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11वीं बार भी नहीं घटा रेपो रेट, ईएमआई पर क्या होगा असर?

#rbi_mpc_announcement_rbi_governor

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने देश के आर्थिक विकास की रफ्तार की गति के धीमे पड़ने के बाद मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की बैठक में बड़ा फैसला लिया है। तीन दिन तक चली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में हुए फैसलों को गवर्नर ने शुक्रवार को जनता के सामने रखा। पिछली 10 बार की बैठकों से अपरिवर्तित रहे रेपो रेट पर इस बार भी कोई फैसला नहीं हुआ, गवर्नर ने सारा जोर महंगाई को काबू करने पर दिया और अर्थव्‍यवस्‍था में तेजी लाने के लिए कैश रिजर्व रेशियो 0.50 फीसदी घटा दिया है, जो अब 4 फीसदी हो गया।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने पॉलिसी रेट का फैसला सुनाते हुए कहा कि रेपो रेट को फ्रीज रखा जाएगा। इसका मतलब है कि आरबीआई ने लगातार 11वीं बार ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। आखिरी बार ब्याज दरों में बदलाव फरवरी 2023 में किया था। जब ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। उसके बाद से रिजर्व बैंक की ओर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने 4-2 बहुमत से ब्याज दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया, जबकि एसडीएफ दर 6.25% और एमएसएफ दर 6.75% पर बनी हुई है। केंद्रीय बैंक का रुख तटस्थ बना हुआ है। एमपीसी ने सर्वसम्मति से इस तटस्थ नीति रुख को बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की, जो वर्तमान आर्थिक स्थितियों के प्रति सतर्क दृष्टिकोण का संकेत देता है।

शक्तिकांत दास ने कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) में में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती का एलान किया है। सीआरआर को 4.50 फीसदी से घटाकर 4 फीसदी कर दिया है। कैश रिजर्व रेश्यो में कटौती को दो चरणों में लागू किया जाएगा। इससे बैंकिंग सिस्टम में 1.16 लाख करोड़ रुपये का एडिशनल कैश आएगा।

सीआरआर किसी बैंक की कुल जमाराशि का वह प्रतिशत है जिसे उसे आरबीआई के पास नकदी के रूप में रखना होता है। सीआरआर का प्रतिशत आरबीआई द्वारा समय-समय पर निर्धारित किया जाता है। बैंकों को इस राशि पर कोई ब्याज नहीं मिलता है।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर उम्मीद से कम 5.4 प्रतिशत रही। दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में मंदी का संकेत देने वाले संकेतक समाप्त हो गए हैं। दास के अनुसार,आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के आर्थिक वृद्धि दर अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत किया है। उन्होंने कहा कि दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में सुस्ती का संकेत देने वाले संकेतक अब समाप्त होने की स्थिति में हैं। एमपीसी की बैठक के बाद आरबीआई गवर्नर ने कहा कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार दबाव रहने से तीसरी तिमाही में मुद्रास्फीति ऊंची रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि रबी उत्पादन से राहत मिलेगी।

एमपीसी बैठक के बाद गवर्नर ने कहा कि आम आदमी को महंगाई से राहत दिलाना हमारी प्राथमिकता है, लेकिन देश की ग्रोथ रेट भी जरूरी है। लिहाजा एमपीसी ने अपने नजरिये को अब न्‍यूट्रल बना लिया है, जिसका मतलब है कि जैसा आगे माहौल होगा, उसी के हिसाब से रेपो रेट या फिर बैंकों के लोन रेट में कटौती की जाएगी। गवर्नर ने चिंता जताई कि तीसरी तिमाही में भी महंगाई से कोई राहत मिलती नहीं दिख रही और चौथी तिमाही से ही जाकर इसमें कुछ नरमी आएगी। खास बात तो ये है कि ये बैठक आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के कार्यकाल की आखिरी बैठक है। उसके बाद फरवरी में होने वाली बैठक में नए गवर्नर दिखाई दे सकते हैं।

आज किसानों का दिल्ली कूच, बॉर्डर पर बैरिकेडिंग, चप्पे-चप्पे पर पुलिस का पहरा

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पिछले 8 महीने से शंभू बॉर्डर पर धरना दे रहे किसान संगठन एक बार फिर दिल्ली कूच करने के लिए तैयार हैं। एमएसपी लागू करने व अन्य मांगों को लेकर 297 दिन से बॉर्डर पर डटे किसान शुक्रवार दोपहर एक बजे शंभू बॉर्डरों से पैदल दिल्ली कूच करेंगे। किसानों ने इसे 'दिल्ली चलो' आंदोलन नाम दिया है। शंभू-खनौरी बॉर्डरों पर करीब 10 हजार किसान जमा हो गए हैं। इन्हें रोकने के लिए हरियाणा ने दोनों बॉर्डरों पर अर्द्धसैनिक बलों की 29 कंपनियां तैनात की गई हैं। किसानों के दिल्ली मार्च के मद्देनजर पुलिस ने अंबाला-दिल्ली सीमा पर सुरक्षा कड़ी करते हुए बैरिकेडिंग कर दी है।

