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संजय पाठक पर सहारा घोटाले का आरोप,1,000 करोड़ की जमीन 90 करोड़ में बेची गई

भोपाल, जबलपुर और कटनी में सहारा समूह की 310 एकड़ जमीन को औने-पौने दाम में बेचने के पहले समूह की तरफ से 10 से अधिक सब्सिडियरी कंपनियां बनाई गई थीं। इन्हें जमीन भेजने के लिए अधिकृत किया गया था।

भाजपा विधायक संजय पाठक के स्वजन की हिस्सेदारी वाली दो कंपनियों को जमीन की रजिस्ट्री इन्हीं कंपनियों ने कराई थी। एक- एक रजिस्ट्री में विक्रेता के तौर पर 10 से अधिक कंपनियों के नाम हैं। अब आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) इन कंपनियों की भूमिका की जांच कर रहा है। इस मामले में जल्द ही एफआइआर भी हो सकती है।

ईओडब्ल्यू कर रहा जांच

ईओडब्ल्यू यह पता कर रहा है कि बिक्री से प्राप्त राशि किन खातों में जमा कराई गई। इसके बाद राशि कहां गई। कंपनियों को जमीन के विक्रय के लिए किसने अधिकृत किया था। जमीन बिक्री के लिए एक करोड़ रुपये ब्रोकरेज शुल्क की राशि किन खातों में गई। यह राशि किन-किन खातों में घूमी।

कलेक्टर गाइडलाइन में नहीं बढ़े जमीन के रेट

सहारा समूह की बेची गई कुल 310 एकड़ जमीन में से 110 एकड़ भोपाल में मक्सी गांव में है। सूत्रों ने बताया कि इस क्षेत्र की जमीन के रेट कलेक्टर गाइड लाइन में कई वर्ष से नहीं बढ़े हैं। यह भी बड़ा सवाल है।एक पूर्व मुख्य सचिव व अन्य अधिकारियों के दबाव के चलते जमीन के रेट नहीं बढ़ने की बात सामने आ रही है।इसका लाभ जमीन खरीदने वाले को मिला।

हजार करोड़ की जमीन 90 करोड़ रुपये में बेची गई

दूसरा, यह आवासीय जमीन थी जिसे कृषि भूमि बताकर बेचा गया। वर्तमान मूल्य के हिसाब से बेची गई 310 एकड़ जमीन की कीमत लगभग एक हजार करोड़ रुपये थी, जिसे 90 करोड़ रुपये में बेचा गया। इस तरह स्टांप और पंजीयन शुल्क के रूप में शासन को 90 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

सहारा सिटी बनाने के लिए खरीदी गई थी भूमि

सहारा इंडिया रियल स्टेट कार्पोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग कार्पोरेशन इंवेस्टमेंट समूह द्वारा विभिन्न शहरों में निवेशकों से धन जुटाकर सहारा सिटी बनाने के उद्देश्य से भूमि खरीदी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इस जमीन की बिक्री से मिली राशि सेबी के खाते में जमा कराना था, जिससे निवेशकों को राशि लौटाई जा सके, पर राशि सहारा इंडिया रियल स्टेट लिमिटेड, सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट कार्पोरेशन एवं निजी शैल कंपनियों के खातों में जमा कराई गई।

महाकुंभ 2025: बच्चों के साथ यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए जाने ये 5 जरूरी उपाय

महाकुंभ 2025 जैसे बड़े धार्मिक आयोजन में लाखों लोग शामिल होते हैं, जिससे भीड़भाड़ का माहौल रहता है। बच्चों के साथ यात्रा करना एक बड़ी जिम्मेदारी है। यहां 5 ऐसे जरूरी कदम बताए गए हैं, जो आपकी यात्रा को सुरक्षित और सुगम बनाएंगे।

1. बच्चों को पहचानने योग्य बनाएं

बच्चों को ऐसे कपड़े पहनाएं जो दूर से पहचान में आ सकें। उनके कपड़ों में एक पहचान पत्र (ID) लगाएं, जिसमें उनका नाम, माता-पिता का नाम, फोन नंबर और पता लिखा हो। यह गुम होने की स्थिति में मददगार साबित होगा।

2. भीड़ से बचने के लिए समय और स्थान का चयन करें

महाकुंभ के दौरान सबसे ज्यादा भीड़ स्नान पर्व पर होती है। बच्चों के साथ यात्रा के लिए सुबह जल्दी या शाम को कम भीड़भाड़ वाले समय का चयन करें। बच्चों को मुख्य घाटों की भीड़ में ले जाने से बचें।

3. बच्चों को सुरक्षा नियम समझाएं

यात्रा से पहले बच्चों को सिखाएं कि अगर वे गुम हो जाएं तो क्या करें। उन्हें बताएँ कि वे किसी पुलिसकर्मी, सुरक्षा कर्मी या आयोजन स्थल के वॉलंटियर की मदद लें।

4. GPS ट्रैकर या स्मार्टवॉच का इस्तेमाल करें

बच्चों को GPS ट्रैकर या स्मार्टवॉच पहनाएं, जिससे आप उनकी लोकेशन ट्रैक कर सकें। यह तकनीक गुम होने की स्थिति में बहुत उपयोगी होती है।

5. योजना बनाकर यात्रा करें

यात्रा से पहले महाकुंभ के नक्शे का अध्ययन करें। बच्चों के लिए एक निश्चित मिलन स्थल तय करें और उन्हें इसके बारे में जानकारी दें। इसके अलावा, भीड़भाड़ वाले स्थानों में हमेशा बच्चों का हाथ पकड़े रहें।

इन सावधानियों को अपनाकर आप महाकुंभ 2025 की यात्रा को बच्चों के साथ सुरक्षित और यादगार बना सकते हैं।

पिंगली वेंकैया ने किया तिरंगे का डिजाइन, जानें इसके रंगों और चक्र का रहस्य


भारत का राष्ट्रीय ध्वज न केवल हमारे देश की स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि यह देश की एकता, विविधता और सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है। आइए जानते हैं इसके डिजाइन, रंगों का अर्थ और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से।

1. राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन किसने तैयार किया?

