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राहुल और प्रियंका गांधी पर क्यों भड़के मायावती के भतीजे आकाश आनंद, कहा-हमारी क्रांति को फैशन शो बनाया

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संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बीआर आंबेडकर पर दिए गए बयान पर हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा है। अमित शाह के बयान के विरोध में कांग्रेस आज देशभर में प्रोटेस्ट कर रही है।इस बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती के भतीजे और बसपा नेशनल कॉर्डिनेटर आकाश आनंद ने कांग्रेस सासद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर निशाना साधा है। आकाश आनंद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कांग्रेस नेता राहुल और प्रियंका गांधी के खिलाफ हमला बोला है।

मंगलवार को सोशल मीडिया साइट एक्स पर आकाश आनंद ने कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी पर जमकर निशाना साधा है। आकाश आनंद ने राहुल-प्रियंका द्वारा नीले रंग में कपड़े पहनने और अरविंद केजरीवाल के उस वीडियो पर प्रतिक्रिया दी है जिसमें एक एआई वीडियो के जरिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर उन्हें आशीर्वाद देते दिख रहे थे।

आकाश आनंद ने कहा कि करोड़ों शोषितों, वंचितों और गरीबों के लिए बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ही भगवान हैं। आजकल वोट बैंक के लिए उनके नाम का इस्तेमाल करना एक फैशन हो गया है। पहले देश के गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में उनका अपमान किया, फिर राहुल गांधी व प्रियंका गांधी ने हमारी नीली क्रांति को फैशन शो बनाया और उसके बाद अरविंद केजरीवाल ने बाबा साहेब की छवि के साथ छेड़छाड़ की। देश के दलित, शोषित, वंचित उपेक्षितों के आत्म-सम्मान के लिए बीएसपी का मिशन जारी रहेगा। गृहमंत्री अमित शाह को पश्चाताप करना ही पड़ेगा।

17 दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया था। राज्यसभा में उन्होंने नेहरू कैबिनेट से आंबेडकर के रिजाइन करने को लेकर बात की थी। शाह के कहा था कि आंबेडकर का नाम लेना अभी एक फैशन हो गया है। इतना नाम अगर भगवान का ले लेते तो स्वर्ग मिल जाता। आंबेडकर का नाम आप लेते हैं तो हमें आनंद आता है। अब उनका नाम 100 बार ज्यादा लें। इसके बाद अमित शाह ने आंबेडकर के देश की पहली कैबिनेट से रिजाइन करने को लेकर सवाल उठाए थे। गृह मंत्री ने कहा था कि बाबा साहेब निम्न वर्गों के साथ सरकार के व्यवहार से अंसतुष्ट थे। वे सरकार की विदेश नीतियों का समर्थन भी नहीं करते थे। कश्मीर में धारा-370 लगाने के पक्ष में भी नहीं थे। आंबेडकर को जो आश्वासन दिए गए, वे पूरे नहीं किए गए थे। इसलिए उन्होंने कैबिनेट से रिजाइन किया था।

ट्रांसजेंडर को लेकर क्या है ट्रंप का रूख? बोले- कार्यकाल संभालते ही सबसे पहले सेना और स्कूलों से हटाऊंगा

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अमेरिका में राष्‍ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले डोनाल्‍ड ट्रंप अपने इरादे साफ कर रहे हैं। ट्रंप ने लगभग हर क्षेत्र में अपनी नीतियों को लेकर खुलासा कर दिया है। ब अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रांसजेंडरों को लेकर बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि वह अपने कार्यकाल के पहले ही दिन ट्रांसजेंडरों का पागलपन रोकने का काम करेंगे। ट्रंप ने कहा है कि वह पद संभालते ही अमेरिकी सेना से ट्रांसजेंडरों को बाहर करेंगे। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में सिर्फ दो ही जेंडर हैं।

एरिजोना में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि "मैं बाल यौन उत्पीड़न को समाप्त करने, ट्रांसजेंडर को सेना और हमारे प्राथमिक विद्यालयों, माध्यमिक विद्यालयों और उच्च विद्यालयों से बाहर करने के लिए कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करूंगा।"