ये दिल्ली चलो आंदोलन किसान नेता सरवन सिंह पंधेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल के नेतृत्व में हो रहा है। अपने फैसले के बारे में बात करते हुए पंधेर ने कहा,'हम यहां पिछले 8 महीनों से बैठे हैं। हमारे ट्रैक्टरों को मॉडिफाइड कहकर हम पर आरोप लगाया गया, इसलिए हमने अब पैदल दिल्ली जाने का फैसला किया है। किसानों के आंदोलन को हरियाणा के खाप पंचायतों और व्यापारिक समुदाय सहित व्यापक समर्थन मिल रहा है।'

101 किसानों का जत्था दिल्ली जाएगा

किसान आंदोलन में शुक्रवार को दिल्ली कूच से पहले अंबाला के शंभू बाॅर्डर पर सुबह दस बजे किसानों ने अरदास की है और श्री गुरु ग्रंथ साहिब को लेकर स्टेज की तरफ गए हैं। यहां पर पुलिस बल की तैनाती भी की गई है। किसान दोपहर बाद दिल्ली जाएंगे। 101 किसानों का जत्था दिल्ली जाएगा। इसमें बुजुर्ग किसानों को शामिल किया गया है।

मार्च में शामिल होंगे ये किसान नेता

आज शंभू बॉर्डर से दिल्ली की ओर किसानों का पहला जत्था रवाना होगा। इस जत्थे में किसान नेता सतनाम सिंह पन्नू, सुरिंदर सिंह चौटाला, सुरजीत सिंह फूल और बलजिंदर सिंह शामिल होंगे। ये जत्था जरूरी सामान लेकर दिल्ली रवाना होगा और शांतिपूर्ण मार्च करेगा। पहला जत्था अंबाला के जग्गी सिटी सेंटर, मोहरा अनाज मंडी, खानपुर जट्टन और हरियाणा के पिपली में रुकने के बाद दिल्ली की ओर बढ़ेगा। आज जत्था 1 बजे रवाना होगा, लेकिन रोजाना किसान 9 बजे सुबह से शाम 5 बजे तक चलेंगे और रात सड़क पर बिताएंगे।

कई किसान नेताओं ने दिल्ली मार्च से बनाई दूरी

किसानों के दिल्ली मार्च से संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने खुद को अलग कर लिया है. भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के चीफ गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा,'हमसे संपर्क नहीं किया गया और न ही हमसे सलाह ली गई, इसलिए अब तक हमने किसी भी मार्च में भाग लेने की कोई योजना नहीं बनाई है. हमने पहले भी समर्थन देने की कोशिश की थी, लेकिन चीजें ठीक नहीं रहीं. वे अपने हिसाब से फैसले ले रहे हैं और हमारी तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं होगा.' ऑल इंडिया किसान सभा (AIKS) के नेता हन्नान मोल्लाह का कहना है कि SKM इस विरोध मार्च में शामिल नहीं है.

किसानों के दिल्ली कूच को लेकर सतर्क हुई दिल्ली और हरियाणा पुलिस

किसानों को रोकने के लिए हरियाणा पुलिस ने एहतियातन शंभू बॉर्डर पर सात स्तरीय बैरिकेडिंग कर दी है। सीमेंट की दीवारों के साथ लोहे की कीलें व कंटीली तार लगाई गई है। इनके अलावा वाटर कैनन वैन व आंसू गैस के गोले फेंकने वाले ड्रोन से सुरक्षा चक्रव्यूह और मजबूत किया गया है। हरियाणा पुलिस ने आगामी आदेश तक पुलिस कर्मियों की छुट्टियां भी रद्द कर दी हैं। दातासिंहवाला बॉर्डर पर पुलिस ने नाकाबंदी की है। इन दोनों सीमाओं से आम लोग आवागमन नहीं कर पाएंगे। सिर्फ ट्रेन के जरिये ही लोग पंजाब जा सकते हैं। इसके अलावा पंजाब से सटे कैथल, कुरुक्षेत्र, सिरसा और फतेहाबाद की सीमाओं पर पुलिस ने चाैकसी बढ़ा दी है। हालांकि अभी यहां से लोगों का आवागमन जारी है। सिरसा के मलोट, बठिंडा और मुसाहिबवाला बाॅर्डर पर एसपी विक्रांत भूषण ने सुरक्षा प्रबंधों का जायजा लिया। पुलिस जवानों की मॉक ड्रिल भी करवाई गई। सिरसा व जींद में भी धारा 163 लागू कर दी गई है। अंबाला में एक दिन पहले ही धारा 163 लगाई जा चुकी है।