भारत के राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप पिंगली वेंकैया ने तैयार किया था।

पिंगली वेंकैया एक स्वतंत्रता सेनानी और कृषि वैज्ञानिक थे।

उन्होंने 1916 में भारतीय ध्वज के लिए कई डिजाइनों पर काम किया।

1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने उनके डिजाइन को संशोधित रूप में स्वीकार किया।

22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया।

2. ध्वज का स्वरूप और रंगों का रहस्य

राष्ट्रीय ध्वज को "तिरंगा" कहा जाता है क्योंकि इसमें तीन क्षैतिज पट्टियां हैं। हर रंग का अपना विशेष महत्व है:

केसरिया रंग (ऊपरी पट्टी)

यह साहस, बलिदान और शक्ति का प्रतीक है।

यह देशवासियों को निस्वार्थ सेवा और समर्पण का संदेश देता है।

सफेद रंग (मध्य पट्टी)

यह शांति, सच्चाई और पवित्रता का प्रतीक है।

यह देश में शांति और सद्भाव बनाए रखने का संदेश देता है।

हरा रंग (निचली पट्टी)

यह समृद्धि, हरियाली और प्रगति का प्रतीक है।

यह पर्यावरण और कृषि के महत्व को दर्शाता है।

3. अशोक चक्र का महत्व

सफेद पट्टी के केंद्र में अशोक चक्र स्थित है।

यह सम्राट अशोक के सारनाथ स्तंभ से लिया गया है।

चक्र में 24 तीलियां हैं, जो समय, प्रगति और सतत विकास का प्रतीक हैं।

यह धर्म, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

4. राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास

1906: पहला भारतीय ध्वज (वंदे मातरम ध्वज) कोलकाता में फहराया गया।.

1921: महात्मा गांधी ने पिंगली वेंकैया के डिजाइन को कांग्रेस के अधिवेशन में प्रस्तुत किया।

1931: तिरंगे को स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बनाया गया।

1947: भारत के स्वतंत्र होने पर इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया।

5. राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े नियम

राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार किया जाना चाहिए।

इसे हमेशा सम्मान के साथ फहराया जाना चाहिए।

ध्वज को जमीन पर गिराना, फाड़ना या किसी अनुचित तरीके से इस्तेमाल करना अपराध है।

इसे केवल खादी या हाथ से बुने कपड़े से बनाया जा सकता है।

6. राष्ट्रीय ध्वज का महत्व

राष्ट्रीय ध्वज न केवल भारत की आजादी का प्रतीक है, बल्कि यह हर भारतीय के गर्व, एकता और देशभक्ति का प्रतीक भी है। यह हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।

निष्कर्ष:

भारत का राष्ट्रीय ध्वज हमारी आजादी और राष्ट्रीयता का प्रतीक है। इसके रंग और अशोक चक्र हमें साहस, शांति और सतत विकास की प्रेरणा देते हैं। तिरंगा हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक है।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस : लोकतंत्र को मजबूत करने और नागरिक भागीदारी बढ़ाने का प्रयास

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय मतदाता दिवस हर साल 25 जनवरी को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य भारत में चुनावों में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ाना और लोकतंत्र को मजबूत करना है. इस दिन को भारत निर्वाचन आयोग ने 2011 में शुरू किया था. यह दिवस नए मतदाताओं को मतदान के अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने के लिए महत्वपूर्ण होता है. इसके जरिए लोगों में चुनावी प्रक्रिया के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को बढ़ावा दिया जाता है, जानें इस दिन से जुड़े कुछ जरूरी जबाब :-

1. राष्ट्रीय मतदाता दिवस कब मनाया जाता है?

राष्ट्रीय मतदाता दिवस 25 जनवरी को मनाया जाता है. इसे हर साल मनाने का उद्देश्य मतदाता जागरूकता फैलाना और चुनाव में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाना है. इस दिन को भारत में चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त की गई थी. इस दिन नागरिकों को मतदान के अधिकार और कर्तव्यों के बारे में बताया जाता है.

2. राष्ट्रीय मतदाता दिवस क्यों मनाया जाता है?

यह दिवस लोकतंत्र की मजबूती और नागरिकों की चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी को बढ़ाने के लिए मनाया जाता है. इस दिन लोगों को यह याद दिलाया जाता है कि वोट देना उनका अधिकार और कर्तव्य है. चुनाव में भागीदारी से लोकतंत्र मजबूत होता है और बेहतर सरकार बनती है. साथ ही यह दिवस मतदाता सूची में नाम जोड़ने के प्रति जागरूकता भी फैलाता है.

3. राष्ट्रीय मतदाता दिवस की शुरुआत कब हुई थी?

राष्ट्रीय मतदाता दिवस की शुरुआत 25 जनवरी 2011 को हुई थी. भारत सरकार ने इसे चुनाव आयोग के गठन की 61वीं वर्षगांठ के मौके पर मनाने का निर्णय लिया था. इस दिन का उद्देश्य अधिक से अधिक नागरिकों को चुनाव प्रक्रिया के प्रति जागरूक करना था. तब से हर साल इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.

4. इस दिन का उद्देश्य क्या है?

राष्ट्रीय मतदाता दिवस का मुख्य उद्देश्य मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. यह दिन लोगों को यह बताने के लिए है कि उनका वोट लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस दिन नए मतदाताओं को मतदाता पहचान पत्र प्रदान किए जाते हैं. साथ ही यह दिन नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया के प्रति जिम्मेदारी महसूस कराता है.

5. क्या राष्ट्रीय मतदाता दिवस के मौके पर कोई खास कार्यक्रम होते हैं?

