व प्रतिभा अर्पित कर सके। जो पंथ जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही संन्यास अनिवार्य कर बैठे—वे एक ओर सूखे हुए वृक्षों की तरह खड़े रहे, जिनकी जड़ें समाज की मिट्टी से कट गईं; और जब जड़ों का रस ही समाप्त हो जाए, तो वृक्ष कितने दिन टिक सकता है? फलतः ऐसे पंथ काल के थपेड़ों में विलीन हो गए। भारतीय इतिहास पर दृष्टि डालें तो ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रवृत्ति और निवृत्ति किसी विशाल समुद्र में उठती-गिरती लहरों की तरह हैं—कभी प्रवृत्ति की ज्वार, तो कभी निवृत्ति का भाटा। वैदिक काल कर्म, यज्ञ और सामाजिक सक्रियता का युग था; उपनिषदकाल में निवृत्ति के बीज अंकुरित हुए—मौन, ध्यान, आत्मबोध शिखर की ओर बढ़े; बौद्ध काल में निवृत्ति ने वटवृक्ष का रूप ले लिया—विस्तार, गहराई और व्यापकता के साथ; और पुनः मुगल व आधुनिक युग में प्रवृत्ति ने अपनी जमीन वापस पा ली—कर्म, समाज, कुटुम्ब और राष्ट्र की चेतना उन्नत हुई। इस प्रकार भारत में प्रवृत्ति से निवृत्ति और निवृत्ति से प्रवृत्ति का आवागमन निरंतर चलता रहा—मानो सूर्य दिन में चमके और रात में चन्द्रमा; दोनों आवश्यक, दोनों पूरक। समाज ने मनुष्य को सामाजिक बनाया है; इसलिए समाज का ऋण चुकाए बिना संन्यास लेकर पलायन कर जाना भारतीय मनस्विता का मार्ग नहीं रहा। वन ही सत्य का एकमात्र द्वार नहीं—गृहस्थ का अन्न, गृहस्थ की अग्नि और गृहस्थ की करुणा से ही ऋषियों का वन-जीवन पोषित हुआ। गृहस्थ आश्रम बिना पानी के वह नदी होता, जिसमें न तो प्रवाह होता न जीवन। अतः संन्यास को भी वही व्यक्ति ग्रहण करता था जिसने गृहस्थ-धर्म को पूर्ण निष्ठा से निभाया हो—तभी उसका संन्यास समाज के लिए प्रकाश-दीप होता था, पलायन नहीं। भारतीय जीवन-दर्शन कभी एकांगी नहीं रहा। उसने प्रवृत्ति और निवृत्ति, गृहस्थ और संन्यास, कर्म और ध्यान—सबको एक ही सूत्र में पिरोया। इससे सम्बंधित दृष्टांत महाभारत के वन पर्व में वर्णित है, जिसमें ऋषि माकंदव्य ने युधिष्ठिर को यह कहानी सुनाई थी। इसे कपोतोपाख्यान (कबूतर की कहानी) के नाम से जाना जाता है। यह कहानी धर्म, वैराग्य, और गृहस्थ धर्म के श्रेष्ठ आदर्शों को दर्शाती है -एक समय की बात है, एक अति सुंदर और गुणवान ऋषिकुमार थे, जो बचपन से ही विरक्त (दुनिया से मोह रहित) और तपस्वी स्वभाव के थे। वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वन में वास करते थे। उसी राज्य में एक राजकुमारी थी, जो अत्यंत रूपवती और धर्मात्मा थी। जब वह विवाह योग्य हुई, तो राजा ने उसका स्वयंवर आयोजित किया। देश-विदेश के अनेक राजकुमार और प्रतिष्ठित व्यक्ति उस स्वयंवर में उपस्थित हुए। राजकुमारी ने जब सभा में उपस्थित सभी लोगों को देखा, तो उसे कोई भी अपने योग्य नहीं लगा। तभी उसकी दृष्टि उस ऋषिकुमार पर पड़ी जो किसी कारणवश सभा में मौजूद थे। ऋषिकुमार का तेजस्वी रूप, शांत स्वभाव और वैराग्य से भरा व्यक्तित्व राजकुमारी को इतना भाया कि उसने लेशमात्र भी विचार किए बिना, उन ऋषिकुमार के गले में वरमाला डाल दी। यह देखकर पूरी सभा चकित रह गई, क्योंकि ऋषिकुमार तो वैरागी थे और विवाह के बंधन से दूर रहना चाहते थे। जैसे ही राजकुमारी ने ऋषिकुमार को वरमाला पहनाई, तो ऋषिकुमार को लगा कि उनका ब्रह्मचर्य भंग हो रहा है और वह सांसारिक मोह-माया के बंधन में फंस रहे हैं। राजकुमारी के चयन को स्वीकार न करते हुए, वह तत्काल उस स्वयंवर सभा से उठकर गहन वन की ओर भाग गए। राजकुमारी भी उनके पीछे भागी, लेकिन ऋषिकुमार वैराग्य की धुन में तेजी से आगे निकल गए और घने जंगल में अदृश्य हो गए। राजकुमारी ने जब ऋषिकुमार को भागते हुए देखा, तो वह अत्यंत दुखी हुई और राजा से कहा कि वह उसी ऋषिकुमार को पति के रूप में स्वीकार करेंगी। राजा अपनी बेटी के हठ के कारण चिंतित हुए और अपने मंत्री के साथ उस ऋषिकुमार को ढूंढने के लिए जंगल की ओर निकल पड़े। काफी देर तक भटकने के बाद भी वे