जिसने दिलाई आजादी उसी से दुश्मनी निभा रहा बांग्लादेश, बीएनपी सुलगा रही 'बॉयकॉट इंडिया' की आग

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बांग्लादेश किसकी बोली बोलने लगा है? अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़े अत्याचार के बीच अब राजनीतिक दलों ने बॉयकाट इंडिया का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया है।बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की फैसला किया है। साथ ही लोगों से भी ऐसा ही करने की अपील कर रहे हैं।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाते हुए भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया।रिजवी ने यह विरोध त्रिपुरा में बांग्लादेश के उच्चायोग में कथित तोड़फोड़ और बांग्लादेशी झंडे के अपमान के खिलाफ किया।

आत्मनिर्भर बनने जा रहा बांग्लादेश!

बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिजवी ने ढाका में प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए कहा कि भारत के त्रिपुरा में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में तोड़फोड़ कर हमारे झंड़े को जलाया गया। हमारे राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ना हमारा अपमान है। रिजवी ने अपील किया कि कोई भी बांग्लादेशी भारतीय सामानों को न खरीदे। उन्होंने अपनी पत्नी की भारत की साड़ी को सार्वजनिक मंच पर जलाया और लोगों से भारतीय सामनों का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा कि हमारा देश आत्मनिर्भर है। हम भारत के किसी भी सामान को नहीं खरीदेंगे। एक वक्त का खाना खा लेंगे लेकिन भारतीय सामान नहीं लेंगे। रिजवी ने कहा कि भारतीय साबुन, टूथपेस्ट से लगायत हम भारत से आने वाला मिर्च और पपीता भी इस्तेमाल नहीं करेंगे। हम मिर्च और पपीता खुद उगा लेंगे।

भारत पर गलत खबरें फैलाने का आरोप

भारत विरोझी प्रदर्शन के दौरान रिजवी ने भारतीय नेताओं और मीडिया पर भी निशाना साधते हुए गलत खबरें फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, उन्होंने बांग्लादेश की संप्रभुता के सम्मान की बात करते हुए कहा कि बांग्लादेश किसी भी प्रकार के गलत आचरण को सहन नहीं करेगा।

क्या ऐसे बदहाली से उबर पाएगा बांग्लादेश?

शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने और मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के बाद, उदारवादियों का एक वर्ग था, जिसने इस बात की दुहाई दी थी कि अब मुल्क के हालात बदलेंगे और बदहाली से निकलकर बांग्लादेश विकास के रास्ते पर चलेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वर्तमान में मुल्क अशांति की चपेट में है। जगह जगह हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। मुल्क में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। यही नहीं, अपने सबसे नजदीकी दोस्त भारत से दुश्मनी निभाई जा रही है।

बांग्लादेश का एक और भारत विरोधी कदम, कोलकाता-त्रिपुरा से वापस बुलाए डिप्लोमेट्स

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बांग्लादेश और भारत के संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं। शेख हसीने के देश छोड़ने के बाद से लगातार बांग्लादेशी की अंतरिम सरकार भारत विरोधी रूख अपनाए हुए है। बांग्लादेश में लगातार चल रही हिंदू विरोधी हिंसा और मंदिरों में तोड़फोड़ के बीच वहां 'बॉयकॉट इंडिया' कैंपेन भी शुरू हुआ है। अपने यहां भड़की हिंसा की आग को बुझाने के बजाय अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने एक और ऐसा कदम उठा दिया है, जो सीधेतौर पर वहां बढ़ते भारत विरोध की झलकी पेश कर रहा है। दरअसल, बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने भारत से अपने 2 डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की है।

भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने भारत से अपने 2 डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया है। बांग्लादेश ने त्रिपुरा के अगरतला में बांग्लादेश सहायक उच्चायोग पर हमले और कोलकाता में बांग्लादेश उप उच्चायोग के सामने विरोध प्रदर्शन के बाद इन दोनों डिप्लोमेट्स को तत्काल ढाका वापस बुला लिया है।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की है कि बंगाल से राजनयिक वापस बांग्लादेश लौट आए हैं, जबकि त्रिपुरा के सहायक उच्चायुक्त के भी आज ढाका लौटने की उम्मीद है। सूत्रों ने कहा कि कोलकाता में बांग्लादेश के कार्यवाहक उप उच्चायुक्त शिकदार मोहम्मद अशरफुर रहमान और त्रिपुरा में सहायक उच्चायुक्त आरिफुर रहमान को पिछले मंगलवार को तत्काल आधार पर ढाका लौटने का निर्देश दिया गया था।

क्यों भारत से बुलाए डिप्लोमेट्स?