हां, इस दिन विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. नए मतदाताओं को पंजीकरण प्रमाण पत्र दिए जाते हैं और चुनावी प्रक्रिया पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं. इसके अलावा, जन जागरूकता अभियानों और सेमिनारों का आयोजन भी किया जाता है. चुनाव आयोग मतदाता सूची के अद्यतन के लिए भी इस दिन का इस्तेमाल करता है।

भारत ने फिल्म 'इमरजेंसी' की स्क्रीनिंग पर रोक के लिए ब्रिटेन से की मांग


नई दिल्ली:- यूनाइटेड किंगडम (यूके) में अभिनेत्री कंगना रनौत की फिल्म 'इमरजेंसी' की स्क्रीनिंग के दौरान खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथियों ने जमकर हंगामा किया। कट्टरपंथियों ने फिल्म की स्क्रीनिंग को रोकने की कोशिश की। अब भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग में इस मामले पर प्रतिक्रिया दी। मंत्रालय ने यूके से ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।

यूके के सामने अपनी जिंता जाहिर कर चुके

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हमने कई रिपोर्ट देखी हैं कि किस तरह कई हॉलों में फिल्म 'इमरजेंसी' को रोका जा रहा है। हम लगातार यूके सरकार के समक्ष भारत विरोधी तत्वों द्वारा हिंसक विरोध और धमकी से जुड़ी चिंता जाहिर कर चुके हैं। 

मंत्रालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को चुनिंदा रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। फिल्म को बाधित करने में शामिल लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

उचित कार्रवाई करेगा यूके

विदेश मंत्रालय ने उम्मीद जताई कि यूके की सरकार जिम्मेदार लोगों के खिलाफ उचित कार्रवाई करेगी। प्रवक्ता ने यह भी बताया कि लंदन में हमारा उच्चायोग हमारे समुदाय के लोगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए नियमित रूप से संपर्क में है। उम्मीद करते हैं कि यूके इस मामले में सख्त और उचित कार्रवाई करेगा।

अमेरिका सामने उठाया जाएगा पन्नू का मामला

सोशल मीडिया पर अमेरिकी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू का एक वीडियो वायरल हो रहा है। मीडिया में वह डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में दिख रहा है। जब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से पूछा गया कि क्या भारत ने अमेरिका के साथ इस मुद्दे को उठाया है।

रणदीप जायसवाल ने कहा कि जब भी कोई भारत विरोधी गतिविधि होती है तो हम ऐसे मामलों को अमेरिका के साथ उठाते हैं। इसलिए हम अमेरिकी सरकार के साथ ऐसे मुद्दे उठाते रहेंगे, जिनका हमारी सुरक्षा पर असर पड़ता है, जिनका भारत विरोधी एजेंडा है।

राष्ट्रीय बालिका दिवस आज: बेटियों से हैं आज और कल,जानिए बालिका दिवस का महत्व और इतिहास


आज का दिन देशभर की बेटियों के लिए खास है. वहीं, राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इस विशेष अवसर पर जानेंगे बालिका दिवस से जुड़ी हुई कुछ खास बातें.

राष्ट्रीय बालिका दिवस न सिर्फ बच्चियों के लिए बल्कि पेरेंट्स के लिए खास है. इस विशेष मौके पर किसी ने ठीक ही कहा है कि बेटियां ही सृष्टि का आधार हैं. इनमें ही श्रेष्ठतम विश्व के स्वप्न को साकार करने का सामर्थ्य है. किसी ने सही ही कहा है कि यदि बेटा अंश है, तो बेटी वंश है. वहीं, मशहूर शायर बशीर बद्र लिखते हैं कि वो शाख है न फूल, अगर तितलियां न हों... वो घर भी कोई घर है जहां बच्चियां न हों...बालिकाओं का हमारे समाज में अहम योगदान है. यूनिसेफ के शोध से पता चलता है कि कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद बालिकाएं बेहतर भविष्य के लिए आशान्वित और दृढ़ संकल्पित हैं.

सुरक्षित, सम्मानित और सशक्त बनाने का लें संकल्प

दुनिया भर में हर दिन, बालिकाएं एक ऐसे विजन की दिशा में काम कर रही हैं जिसमें वे सुरक्षित, सम्मानित और सशक्त हों, लेकिन वे इसे अकेले हासिल नहीं कर सकतीं. समाज में लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालने के लिये हर साल 24 जनवरी के दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस यानी National Girl Child Day मनाया जाता है. इसे संक्षिप्त रूप में NGCD भी कहते हैं. यह दिवस बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और उनके मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए मनाया जाता है. जब लड़कियां नेतृत्व करती हैं, तो इसका प्रभाव तत्काल और व्यापक होता है, परिवार, समुदाय और अर्थव्यवस्थाएं सभी मजबूत होती हैं, हमारा भविष्य उज्जवल होता है।

क्यों मनाया जाता है यह दिवस?

इस दिन को मनाने का उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना और लैंगिक भेदभाव को खत्म करना है. इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना भी है. इसका उद्देश्य बालिकाओं को महत्व देने वाला एक सकारात्मक वातावरण के निर्माण में पूरे राष्ट्र को शामिल करना है. इसके साथ ही यह दिवस देश भर में बालिकाओं को सशक्त बनाने और उनके लिए समाज में सुरक्षित माहौल बनाने की ज़रूरत की याद दिलाता है.

भविष्य का नेतृत्व करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार

ऐसा समाज जहां बालिकाएं आगे बढ़ सकें और यह सुनिश्चित करते हुए कि वे अपने भविष्य का नेतृत्व करने के लिए पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हैं. लड़कियां रूढ़िवादिता और बहिष्कार द्वारा उत्पन्न सीमाओं और अवरोधों को तोड़ रही हैं, जिनमें दिव्यांग बच्चों और हाशिए के समुदायों में रहने वाले बच्चों के लिए निर्धारित सीमाएं और अवरोध भी शामिल हैं. उद्यमी, नवोन्मेषक और वैश्विक आंदोलनों के सर्जक के रूप में, लड़कियां एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रही हैं जो उनके और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रासंगिक है. अब समय आ गया है कि लड़कियों और बालिकाओं की बात सुनी जाए, ऐसे सिद्ध समाधानों में निवेश किया जाए जो भविष्य की ओर प्रगति को गति देंगे, जिसमें हर लड़की अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सकेगी.

