पाकिस्तान को बड़ा झटकाः ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज की लिस्ट में भी नहीं मिली जगह, भारत के वीटो के आगे हुआ पस्त
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ब्रिक्स में सदस्यता पाने का ख्वाब देखने वाले पाकिस्तान का सपना चूर हो गया है। पाकिस्तान की ब्रिक्स की सदस्यता पाने की उम्मीदों को भारत के सख्त विरोध ने चकनाचूर कर दिया है। भारत के कड़े विरोध की वजह से पाकिस्तान न सिर्फ ब्रिक्स की सदस्यता से वंचित हुआ, बल्कि उसे पार्टनर कंट्रीज की सूची में भी जगह नहीं मिल पाई। इस बीच, तुर्किए ने खुद को ब्रिक्स पार्टनर कंट्रीज की सूची में शामिल कराकर महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त किया है।
रूस ने हाल ही में 13 नए पार्टनर कंट्रीज की घोषणा की है। रूस ने इन 13 देशों को ब्रिक्स में पार्टनर कंट्री बनने का न्योता भेजा है जिसमें से 9 ने इसकी पुष्टि कर दी है। ये नौ देश हैं- बेलारूस, बोलविया, इंडोनेशिया, कजाखस्तान, क्यूबा, मलेशिया, थाइलैंड, यूगांडा, उज्बेकिस्तान। ये पार्टनर कंट्रीज आगे चलकर ब्रिक्स के सदस्य बनेंगे। ये देश 1 जनवरी 2025 से ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज बनेंगे
चीन-रूस का समर्थन भी नहीं आया काम
हालांकि, इन 13 देशों में पाकिस्तान का नाम नहीं है। पाकिस्तान, जो चीन और रूस के समर्थन से ब्रिक्स में प्रवेश की कोशिश कर रहा था, इस सूची में अपनी जगह बनाने में असफल रहा।
ब्रिक्स में भारत का सख्त रुख
भारत का विरोध पाकिस्तान की ब्रिक्स में सदस्यता के प्रयासों के लिए सबसे बड़ा अवरोध साबित हुआ। पाकिस्तान ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए चीन और रूस से समर्थन प्राप्त किया था, लेकिन भारत ने साफ तौर पर इसका विरोध किया। ब्रिक्स के नए सदस्य देशों को शामिल करने के लिए सभी संस्थापक सदस्यों की सहमति जरूरी होती है। भारत ने पाकिस्तान की दावेदारी का कड़ा विरोध किया, जिससे उसके लिए दरवाजे बंद हो गए। भारत का यह विरोध पाकिस्तान की विदेश नीति के कमजोर पक्ष को उजागर करता है। भारत के सख्त रुख के कारण पाकिस्तान के लिए ब्रिक्स का दरवाजा बंद हो गया।
कश्मीर को लेकर तुर्की के बदले रूख का असर?
ब्रिक्स के 13 नए पार्टनर कंट्रीज का ऐलान हो गया है जिसमें सबसे बड़ा फायदा तुर्की को हुआ है। इन दिनों कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने से परहेज कर रहे तुर्की को पार्टनर कंट्रीज में जगह मिल गई है। माना जा रहा है कि कश्मीर को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के रुख में आए बदलाव की वजह से भारत ने ब्रिक्स में उसकी दावेदारी का विरोध नहीं किया।
राजनयिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन
विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की की ब्रिक्स में भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि कूटनीतिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन के माध्यम से देशों को महत्वपूर्ण कूटनीतिक लाभ मिल सकता है। तुर्की ने अपने कूटनीतिक रिश्तों में लचीलापन दिखाते हुए भारत के साथ अपने पुराने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने तुर्की के पक्ष में सहमति जताई। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने अपने राजनयिक प्रयासों में उस लचीलापन और समायोजन का इस्तेमाल नहीं किया, जिससे उसे इस अवसर का लाभ मिल सकता था। पाकिस्तान को अब अपनी कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।
ब्रिक्स में पाकिस्तान की बड़ी विफलता
ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज में भी पाकिस्तान को जगह नहीं मिलने की बड़ी वजह उसकी विदेश नीति है। कुछ पाकिस्तानी विश्लेषकों भी ये बात मानते हैं। पाकिस्तान की विदेश मामलों की जानकार और चर्चित पत्रकार मरियाना बाबर ने एक्स पर लिखा', ' यह पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की पूरी तरह से विफलता है। वह भी तब जब इशाक डार विदेश मंत्री हैं जिनकी विदेशी मामलों में सबसे कम रुचि है। यहां तक कि नाइजीरिया ने पाकिस्तान से बेहतर किया है। पाकिस्तान को रूस, चीन और भारत ने ब्रिक्स से बाहर रखा।' बता दें कि इशाक डार नवाज शरीफ के समधी और मरियम नवाज के ससुर हैं। इशाक डार पहले वित्त मंत्री हुआ करते थे लेकिन अब उन्हें शहबाज शरीफ के विरोध के बाद मजबूरन विदेश मंत्रालय से संतोष करना पड़ रहा है।
पाकिस्तान के लिए क्यों जरूरी थी ब्रिक्स की सदस्यता
विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान को अगर ब्रिक्स में सदस्यता मिल जाती, तो इसके माध्यम से उसे कई लाभ मिल सकते थे। ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ पाकिस्तान को व्यापार और निवेश के क्षेत्र में नए अवसर मिल सकते थे। ब्रिक्स का सदस्य बनने से पाकिस्तान को विभिन्न वैश्विक मंचों पर भी अधिक प्रभाव मिल सकता था। इसके अलावा, ब्रिक्स के सदस्य देशों से आर्थिक सहायता और सहयोग पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकता था।
विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान को अपनी कूटनीतिक रणनीति में बदलाव लाने की जरूरत है। इसे अपनी विदेश नीति को अधिक लचीला और समायोजनीय बनाना होगा, ताकि भविष्य में इसे इस तरह के अवसरों से वंचित नहीं होना पड़े।
Dec 25 2024, 10:59