बता दें कि हाल ही में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में बांग्लादेश के राजनयिक मिशन में तोड़फोड़ हुई थी। बाद में इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। कैम्पस में घुसपैठ के मामले में 4 पुलिस अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई थी। वहीं, बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त को तलब कर घटना का विरोध जताया गया था। साथ ही बांग्लादेश ने अगरतला में अपनी काउंसलर सर्विस भी बंद करने का ऐलान किया था। अब बांग्लादेश ने त्रिपुरा से अपने डिप्लोमेट को वापस बुला लिया है।

हिंदुओं पर अत्याचार, विरोध में भारत

भारत सरकार लगातार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर बयान जारी कर रही है। भारत सरकार ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। साथ ही घर्मगुरू चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के खिलाफ भी सरकार ने शांतिपूर्ण विरोध जताया था। बता दें कि हाल ही में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के बड़े धार्मिक चेहरे चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन पर कथित भड़काऊ भाषण देने के लिए राजद्रोह का केस लगाया है।

अब बांग्लादेश में 'बॉयकॉट इंडिया'

उधर, अगरतला-कोलकाता की घटना के जवाब में बांग्लादेश में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। गुरुवार को बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की अपील की।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में भारत विरोधी प्रदर्शन करते हुए अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने सार्वजनिक रूप से भारतीय साड़ी जलाते हुए लोगों से भारतीय सामान न खरीदने की अपील की। उन्होंने कहा, जिन लोगों ने हमारे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया है, हम उनका सामान खरीदकर उनका समर्थन नहीं करेंगे। हमारी माताएं-बहनें अब भारतीय साड़ी नहीं पहनेंगी।"

बांग्लादेशी मौलाना इनायतुल्लाह अब्बासी ने भारत के खिलाफ उगला जहर, दिल्ली में इस्लाम का झंडा फहराने की धमकी

#bangladesh_maulana_inayatullah_abbasi 

बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से हिंदुओं पर अत्याचार काफी बढ़ गए हैं। बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों ख़ासकर हिंदुओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस हालात को काबू करने में नाकाम रहे हैं। हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला बोला है। हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया है। इससे पहले भी मोहम्मद यूनुस पर बांग्लादेश में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के भी आरोप लग रहे हैं। इस बीत एक कट्टरपंथी बांग्लादेशी मौलाना ने भारत के खिलाफ जहर उगला है।

 बांग्लादेश के मौलाना इनायतुल्लाह अब्बासी ने पीएम मोदी और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया है। यही नहीं, मौलवी ने भारत की राजधानी में इस्लाम का झंडा फहराने की धमकी दी है। मौलाना इनायतुल्ला अब्बासी ने बांग्लादेश में हिंदुओं की मौजूदा स्थिति को देखते हुए कहा है कि 14 करोड़ बांग्लादेशी मुसलमान अपने 28 करोड़ हाथों में लाठी लेकर एक साथ आएंगे और लाल किले पर कब्जा कर लेंगे। मौलाना का ये वीडियो वायरल हो रहा है।

अब्बासी वीडियो में कहता है कि मैं मौदी और ममता बनर्जी को बता देना चाहता हूं कि अगर तुमने अपना हाथ बांग्लादेश की की तरफ बढ़ाया तो 14 करोड़ मुसलमान तुम्हारा हाथ तोड़ देंगे। बांग्लादेश का दुश्मन हिंदुस्तान है। अब्बासी ने कहा कि अगर 14 करोड़ मुसलमान अपने 28 करोड़ हाथों में लाठी लेकर एक साथ आ गए तो लाल किले पर कब्जा कर लेंगे।

हर मदरसे को छावनी में बदलने की दी थी धमकी

इनायतुल्लाह अब्बासी ने भारत के खिलाफ ऐसे जहरीली बात पहली बार नहीं कही है। इसी साल अप्रैल में मौलवी अब्बास का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इस वीडियो में वह कहता हुआ सुना जा सकता है कि इस देश में इस्लामवादी उनकी आंखें निकाल लेंगे। अगर कोई बांग्लादेश में एक इंच भी आक्रमण करने आया तो हर मदरसा हथियारों से छावनी में तब्दील हो जाएगा। हर मुसलमान जिहाद के लिए बांग्लादेश की सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होगा। बांग्लादेशी मुसलमान दिल्ली में भी इस्लाम का झंडा बुलंद करने की क्षमता रखते हैं और हम इसे भविष्य में दिखाएंगे।

