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*मोहनलाल की फिल्म बनी सियासी विवाद की वजह, कांग्रेस को बीजेपी-आरएसेस के खिलाफ मिला “हथियार”*
अभिनेता मोहनलाल की फिल्म एल2: एम्पुरान ने सियासी विवाद खड़ा कर दिया है। मोहनलाल और पृथ्वीराज सुकुमारन की फिल्म 'एल2: एम्पुरान' रिलीज होते ही विवादों में फंस गई है। 2002 के गुजरात दंगों के कथित संदर्भ और केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग की कहानी कह ही फिल्म ने राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। पहले दिन संघ परिवार ने सोशल मीडिया पर फिल्म की आलोचना की, जबकि कांग्रेस और वामपंथी मंचों के एक वर्ग ने दक्षिणपंथी राजनीति को कटघरे में खड़ा कर रही के फिल्म की सराहना की है।



'एल2: एम्पुरान' में कुछ विजुअल्स दिखाए गए हैं, जिन्हें 2002 के गुजरात दंगों और नरसंहार के रेफरेंस से जोड़कर देखा जा रहा है। फिल्म की शुरुआत सांप्रदायिक हिंसा के सीन्स से होती है, जो स्क्रीन पर 15 मिनट से अधिक समय तक चलते है, जबकि टाइटल सीक्वेंस में दिखाए गई तस्वीरें गोधरा कांड से मिलती-जुलती लगती हैं, जिसमें भगवा कपड़े पहने लोगों को ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच को जला दिया गया था। वहीं भीड़ द्वारा की गई हिंसा भी दिखाई गई है, जिसमें कई मुसलमान मारे जाते हैं। फिल्म में कुछ सीक्वेंस बिल्किस बानो केस से भी मिलते-जुलते हैं, जिसमें 11 लोगों को एक परिवार के कई सदस्यों के सामूहिक बलात्कार और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। भीड़ का नेतृत्व करने वाले बाबा बजरंगी का किरदार, बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी से मिलता-जुलता प्रतीत होता है, जिन्हें नरोदा पाटिया हत्याकांड की साजिश रचने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।



हमारे देश की सियासत को प्रभावित करने वाले घटनाओं में का जिक्र किया जाए तो “गुजरात दंगा” उसमें प्रमुखता से अपना स्थान रखता है। भले ही मेकर्स का कहना है कि फिल्म पूरी तरह से काल्पनिक है। फिल्म ने रिलीज के साथ ही सियासी हलचल को भी जन्म दे दिया है। केरल स्टोरी की तरह ये फिल्म भी राजनीतिक गलियारों में शोर मचा रही है। कांग्रेस इस फिल्म की जमकर तारीफ कर रही है और इसे बीजेपी-आरएसएस के खिलाफ एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है।


*कांग्रेस क्या कहती है?*
केरल युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और पलक्कड़ के विधायक राहुल ममकुट्टाथिल ने मोहनलाल और निर्देशक पृथ्वीराज सुकुमारन के खिलाफ प्रतिक्रिया की निंदा की है। एक फेसबुक पोस्ट में, ममकुट्टाथिल ने लिखा कि एम्पुरान ने "केरल के क्षेत्रीय गौरव" पर कब्जा कर लिया है, जैसा कि केजीएफ और पुष्पा ने अपने-अपने उद्योगों के लिए किया था। फिल्म के राजनीतिक पहलुओं को लेकर हो रही आलोचना के बीच उन्होंने लिखा: "वही लोग जिन्होंने द कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी जैसी फिल्मों के लिए 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' की वकालत की थी, अब एम्पुरान पर हमला कर रहे हैं। उनका आक्रोश उनके अपने विरोधाभासों को उजागर करता है।" उन्होंने मोहनलाल के खिलाफ एक "संगठित घृणा अभियान" करार दिया, जिसकी भी उन्होंने निंदा की और कहा कि किसी भी तरह की "सफाई" अतीत के दागों को नहीं धो सकती।


*फिल्म पर क्या बोली बीजेपी?*
वहीं, बीजेपी ने इस पूरे विवाद से दूरी बनाते हुए प्रतिक्रिया दी। पार्टी के राज्य सचिव एस सुरेश ने कहा, एम्पुरान कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। केरल बीजेपी इसमें दखल नहीं देगी। फिल्म प्रेमियों को यह स्वतंत्रता है कि वे इसे देखें, समर्थन करें या आलोचना करें।
*ट्रंप ने चीन पर आजमाया यूक्रेन वाला दांव, टैरिफ में कटौती के लिए रखी ये शर्त*
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक राजनेता होने के साथ-साथ एक अच्छे बिजनेसमैन भी है। ट्रंप 2 अप्रैल से कई देशों पर टैरिफ लादने वाले हैं और इसी दिन को उन्होंने ‘लिबरेश डे' यानी आजादी का दिन करार दिया है। इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया है कि वो कुछ देशों को रियायत दे सकते हैं और उनपर 2 अप्रैल से टैरिफ नहीं लादा जाएगा। उन देशों में चीन का नाम भी शामिल है। अपने ‘टैरिफ वॉर’ के तहत ट्रंप ने सबसे पहले चीन को निशाना बनाया था। लेकिन अब इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति ने यू-टर्न लेते दिख रहे हैं।



*चीन को टैरिफ से राहत के लिए रखी शर्त*
ट्रंप ने ओवल ऑफिस में मीडिया से बात करते हुए बताया कि वह चीन पर लगाए टैरिफ में कुछ राहत दे सकते हैं। हालांकि इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक बड़ी शर्त भी रख दी। ट्रंप ने कहा कि अगर चीन लोकप्रिय वीडियो शेयरिंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टिकटॉक बिक्री के लिए राजी हो जाता है, तो वह चीन को टैरिफ में कुछ छूट दे सकते हैं। ट्रंप ने कहा है कि शायद मैं इसे पूरा करने के लिए टैरिफ में थोड़ी कमी कर दूं या कुछ और करूं। इसका मतलब है कि ट्रंप टिक टॉप डील को फाइनल करने के लिए चीन को कुछ फायदे दे सकते हैं।