इसके अलावा उन्होंने कहा कि महिलाओं के खेलों से पुरुषों को भी दूर किया जाएगा। यूएसए सरकार की नीति के तहत यहां केवल दो ही लिंग होंगे। इसके अलावा ट्रंप ने प्रवासी अपराधों के खिलाफ भी कार्रवाई करने का वादा दोहराया। साथ ही ड्रग्स तस्करी करने वाले गिरोहों को आतंकी संगठन घोषित करने और पनामा नहर पर अमेरिकी नियंत्रण की बात भी कही।

डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से ट्रांसजेंडर समुदाय के सेना में शामिल किए जाने का विरोध करते रहे हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने कहा था कि वह इस बारे में बच्चों के सामने नस्लीय सिद्धांत या किसी तरह के लैंगिक-राजनीतिक सामग्री को आगे बढ़ाने वाले स्कूलों की आर्थिक मदद रोक देंगे। इतना ही नहीं ट्रंप खेलों से भी ट्रांसजेंडर्स एथलीट्स को बाहर रखने पर मुखर रहे हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने नशीली दवाओं के उपयोग पर लगाम लगाने की तैयारी की है। उन्होंने कहा कि पदभार ग्रहण करते ही सबसे पहले लैटिन अमेरिकियों के खिलाफ सबसे बड़ा निर्वासन अभियान शुरू किया जाएगा। साथ ही ड्रग तस्करों के समूहों को आतंकी संगठन घोषित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी धरती पर सक्रिय आपराधिक नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया जाएगा, निर्वासित कर दिया जाएगा और खत्म कर दिया जाएगा।

आरएसएस चीफ़ मोहन भागवत ने क्या बोला की हो रहा विवाद? साधु संत कर रहे आलोचना

#saints_are_angry_over_mohan_bhagwat_statement 

मंदिर-मस्जिद के रोज नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं। ये बातें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को पुणे में 'हिंदू सेवा महोत्सव' के उद्घाटन के दौरान कहीं। इससे पहले संघ प्रमुख ने कहा था कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की जरूरत नहीं है। संभल में मुस्लिम इलाकों में मंदिर और कुआं मिलने के विवाद के बीच आरएसएस प्रमुख के बयान पर इस बार हंगामा मचा हुआ है। आरएसएस चीफ के इस बयान का साधु संतों ने आलोचना की है। भागवत के भाषण की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि इस वक्त देश में संभल, मथुरा, काशी जैसे कई जगहों की मस्जिदों के प्राचीन समय में मंदिर होने के दावे किए गए हैं। इनके सर्वे की मांग हो रही है और कुछ मामले अदालतों में लंबित हैं।

संघ प्रमुख के बयान को लेकर आमतौर पर भगवा धड़े के साथ ही साधु-संत हमेशा से समर्थन करते रहे हैं। राम मंदिर से लेकर हिंदू संस्कृति को लेकर संघ की तरफ से बयान को पूरा समर्थन मिलता है। हालांकि, इस बार तस्वीर बिल्कुल उलट नजर आ रही है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद हिंदू समुदाय में ही उनका विरोध होने लगा है। सांधु-संतों से लेकर भगवा धड़ा भी संघ प्रमुख की आलोचना कर रहा है।उनके इस बयान पर देशभर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इन प्रतिक्रियाओं में सबसे तीखी प्रतिक्रिया स्वामी रामभद्राचार्य ने दी है, जिन्होंने कहा कि मोहन भागवत का बयान उनका व्यक्तिगत विचार हो सकता है, लेकिन वह संघ के संचालक हो सकते हैं, हिंदू धर्म के नहीं।

स्वामी रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि उनका ध्यान हमेशा धर्म के अनुशासन और सत्य पर रहता है, और वह अपनी धर्मिक जिम्मेदारियों को किसी भी राजनीतिक एजेंडे से परे रखते हैं। स्वामी रामभद्राचार्य ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य केवल मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों पर बयानबाजी करना नहीं है। उनका मानना है कि हिंदू धर्म की रक्षा करना और उसके प्रमाणित धार्मिक स्थलों की पुनर्स्थापना करना ही उनका मुख्य उद्देश्य है। "हम जहां भी प्राचीन मंदिरों के प्रमाण पाएंगे, उन्हें पुनः स्थापित करने का प्रयास करेंगे। यह कोई नई कल्पना नहीं है, बल्कि यह हमारे धर्म और संस्कृति का संरक्षण है।"

