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1999 में बनी, 25 साल में ही टूट गई कुशीनगर की मदनी मस्जिद; जानें क्यों

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में बनी मदनी मस्जिद पर आखिरकार रविवार को प्रशासन ने बुलडोजर चला ही दिया. 1999 में बनी इस मस्जिद में अवैध निर्माण का विवाद लंबे समय से चल रहा था. इस संबंध में कुशीनगर जिला प्रशासन को कई बार शिकायत दी गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. आखिर में जब मुख्यमंत्री के संज्ञान में मामला आया तो 54 दिन पहले प्रशासन ने कार्रवाई शुरू की. हालांकि उस समय मस्जिद पक्ष के लोगों ने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया था. अब स्टे की अवधि पूरी होने के बाद रविवार की सुबह प्रशासन ने कार्रवाई की है.

मामला कुशीनगर में हाटा नगर पालिका क्षेत्र का है. साल 1999 में कुछ लोगों ने दो मंजिल के भवन का नक्सा पास कराया और नियमों को ताक पर रखकर बेसमेंट के अलावा चार मंजिल के भवन का निर्माण करा लिया. उसी समय हिन्दूवादी नेता राम बच्चन सिंह ने जिला प्रशासन में इस अवैध निर्माण की शिकायत दी थी. हालांकि राजनीतिक दबाव की वजह से प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की. साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी तो रामबचन सिंह ने एक बार फिर से इसकी पैरवी शुरू की.

सीएम योगी के निर्देश पर हुआ एक्शन

उन्होंने कई बार तहसीलदार से लेकर डीएम तक से मिलकर शिकायत की. बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं हुई. आखिर में राम बच्चन सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर शिकायत दी. इसके बाद सीएम योगी ने डीएम को मामले की जांच कराने के आदेश थे. इसके बाद हरकत में आए जिला प्रशासन ने 18 दिसंबर को मामले की जांच पड़ताल की और 23 दिसंबर को जांच पूरी होने के बाद मदनी मस्जिद के पक्षकारों को लगातार तीन बार नोटिस जारी किया. हालांकि मस्जिद पक्ष से एक बार भी इस नोटिस का जवाब नहीं दिया गया. ना ही इस मस्जिद के संबंध में कोई दस्तावेज भी पेश किया गया.

8 फरवरी तक लगी थी रोक

ऐसे में कुशनगर नगर पालिका ने मस्जिद की बिल्डिंग को अवैध मानते हुए इसे गिराने की कोशिश की. हालांकि उस समय मस्जिद पक्ष के लोग हाईकोर्ट चले गए और 8 फरवरी तक मस्जिद के खिलाफ किसी भी कार्रवाई पर रोक लग गई. रविवार को स्टे अवधि पूरी होने पर 7 बुलडोजर और भारी संख्या में पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंची नगर पालिका की टीम ने अवैध रूप से बने हिस्से को गिरा दिया है. इस कार्रवाई के दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए मौके पर तो पुलिस बल तैनात था ही, पूरे जिले में पुलिस को अलर्ट पर रखा गया था.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कल महाकुंभ में करेंगी पवित्र स्नान, सुरक्षा व्यवस्था कड़ी

महाकुंभ में श्रद्धालुओं की आस्था का सैलाब उमड़ रहा है. इसी बीच देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कल प्रयागराज के संगम नोज पर पवित्र स्नान करने आ रही हैं. राष्ट्रपति महाकुंभ में करीब पांच घंटे बिताएंगी और इस दौरान वे अक्षयवट एवं बड़े हनुमान मंदिर में भी पूजा-अर्चना करेंगी. उनकी यात्रा को लेकर प्रयागराज मेला प्राधिकरण, जिला पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है. उनके आगमन के मद्देनजर महाकुंभ क्षेत्र में वाहनों के आवागमन और नावों के संचालन पर प्रतिबंध लगाया गया है.