*समझौते के लिए डेडलाइन बढ़ाने को तैयार*
ट्रंप ने कहा कि टिक टॉक पर चीन के साथ किसी तरह का समझौता होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह समय पर नहीं हुआ तो वह डेडलाइन को 5 अप्रैल से आगे बढ़ा देंगे। ट्रंप ने कहा, 'चीन को इसमें एक भूमिका निभानी होगी, संभवतः मंजूरी के रूप में और मुझे लगता है कि वे ऐसा करेंगे।' मतलब, चीन की मंजूरी इस डील के लिए जरूरी है।



*अमेरिका में टिकटॉक का भविष्य अनिश्चित*
टिकटॉक को लंबे समय से प्राइवेसी और डेटा के लिहाज से सुरक्षित नहीं माना जाता। भारत में इसी वजह से इसे बैन किया जा चुका है। अमेरिका में भी पिछले कुछ समय से इसे बैन करने की मांग उठाई जा रही है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से ठीक पहले इसे बैन भी कर दिया गया था, लेकिन फिर ट्रंप ने इस पर लगे बैन को हटाकर इसे 75 दिन की राहत देने का फैसला लिया। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश से टिकटॉक को 75 दिनों की मोहलत दी है, जिसके तहत टिकटॉक को अमेरिका में अपने बिजनेस को किसी अमेरिकी कंपनी को बेचना होगा। ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका के पास टिकटॉक का 50 फीसदी मालिकाना हक रहे। यह मोहलत पांच अप्रैल को समाप्त हो जाएगी। इसके बाद चीनी एप को अमेरिका में प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।



*क्या टिकटॉक बेचने पर राजी होगा चीन?*
ट्रंप ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि अमेरिका, टिकटॉक को खरीदने में रुचि रखने वाले चार ग्रुप्स से बातचीत कर रहा है। हालांकि ट्रंप ने यह भी साफ कर दिया है कि अमेरिका में टिकटॉक तभी चलेगा, जब चीन उसे किसी अमेरिकी कंपनी को बेचने के लिए राज़ी हो जाएगा। हालांकि चीन के इस ऐप को बेचने की उम्मीद न के बराबर है, क्योंकि चीन के लिए टिकटॉक काफी फायदेमंद है।
*क्या भारत की आंखों में धूल झोंक रहें मुइज्‍जू ?
मालदीव और चीन के बीच होने जा रही बड़ी डील* जब मालदीव की सत्ता में मोहम्‍मद मुइज्‍जू आए, तो उन्होंने भारत की जगह चीन के साथ रिश्तों को तरजीह दी। हालांकि, भारत के साथ पंगा लेने का असर तुरंत दिखने लगा। देश की अर्थव्यवस्था को को डगमगाता देख मोहम्‍मद मुइज्‍जू भारत के “पांव पकड़ने” को मजबूर हो गए। हालांकि, लगता मुइज्‍जू बस भारत के साथ दोस्ती का दिखावा कर रहे हैं। दूसरी तरफ चीन के साथ रिश्तों को और मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए हैं।


मालदीव और चीन के बीच हिंद महासागर में मछलियों की गतिविधियों का पता लगाने और समुद्र की रासायनिक और भौतिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए समुद्र में मछली एकत्रीकरण उपकरणों (एफएडी) पर उपकरण लगाने को लेकर बातचीत चल रही है। हिंद महासागर में इस तरह का रिसर्च रणनीतिक प्रभावों को लेकर चिंता को बढ़ाता है।ये डिवाइसेस इस तरह से बनाए गए होते हैं कि मछल‍ियों की हरकत पर नजर रखते हुए केमिकल और फिजिकल समुद्री डेटा को भी इकट्ठा कर सकते हैं। चीन अगर अपने प्‍लान में सफल होता है तो वह हिंद महसागर में भारतीय नौसेना की हर हरकत पर आसानी से नजर रख पाएगा।


जानकारों का मानना है कि चीन एफएडी की मदद से मछलियों को इकट्ठा करता रहा है लेकिन इसके जरिए समुद्र का पूरा डेटा हासिल कर लिया जाता है। इससे चीन आसानी से भारत और अन्‍य देशों के खिलाफ सैन्‍य जासूसी को अंजाम दे सकता है। दरअसल, यह डिवाइस पानी के तापमान, खारेपन, तरंगों और अन्‍य चीजों को माप लेता है। यह डेटा नेवी के ऑपरेशन खासतौर पर सबमरीन के लिए बेहद जरूरी है। इससे सबमरीन आसानी से बिना पकड़ में आए एक जगह से दूसरी जगह पर आसानी से जाती हैं।


मालदीव के मत्स्य पालन और महासागर संसाधन मंत्री अहमद शियाम ने चीन के दूसरे समुद्र विज्ञान संस्थान की एक वरिष्ठ टीम से मुलाकात की थी। बैठक के बाद, मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी कि यह बातचीत दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने पर केंद्रित थी। साथ ही, चीन के अधिकारी मालदीव के पर्यटन और पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों के साथ-साथ मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों से भी मिले थे।


यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हुआ है जब मालदीव के जलक्षेत्र में चीन की मौजूदगी लगातार बढ़ती जा रही है। इससे पहले साल 2024 में चीन का महाशक्तिशाली जासूसी जहाज शियांग यांग होंग 03 भी मालदीव आया था।यह चीनी जासूसी जहाज ठीक उस समय मालदीव पहुंचा था जब मुइज्‍जू सरकार और भारत सरकार के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया था। यह श्रीलंका भी जाना चाहता था लेकिन कोलंबो की सरकार ने भारत के कहने पर अनुमति नहीं दी थी।
*इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर उठ रहे सवाल, प्राइवेट पार्ट पकड़ना और नाड़ा तोड़ना रेप क्यों नहीं?*
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले में कहा गया था कि किसी महिला गलत तरीके से पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना रेप नहीं माना जाएगा, बल्कि यह निर्वस्त्र करने के इरादे से किया गया हमला माना जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने ये कहा कि ये मामला गंभीर यौन हमले के तहत आता है। अब कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह बात उत्तर प्रदेश के कासगंज इलाके में 2021 मामले पर की, जब कुछ लोगों ने नाबालिग लड़की के साथ जबरदस्ती की थी। कासगंज की विशेष जज की अदालत में इस नाबालिग लड़की की मां ने पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया था, लेकिन अभियुक्तों ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के बाद ये फ़ैसला सुनाया।
इलाहाबाद कोर्ट के इस फैसले की हर तरफ निंदा हो रही है। सरकार का पक्ष हो या विपक्षी पार्टियों की राय हो या फिर आम जनता की बात हो, सभी एक सुर में इस फैसले पर आपत्ति जता रहे हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल के एक फैसले की कड़े शब्दों निंदा की है। कोर्ट के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री ने इसे गलत फैसला भी बताया है। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर ध्यान देने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसले से समाज में गलत संदेश जाएगा।
कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, जो कानून एक औरत की सुरक्षा के लिए बना है, इस देश की आधी आबादी उससे क्या उम्मीद रखे। जानकारी के लिए बता दूं भारत महिलाओं के लिए असुरक्षित देश है।
कोर्ट के इस फैसले पर डीसीड्ब्यू की पूर्व प्रमुख और आप सांसद स्वाति मालीवाल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण। मैं फैसले में की गई टिप्पणियों से बहुत स्तब्ध हूं। यह बहुत शर्मनाक स्थिति है। उन पुरुषों द्वारा किया गया कृत्य बलात्कार के दायरे में क्यों नहीं आता? मुझे इस फैसले के पीछे का तर्क समझ में नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए। ये फैसला आईपीसी की धारा 376 के तहत दिया गया है और इसके प्रावधान अलग हैं। धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है जिसके मुताबिक जब तक मुंह, या प्राइवेट पार्ट्स मे लिंग या किसी वस्तु का प्रवेश ना हो, वो बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है। जस्टिस मिश्रा ने इस केस में साफ किया कि सेक्शन 376, 511 आईपीसी या 376 आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 18 का मामला नहीं बनता है।



*क्या कहता है कानून?*
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत बताते हैं कि इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा है कि अगर आरोपी पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के तहत रेप मामले में दोषी करार दिया जाता है तो जिन कानूनी प्रावधान में अधिकतम सजा होगी वही लागू होगी। दरअसल, अदालत यह मैसेज देना चाहती है कि रेप जैसे गंभीर अपराधों में सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए। इस मामले में भी अदालत ने साफ तौर पर कहा था कि कोई अपराध आईपीसी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) दोनों के तहत आता है, तो पॉक्सो एक्ट की धारा-42 के अनुसार उस कानून के तहत सजा दी जाएगी जिसमें अधिक कठोर सजा हो। इस मामले में आईपीसी की धारा के तहत रेप मामले में ज्यादा कठोर सजा का प्रावधान है और ऐसे में वही सजा दी जाएगी। आरोपी की ओर से दलील दी गई थी कि पॉक्सो एक्ट में प्रावधान है कि वह स्पेशल एक्ट है और वह दूसरे कानूनी प्रावधान पर वरीयता रखता। ऐसे में आईपीसी के तहत अधिकतम सजा नहीं होनी चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।



*ऐसे ही मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट को लग चुकी है फटकार*
वहीं, बीते साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने पॉस्को के एक मामले को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट को जमकर फटकार लगाई थी। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामलों में हाई कोर्ट क्यों 'समझौते' की ओर झुकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से यौन संबंध को अपराध से मुक्त करने का सुझाव देने पर कलकत्ता हाईकोर्ट को फटकार लगाई थी। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोअर् का कर्तव्य साक्ष्य के आधार पर यह पता लगाना था कि क्या पोक्सो अधिनियम की धारा 6 और आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध किए गए थे। आईपीसी की धारा 375 में अठारह वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ उसकी सहमति से या उसके बिना संबंध बनाना बलात्कार का अपराध बनता है।



*क्या है मामला?*
ये मामला 2021 का है। मामले में लड़की की मां ने आरोप लगाया था कि 10 नंवबर 2021 को शाम पांच बजे जब वो अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ देवरानी के गांव से लौट रही थी तो अभियुक्त पवन, आकाश और अशोक मोटरसाइकिल पर उन्हें रास्ते में मिले। पवन ने उनकी बेटी को घर छोड़ने का भरोसा दिलाया और इसी विश्वास के तहत उन्होंने अपनी बेटी को जाने दिया। लेकिन रास्ते में मोटरसाइकिल रोककर इन तीनों लोगों ने लड़की से बदतमीजी की और उसके प्राइवेट पार्ट्स को छुआ। उसे पुल के नीचे घसीटा और उसके पायजामी का नाड़ा तोड़ दिया। मां के मुताबिक तभी वहां से ट्रैक्टर से गुजर रहे दो व्यक्तियों सतीश और भूरे ने लड़की का रोना सुना। अभियुक्तों ने उन्हें तमंचा दिखाया और फिर वहां से भाग गए। जब नाबालिग की मां ने पवन के पिता अशोक से शिकायत की तो उन्हें जान की धमकी दी गई जिसके बाद वे थाने गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
ये मामला कासगंज की विशेष कोर्ट में पहुंचा जहां पवन और आकाश पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), पॉक्सो एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) और अशोक के खिलाफ धारा 504 और 506 लगाई गईं। इस मामले में सतीश और भूरे गवाह बने, लेकिन इस मामले को अभियुक्तों की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। जिसके बाद अब इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
*प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार संघ मुख्यालय जा रहे मोदी, भाजपा अध्यक्ष चुनाव से पहले ये दौरा अहम क्यों?*
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस महीने के अंत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय जाएंगे। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार आरएसएस मुख्यालय जा रहे हैं। पीएम मोदी आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर के नाम पर विश्वस्तरीय माधव नेत्रालय की आधारशिला रखेंगे। इस उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में वे सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ मंच भी साझा करेंगे। भाजपा अध्यक्ष के चुनाव से पहले पीएम नरेंद्र मोदी का आरएसएस मुख्यालय जाना काफी अहम माना जा रहा है। वहीं, कई और सवाल भी उठ रहे हैं। दरअसल, नरेंद्र मोदी आठ वर्ष की उम्र में ही आरएसएस से जुड़ गए थे। वो संघ में विभिन्न पदों पर काम किया और प्रचारक भी रहे। फिर प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद आरएसएस मुख्यालय जाने में इतना वक्त क्यों लग गया? पीएम मोदी ने दो कार्यकाल पूरा कर लेने और तीसरे कार्यकाल के नौ महीने बीत जाने तक का इंतजार क्यों किया?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागपुर दौरे के लिए 30 मार्च की तारीख चुनी है, जिस दिन हिंदू नववर्ष शुरू हो रहा है। उसी दिन, मोदी नागपुर में आरएसएस समर्थित पहल माधव नेत्र अस्पताल की आधारशिला रखने वाले हैं। उद्घाटन समारोह में मोदी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ मंच साझा करेंगे, जो 2014 के बाद तीसरा और 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद पहला मौका हो सकता है। कार्यक्रम के बाद मोदी के नागपुर के रेशम बाग में आरएसएस मुख्यालय जाने की संभावना है।


