भारत-चीन भूल रहे आपसी मतभेद, क्या यह अमेरिका के लिए चुनौती है?
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लंबे समय बाद भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को हल करने की सहमति बनी है और इसके साथ ही दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने की उम्मीद भी बढ़ गई है। इसकी एक झलक रूस के कज़ान में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भी दिखी, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वार्ता हुई। बता दें कि साल 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 भारतीय सैनिकों के साथ कई चीनी सैनिक मारे गए थे।तबसे ही दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। अब इतने सालों के बाद दोनों देशों के रिश्ते पटरी पर आते दिख रहे हैं।
अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत-चीन संबंधों में नरमी अमेरिका के लिए नई चुनौती पेश कर सकती है? दरअसल, यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका ने कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और अपने यहां आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश के आरोपों में भारत को घेरने की लगातार कोशिशें की हैं। अमेरिका ने न केवल निज्जर की हत्या मामले में कनाडा के कंधे पर हाथ रखकर भारत की तरफ आंखें तरेर रहा है बल्कि पन्नू मामले में भारत पर लगातार दबाव बनाना चाह रहा है।
हालांकि, अमेरिका भारत पर भरोसा करता है कि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोके रखने का सबसे बड़ा जरिया है। भारत-चीन सीमा गतिरोध के समाधान की संभावना के प्रति अमेरिकी संदेह भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने में चीन की भूमिका से उपजा है। चूंकि अमेरिका को लगता है कि भारत को इंडो-पैसिफिक में चीनी प्रभाव को रोकने के साथ-साथ चीन द्वारा ताइवान पर संभावित आक्रमण की स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, इसलिए उसने भारत के साथ अपनी साझेदारी बढ़ाई है जिसमें महत्वपूर्ण तकनीक साझा करना और विनिर्माण के लिए चीन के विकल्प के रूप में भारत का समर्थन करना शामिल है। हाल ही में, भारत और अमेरिका ने अमेरिकी सशस्त्र बलों और सहयोगी सेनाओं के साथ-साथ भारतीय रक्षा बलों को उन्नत चिप्स की आपूर्ति करने के लिए भारत में एक संयुक्त सेमीकंडक्टर फ़ैब की योजना बनाई है। स्पष्ट चीन कोण के साथ, भारत और अमेरिका ने हाल ही में 31 प्रीडेटर ड्रोन के अधिग्रहण के लिए 32,000 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं, जिन्हें भारतीय सेना , नौसेना और वायु सेना के बीच वितरित किया जाएगा। यह अधिग्रहण हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ चीन अपनी नौसैनिक उपस्थिति का तेज़ी से विस्तार कर रहा है और टर्नअराउंड सुविधाएँ स्थापित कर रहा है।
हालांकि, ये कहना जल्दबादजी होगी कि भारत और चीन के बीच सीमा पर मतभेद पूरी तरह से खत्म हो गए हैं। भारत और चीन के बीच इतना अधिक अविश्वास और अतीत का बोझ है कि वे किसी भी तरह के घनिष्ठ सहयोग की अनुमति नहीं दे सकते जो अमेरिका या पश्चिम के लिए चुनौती बन जाए।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान, भारत-चीन साझेदारी को मजबूत करने का प्रयास किया। जिसमें अहमदाबाद, वुहान और महाबलीपुरम में तीन बार शी और मोदी की मुलाकात शामिल थी। बावजूद इसके सीमा पर चीन की आक्रामकता दिखी पहले डोकलाम और फिर गलवान में।
Oct 25 2024, 11:30