राष्ट्रपति मुर्मू कल सुबह 11 बजे प्रयागराज के बमरौली हवाई अड्डे पर पहुंचेंगी. वहां से वे हेलीकॉप्टर के जरिए अरैल क्षेत्र के डीपीएस हेलीपैड पहुंचेंगी. इसके बाद वे कार से अरैल वीवीआईपी जेटी जाएंगी और वहां से निशादराज क्रूज के माध्यम से संगम तट तक जाएंगी. दोपहर करीब 12 बजे वे संगम में पवित्र स्नान करेंगी. इसके बाद वे गंगा पूजन और आरती करेंगी. सुरक्षा कारणों से राष्ट्रपति की उपस्थिति में संगम क्षेत्र और आसपास के प्रमुख घाटों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी. हालांकि, बाकी घाटों पर आम श्रद्धालु स्नान कर सकेंगे.

महाकुंभ क्षेत्र में लागू होंगे यातायात प्रतिबंध

राष्ट्रपति मुर्मू की यात्रा को देखते हुए प्रयागराज प्रशासन ने कई पाबंदियां लागू की हैं. अरैल, संगम, किले और बड़े हनुमान मंदिर जाने वाले मार्गों पर वाहनों का आवागमन पूरी तरह बंद रहेगा. संगम क्षेत्र में नावों का संचालन भी प्रतिबंधित कर दिया गया है. प्रशासन के अनुसार, राष्ट्रपति के संगम से लौटने के बाद ही नावों को संचालित करने की अनुमति दी जाएगी. सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के लिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी पूरी मुस्तैदी से लगे हुए हैं.

सुरक्षा और प्रशासनिक तैयारियां जोरों पर

राष्ट्रपति के आगमन को देखते हुए प्रयागराज मेला प्राधिकरण और जिला प्रशासन ने व्यापक तैयारियां की हैं. सुरक्षा के लिहाज से संगम क्षेत्र में ड्रोन कैमरों की मदद से निगरानी की जाएगी. जल पुलिस, एनडीआरएफ और अन्य सुरक्षा एजेंसियां भी अलर्ट मोड में रहेंगी. इसके अलावा, राष्ट्रपति की आवाजाही के दौरान हर गतिविधि पर पैनी नजर रखी जाएगी. महाकुंभ में राष्ट्रपति मुर्मू की यह यात्रा आस्था और परंपरा का एक महत्वपूर्ण क्षण होगी, जिसकी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है.

प्रयागराज महाकुंभ: भारी भीड़ के कारण स्टेशन के गेट बंद, ट्रैफिक जाम में फंसे श्रद्धालु

प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान पिछले कुछ दिनों से भीड़ कम होने की बात सामने आ रही थी, वहीं अखाड़ों के साधु-संतों की निकासी भी हो रही थी. इन खबरों के बाद एक बार फिर से लाखों श्रद्धालु महाकुंभ में जा पहुंचे. प्रयागराज में एक बार फिर से भारी भीड़ दिखाई दे रही है. जिसकी वजह से स्टेशन के गेट बंद कर दिए गए. जो लोग अंदर फंसे हुए हैं वह अंदर ही रह गए. रेलवे स्टेशन से भारी भीड़ रेलवे ट्रैक के सहारे ही आगे बढ़ती हुई दिखाई दी.

प्रयागराज जाने वाले सभी रास्तों पर भीषण ट्रैफिक जाम की स्थिति बन गई है. हालात ये है कि बच्चे-बूढ़े और अन्य श्रद्धालु पानी-खाने के लिए जाम में फंसे तड़प रहे हैं. इस पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी ट्वीट करके लोगों के लिए तुरंत व्यवस्था करवाने की बात कही है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि महाकुंभ में हर तरफ भूखे, प्यासे, बेहाल और थके तीर्थयात्री दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने राज्य सरकार से अपील की है कि उन्हें मानवीय दृष्टि से देखा जाए तो तुरंत व्यवस्थाएं की जाएं.

दिल्ली में जल्द ही बनेगी बीजेपी की ट्रिपल इंजन की सरकार… जानिए नंबर का गेम प्लान

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की है. विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भाजपा नजरें अब दिल्ली नगर निगम पर है. दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के मेयर के चुनाव इसी साल अप्रैल में प्रस्तावित है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद अब दिल्ली नगर निगम चुनाव को भी दखल करने की बीजेपी ने योजना बनाई है.

आइए समझते हैं दिल्ली नगर निगम का गणित क्या है? कैसे बहुमत नहीं होने के बावजूद दिल्ली में बीजेपी का मेयर बन सकता है.