*बीजेपी के नए अध्यक्ष की नियुक्ति से पहले मुलाकात* यह पहली बार होगा, जब देश का कोई प्रधानमंत्री आरएसएस के हेडक्वॉर्टर में जा रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी पहली बार है, जब पीएम मोदी आरएसएस के किसी दफ्तर में जाएंगे। यात्रा के दौरान मोदी और भागवत के बीच आमने-सामने की बैठक होने की उम्मीद है, चर्चा से ध्यान आकर्षित होने की संभावना है, खासकर जब भाजपा ने अभी तक अपने अगले अध्यक्ष की घोषणा नहीं की है।


*भैयाजी जोशी करेंगे स्वागत*
मोदी रेशमबाग में स्मृति मंदिर भी जाएंगे। वह आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देंगे। संघ की परंपरा है कि रेशमबाग हेडगेवार स्मृति मंदिर में कोई कितनी भी बड़ी हस्ती क्यों न जाए, उनके स्वागत के लिए अखिल भारतीय पदाधिकारी उपस्थित नहीं रहते। सिर्फ स्थानीय स्तर के पदाधिकारी ही स्वागत के लिए मौजूद रहते हैं। लेकिन, पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने पर संघ के पूर्व सरकार्यवाह और वर्तमान में अखिल भारतीय कार्यकारी सदस्य सुरेश भैयाजी जोशी मौजूद रहेंगे। चूंकि भैयाजी जोशी हेडगेवार स्मारक समिति के अध्यक्ष हैं, इसलिए वो पीएम मोदी का स्वागत करेंगे। इसके पूर्व अटल बिहारी बाजपेयी जब प्रधानमंत्री रहते गए थे, तब भी कोई शीर्ष पदाधिकारी मौजूद नहीं रहा था।


*आरएसएस-बीजेपी में तनाव की अटकलें के बीच मुलाकात*
यह मुलाकात ऐसे समय में हो रही है जब आरएसएस और बीजेपी नेतृत्व के बीच तनाव की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि, हालिया कई मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी ने आरएसएस की खुलकर तारीफ की है। मराठी साहित्य सम्मेलन के मंच पर जहां उन्होंने अपने जीवन में संघ के प्रभाव को बताया था, वहीं पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ पॉडकास्ट में भी पीएम मोदी ने आरएसएस के सौ साल की उपलब्धियों की चर्चा की।
*औरंगजेब की कब्र हटाना आसान नहीं, ये है राह में सबसे बड़ा “रोड़ा”*
मुगल शासक औरंगजेब को लेकर विवाद थमता नहीं दिख रहा है। हाल ही में रिलीज हुई छावा फिल्म के बाद मुगल शासक औरंगजेब को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ गई है। इस फिल्म में औरंगजेब को बेहद क्रूर शासक दिखाया गया है। वहीं, महाराष्ट्र के सपा नेता अबू आजमी ने औरंगजेब को महान शासक बता डाला। जिसके बाद तूफान खड़ा हो गया। उनके इस बयान ने आग में घी का काम किया। हालांकि अबू आजमी ने तो अपना बयान वापस ले लिया, लेकिन अब औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग तेज होने लगी है। राज्य के हिंदुवादी संगठनों ने औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग की है। ऐसा नहीं होने पर बाबरी स्टाइल में कारसेवा करने की चेतावनी दी है। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (पहले औरंगाबाद) में स्थित औरंगजेब की कब्र हटाने का मामला तूल पकड़ने लगा है। बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद ने महाराष्ट्र सरकार से इसे जल्द हटाने की मांग की है। विश्व हिंदू परिषद महाराष्ट्र और गोवा के क्षेत्रीय मंत्री गोविंद शेंडे ने औरंगजेब की कब्र को गुलामी का प्रतीक बताया। उन्होंने सोमवार को कहा- औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज को मारने से पहले 40 दिनों तक यातना दी थी। ऐसे क्रूर शासक का निशान क्यों रहना चाहिए।


*बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद का प्रदर्शन* औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर सोमवार को महाराष्ट्र भर में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद की ओर से प्रदर्शन किया गया। इस दौरान मुगल आक्रांताओं के पुतले भी जलाए जा रहे हैं। उधर, विवाद के बीच कब्र की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। विभिन्न स्थानों पर बैरिकेड्स लगा दिए गए हैं। ऐसी व्यवस्था की गई है कि वहां केवल एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सके। औरंगजेब के मकबरे का मुख्य द्वार पुलिस ने बंद कर दिया है। औरंगजेब की कब्र के पास जाना भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। फिलहाल औरंगजेब के मकबरे को बाहर से ही देख सकते हैं। *एएसआई संरक्षित है औरंगजेब की कब्र* इन सब के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या औरंगजेब की कब्र को हटाना इतना आसान है? तो इसका जवाब 'न' में है क्योंकि यह संरचना ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) संरक्षित है और वक्फ की संपत्ति भी। ऐसे में राज्य सरकार को इसे हटाने में कई कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ेगा।


*ऐतिहासिक धरोहरों के लिए देश में क्या कानून?* मुगल बादशाह की कब्र होने के नाते ये अब एक राष्ट्रीय धरोहर है। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि ऐतिहासिक धरोहरों के लिए देश में क्या कानून है। इसकी देखभाल कौन करता है और क्या सरकार चाहे तो इनको हटा या ढहा सकती है? जब देश आजाद हुआ तो उस समय 2826 ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षण की श्रेणी में रखा गया था। 2014 में ये संख्या बढ़कर 3650 हो गई थी। भारत में इन ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण का काम भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) करता है।