जानें कब हुई थी शुरुआत?

राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है. भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने साल 2008 में इसकी शुरुआत की थी। इस दिन स्कूलों में पोस्टर, लेखन, ड्राइंग, और दीवार पेंटिंग जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं वहीं बालिकाओं के स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े टॉक शो और पौधरोपण जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

ये सकारात्मक प्रभाव भी डालता है

क्या आप जानते हैं कि लड़कियों में निवेश करना न केवल उनके लिए सही काम है, बल्कि यह उनके परिवारों, समुदायों और पूरे समाज पर सकारात्मक प्रभाव भी डालता है? किशोर लड़कियों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए दुनिया भर के युवाओं की प्राथमिकताओं के आधार पर, भागीदारी में निहित पांच प्रमुख समाधान हैं, जो लड़कियों के जीवन को बदल सकते हैं और उनके भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं.

केंद्र सरकार की पहल और योजनाएं

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व व मार्गदर्शन में भारत सरकार ने समाज में बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए, उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से कई योजनाएं शुरु की हैं. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी पहल लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और शिक्षा एवं विवाह के लिए बचत को प्रोत्साहित करके बालिकाओं के भविष्य को सुरक्षित करने के प्रयासों को दर्शाती हैं।

बेटियों से जुड़ी खास पहल

•  वर्ष 2015 में शुरू की गई ‘सुकन्या समृद्धि योजना' माता-पिता को अपनी बेटियों के भविष्य में निवेश करने की सुविधा देती है, जिससे वित्तीय सुरक्षा और समान अवसर सुनिश्चित होते हैं. इसके अलावा, किशोरियों के लिए योजना (SAG) और मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता को बढ़ावा देने की योजना महिलाओं की स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करती है.

• वर्ष 2014 में शुरू की गई एक अभिनव परियोजना ‘उड़ान' है. इस योजना का उद्देश्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्राओं के कम नामांकन पर ध्यान देना और स्कूली शिक्षा एवं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के बीच की खाई को कम करना है.

•  बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 का उद्देश्य बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त करना है और इसमें शामिल लोगों को दंडित करना है.

•  यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012, बाल शोषण से संबंधित है. इसके कार्यान्वयन को बढ़ाने के लिए 2020 में इसके नियमों को अद्यतन किया गया.

•  किशोर न्याय अधिनियम 2015, जरूरतमंद बच्चों की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

•  मिशन वात्सल्य बाल विकास और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें चाइल्ड हेल्पलाइन और लापता बच्चों की सहायता के लिए ट्रैक चाइल्ड पोर्टल जैसी सेवाएं शामिल हैं.

•  ट्रैक चाइल्ड पोर्टल 2012 से कार्यरत है. यह पोर्टल पुलिस स्टेशनों में रिपोर्ट किए जा रहे ‘लापता' बच्चों का मिलान उन ‘मिले हुए' बच्चों से करने की सुविधा प्रदान करता है जो बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) में रह रहे हैं.

•  पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन स्कीम कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों की मदद करती है. 

इसके अतिरिक्त, निमहांस और ई-संपर्क कार्यक्रम के साथ सहयोग मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल प्रदान करता है. इन सब प्रयासों से एक सुरक्षित वातावरण बनता है, जो भारत में बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देता है.

 एनएसआईजीएसई योजना

वहीं मई 2008 में शुरू की गई माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन देने की राष्ट्रीय योजना (एनएसआईजीएसई) का उद्देश्य बालिकाओं, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों से आने वाली बालिकाओं के लिए शैक्षिक अवसरों को बढ़ाना है. ‘उड़ान' और माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन देने की राष्ट्रीय योजना जैसी शैक्षिक पहल शिक्षा तक पहुंच में सुधार और ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं. इसके अलावा, बालिकाओं के सशक्तिकरण और उनकी सुरक्षा के लिए कानूनी उपायों में कई महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं.

MP में बेटियाें को बनाया जा रहा सशक्त, समृद्ध और खुशहाल

बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वावलंबन मध्य प्रदेश सरकार की पहली प्राथमिकता है. बेटियों के सशक्तिकरण के लिये प्रदेश में अनेक योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन किया जा रहा है, और बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया है. बालिका सशक्तिकरण का "मध्य प्रदेश मॉडल" देश में सबसे अनूठा है, जिससे प्रेरित होकर अन्य राज्यों ने भी मध्य प्रदेश की योजनाओं का अनुसरण कर अपने राज्यों में लागू किया है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में वित्तीय वर्ष 2024-25 में महिला एवं बाल विकास विभाग का बजट 81 प्रतिशत बढ़ाते हुए 26 हजार 560 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है.

•  मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को मृत्यु दंड देने वाला देश का पहला राज्य मध्य प्रदेश है.

•  बेटियों की शिक्षा और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिये लाड़ली लक्ष्मी योजना का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन जारी है. 

इस योजना में 48 लाख से अधिक लाड़ली लक्ष्मियां लाभान्वित हो रही हैं. लाड़ली लक्ष्मी योजना से मध्य प्रदेश में लिंगानुपात में भी काफी सुधार हुआ है.

•  बालिकाओं में आत्म-विश्वास और कौशल वृद्धि के लिये सशक्त वाहिनी कार्यक्रम अंतर्गत प्रशिक्षण दिया गया. अब तक 125 से अधिक बालिकाओं का पुलिस या शासकीय विभागों में चयन हो चुका है.