दिल्ली नगर निगम में कुल 250 पार्षद हैं. इन पार्षदों के अलावा दिल्ली के सभी सात सांसद और राज्य सभा के तीन सांसद और दिल्ली के 14 विधायक मेयर पद के चुनाव में मतदान करते हैं. फिलहाल बीजेपी के पार्षदों की संख्या 120 है. वहीं, आम आदमी पार्टी के पार्षदों की संख्या 122 है.

बीजेपी के आठ पार्षदों ने जीता विधानसभा चुनाव

विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आठ पार्षदों को उम्मीदवार बनाया था. वो सभी विधानसभा चुनाव जीत गए हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी के 3 पार्षदों को टिकट दिया था. ये भी चुनाव जीत गए थे.

विधानसभा चुनाव जीतने वाले बीजेपी पार्षद, जिन्होंने चुनाव जीता है, वे हैं मुंडका से गजेंद्र दराल, नजफगढ़ से नीलम पहलवान, विनोद नगर से रविंदर सिंह नेगी, राजेंद्र नगर से उमंग बजाज, संगम विहार से चंदन चौधरी, शालीमार बाग से रेखा गुप्ता, वजीरपुर से पूनम शर्मा और ग्रेटर कैलाश से शिखा राय.

मनोनीत पार्षद राजकुमार भाटिया भी विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है. हालांकि मनोनीत पार्षद को मेयर चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं है, वो केवल जोन के चुनाव में ही वोट कर सकते हैं.

अब दिल्ली नगर निगम के मेयर पर बीजेपी की नजर

इनके अलावा पश्चिमी दिल्ली की बीजेपी की पार्षद रहीं कमलजीत सहरावत इससे पहले सांसद के चुनाव में विजय हासिल की थी. आप और मनोनीत पार्षदों के रिक्त स्थानों को एक साथ करें, तो पार्षद की 12 सीटों पर उपचुनाव प्रस्तावित हैं और एक मनोनयन किया जाना है, जिसकी नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा की जाएगी.

वर्तमान में बीजेपी के कुल 112 पार्षद और आम आदमी पार्टी के कुल 119 पार्षद हैं. गौरतलब है कि नवंबर 2024 में मेयर का पिछला चुनाव हुआ था, लेकिन उसका कार्यकाल सिर्फ पाृंच माह का रहा. उस समय आम आदमी पार्टी के महेश खिंची भाजपा के उम्मीदवार किशन लाल से सिर्फ तीन वोटों से ही जीत हासिल किए थे.

मेयर चुनाव में कुल 263 वोट पड़े थे, इनमें महेश खिंची को 133 वोट और किशन लाल को 130 मत प्राप्त हुए थे, जबकि दो वोट अवैध करार दिए गए थे. भाजपा के पास उस समय 113 पार्षद थे. उसे एक एमएलए और सात सांसदों का भी समर्थन हासिल था, यानी कुल 121 की संख्या थी.

मेयर के खिलाफ बीजेपी ला सकती है अविश्वास प्रस्ताव

दूसरी ओर, आप के पास कुल 141 मतदाता थे. इनमें 125 पार्षद, 13 विधायक एवं तीन राज्य सभा सांसद थे, जबकि कांग्रेस के कुल पार्षदों की संख्या 8 थी, लेकिन कांग्रेस ने चुनाव का बहिष्कार किया था.

अब अगले चुनाव में बीजेपी के 14 एमएलए और सात लोक सभा सांसद भी मतदान करेंगे. ऐसे में बीजेपी अगर अप्रैल में एमसीडी में अपने मेयर को जीता दे तो इसमें कोई हैरानी नहीं होगी.

सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनाने के बाद भाजपा की ओर से दिल्ली मेयर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है.

छत्तीसगढ़ में बड़ी मुठभेड़: 31 नक्सली ढेर, 2 जवान शहीद

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच बड़ी मुठभेड़ हो गई. मिली जानकारी के मुताबिक, बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके में हुई मुठभेड़ में अब तक 31 नक्सली ढेर हुए हैं. वहीं, दो जवान शहीद हुए हैं. मुठभेड़ में दो जवान भी घायल हुए हैं, उन्हें इलाज के लिए हेलीकॉप्टर से रायपुर भेजा गया है. डीआरजी, एसटीफ और बस्तर फाइटर के जवानों की संयुक्त टीम और नक्सलियों के बीच सुबह मुठभेड़ हुई है.