*धरोहरों के संरक्षण को लेकर क्या कहता है संविधान*
संविधान के अनुच्छेद 42 और 51 A(एफ) में बताया गया है कि देश की धरोहरों का संरक्षण करना राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। सभी धरोहरों के संरक्षण की जिम्मेदारी एएसआई के पास है. प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 की धारा 4 (1) के तहत केंद्र सरकार को ये अधिकार प्राप्त है कि वो किसी भी ऐतिहासिक इमारत या अन्य धरोहर को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे। संविधान के अनुसार संसद द्वारा बनाए कानून के तरह ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी कि वो राष्ट्रीय ऐतिहासिक धरोहर, इमारतों और आलेखों का संरक्षण और उसकी सुरक्षा करे। अगर उसे नुकसान पहुंचाने और तोड़फोड़ की कोशिश की जा रही हो तो उससे संरक्षण दे। अगर कोई उसे हटाने या उसमें बदलाव की कोशिश करता है तो ऐसे मामले में भी संरक्षण प्रदान करे। कुल मिलाकर ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और नियमन सरकार की जिम्मेदारी है।


*कहां हैं पेंच?*
ऐसे में औरंगजेब की कब्र को कानूनी तौर से महाराष्ट्र सरकार तब तक नहीं हटा सकती है जब तक कब्र एएसआई द्वारा संरक्षित है लेकिन Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act (AMASR) जिसके तहत औरंगजेब की कब्र को संरक्षण मिलता है, उसी कानून के सेक्शन-35 में प्रावधान है कि अगर सरकार को लगता है कि इमारत ने अपना राष्ट्रीय धरोहर का महत्व खो दिया है तो वह किसी भी संरक्षित स्मारक को हटा सकती है लेकिन इसमें भी कई पेंच है।


*पहले संरक्षित सूची से हटाना होगा*
एएसआई के नियमों के मुताबिक, उसके द्वारा संरक्षित किसी भी स्मारक को संरक्षण सूची से हटाने के लिए राज्य सरकार, एएसआई का सर्किल जिस पर स्मारक के संरक्षण का जिम्मा है या फिर किसी अन्य सरकारी संस्था में से किसी एक को कारणों के साथ एएसआई या फिर सरकार को AMASR Act के सेक्शन-35 के तहत एक प्रपोजल देना होगा कि उनके द्वारा नामित स्मारक जो एएसआई की संरक्षण सूची में है उसे संरक्षण की सूची से हटाए जाए। औरंगजेब के कब्र के मामले में चूंकि महाराष्ट्र सरकार इच्छा व्यक्त कर चुकी है तो महाराष्ट्र सरकार को एएसआई या फिर संस्कृति मंत्रालय के नाम औरंगजेब की कब्र को संरक्षित सूची से हटाने का प्रपोजल देना होगा।
*मॉरिशस से बिहार साध गए पीएम मोदी, यूं ही नहीं दिखाया भोजपुरी प्रेम*
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस के दो दिन के राजकीय दौरे पर हैं। मंगलवार शाम मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम ने उन्हें देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देने की घोषणा की। इस इवेंट में पीएम मोदी ने इंडियन डायस्पोरा को संबोधित किया। उन्होंने भोजपुरी में अपने भाषण की शुरुआत की। प्रधानमंत्री यह बताना वहां नहीं भूले कि वह भी पूर्वांचल से सांसद है जहां भोजपुरी बोली जाती है। इतना ही नहीं, मोदी ने तो वहां भोजपुरी में बोलते हुए यह तक कह दिया कि हम बिहार के गौरव फिर से वापस लाइब।


राजनीति में बयानों के बड़े मायने होते हैं। और प्रधानमंत्री मोदी तो राजनीति के बड़े मंझे हुए खिलाड़ी है। जानकारों की माने तो प्रधानमंत्री के मॉरीशस दौरे में भोजपुरी के प्रति अगाध प्रेम का इजहार यूं ही नहीं किया। बिहार मे विधानसभा चुनाव इसी साल के नवंबर महीने में है। ऐसे में सवाल के जा रहे है कि पीएम मोदी के मॉरीशस दौरे में बिहार और बिहार से जुडे जिक्र का विधानसभा चुनाव से कोई कनेक्शन तो नहीं है?


जानकारों की मानें तो मोदी तो मॉरिशस में रहे लेकिन उनकी नजर पूरी तरीके से बिहार चुनाव रही। आज तक बिहार में कभी भी बीजेपी ने अपने दम पर सरकार नहीं बनाई है, न ही यहां कभी बीजेपी का मुख्यमंत्री बना है। हालांकि इस बार पार्टी यहां हर हाल में एकतरफा कमल खिलाने की कोशिश में लगी हुई है। इसी क्रम में मॉरीशस की अपनी यात्रा में पीएम मोदी ने कहीं ना कहीं बिहार की चुनावी सियासत को प्रभावित करने की कोशिश की।


प्रधानमंत्री ने मॉरीशस पहुंचकर अपने स्वागत का वीडियो सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर डाला। खास बात यह रही कि मोदी के एक्स हैंडल से अंग्रेजी-हिंदी के साथ-साथ भोजपुरी में भी वीडियो पोस्ट की गई। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा कि मॉरीशस में यादगार स्वागत भइल। सबसे खास रहल गहिरा सांस्कृतिक जुड़ाव, जवन गीत - गवई के प्रदर्शन में देखे के मिलल। ई सराहनीय बा कि महान भोजपुरी भाषा मॉरीशस के संस्कृति में आजुओ फलत-फूलत बा और मॉरीशस के संस्कृति में अबहियो जीवंत बा।


मोदी ने मॉरीशस में अपने भाषण की शुरुआत भोजपुरी में की। मोदी ने अपने 30 मिनट के भाषण के दौरान अक्सर भोजपुरी का इस्तेमाल किया। पीएम ने अपने पूर्वाचंल के सांसद होने की भी जानकारी दे डाली। उन्होंने कहा पूर्वाचंल के सांसद होवे के नाते हम जननी कि बिहार का सामर्थ्य कितना ज्यादा बा। एक समय रहे जब बिहार दुनिया का समृद्धि के केंद्र रहल अब हम मिलके बिहार के गौरव वापस लइके काम करल हइजा।