चीन को अपना दोस्त मानता है मौलवी अब्बास

अपने भड़काऊ भाषणों को लेकर चर्चाओं में रहने वाला मौलाना इनायतुल्लाह अब्बासी जहां एक तरफ भारत को लेकर तल्ख बयान देता है वहीं दूसरी तरफ वह चीन की तरफदारी भी करता हुआ दिखता है। उसने अपने एक भाषण के दौरान कहा था कि अल्लाह ने चीन को भारत को सबक सिखाने के लिए ही तैयार रखा है। मौलवी अब्बास समय-समय पर भारत विरोधी बयान देता रहा है। वो चीन को भारत से बेहतर मानता है और बताता है कि चीन बांग्लादेश की तकदीर को बदलने वाला देश बनेगा।

बांग्लादेश में इस्लामी ताकतें सिर उठा रही

बता दें कि हाल के दिनों में बांग्लादेश में इस्लामी ताकतें सिर उठा रही हैं। खासकर इसी साल अगस्त मे शेख हसीने के तख्तापलट के बाद। शेख हसीने के देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने मानों कट्टरपंथियों को खुली छूट दे रखी है। तभी तो देश के हालात बिगड़ रहे हैं पर यूनुस हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

चीन के करीब आ रहा नेपाल, दोनों देशों के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समझौता, भारत पर क्या होगा असर?

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नेपाल पर चीन का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है। पिछले कुछ सालों में चीन-नेपाल करीब आए हैं। यही कारण है कि चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद केपी शर्मा ओली अपने पहले दौरे पर चीन गए। केपी शर्मा ओली ने बीजिंग दौरे पर कई समझौतों पर साइन किया। इनमें सबसे अहम है बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)। नेपाल और चीन ने बुधवार को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) सहयोग के ढांचे पर हस्ताक्षर किए हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इसकी पुष्टि की।

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस समझौते की पुष्टि अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर की। पीएम ओली ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “आज हमने बेल्ट एंड रोड्स सहयोग के लिए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन की मेरी आधिकारिक यात्रा खत्म होने खत्म होने के साथ ही, मुझे प्रधानमंत्री ली कियांग के साथ द्विपक्षीय वार्ता, एनपीसी के अध्यक्ष झांग लेजी के साथ चर्चा और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अत्यंत उपयोगी बैठक पर विचार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पीएम ओली ने कहा कि बेल्ट एंड रोड फ्रेमवर्क सहयोग के तहत नेपाल-चीन आर्थिक सहयोग और मजबूत होगा।

समझौते से पहले बदले गए शब्द

इससे पहले चीन ने नेपाल के भेजे गए मसौदे से अनुदान शब्द हटा दिया था। इस कारण इस मसौदे पर मंगलवार को हस्ताक्षर नहीं हो सके थे। नेपाल ने शुक्रवार शाम एक मसौदा भेजा था, जिसमें प्रस्ताव दिया गया था कि चीन नेपाल सरकार द्वारा आगे बढ़ाई जाने वाली परियोजनाओं पर अनुदान निवेश प्राप्त करेगा। दोनों देशों ने अब अनुदान निवेश के स्थान पर सहायता निवेश, जिसमें अनुदान और ऋण निवेश दोनों शामिल हैं, को ध्यान में रखते हुए ढांचे पर हस्ताक्षर किए हैं।

ओली ने बीआरआई पर लगाई मुहर

नेपाल के प्रधानमंत्री और सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस (एनसी) के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने पहले बीआरआई सहयोग पर ढांचे के मसौदे को मंजूरी दी थी जिसमें कहा गया था कि नेपाल केवल चीनी अनुदान स्वीकार करेगा। नेपाल ने 2017 में बीआरआई पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद नेपाल और चीन द्वारा बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद थी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ था।

चीन पर बढ़ा ओली का भरोसा

नेपाल के प्रधानमंत्री की 4 दिवसीय ये यात्रा काफी चर्चा में है। अपने दौरे के बाद पीएम ओली ने दावा किया कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल के विकास का पूरा समर्थन किया है। इसके अलावा ओली ने चीनी निवेशकों से नेपाल में निवेश करने की बात भी कही है। उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय आकांक्षा, समृद्ध नेपाल, खुशहाल नेपाली के सपने को साकार करने के लिए सरल निवेश सुविधा लाएंगे।