अखिल भारतीय संत समिति (एकेएसएस) की तरफ से उनके बयान पर टिप्पणी आई है। एकेएसएस के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि ऐसे धार्मिक मामलों का फैसला आरएसएस के बजाय 'धर्माचार्यों' (धार्मिक नेताओं) के ज़रिए किया जाना चाहिए। सरस्वती ने कहा,'जब धर्म का मुद्दा उठता है तो धार्मिक गुरुओं को फैसला लेना होता है और वे जो भी फैसला लेंगे, उसे संघ और विहिप स्वीकार करेंगे।' उन्होंने कहा कि भागवत की अतीत में इसी तरह की टिप्पणियों के बावजूद, 56 नए स्थलों पर मंदिर संरचनाओं की पहचान की गई है, जो इन विवादों में जारी रुचि को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि धार्मिक संगठन अक्सर राजनीतिक एजेंडे की तुलना में जनता की भावनाओं के जवाब में काम करते हैं।

नो डिटेंशन पॉलिसी' क्या था वो नियम जिसे केन्द्र सरकार ने किया खत्म? तमिलनाडु ने किया विरोध

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5वीं से लेकर 8वीं क्लास में फेल होने वाले बच्चों को अब अगली क्लास में प्रमोट नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार ने ‘नो डिटेंशन पॉलिसी' (No Detention Policy) खत्म कर दी है। पहले इस नियम के तहत फेल होने वाले छात्रों को दूसरी क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था। नए नियम के तहत अब उनको फेल ही माना जायेगा। पास होने के लिए उन्हें दोबारा परीक्षा देनी होगी। जब तक वे पास नहीं होते, तब तक उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा।

नो-डिटेंशन पॉलिसी क्या है?

शिक्षा के अधिकार अधिनियम यानी राइट टू एजुकेशन (आरटीई) में नो-डिटेंशन पॉलिसी का जिक्र है। इसके मुताबिक, किसी भी छात्र को तब तक फेल या स्कूल से निकाला नहीं जा सकता, जब तक वह क्लास 1 से 8 तक की प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं कर लेता। यानी अगर कोई बच्चा क्लास 8 तक परीक्षा में फेल हो जाता है, तो उसे अगली क्लास में प्रमोट करने का प्रावधान है।

ये पॉलिसी क्यों रखी गई थी?

साल 2010-11 से 8वीं क्लास तक परीक्षा में फेल होने के प्रावधान पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद बच्चों को फेल होने के बावजूद अगली क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था। ताकि बच्चों में हीन भावना न आए या वो सुसाइड जैसा कदम न उठा लें। कमजोर बच्चे भी बाकी बच्चों की तरह बेसिक एजुकेशन हासिल कर सके।

कैसे बनी ये पॉलिसी?

जुलाई 2018 में लोकसभा में राइट टु एजुकेशन को संशोधित करने के लिए बिल पेश किया गया था। इसमें स्कूलों में लागू ‘नो डिटेंशन पॉलिसी' को खत्म करने की बात थी। 2019 में ये बिल राज्य सभा में पास हुआ। इसके बाद ये कानून बन गया। राज्य सरकारों को ये हक था कि वो ‘नो डिटेंशन पॉलिसी' हटा सकते हैं या लागू रख सकते हैं। यानी राज्य सरकार ये फैसला ले सकती थीं कि 5वीं और 8वीं में फेल होने पर छात्रों को प्रमोट किया जाए या क्लास रिपीट करवाई जाए।

पॉलिसी से क्या हुई दिक्कत?

इस पॉलिसी से शिक्षा के लेवल में धीरे धीरे गिरावट आने लगी. यानी बच्चे बिना पढ़े और मेहनत किए अगली क्लास में पहुंच जाते थे. इसका सीधा असर बोर्ड एग्जाम में देखा जा सकता था. इसलिए काफी लंबे समय से इस मामले पर विचार-विमर्श के बाद नियमों में बदलाव कर दिया गया. इस पॉलिसी से बच्चों में लापरवाही बढ़ी, उन्हें फेल होने का डर नहीं रहा.

खत्म होने का किस पर होगा असर?