पुलिस के एक अधिकारी के मुताबिक, जिला बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके के जंगलों में नक्सलियों की उपस्थिति की जानकारी मिली थी. इसपर सुरक्षाबल की टीम नक्सल विरोधी अभियान पर निकली. अभियान के दौरान रविवार सुबह सुरक्षाबल और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हो गई. पूरा इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. अभी भी रुक-रुक कर मुठभेड़ जारी है. मुठभेड़ में नक्सलियों को भारी नुकसान की संभावना जताई जा रही है.

नक्सलियों के पास से मिले ऑटोमैटिक हथियार

बीजापुर-नारायणपुर सीमा में रविवार को सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने 31 नक्सलियों को ढेर कर दिया. मुठभेड़ में सुरक्षाबल के दो जवान शहीद हुए हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस मुठभेड़ में DRG, STF और महाराष्ट्र की C-60 के जवान शामिल हैं. मारे गए नक्सलियों के पास से कई ऑटोमैटिक हथियार बरामद हुए हैं. वहीं इस मुठभेड़ में 2 जवानों के घायल होने की खबर भी आ रही है. उन्हें हेलीकॉप्टर से रायपुर भेजा गया है.

नक्सलियों की मौजूदगी की मिली थी जानकारी

जिस जगह सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई वह बीजापुर जिले का फरसेगढ़ इलाका है. यहां नेशनल पार्क का जंगल नक्सलियों का सक्रिय गढ़ माना जाता है. इस इलाके में सुरक्षाबलों को नक्सलियों की मौजूदगी की जानकारी मिली थी. DRG, STF और महाराष्ट्र की C-60 के जवानों की संयुक्त टीम ने सर्च ऑपरेशन चलाया. इसी दौरान नक्सलियों ने टीम पर फायरिंग कर दी, जिसमें चार जवान घायल हो गए. इनमें दो जवान शहीद हुए हैं. जवाबी कार्रवाई में 31 नक्सलियों को ढेर कि2 जवान शहीद

MP के दामाद हैं केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा,राजनीतिक रसूखदार है ससुराल

देश की राजधानी दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा ने सत्ता में वापसी की है. भाजपा की जीत से ज्यादा देश भर में दिल्ली के पूर्व सीएम ओर आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की हार के चर्चे हैं. केजरीवाल को हराने वाले भाजपा के प्रवेश वर्मा का मध्य प्रदेश से गहरा नाता है. वे मध्य प्रदेश के दामाद भी हैं.

अरविंद केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा के दामाद हैं. मध्य प्रदेश के धार में उनका ससुराल है. उनकी सास नीना वर्मा धार से विधायक हैं. चुनाव प्रचार के दौरान प्रवेश के सास और ससुर ने दिल्ली में सक्रिय भूमिका निभाई थी. नतीजों के बाद धार के बदनावर समेत कई इलाकों में भाजपा समर्थकों ने आतिशबाजी की और मिठाइयां बांटकर जीत का जश्न मनाया.

केंद्रीय मंत्री की बेटी से हुई शादी

23 साल पहले साल 2002 में प्रवेश वर्मा की स्वाति वर्मा से शादी हुई थी. इनके एक बेटा और दो बेटियां हैं. प्रवेश वर्मा के ससुर विक्रम वर्मा अटल बिहारी वाजपेई सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हैं. उसी दौरान प्रवेश वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री थे. प्रवेश वर्मा भी राजनीतिक पृष्ठभूमि से हैं. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे है. पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट से दो बार के सांसद रह चुके हैं.

दिल्ली मुख्यमंत्री की रेस में प्रवेश वर्मा का नाम सबसे आगे चल रहा है. क्योंकि दिल्ली की राजनीति में नई दिल्ली विधानसभा सीट का अलग ही रुतबा रहा है. 2013, 2015 और 2020 में अरविंद केजरीवाल इसी सीट से जीतकर मुख्यमंत्री बने थे. उनसे पहले शीला दीक्षित इसी विधानसभा सीट से जीतकर मुख्यमंत्री थी. 2013 में केजरीवाल ने शीला दीक्षित को हराकर सत्ता में एंट्री ली थी. अब, जब भाजपा के प्रवेश वर्मा ने इसी सीट से जीत दर्ज की है, तो पार्टी के अंदर उन्हें सीएम पद के सबसे प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है.