भारत के प्रभाव से दूर हो रहा नेपाल

वहीं, नेपाल के इस फ़ैसले को भारत के प्रभाव से दूर जाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन के साथ अपने आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते और बेहतर करने की रणनीति अपनाई है। ओली इस साल चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। पीएम बनने के बाद उन्होंने अपने पहले आधिकारिक विदेश दौरे के लिए चीन को चुना था। परंपरागत रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल की शुरुआत में भारत की यात्रा करते रहे हैं, लेकिन ओली ने इस परंपरा को तोड़ते हुए चीन का रुख किया है।

नेपाल की चीनी चाल से भारत हो सकता है परेशान

नेपाल के बीआरआई मसौदे पर हस्ताक्षर करते ही भारत की टेंशन बढ़ गई है। इस मसौदे में नेपाल की चिंताओं के बावजूद अनुदान और और ऋण दोनों को शामिल किया गया है। ऐसे में डर है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां चीन को खुश करने के लिए कर्ज लेकर देश का बेड़ा गर्क कर सकती हैं। इससे नेपाल के चीन के कर्ज के जाल में फंसने की आशंका बढ़ जाएगी। अगर ऐसा होता है तो नेपाल की नीतियों में चीनी दखल भी बढ़ेगा जो भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। नेपाल हिमालयी देश है, जो भारत और चीन के बीच स्थित है।

दिल्ली-एनसीआर में ग्रैप-4 से लगी पाबंदी हटी, कम होते प्रदूषण के बीच सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास की हवा में सुधार देखा जा रहा है। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में लागू किए गए ग्रैप 4 प्रतिबंधों में छूट की अनुमति दी है।दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर गुरुवार को चल रही सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने दिल्ली-एनसीआर से ग्रैप-4 को हटाने का आदेश दिया।

ग्रैप-2 के स्तर से नीचे नहीं जाने की सलाह

रिस्पॉन्स एक्शन प्लान के सवाल पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ने ब्रीफ नोट दिया, जिसमें एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) का ब्यौरा था। इसके मुताबिक एयर क्वॉलिटी लेवल में सुधार है और यह कम हो रहा है। इसके बाद कोर्ट ने कहा, ग्रैप-4 को हटाने का आदेश देते हैं और आगे ग्रैप तय करने का जिम्मा कमीशन फोर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) पर छोड़ते हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि सही यही होगा कि ग्रैप-2 के स्तर से नीचे आयोग नहीं जाए। 

कब लागू किया जाता है ग्रैप-4?

ग्रैप-4 तब लगाया जाता है, जब एक्यूआई 450 से अधिक हो जाता है। इसमें सभी निर्माण कार्य पूरी तरह से रोक दिए जाते हैं। स्कूलों को बंद कर दिया जाता है और निजी वाहनों के लिए ऑड-ईवन योजना तक सख्त वाहन प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं।

18 नवंबर को शीर्ष अदालत ने सभी दिल्ली-एनसीआर राज्यों को प्रदूषण विरोधी ग्रैप 4 प्रतिबंधों को सख्ती से लागू करने के लिए तुरंत टीमें गठित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने साफ किया था कि प्रतिबंध अगले आदेश तक जारी रहेंगे। 

प्रदूषित हवा से लगभग दो महीने बाद राहत

बता दें कि लोगों को प्रदूषित हवा से लगभग दो महीने बाद राहत मिली है। बुधवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 178 रहा, जोकि मध्यम श्रेणी में है। यह मंगलवार के मुकाबले 100 सूचकांक की कम है। इससे पहले 10 अक्तूबर को एक्यूआई 164 दर्ज किया गया था। इसके बाद सर्दी के दस्तक देने के साथ ही हवा की स्थिति बिगड़ती गई। 

वायु प्रदूषण बनी बड़ी चुनौती

हर साल ठंड की शुरुआत होते ही दिल्ली में वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती बन जाता है, जिससे निपटने के लिए सरकार हर साल लाखों दावे तो करती है, लेकिन वो फिसड्डी ही साबित होते हैं। इस साल भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। नवंबर की शुरुआत के साथ ही दिल्ली गैस चैंबर बन चुकी थी।

इस सीजन में दिल्ली की हवा सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच गई थी। वायु गुणवत्ता सूचकांक 500 के आसपास पहुंच गया था। यह अब तक की सबसे खराब श्रेणी था। प्रदूषण की वजह से बिगड़ती स्थिति को देखते हुए ही दिल्ली में ग्रैप-4 लागू कर दिया गया था।