यह बदलाव केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे 3,000 से ज़्यादा स्कूलों पर लागू होता है, जिसमें केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूल शामिल हैं, लेकिन राज्यों को इस नीति को अपनाने या अस्वीकार करने की आजादी है। शिक्षा मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, "चूंकि स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए राज्य अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं। पहले ही 16 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश कक्षा 5 और 8 के लिए 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' से बाहर हो चुके हैं।"

विरोध में आया तमिलनाडु

तमिलनाडु में 5वीं और 8वीं में फेल होने वाले छात्रों को आगे प्रमोट किया जाता रहेगा. इस पर राज्य सरकार ने रोक नहीं लगाई है। इस बीच स्कूली शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोय्यामोझी ने कहा कि राज्य में कक्षा 8 तक ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ का पालन जारी रहेगा।मंत्री ने कहा कि तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पालन नहीं करता है और केंद्र के इस फैसले से तमिलनाडु के स्कूलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, सिवाय उन स्कूलों के जो केंद्र सरकार के दायरे में आते हैं।

अमेरिका ने घुमाया बांग्लादेश के यूनुस को फोन, जयशंकर के यूएस दौरे से पहले हिंदू हिंसा को लेकर लगाई फटकार

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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका ने मोहम्मद यूनुस को नसीहत दी है और अल्पसंख्यकों पर किसी तरह के अत्याचार न करने के लिए खबरदार किया है। ये सब तब हुआ है जब एक दिन पहले ही बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आज से 6 दिन के अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके अमेरिका पहुंचने से पहले ही भारत का ग्लोबल पावर देखने को मिला है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने सोमवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से बातचीत की। अमेरिकी सरकार द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के अनुसार सुलिवन ने चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश का नेतृत्व करने के लिए यूनुस को धन्यवाद भी दिया। प्रेस रिलीज में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

बाइडेन प्रशासन द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता हस्तांतरण के पहले बांग्लादेश में की गई इस कॉल के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुलिवन की ये बातचीत बाइडेन प्रशासन के आखिरी महीने में हुई है, जिससे संदेश मिल रहे हैं कि व्हाइट हाउस में आने वाला नया प्रशासन यूनुस को मनमर्जी नहीं करने देगा।

भारत की बड़ी कूटनीतिक!

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आज से 6 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का मुद्दा भारत ने जोर-शोर से उठाया है। माना जा रहा है कि जयशंकर अमेरिका में भी इस बात को रखेंगे। लेकिन इधर जयशंकर की फ्लाइट उड़ी, उधर पहले ही बांग्लादेश में फोन खनखनाने लगा। अमेरिका में यूनुस को डांट लगाई, तो उन्होंने सुरक्षा देने पर हामी भी भर दी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक पारी का परिणाम माना जा रहा है

बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत का सख्त संदेश

जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा चिंता का मुख्य विषय बनी हुई है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों से भारत में गहरा असंतोष है। इन हालातों में भारत सरकार ने बांग्लादेश पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है। माना जा रहा है कि जयशंकर अपनी इस यात्रा में अमेरिका के सहयोग से बांग्लादेश को कड़ा संदेश देंगे। इससे पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी साफ कर चुके हैं क‍ि बांग्‍लादेश को ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करनी ही होगी।

अमेरिकी संसद में उठा मुद्दा

सुलिवन और यूनुस के बीच बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में भारतीय मूल के सदस्य श्री थानेदार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया था। थानेदार ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस मामले पर कार्रवाई करे। थानेदार ने अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, बहुसंख्यक भीड़ ने हिंदू मंदिरों, हिंदू देवी-देवताओं और शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा था, अब समय आ गया है कि अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिकी सरकार कार्रवाई करे।

मणिशंकर अय्यर ने बढ़ायी कांग्रेस की मुश्किल, बोले- “इंडिया” ब्लॉक का लीडरशिप छोड़ने की सोचे, ये क्षमता ममता बनर्जी में

#mani_shankar_aiyar_targeting_congress

कभी गांधी परिवार के खास रहे मणिशंकर अय्यर अब कांग्रेस के लिए मुसीबत बनते नजर आ रहे हैं। पहले से ही “इंडिया” गठबंधन की अगुवाई को लेकर कांग्रेस की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने ही बड़ा “विस्फोट” किया है। मणिशंकर अय्यर ने कहा कि कांग्रेस को विपक्षी गठबंधन “इंडिया” ब्लॉक को लीड करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। उन्होंने कहा, 'ममता बनर्जी में क्षमता है, दूसरे नेता भी हैं, जो गठबंधन को लीड कर सकते हैं। जो भी इसकी अगुआई करना चाहे, उसे करने देना चाहिए।'