आतिशी ने मुख्यमंत्री पद से दिया इस्तीफा, 27 साल बाद BJP की वापसी

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. हार के बाद दिल्ली की सीएम आतिशी ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना से मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंप दिया है. आतिशी पिछले साल 21 सितंबर को दिल्ली की मुख्यमत्री बनीं थीं. वे दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री थीं. 27 साल बाद भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली की सत्ता में वापसी हुई है. एलजी विनय कुमार सक्सेना ने सातवीं विधानसभा को भी भंग कर दिया है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव की 8 फरवरी को हुई मतगणना में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बहुमत के आंकड़े को हासिल किया है. 27 साल बाद अब बीजेपी दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को 70 में से 22 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत हासिल की है.

बीजेपी ने अपनी जीत के बाद सरकार बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी जल्द ही अपने विधायक दल की बैठक बुलाकर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन करेगी.

दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनी थीं आतिशी

आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनीं थीं. इससे पहले सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित ने भी मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी. अरविंंद केजरीवाल के जेल से बाहर आने के बाद उन्हें सीएम बनाया गया था.आतिशी का ये कार्यकाल महज साढ़े चार महीने का रहा है.

कई दिग्गजों को मिली हार

इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के तीन मंत्रियों ने जीत हासिल की है. गोपाल राय, मुकेश अहलावत और इमरान हुसैन ने अपनी-अपनी सीटों पर जीत दर्ज की है. दूसरी तरफ कई दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा है. जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री अरविंंद केजरीवाल, पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और पूर्व मंत्री सतेंद्र जैन जैसे नाम शामिल हैं.

आम आदमी पार्टी 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की थी. इस बार चुनाव में आम आदमी पार्टी को करारा झटका लगा है. पार्टी की सीटें 70 में से 22 पर सिमट गई है. इस चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पाई है.

वायरल हुआ जयपुर की शादी का अनोखा कार्ड, मेहमानों की लिस्ट में शामिल हैं ये मृतक लोग!

राजस्थान के जयपुर में होने वाली शादी का कार्ड सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. शादी आज यानी 9 फरवरी को है. लेकिन शादी से ज्यादा उसके निमंत्रण कार्ड की चर्चा लोगों के बीच हो रही है. शादी का कार्ड जिस मेहमान के पास पहुंचा है वह उसे पढ़कर असमंजस की स्थिति में हैं. कार्ड में छपे कुछ नाम ऐसे हैं जिनको पढ़कर सभी हैरान हैं, ये शादी में आने वाले मेहमानों के आने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन वह मृतक हैं.

दिसंबर से लेकर अब तक शादियों अक सीजन चल रहा है. राजस्थान के जयपुर में एक मुस्लिम परिवार में होने वाले शादी का कार्ड खूब चर्चा में है. शादियों में कार्ड की भूमिका बहुत अहम होती है. यही कारण है कि लोग शादी के कार्ड पर बहुत पैसा खर्च करते हैं. वे अपने परिवार के कार्ड को दूसरों के कार्ड से अधिक सुंदर बनाने की कोशिश भी करते हैं. साथ ही परिजनों के कोई सदस्य नाराज न हो जाए तो उनके नाम लिखाने की कोशिश भी होती है.

जयपुर करबला मैदान में है शादी

इस समय एक शादी का कार्ड वायरल हो रहा है, जिसमें लड़के ने अपने मेहमानों को यह शादी का कार्ड दिया है. इसमें कुछ ऐसा लिखा है जिसे पढ़कर लोग शादी समारोह में जाने से डरेंगे. यह अनोखा कार्ड अब सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है.हाल ही में फेसबुक पेज फाइक अतीक किदवई पर एक शादी का कार्ड पोस्ट किया गया है. यह शादी 9 फरवरी 2025 को है. शादी जयपुर में है और कार्यक्रम करबला के मैदान में है. लोगों का ध्यान कार्ड में ‘आमद के मुंतजिर’ पर लिखे नामों पर है. हिन्दी में इसका अर्थ है, ‘देखने की इच्छा रखने वाला.