देवेंद्र फडणवीस ने तीसरी बार ली सीएम पद की शपथ, शिंदे-अजित बने डिप्टी सीएम

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देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मुंबई के आजाद मैदान में हुए भव्य समारोह में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने इन तीनों नेताओं को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, योगी आदित्यनाथ, भजनलाल, चंद्रबाबू नायडू समेत अन्य राजनीतिक हस्तियां शामिल हुईं।

देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की तीसरी बार शपथ ली, वह नागपुर दक्षिण से विधायक हैं। इससे पहले 2014 में वह पहली बार सीएम बने थे, इसके बाद 2019 के चुनाव में कछ दिन के लिए सीएम रहे थे। इसके बाद महायुति गठबंधन बना और सीएम एक नाथ शिंदे को बना दिया गया था, जबकि फडणवीस डिप्टी सीएम की भूमिका में रहे थे।

शपथ ग्रहण समारोह में पहली पंक्‍त‍ि में अमित शाह के साथ रक्षामंत्री राजनाथ सिंह न‍ित‍िन गडकरी, श‍िवराज सिंह चौहान, रामदास आठवले समेत कई वर‍िष्‍ठ मंत्री नजर आए। तो वहीं, मुख्‍यमंत्र‍ियों वाली पंक्‍त‍ि में यूपी के मुख्‍मयंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ, बिहार के सीएम नीतीश कुमार और गुजरात के मुख्‍यमंत्री के साथ बैठे दिखे।

इसके अलावा उद्योगपति मुकेश अंबानी, अनंत अंबानी, राधिका अंबानी भी समारोह में मौजूद रहे। बॉलीवुड से शाहरुख खान, सलमान खान, संजय दत्त, माधुरी दीक्षित, रणबीर कपूर, रणबीर सिंह समेत अन्य हस्तियों ने शिरकत की।

कई दिनों की अनिश्चितता के बाद एकनाथ शिंदे बने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री

तीन दिनों तक अपने फैसले पर सस्पेंस बनाए रखने के बाद, कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए सहमति जताई है, पार्टी नेता उदय सामंत ने गुरुवार को घोषणा की। सामंत ने संवाददाताओं से कहा, "शिंदे उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। हमने देवेंद्र फडणवीस को इस बारे में बता दिया है।"

इससे पहले, शिंदे ने अपने कैबिनेट पद की पुष्टि करने में संकोच किया था, क्योंकि भाजपा ने उपमुख्यमंत्री के रूप में गृह विभाग और उनकी पार्टी के विधायक के लिए विधानसभा अध्यक्ष पद की उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया था। फडणवीस ने पिछले दो दिनों में शिंदे के साथ दो बैठकें कीं। बुधवार को राजभवन में फडणवीस के साथ जाने के दौरान शिंदे ने मीडिया से कहा कि सरकार में शामिल होने के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। गुरुवार की सुबह सामंत ने खुलासा किया कि शिवसेना के विधायकों ने शिंदे से कैबिनेट में शामिल होने का आग्रह किया था, उन्होंने कहा कि अगर शिंदे सरकार से बाहर रहे तो वे मंत्री पद लेने से मना कर देंगे।

इसके बाद, वरिष्ठ भाजपा नेता गिरीश महाजन शिंदे से उनके आवास पर मिलने गए, जिसके बाद सामंत ने अपने नेता द्वारा उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करने की घोषणा की। हालांकि, शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, विभागों का बंटवारा अभी भी अनसुलझा है। यह तय हो गया है कि तीनों शीर्ष नेता आज शपथ लेंगे। तीनों दलों के बीच मंत्रियों की संख्या और विभागों के बंटवारे सहित सत्ता-साझाकरण समझौते को कुछ दिनों में अंतिम रूप दे दिया जाएगा।"

शपथ ग्रहण समारोह आज शाम 5:30 बजे मुंबई के आज़ाद मैदान में होना है, जहाँ फडणवीस मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे, जबकि शिंदे और अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।

साउथ कोरिया के रक्षा मंत्री ने इस्तीफा दिया, मार्शल लॉ लगाने की जिम्मेदारी ली, कहा- मैंने संसद में सेना भेजी

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साउथ कोरिया के राष्ट्रपति ने मंगलवार को देश में मार्शल लॉ लगाने का ऐलान किया था। हालांकि नेशनल असेंबली में हुई वोटिंग के बाद उन्हें कुछ ही घंटों में अपना फैसला पलटना पड़ा।देश के मुख्य विपक्षी दल ने बुधवार को राष्ट्रपति से तत्काल पद छोड़ने की मांग की, विपक्ष ने चेतावनी दी है कि अगर यून सुक अपना पद नहीं छोड़ते हैं तो महाभियोग का सामना करना पड़ेगा। इस बीच साउथ कोरिया के रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून ने जनता से माफी मांगते हुए अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। बता दें कि रक्षामंत्री किम की सलाह पर ही राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने की घोषणा की थी।