•  मध्य प्रदेश में 97 हजार से अधिक संचालित आंगनवाड़ियों में 81 लाख बच्चे और गर्भवती/धात्री माताएं एवं किशोरी बालिकाएं लाभान्वित हो रही हैं.

•  राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में पदक विजेताओं के साथ सहभागिता करने वाली बालिकाओं व महिला खिलाड़ियों को नगद राशि देकर प्रोत्साहित किया जा रहा हैं.

•  प्रदेश के हर जिले में वन-स्टॉप सेंटर संचालित हैं.

•  सेनिटेशन एवं हाईजीन योजना अंतर्गत 19 लाख से अधिक बालिकाओं के बैंक खाते में 57 करोड़ 18 लाख रुपए की राशि का अंतरण किया गया है.

गांव की बेटी योजना

मध्य प्रदेश सरकार की ‘गांव की बेटी योजना' गांव की उन लड़कियों को आर्थिक मदद देती है, जिन्होंने 12वीं में 60% से ज़्यादा अंक हासिल किए हैं. इस योजना के तहत हर साल 5000 रुपये की छात्रवृत्ति मिलती है. इसका मकसद, ग्रामीण इलाकों की प्रतिभाशाली छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना है.

महाविद्यालय के प्राचार्य इस योजना में हितग्राही के नाम को स्वीकृति देते हैं. मंजूरी के बाद विद्यार्थियों के बैंक खाते में राशि जमा होती है. यह प्रोत्साहन योजना है और इसके साथ छात्रा अन्य योजनाओं का लाभ भी ले सकती है.

 प्रतिभा किरण योजना

प्रतिभा किरण योजना में शहर की निवासी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली छात्राएं जो कक्षा 12वीं में न्यूनतम 60 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण हुई हों और शासकीय या अशासकीय महाविद्यालय विश्वविद्यालय में स्नातक कक्षा में अध्ययनरत हों, उन्हें 500 रुपये मासिक के हिसाब से दस माह के लिए 5000 रुपये प्रतिवर्ष दिए जाते हैं. इस योजना में भी ऑनलाइन आवेदन स्कॉलरशिप पोर्टल पर करना होता है.

चाइल्ड लाइन 1098 व महिला हेल्पलाइन 181 

यदि किसी को मदद की जरूरत हो तो तुरंत चाइल्ड लाइन 1098 या महिला हेल्पलाइन 181 पर डायल कर सकते हैं. डायल 100 पर भी सम्पर्क कर मदद ली जा सकती है. बेटियां ही बदलाव की बयार लाती हैं. बेटियां सशक्त होती हैं तो समाज सशक्त होता है. मध्य प्रदेश सरकार की लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजना इस दिशा में क्रांतिकारी कदम साबित हो रही हैं.

इन योजनाओं से बालिकाओं को न केवल वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और सशक्त बनने का अवसर भी मिल रहा है. बालिकाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए तत्काल उचित कदम उठाना बेहद ज़रूरी है।

राष्ट्रीय बालिका दिवस आज: बेटियों से हैं आज और कल,जानिए बालिका दिवस का महत्व और इतिहास


आज का दिन देशभर की बेटियों के लिए खास है. वहीं, राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इस विशेष अवसर पर जानेंगे बालिका दिवस से जुड़ी हुई कुछ खास बातें.

राष्ट्रीय बालिका दिवस न सिर्फ बच्चियों के लिए बल्कि पेरेंट्स के लिए खास है. इस विशेष मौके पर किसी ने ठीक ही कहा है कि बेटियां ही सृष्टि का आधार हैं. इनमें ही श्रेष्ठतम विश्व के स्वप्न को साकार करने का सामर्थ्य है. किसी ने सही ही कहा है कि यदि बेटा अंश है, तो बेटी वंश है. वहीं, मशहूर शायर बशीर बद्र लिखते हैं कि वो शाख है न फूल, अगर तितलियां न हों... वो घर भी कोई घर है जहां बच्चियां न हों...बालिकाओं का हमारे समाज में अहम योगदान है. यूनिसेफ के शोध से पता चलता है कि कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद बालिकाएं बेहतर भविष्य के लिए आशान्वित और दृढ़ संकल्पित हैं.

सुरक्षित, सम्मानित और सशक्त बनाने का लें संकल्प

दुनिया भर में हर दिन, बालिकाएं एक ऐसे विजन की दिशा में काम कर रही हैं जिसमें वे सुरक्षित, सम्मानित और सशक्त हों, लेकिन वे इसे अकेले हासिल नहीं कर सकतीं. समाज में लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालने के लिये हर साल 24 जनवरी के दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस यानी National Girl Child Day मनाया जाता है. इसे संक्षिप्त रूप में NGCD भी कहते हैं. यह दिवस बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और उनके मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए मनाया जाता है. जब लड़कियां नेतृत्व करती हैं, तो इसका प्रभाव तत्काल और व्यापक होता है, परिवार, समुदाय और अर्थव्यवस्थाएं सभी मजबूत होती हैं, हमारा भविष्य उज्जवल होता है।

क्यों मनाया जाता है यह दिवस?

इस दिन को मनाने का उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना और लैंगिक भेदभाव को खत्म करना है. इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना भी है. इसका उद्देश्य बालिकाओं को महत्व देने वाला एक सकारात्मक वातावरण के निर्माण में पूरे राष्ट्र को शामिल करना है. इसके साथ ही यह दिवस देश भर में बालिकाओं को सशक्त बनाने और उनके लिए समाज में सुरक्षित माहौल बनाने की ज़रूरत की याद दिलाता है.