कार्ड में छपे हैं मृतकों के नाम

शादी के कार्ड पर जो नाम लिखे गए हैं, वह मेहमानों के आने का इंतजार कर रहे हैं, जिसमें परिवार के बच्चों, दुल्हन या दूल्हे के चाचा, चाची आदि के नाम शामिल हैं. इस शादी के कार्ड में इनके नाम के अलावा मृतकों के नाम भी लिखे गए हैं. कार्ड पर मरहूम (दिवंगत) नूरुल हक, मरहूम लालू हक, मरहूम बाबू हक, मरहूम एजाज हक के नाम लिखे हैं. इनके अलावा कार्ड में अन्य परिजनों के भी नाम है. लोग इस कार्ड को लेकर सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.

दिल्ली चुनाव 2025: बीजेपी की बड़ी जीत, 40 साल में पहली बार NCR में एक ही पार्टी की सरकार

दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का भारतीय जनता पार्टी (BJP) का करीब 3 दशक पुराना सपना कल शनिवार को तब पूरा हो गया जब पार्टी ने 70 में से 48 सीटों पर कब्जा जमा लिया. आम आदमी पार्टी (22 सीट) को समेटते हुए बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की है. यह जीत इस मायने में भी बेहद खास है क्योंकि 40 साल में पहली बार दिल्ली-NCR में आने वाले सभी राज्यों में किसी एक राजनीतिक दल की सरकार हो गई, साथ ही उत्तर भारत में आने वाले ज्यादातर राज्यों में डबल इंजन की सरकार आ गई है.

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के साथ ही 4 दशक बाद भारतीय जनता पार्टी केंद्र के साथ-साथ दिल्ली-NCR में शासन करने वाली पहली पार्टी बन गई है. बीजेपी साल 1985 के बाद पहली बार दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के सभी नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) राज्यों पर भी राज करेगी. उत्तर भारत के अन्य राज्यों उत्तराखंड में भी बीजेपी की सरकार है.

कितना बड़ा है दिल्ली-NCR

दिल्ली-NCR जो करीब 55,144 वर्ग किलोमीटर (Sq km) एरिया में फैला हुआ है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में 46 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं. यह देश के सबसे अहम आर्थिक गलियारों में से एक है. दिल्ली-NCR क्षेत्र में दिल्ली के अलावा नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद जैसे चर्चित औद्योगिक क्षेत्र आते हैं.

बीजेपी दिल्ली की सत्ता से 1998 से ही दूर थी, लेकिन अब उसकी सत्ता देश की राजधानी में हो गई है. दिल्ली के अलावा राजधानी से सटे अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पहले से ही बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने जहां दिल्ली में 10 साल से अधिक समय से सत्ता में रही AAP सरकार को हटाया वहीं सटे 3 राज्यों में भी उसकी 5 साल से अधिक समय से सरकार चल रही है.

40 सालों में पहली बार डबल इंजन सरकार

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, राजस्थान में भजन लाल शर्मा और हरियाणा में नायब सिंह सैनी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार चल रही है. अब दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार बनने जा रही है. पिछले 40 सालों से यह पहली बार होगा जब कोई एक पार्टी केंद्र समेत इन 4 राज्यों में शासन करने जा रही है.

इससे पहले 1985 में ऐसा आखिरी बार हुआ था जब सत्तारुढ़ पार्टी का केंद्र के साथ-साथ दिल्ली से सटे राज्यों में भी सरकार थी. केंद्र की सत्ता पर कांग्रेस सबसे बड़ी जीत के साथ काबिज हुई थी. 1984 के दिसंबर में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद पार्टी को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और 400 से अधिक सीट जीतने में कामयाब रही.

1985 में क्या था माहौल

राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने. फिर नए साल 1985 में देश के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराए गए थे. इसी साल यूपी में भी चुनाव कराए गए जिसमें कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल हुई और नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने थे. इसी तरह राजस्थान में भी चुनाव हुए कांग्रेस को बड़ी जीत मिली. उसने तब बीजेपी को हराया. हरि देव जोशी मुख्यमंत्री बने.