कोरियाई न्यूज एजेंसी योनहाप के मुताबिक किम योंग ने कहा कि वे देश में हुई भारी उथल-पुथल की जिम्मेदारी ले रहे हैं। राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि राष्ट्रपति यून सुक योल ने रक्षा मंत्री का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।किम योंग की जगह अब चोई ब्युंग-ह्यूक को साउथ कोरिया का नया रक्षा मंत्री बनाया गया है। वे सेना में फोर स्टार जनरल रह चुके हैं और फिलहाल सऊदी अरब में साउथ कोरिया के राजदूत के पद पर हैं।

गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग में उप-रक्षा मंत्री ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि किम योंग के आदेश पर ही सेना संसद में घुसी थी। उप-रक्षा मंत्री ने यह भी कहा उन्हें मार्शल लॉ के बारे में कुछ भी नहीं पता था। इसकी जानकारी उन्हें टीवी पर मिली। वे इस बात से दुखी हैं कि उन्हें कुछ पता नहीं था और इस वजह से सही समय पर इस घटना को रोक नहीं सके।

72 घंटे में मतदान जरूरी

इससे पहले मुख्य विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी और अन्य छोटे विपक्षी दलों ने बुधवार को राष्ट्रपति यून सुक येओल के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जो मंगलवार रात उनके द्वारा घोषित मार्शल लॉ’ के विरोध में पेश किया गया था। यून के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव गुरुवार को संसद में पेश किया गया, जिसका मतलब है कि इस पर शुक्रवार और रविवार के बीच मतदान हो सकता है। नेशनल असेंबली के अधिकारियों के अनुसार, अगर संसद में पेश किए जाने के 72 घंटों के भीतर इस पर मतदान नहीं होता है तो इसे रद्द कर दिया जाएगा, लेकिन अगर मौजूदा प्रस्ताव को रद्द कर दिया जाता है या मत विभाजन के जरिए खारिज कर दिया जाता है तो नया प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।

मार्शल लॉ की साजिश रचने के आरोप लग रहा

विपक्षी पार्टी के सांसद किम मिन सोक ने आरोप लगाया है कि देश में मार्शल लॉ लगाने के पीछे ‘चुंगम गुट’ का हाथ है। चुंगम राजधानी सियोल में एक हाई स्कूल है जहां से राष्ट्रपति और उनके दोस्तों ने पढ़ाई की है। राष्ट्रपति बनने के बाद यून ने अपने दोस्तों को अहम पदों पर नियुक्त कर दिया। इन सभी के पास मार्शल लॉ लागू करने को लेकर कई अधिकार थे और ये कई महीने से इसकी तैयारी कर रहे थे। रक्षा मंत्री किम भी चुंगम से ही पढ़ चुके हैं और राष्ट्रपति के पुराने दोस्त हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने से 3 घंटे पहले एक कैबिनेट मीटिंग बुलाई थी, जिसमें उनके अलावा 4 लोग शामिल थे। प्रधानमंत्री के अलावा, वित्त और विदेश मंत्री ने मार्शल लॉ लगाए जाने का विरोध किया था। हालांकि, राष्ट्रपति ने उनकी सलाह को नजरअंदाज कर दिया।

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल ने मंगलवार को देश के विपक्ष पर संसद को नियंत्रित करने, उत्तर कोरिया के साथ सहानुभूति रखने और सरकार को राज्य विरोधी गतिविधियों से पंगु बनाने का आरोप लगाते हुए साउथ कोरिया में आपातकालीन मार्शल लॉ की घोषणा की थी। हालांकि, कुछ ही घंटों के भीतर मार्शन लॉ हटा लिया गया। यह फैसला संसद के भारी विरोध और वोटिंग के बाद लिया गया। वोटिंग में 300 में से 190 सांसदों ने सर्वसम्मति से मार्शल लॉ को स्वीकार करने के लिए मना कर दिया। मार्शल लॉ के ऐलान के बाद वहां की जनता भी सड़को पर उतर आई। आर्मी के टैंक सियोल की गलियों में घूमने लगे। हालांकि कि बिगड़ते हालातों और लगातार बढ़ते विरोध के कारण राष्ट्रपति ने अपना फैसला वापस ले लिया।