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में ये सवाल पूछे जाने पर कि क्या कोई अन्य पार्टी विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व कर सकती है? इसके जवाब में अय्यर ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि ये कोई प्रासंगिक सवाल है। मुझे लगता है कि कांग्रेस को विपक्षी दल का नेता न बनने के लिए तैयार रहना चाहिए। जो भी नेता बनना चाहता है, उसे बनने दें। ममता बनर्जी में योग्यता है। गठबंधन में अन्य लोगों में योग्यता है। इसलिए, मुझे परवाह नहीं है कि कौन नेता बनता है क्योंकि मुझे लगता है कि कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस नेता की स्थिति हमेशा एक प्रमुख स्थान पर रहेगी'।

हरियाणा-महाराष्ट्र में चुनावी हार के बाद से बैकफुट पर कांग्रेस

बता दें कि हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनावी हार के बाद से ही कांग्रेस बैकफुट पर है। राहुल गांधी जबरदस्त दवाब फेस कर रहे हैं। उनके नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। उनके अपने अय्यर ही इसकी आवाज को और बुलंद कर रहे हैं। लालू यादव, शरद पवार भी ममता के पक्ष में हैं। अब जब अय्यर ने भी ममता पर भरोसा जता दिया है, ऐसे में कांग्रेस और मुश्किल में घिर गई है।

पहले भी गांधी परिवार को लेकर दिया बयान

ये पहली बार नहीं है कि मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस या गांधी परिवार के खिलाफ जुबान खोली है। इससे पहले अय्यर ने आरोप लगाया था कि गांधी परिवार ने मेरा करियर बर्बाद किया। अय्यर ने खुलासा किया है कि पिछले 10 साल में उन्हें सोनिया गांधी से सिर्फ एक बार मिलने का मौका मिला है। उन्होंने कहा कि गांधी परिवार ने ही मेरा पॉलिटिकल करियर बनाया और बर्बाद भी किया है, लेकिन मैं कभी भाजपा में नहीं जाऊंगा।

बांग्लादेश में फिर करवट लेने लगा ISI, भारत के लिए कितना बड़ा खतरा
#pakistan_isi_becomes_active_in_bangladesh
बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता के पतन के बाद पाकिस्तान बांग्लादेश के साथ एक बार फिर से अपने पुराने संबंधों को सुधारने की कोशिश में लगा हुआ है। पाकिस्तान का ध्यान इस बार मुख्य रूप से व्यापार, संस्कृति और खेल पर है। लेकिन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश में फिर से एक बार सक्रिय होने की ताक में है। जो कि भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

बांग्लादेश में अशांति के बीच पश्चिम बंगाल एसटीएफ ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले से दो संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार अब्बास और मिनारुल से पूछताछ के बाद खुफिया एजेंसियों को जानकारी मिली है कि बांग्लादेश में आशांति का लाभ उठाकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने उत्तर बंगाल और नेपाल में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। उसने अपने स्लीपर सेल को फिर से सक्रिय कर दिया है।

खुफिया विभाग का कहना है कि गिरफ्तार आतंकियों के संबंध बांग्लादेश के प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम से है। आतंकियों से पूछताछ से यह जानकारी मिली है कि पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई नेपाल में एक बार फिर सक्रिय हो गई है। उग्रवादी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के 8 सदस्यों से पूछताछ की गई और पाक समर्थन के प्रत्यक्ष सबूत मिले हैं।आतंकियों की योजना नेपाल से उत्तरी बंगाल के चिकन नेक तक हथियारों की तस्करी करने की थी। वहां से हथियार बांग्लादेश, असम और बंगाल पहुंचाए जाने थे।

शेख हसीना के सत्ता से हटते ही पाकिस्तान ने बांग्लादेश से संबंध सुधारने की कोशिशें तेज कर दी हैं, जिससे आईएसआई का नेटवर्क फिर से सक्रिय हो गया है। यह नेटवर्क भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। 1991-96 और 2001-06 के बीच, जब बांग्लादेश में बीएनपी-जमात सत्ता में थी, तब आईएसआई ने भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया, जिसमें पूर्वोत्तर विद्रोही समूहों और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को समर्थन और धन मुहैया कराया गया।
शेख हसीना को वापस भेजे भारत, बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने प्रत्यर्पण के लिए लिखा पत्र
#bangladesh_-writes_letter_to_india_demanding_extradition_send_back_hasina
बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार में शेख हसीना के खिलाफ कई मामलों केस दर्ज किया गया है। बता दें कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अपनी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर छात्र नेतृत्व वाले विद्रोह के बीच पांच अगस्त को भारत चली गई थीं। इस दौरान हुए विरोध प्रदर्शन में कई लोग घायल हुए। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुताबिक विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 753 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका वापस भेजने के लिए भारत को एक राजनयिक नोट भेजा है। बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने अपने कार्यालय में सोमवार इसकी जानकारी दी। बांग्लादेश के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन ने पत्रकारों से कहा कि भारत को शेख हसीना पर बांग्लादेश के स्टैंड के बारे में जानकारी दी गई है। हम चाहते हैं क‍ि उन्‍हें जल्‍द भेज द‍िया जाए।