मॉरीशस के प्रधानमंत्री को गिफ्ट के तौर पर भी बिहार में बने मखाने भेंट किए। उन्होंने कहा कि बिहार का मखाना आज भारत में बहुत चर्चा में है। आप देखेंगे कि वो दिन दूर नहीं जब बिहार का यह मखाना दुनिया भर में स्नैक्स मैन्यू का हिस्सा होगा। हम जानिला की हियां मखाना के कितना पसंद करला जा, हमके भी मखाना बहुत पसंद बा। बता दें कि इस बार बजट में बिहार के लिए केंद्र ने पिटारा खोल दिया था। इसमें बिहार में मखाना उद्योग के लिए भी कई योजनाएं लाई गईं थी।


बिहार में लगभग ऐसे 10 से 15 जिले हैं जहां भोजपुरी जबरदस्त तरीके से बोली जाती है। इनमें बक्सर, आरा, सासाराम, काराकट, औरंगाबाद जैसी लोकसभा सीटें भी है, जहां भाजपा का प्रदर्शन पिछले चुनाव में अच्छा नहीं रहा था। बिहार की भोजपुरी बेल्ट में लगभग 100 विधानसभा सीटों के आसपास का समीकरण आता है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी उन सीटों पर पार्टी को जीत दिलाने के लिए भोजपुरी प्रेम दिखा रहे हैं। इतना ही नहीं, भोजपुरी पूर्वांचल में भी जबरदस्त तरीके से बोली जाती है। उत्तर प्रदेश के ऐसे 20 से 22 जिले हैं जहां भोजपुरी मुख्य भाषा है। ऐसे में न सिर्फ बिहार बल्कि पीएम मोदी यूपी को भी साधने की कोशिश में है।
*क्या रूस और चीन की दोस्ती में दरार लाने की कोशिश में हैं ट्रंप?*
अमेरिका और रूस को दो ध्रुव कहा जाता रहा है। ये दोनों देश खुद को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत मानते हैं। जिसने इन दोनों देशों को आमने-सामने लगाकर खड़ा कर दिया। हालांकि, बीते कुछ समय में इस तरह के हालात पैदा हुए है, जिससे पूरी दुनिया हैरान है। अमेरिका और रूस करीब आ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दशकों पुरानी अमेरिकी विदेश नीति से उलट, रूस के करीब जा रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं क्या अमेरिका एक बड़ी नई रणनीति पर काम कर रहा है? क्या ये रूस को चीन से दूर करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है?

चीन और रूस के बीच संबंधों में गर्मजोशी कोई छुपी बात नहीं है। यूक्रेन पर हमले के कुछ हफ़्ते पहले रूस और चीन ने अपने संबंधों को सीमाओं से परे बताया था। युद्ध के दौरान जब रूस पश्चिम के कड़े प्रतिबंधों का सामना कर रहा था तो चीन से पुतिन को मदद मिलती रही। लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने यूक्रेन के मामले में अपनी नीति में जो यू-टर्न लिया है, उसे चीन को असहज करने वाला बताया जा रहा है। यूक्रेन-रूस जंग में चीन, ईरान और उत्तर कोरिया की क़रीबी बढ़ी है। ट्रंप को लगता है कि अमेरिका की गलत नीतियों के कारण ऐसा हुआ है।

अब, ट्रंप प्रशासन रूस के करीब जाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका के इस कदम ने न केवल यूरोपीय सहयोगियों को चिंतित कर दिया है, बल्कि चीन में भी हलचल मचा दी है। चीन और रूस के बीच की बढ़ती साझेदारी को कमजोर करने की ट्रंप की कोशिशें यह दिखाती हैं कि वाशिंगटन अब चीन को सबसे बड़ा खतरा मान रहा है। जानकारों की मानें तो रूस की तरफ अमेरिका का झुकाव, एक बड़े रणनीतिक खेल का हिस्सा है। ट्रंप की इस योजना को ‘रिवर्स निक्सन’ कहा जा रहा है। यह वही रणनीति है, जिसका इस्तेमाल 1970 के दशक में अमेरिका ने सोवियत संघ को कमजोर करने के लिए किया था।



*क्या है ‘रिवर्स निक्सन’?*
रिचर्ड निक्सन 1969 से 1974 तक अमेरिका के राष्ट्रपति थे। निक्सन के कार्यकाल को शीत युद्ध की मानसिकता से निकल कम्युनिस्ट शासन वाले देशों से संबंध ठीक करने के रूप में भी देखा जाता है। रिचर्ड निक्सन ने हेनरी किसिंजर को विदेश मंत्री बनाया था। किसिंजर चीन से संबंध सामान्य करने के हिमायती थे। तब किसिंजर को लगता था कि चीन से संबंध सामान्य कर सोवियत यूनियन और चीन के बीच दरार का फायदा उठाना चाहिए।यह वही समय था, जब चीन और सोवियत संघ में सीमा पर तनाव चल रहा था। निक्सन ने सोवियत यूनियन और चीन के बीच दरार को मौक़े के रूप में देखा था। अब रूस-चीन की दोस्ती इतनी मजबूत हो गई है कि ट्रंप इसे तोड़कर अमेरिका के लिए मौके के रूप में देख रहे हैं। निक्सन और ट्रंप में कई समानताएं हैं। रिचर्ड निक्सन भी रिपब्लिकन पार्टी से थे और ट्रंप भी इसी पार्टी से हैं। निक्सन भी हार्डलाइनर दक्षिणपंथी थे और ट्रंप भी ऐसे ही हैं। निक्सन भी रूस और चीन के बीच दरार का फ़ायदा उठाना चाहते थे और ट्रंप भी यही करने की कोशिश कर रहे हैं।



*क्या चीन और रूस को अलग कर सकते हैं ट्रंप?* हेनरी किसिंजर ने ट्रंप को पहले कार्यकाल में सलाह दी थी कि चीन को अलग-थलग करने के लिए रूस से संबंध सुधारना चाहिए। कहा जाता है कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में रूस के साथ ऐसा नहीं कर पाए थे क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी ने ट्रंप को पुतिन की कठपुतली कहना शुरू कर दिया था। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल अक्तूबर में टकर कार्लसन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि एक चीज़ जो आप कभी नहीं चाहेंगे कि हो, वो है रूस और चीन का एक साथ आना। ट्रंप ने कहा था, मैं दोनों को अलग करने जा रहा हूँ और मुझे लगता है कि मैं ये कर सकता हूँ। यह हमारी मूर्खता है कि हमने चीन और रूस को एक साथ कर दिया।



