श्रम विभाग मिर्जापुर में भ्रष्टाचार का बोलबाला, जांच करने पहुंची टीम
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मीरजापुर। सहायक श्रमायुक्त कार्यालय में निर्माण श्रमिकों के हक पर डाका डालकर योजनाओं में बंदरबाट करनेवाले अधिकारियों की नींद उड़ गई है। श्रम कार्यालय में पॉच दिन से विवादित आवेदनों की छटाई के बाद सोमवार को हिन्डालको गेस्ट हाउस से जांच कार्यवाही का मामला आगे बढ़ा।भ्रष्टाचार को लेकर जिले का श्रम विभाग इन दिनों सूर्खियों में है, जहां आये दिन एक न एक भ्रष्टाचार का मामला सामने आ रहा है।
ताजा मामला शिशु एवं मातृत्व हितलाभ योजना इत्यादि का है, जिसमें 1072 आवेदनों के शिकायत की जांच 2023 से चल रही है। जिसकी शिकायत 2021 में जिले के एक पत्रकार मंगल तिवारी ने की थी। जिसमें जांच के नाम पर लगभग डेढ़ वर्ष से जांच के नाम पर खानापूर्ति हो रही है। शिकायतकर्ता मंगल तिवारी की शिकायत पर श्रम विभाग उप्र कार्यालय कानपुर ने वाराणसी क्षेत्र के अपर श्रमायुक्त धर्मेन्द्र कुमार सिंह को नामित किया है। 9 सदस्यों की तीन अलग-अलग टीम में बांटा गया है जिसमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही के अलावा मिर्जापुर के अधिकारी शामिल हैं। गुरूवार बंदी केेेेेेेेे दिन कार्यालय खोला गया था, लेकिन कार्य एक स्थानीय गेस्ट हाउस से शुरू की गयी जबकि सूचना के अनुसार जांच टीम को सायः 4 बजे श्रम कार्यालय आना था, लेकिन मीडिया से बचने के कारण जांच टीम कार्यालय नहीं आयी।
बताते चलें कि 1072 मामले में शिकायतकर्ता मंगल तिवारी है, जो वर्तमान में मजदूर नेता हैं। आरोप है कि श्रम विभाग के अधिकारियों ने एक सिंडीकेट तैयार कर सरकारी फर्जी दस्तावेज पर बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया है। पात्र श्रमिकों का आवेदन निरस्त कर मोटी कमाई के लिए फर्जी आवेदनों पर जान बुझकर भुगतान कराया गया है। मजदूर नेता ने यह भी बताया कि 1072 मामले में कुछ ऐसे लोगों से रिकवरी की गयी है जो सिडींकेट के सदस्य हैं जिन्होंने एक बच्ची के जन्म पर दो बार लाभ लिए हैं।
इसके पूर्व विन्ध्याचल थाना क्षेत्र के गोपालपुर प्रकरण में 11 आवेदनों की जांच में जिन 10 लोगों के खाते में पैसे गये थे उसे बिना ब्याज के जमा करा लिए जाने का दावा किया गया है, जबकि नियमानुसार विधिक कार्यवाही नहीं की गयी। इस संदर्भ में शिकायतकर्ता महिला ने जांच अधिकारी को ही दोषी ठहराते हुए शपथपत्र देकर यह मुख्यमंत्री कार्यालय को बता दिया कि जांच अधिकारी धर्मेन्द्र सिंह पर भरोसा नहीं किया जा सकता। हलांकि इस बार पत्रकार से मजदूर नेता की भूमिका निभानेवाले एक ईमानदार छवि के व्यक्ति से पड़़ते ही नींद हराम हो गयी है और 1072 आवेदनों के जांच परिणाम से अधिकारियों सहित गुर्गो की सांसे फूल रही हैं। मजदूर नेता की माने तो मामला करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार का है जहां अधिकारियों ने एक सिंडीकेट तैयार की।
सिंडीकेट द्वारा तैयार किया कराया कूटरचित सरकारी अस्पताल का जन्म प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर नकल, अस्पताल प्रसव इत्यादि पर आंख बंद कर श्रम प्रवर्तन अधिकारी ने भुगतान कर दिए गए। जिसके चलते अधिकारी ही नही बल्कि सिंडिकेट में शामिल अंगूठा छाप से लेकर ग्रेजुएट तक के लोग देखते ही देखते मालामाल हो गए। कुछ ने तो दो वर्ष में लाखों की कमाई कर चल अचल संपत्ति के मालिक भी बन बैठे हैं। ऐसे ही एक कर्मचारियों का नाम चर्चा में है जो 12 हजार की तनख्वाह में 2 करोड़ से अधिक कि चल अचल संपत्ति अर्जित कर चुका है, वहीं उनके उच्च अधिकारी ने तनख्वाह से भी ज्यादा की चल-अचल संपत्ति अर्जित रिकार्ड बना लिया जिसकी जांच हुई तो मामला प्रकाश में आ जायेगा। हालांकि 1072 मामले में कुछ से रिकवरी हुई है, लेकिन वह पर्याप्त नियम संगत नहीं है।
1072 के शिकायतकर्ता ने आवाज उठाई तो मामला दबाने के पुरजोर प्रयास किया गया, लेकिन अंततः पुनः जांच शुरू होते ही कार्यालय मुखिया सहित सबके होश उड़ गए। सभी शिकायतों में एक बात समान्य है कि विभागाघ्यक्ष ने अनेकों बार मिली शिकायतों पर ध्यान नही दिया और कोई कार्यवाही नहीं की जिससें भ्रष्टाचार बढ़ता गया।इसी प्रकार की एक जांच में उप श्रमायुक्त मिर्जापुर क्षेत्र पिपरी ने अपने जांच में सहायक श्रमायुक्त को संदिग्ध करार दिया है जिससें स्पष्ट है कि बिना विभागीय मिली भगत के इतने बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम देना मुमकिन नहीं है।
वर्तमान जांच अधिकारी धर्मेंद्र कुमार सिंह पर भी विन्ध्याचल के गोपालपुर मामले में प्रश्न चिन्ह लगा है जिनकी एक जांच 28 नवंबर 2024 में शिकायतकर्ता महिला ने हलफनामा देकर शासन सहित श्रम विभाग उत्तर प्रदेश कार्यालय में शिकायत की है कि वे अपने विभाग के अधिकारी व उनके चहेते आदि को बचाना चाहते है और शिकायतकर्ता पर दबाव बना रहे है।गुरुवार को वाराणसी, जौनपुर, भदोही मिर्जापुर की टीम के अनेक सदस्य अपने-अपने तरीके से फर्जी योजनाओं में दिए गए लाभ की जांच कर रहे हैं।
मीडिया से बनाए रखे दूरी
जांच के दौरान कई अचंभित कर देने वाली बात सामने आईं है जिसको लेकर अधिकारी बोलने से गुरेज कर रहे है और मीडिया से दूरी बनाये रखे। मजे की बात यह है कि इस प्रकार की बड़ी जांच तीन बार हो चुकी है, लेकिन जिला प्रशासन को कानों कान खबर नहीं। जिले में श्रम विभाग को लेकर लगातार एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले चर्चा का विषय बना हुआ है। श्रमिकों के हित के लिए कार्य करने के नाम पर विभाग के कर्मियों का दामन साफ नहीं है। कुछेक एक मामले में कार्रवाई की खाना पूर्ति करते हुए मुख्य आरोपियों को पनाह देकर उनके सहयोगी कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही कर मामले की इति श्री करने का प्रयास किया गया है जिसकी जांच होनी चाहिए।
Apr 11 2025, 16:56