बांग्‍लादेश के गृह मामलों के सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) जहांगीर आलम चौधरी ने भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत से वापसी के ल‍िए हमने भारत के विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा है। उन्होंने यह टिप्पणी सोमवार को ढाका के पिलखाना स्थित बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में एक पत्रकार के सवाल के जवाब में की।

*बांग्लादेश ने दी प्रत्यर्पण संधि की दलील*
ढाका ट्र‍िब्‍यून की रिपोर्ट के मुताबिक, शेख हसीना को भारत से वापस लाने के बारे में पूछे जाने पर जहांगीर आलम चौधरी ने कहा, विदेश मंत्रालय को एक पत्र पहले ही भेजा जा चुका है। शेख हसीना के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया चल रही है। शेख हसीना बांग्‍लादेश कब लौटेंगी, इसके बारे में उन्‍होंने कोई टाइम फ्रेम नहीं द‍िया। लेकिन ये जरूर कहा क‍ि बांग्‍लादेश की भारत का साथ प्रत्‍यर्पण संध‍ि है। उसी के तहत शेख हसीना को वापस लाया जाएगा।

* इंटरपोल से मदद मांगने की भी कही थी बात*
इससे पहले बीते माह  बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने  कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ छात्र आंदोलन में हुई मौतों का मुकदमा चलाने के लिए उनको बांग्लादेश लाया जाएगा। इसके लिए अंतरिम सरकार इंटरपोल की मदद मांगेगी।  बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कानून मामलों के सलाहकार आसिफ नजरुल ने कहा था कि इंटरपोल के जरिये बहुत जल्द रेड नोटिस जारी किया जाएगा। चाहे ये फासीवादी लोग दुनिया में कहीं भी छिपे हों, उन्हें वापस लाया जाएगा और अदालत में जवाबदेह ठहराया जाएगा। 17 अक्तूबर को न्यायाधिकरण ने हसीना और 45 अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए थे। इसमें उनके बेटे सजीब वाजेद जॉय और उनके कई पूर्व कैबिनेट सदस्य शामिल हैं।

*क्या है प्रत्यर्पण संधि?*
बता दें कि भारत और बांग्लादेश की सरकार के बीच साल 2013 में प्रत्यर्पण को लेकर संधि की गई थी। 2013 से भारत के बीच 'प्रत्यर्पणीय अपराध मामलों' में आरोपी या भगोड़े आरोपियों और बंदियों को एक-दूसरे को सौंपने का करार हुआ था। हालांकि इस प्रत्यर्पण संधि की एक धारा में कहा गया है कि प्रत्यर्पित किए जाने वाले व्यक्ति के खिलाफ लगाए गए आरोप अगर राजनीतिक प्रकृति के हों तो अनुरोध खारिज किया जा सकता है।
भारत और बांग्लादेश के बीच किए गए प्रत्यर्पण संधि में राजनीतिक मामलों को छोड़कर अपराध में शामिल व्यक्तियों के प्रत्यर्पण की मांग की जा सकती है। इन अपराधों में आतंकवाद, बम धमाका, हत्या और गुमशुदगी सरीखे अपराधों को शामिल किया गया। हालांकि बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना के खिलाफ सामूहिक हत्या, लूटपाट और जालसाजी के आरोप लगाए हैं। इसके अलावा बांग्लादेश के एक आयोग ने उनपर लोगों को गायब करने का भी आरोप लगाया है।
केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी, विधानसभा चुनाव पर कितना होगा असर?
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दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले के कथित शराब घोटाले से जुड़े मामले में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बड़ा झटका लगा है। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को इस मामले में केस चलाने की मंजूरी दे दी है। 5 दिसंबर को प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी थी। अब जाकर उपराज्यपाल ने ईडी को आबकारी नीति मामले में केजरीवाल के खिलाफ केस चलाने की हरी झंडी दे दी है। केजरीवाल पर ये एक्शन अगले साल फरवरी में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही लिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आने वाले चुनाव पर इसका कितना असर होगा?