*लगातार रूस का समर्थन*
रूस को लेकर सबसे बड़ा बदलाव 12 फरवरी को देखने को मिला, जब ट्रंप ने राष्ट्रपति पुतिन के साथ 90 मिनट तक फोन पर बात की। इसके बाद उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर ज़ेलेंस्की पर शांति समझौते पर सहमत होने के लिए दबाव डाला और अमेरिका की ओर से बिना कोई सुरक्षा गारंटी दिए यूक्रेन के इलाके को रूस के हवाले करने की अपील की।ट्रंप ने यह भी कहा कि जंग के बाद यूक्रेन नेटो का सदस्य नहीं बन पाएगा। यही नहीं, यूक्रेन जंग शुरू होने की तीसरी वर्षगांठ पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग में भी अमेरिका ने रूस का पक्ष लिया था। अमेरिका ने इस दौरान रूस की निंदा करने से इनकार किया था।



*चीन को क्या हो सकता है नुकसान?*
बीजिंग और मॉस्को का रिश्ता पिछले कुछ सालों में मजबूत हुआ है। रूस, चीन के लिए ऊर्जा का बड़ा स्रोत है और दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग भी बढ़ा है। लेकिन ट्रंप की ‘रिवर्स निक्सन’ नीति इन संबंधों को प्रभावित कर सकती है। अगर अमेरिका रूस को चीन से अलग करने में सफल हो जाता है, तो चीन न केवल भू-राजनीतिक रूप से कमजोर हो जाएगा, बल्कि उसे पश्चिमी देशों से और ज्यादा दबाव का सामना करना पड़ेगा। चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में है। अगर रूस अमेरिका की तरफ झुकता है, तो चीन के लिए सस्ते तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हो सकती है।
*क्या गुजरात में बीजेपी को टक्कर दे सकेगी कांग्रेस, मोदी के गढ़ में राहुल को राहें कितनी मुश्किल?*
लोकसभा में नेता विपक्ष बनने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जुलाई, 2024 में कहा था कि हम गुजरात में मोदी और बीजेपी को हराएंगे। हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में कांग्रेस की हार के बाद अब राहुल गांधी बीजेपी को उसके सबसे मजबूत गढ़ में घेरना चाहते हैं। इसके लिए राहुल गांधी ने “कसरत” भी शुरू कर दी है।


गुजरात विधानसभा चुनाव में अभी ढाई साल का वक्त बाकी है, लेकिन सियासी समीकरण अभी से ही सेट किए जाने लगे हैं। कांग्रेस के अप्रैल में होने वाले दो दिन के राष्ट्रीय अधिवेशन से ठीक एक महीने पहले राहुल गांधी गुजरात में कांग्रेस की जमीन को टटोलने पहुंचे हैं ताकि अधिवेशन में उसी के अनुरुप रणनीति बनाई जा सके। राहुल गांधी ने शुक्रवार को अहमदाबाद पहुंचकर पार्टी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने पीसीसी और जिला अध्यक्षों सहित ब्लॉक अध्यक्षों से मुलाकात किया। इसके बाद राहुल ने स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया। अब इंतजार अप्रैल का है।


अहमदाबाद में अप्रैल में होने वाला एआईसीसी अधिवेशन सूबे में पार्टी को फिर से खड़ा करने की पहल का आगाज साबित हो सकती है। अहमदाबाद अधिवेशन के पहले दिन आठ अप्रैल को विस्तारित कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होगी। जबकि नौ 9 अप्रैल को एआइसीसी प्रतिनिधियों की बैठक होगी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दोनों बैठकों की अध्यक्षता करेंगे। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय पदाधिकारी, वरिष्ठ पार्टी नेता आदि भी इस दिवसीय बैठक में मौजूद रहेंगे।


राहुल गांधी 2027 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 2017 जैसी कड़ी टक्कर देते हुए सत्ता तक कांग्रेस को पहुंचाना चाहते हैं। गुजरात में कांग्रेस अभी मुख्य विपक्षी दल है। दिल्ली में आप के सत्ता से बाहर होने के बाद गुजरात में उसका राजनीतिक प्रभाव कमजोर होने की आशंकाए बढ़ गई है। इस लिहाज से कांग्रेस के पास गुजरात में मजबूत विपक्षी विकल्प के रूप में उभरकर आने का मौका है। कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि राहुल गांधी का 2025 में पूरे साल सक्रिय रहेंगे। इसके अलावा शीर्ष नेतृत्व से अन्य नेता भी गुजरात का दौरा करेंगे। वरिष्ठ नेता ने कहाकि राहुल गांधी इस बात से सहमत हैं कि 2027 में बीजेपी को बैकफुट पर धकेला जा सकता है। राहुल गांधी गुजरात को इस बार गंभीर दिख रहे हैं।


1995 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनी सियासी जड़ें ऐसी जमाई की आज तक कांग्रेस उसे उखाड़ नहीं सकी। गुजरात की सत्ता से बाहर होने के बाद से कांग्रेस का वनवास जारी है। गुजरात में बीजेपी को हराने की काट कांग्रेस नहीं तलाश सकी है और कांग्रेस धीरे-धीरे सियासी हाशिए पर पहुंच गई है।गुजरात बीजेपी का वो गढ़ है, जहां पिछले तीन दशकों से उसका दबदबा कायम है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 182 में से 156 सीटें जीतकर अपना परचम लहराया था, जबकि कांग्रेस महज 17 सीटों पर सिमट गई थी।


