इस बार बजट में बढ़ने वाला है इनकम टैक्स? जानें क्या कह रहे एक्सपर्ट्स
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बजट की तारीख नजदीक आ रही है। बजट के नाम के साथ ही सबसे पहले दिमाग में अगर कोई चीज आती है तो वो है इनकम टैक्स। हर बार बजट से लोगों की उम्मीदें जुड़ी होती है कि वित्त मंत्री इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव कर टैक्स से कुछ राहत देंगी, लेकिन ये आस बजट घोषणाओं के साथ ही टूट जाता है। इस बार भी बजट 2025 के ऐलान से पहले लोगों ने कई उम्मीदें लगा रखी है।
बजट ऐसे समय में पेश हो रहा है, जब केन्द्र सरकार ने 8वें वेतन आयोग को मंजूरी दे दी। इससे साफ हो गया है कि अगले साल से सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और रिटायर कर्मचारियों की पेंशन में बड़ा इजाफा होने वाला है। फैसला आने के बाद से सरकारी कर्मचारियों में खुशी की लहर भी है, लेकिन एक सवाल यह भी उठता है कि इस फैसले से सरकारी खजाने पर बढ़ने वाले बोझ को कम करने के लिए क्या बजट में नया बोझ डाला जा सकता है।
2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ कैसे सहेगी सरकार?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 8वें वेतन आयोग के बाद सरकारी खजाने पर करीब 2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा, क्योंकि केंद्र सरकार के ही करीब 1.10 करोड़ कर्मचारी और पेंशनधारक इसके लाभार्थी होंगे। उनके अलावा राज्यों के भी करोड़ों कर्मचारियों को 8वें वेतन आयोग का लाभ देना पड़ेगा। जाहिर है कि सैलरी और पेंशन में मोटा इजाफा होने के साथ ही सरकारी खजाने पर भी बंपर बोझ बढ़ेगा। वैसे ही सरकार के पास खर्च करने के लिए पैसों की कमी है, जिसके लिए बाजार उधारी बढ़ती जा रही है। ऐसे में इस बोझ से निपटने के लिए सरकार को कुछ तो करना पड़ेगा।
क्या आम आदमी से करेगी सरकारी खजाने पर बढ़े बोझ की भरपाई?
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि 8वें वेतन आयोग के बाद सरकारी खजाने पर बढ़ने वाले बोझ की भरपाई के लिए आम आदमी को तैयार रहना होगा। बहुत संभावना है कि सरकार एक बार फिर टैक्स को लेकर कुछ नया फैसला कर सकती है।बाजार विश्लेषकों का मानना है कि इनकम टैक्स बढ़ाने से सरकार का काम नहीं चलने वाला।
बोझ की भरपाई कॉरपोरेट टैक्स से?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार पर अभी जीडीपी ग्रोथ को बढ़ाने के लिए निजी खपत को बढ़ावा देना और मिडिल क्लास के हाथ में ज्यादा पैसे देने का दबाव है। लिहाजा आम आदमी पर बोझ डालने के बजाय राहत देने का फैसला हो सकता है। सरकार अपने बोझ की भरपाई कॉरपोरेट टैक्स से कर सकती है। दरअसल, पिछले दिनों मुख्य आर्थिक सलाहकार और उद्योग संगठनों ने भी यह मुद्दा उठाया था कि कॉरपोरेट टैक्स घटने के बाद कंपनियों का मुनाफा तो 4 गुना बढ़ गया है, लेकिन उन्होंने कर्मचारियों की सैलरी में 1 फीसदी से भी कम का इंक्रीमेंट किया है। ऐस में माना जा रहा है कि सरकार कंपनियों पर टैक्स का बोझ बढ़ा सकती है।
मध्य वर्ग की नाराजगी भांप रही सरकार
यही नहीं, पिछले दिनों एक दिलचस्प कदम के तहत केंद्र सरकार ने फैसला किया कि जीएसटी कलेक्शन का हर महीने का डेटा जारी नहीं किया जाएगा। यह भी तय किया गया कि बाकी टैक्स कलेक्शन से जुड़े डेटा को बड़े पैमाने पर प्रचारित नहीं किया जाएगा। दरअसल, सरकार को सूचना मिली कि हर महीने बढ़ते टैक्स का गलत संदेश जा रहा था और लोगों को लग रहा था कि सरकार सिर्फ टैक्स वसूल रही है। पिछले कुछ सालों से चाहे जीएसटी टैक्स कलेक्शन का मामला हो, या इनकम टैक्स कलेक्शन का, इसमें वृद्धि को सरकार ने अपनी बड़ी सफलता के रूप में पेश किया। लेकिन अब उसने इससे परहेज करने का फैसला किया है। खासकर मध्य वर्ग में इस बात को लेकर नाराजगी सामने आ रही है कि सरकार टैक्स कलेक्शन पर पूरा फोकस करती है, लेकिन उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिलता है।
हाल के समय में आई तमाम रिपोर्टों ने इस बात की ओर संकेत किया कि मध्य वर्ग की खर्च करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई है और महंगाई के मुकाबले उसकी कमाई बिल्कुल नहीं बढ़ी है। यही कारण है कि इस बार के बजट में इनकम टैक्स में बड़ी राहत देने की उम्मीद लगाई जा रही है।
11 hours ago