हालांकि, दिलचस्प बात ये है कि जैसे ही दिल्ली के एलजी की ओर से केजरीवाल के खिलाफ केस चलाने की अनुमति की जानकारी सामने आई,आम आदमी पार्टी के शीर्ष से लेकर नीचे तक के नेताओं ने इन खबरों का खंडन करना शुरू कर दिया। आप की ओर से इन खबरों को 'आधारहीन और राजनीति से प्रेरित'होने का दावा किया जाने लगा। इसके ठीक उलट विपक्ष को तो लगा कि उसे आम आदमी पार्टी को घेरने का बहुत ही बड़ा हथियार हाथ लग गया है

पूर्व डिप्टी सीएम और आप के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने सबसे पहले एक्स पर प्रतिक्रिया दी कि ईडी मंजूरी की कॉपी क्यों नहीं दिखा रहा है। उन्होंने लिखा, 'स्पष्ट है कि यह खबर झूठी और भ्रामक है। बाबासाहेब के अपमान के मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए बयानबाजी बंद करें और बताएं कि ईडी को मुकदमा चलाने की अनुमति कहां से मिली है।' पार्टी सांसद संजय सिंह ने कहा कि 'अगर ऐसी कोई चिट्ठी है तो उसे सार्वजनिक किया जाए।' दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने एक एक्स पोस्ट में आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी को ऐसी साजिशें बंद कर देनी चाहिए।

वहीं, बीजेपी नेता और नई दिल्ली से पार्टी सांसद बांसुरी स्वराज ने आरोप लगाया कि एलजी की ओर से पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलने के बाद से आप घबराई हुई है। उन्होंने कहा, 'केजरीवाल की टीम मुकदमे की इस मंजूरी को मौजूदा राजनीतिक मुद्दों से जोड़ने की कोशिश कर रही है। लेकिन, सच्चाई है कि उनके खिलाफ केस पहले से ही दर्ज है और उनकी टीम को पता है कि इस अनुमति से उनके खिलाफ चल रहे मामलों में तेजी आ सकती है, जिसके चलते निकट भविष्य में उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है।'

*माहौल बनाने में जुटी बीजेपी*
आम आदमी पार्टी की नींव ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान से पड़ी है।उसमें केजरीवाल ने खुद को "स्वच्छ राजनेता" के रूप में पेश किया था। हालांकि, केजरीवाल समेत आप के कई बड़े नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप है।चुनाव से पहले आप के शीर्ष नेता के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने से सत्ताधारी दल के खिलाफ बहुत ही कारगर नैरेटिव मिल गया है। बीजेपी को लगता है कि अब आप की टॉप लीडरशिप के खिलाफ आबकारी नीति मामले में इतने पर्याप्त सबूत हैं, जिससे यह मामला बहुत ही ठोस बन चुका है और इनका बच पाना मुश्किल है। भाजपा नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि अगर केजरीवाल सत्ता में वापस आते हैं तो दिल्ली में भ्रष्टाचार चरम पर होगा और आम लोगों को इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा।

*आप का जांच एजेंसियों के दुरुपयोग वाला दांव*
वहीं, आप का विपक्ष के दावों की काट के लिए जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोपों वाला हथियार तैयार है। केजरीवाल की पार्टी दिल्ली के मतदाताओं के बीच मुकदमा चलाने की अनुमति को सहानुभूति बटोरने के लिए भी इस्तेमाल करने की कोशिश कर सकती है, कि यह बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की 'साजिशों' का नतीजा है।

*दिल्ली आबकारी घोटाला मामला क्या है?*
आबकारी घेटाला मामला दिल्ली सरकार की 2021-22 के लिए आबकारी नीति बनाने और उसे अमल में लाने में कथित भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित है, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था। एल-जी सक्सेना ने कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। इसके बाद, ईडी ने पीएमएलए के तहत मामला दर्ज किया था। 55 वर्षीय अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को इस मामले में दायर पूरक आरोपपत्र में आरोपी बनाया गया है।
चालबाजियों से बाज नहीं आ रहा चीन, भूटान में डोकलाम के पास बसाए 22 गांव, भारत के लिए क्यों टेंशन की बात?
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एक तरफ भारत और चीन द्विपक्षीय संबंधों की बहाली को लेकर बातचीत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ड्रैगन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। एक बार फिर चीन की चाल ने भारत की परेशानी को बढ़ाने का काम किया है। चीन ने पिछले 8 साल में भूटान का हिस्सा माने जाने वाले क्षेत्र में कम से कम 22 गांव और बस्तियां बसाने का काम किया है।