भविष्य का नेतृत्व करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार

ऐसा समाज जहां बालिकाएं आगे बढ़ सकें और यह सुनिश्चित करते हुए कि वे अपने भविष्य का नेतृत्व करने के लिए पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हैं. लड़कियां रूढ़िवादिता और बहिष्कार द्वारा उत्पन्न सीमाओं और अवरोधों को तोड़ रही हैं, जिनमें दिव्यांग बच्चों और हाशिए के समुदायों में रहने वाले बच्चों के लिए निर्धारित सीमाएं और अवरोध भी शामिल हैं. उद्यमी, नवोन्मेषक और वैश्विक आंदोलनों के सर्जक के रूप में, लड़कियां एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रही हैं जो उनके और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रासंगिक है. अब समय आ गया है कि लड़कियों और बालिकाओं की बात सुनी जाए, ऐसे सिद्ध समाधानों में निवेश किया जाए जो भविष्य की ओर प्रगति को गति देंगे, जिसमें हर लड़की अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सकेगी.

जानें कब हुई थी शुरुआत?

राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है. भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने साल 2008 में इसकी शुरुआत की थी। इस दिन स्कूलों में पोस्टर, लेखन, ड्राइंग, और दीवार पेंटिंग जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं वहीं बालिकाओं के स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े टॉक शो और पौधरोपण जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

ये सकारात्मक प्रभाव भी डालता है

क्या आप जानते हैं कि लड़कियों में निवेश करना न केवल उनके लिए सही काम है, बल्कि यह उनके परिवारों, समुदायों और पूरे समाज पर सकारात्मक प्रभाव भी डालता है? किशोर लड़कियों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए दुनिया भर के युवाओं की प्राथमिकताओं के आधार पर, भागीदारी में निहित पांच प्रमुख समाधान हैं, जो लड़कियों के जीवन को बदल सकते हैं और उनके भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं.

केंद्र सरकार की पहल और योजनाएं

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व व मार्गदर्शन में भारत सरकार ने समाज में बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए, उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से कई योजनाएं शुरु की हैं. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी पहल लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और शिक्षा एवं विवाह के लिए बचत को प्रोत्साहित करके बालिकाओं के भविष्य को सुरक्षित करने के प्रयासों को दर्शाती हैं।

बेटियों से जुड़ी खास पहल

•  वर्ष 2015 में शुरू की गई ‘सुकन्या समृद्धि योजना' माता-पिता को अपनी बेटियों के भविष्य में निवेश करने की सुविधा देती है, जिससे वित्तीय सुरक्षा और समान अवसर सुनिश्चित होते हैं. इसके अलावा, किशोरियों के लिए योजना (SAG) और मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता को बढ़ावा देने की योजना महिलाओं की स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करती है.

• वर्ष 2014 में शुरू की गई एक अभिनव परियोजना ‘उड़ान' है. इस योजना का उद्देश्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्राओं के कम नामांकन पर ध्यान देना और स्कूली शिक्षा एवं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के बीच की खाई को कम करना है.

•  बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 का उद्देश्य बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त करना है और इसमें शामिल लोगों को दंडित करना है.

•  यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012, बाल शोषण से संबंधित है. इसके कार्यान्वयन को बढ़ाने के लिए 2020 में इसके नियमों को अद्यतन किया गया.

•  किशोर न्याय अधिनियम 2015, जरूरतमंद बच्चों की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

•  मिशन वात्सल्य बाल विकास और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें चाइल्ड हेल्पलाइन और लापता बच्चों की सहायता के लिए ट्रैक चाइल्ड पोर्टल जैसी सेवाएं शामिल हैं.

•  ट्रैक चाइल्ड पोर्टल 2012 से कार्यरत है. यह पोर्टल पुलिस स्टेशनों में रिपोर्ट किए जा रहे ‘लापता' बच्चों का मिलान उन ‘मिले हुए' बच्चों से करने की सुविधा प्रदान करता है जो बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) में रह रहे हैं.

•  पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन स्कीम कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों की मदद करती है. 

इसके अतिरिक्त, निमहांस और ई-संपर्क कार्यक्रम के साथ सहयोग मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल प्रदान करता है. इन सब प्रयासों से एक सुरक्षित वातावरण बनता है, जो भारत में बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देता है.

 एनएसआईजीएसई योजना

वहीं मई 2008 में शुरू की गई माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन देने की राष्ट्रीय योजना (एनएसआईजीएसई) का उद्देश्य बालिकाओं, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों से आने वाली बालिकाओं के लिए शैक्षिक अवसरों को बढ़ाना है. ‘उड़ान' और माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन देने की राष्ट्रीय योजना जैसी शैक्षिक पहल शिक्षा तक पहुंच में सुधार और ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं. इसके अलावा, बालिकाओं के सशक्तिकरण और उनकी सुरक्षा के लिए कानूनी उपायों में कई महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं.

MP में बेटियाें को बनाया जा रहा सशक्त, समृद्ध और खुशहाल

बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वावलंबन मध्य प्रदेश सरकार की पहली प्राथमिकता है. बेटियों के सशक्तिकरण के लिये प्रदेश में अनेक योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन किया जा रहा है, और बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया है. बालिका सशक्तिकरण का "मध्य प्रदेश मॉडल" देश में सबसे अनूठा है, जिससे प्रेरित होकर अन्य राज्यों ने भी मध्य प्रदेश की योजनाओं का अनुसरण कर अपने राज्यों में लागू किया है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में वित्तीय वर्ष 2024-25 में महिला एवं बाल विकास विभाग का बजट 81 प्रतिशत बढ़ाते हुए 26 हजार 560 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है.

•  मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को मृत्यु दंड देने वाला देश का पहला राज्य मध्य प्रदेश है.

•  बेटियों की शिक्षा और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिये लाड़ली लक्ष्मी योजना का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन जारी है. 

इस योजना में 48 लाख से अधिक लाड़ली लक्ष्मियां लाभान्वित हो रही हैं. लाड़ली लक्ष्मी योजना से मध्य प्रदेश में लिंगानुपात में भी काफी सुधार हुआ है.

•  बालिकाओं में आत्म-विश्वास और कौशल वृद्धि के लिये सशक्त वाहिनी कार्यक्रम अंतर्गत प्रशिक्षण दिया गया. अब तक 125 से अधिक बालिकाओं का पुलिस या शासकीय विभागों में चयन हो चुका है.