ऋषिकुमार को नहीं ढूंढ पाए। राजा और मंत्री दोनों ही जंगल में रास्ता भटक गए और दिन ढलने लगा। वे भूख-प्यास से व्याकुल हो गए और थककर एक विशाल वृक्ष के नीचे बैठ गए। जिस पेड़ के नीचे राजा और मंत्री बैठे थे, उसी पर एक कबूतर (कपोत) अपनी पत्नी कबूतरी (कपोती) के साथ एक घोंसले में रहता था। जब कबूतरी ने नीचे राजा और मंत्री को ठंड से ठिठुरते और भूख से पीड़ित देखा, तो वह अपने पति कबूतर से बोली - "हे नाथ! ये दोनों अतिथि हैं और भूख-प्यास से व्याकुल हैं। अतिथि का सत्कार करना गृहस्थ का परम धर्म है। हमारे पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन हमें किसी भी प्रकार से इनकी सेवा करनी चाहिए।" कबूतर, जो धर्मात्मा और परम ज्ञानी था, अपनी पत्नी के धर्मनिष्ठ विचार से अत्यंत प्रसन्न हुआ और बोला -"तुम धन्य हो प्रिये! आज तुमने मुझे गृहस्थ धर्म का सच्चा महत्व समझा दिया।" सबसे पहले, कबूतर पास से सूखी टहनियाँ और घास लाकर लाया और एक जगह पर आग जलाई, ताकि राजा और मंत्री ठंड से बच सकें। फिर कबूतर ने राजा से कहा - "हे अतिथि! मैं आपका सत्कार कैसे करूँ? मेरे पास आपको खिलाने के लिए कोई अन्न नहीं है। इसलिए, मैं स्वयं ही आपकी क्षुधा शांत करने के लिए अपने शरीर की आहुति देता हूँ। आप मुझे पकाकर अपनी भूख मिटाइए।" यह कहकर, वह धर्मात्मा कबूतर बिना किसी संकोच के धधकती आग में कूद गया और अपने प्राणों का त्याग कर दिया। राजा और मंत्री यह देखकर बहुत दुखी और शर्मिंदा हुए। अभी उनकी भूख पूरी तरह शांत नहीं हुई थी। तब कबूतरी ने अपने पति के पदचिह्नों पर चलते हुए राजा से कहा - "महाराज! मेरे पति ने अतिथि धर्म का पालन किया है। मैं भी उनके मार्ग पर चलते हुए आपकी सेवा करना चाहती हूँ। मेरी देह भी आपकी क्षुधा शांत करने में सहायक हो।" और कबूतरी भी तुरंत उस आग में कूद गई और अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। कबूतर दम्पत्ति के इस अभूतपूर्व आत्म-त्याग और अतिथि सत्कार को देखकर राजा और मंत्री की आँखें खुल गईं। उनकी भूख तो शांत हुई या नहीं, लेकिन उनका अहंकार और मोह पूरी तरह शांत हो गया। उन्होंने कबूतर दम्पत्ति के चरणों में सिर नवाया और उस स्थान को छोड़कर वापस लौट गए। ऋषि माकंदव्य ने युधिष्ठिर से कहा - सन्यासी हो तो उस ऋषिकुमार की तरह जिसने राज्य-वैभव और राजकुमारी के प्रेम को ठुकराकर वैराग्य को सर्वोपरि माना और मोह से बचने के लिए जंगल में भाग गया। गृहस्थ हो तो कबूतर दम्पत्ति की तरह जिन्होंने अपने जीवन का मोह त्यागकर, केवल 'अतिथि सत्कार' और 'गृहस्थ धर्म' के पालन को ही अपना परम कर्तव्य समझा। यह कथा सिखाती है कि सच्चा त्याग वैराग्य में भी है और निःस्वार्थ सेवा भाव से युक्त गृहस्थ जीवन में भी है। ऋषिकुमार का त्याग विरक्ति का प्रतीक है, जबकि कबूतर दम्पत्ति का त्याग परमार्थ (दूसरों के हित) का प्रतीक है। यह वह भूमि है जहाँ कृषक हल चलाते समय भी ऋग्वेद की ऋचाएँ गाता है, और संन्यासी गहन समाधि में भी “सर्वभूतहिते रतः” का संकल्प लेता है। अतः भारत की आत्मा का सन्देश स्पष्ट है—जीवन को सम्पूर्णता में जियो, प्रत्येक आश्रम का सम्मान करो, और समाज को कुछ दिए बिना किसी एक मार्ग को श्रेष्ठ कहकर दूसरे को तुच्छ मत समझो। गृहस्थ हो या संन्यासी—दोनों भारतीय संस्कृति के दो पंख हैं; एक भी टूट जाए तो उड़ान अधूरी रह जाती है। ©® डॉ. विद्यासागर उपाध्याय
कटकमदाग थाना क्षेत्र के विष्णुपुरी गली नंबर 15 में 22 नवंबर 2025 को हुई दिनदहाड़े चोरी की घटना का हजारीबाग पुलिस ने खुलासा कर दिया है। पिंकी कुमारी के बंद घर का ताला तोड़कर हुए इस चोरी कांड में अज्ञात चोरों ने सोने और चांदी के कई गहने चुरा लिए थे। मामले की गंभीरता को देखते हुए अपर पुलिस अधीक्षक (मुख्यालय) अमित कुमार के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया गया था।
Dec 06 2025, 11:37
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