श्रीलंका में दिसानायके की ‘आंधी’, राष्ट्रपति की पार्टी एनपीपी को संसदीय चुनाव में प्रचंड बहुमत
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श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) ने संसदीय चुनाव में एतिहासिक जीत हासिल की।श्रीलंका के निर्वाचन आयोग की वेबसाइट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, मलीमावा (कम्पास) चिह्न के तहत चुनाव लड़ने वाली एनपीपी ने 225 सदस्यीय संसद में 113 सीटें हासिल कीं। एनपीपी को 68 लाख यानी कुल वोटिंग के 61 फीसदी वोट मिले हैं।अब यह तय हो गया है कि अनुरा कुमारा दिसानायके की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है और वह आराम से श्रीलंका में सरकार चलाते रहेंगे। इस चुनावी रिजल्ट का मतलब है कि श्रीलंका में वामपंथी सरकार ने जड़ मजबूत कर ली है।
दिसानायके ने भ्रष्टाचार से लड़ने, चुराई गई संपत्तियों को वापस लाने के वादे पर सितंबर में राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की थी। दिसानायके सितंबर में ही 42.31 फीसदी वोट हासिल कर राष्ट्रपति चुने गए थे, लेकिन उनकी पार्टी के पास श्रीलंका की संसद में बहुमत नहीं था। जिसके चलते राष्ट्रपति ने संसद भंग कर समय से पहले चुनाव कराने के आदेश दे दिए थे। राष्ट्रपति चुनाव के बाद संसदीय चुनाव में भी वामपंथी लीडर अनुरा दिसानायके ने साबित कर दिया कि उनका दबदबा कायम है।
शुक्रवार को जारी नतीजों में एनपीपी ने श्रीलंका की संसद की 196 सीटों में से 141 सीटों पर जीत हासिल कर ली है। इस बीच, साजिथ प्रेमदासा की समागी जना बालवेगया (SJB) 35 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। श्रीलंका चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक काउंटिंग में एनपीपी ने राष्ट्रीय स्तर पर करीब 62% या 68.63 लाख से अधिक वोट हासिल किए हैं। प्रेमदासा की मुख्य विपक्षी पार्टी समागी जन बालावेगया (SJB) को करीब 18 फीसदी, तो वहीं पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के समर्थन वाले नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF) को महज 4.5 फीसदी वोट मिले हैं।
225 सीटों वाली श्रीलंका की संसद में किसी भी दल को बहुमत के लिए 113 सीटों पर जीत हासिल करनी होती है। इनमें से 196 सीटों पर जीत का फैसला जनता वोटिंग के जरिए होता है, बची हुई 29 सीटों के लिए उम्मीदवार एक नेशनल लिस्ट के जरिए चुने जाते हैं। नेशनल लिस्ट प्रक्रिया के तहत श्रीलंका तमाम सियासी दलों या निर्दलीय समूहों की ओर से कुछ उम्मीदवारों के नाम की लिस्ट चुनाव आयोग को सौंपी जाती है, बाद में पार्टी या समूह को जनता से मिले वोट के अनुपात में प्रत्येक दल की लिस्ट से उम्मीदवार चुने जाते हैं।
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