•  मध्य प्रदेश में 97 हजार से अधिक संचालित आंगनवाड़ियों में 81 लाख बच्चे और गर्भवती/धात्री माताएं एवं किशोरी बालिकाएं लाभान्वित हो रही हैं.

•  राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में पदक विजेताओं के साथ सहभागिता करने वाली बालिकाओं व महिला खिलाड़ियों को नगद राशि देकर प्रोत्साहित किया जा रहा हैं.

•  प्रदेश के हर जिले में वन-स्टॉप सेंटर संचालित हैं.

•  सेनिटेशन एवं हाईजीन योजना अंतर्गत 19 लाख से अधिक बालिकाओं के बैंक खाते में 57 करोड़ 18 लाख रुपए की राशि का अंतरण किया गया है.

गांव की बेटी योजना

मध्य प्रदेश सरकार की ‘गांव की बेटी योजना' गांव की उन लड़कियों को आर्थिक मदद देती है, जिन्होंने 12वीं में 60% से ज़्यादा अंक हासिल किए हैं. इस योजना के तहत हर साल 5000 रुपये की छात्रवृत्ति मिलती है. इसका मकसद, ग्रामीण इलाकों की प्रतिभाशाली छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना है.

महाविद्यालय के प्राचार्य इस योजना में हितग्राही के नाम को स्वीकृति देते हैं. मंजूरी के बाद विद्यार्थियों के बैंक खाते में राशि जमा होती है. यह प्रोत्साहन योजना है और इसके साथ छात्रा अन्य योजनाओं का लाभ भी ले सकती है.

 प्रतिभा किरण योजना

प्रतिभा किरण योजना में शहर की निवासी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली छात्राएं जो कक्षा 12वीं में न्यूनतम 60 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण हुई हों और शासकीय या अशासकीय महाविद्यालय विश्वविद्यालय में स्नातक कक्षा में अध्ययनरत हों, उन्हें 500 रुपये मासिक के हिसाब से दस माह के लिए 5000 रुपये प्रतिवर्ष दिए जाते हैं. इस योजना में भी ऑनलाइन आवेदन स्कॉलरशिप पोर्टल पर करना होता है.

चाइल्ड लाइन 1098 व महिला हेल्पलाइन 181 

यदि किसी को मदद की जरूरत हो तो तुरंत चाइल्ड लाइन 1098 या महिला हेल्पलाइन 181 पर डायल कर सकते हैं. डायल 100 पर भी सम्पर्क कर मदद ली जा सकती है. बेटियां ही बदलाव की बयार लाती हैं. बेटियां सशक्त होती हैं तो समाज सशक्त होता है. मध्य प्रदेश सरकार की लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजना इस दिशा में क्रांतिकारी कदम साबित हो रही हैं.

इन योजनाओं से बालिकाओं को न केवल वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और सशक्त बनने का अवसर भी मिल रहा है. बालिकाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए तत्काल उचित कदम उठाना बेहद ज़रूरी है।

सर्दियों में भारत की ये जगहें बन जाती हैं मिनी स्विट्जरलैंड

सर्दियों में भारत की कई खूबसूरत जगहों को उनकी बर्फीली वादियों और अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के कारण "मिनी स्विट्जरलैंड" कहा जाता है। इनमें से कुछ प्रमुख स्थान हैं:

1. खज्जियार, हिमाचल प्रदेश

खज्जियार को "भारत का मिनी स्विट्जरलैंड" कहा जाता है।

यह स्थान हरी-भरी घास के मैदानों, देवदार के जंगलों और बर्फ से ढके पहाड़ों के लिए प्रसिद्ध है।

यहां की झील और शांत वातावरण सर्दियों में बेहद आकर्षक लगते हैं।

2. औली, उत्तराखंड

औली स्कीइंग के लिए प्रसिद्ध है और इसे "भारत का स्विट्जरलैंड" भी कहा जाता है।

यहां के हिमालयी दृश्य, बर्फीली ढलानें और सर्दियों की ठंडक पर्यटकों को लुभाती है।

नंदा देवी और अन्य हिमालयी चोटियों का अद्भुत नजारा यहां से देखा जा सकता है।

3. गुलमर्ग, जम्मू और कश्मीर

गुलमर्ग अपनी बर्फीली ढलानों और गोंडोला राइड के लिए जाना जाता है।

इसे "सर्दियों का स्वर्ग" और "भारत का स्विट्जरलैंड" कहा जाता है।

यह स्थान सर्दियों में स्कीइंग और स्नोबोर्डिंग के शौकीनों के लिए आदर्श है।

4. मनाली, हिमाचल प्रदेश

मनाली की बर्फ से ढकी चोटियां और रोहतांग पास इसे सर्दियों में मिनी स्विट्जरलैंड का अनुभव कराते हैं।

सर्दियों में यहां स्नोफॉल का आनंद लेने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।

5. पेलिंग, सिक्किम

पेलिंग, सिक्किम का एक छोटा सा गांव है जो सर्दियों में बर्फ से ढक जाता है।

यहां से कंचनजंगा पर्वत का शानदार दृश्य दिखाई देता है।

यह जगह अपनी शांति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है।

6. तवांग, अरुणाचल प्रदेश

तवांग अपनी बर्फीली वादियों और तवांग मठ के लिए प्रसिद्ध है।

सर्दियों में यह स्थान बर्फ की चादर ओढ़ लेता है, जो इसे मिनी स्विट्जरलैंड जैसा अनुभव कराता है।

7. मुन्नार, केरल

हालांकि मुन्नार दक्षिण भारत में है, लेकिन सर्दियों में इसकी हरियाली और ठंडी हवाएं इसे एक अद्वितीय अनुभव देती हैं।

