साल में एक बार खुलता है ये रहस्यमयी मंदिर, जहां सालभर जलता है दीपक और ताजे रहते हैं फूल
भारत को मंदिरों के देश कहा जाता हैं. यहां बहुत से चमत्कारी और रहस्यमयी मंदिर हैं. इन मंदिर में छिपे रहस्यों की गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है. यह मंदिर अपने रहस्यों के चलते पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. यहां होने वाले चमत्कारों को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. इस लेख में हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहें हैं जिनके कपाट सिर्फ दिवाली के दौरान खोले जाते हैं. इसके बाद मंदिर में भगवान के सामने दीपक जलाने के बाद पुष्प चढ़ाएं जाते है, लेकिन एक साल बाद भी दीपक भी जलता रहता है और फूल भी ताजे रहते है.
कहां है यह मंदिर?
यह रहस्यमयी मंदिर बेंगलुरु से लगभग 180 किलोमीटर दूर कर्नाटक के हासन जिले में स्थित है. इस मंदिर को हसनंबा मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में कराया गया था. इससे पहले सिहामासनपुरी के नाम से जाना जाता था, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता था. इस मंदिर की कई खासियत है, जो इस अन्य मंदिरों से अलग बनाती है.
सालभर जलता है दीपक, ताजे रहते हैं फूल
दिवाली के दौरान इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर के कपाट दिवाली के दौरन सिर्फ 7 दिनों के लिए खोले जाते हैं. मंदिर के कपाट खुलने पर यहां हजारों की संख्या में भक्त मां जगदम्बा के दर्शन और उनसे आशीर्वाद पाने के लिए यहां पहुंचते हैं. जिस दिन इस मंदिर के कपाट को बंद किया जाता है, उस दिन मंदिर के गर्भगृह में शुद्ध घी का दीपक जलाया जाता है. साथ ही मंदिर के गर्भगृह को फूलों से सजाया जाता है और चावल से बने व्यंजनों को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. स्थानीय लोगो को कहना है कि एक साल बाद जब दिवाली पर दोबारा मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तब दीपक भी जलता रहता है और फूल भी नहीं मुरझाते
7 दिनों तक चलता है उत्सव
दिवाली के दौरान जब हसनंबा मंदिर के कपाट खोले जाते हैं. इस दौरान सभी भक्त मां जगदंबा के दर्शन करते हैं. मंदिर में हसनंबा देवी माता की 1 सप्ताह तक पूजा-पाठ होती है और अंतिम दिन मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं, जिसके बाद फिर अगले साल ही खुलते हैं.
मंदिर से जुड़ी कथा है प्रचलित
हसनंबा मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. जिसमें से एक कथा के अनुसार, अंधकासुर नाम के एक राक्षस था. जिसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अदृश्य होने का वरदान प्राप्त किया. ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के बाद अंधकासुर ने मनुष्यों और ऋषि- मुनियों को परेशान करने लगा. ऐसे में भगवान शिव ने उस राक्षस का वध करने का जिम्मा उठाया. लेकिन उस राक्षस के खून की एक-एक बूंद राक्षस बन जाते थे. तब उसके वध के लिए भगवान शिव ने तपयोग से योगेश्वरी देवी का निर्माण किया, जिन्होंने अंधकासुर का नाश कर दिया.
नोट:इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है,हम इसकी पुष्टि नहीं करता है.
Nov 02 2024, 12:03