इसी तरह हरियाणा में 1982 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी और 1985 के वक्त भजन लाल ही मुख्यमंत्री थे. तब दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश जरूर था, लेकिन विधानसभा की व्यवस्था नहीं थी. 1992 में दिल्ली में पूर्ण विधानसभा की व्यवस्था बनी और 1993 में पहली बार चुनाव कराए गए थे.

किसलिए हुआ दिल्ली-NCR का गठन

1985 में यानी आज से 40 साल पहले उत्तराखंड अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, और यहां पर कांग्रेस की सरकार थी. लेकिन 2025 में उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में देश के नक्शे पर है और यहां बीजेपी का शासन है. बीजेपी उत्तराखंड में भी लगातार दूसरी जीत के साथ सत्ता पर काबिज है. इसी तरह उत्तर भारत के अन्य राज्यों पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में गैर बीजपी पार्टी शासन कर रही है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (The National Capital Region Planning Board (NCRPB) की स्थापना 1985 में NCRPB एक्ट 1985 के तहत की गई थी. इसके गठन का मकसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विकास के लिए प्लानिंग करना, योजना के कार्यान्वयन को लेकर समन्वय करना था. साथ ही निगरानी करने, अव्यवस्थित विकास से बचने के लिए भूमि उपयोग नियंत्रण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सामंजस्यपूर्ण नीति भी तैयार करना शामिल था.

1985 के बाद अब दिल्ली समेत उससे सटे राज्यों में केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी की सरकार आ गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में अक्सर डबल इंजन वाली सरकार का जिक्र करते हैं. अब दिल्ली में भी बीजेपी की अगुवाई वाली डबल इंजन की सरकार आ गई है.

दिल्ली से 2400 किमी दूर भी हुआ एक चुनाव, जानें बीजेपी का कैसा रहा प्रदर्शन?

दिल्ली विधानसभा चुनाव और मिल्कीपुर के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के शानदार जीत के चर्चे हैं. जहां दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 48 सीटों पर 27 साल बाद प्रचंड वापसी की है, वहीं उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन रहा. मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी के भानुचंद्र पासवान ने 61710 के बंपर वोटो के अंतर के साथ समाजवादी पार्टी के अजीत प्रसाद को चुनाव हराया है.

लेकिन दिल्ली से 2400 किमी दूर हुए एक चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की विरोधी पार्टी के नेता को जीत हासिल हुई है. तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके ने मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के नेतृत्व में ये जीत मिली है. मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक और भाजपा के बहिष्कार के बीच इरोड (पूर्व) विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में चंदिराकुमार वी.सी. को शानदार जीत मिली है. इन्हें कुल 115709 वोट मिले हैं. दिल्ली और इरोड की दूरी 2400 किमी है.

किस पार्टी के नेता को हराया चुनाव?

2016 में दिवंगत विजयकांत की डीएमके से अलग हुए डीएमके के वी सी चंद्रकुमार ने एनटीके की एम के सीतालक्ष्मी को 91,558 मतों के बड़े अंतर से हराया है. जीत का अंतर 2023 के उपचुनावों में कांग्रेस के ई वी के एस एलंगोवन और उनके एआईएडीएमके प्रतिद्वंद्वी के एस थेन्नारासु के बीच मतों के अंतर से लगभग 24,000 वोट ज्यादा था. हालांकि वह जमानत राशि खो बैठीं. सीतालक्ष्मी को 23,810 वोट मिले, जो एनटीके के लिए काफी अच्छा माना जा रहा है.

इसके पीछे वजह है ये है कि 2023 के उपचुनाव में इनका वोट प्रतिशत 10 प्रतिशत से भी कम था. दिलचस्प बात यह है कि उपचुनाव में 6,079 मतदाताओं ने उपरोक्त में से नोटा का ऑप्शन चुना था.

यह दूसरी बार है जब इरोड (पूर्व) में दो साल में उपचुनाव का हुए हैं. 2023 में, कांग्रेस के मौजूदा थिरुमहान एवरा की मौत के कारण उनके पिता ई वी के एस एलंगोवन का चुनाव हुआ. उनका दिसंबर 2024 में निधन हो गया. चूंकि डीएमके ने उपचुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, इसलिए कांग्रेस ने सीट छोड़ दी.