लोकसभा चुनावों में भी 2014 और 2019 में बीजेपी ने गुजरात की सभी 26 सीटें झटक लीं। यहां तक कि 2024 में, कांग्रेस ने एक सीट (बनासकांठा) जीती, लेकिन बीजेपी का वर्चस्व कमजोर नहीं पड़ा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे दिग्गजों की गृहक्षेत्र होने के नाते, गुजरात बीजेपी के लिए न सिर्फ राजनीतिक, बल्कि भावनात्मक गढ़ भी है। ऐसे में राहुल गांधी का यह दावा कि गुजरात बीजेपी मुक्त होगा एक बड़ी चुनौती की तरह सामने आता है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस बीजेपी को गुजरात में हराने में कामयाब होगी?
*युद्ध कौशल में निपुण वो वीरांगना, जिसने 30 अंग्रेजों को अकेले मार गिराया*
*बुंदेले हरबोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी*
जैसे इस एक पंक्ति से रानी लक्ष्मीबाई की पहचान सुनिश्चित हो जाती है, ठीक वैसे ही एक पंक्ति है – *कोई उनको हब्सिन कहता कोई कहता नीच अछूत,अबला कोई उन्हें बताए कोई बताए उन्हें मजबूत*
ये पंक्ति भी किसी वीरांगना के सम्मान में कही गई है। वो वीरांगना जिसने 1857 की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।हममे से शायद ही कोई इस दलीत वीरांगना *ऊदा देवी* को कोई जानता हो, जिसने लखनऊ के सिकंदर बाग में ब्रिटिश सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया था। ऊदा देवी का जन्म अवध के उजरियांव में हुआ था। उनके जन्म की ठीक-ठीक तारीख कहीं दर्ज नहीं है, इसलिए वह कब पैदा हुईं यह बताना मुश्किल है।ऊदा देवी का संबंध पासी जाति से था। वक्त के साथ-साथ बड़ी हुईं ऊदा की शादी कम उम्र में ही उनकी शादी मक्का पासी नाम के युवक से कर दी गयी।इस तरह वह ससुराल पहुंच गई। जहां उन्हें नया नाम *जगरानी* मिला।


*पति से प्रेरणा लेकर महिला दस्ता में हुईं शामिल*
देश अंग्रेजों के अधीन था, लेकिन धीरे धीरे स्वतंत्रता के लिए भारतीय मुखर होने लगे थे। ऐसा ही एक वक्त था 1847 का, जब अमजद अली शाह के पुत्र वाजिद अली शाह ने छठवें नवाब के तौर पर लखनऊ की गद्दी संभाली। सत्ता संभालते ही उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए रंगरूटों की भर्ती करनी शुरू कर दी। ऊदा देवी के पति मक्का पासी जो काफी साहसी और वीर थे अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए सेना में भर्ती हो गए। कहते हैं अपने पति मक्का पासी को शाह दस्ते में भर्ती होता देख ऊदा देवी भी वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में भर्ती हो गई।


*पति की मौत से टूटी नहीं*
1857 देश के इतिहास का वो वक्त था जब पूरे भारतवर्ष में गदर छिड़ गया था।हिन्दुस्तान की आजादी का पहला गदर शुरू हो चुका था। सैनिक विद्रोह की शक्ल में, अलग-अलग जगहों पर देश के वीर सपूत अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे।10 जून सन 1857 जब अंग्रेजों ने अवध पर हमला कर दिया था। लखनऊ के इस्माइलगंज में ब्रिटिश हुकूमत की सैनिक टुकड़ी से मौलवी अहमद उल्लाह शाह के नेतृत्व में एक पलटन लड़ रही थी। इस पलटन में ही मक्का पासी भी थे। अंग्रेजों से लड़ते हुए मक्का वीरगति को प्राप्त हुए।जब ये खबर ऊदा देवी तक पहुंची तो वो किसी आम औरत की तरह टूटी नहीं, बल्कि उनमें अंग्रेजों के खिलाफ लड़के की भावना और तेज हो गई।


*और खुंखार हुई घायल शेरनी*
इस घायल शेरनी ने अंग्रेजों से इसका प्रतिशोध लेने की ठानी।वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में तो वह पहले से ही थीं। पति की शहादत के बाद अग्रेजों से बदला लेने की ठानी इस वीरांगना ने बेगम हजरत महल की मदद से महिला लड़ाकों का पृथक बटालियन बना लिया।


*30 अंग्रेजों को अकेले मौत के घाट उतारा*
16 नवंबर 1857 को जब सार्जेंट कैल्विन कैम्बेल के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने अवध के सिकंदर बाग में ठहरे भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया।इस विकट परिस्थिति में पुरूषों के वेश में ऊदा देवी और उनकी बटालियन की दलित वीरांगनाओं ने मोर्चा संभाला और अंग्रेज सैनिकों को द्वार पर ही रोक दिया। लड़ाई के वक्त ऊदा देवी अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर पीपल के पेड़ पर चढ़ गई। उन्होंने पेड़ पर से ही गोलियां बरसानी शुरू कर दीं और 30 से ज्यादा अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। अपने पराक्रम से उन्होंने काफी देर तक अंग्रेज सैनिकों को प्रवेशद्वार पर ही रोके रखा।

*ऊदा देवी के युद्ध कौशल के अंग्रेज भी हुए कायल* अंग्रेजों की समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार गोलियां कहां से चल रही हैं। मारे गये सैनिकों के शरीर में लगे गोलियों के निशान से पता चला कि कोई ऊपर से फायरिंग कर रहा है। अंग्रेजों ने देखा कि कोई पीपल के पेड़ के झुरमुट में छिपकर गोलियां चला रहा है। इस पर अंग्रेजों ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए गोलियां चलायीं।गोलियां लगते ही ऊदा देवी नीचे गिर पड़ीं। अब अंग्रेजों ने ताबड़तोड़ गोलियां दागनी शुरू कर दीं। उनके प्राण पखेरू उड़ गये, तब जाकर अंग्रेज उनके करीब पहुंचे और देखा कि जिसे वे पुरुष मान रहे थे, वह तो एक औरत थी। एक महिला का अदम्य साहस देख अंग्रेज सार्जेंट काल्विन चकित था। ऊदा देवी की वीरता से अभिभूत काल्विन ने अपना हैट उतारकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। भले ही भारतीय इतिहास में अंग्रेजों खिलाफ साहस दिखाने वाली इस वीरांगना का जिक्र ना हो, लेकिन लंदन टाइम्स अखबार के वार कॉरेस्पोंडेंट विलियम हावर्ड रसेल जो लखनऊ में ही कार्यरत थे ने सिकंदर बाग में हुई लड़ाई के बाद लंदन स्थित लंदन टाइम्स दफ्तर में खबरें भेजी थीं। विलियम हावर्ड रसेल ने सिकंदर बाग की लड़ाई को लेकर अपनी खबर में पुरुषों के कपड़े पहनकर एक महिला द्वारा पेड़ से फायरिंग करने और कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डालने का जिक्र किया था। अपने अदम्य साहस और युद्ध कौशल से ऊदा देवी ने साबित कर दिया की महिलाएं कमजोर नहीं होती। वो चाहें तो बड़ी से बड़ी फौज से टकरा सकती है।