चाय के बागान और धुंध से ढके पहाड़ इसे मिनी स्विट्जरलैंड जैसा महसूस कराते हैं।

इन स्थानों पर सर्दियों में घूमने का अनुभव आपको भारत में ही स्विट्जरलैंड जैसा एहसास देगा।

डिप्रेशन के ये लक्षण न करें नजरअंदाज, समय पर लें मदद

डिप्रेशन (अवसाद) एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जो व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। इसके लक्षण धीरे-धीरे विकसित हो सकते हैं और कई बार लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। यहां डिप्रेशन के प्रमुख लक्षण और इसके तन-मन पर प्रभावों की जानकारी दी गई है।

डिप्रेशन के 8 प्रमुख लक्षण

1. लगातार उदासी महसूस होना

व्यक्ति को हर समय दुखी और खालीपन का अनुभव होता है।

2. नींद में गड़बड़ी

नींद न आना (अनिद्रा) या अत्यधिक सोने की आदत डिप्रेशन का संकेत हो सकता है।

3. ऊर्जा की कमी

व्यक्ति हमेशा थका हुआ महसूस करता है और सामान्य कामों में भी रुचि नहीं लेता।

4 भूख में बदलाव

भूख कम या ज्यादा लगना, जिससे वजन बढ़ना या घट जाना।

5 आत्मविश्वास की कमी

व्यक्ति को खुद पर विश्वास नहीं रहता और उसे हर काम में असफलता का डर सताता है।

6 एकाग्रता में कठिनाई

ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।

7 नकारात्मक विचार आना

आत्महत्या के विचार या खुद को नुकसान पहुंचाने की इच्छा हो सकती है।

8. शारीरिक लक्षण

सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, और पाचन समस्याएं डिप्रेशन के शारीरिक संकेत हो सकते हैं।

डिप्रेशन का तन-मन पर प्रभाव

1 मस्तिष्क पर असर

डिप्रेशन मस्तिष्क में

 न्यूरोट्रांसमिटर्स (जैसे सेरोटोनिन और डोपामिन) के असंतुलन का कारण बनता है, जिससे मानसिक स्थिति खराब हो सकती है।

2.दिल और रक्तचाप पर प्रभाव

लंबे समय तक डिप्रेशन रहने से दिल की बीमारियों और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ सकता है।

3.इम्यून सिस्टम कमजोर होना

डिप्रेशन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है, जिससे व्यक्ति जल्दी बीमार पड़ सकता है।

4.पाचन तंत्र पर असर

तनाव और चिंता के कारण अपच, एसिडिटी और पेट दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

डिप्रेशन से बचने और ठीक होने के उपाय

1 किसी विशेषज्ञ (मनोचिकित्सक) से सलाह लें।

2. नियमित व्यायाम करें और संतुलित आहार लें।

3. मेडिटेशन और योग को दिनचर्या में शामिल करें।

4.परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं।

5.नकारात्मक सोच से बचने के लिए सकारात्मक गतिविधियों में खुद को व्यस्त रखें।

यदि आपको या आपके किसी प्रियजन को डिप्रेशन के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो तुरंत सहायता लें। सही समय पर उपचार से इस स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।

डिप्रेशन ने दिमाग पर किया कब्जा! अपनाएं ये 5 उपाय, मेंटल हेल्थ होगी मजबूत


डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक समस्या है, जो व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और दैनिक जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। यह समस्या धीरे-धीरे दिमाग पर कब्जा कर लेती है और व्यक्ति को निराशा, उदासी और नकारात्मकता में घेर लेती है। लेकिन सही उपाय अपनाकर मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाया जा सकता है। आइए जानते हैं डिप्रेशन से निपटने के 5 असरदार उपाय।

1. माइंडफुलनेस और मेडिटेशन करें

माइंडफुलनेस और मेडिटेशन मानसिक शांति का सबसे प्रभावी तरीका है। यह आपके दिमाग को वर्तमान क्षण में रखने में मदद करता है और नकारात्मक विचारों को कम करता है। दिन में केवल 10-15 मिनट मेडिटेशन करने से तनाव और चिंता को नियंत्रित किया जा सकता है।

2. शारीरिक गतिविधि को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं

व्यायाम न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। नियमित रूप से हल्की एक्सरसाइज, योग, या वॉक करने से शरीर में "हैप्पी हार्मोन" एंडोर्फिन का स्तर बढ़ता है, जो मूड को बेहतर बनाता है।

3. सकारात्मक सोच को अपनाएं

डिप्रेशन से बाहर निकलने के लिए अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में मोड़ना बहुत जरूरी है। नकारात्मक विचारों को पहचानें और उन्हें चुनौती दें। खुद को प्रेरित करने के लिए किताबें पढ़ें, प्रेरक वीडियो देखें, या ऐसे लोगों के साथ समय बिताएं जो आपको खुश रखते हैं।

4. सोशल सपोर्ट का सहारा लें

अकेलापन डिप्रेशन को और बढ़ा सकता है। अपने दोस्तों और परिवार से जुड़ें और उनसे अपनी भावनाएं साझा करें। जरूरत पड़ने पर किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से भी संपर्क करें। बात करने से न केवल मन हल्का होता है, बल्कि समाधान भी मिल सकता है।

5. संतुलित आहार का सेवन करें

सही आहार मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाता है। अपने भोजन में ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन D, और जिंक जैसे पोषक तत्वों को शामिल करें। हरी सब्जियां, फल, नट्स, और मछली जैसे खाद्य पदार्थ मानसिक स्थिति को सुधारने में मदद कर सकते हैं।

निष्कर्ष

डिप्रेशन से लड़ना मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। इन 5 उपायों को अपनी दिनचर्या में शामिल करके आप न केवल डिप्रेशन से बाहर निकल सकते हैं, बल्कि अपनी मानसिक शक्ति को भी मजबूत बना सकते हैं। अगर समस्या गंभीर हो, तो बिना झिझक किसी विशेषज्ञ की मदद लें। याद रखें, आपकी मानसिक शांति ही आपकी असली ताकत है।