*चीन ने बढ़ाई भारत की चिंता*
चीन ने जिन 22 गांवों का निर्माण किया है, उसमें सबसे बड़े गांव का नाम जीवू है, जो पारंपरिक भूटानी चरागाह त्सेथांखखा पर स्थित है। चीन की इस चाल ने भारत की टेंशन बढ़ा दी है। इस क्षेत्र में चीनी स्थिति मजबूत होने से सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे चिकन नेक भी कहा जाता है) की सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है। यह कॉरिडोर भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ता है।सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास भारत-तिब्बत-भूटान ट्राई-जंक्शन है। 60 किमी लंबा और 22 किमी चौड़ा यह कॉरिडोर नॉर्थ-ईस्ट के 7 राज्यों को भारत के साथ जोड़ता है।इस कॉरिडोर का भारत के लिए रणनीतिक महत्व है, क्योंकि चीन भूटान की सीमाओं के पास अपने अतिक्रमण का विस्तार कर रहा है, ताकि ज़मीन के इस संकरे हिस्से पर अपना प्रभाव जमा सके। इसकी कमज़ोरी भारत के पूर्वी क्षेत्र में चीन की मज़बूती है।

*7 हजार लोगों को किया स्थानांतरित*
स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) के रिसर्च सहयोगी रॉबर्ट बार्नेट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से, जब चीन ने पहली बार भूटान का हिस्सा माने जाने वाले क्षेत्र में एक गांव बनाया था, तब से चीनी अधिकारियों ने अनुमानित 2,284 आवासीय इकाइयों वाले 22 गांवों और बस्तियों का निर्माण पूरा कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने लगभग 7 हजार लोगों को यहां स्थानांतरित भी कर दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार चीन ने लगभग 825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर (जो भूटान के अंदर था) कब्जा कर लिया, जो देश के 2 फीसदी हिस्से से थोड़ा अधिक है। चीन ने इन गांवों में अज्ञात संख्या में अधिकारियों, निर्माण करने वालो मजदूरों, बॉर्डर पुलिस और सैन्य कर्मियों को भी भेजा है। ये सभी गांव सड़क के माध्यम से चीन से जुड़े हुए हैं।

*साल 2017 से चल रहा डोकलाम बॉर्डर पर विवाद*
भूटान की 600 किमी सीमा चीन से लगती है। दो इलाकों को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। पहला- 269 वर्ग किमी क्षेत्रफल का डोकलाम इलाका और दूसरा- उत्तर भूटान में 495 वर्ग किमी का जकारलुंग और पासमलुंग घाटी का क्षेत्र। सबसे गंभीर मामला डोकलाम का है, जहां चीन, भारत और भूटान तीनों देशों की सीमाएं लगती है।
भारत और चीन की सेनाओं के बीच साल 2017 में लद्दाख के पास डोकलाम में हुए विवाद पर गतिरोध 73 दिनों तक चला था। उस दौरान भारत ने चीन की ओर से सड़क निर्माण का विरोध किया था। जिसके बाद दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटीं। बीते कुछ सालों से चीन फिर डोकलाम के पास अपनी गतिविधि बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

*भारत के सामने कई सवाल*
कागजों पर, भूटान, भारत की सहमति के बिना डोकलाम के नजदीकी इलाकों को नहीं छोड़ सकता क्योंकि 2007 की भारत-भूटान शांति संधि के अनुसार भारत को भारत की सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करना होगा। इससे हमारे सामने कई सवाल खड़े होते हैं - क्या चीन ने भूटान को भारतीय सीमा के नजदीकी इलाके को छोड़ने के लिए मजबूर किया?
क्या थिम्पू ने भूटानी प्रधानमंत्री की हाल की भारत यात्रा के दौरान डोकलाम के नजदीक चीन द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य के बारे में नई दिल्ली को बताया या शर्मिंदगी से बचने के लिए मामले को दबा दिया गया? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में अपने सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया में हैं।